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गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

हमारे देश में मिश्रित फसल उगाने की परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। पुराने समय में किसान भाई एक खेत में एक समय में एक से अधिक फसल उगाते थे। लेकिन इन फसलों का चयन बहुत सावधानीपूर्वक करना होता है क्योंकि यदि फसलों के चुनाव के बिना किसान भाइयों ने कोई ऐसी दो फसलें एक साथ खेत में उगाई जो होती तो एक समय में ही हैं लेकिन उनके लिए मौसम, सिंचाई, उर्वरक व खाद प्रबंधन आदि अलग-अलग होते हैं । इसके अलावा कभी कभी तो ऐसा होता है कि दो फसलों में एक फसल जल्दी तैयार होती है तो दूसरी देर से तैयार होती है। एक फसल के सर्दी का मौसम फायदेमंद होता है तो दूसरे के लिए नुकसानदायक होता है। एक निश्चित दूरी की पंक्ति व पौधों से पौधों की दूरी पर बोई जाती है तो दूसरी छिटकवां या बिना पंक्ति के ही बोई जाती हैं।

Mustard Farming

फसलों का चयन बहुत सावधानी से करें

वैसे कहा जाता है कि मिश्रित खेती के लिए ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिये कि दोनों फसलों के लिए उस क्षेत्र की भूमि,जलवायु व सिंचाई की आवश्यकता उपयुक्त हों यानी एक जैसी जरूरत होतीं हों। इसके बावजूद जानकार लोगों का मानना है कि अनाज व दलहनी फसलों को मिलाकर बोने से उत्पादन अच्छा होता है लेकिन अनाज व तिलहन की फसल की बुआई से बचना चाहिये।

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एक फसल को फायदा तो दूसरे को नुकसान

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मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से एक फसल को नुकसान होता है तो दूसरी फसल से कुछ अच्छी पैदावार हो जाती है। गेहूं व सरसों की मिलीजुली खेती से वर्षा की कमी से सरसों की फसल को नुकसान हो सकता है जबकि गेहूं की फसल को उतना नुकसान नही होगा वहीं सिंचाई की जल की कमी होने से सरसों की फसल अच्छी होगी जबकि गेहूं की फसल खराब हो सकती है।

क्यों सही नहीं होती एक साथ गेहूं व सरसों की खेती

गेहूं के साथ जौ, चना, मटर की फसल को अच्छा माना जाता है लेकिन गेहूं के साथ सरसों की फसल को अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इन दोनों फसलों की प्राकृतिक जरूरतें अलग-अलग होतीं हैं। इन दोनों फसलों की खेती के लिए भूमि, खाद, सिंचाई आदि की व्यवस्था भी अलग-अलग की जाती हैं। इनका खाद व उर्वरक प्रबंधन भी अलग अलग होता है। दोनों ही फसलों की बुआई व कटाई का समय भी अलग-अलग होता है। इन दोनों फसलों को एक साथ करने से किसान भाइयों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं उत्तर भारत की मुख्य फसल है और इसमें खरपतवार मुख्य समस्या बनते हैं। खरपतवारों में मुख्य रूप से बथुआ, खरतुआ, चटरी, मटरी, गेहूं का मामा या गुल्ली डंडा प्रमुख हैं। जिन्हें हम खरपतवार कहत हैं उनमें मुख्य रूप से गेहूं का मामा फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है और इसका नियंत्रण ज्यादा बजट वाला है। बाकी खरपतवार बेहद सस्ते रसायनों से और शीघ्र मर जाते हैं। 

समय

Gehu ki fasal 

 विशेषज्ञों की मानें तो खरपतवार नियंत्रण के लिए सही समय का चयन बेहद आवश्यक है। यदि सही समय से नियंत्रण वाली दबाओं का छिड़काव न किया जाए तो उत्पादन पर 35 प्रतिशत तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धान की खेती वाले इलाकों में गेहूं की फसल में पहला पानी लगने की तैयारी है और इसके साथ ही खरपतवार जोर पकड़ेंगे। चूंकि किसान पहले पानी के साथ ही उर्वरकों को बुरकाव करते हैं लिहाजा ऐसी स्थिति में खरपतवारों को पूरी तरह से मारना और ज्यादा दिक्कत जदां हो जाता है। विशेषज्ञ 25 से 35 दिन के बीच के समय को खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त मानते हैं। इसके बाद दवाओं का फसल पर दुष्प्रभाव भले ही सामान्य तौर पर न दिखे लेकिन उत्पादन पर प्रतिकूल असर होता है। 

