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सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल

सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल

किसान भाइयों खेत में खड़ी फसल जब तक सुरक्षित घर न पहुंच जाये तब तक किसी प्रकार की आने वाले कुदरती आपदा से  दिल धड़कता रहता है। किसान भाइयों के लिए खेत में खड़ी फसल ही उनके प्राण के समान होते हैं। इन पर किसी तरह के संकट आने से किसान भाइयों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। आजकल सर्दी भी बढ़ रही है। सर्दियों में शीतलहर और पाला भी कुदरती कहर ही है। कुदरती कहर के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। ओलावृष्टि, सर्दी, शीतलहर, पाला व कम सर्दी आदि की मुसीबतों से किसान भाई किस तरह से बच सकते हैं। आईये जानते हैं कि वे कौन-कौन से उपाय करके किसान भाई अपनी फसल को बचा सकते हैं।

जनवरी में चलती है शीतलहर

उत्तरी राज्यों में जनवरी माह में शीतलहर चलती है, जिसके चलते फसलों में पाला लगने की संभावना बढ़ जाती है। शीतलहर और पाले से सभी तरह की फसलों को नुकसान होता है। इसके प्रभाव से पौधों की पत्तियां झुलस जातीं हैं, पौधे में आये फूल गिर जाते हैं। फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं और जो नये दाने बने होते हैं, वे भी सिकुड़ जाते हैं। इससे किसान भाइयों को गेहूं की फसल का उत्पादन घट जाता है और उन्हें बहुत नुकसान होता है। यही वह उचित समय होता है जब किसान भाई फसल को बचा कर अपना उत्पादन बढ़ा सकते हैं क्योंकि जनवरी माह का महीना गेहूं की फसल में फूल और बालियां बनने का का समय होता है 

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कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं शीतलर व पाला से

किसान भाइयों गेहूं की फसल को शीतलहर व पाला से किस प्रकार के नुकसान हो सकते हैं, इस बारे में कृषि विशेषज्ञों ने जो जानकारी दी है, उनमें से होने वाले कुछ प्रमुख नुकसान इस प्रकार से हैं:-

  1. यदि खेत सूखा है और फसल कमजोर है तो सर्दियों में शीतलहर से सबसे अधिक नुकसान यह होता है कि पौधे बहुत जल्द ही सूख जाते हैं, पाला से इस प्रकार की फसल सबसे पहले झुलस जाती है।
  2. पाला पड़ने से पौधे ठुर्रिया जाते हैं यानी उनकी बढ़वार रुक जाती है। इस तरह से उनका उत्पादन काफी घट जाता है।
  3. शीतलहर या पाला से जिस क्षेत्र में तापमान पांच डिग्री सेल्सियश से नीचे जाता है तो वहां पर फसल का विकास रुक जाता है। वहां की फसल में दाने छोटे ही रह जाते हैं।
  4. शीतलहर से तापमान 2 डिग्री सेल्सियश से भी कम हो जाता है तो वहां के पौधे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, पत्तियां टूट सकतीं है। ऐसी दशा में बड़ी बूंदे पड़ने या बहुत हल्की ओलावृष्टि से फसल पूरी तरह से चौपट हो सकती है।



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बचाव के लिए रासायनिक व अन्य उपाय करने चाहिये

फसलों को शीतलहर से बचाने के लिए किसान भाइयों को रासायनिक एवं अन्य उपाय करने चाहिये। यदि संभव हो तो शीतलहर रोकने के लिए टटिया बनाकर उस दिशा में लगाना चाहिये जिस ओर से शीतलहर आ रही हो। जब शीतलहर को रोकने में कामयाबी मिल जायेगी तो पाला अपने आप में कम हो जायेगा।

कौन-कौन सी सावधानियां बरतें किसान भाई

किसान भाइयों को शीतलहर व पाले से अपनी गेहूं की फसल को बचाव के इंतजाम करने चाहिये। इससे किसान का उत्पादन भी बढ़ेगा तो किसान भाइयों को काफी लाभ भी होगा।  किसान भाइयों को कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिये, उनमें से कुछ खास इस प्रकार हैं:-

  1. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी के मौसम मे पाले से गेहूं की फसल को बचाने के लिए अनेक सावधानियां बरतनी पड़तीं हैं क्योंकि ज्यादा ठंड और पाले से झुलसा रोग की चपेट में फसल आ जाती है। मुलायम पत्ती वाली फसल के लिए पाला खतरनाक होता है। पाले के असर से गेहूं की पत्तियां पीली पड़ने लगतीं हैं। गेहूं की फसल को पाला से बचाने के लिए दिन में हल्की सिंचाई करें। खेत में ज्यादा पानी भरने से नुकसान हो सकता है।
  2. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान समय में कोहरा और पाला पड़ रहा है। पाले से बचाने के लिए गेहूं की फसल में सिंचाई के साथ दवा का छिड़काव करना होगा। गेहूं की फसल में मैंकोजेब 75 प्रतिशत या कापर आक्सी क्लोराइड 50 प्रतिशत छिड़काव करें।
  3. पाले से बचाव के लिए गेहूं की फसल में गंधक यानी डब्ल्यूजीपी सल्फर का छिड़काव करें। डस्ट सल्फर या थायो यूरिया का स्प्रे करें। इससे जहां पाला से बचाव होगा वहीं फसल की पैदावार बढ़ाने में भी सहायक होगा। डस्ट सल्फर के छिड़काव से जमीन व फसल का तापमान घटने से रुक जाता है और साथ ही यह पानी जमने नहीं देता है । किसान भाई डस्ट सल्फर का छिड़काव करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखें कि छिड़काव पूरे पौधे पर होना चाहिये। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक बना रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर व पाले की संभावना हो तो 15-15 दिन के अन्तराल से यह छिड़काव करते रहें।
  4. गेहूं की फसल में पाले से बचाव के लिए गंधक का छिड़काव करने से सिर्फ पाले से ही बचाव नहीं होता है बल्कि उससे पौधों में आयरन की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है, जो पौधों में रोगविरोधी क्षमता बढ़ जाती है और फसल को जल्दी भी पकाने में मदद करती है।
  5. पाला के समय किसान भाई शाम के समय खेत की मेड़ पर धुआं करें और पाला लग जाये तो तुरंत यानी अगले दिन सुबह ग्लूकोन डी 10ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। फायदा होगा।
  6. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दी के मौसम में पानी का जमाव हो जाता है जिससे कोशिकाएं फट जातीं हैं और पौधे की पत्तियां सूख जाती हैं और नतीजा यह होता है कि फसलों को भारी नुकसान हो जाता है। पालों से पौधों के प्रभाव से पौधों की कोशिकाओं में जल संचार प्रभावित हो जाता है और पौधे सूख जाते जाते हैं जिससे उनमें रोग व कीट का प्रकोप बढ़ जाता है। पाले के प्रभाव से फूल नष्ट हो जाते हैं।
  7. किसान भाई पाले से बचाव के लिए दीर्घकालीन उपाय के रूप में अपने खेत की पश्चिमी और उत्तरी मेड़ों पर शीतलहर को रोकने वाले वृक्षों को लगायें। इन पौधों में शहतूत, शीशम, बबूल, नीम आदि शामिल हैं। इससे शीत लहर रुकेगी तो पाला भी कम लगेगा और फसल को कोई नुकसान नहीं होगा।

