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इस राज्य में कंदीय फूलों की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा, शीघ्र आवेदन करें

इस राज्य में कंदीय फूलों की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा, शीघ्र आवेदन करें

बिहार में राज्य सरकार की तरफ से कंदीय फूलों की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत तक सबसिडी प्रदान की जा रही है। योजना का फायदा उठाने के लिए कृषक भाई आधिकारिक साइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

बिहार सरकार की ओर से किसानों को फूलों का उत्पादन करने के लिए निरंतर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने फिलहाल एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत कंदीय फूल की खेती करने के लिए किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है। 

योजना का फायदा उठाने के लिए किसान आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाऐगा

बतादें, कि बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर कंदीय फूलों की खेती हेतु लागत 15 लाख रुपये रखी है। इस पर सरकार 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान करेगी। इस हिसाब से किसानों को सात लाख 50 हजार रुपये मिलेंगे। 

सब्सिडी का फायदा उठाने के लिए किसान आज ही आधिकारिक वेबसाइट horticulture.bihar.gov.in पर जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह अपने निकटतम उद्यान कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं। 

योजना के अंतर्गत फायदा लेने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड, बैंक पासबुक की प्रति, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, फोन आदि अपने पास जरूर रखने होंगे। 

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बाजार में फूलों की प्रचंड मांग है

बतादें, कि कंदीय फूल को गमले व जमीन दोनों में उगाया जा सकता है। इन फूलों की सजावट के काम में जरूरत पड़ती है। साथ ही बुके में भी इन फूलों का उपयोग किया जाता है। 

बाजार में ये फूल अच्छी-खासी कीमत में बिकते हैं। किसान भाई कंदीय फूलों की खेती कर कम समय में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। जानिए किन फूलों को कंदीय फूल कहा जाता है। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऑक्जेलिक, हायसिन्थ, ट्यूलिप, लिली, नर्गिसफ्रिजिआ, डेफोडिल, आइरिस, इश्किया, आरनिथोगेलम को कंदीय फूल कहा जाता है।

जैविक खेती से किसान कमा सकते है अधिक उपज जाने सम्पूर्ण जानकारी

जैविक खेती से किसान कमा सकते है अधिक उपज जाने सम्पूर्ण जानकारी

भारत वर्ष में जैविक खेती बहुत पुराने समय से चलती आ रही है। हमारे ग्रांथों में प्रभु कृष्ण और बलराम, जिन्हें हम गोपाल और हलधर कहते हैं, कृषि के साथ-साथ गौपालन भी किया जाता था, जो दोनों बहुत फायदेमंद था, न सिर्फ जानवरों के लिए बल्कि वातावरण के लिए भी. आजादी मिलने तक भारत में यह परम्परागत खेती की जाती रही है। बाद में जनसंख्या विस्फोट ने देश पर उत्पान बढ़ाने का दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप देश रासयनिक खेती की ओर बढ़ा और अब इसके बुरे परिणाम सामने आने लगे हैं। रासायनिक खेती हानिकारक होने के साथ-साथ बहुत महंगी होती है, जिससे फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाती है|

इसलिए देश अब जैविक खेती की ओर बढ़ रहा है क्योंकि यह स्थायी, सस्ता और स्वावलम्बी है। आइए जानते हैं जैविक खेती क्या है और किसानों को इसे क्यों करना चाहिए।

मिट्टी की सेहत सुधर में केंचुआ का है मुख्य योगदान 

हम सब जानते हैं कि जमीन पर पाए जाने वाले केंचुए आदमी के लिए बहुत उपयोगी हैं। भूमि में पाए जाने वाले केंचुए खेत में पढ़े हुए पेड़-पौधों के अवशेषों और कार्बनिक पदार्थों को खाकर गोलियों में बदल देते हैं, जो पौधों के लिए देशी खाद बनते हैं। इस केंचुए से 2 महीने में कई हैक्टेयर का खाद बनाया जा सकता है। इस खाद को बनाने के लिए आसानी से उपलब्ध खरपतवार, मिटटी और केंचुआ की जरूरत पड़ती है। आइए जानते हैं कि केचुएँ खेत की मिट्टी को कैसे स्वस्थ बनाते हैं।

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जैव कल्चर के माध्यम से बढ़ती है मिट्टी की उर्वरा शक्ति 

जैव कल्चर मिट्टी की उर्वरा शक्ति और फसल उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हैं जब भूमि में पड़े पादप अवशेषों को पाचन किया जाता है।उर्वरक अक्सर दलहनी फसलों में नहीं प्रयोग किया जाता है  इसका कारण राइजोबियम कल्चर दलहनी पौधों की जड़ों में पाया जाता है | जो वायुमंडल से नाईट्रोजन लेकर पोषक तत्वों की पूर्ति करता है, लेकिन दलहनी फसलों की जड़ों में राईजोबियम नहीं होता है दलहनी पौधों की जड़ को दूसरी फसलों में प्रयोग करने से नाईट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए क्या किया जा सकता है?

जैविक खेती का पंजीकरण करना है बहुत आवश्यक 

यदि किसान जैविक खेती करता है या करने की कोशिश करता है तो उसे जैविक पंजीयन कराना चाहिए, क्योंकि पंजीयन नहीं होने से किसान को फसल का मूल्य कम मिलता है। क्योंकि आपके पास कोई दस्तावेज नहीं है जो बताता है कि जय की फसल जैविक या रासायनिक है इसलिए कृषि समाधान ने जैविक पंजीयन की पूरी जानकारी प्राप्त की है। जिसमें किसान 1400 रुपये खर्च करके एक हैक्टेयर पंजीकृत कर सकते हैं |

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जैविक खाद बनाने की विधि 

कृषि में अत्यधिक रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक के उपयोग से बीमारियां और खर्च बढ़ रहे हैं जैविक कृषि को अपनाने से लागत कम होगी और बीमारी कम होगी। इसके लिए किसानों को अपने घर पर देशी खाद और रासायनिक कीटनाशक की जगह देशी कीटनाशक बनाने की जरूरत है। इसके लिए किसानों को खड़ा करने और कीटनाशक बनाने का तरीका आना चाहिए। इसलिए किसानों ने खाद और कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया विकसित की है। गाय के गोबर, गुड और गो मूत्र से तरल जैविक खाद बनाने की आज की कड़ी में जानकारी दी गई है।

जैविक विधि से की जा सकती है फसलों की कीटों और रोगों से रक्षा 

कीट किसी भी फसल में रहते हैं कीट फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है, जो उत्पादन को प्रभावित करता है | इस कीट को नियंत्रित करना आवश्यक है इसलिए किसान समाधान ने जैविक रूप से कीट नियंत्रण के बारे में जानकारी दी है। यह कीटनाशक तम्बाकू, नीम, महुआ, इमली की छाल और तेल से बनाया जाता है। जो सस्ता और आसानी से उपलब्ध है |

जैविक खाद होती है पोषक तत्वों से भरपूर 

फसल की उत्पादकता मिटटी में नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा पर निर्भर करती है। जब मिटटी में पोषक तत्व की कमी होती है, तो उसे बहार से भर दें। यह पोषक तत्व रासायनिक रूप से आसानी से पाया जा सकता है, लेकिन इसकी कीमत अधिक होने से फसल का उत्पादन अधिक महंगा होता है। इसके लिए प्राकृतिक खाद का उपयोग करना चाहिए | जैविक खाद में नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जानना महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि किसान समाधान सभी खादों में पोषक तत्वों की सूचना लाया है।

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जैविक तरीके से उगाई गयी सब्जियों के किसानों को मिलता है अधिक दाम

जैविक सब्जी और साग की मांग बढ़ गई है | इसकी लागत भी अधिक है | इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि सब्जी में प्रयोग किया गया खाद कीटनाशक गोबर, केंचुआ और अन्य जैविक खाद से बना हो। किसान अपने घर में कीटनाशक और खाद बनाकर जैविक सब्जी और साग उत्पादन कर सकते हैं। किसान समधान ने जैविक सब्जी और साग की खेती की पूरी जानकारी प्राप्त की है। जिससे अच्छा पैसा कमाया जा सकता है

पंजीकृत होना बहुत आवश्यक है 

कृषक जैविक खेती के लिए पंजीकृत होना चाहिए | जिससे फसलों और फलों का अच्छा मूल्य मिल सकता है | केंद्रीय सरकार ने जैविक खेती की प्रमाणिकता देना शुरू कर दिया है | इसके लिए राज्य में एक सरकारी संस्था बनाई गई है | पुरे देश में निजी संस्थानों का भी सहयोग लिया गया है | नियमों के साथ, यह संस्था किसी भी किसान को जैविक प्रमाणिकता देती है। इन सभी संस्थानों के नाम, कार्यालय पत्ता और दूरभाष नंबर दिए गए हैं।

जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जालंधर में नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (Divya Jyoti Jagrati Sansthan)ने जैविक खेती की प्रेरणा एवं प्रशिक्षण के पुनीत कार्य में मिसाल कायम की है। बीते 15 सालों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रत इस संस्थान ने कैसे अपने मिशन को दिशा दी है, कैसे यहां किसानों को प्रशिक्षित किया जाता है, कैसे सेवादार इसमें हाथ बंटाते हैं जानिये।

सफलता की कहानी -

जैविक खेती के मामले में आदर्श नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान में जनजागृति एवं प्रशिक्षण की शुरुआत कुल 50 एकड़ की भूमि से हुई थी। अब 300 एकड़ जमीन पर जैविक खेती की जा रही है। अनाज की बंपर पैदावार के लिए आदर्श रही पंजाब की मिट्टी, खेती में व्यापक एवं अनियंत्रित तरीके से हो रहे रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से लगातार उपजाऊ क्षमता खो रही है। जालंधर के नूरमहल स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने इस समस्या के समाधान की दिशा में आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।

गौसेवा एवं प्रेरणा -

संस्थान में गोसेवा के साथ-साथ पिछले 15 सालों से किसानों को जैविक खेती के लाभ बताकर प्रेरित करने के साथ ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। संस्थान की सफलता का प्रमाण यही है कि साल 2007 में 50 एकड़ भूमि पर शुरू की गई जैविक कृषि आधारित खेती का विस्तार अब 300 एकड़ से भी ज्यादा ऊर्जावान जमीन के रूप में हो गया है। यहां की जा रही जैविक खेती को पर्यावरण संवर्धन की दिशा में मिसाल माना जाता है। ये भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

सेवादार करते हैं खेती -

संस्थान के सेवादार ही यहां खेती-किसानी का काम संभालते हैं। किसान एवं पर्यावरण के प्रति लगाव रखने वालों को संस्थान में विशेष कैंप की मदद से प्रशिक्षित किया जाता है। गौरतलब है कि गौसेवा, प्रशिक्षण के रूप में जनसेवा एवं जैविक कृषि के प्रसार के लिए प्रेरित कर संस्थान प्रकृति संवर्धन एवं स्वस्थ समाज के निर्माण में अतुलनीय योगदान प्रदान कर रहा है।

रासायनिक खाद के नुकसान -

संस्थान के सेवादार शिविरों में इस बारे में जागरूक करते हैं कि रासायनिक खाद व कीटनाशक से लोग किस तरह असाध्य बीमारियों की चपेट में आते हैं। इससे होने वाली शुगर असंतुलन, ब्लड प्रेशर, जोड़ दर्द व कैंसर जैसी बीमारियों के बारे में लोगों को शिविर में सावधान किया जाता है। ये भी पढ़ें: जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग यहां लोगों की इस जिज्ञासा का भी समाधान किया जाता है कि जैविक खेती के कितने सारे फायदे हैं। जैविक कृषि विधि से संस्थान गेहूं, धान, दाल, तेल बीज, हल्दी, शिमला मिर्च, लाल मिर्च, कद्दू, अरबी की खेती कर रहा है। साथ ही यहां फल एवं औषधीय उपयोग के पौधे भी तैयार किए जाते हैं।

गोमूत्र निर्मित देसी कीटनाशक के फायदे -

संस्थान के सेवादार फसल को खरपतवार और अन्य नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों से बचाने के लिए खास तौर से तैयार देसी कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। इस स्पेशल कीटनाशक में भांग, नीम, आक, गोमूत्र, धतूरा, लाल मिर्च, खट्टी लस्सी, फिटकरी मिश्रण शामिल रहता है। इसका घोल तैयार किया जाता है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए जैविक कृषि के इस स्पेशल स्प्रे का इस्तेमाल समय-समय पर किया जाता है। ये भी पढ़ें: गाय के गोबर से बन रहे सीमेंट और ईंट, घर बनाकर किसान कर रहा लाखों की कमाई

जैविक उत्पाद का अच्छा बाजार -

जैविक उत्पादों की बिक्री में आसानी होती है, जबकि इसका दाम भी अच्छा मिल जाता है। इस कारण संस्थान में प्रशिक्षित कई किसान जैविक कृषि को आदर्श मान अब अपना चुके हैं। जैविक कृषि आधारित उत्पादों की डिमांड इतनी है कि, लोग घर पर आकर फसल एवं उत्पाद खरीद लेते हैं। इससे उत्पादक कृषक को मंडी व अन्य जगहों पर नहीं जाना पड़ता।

पृथक मंडी की दरकार -

यहां कार्यरत सेवादारों की सलाह है कि जैविक कृषि को सहारा देने के लिए सरकार को जैविक कृषि आधारित उत्पादों के लिए या तो अलग मंडी बनाना चाहिए या फिर मंडी में ही विशिष्ट व्यवस्था के तहत इसके प्रसार के लिए खास प्रबंध किए जाने चाहिए। ये भी पढ़ें: एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा संस्थान की खास बात यह है कि, प्रशिक्षण व रहने-खाने की सुविधा यहां मुफ्त प्रदान की जाती है। संस्थान की 50 एकड़ भूमि पर सब्जियां जबकि 250 एकड़ जमीन पर अन्य फसलों को उगाया जाता है।

कथा, प्रवचन के साथ आधुनिक मीडिया -

अधिक से अधिक लोगों तक जैविक कृषि की जरूरत, उसके तरीकों एवं लाभ आदि के बारे में उपयोगी जानकारी पहुंचाने के लिए संस्थान धार्मिक समागमों में कथा, प्रवचन के माध्यम से प्रेरित करता है। इसके अलावा आधुनिक संचार माध्यमों खास तौर पर इंटरनेट के प्रचलित सोशल मीडिया जैसे तरीकों से भी जैव कृषि उपयोगिता जानकारी का विस्तार किया जाता है। संस्थान के हितकार खेती प्रकल्प में पैदा ज्यादातर उत्पादों की खपत आश्रम में ही हो जाती है। कुछ उत्पादों के विक्रय के लिए संस्थान में एक पृथक केंद्र स्थापित किया गया है।

गोबर, गोमूत्र आधारित जीव अमृत -

जानकारी के अनुसार संस्थान में लगभग 900 देसी नस्ल की गायों की सेवा की जाती है। इन गायों के गोबर से देसी खाद, जबकि गो-मूत्र से जीव अमृत (जीवामृत) निर्मित किया जाता है। इस मिश्रण में गोमूत्र, गुड़ व गोबर की निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है। गौरतलब है कि गोबर के जीवाणु जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सब्जियों-फलों के पैकिंग का बिजनेस शुरू करने पर मिलेगा 2 लाख रुपये का अनुदान, यहां करें आवेदन

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भारत में खेती किसानी एक अनिश्चितता भरा व्यवसाय है। जिसमें किसान को कभी भी घाटा लग सकता है। देश का किसान सबसे ज्यादा मौसम की मार से प्रभावित होता है। इसके साथ ही अगर किसी फसल की बाजार में उपलबद्धता ज्यादा हो जाती है तो भी किसानों को नुकसान होता है। बाजार में फसल की जरूरत से ज्यादा सप्लाई होने पर उसकी मांग घट जाती है और किसानों को मन के मुताबिक भाव नहीं मिलते। जिससे किसानों को घाटा होता है। अब इस घाटे से निपटने के लिए बिहार की सरकार ने किसानों को मदद देने का ऐलान किया है। बिहार सरकार के कृषि विभाग ने कहा है कि सब्जियों और फलों की सुरक्षित पैकिंग के लिए पैक हाउस निर्माण पर अब राज्य की सरकार किसानों को सब्सिडी मुहैया करवाएगी। ताकि किसान भाई अपनी फसलों को अच्छे से पैक करके अन्य राज्यों की मंडियों में बेंच सकें। ये भी पढ़े: विदेशों में लीची का निर्यात अब खुद करेंगे किसान, सरकार ने दी हरी झंडी बिहार के कृषि विभाग ने बताया है कि सरकार पैक हाउस का निर्माण करने के लिए किसानों को 50 प्रतिशत की सब्सिडी दे रही है। इस तरह के पैक हाउस निर्माण में अधिकतम 4 लाख रुपये की लागत आती है। जिसमें से 2 लाख रुपये सरकार किसानों को अनुदान के रूप में देगी। इसके साथ ही यदि किसान एफपीओ/एफपीसी से जुड़े  हैं तो उन्हें अधिकतम लागत का 75 फीसदी अनुदान दिया जाएगा। जो अधिकतम 3 लाख रुपये तक हो सकता है। बिहार सरकार यह अनुदान एकीकृत बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत दे रही है। योजना का लाभ लेने के लिए किसान बिहार सरकार की बागवानी विभाग की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत आवेदन करने के लिए किसान को बिहार का नागरिक होना अनिवार्य है। इसके साथ ही किसान के पास खुद के नाम कृषि योग्य भूमि भी होनी चाहिए। आवेदन करते वक्त किसान अपने साथ आधार कार्ड, पेन कार्ड, बैंक खाता पासबुक, पासपोर्ट साइज़ फोटो, खेती वाली जमीन के कागजात और मोबाइल नंबर जरूर रखें। यह सभी ब्योरा आवेदन के साथ संलग्न करना होगा। बिहार सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि राज्य सरकार लगातार किसानों की सहायता करने का प्रयत्न कर रही है ताकि किसान ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकें। हाल में राज्य सरकार ने किसानों को कोल्ड स्टोरेज के निर्माण पर भी बम्पर सब्सिडी देने का वादा किया था। अभी तक कई किसानों ने इस स्कीम का लाभ उठाया है।
बिहार सरकार मशरूम की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बिहार सरकार मशरूम की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बतादें कि वर्तमान में बिहार सरकार मशरूम के ऊपर विशेष ध्यान केंद्रित कर रही है। बिहार सरकार का कहना है, कि मशरूम की खेती से राज्य के लघु एवं सीमांत किसानों की आमदनी में इजाफा किया जा सकता है। बिहार राज्य में किसान पारंपरिक फसलों समेत बागवानी फसलों का भी जमकर उत्पादन करते हैं। यही कारण है, कि बिहार मखाना, मशरूम, लंबी भिंडी और शाही लीची के उत्पादन में अव्वल दर्जे का राज्य बन चुका है। हालांकि, राज्य सरकार से किसानों को बागवानी फसलों की खेती करने के लिए बंपर सब्सिडी भी दी जा रही है. इसके लिए राज्य सरकार प्रदेश में कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. इन योजनाओं के तहत किसानों को आम, लीची, कटहल, पान, अमरूद, सेब और अंगूर की खेती करने पर समय- समय पर सब्सिडी दी जाती है।

हजारों की संख्या में किसान अपने घर के अंदर ही मशरूम उगा रहे हैं

बतादें कि मशरूम बागवानी के अंतर्गत आने वाली फसल है। साथ ही, मशरूम की खेती में काफी कम खर्चा आता है। मशरूम उत्पादन हेतु खेत व सिंचाई की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है। यदि किसान भाई चाहें तो अपने घर के अंदर भी मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं। फिलहाल, बिहार में हजारों की तादात में किसान घर के अंदर ही मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको काफी अच्छी-खासी आमदनी भी हो रही है। दरअसल, मशरूम अन्य सब्जियों जैसे कि लौकी, फूलगोभी और करेला आदि की तुलना में महंगा बिकता है। अब ऐसी स्थिति में मशरूम की खेती करने पर किसानों को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। यही वजह है, कि बिहार सरकार मशरूम की खेती पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

मशरूम कम्पोस्ट उत्पादन पर 50 फीसद अनुदान

वर्तमान में बिहार राज्य के मशरूम उत्पादकों के लिए काफी अच्छा अवसर है। बतादें, कि फिलहाल कृषि विभाग एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत मशरूम कम्पोस्ट उत्पादन पर 50 प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है। मुख्य बात यह है, कि राज्य सरकार द्वारा कंपोस्ट उत्पादन के लिए इकाई लागत 20 लाख रुपए तय की गई है। उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर किसान भाई इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। यह भी पढ़ें: बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

बिहार में पिछले साल हजारों टन मशरूम की पैदावार हुई थी

बिहार राज्य में बागवानी फसलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार निरंतर कुछ न कुछ योजना जारी कर रही है। बिहार सरकार किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। अगर किसान भाई चाहें, तो अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रखंड उद्यान पदाधिकारी अथवा अपने जनपद के सहायक उद्यान निदेशक से सम्पर्क साध सकते हैं। बतादें, कि बिहार मशरूम उत्पादन के मामले में भारत के अंदर प्रथम स्थान पर है। इसके उपरांत दूसरे स्थान पर ओडिशा आता है। विगत वर्ष बिहार में 28000 टम मशरूम की पैदावार हुई थी।
इस राज्य में प्याज स्टोरेज हाउस खोलने पर 75% सब्सिडी

इस राज्य में प्याज स्टोरेज हाउस खोलने पर 75% सब्सिडी

भारत में आजकल प्याज काफी मंहगा हो चुका है। अब आप भी ऐसे में इसका लाभ उठा सकते हैं। परंतु, उसके लिए आपको प्याज स्टोरेज हाउस खोलना होगा। यदि आप भी प्याज के माध्यम से तगड़ी आमदनी करना चाहते हैं, तो एक प्याज स्टोरेज हाउस खोल लें। यहां बड़ी बात यह है, कि इसके निर्माण पर आपको 4.5 लाख रुपये तक का अनुदान भी मिल जाएगा। भारत में आजकल प्याज जनता के खूब आंसू निकाल रहा है। इसकी कारण इसकी कीमत है। भारत में प्याज की कीमतें पुनः आसमान छू रही हैं। सप्लाई के अनुसार, प्याज का भंडारण न होने के चलते इसकी कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है। परंतु, प्याज की कीमतों में आए उछाल का फायदा आप भी प्राप्त कर सकते हैं। आपको बस एक प्याज स्टोरेज हाउस खोलना होगा, जिसके निर्माण पर आपको अनुदान भी मिलेगा। वहीं, बाद में प्याज के भंडारण व उसकी नीलामी से मुनाफा भी होगा।

बिहार सरकार ने उठाया अहम कदम

दरअसल, बिहार सरकार ने व्यापक प्याज भंडारण प्रणाली को विकसित करने के लिए एक बड़ी कवायद की है। राज्य सरकार प्याज भंडारण के लिए अनुदान प्रदान कर रही है। जिससे कि राज्य में प्याज का भंडारण सुनिश्चित किया जा सके। वहीं, इससे लोगों को भी लाभ मिले। ऐसी स्थिति में यदि आप भी बिहार से हैं और कोई नवीन व्यवसाय चालू करने की सोच रहे हैं, तो बिहार सरकार की इस योजना का फायदा उठा सकते हैं। इसी प्रकार ग्रामीण इलाकों में भी किसान अपनी लोकल स्टोरेज बना सकते हैं, जिस पर सरकार 75 फीसद तक की सब्सिड़ी दे रही है।

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बिहार सरकार कितनी सब्सिडी प्रदान कर रही है

बिहार सरकार के उद्यान विभाग के मुताबिक, सब्जी विकास कार्यक्रम (2023-2024) के अंतर्गत प्याज स्टोरेज की स्थापना के लिए राज्य सरकार अनुदान मुहैय्या करा रही है। सरकार की इस योजना के मुताबिक, 50 मीट्रिक टन प्याज स्टोरेज यूनिट के लिए 6 लाख रुपये की लागत निर्धारित की गई है। इस पर सरकार आपको 75 फीसद अनुदान देगी। ऐसे में अगर आप एक प्याज स्टोरेज हाउस का निर्माण करते हैं तो इस पर आपको 4 लाख 50 हजार रुपये तक की सब्सिडी मिलेगी। इसका मतलब कि आपको अपनी जेब से निर्माण करने पर सिर्फ 1 लाख 50 रुपये का खर्चा करना होगा।

बिहार के इन जिलों में आवेदन कर सकते हैं

बिहार सरकार वर्तमान में कुछ ही जनपदों में इस योजना को चला रही है। इसके अंतर्गत औरंगाबाद, गया, नालंदा, पटना, बक्सर, नवादा और शेखपुरा जैसे जनपद के लोग एवं किसान प्याज भंडारण के लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने की प्रक्रिया पूर्ण रूप से ऑनलाइन है, जो वर्तमान में शुरू हो गई है।

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योजना का लाभ लेने के लिए इस तरह आवेदन करें

यदि आप भी इस योजना का फायदा उठाकर प्याज स्टोरेज हाउस खोलना चाहते हैं, तो बागवानी विभाग की आधिकारिक वेबसाइट (https://horticulture.bihar.gov.in) पर जाकर इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने के लिए सबसे पहले वेबसाइट पर जाएं। इसके बाद 'सब्जी विकास योजना' पर क्लिक करें, जहां आपको प्याज स्टोरेज हाउस के निर्माण पर मिल रहे अनुदान से जुड़ा एक लिंक मिलेगा। लिंक पर क्लिक करने के पश्चात अपनी समस्त जानकारियां भर दें एवं फॉर्म जमा कर दें।

पोल्ट्री फार्म खोलने के लिए सरकार देगी 40 लाख, जानें पूरी जानकारी

पोल्ट्री फार्म खोलने के लिए सरकार देगी 40 लाख, जानें पूरी जानकारी

मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार द्वारा शुरू की गई योजना का नाम "समेकित मुर्गी विकास योजना" है। इस योजना के जरिये सरकार अंडा उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर रही है। किसानों को अंडे का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। 

इस योजना के जरिये किसान लाभ भी कमा सकते है। मुर्गी पालन करने के लिए, सरकार बिहार राज्य के लोगों को 40 लाख रुपए की राशि प्रदान कर रही है। यदि कोई व्यक्ति घर बैठे ही बिज़नेस करना चाहता है, तो उसके लिए यह सुनहरा मौका है। 

इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को 50 फीसदी का अनुदान प्रदान किया जायेगा। वही सामान्य जाती के लोगों को 30 फीसदी अनुदान दिया जायेगा। पोल्ट्री फार्मिंग का व्यवसाय कर किसान अन्य लोगों को भी उसमें रोजगार प्रदान कर सकते है। मुर्गी पालन के इस कार्य को रोजगार का सबसे बेहतर माध्यम माना जाता है। 

आवेदन के जरूरी दस्तावेज क्या है ?

  1. आवेदक का आधार कार्ड 
  2. आवेदक का निवास प्रमाण पत्र 
  3. पासपोर्ट साइज फोटो 
  4. जाति प्रमाण पत्र 
  5. बैंक की पास बुक की फोटो कॉपी 
  6. पैन कार्ड की फोटो कॉपी 
  7. आवेदन करते वक्त, आवेदक के पास राशि की छाया प्रति 
  8. भूमि का ब्यौरा या नजरी नक्शा 
  9. मुर्गी पालन का प्रशिक्षण प्रमाण पत्र 

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समेकित मुर्गी विकास योजना में कैसे करें आवेदन ?

यदि आवेदक इस योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन करना चाहता है, तो state.bihar.gov.in वेबसाइट पर कर सकता है। यह कृषि मंत्रालय की वेबसाइट है। यदि आवेदक ऑफलाइन आवेदन करना चाहता है तो, नजदीकी कृषि मंत्रालय में जाकर आवेदन कर सकता है। इस योजना में आवेदन करने की अंतिम तिथि 31 मार्च 2024 है।