कैसे मरता है खरपतवार

Gehu mai kharpatvar 

 खरपतवार को मारने के लिए बाजार में अनेक दवाएं मौजूद हैं लेकिन इससे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि दवाओं से केवल खरपतवार ही मरता है और फसल सुरक्षित रहती है तो कैसे । फसल और खरपतवार की आहार व्यवस्था में थोड़ा अंतर होता है। फसल किसी भी पोषक तत्व का अवशोषण जमीन से सीमित मात्रा में करती है। खरतवारों के पौधों का विकास बहुत तेज होता है और वह कम खुराक से भी अपना काम चला लेते हैं। ऐसे में जो खरपतवारनाशी दवाएं छिड़की जाती हैं उनमें जिंक आदि पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। इनका फसल पर जैसे ही छिड़काव होता है खरपतवार के पौधे उसे बेहद तेजी से ग्रहण करते हैं और दवा के प्रभाव से उनकी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इधर मुख्य फसल के पौध इन्हें बेहद कम ग्रहण करता है और कम दुष्प्रभाव को झेलते हुए खुद को बचा लेता है।

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खरपतवार की श्रेणी

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 खरपतवार को दो श्रेणियों में बांटा जाता है। गेहूं में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले दो मुख्य खरपतवार पनपते हैं। किसान ऐसी दवा चाहता है जिससे एक साथ चौड़ी और संकरी पत्ती वाले खरपतवार मर जाएं। इसके लिए कई कंपनियों की सल्फोसल्फ्यूरान एवं मैट सल्फ्यूरान मिश्रित दवाएं आती हैं। इस तरह के मिश्रण वाली दवाओं से एक ही छिड़काव में दोनों तरह के खरपतवार मर जाते हैं। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मारने के लिए टू फोर डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत दवा आती है। 250 एमएल दवा एक एकड़ एवं 625 एमएल प्रति हैक्टेयर के लिए उपोग मे लाएं। पानी में मिलाकर 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तीन दिन में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मर जाते हैं। केवल संकरी पत्ती वाले गेहूंसा, गेहूं का मामा, गुल्ली डंडा एंव जंगली जई को मारने के लिए केवल स्ल्फोसफल्फ्यूरान या क्लोनिडाफाप प्रोपेरजिल 15 प्रतिशत डब्ल्यूपी 400 ग्राम प्रति एकड़ को पानी में घोलकर छिड़काव करें।

 

सावधानी

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 किसी भी दवा के छिड़काव से पूर्व शरीर पर कोई भी घरेलू तेल लगा लें। दस्ताने आदि पहनना संभव हो तो ज्यादा अच्छा है। दवा को जहां खरपतवार ज्यादा हो वहां आराम से छिड़कें और जहां कम हो वहां गति थोड़ी तेज कर दें ताकि पौधों पर ज्यादा दवा न जाए। दवा छिड़कते समय खेत में हल्का पैर चपकने लायक नमी होनी चाहिए ताकि खेत में नमी सूखने के साथ ही खरपतवार भी सूखता चला जाएगा।

जानिए गेहूं की बुआई और देखभाल कैसे करें

जानिए गेहूं की बुआई और देखभाल कैसे करें

भारत में लगभग सभी राज्यों, नगरों, कस्बों,गांवों में रहने वाले लोग अपने भोजन में गेहूं का सबसे अधिक इस्तेमाल करते हैं। रबी सीजन में की जाने वाली गेहूं की फसल मुख्य फसल है। हमारे देश में बढ़ती जनसंख्या और मुख्य खाद्यान्न होने के कारण गेहूं की सबसे ज्यादा डिमांड रहती है। इस कारण गेहूं की कीमतें अब बाजार में तेजी से बढ़ती रहतीं हैं। इसलिये किसान भाइयों के लिए गेहूं की खेती सबसे उत्तम है।