ओलावृष्टि से पूर्व बचाव के उपाय करें किसान भाई

जैसा कि आजकल मौसम का मिजाज खराब चल रहा है। आने वाले समय में ओलावृष्टि की भी संभावना व्यक्त की जा रही है। ऐसे में गेहूं की फसल को ओलावृष्टि बचाव के उपाय किसान भाइयों को करने चाहिये। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

  1. कृषि विशेषज्ञों ने अपनी राय देते हुए बताया है कि यदि ओलावृष्टि की संभावना व्यक्त की जा रही हो तो किसान भाइयों को अपने खेतों में हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिये जिससे फसल का तापमान कम न हो सके।
  2. बड़े किसान ओला से फसल को बचाने के लिए हेल नेट का प्रयोग कर सकते हैं जबकि छोटे किसानों के पास सिंचाई ही एकमात्र सहारा है।
  3. छोटे किसानों को कृषि विशेषज्ञों ने यह सलाह दी है कि हल्की सिंचाई के बाद 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से नाइट्रोजन का छिड़काव करना चाहिये। इससे पौधे मजबूत हो जाते हैं और वो ओलावृष्टि के बावजूद खड़े रहते हैं। इसके अलावा शीत लहर में भी पौधे गिरते नहीं है।
तेज बारिश और ओलों ने गेहूं की पूरी फसल को यहां कर दिया है बर्बाद, किसान कर रहे हैं मुआवजे की मांग

तेज बारिश और ओलों ने गेहूं की पूरी फसल को यहां कर दिया है बर्बाद, किसान कर रहे हैं मुआवजे की मांग

इस साल पड़ने वाली जोरों की ठंड ने सभी को परेशान किया है। अब घर में पाले के बाद ओले से किसान बेहद परेशान हो रहे हैं। मध्य प्रदेश के छतरपुर व अन्य जिलों में चना, मटर, गेहूं, सरसों की फसलों को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा है। किसानों ने मुआवजे की मांग की है। किसानों का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पहले सूखे के कारण बिहार, छत्तीसगढ़ में किसानों की फसलें ही सूख गई थीं। इनके आस पड़ोस के राज्यों में बाढ़ ने कहर बरपाया। वहीं खरीफ सीजन के आखिर में तेज बारिश ने धान समेत अन्य फसलों को बर्बाद कर दिया। पिछले कुछ दिनों से किसान पाले को लेकर बहुत ज्यादा परेशान हैं। इस बार बारिश और उसके साथ पड़े ओले ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है। किसान मुश्किल से ही अपनी फसलों का बचाव कर पा रहे हैं। बारिश से पड़ने वाले पानी से तो किसान जैसे-तैसे बचाव कर लेते हैं। लेकिन ओलों से कैसे बचा जाए। 

मध्य प्रदेश में ओले से फसलों को हुआ भारी नुकसान

मध्य प्रदेश में ओले से कई जगहों पर फसलें बर्बाद हो गई हैं। छतरपुर में बारिश से गेहूं की फसल पूरी तरह खत्म होने की संभावना मानी गई है। इस क्षेत्र में किसानों ने सरसों, चना, दालों की बुवाई की है। अब ओले पड़ने के कारण इन फसलों को नुकसान पहुंचा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बारिश और ओले से हुए नुकसान को लेकर छतरपुर जिला प्रशासन ने भी जानकारी दी है।

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इन क्षेत्रों में चना, गेहूं को भी नुकसान

बुदेलखंड के छतरपुर जिले में बिजावर, बड़ा मल्हरा समेत अन्य क्षेत्रों में पिछले तीन दिनों में ओले पड़ना दर्ज किया गया है। इससे चना, गेहूं समेत रबी की अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचा है। किसानों से हुई बातचीत में पता चला है, कि जब तक खेती का सही ढंग से आंकलन नहीं किया जाएगा। तब तक उनकी तरफ से यह बताना संभव नहीं है, कि फसल को कितना नुकसान हुआ है। 

प्रशासन कर रहा फसल नुकसान का आंकलन

छतरपुर समेत आसपास के जिलों में ओले इतने ज्यादा गिरे हैं, कि ऐसा लगता है मानो पूरी बर्फ की चादर बिछ गई हो। किसान अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर भी काफी परेशान हो गए हैं। इसीलिए छतरपुर जिला प्रशासन ने फसल के नुकसान को लेकर सर्वे कराना शुरू कर दिया है। ताकि प्रश्नों का सही ढंग से आकलन किया जा सके और उचित रिपोर्ट कृषि विभाग को भेजी जाए। प्रशासन द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर ही किसानों को मुआवजा दिया जाएगा 

