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कटहल

कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

किसान भाइयों बहुत पुराने जमाने से एक कहावत चली आ रही है कि कटहल की खेती कभी गरीब नहीं होने देती यानी इसकी खेती से किसान धनी बन जाते हैं। 

वैसे तो इसे भारतीय जंगली फल या सब्जी कहा जाता है। इसके अलावा कटहल को मीट का विकल्प कहा जाता है। इसके कारण बहुत से लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। 

इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है कि ये कटहल अनेक बीमारियों में फायदा करता है। किसान भाइयों के लिए कटहल की खेती अब लाभकारी हो गयी है। 

इसका कारण यह है कि कटहल के कई ऐसी भी किस्में आ गयीं हैं जिनमें साल के बारहों महीने फल लगते हैं। इससे किसानों को पूरे साल कटहल से आमदनी मिलती रहती है। 

इसलिये किसानों के लिए कटहल की खेती नकदी फसल की तरह बहुत ही लाभकारी है।

कटहल से मिलने वाले लाभ

  1. कटहल में विटामिन ए, सी, थाइमिन, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, जिंक आदि पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं
  2. कटहल का पल्प का जूस हार्ट की बीमारियों में लाभदायक होता है
  3. कटहल की पोटैशियम की मात्रा अधिक पायी जाती है जिससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है
  4. रेशेदार सब्जी व फल होने के कारण कटहल से एनीमिया रोग में लाभ मिलता है
  5. कटहल की जड़ उबाल कर पीने से अस्थमा रोग में लाभ मिलता है
  6. थायरायड रोगियों के लिए भी कटहल काफी लाभकारी होता है
  7. कटहल से हड्डियों को मजबूत करता है आॅस्टियोपोरोसिस के रोगों से बचाता है
  8. कटहल में विटामिन ए और सी पाये जाने के कारण वायरल इंफेक्शन में लाभ मिलता है
  9. अल्सर, कब्ज व पाचन संबंधी रोगों में भी कटहल फायदेमंद साबित होता है
  10. कटहल में विटामिन ए पाये जाने के कारण आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
कटहल से मिलने वाले लाभ
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व्यावसायिक लाभ

कटहल के उत्पादन से व्यावसायिक लाभ भी मिलते हैं। कटहल को हरा व पक्का बेचा जा सकता है। इसके हरे कटहल की सब्जी बनायी जाती है। 

इसके अलावा इसका अचार, पापड़ व जूस भी बनाया जाता है। कटहल का फल तो लाभकारी है और इसकी जड़ भी कई तरह की दवाओं के काम आती है।

कटहल की खेती किस प्रकार से की जाती है

आइये जानते हैं कि बहुउपयोगी कटहल की खेती या बागवानी कैसे की जाती है। इसके लिए आवश्यक भूमि, जलवायु, खाद, सिंचाई आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं।

मिट्टी एवं जलवायु

कटहल की खेती वैसे तो सभी प्रकार की जमीन में हो जाती है लेकिन दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त बताई जाती है। कटहल की खेती पीएच मान 6.5 से 7.5 वाली मृदा में भी की जा सकती है।

रेतीली जमीन में भी इसकी खेती की जा सकती है। समुद्र तल से 1000 मीटर ऊंचाई वाली पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। जलभराव वाली जमीन में इसकी खेती से परहेज किया जाता है क्योंकि जलजमाव से कटहल की जड़ें गल जातीं हैं तथा पौधा गिर जाता है। 

कटहल की खेती शुष्क एवं शीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में आसानी से की जा सकती है। कटहल की खेती अत्यधिक सर्दी बर्दाश्त नहीं कर पाती है। 

दक्षिण भारत में कटहल की खेती अधिक होती है। इसके अलावा असम को कटहल की खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

कटहल की उन्नत किस्में

कटहल की उन्नत किस्मों में खजवा, गुलाबी, रुद्राक्षी, सिंगापुरी, स्वर्ण मनोहर, स्वर्ण पूर्ति, नरेन्द्र देव कृषि विश्वाविद्यालय की एनजे-1, एनजे-2, एनजे-15 एनजे-3 व केरल कृषि विवि की मुत्तम वरक्का प्रमुख हैं।

कटहल की खेती किस प्रकार से की जाती है

कटहल की रोपाई कैसे करें

कृषक बंधुओं को खेत या बाग की भूमि की अच्छी तरह से जुताई करके और पाटा करके समतल और भुरभुरी बना लेना चाहिये। उसके बाद 10 मीटर लम्बाई चौड़ाई में एक मीटर लम्बाई चौड़ाई और गहराई के थाले बना लेने चाहिये। 