गेहूं की बुआई कैसे करें

गेहूं की बुआई गेहूं की खेती के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्शियस के तापमान की आवश्यकता होती है। इससे अधिक तापमान में गेहूं की फसल नहीं की जा सकती है। गेहूं के पौधों के अंकुर निकलने के समय 20 से 22 डिग्री का तापमान अच्छा माना गया है। गेहूं की बढ़वार के लिए 25 से 27 डिग्री सेल्शियस तापमान जरूरी होता है। गेहूं के पौधों में फूल आने के समय अधिक तापमान नहीं होना चाहिये। सिंचित क्षेत्रों में लगभग सभी प्रकार की भूमि पर गेहूं की खेती की जा सकती है लेकिन जलजमाव वाली, लवणीय या क्षारीय भूमि में गेहूं की खेती नहीं की जानी चाहिये। वैसे बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी को गेहूं की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। जहां पर भूमि की परत एक मीटर के बाद सख्त हो, वहां पर भी खेती नहीं करनी चाहिये।

गेहूं के लिए खेत की तैयारी कुछ ऐसे करें

खरीफ की फसल के बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें। उसके बाद दो या तीन क्रास जुताई कर मिट्टी को महीन बनायें। यदि खेत में मिट्टी के ढेले दिख रहे हों तो उसमें पाटा चलाकर मिट्टी को एकदम भुरभुरी कर लें। इसके बाद किसान भाइयों को चाहिये कि खेत में आवश्यकतानुसार गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद और उर्वरकों को डालें तथा अंतिम जुताई करें। दीमक,कटवर्म आदि लगते हों तो कीट नाशकों का उपयोग करें। अंतिम जुताई के बाद खेत को एक सप्ताह के लिए खुला छोड़ दें। इसके बाद बुआई करने से पहले खेत की नमी की स्थिति को देखें। नमी कम दिख रही हो तो पलेवा करके बुआई करें।

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भारत में क्षेत्रवार जलवायु अलग-अलग होने के कारण गेहूं की बुआई का समय भी अलग-अलग है। पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में गेहूं की बुआई का समय नवम्बर का पूरा महीना उपयुक्त माना गया है। वहीं पूर्वोत्तर क्षेत्र में मध्य नवंबर से लेकर दिसम्बर के पहले पखवाड़े तक सही समय माना गया है। इसके बाद पछैती खेती  के लिए 15 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक बुआई की जा सकती है। इसके बाद बुआई करना जोखिम भरा हो सकता है। गेहूं की अच्छी खेती के लिए बीज भी अच्छा होना चाहिये। अच्छी पैदावार की किस्म वाला गेहूं का बीज होना चाहिये तथा सिकुड़े, छोटे, कटे-फटे दाने नहीं होने चाहिये। आम तौर पर एक हेक्टेयर के लिए 100 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है। पछैती खेती या कम उपजाऊ जमीन के लिए 125 किलो बीजों की आवश्यकता होती है। बीज प्रमाणित संस्थानों से लेना चाहिये और तीन वर्ष में गेहूं के बीज की किस्म बदल लेनी चाहिये।

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बुआई से पहले बीज का उपचार किया जाना अत्यावश्यक है। पहले गेहूं के बीज को थाइम या मैन्कोजेब से उपचारित करना चाहिये। इसके लिए प्रतिकिलो गेहूं के बीज के लिए 2 से 2.5 ग्राम थाइम या मैन्कोजेब की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफोस से शोधन करें। उसके बाद बीज को छाया में सुखाकर खेत में बोयें। गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए बुआई के सर्वश्रेष्ठ तरीके को अपनाया जाना चाहिये। किसान भाइयों बुआई करने का सबसे अच्छा तरीका सीड ड्रिल या देशी हल से किये जाने को माना गया है। इससे कतार से कतार की दूरी व पौधों की दूरी भी नियंत्रित रहती है। इससे निराई गुड़ाई व सिंचाई करने में सुविधा होती है। साथ ही बीज आवश्यक गहराई तक जाता है और बीज भी कम लगता है। छिड़काव विधि से बीज भी अधिक लगता है।असमान पौधों के उगने से फसल प्रभावित होती है। बाद में कई अन्य परेशानियां आतीं हैं।