किसान कर रहे मुआवजे की मांग

लोकल किसानों से हुई बातचीत से पता चला कि इस समय में होने वाली कम बारिश गेहूं की फसल के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद है। लेकिन पिछले 3 दिन से बारिश बहुत तेज हुई है और साथ में आने वाले ओलों ने फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। किसान अपनी फसल को लेकर परेशान हैं और निरंतर सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि के कारण खराब हुआ गेहूं भी खरीदेगी सरकार, आदेश किए जारी

बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि के कारण खराब हुआ गेहूं भी खरीदेगी सरकार, आदेश किए जारी

पिछले दिनों देश भर में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने कहर बरपाया है। इसका असर उत्तर प्रदेश में भी हुआ है। जिसके चलते प्रदेश के किसानों को खासा नुकसान उठाना पड़ा है। इस मौसम परिवर्तन के कारण गेहूं की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जिससे किसान बेहद चिंतित हैं। बरसात के कारण गेहूं के दाने अपेक्षाकृत छोटे हुए हैं, इसके साथ ही गेहूं के दाने टूट भी गए हैं। जिससे किसानों को फसल बेंचने में परेशानी हो रही है। इस परेशानी को देखते हुए राज्य सरकार ने कहा है कि अब टूटे-फूटे और सिकुड़े गेहूं की भी खरीद की जाएगी, ताकि किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े। इसके साथ ही सरकार ने शर्त रखी है कि विक्रय के लिए आए गेहूं में टूटे-फूटे और सिकुड़े गेहूं का प्रतिशत 18 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। अभी तक जिस गेहूं के ढेर में 6 फीसदी से ज्यादा टूटा-फूटा और सिकुड़ा गेहूं होता था, उसे सरकार नहीं खरीदती थी। लेकिन अब सरकार ने मानकों को बढ़ा दिया है। सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि अब 18 फीसदी तक खराब गेहूं की खरीदी की जाएगी। खराब गेहूं की खरीदी के लिए उत्तर प्रदेश के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग को केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने हरी झंडी दे दी है। सरकार की ओर से कहा गया है कि यह फैसला किसानों के हितों को देखते हुए लिया गया है। यह भी पढ़ें: केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद सरकार की तरफ से कहा गया है कि खराब गेहूं के विक्रय के दौरान रेट में कटौती की जाएगी। फिलहाल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं 2125 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। अगर गेहूं 6 प्रतिशत तक खराब है तो उसके भाव में किसी भी प्रकार की कटौती नहीं की जाएगी। अगर गेहूं 6-8 प्रतिशत तक खराब है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 5.31 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से कटौती की जाएगी। 8-10 प्रतिशत तक टूटे व सिकुड़े होने पर 10.62 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती की जाएगी। इसी प्रकार 10-12 प्रतिशत पर 15.93 रुपये प्रति क्विंटल, 12-14 प्रतिशत पर 21.25 रुपये प्रति क्विंटल, 14-16 प्रतिशत पर 26.56 रुपये प्रति क्विंटल और 16-18 प्रतिशत पर 31.87 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से कटौती की जाएगी। इसके साथ ही सरकार ने कहा है कि आपदा के कारण जिस गेहूं की चमक कम हो गई है ऐसे गेहूं को भी सरकार खरीदेगी। अगर गेहूं की चमक में 10 से लेकर 80 प्रतिशत तक की कमी आई है तो उसके भाव में  5.31 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से कटौती की जाएगी। वहीं अगर गेहूं की चमक 10 फीसदी से कम खराब हुई है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य में किसी भी प्रकार की कटौती नहीं की जाएगी।
जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

जिमीकंद को सूरन या बिहार जैसे राज्य में ओल भी कहा जाता है, यह असला में गर्म जलवायु में उगाया जाने वाला पौधा है। जिसकी सब्जी से ले कर अचार तक बनाई जाती है और उत्तर भारत से ले कर दक्षिण भारत तक में इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है। यानी, अगर किसान इसकी खेती करे तो निश्चित ही उनके जीवन में आनंद आ जाएगा।

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कैसी हो मिट्टी

ओल के लिए सबसे अच्छी मिट्टी भूरभुरी दोमट मिट्टी मानी जाती है, ओल को अधिक जल जमाव वाले क्षेत्र में नहीं उगाया जाना चाहिए, इससे किसानों को नुकसान हो सकता है। 

ओल की खेती के लिए 5.5 से 7.2 तक की पीएचमान वाली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। ओल की कई किस्में बाजार में आजकल उपलब्ध हैं, किसान अपनी जरूरत के हिसाब से इसमें से कोई एक किस्म का चुनाव कर सकते हैं। 

जैसे, गजेन्द्र, एम -15, संतरागाछी, कोववयूर आदि। किसान भाइयों को अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु को ध्यान में रखते हुए ओल की किस्म का चुनाव करना चाहिए ताकि वे ओल की खेती से बेहतर कमाई कर सके।

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सूरन यानी जिमीकंद की खेती बारिश के मौसम से पहले और बाद में की जानी चाहिए, फिर भी इसकी खेती के लिए अप्रैल से जून के बीच का समाया सबसे बेहतर माना जाता है। 

किसान भाई ध्यान रखे कि, इसकी बुवाई से पहले इसके बीजों का उपचार अच्छी तरह से कर लिया गया है। खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें, ताकि खेत की मिट्टी में अच्छे से धूप लग सके। 

आप चाहे तो जुटे हुए खेत में पुरानी गोबर की खाद को डाल सकते हैं। आप ओल बोने से पहले अपने खेत में पोटाश 50 KG, 40 KG यूरिया और 150 KG डी.ए.पी. का इस्तेमाल अवश्य करें ताकि आपको बेहतर उपज मिल सके। 

बीजों को क्यारी बना कर लगाए क्योंकि ओल के पौधे होते हैं, जो अगर क्यारी में लगे हो और एक निश्चित दूरी बना कर रोप गए हो तो आपको ओल का फल अच्छे आकार का मिल सके।