प्रत्येक थालों के हिसाब से 20 से 25 किलो गोबर की खाद व कम्पोस्ट तथा 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500 पोटाश, 1 किलोग्राम नीम की खली तथा 10 ग्राम थाइमेट को डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लें।

रोपाई दो तरह से होती है

कटहल की रोपाई दो तरह से होती है। पहला बीजू और दूसरा कलमी तरीका होता है। बीजू रोपाई करने के लिए 40 एमएम की काली पॉलीथिन में पके हुए फल का बीज गोबर की खाद और रेत मिलाकर दबा देना चाहिये। 

दूसरे कलम की पौध नर्सरी से लाकर थाले के बीच एक फूट लम्बे चौड़े और डेढ़ फुट का गहरा गड्ढा बनाकर उसमें लगा देना चाहिये।

रोपाई का समय

रोपाई का सबसे अच्छा समय वर्षाकाल माना जाता है। वर्षाकाल में रोपाई करने से पानी की व्यवस्था अलग से नहीं करनी होती है। कटहल के पौधों की रोपाई करने का सबसे उपयुक्त समय अगस्त सितम्बर का होता है।

सिंचाई प्रबंधन

वर्षा के समय पौधों की रोपाई करने के बाद सिंचाई का विशेष ध्यान रखन होगा। यदि वर्षा हो रही है तो कोई बात नहीं यदि वर्षा न होतो प्रत्येक सप्ताह में सिंचाई करते रहना चाहिये। 

सर्दी के मौसम में प्रत्येक 15 दिन में सिंचाई करना आवश्यक होता है। दो से तीन साल तक पौधों की सिंचाई का विशेष ध्यान रखन होता है। जब पेड़ में फूल आने की संभावना दिखे तब सिंचाई नहीं करनी चाहिये।

पौधों की विशेष निगरानी

कटहल का पौधा लगाने के एक साल बाद तक विशेष निगरानी करते रहना चाहिये। समय समय पर थाले की निराई गुड़ाई करते रहना चाहिये। 

अगस्त सितम्बर माह में खाद व उर्वरक का प्रबंधन करते रहना चाहिये। इसके अलावा समय-समय पर सिंचाई की भी देखभाल करते रहना चाहिये। इसके अलावा पौधों की बढ़वार के लिए समय-समय पर कांट छांट भी की जानी चाहिये।

जड़ से पांच-छह फीट तक तनों व शाखाओं को काट कर पेड़ को सीधा बढ़ने देना चाहिये। उसके बाद चार-पांच तनों को फैलने देना चाहिये। इस तरह से पेड़ का ढांचा अच्छी तरह से विकसित हो जाता है तो अधिक फल लगते हैं।

खाद व उर्वरक प्रबंधन

कटहल के पेड़ में प्रत्येक वर्ष फल आते हैं, इसलिये अच्छे उत्पादन के लिए पेड़ों को खाद व उर्वरक उचित समय पर पर्याप्त मात्रा में देना चाहिये। 

प्रत्येक पौधे को 20 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 100 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ष बरसात के समय देना चाहिये। 

जब पौधों की उम्र 10 वर्ष हो जाये तो खाद व उर्वरकों की मात्रा बढ़ा देनी चाहिये। उस समय प्रति पौधे के हिसाब से 80 से 100 किलो तक गोबर की खाद, एक किलोग्राम यूरिया, 2 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा एक किलो पोटाश देना चाहिये।

कीट-रोग व रोकथाम

कटहल की खेती में अनेक प्रकार के कीट एवं रोग व कीटजनित रोग लगते हैं। उनकी रोकथाम करना जरूरी होता है। आइये जानते हैं कीट प्रबंधन किस तरह से किया जाये। 

1. माहू : कटहल में लगने वाला माहू कीट पत्तियों, टहनियों, फूलों व फलों का रस चूसते हैं। इससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है। 

जैसे ही इस कीट का संकेत मिले। वैसे ही इमिडाक्लोप्रिट 1 मिलीलीटर को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।

2. तना छेदक: इस कीट के नवजात कीड़े कटहल के मोटे तने व डालियों मे छेद बनाकर घुस जात हैं और अंदर ही अंदर पेड़ को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे पेड़ सूखने लगता है तथा फसल पर विपरीत असर पड़ने लगता है। 

इसका पता लगते ही पेड़ में दिखने वाले छेद को अच्छी तरह से किसी पतले तार आदि से सफाई करना चाहिये फिर उसमें नुवाक्रान का तनाछेदक घोल 10 मिलीलीटर एक लीटर पेट्रोल या करोसिन में मिलाकर तेल की चार-पांच बूंद रुई में डालकर छेद को गीली चिकनी मिट्टी से बंद कर दें तो लाभ होगा। 

