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मौसम की बेरुखी ने भारत के इन किसानों की छीनी मुस्कान

मौसम की बेरुखी ने भारत के इन किसानों की छीनी मुस्कान

बरसात की वजह से ओडिशा में फसलों को काफी क्षति का सामना करना पड़ा है। इस कारण से बहुत सारी सब्जियों की कीमत काफी कम हो गई हैं। खराब मौसम के चलते किसानों की चिंता ज्यों की त्यों बनी हुई है। बीते कई दिनों में भारत में मौसम ने अपना अलग-अलग मिजाज दिखाया है। बहुत सारे क्षेत्र कड़ाके की सर्दी की मार सहन कर रहे हैं तो बहुत सारे क्षेत्रों में बारिश के चलते फसल बर्बाद हो रही है।

ओडिशा के सुंदरगढ़ में बहुत दिनों से मौसम खराब था। नतीजतन बागवानी फसलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसकी वजह से किसानों की परेशानी भी बेहद बढ़ी है। खराब मौसम की वजह से टमाटर, पत्ता गोभी व फूल गोभी सहित बहुत सारी अन्य फसलें भी प्रभावित हुई हैं। इसकी मुख्य वजह किसान समय से पहले ही फसल की कटाई करने पर विवश हैं। इसके साथ - साथ किसान इन फसलों को कम भाव पर भी बेच रहे हैं।

इस वजह से हुई फसलों को हानि 

कई मीडिया एजेंसियों के मुताबिक, खराब मौसम और प्रचंड बारिश के चलते फसलों को बेहद क्षति पहुँची है। इस वजह से बहुत सारे स्थानों पर पूर्णतय कटने को तैयार खड़ी फसल भी बर्बाद हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सबसे ज्यादा हानि टमाटर की फसल को पहुंची है। बरसात के चलते टमाटर की फसल खराब होने लगी है। वहीँ, गोभी की फसल भी काफी हद तक खराब हो चुकी है।

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विवश होकर किसान समय से पहले कटाई करने पर मजबूर 

किसानों का जीवन अनेकों समस्याओं और मुश्किलों से भरा हुआ होता है। अब ऐसे में मौसम की बेरुखी से परेशान किसानों की बची हुई फसल भी काफी कम  कीमतों पर बिक रही है। किसानों को यह डर भी काफी सता रहा है, कि कहीं बची हुई शेष फसल भी बर्बाद ना हो जाए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, किसान अपनी टमाटर की फसल को 10 रुपये किलो के भाव पर बेचने को विवश हैं। साथ ही, गोभी का मूल्य भी 15 रुपये किलो पर आ गया है। 

बहुत सारे किसानों की तो गोभी की फसल कम कीमत पर भी नहीं बिक पा रही है। इसके अतिरिक्त भिंडी, लौकी, करेला सहित अन्य फसलों में भी मौसम का असर देखने को मिला है। जिसकी वजह से किसान भाई निश्चित समय से पूर्व ही फसलों की कटाई कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो फसलों के दामों में काफी ज्यादा कमी आई है। टमाटर की कीमतें 10 रुपये से लेकर 20 रुपये के मध्य हैं। वहीँ, फूलगोभी की कीमत भी लगभग 50 रुपये से गिरकर 15 रुपये से 20 रुपये के आसपास पहुंच गईं हैं।

ICAR ने बताए सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय

ICAR ने बताए सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय

मानसून की लेटलतीफी के कारण भारत के राज्यों में सोयाबीन की खेती की तैयारी में भी इस साल देरी हुई। अवर्षा और अतिवर्षा की मार के बाद किसी तरह खेत में बोई गई सोयाबीन की फसल पर अब कीट पतिंगों का खतरा मंडरा रहा है।

इस खतरे के समाधान के लिए भारत के कृषि विज्ञानियों ने अनुभव एवं शोध के आधार पर उपयोगी तरीके सुझाए हैं।

सोयाबीन कृषकों के लिए ICAR की उपयोगी सलाह

भाकृ.अनु.प. के भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान सस्थान (ICAR-Indian Institute of Soybean Research) इन्दौर, ने सोयाबीन फसल की रक्षा के लिए उपयोगी एडवायजरी (Advisory) जारी की है। 

आपको बता दें, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Indian Council of Agricultural Research/ICAR) यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) कृषि कल्याण हित में काम करने वाली संस्था है। 

भाकृअनुप (ICAR) भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्था के तौर पर कृषि जगत के कल्याण संबंधी सेवाएं प्रदान करती है।

सोयाबीन पर मौजूदा खतरा

सोयाबीन की खेती आधारित भारत के प्रमुख राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान पर विविध रोगों का प्रभाव देखा जा रहा है। 

इन राज्यों के कई जिलों में सोयाबीन की फसल पर तना मक्खी, चक्र भृंग एवं पत्ती खाने वाली इल्ली तथा रायजोक्टोजनिया एरिअल ब्लाइट, पीला मोजेक वायरस रोग के संक्रमण की स्थिति देखी जा रही है। 

भाकृअनुप (ICAR) की इस संबंध में कृषकों को सलाह है कि, वे अपनी फसल की सतत निगरानी करें एवं किसी भी कीट या रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही, नियंत्रण के उपाय अपनाएं।

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तम्बाखू की इल्ली

सोयाबीन की फसल में तम्बाखू की इल्ली एवं चने की इल्ली के प्रबंधन के लिए बाजार में उपलब्ध कीट-विशेष फिरोमोन ट्रैप्स का उपयोग करने की आईसीएआर (ICAR) ने सलाह दी है। 