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इसकी खेती में यह ध्यान रखना है, कि बरसात के समय सिंचाई नहीं करनी है। हां, सर्दी के मौसम में इसके पौधों को 15-20 दिन सिंचाई की आवश्यकता होती है। 

एक अच्छी बात यह है, कि इसके पौधे के बीच बहुत अधिक मात्रा में खर-पतवार नहीं उगते। लेकिन, फिर भी आपको इसका ध्यान रखना चाहिए, ऐसा करने से पौधों में रोग लगाने की संभावना कम हो जाती है। 

ओल के खेत के लिए आपको दस से पंद्रह क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, यूरिया, फास्फोरस और पोटाश 80:60:80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए।

बेहतर कमाई

ओल का बाजार भाव तकरीबन 30 से 50 रुपए प्रति किलो तक होता है। एक हेक्टयर में आप 70 से 80 टन ओल उगा सकते है, इस हिसाब से देखे तो किसान भाइयों को एक बेहतर कमाई का जरिया ओल के रूप में मिल सकता है। 

तो देर किस बात की, सर्दी का मौसम है, तब भी आप सिंचाई के बेहतर प्रबंधन के साथ ओल की खेती शुरू कर सकते हैं।

राजस्थान के साथ-साथ इस राज्य को भी बारिश और ओलों से हुआ भारी नुकसान

राजस्थान के साथ-साथ इस राज्य को भी बारिश और ओलों से हुआ भारी नुकसान

राजस्थान के उपरांत मध्य प्रदेश राज्य भी ओलावृष्टि से काफी प्रभावित हुआ है। राज्य में  गेहूं, सरसों के अलावा संतरा को भी बहुत हानि वहन करनी पड़ी है।  तीव्र वेग से पवन एवं अत्यधिक ओलावृष्टि की वजह से किसानों की फसल नष्ट होकर भूमि पर गिर चुकी है। विगत सीजन में किसानों को बाढ़, बारिश और सूखा का सामना करना पड़ा था। नई साल की शुरुआत में कड़ाकडाती ठंड एवं पाले की वजह से किसानों की फसलों में बेहद हानि देखने को मिली है। फिलहाल, अत्यधिक बारिश के साथ ओलावृष्टि से किसानों की फसलों को काफी नुकसान वहन करना पड़ा है। अभी तक ओलावृष्टि का कहर राजस्थान के विभिन्न जनपदों से देखने को मिल रहा है। परंतु, बाकी राज्यों में भी ओलावृष्टि की वजह से फसलों को हानि हुई है।  किसान विशेषज्ञों से मशवरा लेकर खेत में स्थित जल की जल निकासी का इंतजाम किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश राज्य में ओलावृष्टि के कारण फसलों में काफी हानि देखने को मिली है

मध्यप्रदेश राज्य के जनपद मंदसौर में बेहद ओलावृष्टि देखने को मिली है। मौसम खराब होने की वजह से यहां विगत तीन दिनों से ओलावृष्टि देखी जा रही है। ओलावृष्टि की वजह से गेहूं, संतरा, लहसुन अन्य फसलों में हानि होने की संभावना ज्यादा रहती है। मंदसौर जनपद के सीतामऊ, मल्हारगढ़ और पिपलियामंडी सहित बाकी क्षेत्रों में खूब जमकर वर्षा देखी गई है। बारिश के साथ आसमान से ओले भी पड़े हैं। इसके अंतर्गत फसलों में जल भराव हो गया है। साथ ही, तीव्र हवा एवं ओलावृष्टि की वजह से फसल भूमि पर जा गिरी है।

अगला पश्चिमी विक्षोभ 2 फरवरी से आरंभ

मौसम विभाग ने बताया है, कि "प्रेरित चक्रावतीय परिसंचरण दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान के ऊपर समुद्र तल से डेढ़ किमी की ऊंचाई तक सक्रिय है। दो फरवरी के उपरांत आगामी पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने की पूर्ण उम्मीद है"। इसके अंतर्गत आगामी दिनों के अंदर भी बात होने की पूर्ण उम्मीद है। किसानों को दिक्कत  हैं, कि इस प्रचंड वर्षा में चना, गेहूं, सरसों की फसल का संरक्षण किस प्रकार से किया जा सकता है। जल निकासी तो किसान कर रहा है। लेकिन, ओलावृष्टि एवं तेज हवाओं से संरक्षण में किसानों नाकामयाब साबित हो रहे हैं।
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सावधान अभी सर्दी गई नहीं हैं

मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, कुछ दिन धूप निकलने पर यह वहम ना पालें कि सर्दी अब नहीं रही हैं। फिलहाल, जनवरी माह चल रहा है, जिस प्रकार से पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हुआ है। उसका प्रभाव बड़े पैमाने पर देखा जा रहा है। आपको बतादें, कि बारिश, ओलावृष्टि एवं हिमालय की तरफ से आ रही शीत लहरों की  वजह से तापमान में अत्यधिक गिरावट देखने को मिली है। आगामी दिनों के अंतर्गत आपको तापमान में कमी और ज्यादा देखने को मिलेगी।
बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि ने एमपी और राजस्थान के किसानों की फसलें करदीं तबाह

बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि ने एमपी और राजस्थान के किसानों की फसलें करदीं तबाह

मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में आकस्मिक रूप से आई बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि की वजह से रायडा, तारामीरा, ईसबगोल और जीरा जैसी फसलें नष्ट हो गई हैं। होली पर्व के तुरंत उपरांत फसलों की कटाई होनी थी। इस बार किसान भाई बेहतर आमदनी की आस में बैठे थे। वर्षा और ओलावृष्टि की वजह से किसानों के समूचे अरमानों पर पानी फिर गया है। बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि की वजह से राजस्थान के किसानों को बेहद हानि का सामना करना पड़ा है। जालौर एवं बाड़मेर जनपद में बेहद कृषि रकबे में फसलों पर इसका प्रभाव देखने को मिला है। आकस्मिक आन पड़ी इस विपत्ति से निराश किसानों द्वारा केंद्र सरकार से समुचित आर्थिक मदद देकर हानि की भरपाई करने की मांग व्यक्त की है।