3. गुलाबी धब्बा : इस रोग से पत्तियों में नीचे की ओर से गुलाबी रंग का धब्बा बनने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर जनित फफूंदनाशी कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर 3 मिली लीटर को प्रति लीटर पानी में मिलकार छिड़काव करना चाहिये। 

4. फल सड़न रोग: यह एक फफूंदी रोग। इस रोग के लगने के बाद कोमल फलों के डंठलों के पास धीरे-धीरे सड़ने लगता है। 

इसकी रोकथाम के लिए ब्लू कॉपर के 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल का छिड़काव तुरन्त करें और उसके 15 दिन बाद दुबारा छिड़काव करने लाभ मिलता है। 

यदि इसके बाद भी लाभ न मिले तो एक बार फिर छिड़काव कर देना चाहिये।

कटहल के फल की तुड़ाई कब और कैसे करें

कटहल का फल साधारण तौर पर फल लगने के 100 से 120 दिन के बाद तोड़ने के लायक हो जाता है। 

फिर भी जब इसका डंठल तथा डंठल से लगी पत्तियों का रंग बदल जाये यानी हरा से हल्का भूरा या पीला हो जाये और फल के कांटों का नुकीलापन कम हो जाये तब किसी तेज धार वाले चाकू से दस सेंटीमीटर डंठल के साथ तोड़ लेना चाहिये। 

यदि फल काफी ऊंचाई से तोड़ रहे हैं तो उसे रस्सी के सहारे नीचे उतारना चाहिये वरना जमीन पर गिर जाने से फल खराब हो सकता है।

पैदावार

कटहल के बीज से बोई गई खेती में फसल 7 से 8 वर्ष में फल आने लगते हैं और कलम से लगाई गई खेती में 5 से 6 साल में फल आने लगते हैं। 

यदि अच्छी तरह से देखभाल की जाये तो एक वृक्ष से 4 से 5 क्विंटल कटहल आसानी से पाया जा सकता है। यदि एक हेक्टेयर में 150 से 200 पौधे लगाये गये हैं तो इससे प्रतिवर्ष 3 से 4 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। 

दूसरे वर्ष इसकी फसल में कोई लागत नही लगती है और फसल इससे अधिक होती है।

वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई कटहल की इस नई किस्म से किसानों को होगा लाभ

वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई कटहल की इस नई किस्म से किसानों को होगा लाभ

आईआईएचआर-बेंगलुरु के वैज्ञानिकों को यह कटहल हाल ही में बेंगलुरु के ही बाहरी क्षेत्रों के एक किसान नागराज के खेत में ही मिला। ये फसल अपने असाधारण स्वाद एवं पोषण मूल्यों के लिए जाना जाता है। भारत में किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए यहां के कृषि वैज्ञानिक दिन-रात कड़ा परिश्रम करते हैं। दरअसल, भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की अधिकांश आबादी आज भी खेती किसानी पर निर्भर रहती है। इसके चलते सरकार भी इस फिराक में रहती है, कि किसानों को किसी भी स्थिति में इतनी सहायता पहुंचाई जा सके, जिससे कि उनकी रोजी रोटी सहजता से चलती रहे। यही वजह है, कि वैज्ञानिकों ने अब एक नए किस्म के कटहल की खोज की है, आइए आज हम आपको इसके लाभ बताते हैं। बतादें कि कृषि वैज्ञानिकों की वजह से ही आज खेती किसानी काफी विकासित हुई है।

वैज्ञानिकों को मिला कटहल कैसा दिखता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह नई कटहल भी किसी सामान्य कटहल की तरह खाने वाला कटहल ही है। परंतु, ये नया कटहल व्यावसायिक प्रसंस्करण के लिए अत्यंत ज्यादा अनुकूल है। इस नए कटहल को सिद्दू और शंकरा कहा जाता है। इसे मिलाकर अब तक वैज्ञानिकों ने कटहल की तीन किस्मों की खोज कर ली है। ये तीनों किस्में भारत के अंदर पाई जाती हैं। सबसे मुख्य बात यह है, कि अब तक व्यावसायिक तौर पर केवल दो किस्मों का ही उत्पादन होता था। परंतु, नई किस्म मिलने के उपरांत अब तीन किस्मों की पैदावार की जा सकेगी। ये भी पढ़े: कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