इन फेरोमोन ट्रैप में 5-10 पतंगे दिखने का संकेत यह दर्शाता है कि इन कीड़ों का प्रादुर्भाव आप की फसल पर हो गया है। इसका संकेत यह भी है कि, यह प्रादुर्भाव अभी प्रारंभिक अवस्था में है। 

अतः शीघ्र अतिशीघ्र इनके नियंत्रण के लिए उपाय अपनाने चाहिए। खेत के विभिन्न स्थानों पर निगरानी करते हुए यदि आपको कोई ऐसा पौधा मिले जिस पर झुंड में अंडे या इल्लियां हों, तो ऐसे पौधों को खेत से उखाड़कर अलग कर दें।

तना मक्खी

तना मक्खी के नियंत्रण के लिए पूर्व मिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम (Thiamethoxam) 12.60%+लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन (Lambda-cyhalothrin) 09.50% जेडसी (ZC) (125 ml/ha) का छिड़काव करने की सलाह भाकृअनुप (ICAR) के वैज्ञानिकों ने दी है। 

चक्र भृंग-(गर्डल बीटल) के नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250- 300 मिली/हे) या थायक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. (750मिली/हे) या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी.(1 ली/हे.) या इमामेक्टीन बेन्जोएट (425 मिली/हे.) का छिड़काव करने की कृषकों को सलाह दी गई है। 

इसके अलावा रोग के फैलाव की रोकथाम हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही पौधे के ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट करने की भी सलाह दी गई है।

इल्लियों का नियंत्रण

चक्र भृंग तथा पत्ती खाने वाली इल्लियों के एक साथ नियंत्रण हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 09.30 % + लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन 04.60 % ZC (200 मिली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 जमली/है) या पूर्वमिश्रित थायमिथोक्सम़ + लैम्बडा साह्यलोथ्रिन (125 मिली/है) का जिड़काव करने की सलाह दी गई है। 

इनके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियत्रंण किया जा सकता है। पत्ती खाने वाली इल्लियां (सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली एवं चने की इल्ली) होने पर इनके नियंत्रण के लिए किनालफॉस 25 ई.सी. (1 ली/हे), या ब्रोफ्लानिलिड़े 300 एस.सी. (42-62 ग्राम/है) आदि में से किसी एक का प्रयोग करने की सलाह कृषकों को दी गई है।

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पौधों को उखाड़ दें

पीला मोजेक रोग के नियंत्रण हेतु सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर अलग कर दें। इन रोगों को फैलाने वाले वाहक सफेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम + लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन (125 मिली/है) रसायन का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। 

इसके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियंत्रण किया जा सकता है। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु कृषकगण, अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाकर सोयाबीन की फसल की रक्षा कर सकते हैं। 

कुछ क्षेेत्रों में रायजोक्टोनिया एरिअल ब्लाइट का प्रकोप होने की सूचना प्राप्त होने की आईसीएआर (ICAR) ने जानकारी दी है। 

इसके उपचार के लिए वैज्ञानिकों ने हेक्साकोनाझोल %5ईसी (1 मिली/ली पानी) का छिड़काव करने का सुझाव दिया गया है।

जैविक सोयाबीन उत्पादन

जैविक सोयाबीन उत्पादन में रुची रखने वाले कृषक, पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर, तम्बाखू की इल्ली) की छोटी अवस्था में रोकथाम हतु बेसिलस थुरिन्जिएन्सिस आदि का निर्धारित मात्रा में प्रयोग कर सकते हैं। प्रकाश प्रपंच का उपयोग करने की भी सलाह दी गई है।

कीट एवं रोग प्रबंधन के अन्य उपाय

सोयाबीन पर लगने वाले कीट एवं रोग के प्रबंधन के रासायनिक छिड़काव के अलावा अन्य प्रकृति आधारित उपाय भी हैं।

बर्ड पर्चेस

सोयाबीन की फसल में पक्षियों के बैठने के लिए ”T“ आकार के बर्ड पर्चेस लगाने की भी वैज्ञानिकों ने कृषि मित्रों को सलाह दी है। इससे कीट-भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में प्राकृतिक तरीके से सहायता मिलती है।

सावधानियां

  • कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए केवल उन्ही रसायनों का प्रयोग करें जो सोयाबीन की फसल में अनुशंसित हों।
  • कीटनाशक या फफूंद नाशक के छिड़काव के लिए सदैव पानी की अनुशंसित मात्रा का ही उपयोग करें।
  • किसी भी प्रकार का कृषि-आदान क्रय करते समय दुकानदार से हमेशा पक्का बिल लें जिस पर बैच नंबर एवं एक्सपायरी दिनांक आदि का स्पष्ट उल्लेख हो।

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सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण प्रबंधन पर आधारित यह लेख भारतीय कृषक अनुसंधान परिषद, भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इन्दौर द्वारा जारी कृषि आधारित सलाह पर आधारित है। 

लेख में वर्णित रसायन एवं उनकी मात्रा का उपयोग करने के पहले कृषि सलाहकारों, केवीके के वैज्ञानिकों, दवा विक्रेता से उचित परामर्श अवश्य प्राप्त करें। 

इस बारे में आईसीएआर (ICAR) की विस्तृत जानकारी के लिए लिंकhttps://www.icar.org.in/weather-based-crop-advisory पर क्लिक करें। 

यहां वेदर बेस्ड क्रॉप एडवाइज़री (Weather based Crop Advisory) विकल्प में आपको सोयाबीन की सलाह संबंधी पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने मिल जाएगी।

कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलें

कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलें

भारत एक प्रमुख कृषि राष्ट्र है, जहां कृषि एक मुख्य आधारिक व्यवसाय है और लाखों लोगों के जीवन का आधार है। भारत में, फसलें विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के अनुसार उगाई जाती हैं, जो तापमान, वर्षा, मृदा प्रकार, और भू-परिस्थितियों जैसे कारकों द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। 