गेहूं की बुआई

गेहूं की बुआई के बाद फसल की देखभाल करनी जरूरी होती है। किसान भाइयों को चाहिये कि वे खेत की लगातार निगरानी करते रहें। सभी आवश्यक इंतजाम करते रहें। गेहूं की बुआई के बाद सबसे पहले खरपतवार नियंत्रण के लिए दो-तीन दिन में पैन्डीमैथालीन के घोल का छिड़काव करें। अक्सर देखा गया है कि गेहूं की फसल के साथ गोयला, प्याजी,चील, जंगली जई,गुल्ली डंडा व मोरवा जैसे खरपतवार उग आते हैं और वे फसल की बढ़त को रोक देते हैं। गुल्ली डंडा व जंगली जई का अधिक प्रकोप होने पर एक किलो आईसोप्रोटूरोन या मैटाक्सिरान को 500 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़कें।

खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन ऐसे करें

किसान भाइयों के लिए उर्वरक प्रबंधन करने से पहले मृदा का परीक्षण कराना सर्वोत्तम रहेगा। इससे उनको खाद एवं उर्वरक प्रबंधन पर उतना ही खर्च लगेगा जितने की जरूरत होगी। अनुमान से खाद व उर्वरक का प्रबंधन करना किसान भाइयों को महंगा भी पड़ सकता है और अपेक्षित परिणाम भी नहीं मिलते हैं। वैसे सिंचित क्षेत्रों में 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम पोटाश और 60 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है। यदि पछैती फसल लेनी है तो उसके लिए 20 से 40 किलो पोटाश अधिक डालें। असिंचित क्षेत्रों में समय से खेती करने के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है।  बालियां आने से पहले यदि बरसात हो जाये तो 20 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव करना चाहिये। सिंचित क्षेत्रों में बुआई के बाद नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा जो बुआई के समय बचायी जाती है उसका आधा हिस्सा पहली सिंचाई के बाद और आधा हिस्सा दूसरी सिंचाई के बाद खेतों में डालने से पैदावार अच्छी होती है।

गेहूं की फसल में सिंचाई का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पूरी फसल में छह बार सिंचाई करनी होती है।

  1. पहली सिंचाई बुआई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिये
  2. दूसरी सिंचाई 45 दिन के बाद उस समय करनी चाहिये जब कल्ले बनने लगे।
  3. तीसरी सिंचाई 65 दिन बाद उस समय करनी चाहिये जब गांठ बनने लगे।
  4. चौथी सिंचाई 85 से 90 दिन यानी तीन महीने बाद उस समय करनी चाहिये जब बालियां निकलने वाली हों।
  5. पांचवीं सिंचाई उस समय की जानी चाहिये जब दूधिया दाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति बुआई से 100 से 110 दिन बाद आती है।
  6. छठवीं और अंतिम सिंचाई 115 से 120 दिन बाद उस समय की जानी चाहिये जब दाना पकने वाला हो।

खरपतवार की देखभाल कैसे की जाये

गेहूं की फसल को गोयला, चील, प्याजी, मोरवा, गुल्ली डन्डा, जंगली जई, मंडूसी, कनकी, पोआघास, लोमड़ घास, बथुआ, खरथुआ, जंगली पालक, मैना, मैथा, सांचल,मालवा, मकोय, हिरनखुरी, कंडाई, कृष्णनील, चटरी मटरी जैसे खरपतवार प्रभावित करते हैं। इनको रोकने के लिए खरपतवारनाशी का घोल छिड़कना चाहिये। फसल के बीच में निराई गुड़ाई भी की जानी चाहिये।

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गेहूं की फसल को अनेक प्रकार की कीट व रोग भी लगते हैं। इनके नियंत्रण का भी प्रबंध किसान भाइयों को करना चाहिये।  दीमक, आर्मी वर्म, एफिड व जैसिडस तथा चूहे काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम बुआई के समय करनी चाहिये। उस समय एन्डोसल्फान का छिड़काव करना चाहिये। दीमक के लिए क्लोरीपाइरीफोस को सिंचाई के साथ देना होगा। रस चूसने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए इकालक्स के घोल का छिड़काव करें। यदि झुलसा पत्ती धब्बा, रोली रोग, कण्डवा, मोल्या धब्बा जैसे रोग गेहूं की फसल में लगे हुए दिखाई दें तो मेन्कोजेब, रोली राग के लि गंधक का चूर्ण, कन्डुवे के लिए थीरम या वीटावैक्स से उपचार करें। चूहों के नियंत्रण के लिए एल्यूमिनियम फास्फाइड या राटाफीन की गोलियों का इस्तेमाल करें।
गेहूं की अच्छी फसल तैयार करने के लिए जरूरी खाद के प्रकार