वैज्ञानिकों को यह नए किस्म का कटहल कहाँ मिला है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आईआईएचआर-बेंगलुरु के वैज्ञानिकों को ये कटहल हाल ही में बेंगलुरु के ही बाहरी इलाके के एक किसान नागराज के खेत में मिला। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह फसल अपने असाधारण स्वाद के साथ-साथ पोषण मूल्यों के लिए भी जानी जाती है। इस नई किस्म के साथ सबसे उत्तम बात यह है, कि इसकी पैदावार अन्य किस्मों से कहीं अधिक होती है। ये भी पढ़े: कटहल के फल गिरने से रोकथाम सबसे विशेष बात यह है, कि इस नए किस्म की एक कटहल का वजन तकरीबन 25 से 32 किलोग्राम तक होता है। अर्थात यदि आप कटहल की खेती कर के उससे मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो ये नई किस्म आपके लिए सर्वाधिक अनुकूल है। वैज्ञानिकों का कहना है, कि वह किसान नागराज के साथ एक समझौता कर रहे हैं। साथ ही, कटहल की इस नवीन किस्म को और बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यदि सब कुछ अच्छा रहा तो कुछ वर्षों में ही यह नया कटहल पूरे भारत में लगने लगेगा और प्रति वर्ष किसानों को मोटा मुनाफा प्रदान करेगा।
पोषक तत्वों से भरपूर कटहल की खेती आपकी किस्मत चमका सकती है

पोषक तत्वों से भरपूर कटहल की खेती आपकी किस्मत चमका सकती है

कटहल की खेती कर कृषक भाई बेहतरीन मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। किसान भाई महज एक हेक्टेयर खेत में ही 150 कटहल के पौधे रोप सकते हैं। आलू-प्याज की खेती कर के बोर हो चुके कृषक भाइयों के लिए यह फायदेमंद समाचार है। जो किसान कृषि क्षेत्र में कुछ अलग करना चाहते हैं। वह जैकफ्रूट मतलब की कटहल की खेती कर शानदार मुनाफा पा सकते हैं। कटहल का उपयोग सब्जी एवं फल दोनों ही रूप में किया जाता है। बहुत से घरों में तो इसका अचार भी डाला जाता है, जो कि सेवन में काफी स्वादिष्ठ होता है। कटहल बाजार में भी काफी मांग में रहने वाली सब्जियों में शुमार है।

कटहल के अंदर भरपूर मात्रा में मिनरल पाए जाते है

कटहल में विटामिन एवं मिनरल काफी भरपूर मात्रा होते हैं। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी 6, नियासिन की भांति बहुत सारे विटामिन मिलते हैं। इसके साथ-साथ कटहल में फास्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, आयरन, पोटैशियम और जिंक जैसे मिनरल्स भी मौजूद होते हैं। कटहल को सदाबहार फसल के नाम से भी जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि इसकी खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है। केरल, कर्नाटक, यूपी, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त भी बहुत से अन्य राज्यों में कटहल की खेती की जाती है। दोमट मृदा को कटहल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है, कि कटहल के खेत में जल निकासी की बेहतरीन व्यवस्था होनी आवश्यक है।

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कृषक भाइयों के लिए खेत की बेहतर जुताई आवश्यक

कृषक भाई कटहल की खेती करने से पूर्व खेत की बेहतरीन ढ़ंग से जुताई कर लें। बतादें कि खाद के तौर पर खेत में गोबर डालें। अब एक समान फासले पर गड्ढे खोदकर कटहल के पौधे लगा दें। दरअसल, 15 दिन हो जाने के उपरांत कृषक भाई खेत की सिंचाई करें। किसान खाद के रूप में वर्मी कंपोस्ट एवं नीम की खली का भी उपयोग कर सकते हैं।

एक हेक्टेयर में कितने पौधे लगाए जाते हैं

अगर आप अपने बाग में बीज समेत कटहल की खेती कर रहे हैं, तो 6 साल में फल आने चालू हो जाएंगे। उधर गूटी तरीके से खेती करने पर काफी कम वक्त में ही कटहल के बाग में फल आ जाते हैं। एक हेक्टेयर में कटहल के लगभग 140 से लेकर 150 तक पौधे रोपे जाते हैं। कृषक भाई एक हेक्टेयर भूमि में ही कटहल की खेती कर लाखों रुपये की आमदनी कर सकते हैं।
कटहल के फल गिरने से रोकथाम

कटहल के फल गिरने से रोकथाम

कटहल (Jackfruit) के फल गिरना सामान्य है, लेकिन बहुत अधिक बूंदों को कम किया जा सकता है।



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1. अक्टूबर नवंबर के दौरान पर्याप्त पानी होना चाहिए और यदि आप व्यावसायिक खेती करने जा रहे हैं, तो आपको पर्याप्त उर्वरक लगाना चाहिए। 2. जून जुलाई के दौरान पेड़ों के बीच जुताई करें और 5 से 10 टन की दर से गोबर की खाद डालें और इसे मल्च करें। संभवतः आप रