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सरकार ने इस रबी सीजन के लिए 11.4 करोड़ टन का लक्ष्य निर्धारित किया है

सरकार ने इस रबी सीजन के लिए 11.4 करोड़ टन का लक्ष्य निर्धारित किया है

तूफान, ओलावृष्टि एवं अल नीनो जैसी खतरनाक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने जलवायु-प्रतिरोधी (गर्मी झेल सकने वाली) DBW 327 करण शिवानी, एचडी-3385 जैसी किस्मों की खेती करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस रबी सीजन में 11.4 करोड़ टन की रिकॉर्ड गेहूं पैदावार का लक्ष्य तय किया गया है। फसलों की पैदावार मिट्टी, मौसम, सिंचाई एवं बेहतरीन किस्म के बीजों पर आश्रित होती है। 

साथ ही, कभी-कभी मौसम की विषम परिस्थितियों की वजह से किसान की फसल की लागत तक भी नहीं निकल पाती है। किसान आर्थिक हालातों से खुद भी गुजरता है। साथ ही, उसका परिवार भी इन चुनौतियों का सामना करता है। ऐसी स्थिति में सरकार ने विषम परिस्थितियों को ध्यान में रख के एक लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य के अंतर्गत गेहूं की बुवाई (Wheat Sowing) के समकुल क्षेत्रफल के 60 फीसद हिस्से में जलवायु-प्रतिरोधी DBW 327 करण शिवानी, एचडी-3385 एम.पी-3288, राज 4079, DBW-110, एच.डी.-2864, एच.डी.-2932 किस्मों की खेती का लक्ष्य तय किया गया है।

गेहूं की पैदावार का लक्ष्य निर्धारित किया गया है

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन की समस्याओं को देखते हुए रबी सीजन में 11.4 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। वहीं, विगत वर्ष भी सरकार ने समान अवधि में गेहूं का उत्पादन 11.27 करोड़ टन का लक्ष्य रखा था।

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केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा ने रणनीति तैयार की है

केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा ने रबी फसलों की बुवाई की रणनीति पर चर्चा की है, जिसमें उन्होंने कहा है, कि जलवायु पारिस्थितिकी में आए दिन कुछ न कुछ परिवर्तन हो रहे हैं। इस वजह से फसलों में भी प्रभाव देखने को मिल रहा है, तो ऐसी स्थिति में रणनीति के मुताबिक जलवायु-प्रतिरोधी बीजों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 

गर्मी-प्रतिरोधी वाली किस्मों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है

भारत में 800 से ज्यादा जलवायु-प्रतिरोधी किस्में मौजूद हैं। इन बीजों को ‘सीड रोलिंग’ योजना के अंतर्गत सीड चेन में डालने की आवश्यकता है। किसानों को गर्मी-प्रतिरोधी किस्में उगाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त समस्त राज्यों में विशिष्ट इलाकों को चिह्नित करके उत्पादित की जाने वाली अच्छी किस्मों को लेकर नक्शा तैयार करना चाहिए। किस्मों को बेहतर सोच समझ से चयन करना उत्पादन के लिए बेहद महत्वपूर्ण कारक है। किसानों को हमेशा अच्छी और जलवायु प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट ब्रीडिंग जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेंहू की PBW RS1 किस्म को विकसित किया है। इससे किसानों को कम लागत। यह किस्म मोटापे और शुगर के इंसुलेशन के स्तर को बढ़ने नहीं देती है। यह किस्म हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। गेंहू रबी सीजन की एक सबसे प्रमुख फसल है। साथ ही, यह खाने के मकसद से काफी पौष्टिक अनाज है। इसको अधिकांश लोग आहार के रूप में उपयोग किया जाता है। ज्यादातर लोग गेंहू के आटे से निर्मित रोटियों का सेवन करते हैं। किसान गेंहू की फसल से काफी अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं। साथ ही, लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेहूं की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जो मोटापे एवं शुगर के इन्सुलिन स्तर को बढ़ने नहीं देगी। इस वजह से गेहूं की ये किस्म सेहत के लिए काफी लाभदायक साबित होगी। इस बार रबी के सीजन में किसानों को यह बीज लगाने के लिए प्रदान किया जाएगा। साथ ही, इसकी फसल को किस तरह तैयार करना है, इसका प्रशिक्षण भी किसान भाइयों को दिया जाएगा।

गेहूं की PBW RS1 किस्म कितने समय में तैयार होती है

सामान्य तौर पर आपने सुना होगा कि जो भी लोग मोटापे से ग्रसित होते हैं, उन्हें गेहूं का सेवन करने के लिए डॉक्टर मना कर देते हैं। परंतु, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट के कृषि वैज्ञानिकों ने लगभग 8 से 10 साल में गेहूं की बहुत सी किस्मों पर शोध कर के PBW RS1 किस्म तैयार किया है, जिसको खाने से अब डॉक्टर भी मना नहीं करेंगे। क्योंकि गेहूं की ये नई किस्म मोटापे को रोकने में सहायता करेगी।

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PBW RS1 गेहूं के क्या-क्या लाभ हैं

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं की ये जो स्पेशल किस्म विकसित की है इसके अनेकों लाभ हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ही फायदेमंद साबित होगा। इस गेहूं का नियमित सेवन करने से मोटापे एवं शुगर जैसी समस्या पर काबू पाया जा सकता है। इस गेहूं की किस्म में न्यूट्रा सिटिकल वैल्यूज अधिक हैं। इसमें रेजिस्टेंस स्टार्च का कॉन्टेंट भी उपलब्ध है।

विकसित की गई गेहूं की यह नवीन किस्म 2024 अप्रैल माह के पश्चात बाजार में मिलेगी

इसके दाने डायबिटिक मरीजों के लिए भी काफी लाभकारी साबित होंगे। यह फाइबर की भांति शीघ्र ही डाइजेस्ट हो जाएगी। यह गेहूं 2024 अप्रैल महीने के बाद से बाजार में मौजूद रहेगी। वहीं, इस नए बीज की फसल तो कम होगी, परंतु बाजार में इसका भाव ज्यादा मिलेगा।
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई गेंहू की प्रतिरोधी किस्मों को मिला पुरुस्कार

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई गेंहू की प्रतिरोधी किस्मों को मिला पुरुस्कार

गेहूं रबी सीजन की सबसे अधिक बोई जाने वाली फसल है। किसान ज्यादा पैदावार कर ज्यादा मुनाफा उठा सकें। इसके लिए गेहूं की उन्नत किस्म विकसित की जा रही है। ऐसे में भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने गेहूं की नवीन किस्म डीबीडब्ल्यू 327 को विकसित किया है। यह उच्च उत्पादन देने वाली और रोग-प्रतिरोधी किस्म है। गेहूं की फसल की ज्यादा उपज बढ़ाने के लिए किसान एवं वैज्ञानिकों की तरफ से कोशिशें की जा रही हैं। इसी कड़ी में भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक नवीन प्रजाति डीबीडब्ल्यू- 327 (DBW- 327) विकसित की है, जिससे 30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार मिल सकती है। इस किस्म की प्रमुख बात यह है, कि इस गेहूं की फसल पर मौसम का कतई असर नहीं पड़ेगा। इसके उत्पादन में भी कोई अंतर नहीं होगा। गेंहू की यह किस्म रोग प्रतिरोधी है। साथ ही, ये 155 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। साथ ही, यदि उत्पादन की बात की जाए तो इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 80 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। जो कि बाकी किसी भी गेहूं की किस्म से अधिक है।

5 गेंहू की किस्मों के लिए मिला पुरस्कार

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने हाल ही में गेहूं की पांच नवीन किस्में विकसित की हैं।
गेहूं की नई किस्मों के तकनीकी विकास के लिए भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान करनाल को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला द्वारा प्रदान किया गया है।

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गेंहू की प्रतिरोधी किस्म डीबीडब्ल्यू 327

भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है, कि डीबीडब्ल्यू 327 (DBW 327) गेहूं की नवीन किस्म एक प्रतिरोधी किस्म है। इस किस्म की गेहूं की फसल में कीटनाशकों के खात्मे के लिए किए गए छिड़काव की लागत भी कम होगी। इसके साथ ही तेज धूप, कम पानी एवं बेमौसम बरसात का कोई भी असर नहीं पड़ेगा। किसानों को इसकी अत्यधिक देखभाल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसकी पैदावार से किसानों को ज्यादा मुनाफा अर्जित होगा।

इन राज्यों के किसानों होगा लाभ

डीबीडब्ल्यू 327 गेहूं की इस किस्म का सबसे ज्यादा लाभ हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली के किसानों को होगा। क्योंकि यहां की जलवायु परिस्थितियां इस किस्म के लिए अनुकूल हैं। ये बीज शीघ्र ही किसानों को मुहैय्या कराएं जाएंगे। बतादें, कि किसानों को इन बीजों से काफी फायदा होगा।
इन क्षेत्रों के किसान गेहूं की इन 15 किस्मों का उत्पादन करें

इन क्षेत्रों के किसान गेहूं की इन 15 किस्मों का उत्पादन करें

आईसीएआर ने भारत में गेहूं की 15 नवीन किस्मों की पहचान की है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई किस्मों से देश में खाद्यान्न पैदावार में बढ़ोतरी होगी। साथ ही, किसानों के लिए गेहूं एवं जौ के लिए नई वैरायटी भी उपलब्ध होंगी। ICAR और कृषि से संबंधित बाकी संस्थान उन्नत किस्मों के साथ ही ज्यादा पैदावार के लिए निरंतर वैज्ञानिक खोजों की जानकारी किसानों तक पहुंचाते रहते हैं। इसी बीच वैज्ञानिकों ने गेंहूं की दो और जौ की एक नवीन किस्म की भी पहचान की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह नवीन पहचानी गई किस्में उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों में दो अधिक उपज देने वाली किस्में हैं। गेहूं की दो पहचानी गईं किस्मों के नाम HD3386 एवं WH1402 हैं। गेहूं की पहचानी गई नवीन किस्में आईसीएआर-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, राजस्थान की मदद से विकसित की है।

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भिन्न भिन्न किस्में भिन्न भिन्न क्षेत्रों में बंपर उत्पादन देंगी

वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह किस्में भारत में खाद्यान्न के उत्पादन में तो वृद्धि करेंगी। साथ ही, किसानों के लिए गेहूं व जौ के लिए नई प्रजाति भी उपलब्ध होंगी। गेहूं की GW547 किस्म की समय पर बिजाई की गई सिंचित भूमि के लिए। साथ ही, CG1040 और DBW359 को असिंचित भूमि के लिए पहचाना गया है। बतादें, कि इसके साथ-साथ प्रायद्वीप के प्रतिबंधित सिंचाई क्षेत्रों के लिए DBW359, NW4028, UAS478, HI8840 एवं HI1665 गेहूं की किस्मों को पहचाना गया है। वैज्ञानिकों का कहना है, कि माल्ट जौ किस्म DWRB219 की पहचान भी उत्तर-पश्चिम के सिंचित इलाकों के लिए जानी गई है।

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भारत के विभिन्न इलाकों के शोधकर्ताओं ने भाग लिया

आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर, करनाल के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह के मुताबिक अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ सम्मलेन में भारत के विभिन्न इलाकों के शोधकर्ताओं ने भाग लिया था। आईसीएआर किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) एवं निजी बीज कंपनियों के साथ नवीन जारी किस्मों DBW370, DBW371, DBW372, DBW316 और DDW55 की लाइसेंस प्रक्रिया भी आरंभ हो गई हैं। संस्थान के द्वारा बीजों के लिए चलाया जा रहा पोर्टल भी 15 सितंबर से आरंभ हो चुका है।
किसान भाई गेंहू की इन तीन किस्मों की खेती से प्रति हेक्टेयर 70 से 75 क्विंटल तक उत्पादन उठा सकते हैं

किसान भाई गेंहू की इन तीन किस्मों की खेती से प्रति हेक्टेयर 70 से 75 क्विंटल तक उत्पादन उठा सकते हैं

गेहूं की इन तीन बेहतरीन प्रजातियाँ HD 3406 (उन्नत एचडी 2967), HD-3385, HI 1634 (पूसा अहिल्या) की खेती कर किसान भाई प्रति हेक्टेयर भूमि से 74 क्विंटल तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। साथ ही, भारत में हरियाणा, यूपी, मध्य प्रदेश और पंजाब में गेहूं की खेती विशेष रूप से होती है। बहुत सारे राज्यों के कृषकों ने रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं की बिजाई चालू भी कर दी है। यदि आप एक कृषक हैं और गेहूं की ऐसी प्रजातियों की खोज में हैं, जिनकी खेती से ज्यादा उत्पादन हांसिल किया जा सके। दरअसल, मेरीखेती के इस लेख में आज हम आपको गेहूं की उन तीन ऐसी प्रजातियों के विषय में जानकारी देंगे, जिनकी खेती कर आप प्रति हेक्टेयर 74 क्विंटल तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बातादें, कि गेहूं की इन तीन उन्नत किस्मों HD 3406 ( उन्नत एचडी 2967), HD-3385, HI 1634 (पूसा अहिल्या) शम्मिलित हैं।

गेहूं की किस्म एचडी 3406 (उन्नत एचडी 2967)

गेहूं की शानदार किस्म एचडी 3406 (उन्नत एचडी 2967) का उत्पादन हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर), पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी संभाग को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जनपद, ऊना जिला और हिमाचल प्रदेश की पोंटा घाटी और उत्तराखंड के तराई वाले क्षेत्रों के किसान सुगमता से कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इस किस्म की औसत उत्पादन क्षमता 54.73 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वहीं, अधिकतम उत्पादन क्षमता 64.05 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। वहीं, गेहूं की उन्नत किस्म एचडी 3406 (उन्नत एचडी 2967) रतुआ रोग प्रतिरोधी किस्म है। दरअसल, यह पर्ण/भूरा रतुआ रोग और धारीदार/पीला रतुआ रोग के प्रति रोग प्रतिरोधी है। साथ ही, इसमें गेहूं के झुलसा रोग और करनाल बंट को लेकर प्रतिरोध का स्तर भी शानदार पाया जाता है।

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गेहूं की एचडी-3385 किस्म

गेहूं की एचडी-3385 किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली के द्वारा तैयार किया गया है, जो 123-147 दिन में पककर तैयार हो जाती है। एचडी-3385 किस्म की औसत पैदावार 62.1 क्विंटल/हेक्टेयर है एवं अधिकतम उत्पादन 73.4 क्विंटल/हेक्टेयर है। एचडी-3385 किस्म में विभिन्न प्रकार के रोग नहीं लगते हैं। दरअसल, यह किस्म धारीदार रतुआ, पत्ती रतुआ, करनाल बंट, पाउडरी मिल्ड्यू गेहूं के झुलसा रोग और फ्लैग स्मट रोग के प्रतिरोधी हैं। साथ ही, गेहूं की यह किस्म उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी मैदानी इलाकों के लिए उपयुक्त है।

गेहूं की किस्म HI 1634 (पूसा अहिल्या)/ और HI 1634 (पूसा अहिल्या)

गेहूं की किस्म HI 1634 (पूसा अहिल्या) को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान इंदौर द्वारा तैयार किया गया है। भारत के मध्य क्षेत्र गुजरात, छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग) और उत्तर प्रदेश (झांसी संभाग) के किसान सुगमता से इस किस्म की खेती कर सकते हैं। हालांकि, अन्य प्रदेशों में भी इस किस्म का उत्पादन होता है। यदि औसत उत्पादन क्षमता की बात की जाए तो 51.6 क्विंटल/ हेक्टेयर है। वहीं, अधिकतम उत्पादन क्षमता 70.6 क्विंटल/हेक्टेयर है।
जानें कठिया गेहूं की टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में

जानें कठिया गेहूं की टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में

कठिया गेहूं की यह टॉप उन्नत किस्में एच.डी.-4728 (पूसा मालवी), एच.आई. - 8498 ( पूसा अनमोल), एच. आई. - 8381 (मालव श्री ), एम.पी.ओ.-1215 और एम.पी.ओ – 1106 किसानों को कम समय में 6.28 टन तक उत्पादन देने की क्षमता रखती हैं। इसके अतिरिक्त इन उन्नत किस्मों के गेहूं में विभिन्न प्रकार की बीमारियों से लड़ने के लिए पोषक तत्व विघमान रहते हैं। हमारे भारत देश में किसान काफी बड़े स्तर पर गेहूं की खेती करते हैं, जिसको किसान बाजार में बेचकर ज्यादा मुनाफा हांसिल करते हैं। यदि आप भी गेहूं की खेती से बेहतरीन मुनाफा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप ऐसे में गेहूं की कठिया प्रजातियों का चयन कर सकते हैं। क्योंकि यह प्रजाति गेहूं का बंपर उत्पादन देने की क्षमता रखती है। यदि एक तरह से देखें तो भारत में कठिया गेहूं की खेती लगभग 25 लाख हेक्टेयर रकबे में की जाती है। कठिया गेहूं में विभिन्न प्रकार की बीमारियों से लड़ने हेतु पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। इसके अतिरिक्त कठियां गेहूं आद्यौगिक इस्तेमाल के लिए बेहतर होता है।

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दरअसल, इससे निर्मित होने वाले सिमोलिना (सूजी/रवा) से जल्दी पचने वाले व्यंजन जैसे कि - पिज्जा, स्पेघेटी, सेवेइयां, नूडल, वर्मीसेली इत्यादि तैयार किए जाते हैं। इसमें रोग अवरोधी क्षमता ज्यादा होने की वजह से बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग रहती है। ऐसी स्थिति में आज हम किसानों के लिए कठिया गेहूं की टॉप पांच उन्नत प्रजातियों की जानकारी लेकर आए हैं, जो 100 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। साथ ही, प्रति हेक्टेयर 6.28 टन तक पैदावार प्रदान करती है।

निम्नलिखित कठिया गेहूं की पांच उन्नत किस्में

एच.डी. 4728 (पूसा मालवी)

कठिया गेहूं की यह प्रजाति 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस प्रजाति के दाने बड़े एवं चमकीले होते हैं। गेहूं की कठिया एच.डी.-4728 (पूसा मालवी) प्रजाति से किसान प्रति हेक्टेयर 5.42 से 6.28 टन तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। यह प्रजाति तना और पत्ती के गेरुई रोग के प्रति रोधी मानी जाती है।

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एच.आई. 8498 (पूसा अनमोल)

इस प्रजाति को किसान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के इलाकों में सहजता से कर सकते हैं। कठिया गेहूं की इस प्रजाति में जिंक व आयरन की भरपूर मात्रा विघमान होती है।

एच. आई. - 8381 (मालव श्री)

यह प्रजाति विलंब से बुवाई की जाने वाली होती है। कठिया गेहूं की एच. आई. - 8381 (मालव श्री) प्रजाति से कृषक प्रति हेक्टेयर 4.0 से 5.0 टन तक उपज हांसिल कर सकते हैं।

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एम.पी.ओ. 1215

कठिया गेहूं की इस प्रजाति से किसान प्रति हेक्टेयर तकरीबन 4.6 से 5.0 टन तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। इस प्रजाति की फसल 100 से 120 दिन के समयांतराल में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।


 

एम.पी.ओ 1106

कठिया गेहूं की एम.पी.ओ 1106 प्रजाति लगभग 113 दिन के अंदर पूर्णतय पक जाती है। यह प्रजाति सिंचित इलाकों में भी शानदार पैदावार देने की भी क्षमता रखती है। कठिया गेहूं की इस प्रजाति को मध्य भारत के कृषकों के द्वारा सर्वाधिक पैदा किया जाता है।

HD 2967 Wheat Variety in Hindi: गेहूं की इस किस्म से किसानों को शानदार पैदावार मिल सकती है

HD 2967 Wheat Variety in Hindi: गेहूं की इस किस्म से किसानों को शानदार पैदावार मिल सकती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आधुनिक दौर में गेहूं की उन प्रजातियों की बिजाई करना चाहते हैं, जिस प्रकार में रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा हो। सामान्यतः गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग होने का ज्यादा खतरा रहता है, जिससे गेहूं की शानदार पैदावार नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में कृषक गेहूं की एसडी 2967 किस्म की ज्यादा बिजाई कर रहे हैं। सामान्यतः भारत के प्रत्येक राज्य में इस किस्म की बिजाई होती है। परंतु, हरियाणा के कृषक इस किस्म को कुछ अधिक ही पंसद करते हैं। बतादें, कि इस किस्म की बिजाई करने के पश्चात कीटनाशक पर खर्चा नहीं करना पड़ता है। किसान भाइयों के मुताबिक, आधुनिक दौर में गेहूं की उन प्रजातियों की बिजाई करना चाहते हैं, जिस किस्म में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक मात्रा में होती है। बतादें, कि सामन्यतः गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग होने की आशा रहती है, जिससे गेहूं की बेहतरीन पैदावार नहीं मिल पाती है।

2967 Wheat Variety Details (गेहूं की एसडी 2967 किस्म HD) 

कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि यह एक अगेती प्रजाति है, जिसकी बिजाई से फसल में काफी कम रोग लगते हैं। इसके साथ ही गेहूं की उपज भी शानदार मिलती है। इस वजह से ज्यादातर किसान 2967 किस्म HD 2967 variety of wheat की बिजाई करते हैं।

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इस किस्म में पीला रतुआ रोग से लड़ने की बेहतरीन क्षमता होती है। बतादें, कि यह गेहूं की फसल में लगने वाला ऐसा रोग है, जो कि फसल को आधे से ज्यादा बर्बाद कर देता है। यदि वक्त पर इस रोग की रोकथाम की जाए, तो यह समीपवर्ती पौधों को अपनी भी चपेट में ले लेती है। ऐसी स्थिति में ज्यादातर किसान एचडी 2967 की बिजाई करते हैं।

2967 गेहूं बोने का समय?

HD 2967 variety sowing गेंहू की एक अगेती किस्म है, 2967 गेहूं बोने का समय 1 से 15 नवंबर तक होती हैं। यदि आपने वक्त रहते बुवाई नहीं की है, तो इससे गेहूं के उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है।

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एचडी 2967 किस्म से पैदावार एवं तूड़ा

गेंहू की एचडी 2967 किस्म की बुवाई से औसत उत्पादन 50.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा पैदावार क्षमता 66.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। गेहूँ की HD 2967 variety एचडी 2967 किस्म का तूड़ा काफी शानदार बनता है। इस किस्म की बढ़वार ज्यादा होती है, जिससे एक एकड़ फसल में बाकी किस्मों से ज्यादा तूड़ा निकलता है। बतादें, कि तूड़े को सूखे चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। किसान भाई तूड़े को बेच भी सकते हैं। यह काफी ज्यादा महंगा बिकता है।