आलू एक ऐसी फसल है जिसका मानव जीवन के खानपान से अभिन्न नाता है, क्योंकि ज्यादातर सब्जियों में आलू का प्रयोग किया जाता है। बड़ी बड़ी नमकीन व चिप्स कम्पनियाँ भी आलू खरीदी की मांग रखती हैं। आलू की अत्यधिक मांग के चलते भंवरपाल स्वयं की भूमि के साथ साथ दूसरों की भूमि भी किराये बतौर लेकर, अनुमानित १२२० एकड़ जमीन पर आलू की खेती करते हैं।
एक एकड़ की अनुमानित पैदावार ४०० से ५०० कुन्तल होती है, साथ ही प्रति हेक्टेयर में लगभग डेढ़ लाख का लाभ अर्जित करते हैं। उपरोक्त गणित के अनुरूप भंवरलाल सिंह प्रतिवर्ष १ करोड़ की राशि मुनाफा के तौर पर कमाते हैं।
भंवरपाल जी ने अब तक कई अवॉर्ड हासिल किये हैं, जिनमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के समय वर्ष २०१३ में गुजरात वैश्विक कृषि समिट में सम्मानित किया। साथ ही सन २०२० में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भंवरपाल जी की काबिलियत और मेहनत को देखते हुए ग्लोबल पोटैटो कॉन्क्लेव, गाँधी नगर में एक आदर्श किसान के रूप में सर्वश्रेष्ठ आलू के उत्पादन के फलस्वरूप अवॉर्ड से सम्मानित कर चुके हैं। भंवरपाल जी किसानों के लिए मार्गदर्शक का कार्य कर रहे हैं।
कितने विख्यात हैं भंवरपाल आलू उत्पादक के रूप में ?
भंवरपाल जी की छवि एक उत्तम आलू उत्पादक के रूप में लगभग पुरे उत्तर प्रदेश में है, साथ ही वह तरह तरह के आलू वैरायटी को विभिन्न राज्यों में निर्यात करते हैं, जिसमें कुफरी मोहन, कुफरी सुखाती, कुफरी गंगा, कुफरी नीलकंठो, कुफरी चंद्रमुखी आदि वैरायटी सम्मिलित हैं। भंवरपाल भिन्न भिन्न वैरायटी का उत्पादन करते हैं।
भारत तिलहन का बहुत बड़ा उपभोक्ता देश है, इसलिए भारत में मांग के हिसाब से तिलहन का उत्पादन नहीं होता है, जिसके कारण भारत सरकार बड़ी मात्रा में तिलहन का आयात करती है ताकि घरेलू जरूरतों को पूरा किया जा सके। इसके साथ ही भारत सरकार ज्यादा से ज्यादा तिलहन के उत्पादन पर जोर देती है ताकि आयात को कम किया जा सके और विदेशी मुद्रा बचाई जा सके। इस मामले में मध्य प्रदेश राज्य केंद्र सरकार के प्रयासों के ऊपर 100 फीसदी खरा उतरता है। मध्य प्रदेश में भारी मात्र में सोयाबीन का उत्पादन होता है, जिसकी बदौलत ही मध्य प्रदेश तिलहन उत्पादन के मामले में भारत भर में शीर्ष पर है।
तिलहन उत्पादन के साथ ही अगर दलहन की बात करें तो इस मामले में भी मध्य प्रदेश भारत भर में प्रथम स्थान रखता है। साथ ही अगर फसलों की बात करें तो गेहूं, मक्का, मसूर और तिल उत्पादन में भी मध्य प्रदेश पहला स्थान रखता है। मध्य प्रदेश की कई फसलों को केंद्र सरकार द्वारा जीआई टैग भी प्रदान किया गया है।
लगातार बढ़ रहा है फसलों का उत्पादन
मध्य प्रदेश में फसलों का उत्पादन रिकार्ड स्तर की तेजी के साथ बढ़ रहा है। यह कारक 'कृषि कर्मण अवॉर्ड' मध्य प्रदेश को दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राज्य में अब जायद की फसल का रकबा बढ़कर 12.47 साल हेक्टेयर पर पहुंच गया है। मध्य प्रदेश ने साल 2020-21 के दौरान देश में गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन किया है। इसके साथ ही अगर मूंग के उत्पादन की बात करें तो राज्य में मूंग का उपार्जन बढ़कर 9 लाख मीट्रिक टन से आगे निकल चुका है।
फसलों के साथ ही इन क्षेत्रों में भी हुआ है विकास
मध्य प्रदेश में किसानों ने फसलों के साथ-साथ पशुपालन और बागवानी क्षेत्र ने भी शानदार उपलब्धि हासिल की है। अगर राज्य में बागवानी फसलों के रकबे की बात करें तो राज्य में एक समय पर जहां बागवानी फसलों का क्षेत्रफल मात्र 4.67 लाख हेक्टेयर था, वो अब बढ़कर 25 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। राज्य में बागवानी फसलों में फलों की खेती, औषधीय पौधों की खेती और मसालों की खेती में भारी वृद्धि हुई है। बागवानी के साथ-साथ पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार किसान, पशुपालक और मछली पालकों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी कर रही है।
प्रदेश में किसानों को मिलता है अतिरिक्त आर्थिक अनुदान
मध्य प्रदेश में किसानों को मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत राज्य सरकार की तरफ से हर साल 4,000 रुपये का आर्थिक अनुदान दिया जाता है। इसके साथ ही केंद्र सरकार किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये का आर्थिक अनुदान प्रदान करती है। इस तरह से मध्य प्रदेश के किसानों को केंद्र तथा राज्य सरकार के द्वारा कुल मिलाकर प्रति वर्ष 10,000 रुपये का आर्थिक अनुदान मिलता है। केंद्र तथा राज्य सरकार की इन योजनाओं से मध्य प्रदेश के लगभग 80 लाख किसान लाभान्वित होते हैं।
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार अलग अलग तरह से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र व राज्य सरकार अलग अलग योजनाओं के तहत किसानों को भिन्न-भिन्न प्रकार की सहूलियत व सब्सिडी देकर जैविक खेती को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरह का प्रोत्साहन किसानों को दिया जा रहा है। इसी कड़ी में राजस्थान सरकार ने बड़े स्तर पर किसानों को जैविक खेती से जोड़ने के लिए तीन किसानों को सर्वश्रेष्ठ अवार्ड देने का ऐलान भी किया गया है।
किस तरीके के किसान होंगे इस योजना के लिए पात्र
राजस्थान कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ गुण राम मटोरिया बताते हैं, कि किसान, जो पांच वर्षों से कृषि उद्यानिकी फसलों में जैविक तरीके से उत्पादन कर रहे हो तथा पिछले दो वर्षों से उनके जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण हो रहा हो। वैसे किसान इस योजना के लिए पात्र होंगे या उनको इस योजना के पात्रता में वरीयता दी जाएगी। इतना ही नहीं है, इसके पात्रता के लिए मटोरिया बताते हैं, कि जिन किसानों के खेत में जैविक खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट इकाई हो या स्वयं के द्वारा तैयार किए गए जैव कीटनाशक, जैव उर्वरक का उपयोग कर फसल उगाते हों। इसके अलावा जो भी किसान जैविक खेती संबंधी कोई नया प्रयोग करता हो या फिर राजकीय संस्थान से प्रमाणित हो वह किसान भी इस अवार्ड के लिए पात्र माने जाएंगे।
गौरतलब है, कि इस अवॉर्ड के लिए इच्छुक किसान 10 दिसंबर तक आवेदन कर पाएंगे। उनके आवेदन के बाद जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम गठित की जाएगी जो जिले स्तर पर मिलने वाले आवेदन को देख कर एक किसान का चयन करेंगे। अलग अलग जिलों से इस अवॉर्ड के लिए तीन किसानों का चयन किया जाएगा। चयनित किसानों को एक-एक लाख का नकद इनाम भी दिया जाएगा।
जैविक खेती से है कई फायदे
राज्य व केंद्र सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नए-नए तकनीक ले कर आ रही है, जिससे किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं। यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसानों के द्वारा लगातार रासायनिक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम हो जाती है। जिससे किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। रासायनिक खाद के प्रयोग से उगाई गयी सब्जी व फल खाने के बाद लोगों को कई बीमारी से भी गुजरना पड़ रहा है। इसलिए केंद्र व राज्य सरकार किसान व आम लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए जैविक खेती पर काफी जोर दे रही है और इस प्रकार के कई प्रोत्साहन भी किसानों को दे रही है। जिससे किसान का जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ सके।