आज के इस लेख में हम यहां भारत में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार का एक सामान्य अवलोकन आपके सामने करेंगे।

भारत में कृषि के बारे में जानकारी

1. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र   

चावल, गन्ना, केले, आम, पपीता, नारियल, और मसाले जैसे काली मिर्च और इलायची भारत के उष्ण और आर्द्र तटीय क्षेत्रों में उगाए जाते हैं, जैसे पश्चिमी घाट के तटीय क्षेत्र, पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्से, और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।

2. उपतापीय क्षेत्र       

गेहूं, मक्का, जौ, सीताफल (संतरा और किनू), सेब, खुबानी, और उष्णकटिबंधीय सब्जियाँ उत्तरी भारत के उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्से में उगाई जाती है।

3. शीतल क्षेत्र

भारत में जहाँ ठण्ड अधिक होती है वहां, सेब, चेरी, नाशपाती, बेर, और केसर जैसी उच्च ऊचाई वाली शीतल क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के हिस्सों में उगाई जाती हैं।

4. सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्र

बाजरा, ज्वार, चने, तिलहन, सरसों, कपास, और अंगूर आदि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के कुछ हिस्से, और भारत के दक्षिणी हिस्सों में सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।

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5. पर्वतीय और उच्चभूमि क्षेत्र

आलू, सेब, चेरी, मक्का, और चने जैसी फसलें हिमालय के पर्वतीय और उच्चभूमि क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और सिक्किम के कुछ हिस्से।

6. तटीय क्षेत्र

चावल, नारियल, काजू, मसाले(जैसे काली मिर्च और लौंग), और समुद्री खाद्य पदार्थ भारत के तटीय क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, और पश्चिम बंगाल।

7. मध्य पठार और मैदानी क्षेत्र

गेहूं, सोयाबीन, चने, तिलहन, कपास, और ज्वार जैसी फसलें मध्य पठार और मैदानी क्षेत्रों में उगाई जाती हैं,  जैसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, और तेलंगाना के कुछ हिस्से।

8. पूर्वोत्तर हिल्ली और वन्य क्षेत्र

चावल, मक्का, बाजरा, चने, चाय, कॉफी, मसाले, फल, और सब्जियां पूर्वोत्तर राज्यों में उच्चऊन्नत हिल्ली और वन्य क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे असम, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, और अरुणाचल प्रदेश आदि राज्य शामिल है।

IMD ने इस मानसून में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना जताई है

IMD ने इस मानसून में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना जताई है

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस वर्ष के मानसून सीजन का आँकलन जारी किया है। मौसम विभाग के अनुसार, इस वर्ष मानसून सीजन में सामान्य से ज्यादा वर्षा होगी।

भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मानसून सीजन 2024 को लेकर अपना अनुमान जारी किया है। आईएमडी ने भविष्यवाणी की है, कि इस बार मानसून सीजन में सामान्य से ज्यादा बरसात होगी। 

IMD ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बात की जानकारी साझा की है। आईएमडी का कहना है, कि मॉनसून की बारिश सामान्य से ज्यादा रहने का अनुमान है। यह अनुमान 104% प्रतिशत तक जताया गया है।

अल-नीनो की स्थिति कैसे रहेगी और इसका प्रभाव कैसे कम होगा ?

आईएमडी का कहना है, कि इस वर्ष अल-नीनो की स्थिति मध्यम रहेगी। अल-नीनो धीरे-धीरे कमजोर होगा और मॉनसून की शुरुआत तक न्यूट्रल हो जाएगा। 

मौसम विभाग के अनुसार, मॉनसून की शुरुआत से ला-नीना सक्रिय हो जाएगा, जो कि अल-नीनो के विपरीत प्रभाव दिखाता है।

मौसम विभाग के कहने के अनुसार अल-नीनो के प्रभाव को रोकने में इंडियन डायपोल ओशन (आईओडी) पूरी तरह सक्रिय रहेगा। 

सरल शब्दों में कहें तो, पश्चिमी हिंदी महासागर का पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में बारी-बारी से गर्म व ठंडा होना ही हिंद महासागर द्विध्रुव यानी (आईओडी) कहलाता है। इससे अच्छी खासी मात्रा में वर्षा देखने को मिलेगी। 

भारत के कुछ पूर्वी एवं अन्य इलाकों को छोड़कर, इस बार बारिश सामान्य से ज्यादा होने की संभावना है। जानकारी के लिए बतादें, कि शानदार बरसात के लिए आईओडी का पॉजिटिव होना आवश्यक माना जा रहा है। 

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मौसम विभाग ने अग्रिम तौर पर कहा है, कि दक्षिण-पश्चिम के प्रदूषकों के बढ़ने पर आईओडी सक्रिय होगा और इससे बारिश बढ़ेगी।

आईएमडी के अनुसार कितनी बरसात होनी है ?