गेहूं की अच्छी फसल तैयार करने के लिए जरूरी खाद के प्रकार

गेहूं की खेती पूरे विश्व में की जाती है। पुरे विश्व की धरती के एक तिहाई हिस्से पर गेहूं की खेती की जाती है। धान की खेती केवल एशिया में की जाती है जबकि गेहूं विश्व के सभी देशों में उगाया जाता है। 

इसलिये गेहूं की खेती का बहुत अधिक महत्व है और किसान भाइयों के लिए गेहूं की खेती कृषि उपज के प्राण के समान है। इसलिये प्रत्येक किसान गेहूं की अच्छी उपज लेना चाहता है। 

वर्तमान समय में वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाती है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वह गेहूं की खेती में खाद की मात्रा उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके से करेंगे तो उन्हें अपने खेतों में अच्छी पैदावार मिल सकती है।

क्यों है अच्छी फसल की जरूरत

किसान भाइयों एक बात यह भी सत्य है कि जमीन का दायरा सिकुड़ता जा रहा है और आबादी बढ़ती जा रही है। मानव का मुख्य भोजन गेहूं पर ही आधारित है। इसलिये गेहूं की मांग बढ़ना आवश्यक है। 

इस मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक पैदावार करना होगा। जहां लोगों की जरूरतें  पूरी होंगी और वहीं किसान भाइयों की आमदनी भी बढ़ेगी। किसान भाइयों गेहूं की खेती बहुत अधिक मेहनत मांगती है। 

जहां खेत को तैयार करने के लिए अधिक जुताई, पलेवा, निराई गुड़ाई, सिंचाई के साथ गेहूं की खेती में खाद की मात्रा का भी प्रबंधन समय-समय पर करना होता है। 

आइये देखते हैं कि गेहूं की खेती में किन-किन खादों व उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक से अधिक पैदावार ली जा सकती है।

अधिक उत्पादन का मूलमंत्र

गेहूं की खेती की खास बात यह होती है कि इसमें बुआई से लेकर आखिरी सिंचाई तक उर्वरकों और पेस्टिसाइट व फर्टिसाइड का इस्तेमाल किया जाता है। तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है।

बुआई के समय करें ये उपाय

गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले तो अपनी भूमि का परीक्षण कराना चाहिये, मृदा परीक्षण या सॉइल टेस्टिंग भी कहा जाता है। 

परीक्षण के उपरांत कृषि विशेषज्ञों से राय लेकर खेत तैयार करने चाहिये और उनके द्वारा बताई गई विधि से ही खेती करेंगे तो आपको अधिक से अधिक पैदावार मिलेगी।  

क्योंकि फसल की पैदावार बहुत कुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करती है। गेहूं की खेती में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद के अलावा फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी प्रयोग करना होता है।  

कौन सी खाद कब इस्तेमाल की जाती है, आइये जानते हैं:-

  1. गेहूं की फसल के लिए बुआई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले 35 से 40 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिये। इसके साथ ही 50 किलोग्राम नीम की खली और 50किलो अरंडी की खली को भी मिला लेना चाहिये। पहले इन सभी खादों के मिश्रण को खेत में बिखेर दें और उसके बाद खेत की जमकर जुताई करनी चाहिये।
  2. किसान भाई गेहूं की अच्छी फसल के लिए अगैती फसल में बुआई के समय 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। गेहूं की पछैती फसल के लिए बुआई के समय 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश गोबर की खाद, नीम व अरंडी की खली के बाद डालना चाहिये।
  3. इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बचा कर रख लेना चाहिये जो बाद में पहली व दूसरी सिंचाई के समय डालना चाहिये।

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पहली सिंचाई के समय

बुआई के बाद पहली सिंचाई लगभग 20 से 25 दिन पर की जाती है। गेहूं की खेती में खाद की मात्रा की बात करें तो उस समय किसान भाइयों को गेहूं की फसल के लिए 40 से 45 किलोग्राम यूरिया, 33 प्रतिशत वाला जिंक 5 किलो, या 21 प्रतिशत वाला जिंक 10 किलो, सल्फर 3 किलो का मिश्रण डालना चाहिये। इसके अलावा नैनोजिक एक्सट्रूड जैसे जायद का भी प्रयोग करना चाहिये।

दूसरी सिंचाई के समय

गेहूं की खेती में दूसरी सिंचाई बुआई के 40 से 50 दिन बाद की जानी चाहिये। उस समय भी आपको 40 से 45 किलोग्राम यूरिया डालनी होगी ।

इसके साथ थायनाफेनाइट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़, मारबीन डाजिम 12 प्रतिशत, मैनकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़ से मिलाकर डालनी चाहिये।

उर्वरकों का इस्तेमाल का फैसला ऐसे करें

मुख्यत: गेहूं की फसल में दो बार सिंचाई के बाद ही उर्वरकों का मिश्रण डालने का प्रावधान है लेकिन उसके बाद किसान भाइयों को अपने खेत व फसल की निगरानी करनी चाहिये। 

इसके अलावा भूमि परीक्षण के बाद कृषि विशेषज्ञों की राय के अनुसार उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिये। यदि भूमि परीक्षण नहीं कराया है तो आपको अपने खेत की निगरानी अपने स्तर से करनी चाहिये और स्वयं के अनुभव के आधार पर या अनुभवी किसानों से राय लेकर फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरक, फर्टिसाइड व पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करना चाहिये।

हल्की फसल हो तो क्या करें

विशेषज्ञों के अनुसार दूसरी सिंचाई के बाद देखें कि आपकी फसल हल्की हो तो आप अपने खेतों में माइकोर हाइजल दो किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। 

जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय एनपीके का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें अलग से पोटाश डालने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एनपीके में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन और 32 प्रतिशत फास्फोरस होता है और 16प्रतिशत पोटाश होता है।

डीएपी का इस्तेमाल करने वाले  क्या करें

जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय डीएपी खाद का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें पहली सिंचाई के बाद ही 15 से 20 किलो म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिये।

क्योंकि डीएपी  में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है और पोटाश बिलकुल नहीं होता है।

प्रत्येक सिंचाई के बाद खेत को परखें

गेहूं की फसल में 5-6 बार सिंचाई करने का प्रावधान है। किसान भाइयों को चाहिये कि वो कुदरती बरसात को देख कर और खेत की नमी की अवस्था को देखकर ही सिंचाई का फैसला करें। 

यदि प्रति सिंचाई के बाद यूरिया की खाद डाली जाये तो आपकी फसल में रिकार्ड पैदावार हो सकती है। यूरिया के साथ फसल की जरूरत के हिसाब से फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी इस्तेमाल करना चाहिये। 

पहली दो सिंचाई के बाद तीसरी सिंचाई 60 से 70 दिन बाद की जाती है। चौथी सिंचाई 80 से 90 दिन बाद उस समय की जाती है जब पौधों में फूल आने को होते हैं। पांचवीं सिंचाई 100 से 120 दिन बाद करनी चाहिये। 

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खाद सिंचाई से पहले या बाद में डाली जाए?

  1. किसान भाइयों के समक्ष यह गंभीर समस्या है कि गेहूं की खेती में खाद की मात्रा कितनी डालनी चाहिये? हालांकि खाद डालने का प्रावधान सिंचाई के बाद ही का है लेकिन कुछ किसान भाइयों को यह शिकायत होती है कि सिंचाई के बाद खेत की मिट्टी दलदली हो जाती है, जहां खेत में घुसने में पैर धंसते हैं और उससे पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को परिस्थिति देखकर स्वयं फैसला लेना होगा।
  2. यदि भूमि अधिक दलदली है और सिंचाई के बाद पैर धंस रहे हैं तो आपको खेत के पानी को सूखने का इंतजार करना चाहिये लेकिन पर्याप्त नमी होनी चाहिये तभी खाद डालें। इसके लिए आप सिंचाई से अधिक से अधिक दो दिन के बाद खाद अवश्य डाल देनी चाहिये। यदि यह भी संभव न हो पाये तो इस तरह की भूमि में सिंचाई से 24 घंटे पहले खाद डालनी चाहिये लेकिन ध्यान रहे कि 24 घंटे में सिंचाई अवश्य ही हो जानी चाहिये। तभी खाद आपको लाभ देगी अन्यथा नहीं।
  3. यदि आपके खेत की भूमि बलुई या रेतीली है, जहां पानी तत्काल सूख जाता है और आप खेत में आसानी से जा सकते हैं तो आपको सिंचाई के तत्काल बाद गेहूं की खेती में खाद की मात्रा डालनी चाहिये। ऐसे खेतों में अधिक से अधिक सिंचाई के 24 घंटे के भीतर खाद डालनी चाहिये।
गेंहू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं की विस्तृत जानकारी

गेंहू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं की विस्तृत जानकारी

अक्टूबर माह से गेंहू की बुवाई की शुरूआत हो जाती है। गेंहू की खेती में बुवाई से लगाकर कटाई तक यदि सभी कार्यों को बेहतर ढ़ंग से करते हैं, तो वह अच्छा खासा मुनाफा उठा सकते हैं। 

जैसा कि हम जानते हैं, कि खरीफ सीजन चल रहा है। इस सीजन की फसलों की कटाई के पश्चात किसान भाई रबी सीजन की फसलों की बुवाई शुरू कर देंगे। 

गेहूं की फसल रबी की प्रमुख फसलों से एक है, इसलिए किसान कुछ बातों का ध्यान रखकर अच्छा उत्पादन पा सकते हैं। भारत ने विगत चार दशकों में गेहूं पैदावार में उपलब्धि हासिल की है। 

गेहूं का उत्पादन वर्ष 1964-65 में जहां केवल 12.26 मिलियन टन था, जो बढ़कर के साल 2019-20 में 107.18 मिलियन टन के एक ऐतिहासिक उत्पादन स्तर पर पहुंच गया है। 

भारत की जनसंख्या को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा मुहैय्या करने के लिए गेहूँ के उत्पादन और उत्पादकता में लगातार बढ़ोत्तरी की जरूरत है। एक अनुमान के मुताबिक, साल 2025 तक भारत की जनसँख्या तकरीबन 1.4 बिलियन होगी।

इसके लिए वर्ष 2025 तक गेहूं की अनुमानित मांग तकरीबन 117 मिलियन टन होगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नवीन तकनीकियाँ विकसित करनी होंगी। 

नवीन किस्मों की प्रगति तथा उनकी उच्च उर्वरता की स्थिति में परीक्षण से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन क्षमता प्राप्त की जा सकती है।

भारत में गेंहू की खेती करने वाले प्रमुख राज्य

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र भारत के सबसे उपजाऊ एवं गेहूं के सर्वाधिक उत्पादन वाले इलाके हैं। 

दरअसल, इस इलाके में गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्य जैसे कि दिल्ली, राजस्थान (कोटा व उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू व कठुआ जनपद व हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला व पोंटा घाटी शम्मिलित हैं। 

इस इलाके में तकरीबन 12.33 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल पर गेहूं का उत्पादन किया जाता है। तकरीबन 57.83 मिलियन टन गेहूं की पैदावार होती है। इस इलाके में गेहूं की औसत उत्पादकता तकरीबन 44.50 कुंतल/हैक्टेयर है। 

वहीं, किसानों के खेतों पर आयोजित गेहूं के अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में गेहूं की अनुशंसित प्रौद्योगिकियों को अपनाकर 51.85 कुंतल/हैक्टेयर की पैदावार अर्जित की जा सकती है। 

विगत कुछ सालों से इस इलाके में गेहूं की उन्नत किस्में एचडी 3086 व एचडी 2967 की बुवाई बड़े पैमाने पर की जा रही है। 

परंतु, इन किस्मों के प्रतिस्थापन के लिए उच्च उत्पादन क्षमता एवं रोग प्रतिरोधी किस्में डीबीडब्ल्यू 187, डीबीडब्ल्यू 222 और एचडी 3226 आदि किस्मों को बड़े स्तर पर प्रचारित-प्रसारित किया गया है। 

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अत्यधिक पैदावार हेतु करें इन उन्नत किस्मों का चुनाव

गेहूं की खेती में किस्मों का चयन एक महत्वपूर्ण फैसला है, जो यह सुनिश्चित करता है, कि कितना उत्पादन होगा। सदैव नवीन रोगरोधी व उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। 

सिंचित व समय से बिजाई के लिए डीबीडब्ल्यू 303, डब्ल्यूएच 1270, पीबीडब्ल्यू 723 और सिंचित व विलंब से बुवाई के लिए डीबीडब्ल्यू 173, डीबीडब्ल्यू 71, पीबीडब्ल्यू 771, डब्ल्यूएच 1124, डीबीडब्ल्यू 90 व एचडी 3059 की बिजाई कर सकते हैं। 

वहीं, ज्यादा फासले से बुवाई के लिए एचडी 3298 किस्म की पहचान की गई है। सीमित सिंचाई और समय से बुवाई के लिए डब्ल्यूएच 1142 किस्म को अपनाया जा सकता है। 

बुवाई का समय बीज दर व उर्वरक की समुचित मात्रा गेहूं की बुवाई करने से 15-20 दिन पूर्व खेत तैयार करने के दौरान 4-6 टन/एकड़ की दर से गोबर की खाद का इस्तेमाल करने से मृदा की उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है।

जीरो टिलेज व टर्बो हैप्पी सीडर से बुवाई की जाती है

धान-गेहूं फसल पद्धति में जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं की बुवाई एक कारगर एवं फायदेमंद तकनीक है। इस तकनीक के जरिए धान की कटाई के उपरांत भूमि में संरक्षित नमी का इस्तेमाल करते हुए, जीरो टिल ड्रिल मशीन से गेहूं की बुवाई बिना जुताई के ही की जाती है। 

जहां पर धान की कटाई काफी विलंब से होती है। वहां पर यह मशीन बेहद ही ज्यादा कारगर साबित हो रही है। जल भराव वाले इलाकों में भी इस मशीन की काफी उपयोगिता है। 

यह धान के फसल अवशेष प्रबंधन की सबसे प्रभावी एवं कुशल विधि है। इस विधि के माध्यम से गेहूं की बुवाई करने से पारंपरिक बुवाई की तुलना में समान अथवा ज्यादा पैदावार प्राप्त होती है व फसल गिरती नहीं है। 

फसल अवशेषों को सतह पर रखने से पौधों के जड़ इलाके में नमी ज्यादा वक्त तक संरक्षित रहती है, जिसके कारण तापमान में वृद्धि का दुष्प्रभाव पैदावार पर नही पड़ता और खरपतवार भी कम होते हैं। गेहूं की खेती में सिंचाई प्रबंधन है जरूरी।

गेहूं की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन बेहद आवश्यक होता है

बतादें, कि ज्यादा उत्पादन के लिए गेहूं की फसल को पांच-छह सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पानी की मौजूदगी मिट्टी के प्रकार एवं पौधों की जरूरतों के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। 

गेहूं की फसल के जीवन चक्र में तीन अवस्थाएं जैसे कि चंदेरी जड़े निकलना (21 दिन), पहली गांठ बनना (65 दिन) और दाना बनना (85 दिन) ऐसी हैं, जिन पर सिंचाई करना अत्यंत जरूरी है। 

अगर सिंचाई हेतु जल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो तो प्रथम सिंचाई 21 दिन पर इसके उपरांत 20 दिन के समयांतराल पर बाकी पांच सिंचाई करें। 

नवीन सिंचाई तकनीकों जैसे फव्वारा विधि अथवा टपक विधि भी गेहूं की खेती के लिए काफी बेहतरीन होती है। कम सिंचित क्षेत्रों में इनका इस्तेमाल काफी पहले से होता आ रहा है। 

परंतु, जल की बाहुलता वाले इलाकों में भी इन तकनीकों को अपनाकर जल का संचय किया जा सकता है। साथ ही, बेहतरीन उत्पादन लिया जा सकता है। 

सिंचाई की इन तकनीकों पर केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा अनुदान के तौर पर धनराशि भी प्रदान की जा रही है। कृषक भाईयों को इन योजनाओं का लाभ लेकर सिंचाई जल प्रबंधन के राष्ट्रीय दायित्व का भी निर्वहन करना चाहिए।