इतने अरब रुपये की फसल हुई तबाह

जालौर कृषि विभाग के उपनिदेशक आरबी सिंह का कहना है कि यहां सर्वाधिक इसबगोल की फसल को हानि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, इसबगोल की फसल 80 फीसद तक तबाह हो गई है। साथ ही, अरण्डी, तारामीरा, जीरा, सरसों, गेंहू की 30 फीसद फसल नष्ट हो गई है। दावे के अनुसार जनपद में 35600 हेक्टेयर में खड़ी 2.13 अरब रुपये की फसल खराब हो गई है। किसानों के समक्ष आजीविका की समस्या उत्पन्न हो गई है। ऐसे वक्त में जालोर के सरपंच संघ के जिलाध्यक्ष सुनील साहू द्वारा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर समुचित आर्थिक सहायता की मांग की है। साथ ही, बाड़मेर जनपद मुख्यालय के समीप के गांवों सहित गुड़ामालानी, सेड़वा, धोरीमन्ना, चौहटन, बायतु में बारिश एवं ओलावृष्टि से दर्जनों गांवों में किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं हैं। होली के पावन पर्व के तुरंत बाद फसलों की कटाई जरूरी थी। किसान अच्छी आय की उम्मीद लगाए इंतजार में थे। लेकिन, बेमौसम वर्षा और ओलावृष्टि की वजह से किसानों के अरमानों पर पानी फिर गया है।

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मध्य प्रदेश में भी बेमौसम बारिश बनी किसानों की मुसीबत

किसान वैसे ही कई सारी चुनौतियों से जूझते रहते हैं। वहीं, अब बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि की वजह से मध्य प्रदेश के किसानों के समक्ष भी संकट पैदा हो गया है। खेतों में खड़ी लहलहाती फसल ओलावृष्टि की वजह से मुरझा सी गई है। विभिन्न स्थानों पर फसल 80 फीसदी तक बर्बाद हो गई है। भोपाल से चिपके खजूरी कलां गांव में असमय वर्षा के चलते किसानों की गेहूं की फसल लगभग बर्बाद हो चुकी है। पीड़ित किसान फिलहाल फसल मुआवजा और फसल बीमा पर आश्रित हैं। सरकार से यही मांग की जा रही है, कि शीघ्र ही उन्हें न्यूनतम लागत के खर्च की धनराशि प्राप्त हो जाए। किसानों भाइयों का यह दर्द एमपी के विभिन्न जनपदों से भी सामने आ रहे हैं। मालवा, विदिशा एवं आगर की भी यही स्थिति है।
इस राज्य में केंद्र से आई टीम ने गुणवत्ता प्रभावित गेंहू का निरीक्षण किया

इस राज्य में केंद्र से आई टीम ने गुणवत्ता प्रभावित गेंहू का निरीक्षण किया

जैसा कि हम जानते हैं, कि मार्च माह में देश के उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान समेत बहुत सारे राज्यों में ओलावृष्टि सहित वर्षा हुई थी। इसकी वजह से लाखों हेक्टेयर के रकबे में खड़ी रबी फसल को काफी क्षति पहुंची है। अब उत्तर प्रदेश के कृषकों को चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। उनको भी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसानों के समरूप ही गेहूं खरीद में ढिलाई दी जा सकती है। दरअसल, इसके लिए यूपी के किसान भाइयों को थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। दरअसल, फसल क्षतिग्रस्त का अंदाजा लगाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से यूपी में कुछ टीमें भेजकर खेतों में हुई फसल हानि का आकलन कराया जा रहा है। उसके बाद यह टीमें सरकार के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी, जिसके उपरांत एमएसपी की घोषणा की करदी जाएगी। इसके साथ ही गेहूं खरीद में भी राहत प्रदान करने हेतु मानक निर्धारित किए जाएंगे। भारत सरकार के उपभोक्ता मामले विभाग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की तरफ से सोमवार को ही अपनी कई टीमों को उत्तर प्रदेश के कुछ जनपद में भेजी गई हैं। मंत्रालय सूत्रों के अनुसार, इन टीमों के अंतर्गत डिप्टी सेक्रेटरी के समेत बहुत सारे अधिकारी शम्मिलित हैं। यह टीमें खेतों में पहुँच कर गेहूं की फसल में हुई क्षति का आकलन करके अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रदान करेगी। इसके आधार पर मंत्रालय किसानों से गेहूं की खरीदारी करने के लिए मानक निर्धारित करेगा।

सर्वेक्षण के लिए उत्तर प्रदेश भेजी गई टीमें

मंत्रालय सूत्रों के अनुसार, विगत शनिवार को ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एमएसपी पर गेहूं की खरीद चालू करने की मांग केंद्र से की थी। इसके चलते उसने केंद्र द्वारा गेहूं खरीद में एमएसपी को लेकर मानक भी निर्धारित करने को कहा था। यही कारण है, कि केंद्र सरकार को अतिशीघ्र फसल हानि का आकलन करने हेतु उत्तर प्रदेश में अपनी टीमें भेजनी पड़ी हैं। यह भी पढ़ें: गेहूं की फसल बारिश और ओले के अलावा इस वजह से भी होगी प्रभावित दरअसल, मार्च के माह में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान समेत विभिन्न राज्यों में ओलावृष्टि के साथ-साथ बारिश हुई थी। इससे लाखों हेक्टेयर भूमि के रकबे में खड़ी रबी फसल को काफी हानि हुई है। विशेष रूप से गेहूं की फसल को सर्वाधिक हानि पहुँची है। राजस्थान राज्य में 3 लाख हेक्टेयर में खड़ी गेहूं की फसल को बेमौसम बारिश से काफी हानि पहुंची है। इसकी वजह से गेहूं की गुणवत्ता भी काफी प्रभावित हुई है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में गेहू खरीद के नियमों में ढील प्रदान की गई है।

एमएसपी में कितने रुपए की कटौती की जाएगी

मतलब कि इन राज्यों में बारिश से गुणवत्ता प्रभावित गेहूं को भी एमएसपी पर खरीदा जाएगा। यदि इन तीनों प्रदेशों में गेहूं के दाने 6 फीसद से कम टूटे हुए मिलते हैं, उस स्थिति में एमएसपी में किसी प्रकार की कोई कटौती नहीं की जाएगी। यदि गेहूं के दाने 16 से 18 प्रतिशत के मध्य बेकार मिलते हैं, तब एमएसपी में 31.87 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से कटौती की जाएगी।

गुणवत्ता प्रभावित गेंहू के लिए मानक भी निर्धारित किए गए

इन सब बातों का सीधा सा मतलब है, कि रिपोर्ट पेश होने के उपरांत उत्तर प्रदेश के लिए भी केंद्र सरकार गेहूं खरीद के नियमों में ढ़िलाई प्रदान कर सकती है। इसके उपरांत यहां के किसान भाई भी पंजाब व हरियाणा की तर्ज पर गुणवत्ता प्रभावित गेहूं को तय मानक के अनुरूप बेच सकते हैं। जानकारी के लिए आपको बतादें, कि केंद्र सरकार की तरफ से किसानों की दिक्कतों को कम करने हेतु खराब गुणवत्ता वाले गेहूं की भी खरीद करने हेतु सरकारी एजेंसियों को निर्देश जारी किए गए हैं। साथ ही, इसके लिए मानक भी निर्धारित कर दिए गए हैं।
फलों का राजा कहलाने वाले आम को बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से लाखों का हुआ नुकसान

फलों का राजा कहलाने वाले आम को बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से लाखों का हुआ नुकसान

जैसा कि हम जानते हैं, कि किसानों की जिंदगी कठिनाइयों और समस्याओं से भरी रहती है। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी फसल का समुचित मूल्य ना मिल पाना। इतना ही नहीं मौसमिक अनियमितता के चलते किसानों की फसल कीट एवं रोगों की भी काफी हद तक ग्रसित होने की आशंका रहती है। बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि की मार पड़ रही है। उत्तर प्रदेश एवं ओड़िशा सहित बहुत सारे राज्यों में बारिश की वजह से किसानों की आम की फसलें काफी हद तक चौपट हो चुकी है। बेमौसम बरसात ने किसान भाइयों की फसल को काफी हद तक हानि पहुंचाई है। किसानों का लाखों का नुकसान होने के चलते किसान बेहद दुखी दिखाई दे रहे हैं। वर्तमान में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश से लेकर बाकी राज्यों में बारिश की वजह से गेहूं, सरसों की फसल को नुकसान हुआ था। परंतु, सिर्फ अनाज एवं सब्जियां ही नहीं, फलों को भी मोटा नुकसान हुआ है। भारत के विभिन्न राज्यों में बेमौसम बारिश के साथ ओलावृष्टि से आम काफी क्षतिग्रस्त हुआ है। किसान प्रदेश सरकार से मुआवजे की गुहार कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में भी आम के बागों पर काफी बुरा असर पड़ा है

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में आम के बागों पर बारिश के साथ ओलावृष्टि का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि इस मौसम में चित्रकूट में आम के पेड़ों पर बौर दिखाई देने लगती थी। हालाँकि, परिवर्तित एवं खराब हुए मौसम के चलते आम के पेड़ों से बौर ही छिन सी गई है। बेमौसम बारिश की वजह जो नमी उत्पन्न हुई है। इससे आम के फल में रोग भी आने लग गया है। स्थानीय किसानों का कहना है, कि बेमौसम बारिश की वजह 4 से 5 लाख रुपये की हानि हुई है।

ओड़िशा में भी आम की फसल चौपट हो गई है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ओड़िशा में भी बारिश का प्रभाव आम पर देखने को मिल रहा है। ओडिशा के अंदर पूर्व में हुई बेमौसम बारिश एवं हाल ही में हुई अचानक तापमान में वृद्धि की वजह से आम की पैदावार काफी बुरी तरह प्रभावित हुई है। प्रदेश के कोरापुट जनपद में 70 प्रतिशत तक आम की फसल खराब हो गयी है। व्यापारी प्रदेश की खपत पूर्णतय सुनिश्चित करने के लिए अन्य राज्यों से आम मंगा रहे हैं। सेमिलीगुडा, लक्ष्मीपुर, कुंद्रा, दसमंतपुर, जेपोर और बोरिगम्मा क्षेत्रों में भी आम की फसल काफी ज्यादा प्रभावित हुई है। व्यापारियों ने बताया है, कि इस वर्ष प्रदेश में कम खपत का अंदाजा है। इसी वजह से आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ से भी व्यापारी आम खरीद रहे हैं। ये भी पढ़े: अल्फांसो आम की पैदावार में आई काफी गिरावट, आम उत्पादक किसान मांग रहे मुआवजा

बेमौसम बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि ने किसान की उम्मीदों पर पानी फेर दिया

विगत कई वर्षों से किसानों को मौसमिक मार की वजह से काफी नुकसान वहन करना पड़ रहा है। इस संबंध में किसानों का कहना है, कि इस बार उन्हें अच्छी फसल उपज की संभावना थी। लेकिन बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से किसानों की उमीदों पर पानी फिर गया है। फसलों को कुछ कच्चा काटा जा सकता है। लेकिन, आम की भौर का किसान कुछ कर भी नहीं सकते हैं। ऐसी स्थिति में किसानों की हुई हानि की भरपाई नहीं हो सकेगी।
मध्य प्रदेश में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से केले की फसल बर्बाद, किसान मुआवजे की गुहार कर रहे हैं

मध्य प्रदेश में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से केले की फसल बर्बाद, किसान मुआवजे की गुहार कर रहे हैं

अचानक आई बेमौसम, बारिश की वजह से किसानों की फसलों को काफी हानि पहुंची है। मध्य प्रदेश में बारिश और ओलावृष्टि के चलते किसानों को काफी नुकसान हुआ है। किसान आर्थिक मुआवजे की मांग कर रहे हैं। बेमौसम, बारिश से किसानों को होने वाली हानि रुकने का नाम नहीं ले रही है। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने गेहूं और सरसों की फसलों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त किया है। साथ ही, गेहूं, सरसों के अतिरिक्त बाकी फसलें भी प्रभावित हुई है। उत्तर प्रदेश और बिहार में लीची, टमाटर और आम सहित विभिन्न फसलों को क्षति पहुँचने की खबरें सामने आई हैं। मध्य प्रदेश से भी एक ऐसी ही फसल क्षति होने की बात सामने आ रही हैं। किसान सहायता की आशा भरी निगाहों से सरकार की तरफ देख रहे हैं।

मध्य प्रदेश में केला, प्याज की फसल को भारी नुकसान हुआ है

मीडिया की खबरों के मुताबिक, मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में बारिश और ओलावृष्टि की वजह से कृषकों को ज्यादा हानि हुई है। ओलावृष्टि के साथ तेज आंधी की वजह हल्दी, केला और प्याज की फसलें गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। किसानों की हुई फसल क्षति को देखते हुए जिला प्रशासन की तरफ से सर्वे कराने की मांग की है।

केले की फसल क्षति के लिए मुआवजे की गुहार कर रहे किसान

स्थानीय किसान राज्य सरकार से केले की फसलों को हुई क्षति की मांग कर रहे हैं। स्थानीय किसानों ने बताया है, कि विगत 3 सालों से केले की फसल का बीमा तक भी नहीं हो सका है। जो कि अतिशीघ्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसानों को हुए फसल हानि को ढाई लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए। इससे किसानों को अच्छी-खासी राहत मिल सकेगी। ये भी पढ़े: केले की खेती करने वाले किसान दें ध्यान, नही तो बढ़ सकती है मुसीबत: वैज्ञानिक

राज्य सरकार ने सर्वे कराने के निर्देश जारी किए

राज्य सरकार के स्तर से किसानों की समस्याओं को देखते हुए सर्वेक्षण करावाना चालू कर दिया है। कृषि विभाग एवं उद्यानिकी विभाग की एक ज्वाइंट टीम हुए फसलीय क्षति का आंकलन करने में लगी हुई है। टीमों के स्तर से सर्वे का काम तेज कर दिया गया है। वहीं, मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में बड़ी संख्या में किसान केले की खेती करते हैं। ऐसे में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से इन्ही किसानों को भारी क्षति हुई है। वहीं, बड़ी तादात में किसान ऐसे भी हैं, जोकि यह आरोप लगा रहे हैं, कि उनकी फसलों को काफी ज्यादा क्षति पहुँची है। लेकिन, सर्वे वाली टीम फसलीय क्षति का आंकलन काफी कम दिखा रही है।
मूसलाधार मानसूनी बारिश से बागवानी फसलों को भारी नुकसान

मूसलाधार मानसूनी बारिश से बागवानी फसलों को भारी नुकसान

भारत के कई राज्यों में अत्यधिक मानसूनी बारिश ने किसानों की फसलों को हानि पहुंचाई है। मानसूनी बारिश के चलते हिमाचल प्रदेश के किसानों की फसलों को भी काफी प्रभावित किया है। बतादें, कि सोलन जनपद में कई हैक्टेयर में लगी सब्जियों की फसल चौपट हो गई है। सावन के दस्तक देते ही भारत के विभिन्न राज्यों में अच्छी खासी बारिश ने हाजिरी दे दी है। बतादें, कि भारत की राजधानी समेत विभिन्न राज्यों में विगत कई दिनों से मूसलाधार बरसात हो रही है। इसके चलते विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश में नदी नाले उफान पर आ चुके हैं। साथ ही, खेतों में जलभराव की स्थिति पैदा हो चुकी है। वहीं, मूसलाधार बारिश होने की वजह से धान की खेती करने वाले किसान बेहद खुश हैं, तो बागवानी एवं सब्जी उगाने वाले किसानों के लिए यह बरसात मुसीबत बन चुकी है। निरंतर हो रही इस बारिश की वजह से शिमला मिर्च, हरी मिर्च, फूलगोभी और टमाटर समेत विभिन्न प्रकार की हरी सब्जियों को भारी हानि पहुंची है। इससे किसान भाइयों को आर्थिक तौर पर हानि उठानी पड़ी है।

मुरादाबाद में किसानों को भारी नुकसान

यदि हम बात उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की करें तो यहां पर बारिश के चलते हरी सब्जियों की खेती करने वाले किसान काफी दुखी नजर आ रहे हैं। खेत में पानी भर जाने की वजह से भिंड़ी, लौकी और खीरा समेत विभिन्न प्रकार की फसल बर्बाद हो गई। परंतु, सबसे ज्यादा हानि हरी मिर्च की खेती करने वाले किसानों को वहन करनी पड़ी है। किसानों का कहना है, कि इस साल हरी मिर्ची की फसल अच्छी हुई थी। ऐसे में उनको आशा थी कि हरी मिर्च बेचकर उन्हें अच्छी खासी आमदनी होगी। परंतु, बारिश ने उनके सारे सपनों चकनाचूर कर दिया। ये भी पढ़े: बेमौसम बरसात या ओलावृष्टि से फसल बर्बाद होने पर KCC धारक किसान को मिलती है ये सुविधाएं