आईएमडी के अनुसार, इस वर्ष 104 प्रतिशत तक बारिश होने का अनुमान है, जो कि सामान्य से ज्यादा है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अगर मानसून में बारिश 90% प्रतिशत से कम हो तो इसे कम बारिश ही माना जाता है। 

इसी प्रकार 90 से 96% प्रतिशत बारिश सामान्य से कम, 96 से 104 प्रतिशत बारिश को सामान्य, 104 से 110 प्रतिशत बारिश को सामान्य से ज्यादा और 110 से अधिक मॉनसूनी बारिश में दर्ज किया जाता है। 

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मौसम विभाग का कहना है, कि केवल उत्तर-पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो सब जगह सामान्य से अधिक वर्षा होगी।

सितंबर के महीने में सबसे ज्यादा वर्षा होने की भविष्यवाणी   

मौसम विभाग के अनुसार, मॉनसून के मौसम जून से सितंबर के मध्य 106% प्रतिशत वर्षा हो सकती है। यह सामान्य से काफी अधिक है। महीने के अनुरूप इस साल मॉनसून के पहले माह जून में लगभग 95% प्रतिशत वर्षा दर्ज होगी। 

वहीं, जुलाई के महीने में 105% प्रतिशत बारिश होगी। इसके बाद अगस्त में थोड़ी कम 98% प्रतिशत वर्षा होगी। इसके उपरांत सबसे ज्यादा वर्षा की उम्मीद सितंबर माह में 110% प्रतिशत तक है। 

केंद्र द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम से लाखों किसानों को होगा लाभ

केंद्र द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम से लाखों किसानों को होगा लाभ

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम (सीडीपी) को व्यवस्थित किया है, जिसको बेहतर रूप से चलाने हेतु केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा बुधवार को बैठक की गयी। इस दौरान नरेंद्र तोमर ने संबंधित अधिकारियों से कहा है, कि भारत में कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के साथ ही किसानों द्वारा किये गए उत्पादन के उचित भाव प्रदान करना सरकार का मुख्य उद्देश्य है। इसलिए कोई भी योजना किसानों के लाभ के लिए ही बनती है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार, भारतीय बागवानी के विकास पर कलस्टर विकास कार्यक्रम के कार्यान्वयन की सहायता से किसानों को हर संभव लाभ हो इसपे जोर दिया जायेगा। निश्चित रूप से किसानों को इस कार्यन्वयन से फायदा होगा। तोमर ने कहा कि पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, झारखंड, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और असम समेत विभिन्न राज्यों को भी उनकी प्रमुख फसल संबंधित चिन्हित किए गए ५५ कलस्टरों की तालिका में साम्मिलित किया जाना होगा। तोमर ने बताया कि पहचान किए गए संगठनों के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से संबंधित संस्थानों के पास उपलब्ध जमीन का प्रयोग इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन हेतु होना चाहिए। तोमर ने इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को फसल विविधीकरण एवं उत्पादन विक्रय हेतु बाजार से जोड़ने और क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दिया है।

किसानों को होंगे बेहद लाभ

बतादें कि, राज्य मंत्री चौधरी ने कहा कि कार्यक्रम के दौरान लघु एवं सीमांत किसानों को फायदा प्रदान करने हेतु खेतों में संचलित की जाने वाली गतिविधियों की जानकारी लेने व निगरानी उद्देश्य हेतु बुनियादी ढांचे की जियो टैगिंग इत्यादि की आवश्यकता है। बैठक में कहा गया है, कि क्लस्टर विकास कार्यक्रम में बागवानी उत्पादों की बेहतरीन व समयानुसार निकासी और परिवहन हेतु बहुविधि परिवहन के उपयोग के साथ अंतिम-मील संपर्कता का निर्माण करके संपूर्ण बागवानी पारिस्थितिकी तंत्र के परिवर्तन हेतु काफी सामर्थ्य है।


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सीडीपी अर्थव्यवस्था के लिए तो सहयोगी है, ही साथ में क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड भी निर्मित करेगा। जिससे उनको राष्ट्रीय व वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में साम्मिलित किया जा सके, इसकी सहायता से किसानों को अधिक पारिश्रमिक उपलब्ध हो पाएंगे। सीडीपी से तकरीबन १० लाख किसानों व मूल्य श्रृंखला से जुड़े हितधारकों को फायदा होगा। सीडीपी का लक्ष्य चयनित फसलों के निर्यातों में करीब २०% का सुधार हो और क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्धात्मकता की वृद्धि हेतु क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड बनाना है। सीडीपी के माध्यम से बागवानी क्षेत्र में निश्चित तौर पर बेहद निवेश किया जा सकेगा।
जानें कैसा रहेगा इस जनपद का मौसम और कुछ महत्वपूर्ण सलाहें

जानें कैसा रहेगा इस जनपद का मौसम और कुछ महत्वपूर्ण सलाहें

कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसार मध्य प्रदेश राज्य के जनपद ग्वालियर में संभावित मौसम पूर्वानुमान में आगामी पांच दिनों में साफ से घने बादल रहने वर्षा नहीं होने का अनुमान है l अधिकतम तापमान 25.7 से 26.6 व् न्यूनतम तापमान 8.1 से 8.5 डि.से. रहने तथा अधिकतम आर्द्रता 67 से 76 व न्यूनतम आर्द्रता 28 से 31 प्रतिशत रहने और हवा लगभग 3.7 से 9.4 किमी /घंटा की औषतगति से मुख्यतः पश्चिम उत्तर व पूर्व-उत्तर दिशा से बहने का अनुमान है I संभावित मौसम पूर्वानुमान को देखते हुए सब्जियों व नव रोपित फल व्रछों में निराई गुड़ाई करें व आवश्कतानुसार सिंचाई करें I

फसल संबंधित सलाह

गेंहू की बुवाई हेतु संभावित मौसम अनुकूल है, अत: गेंहू की उन्नत किस्में जैसे- पूसा तेजस, पूसा उजाला.,ऍम.पी.3382, ऍम.पी. 1203 व आरवीडब्ल्यू 4106 आदि का चयन एवं बीजोपचार कर बुबाई करें व संतुलित मात्रा में उर्वरक डालें I

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जौ

जौ की बुवाई हेतु उचित तापमान है, अत: उन्नतशील प्रजातियों जैसे- डी.डब्ल्यू.आर.वी.-52,डी.डब्ल्यू.आर.वी.-92, डी.डब्ल्यू.आर.वी.-73, डी.डब्ल्यू.आर.वी.-64, नरेन्द्र जौ-1, नरेन्द्र जौ-2 व नरेन्द्र जौ-3 आदि का चयन कर बीजोपचार कर बुवाई करें I

सरसों

1. देरी से बोई गई सरसों की फसल में इस समय रस चूसक चितकबरे कीट की संभावना हो सकती है। अत: इसके नियंत्रण हेतु क्लोरोपायरीफास या डायमिथोएट 800 मिली दवा 400 से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करेंI 2. सरसों की फसल जो की 35 से 40 दिन की अवस्था में उसमें प्रथम सिंचाई करें व उसके बाद नत्रजन की मात्रा को दें I

आलू

इस समय आलू की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें व आलू की फसल में पत्तियों पर सतत निगरानी रखें I यदि पत्तियों पर गोल आकार के भूरे धब्बे दिखाई दें तो वह अगेती झुलसा रोग हो सकता है I अत: झुलसा रोग दिखाई देने पर इसके नियंत्रण हेतु मेन्कोजेब 1.5 किग्रा. दवा 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें I

बागवानी संबंधित आवश्यक जानकारी व सलाह

अमरुद

संभावित मौसम में नवरोपित आम, अमरुद, नीबू आदि पोधों के थालों की निराई गुड़ाई कर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें I

प्याज

प्याज की रोपाई हेतु इस समय बीज सैया की तैयारी कर नर्सरी में प्याज की पोध डालें I

मिर्च और टमाटर

मिर्च और टमाटर में इस समय लीफकर्ल (चुर्रामुर्रा रोग) की संभावना हो सकती है। अतः दिखाई देने पर इसके नियंत्रण हेतु थायोमिथाक्जाम 25 डी.जी. 100 ग्राम दवा 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें l

बैंगन

बैगन में तना छेदक व फल छेदक कीट की संभावना हो सकती है। दिखाई देने पर इसके नियंत्रण हेतु ग्रसित फलों को तोड़ कर नष्ट करें व स्पाइनोसैड 48 ईसी कीटनाशक दवा 1 मिली / 4 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें I

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पशु संबंधित सलाह

संभावित मौसम पूर्वानुमान में तापमान की गिरावट को देखते हुए पशुओं को दिन के समय धूप में रखें व रात्रि में ठण्ड से बचावें। साथ ही, दुधारू पशुओं को संतुलित आहार दें I इस समय अधिकतर पशुओं के ब्याने का समय है, अत: पशुओं के ब्याने के बाद एक घंटे के भीतर पैदा होने वाले शिशु को पर्याप्त मात्रा में (नवजात शिशु के शरीर भर का 1/10 भाग) खीस पिलावें I
सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त मौसम पूर्वानुमान के अनुसार, आने वाले दिनों में हल्के से मध्यम बादल छाए रहने के कारण हल्की बारिश की संभावना है। अधिकतम और न्यूनतम तापमान 22.8-25.1 और 8.0-11.8 डिग्री सेल्सियस के बीच है। सापेक्ष आर्द्रता अधिकतम और न्यूनतम सीमा 70-95 और 40-70% के बीच है। हवाओं की दिशा पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और हवाओं की गति 6.3-11.9 किमी प्रति घंटा रहने की संभावना है। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू, सरसों, सों चना, मटर आदि फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों के लिए अलग-अलग अथवा उपकरणों को साफ पानी से धोकर ही प्रयोग करें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों का छिड़काव हवा के विपरीत दिशा में खड़े होकर छिड़काव या बुरकाव न करें। छिड़काव यथा सम्भव हो तो सायंकाल के समय करें, छिड़काव के बाद खाने-पिने से पूर्व हाथों को साबुन या हैंडवाश से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए तथा कपड़ो को धोकर नहा लेना चाहिए।

फसल व बागवानी से जुड़ी जानकारी

  1. गेंहू

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू की फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। बिलम्ब से बोई गई गेहूं की फसल में यदि सकरी व चौड़ी पत्ती वाले, दोनों प्रकार के खरपतवार दिखाई दें। तो इसके नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फुरान 75% डब्लू पी ३३ ग्राम/हेक्टेयर या मैट्री ब्यूजिन 70 %डब्लू पी 250 ग्राम / हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
ये भी देखें: गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण
  1. सरसों

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे सरसों की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दे। आसमान में लगातार बादल छाए रहने के कारण सरसों की फसल में माँहू, चित्रित वग एवं पत्ती सुरंगक कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। अतः इसके रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफास 20 % ईसी 1.0 लीटर/हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36 % एस.एल. की 500 मिली० /हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. चना

समय से बोई गई चने की फसल में खुटाई का कार्य रोक दें। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे चने की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कटुआ (कटवर्म) कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। इसके रोकथाम हेतु क्लोरपाइरीफोस 50% ईसी + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी 2.0 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. आलू

वातावरण में नमी बढ़ने/बादल छाये रहने और तापक्रम गिरने से आलू की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप तेजी से फैलता है। अतः इसके रोकथाम हेतु मैंको मैं जेब या रिडोमिल २.५ ग्राम/लीटर पानी अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड ३.० ग्राम/लीटर पानी का में घोल बनाकर १२-१५ दिन के अन्तराल पर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें। आलू की फसल में सिचाई का कार्य स्थगित कर दें ।

पशु संबंधित सलाह

वर्तमान मौसम को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे पशुओं को ठंड से बचाने के लिए सुबह-शाम पशुओं के ऊपर झूल डालें। जानवरों को रात के दौरान खुले में न बांधें और रात में खिड़कियों और दरवाजों पर जूट के बोरे के पर्दे लगाएं और दिन के दौरान धूप में पर्दे हटा दें। पशुओं को हरे और सूखे चारे के साथ पर्याप्त मात्रा में अनाज दें। पशुओ को साफ एवं ताजा पानी दिन में ३-४ बार अवश्य पिलायें। पशुओं को साफ-सुथरे स्थान पर रखें।
होली के समय ऐसा रहने वाला है मौसम

होली के समय ऐसा रहने वाला है मौसम

भारत में आजकल निरंतर मौसमिक परिवर्तन की स्थिति देखी जा रही है। जहां गुजरे दिनों फरवरी के माह में ही गर्मी ने अपना कहर मचाना आरंभ कर दिया था। साथ ही, मार्च के पूर्व सप्ताह में मौसम की स्थिति थोड़ी नाजुक है। देशभर में मौसम ने एक बार पुनः अपना रंग परिवर्तित किया है। मार्च माह की शुरुआत ही दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर प्रदेश में धीमी बारिश एवं बूंदाबांदी  हुई, जिसके उपरांत मौसम काफी अच्छा हो गया है। जहां फरवरी माह से ही गर्मी ने खुद का भयंकर रूप प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया था। तब वही फिलहाल मार्च माह में मौसम अच्छा बना हुआ है। मार्च के प्रारंभिक दिनों में सुबह एवं शाम के समय मौसम में हल्की सर्दी बनी हुई है। जिसकी वजह से बढ़ता तापमान दिक्कत नहीं कर रहा है। हालांकि, दिन गुजरने के साथ ही कड़ी धूप में बाहर जाना लोगों के लिए चुनौती सा हो रहा है।

होली पर मौसम कैसा रहने वाला है

इस माह होली का पर्व है। होली में फिलहाल एक सप्ताह से भी कम वक्त शेष है। ऐसी परिस्थिति में इसी कड़ी में सवाल है, कि आखिरकार होली के वक्त मौसम कैसा रहेगा। क्या होली के दिन बरसात होगी अथवा फिर गर्मी से लोग तपेंगे ? मौसम विभाग के अनुसार इस मार्च माह के चालू होते ही भारत के विभिन्न राज्यों में
गर्मी का अलर्ट जारी कर दिया है। होली तक प्रचंड गर्मी से लोगों को राहत मिलती रहेगी। परंतु, होली के तुरंत उपरांत मौसम में गर्मी बढ़ जायेगी। साथ ही, न्यूनतम एवं अधिकतम तापमान में इजाफा देखने को मिलेगा। मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक, ताजा पश्चिमी विक्षोभ 4 मार्च तक पश्चिमी हिमालय तक पहुंचने की संभावना है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में धीमी बरसात पाई जाएगी।

इन राज्यों में बारिश व बर्फबारी की आशंका है

वेदर एजेंसी स्काईमेट वेदर के हिसाब से आने वाले 24 घंटों के दौरान हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड एवं जम्मू कश्मीर के बहुत से इलाकों में हल्की से मध्यम बरसात की आशंका है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में बर्फबारी के साथ-साथ एक या दो जगहों पर प्रचंड वर्षा देखने को मिल सकती है। ये भी पढ़ें: सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

आज मौसम कैसा रहने वाला है

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आज दिन के वक्त गगन में आंशिक तौर से बादल छाए रहने एवं बेहद हल्की वर्षा अथवा बूंदाबांदी होने की आशंका जताई गई है। आज उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं पंजाब के उत्तरी इलाकों में एक-दो जगहों पर गरज सहित बौछारें पड़ने का अनुमान व्यक्त किया गया हैं। इसके साथ ही आगामी 48 घंटों के चलते उत्तर पश्चिमी भारत में न्यूनतम तापमान के अंदर 2 से 3 डिग्री की गिरावट देखी जा सकती है।
मध्य प्रदेश में बरसात और ओलावृष्टि का कहर, 3800 गांवों में 1.5 लाख हेक्टेयर फसल हुई नष्ट

मध्य प्रदेश में बरसात और ओलावृष्टि का कहर, 3800 गांवों में 1.5 लाख हेक्टेयर फसल हुई नष्ट

मध्य प्रदेश में पिछले एक सप्ताह से तेज बारिश-आंधी और ओलावृष्टि का कहर जारी है। जिसके कारण अब तक लाखों हेक्टेयर फसल नष्ट हो चुकी है। प्रदेश के लगभग हर जिले में ओलावृष्टि हुई है। कई जगहों पर किसानों की फसलें पूरी तरह से चौपट हो गई हैं। किसानों का कहना है कि बिना मौसम वाली बरसात के कारण अभी तक  गेहूं, चना और सरसों की फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। इसके साथ ही संतरा, लहसुन, धनिया, मसूर, इसबगोल, अलसी की फसलें भी बुरी तरह से बर्बाद हो गई है। प्रदेश में फसलों की बर्बादी को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने सर्वे करने के आदेश दिए हैं। यह सर्वे दो फेज में करवाया जा रहा है। पहले फेज के सर्वे में जानकारी निकलकर सामने आई है कि 6 से 9 मार्च के बीच जो बरसात और ओलावृष्टि हुई थी उसमें प्रदेश के 16 जिले बुरी तरह से प्रभावित हुए थे। इन जिलों के 3280 गांव में 1.09 लाख किसानों की 1.25 लाख हेक्टेयर की फसल नष्ट हो चुकी है। दूसरे फेज का सर्वे 16 से लेकर 19 मार्च तक किया जा रहा है। सर्वे में अब तक कहा गया है कि इस दौरान 27 जिलों के किसान प्रभावित हुए हैं। जिसमें अभी तक 33884 किसानों की 38985 हेक्टयर फसल के खराब होने की जानकारी सामने आई है। यह आंकड़ा भविष्य में बढ़ सकता है क्योंकि दूसरे फेज का सर्वे अब भी जारी है। सर्वे में बताया गया है कि जिन जिलों में खराब मौसम की वजह से नुकसान हुआ है वहां पर 50 से 85% तक फसलें तबाह हो चुकी हैं। अब तक प्रदेश में कुल 1.5 लाख हेक्टेयर की फसल तबाह हो चुकी है। जिसमें अब तक प्रदेश के 3500 से ज्यादा गांव सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। अभी तक खराब मौसम का सबसे ज्यादा प्रभाव विदिशा जिले में देखने को मिला है। विदिशा में सर्वाधिक 49883 हेक्टेयर फसल तबाह हो चुकी है। इसके साथ ही सबसे ज्यादा विदिशा जिले के किसान प्रभावित हुए हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदेश जारी करके 25 मार्च तक सभी प्रकार के सर्वे को पूरा करने के लिए कहा है।

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ओलावृष्टि और बारिश से किसानों की फसल हुई बर्बाद
फसलों की तबाही को देखेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि सर्वे में किसी भी प्रकार की लापरवाही न हो। उन्होंने इसके लिए अधिकारियों के साथ मीटिंग की है।  उन्होंने कहा कि सर्वे में ईमानदारी होना जरूरी है, सर्वे में होने वाली किसी भी प्रकार की गलती को स्वीकार नहीं किया जाएगा। साथ ही उन्होंने आदेश दिया है कि रेवेन्यू, कृषि और पंचायत विकास के अमले को सर्वे में शामिल किया जाए। सर्वे के बाद प्रभावितों की लिस्ट को पंचायत भवन में चस्पा कर दी जाए ताकि सभी लोग अपना नाम लिस्ट में देख सकें। उन्होंने कहा कि यदि किसान सर्वे से असंतुष्ट नजर आते हैं तो उसका जल्द से जल्द निराकरण किया जाए। इसके साथ ही पशु हानि की भरपाई करने के लिए भी मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं।

फसल बर्बाद होने के सदमे में किसान की हुई मौत

प्रदेश के रायसेन जिले के पहरिया गांव में एक किसान की सदमें में मौत हो गई। बताया जा रहा है कि किसान ने अपनी 8 एकड़ जमीन पर चने की फसल लगाई थी। बिना मौसम तेज बरसात और ओले गिरने के कारण किसान टेंशन में आ गया था। जिससे सोते समय उसकी मौत हो गई। रायसेन जिले में 40 प्रतिशत से ज्यादा फसलें तबाह हो गई हैं। पिछले 24 घंटों में मंडला जिले में सबसे ज्यादा 1.57 नीच बरसात दर्ज की गई है। जिससे जिले की फसलें बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।
बदलते मौसम में फसलें तबाह होने पर यहां संपर्क करें किसान

बदलते मौसम में फसलें तबाह होने पर यहां संपर्क करें किसान

कृषि कार्यों में हमेशा मौसम की अनिश्चितताएं हावी रहती हैं। कभी बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से फसलें तबाह हो जाती है तो कभी तेज गर्मी के कारण फसलें बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। फसलों के तबाह होने पर किसानों के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है जिससे किसान टेंशन में आ आ जाते हैं। इस साल भी खेती किसानी में मौसम की अनिश्चितताएं हावी रही हैं जिसके कारण किसान भाई परेशान हैं। पहले फरवरी में तापमान बढ़ने के कारण गेहूं की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। विशेषज्ञों द्वारा एक बार फिर से गेहूं के उत्पादन में कमी की आशंका जाहिर की जा रही थी। इसके बाद रही सही कसर बिना मौसम वाली बरसात और ओलावृष्टि ने पूरी कर दी है। कई राज्यों में बिना मौसम बरसात और ओलावृष्टि के कारण फसलों में जबरदस्त नुकसान हुआ है। जिसके कारण कई किसानों ने फसलों की कटाई को रोक दिया है साथ ही किसानो द्वारा खेतों में बिछ चुकी फसलों को सुखाने का प्रयत्न किया जा रहा है।

गेहूं की फसल को हुआ है भारी नुकसान

बदले हुए मौसम के कारण कई राज्यों में सरसों और चने के साथ गेहूं की फसलों को जबरदस्त नुकसान हुआ है। तेज हवा चलने के कारण गेहूं की फसलें झुक गई हैं यानि पूरी तरह से खेतों में बिछ गई हैं। कृषि विशेषज्ञों ने अब कुछ दिनों के लिए गेहूं की फसल को आराम देने की सलाह दी है।

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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कहा है कि आगामी  कुछ दिनों तक पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में तेज हवाएं, बारिश, बिजली और ओलावृष्टि का प्रकोप जारी रह सकता है। इसको देखते हुए इन राज्यों की गेहूं के फसलें बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं। जिससे एक बार फिर से देश में गेहूं के उत्पादन में कमी आ सकती है। साथ ही देश में गेहूं का भंडारण प्रभावित होगा। इसके साथ ही बाजार में गेहूं की उपलब्धता कम होने के कारण गेहूं का निर्यात भी प्रभावित हो सकता है।

फसल को होने वाले नुकसान की यहां करें शिकायत

यदि किसानों की फसलें बारिश, तेज हवा, ओलावृष्टि, बिजली या अन्य प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होती हैं तो फसल को होने वाले नुकसान की शिकायत किसान बीमा कंपनी को फोन करके दर्ज करवा सकते हैं। इसके साथ ही किसान अपने मोबाइल में बीमा कंपनी का एप डाउनलोड करके वहां पर फसल को हुए नुकसान की शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इसके अलावा किसान भाई जिले के कृषि विभाग के कार्यालय में शिकायत दर्ज करवा सकते हैं या 14 दिन के भीतर बीमा कंपनी के दफ्तर में भी जाकर शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। जिससे किसानों हो हुए नुकसान की राशि मिल जाएगी और किसान बड़े घाटे से बच जाएंगे।
सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि से किसानों को जमकर नुकसान पहुँचा रही है। हिमाचल प्रदेश में विगत 6-7 दिनोें से हो रही बारिश और ओलावृष्टि की वजह से सेब की फसलों को काफी ज्यादा हानि पहुंची है। खरीफ की भांति रबी का सीजन भी किसान भाइयों के लिए बेहतर नहीं रहा है। मार्च में हुई बारिश, ओलावृष्टि के चलते गेहूं और सरसों की फसल चौपट हो गई थी। इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी बारिश-ओलावृष्टि से फसलें क्षतिग्रस्त हुई हैं। वर्तमान में ऐसे ही खराब मौसम की वजह से सेब के बर्बाद होने की बात सामने आ रही हैं। सेब को महंगी एवं पहाड़ी राज्यों की विशेष फसल मानी जाती है। ऐसी स्थिति में इस फसल के क्षतिग्रस्त होने के चलते किसानों की चिंता बढ़ गई हैं। किसान भाई काफी परेशान हैं, कि उसके नुकसान की भरपाई किस प्रकार की जाए। यह भी पढ़ें : कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

इस राज्य में ओलावृष्टि से हुआ नुकसान

मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को हानि हो रही है। कुल्लू की लग घाटी, खराहल घाटी और जनपद के ऊपरी क्षेत्रों में फसलों को बेहद हानि हुई है। बहुत से स्थानों पर काफी बड़ी संख्या में कच्चे सेब ही पेड़ से नीचे गिर चुके हैं। यहां तक कि उनकी टहनियां तक भी टूट गई हैं।

फसल में 80% प्रतिशत तक हानि की आशंका

लगातार बारिश, अंधड़ एवं ओलावृष्टि का प्रभाव सीधे सीधे फसलों व फलों पर देखने को मिल रहा है। जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के माध्यम से नुकसान हुई फसल का सर्वेक्षण करना चालू कर दिया गया है। इसी कड़ी में स्थानीय किसानों ने बताया है, कि बारिश 6 से 7 दिन से निरंतर हो रही है। ऐसी हालत में 50 से 80 प्रतिशत तक हानि होने की संभावना है।

राज्य में बढ़ती ठंड और बारिश से हजारों की संख्या में किसान बर्बाद

सेब की अब फ्लावरिंग हो रही है। इस घड़ी में हुई बारिश और बढ़ी ठंड की वजह से सेब के फूलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। फलदार पौधे, मटर,नाशपाती, प्लम सहित बाकी सब्जियों पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। खबरों के मुताबिक, घाटी में लगभग 30 हजार हेक्टेयर में बागवानी हो रही है। जिससे लगभग 75 हजार परिवार प्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़े हैं। अब ऐसी हालत में इन परिवारों को भारी नुकसान हुआ है।
मौसम विभाग: यूपी में आने वाले दिनों में होगी हल्की बारिश

मौसम विभाग: यूपी में आने वाले दिनों में होगी हल्की बारिश

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जून महीने का आरंभ हो चुका है। दिल्ली NCR समेत उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में मौसम में राहत बनी हुई है। उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जिलों में बारिश-बूंदाबांदी की वजह से लोगों को गर्मी से राहत मिली है। इसी कड़ी में अगले सप्ताह के मौसम को लेकर एक बड़ी जानकारी सामने आई है। रविवार से उत्तर प्रदेश के मौसम में पुनः परिवर्तन देखने को मिलेगा। उत्तर प्रदेश में आगामी 4-5 दिनों तक बादल होने के साथ पूर्वांचल एवं बुंदेलखंड के बहुत सारे भागों में बूंदाबांदी होने की संभावना है। यह भी पढ़ें : मौसम विभाग के अनुसार इस बार पर्याप्त मात्रा में होगी बारिश, धान की खेती का बढ़ा रकबा

मौसम विभाग ने क्या कहा है

मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ नरेश कुमार ने कहा है, कि, ‘ईरान पर पश्चिमी विक्षोभ की वजह आगामी 4-5 दिनों में पश्चिमी हिमालयी इलाकों में बारिश की संभावना है। गले दो दिनों में यूपी एवं दिल्ली एनसीआर में वर्षा होने की आशा है। इसके उपरांत तापमान बढ़ने की संभावना है।’ विगत कुछ दिनों में देखा गया है, कि उत्तर प्रदेश का मौसम परिवर्तित हो रहा है। कुछ जनपदों में वर्षा हो रही है, तो कुछ जनपदों में भीषण गर्मी पड़ रही है। परंतु, कल से ही जनता को गर्मी से राहत मिलने की आशा है।

फिर से गर्मी बढ़ने की संभावना हुई तेज

साथ ही, मौसस में हो रहे परिवर्तन के मध्य यह भी संभावना जताई गई है, कि 15 जून के पश्चात एक बार फिर गर्मी अपना प्रकोप दिखाएगी। 15 जून तक राज्य में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है। राज्य के विभिन्न जनपदों में 3 दिन तक गर्म हवाओं की चेतावनी जारी की गई है। इस दौरान तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक ही रहेगा।