बागवानी फसलों को काफी हानि पहुंची है

यह कहा जा रहा है, कि जिले के मिर्च उत्पादक किसानों को बरसात की वजह से काफी हानि वहन करनी पड़ी है। वर्तमान में किसान फसल बर्बादी से हताश होकर सरकार के आगे मुआवजे की मांग कर रहे हैं। मुरादाबाद के देवापर के सैनी वाली मिलक में बारिश होने की वजह से कृषकों की कई लाख रूपए की हरी मिर्च की फसल चौपट हो गई है। इसी प्रकार शामली जनपद में भी बारिश के चलते टमाटर, लौकी, तोरी और हरी मिर्च की फसल चौपट हो गई है।

अधिकारियों को हानि का आँकलन करने के निर्देश दिए गए हैं

हिमाचल प्रदेश में भी मूसलाधार बारिश से किसानों को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। सोलन जनपद में कई हेक्टेयर में लगी सब्जियों की फसल बर्बाद हो गई। इससे सैकड़ों किसानों को लाखों रुपये की आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है। ज्यादा बारिश से टमाटर और शिमला मिर्च की फसल खेतों में तैर गईं। साथ ही, पानी में निरंतर भिंगने के चलते टमाटर और शिमला मिर्च सड़ने भी लगे हैं। किसानों का कहना है, कि बारिश से जनपद में 30% फसल बर्बाद हो चुकी है। इसी कड़ी में किसानों की मांग पर नुकसान का आकलन करने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। ये भी पढ़े: ओलावृष्टि और बारिश से किसानों की फसल हुई बर्बाद

किसानों को वर्ष भर में करोड़ों की हानि

बतादें, कि सोलन जनपद में 5800 हेक्टेयर में किसान टमाटर की खेती करते हैं। सोलन जनपद में टमाटर से वार्षिक 80 करोड़ रुपये का व्यवसाय होता है। उधर, इसी तरह यहां के किसान वर्ष में 26290 क्विंटल शिमला मिर्च की पैदावार करते हैं, जिसे बेचकर 41.20 करोड़ रुपये की आमदनी होती है। यदि बारिश से 30 प्रतिशत फसल बर्बाद हो जाती है, तो किसानों को करोड़ों रुपये की हानि हो सकती है।
सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका 

सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका 

सूरन में फफूंद एवं बैक्टेरिया जनित रोग लगते हैं, इनसे बचाव के तरीकों के विषय में जानने के लिए आप इस लेख को अवश्य पढ़ें। सूरन की खेती भारत के काफी इलाकों में की जाती है। 

इसे खाने के साथ-साथ एक औषधीय फसल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में इसे ओल के नाम से भी जाना जाता है। इस फसल से अच्छी उपज पाने के लिए पौधों का विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।

सामान्यतः ऐसी फसलों में विभिन्न प्रकार के रोगों और बीमारियों के लगने का संकट रहता है। यह रोग फसल की पैदावार को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।

सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनका संरक्षण

सूरन में फफूंद एवं बैक्टेरिया जनित रोग लगते है। इसके लिए फसल की समयानुसार देखभाल की जरूरत होती है। फसल की बेहतरीन उपज और बेहतर मुनाफा के लिए हमें इनको रोगों से बचाना बेहद जरूरी होता है। 

हम इस लेख के जरिए से आपको सूरन में लगने वाले रोग और उनके बचाव की प्रक्रिया के विषय में बताने जा रहे हैं।

झुलसा रोग

यह एक जीवाणु जनित रोग है। इसका आक्रमण पौधों पर सितम्बर माह के दौरान होता है। यह सूरन की पत्तियों को खा जाता है, जिससे पौधे की पत्तियों का रंग हल्का भूरा हो जाता है। 

कुछ दिन के पश्चात पत्तियां गिरने लगती हैं और पौधों की उन्नति रुक जाती है। इससे संरक्षण के लिए सूरन के पौधे पर इंडोफिल और बाविस्टीन के घोल को समुचित मात्रा मे पौधों की पत्तियों पर छिड़काव करते रहना चाहिए।

तना गलन

यह रोग जलभराव युक्त क्षेत्रों में देखा जाता है। इस तरह के रोग अत्यधिक बरसात वाले स्थानों पर होते हैं। इसके रोकथाम का सबसे बड़ा तरीका यह है, कि आप पेड़ के आस-पास जल भराव के हालात बिल्कुल ही उत्पन्न न होने दें। 

इकट्ठा होने वाला पानी पेड़ो की जड़ों में गलन पैदा करता है, जिस वजह से पौधे कमजोर होकर नीचे गिरने लगते हैं। पौधे के तने को सड़ने से बचाने के लिए इसकी जड़ों पर कैप्टन नाम की दवा का छिड़काव करना चाहिए। 

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तम्बाकू सुंडी

सूरन में लगने वाला यह एक कीट जनित रोग है। इस तम्बाकू सुंडी कीट का लार्वा काफी ज्यादा आक्रमक होता है। इसके लार्वा का रंग हल्का सफेद होता है। यह पौधों की पत्तियों को आहिस्ते-आहिस्ते खाकर खत्म करने लगता है। 

इन कीटों के लगने का समय जून से जुलाई माह के मध्य होता है। सूरन के पौधों पर लगने वाले इस रोग से संरक्षण हेतु मेन्कोजेब, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड एवं थायोफनेट की समुचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए।

किसान सूरन का कितना उत्पादन कर सकते हैं

बतादें, कि एक हेक्टेयर के खेत में 80 से 90 टन सूरन की उपज की जा सकती है। बाजार में इसकी कीमत 3000 रूपए प्रति क्विटल है। किसान भाई इसकी प्रति एकड़ में खेती कर 4 से 5 लाख रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं। 

सूरन की फसल बुआई के तकरीबन आठ से नौ माह में तैयार होती है। जब इन पौधों की पत्तियाँ सूख कर पीली पड़ने लगें तो इसकी खुदाई की जाती है। 

सूरन को जमीन से निकालने के उपरांत बेहतर ढ़ंग से मृदा तैयार कर दे और दो से चार दिन के लिए धूप में सूखा लें। धूप लगने से सूरन की जीवनावधि बढ़ जाती है। आप इसे किसी हवादार स्थान पर रख कर अगले 6 से 7 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं।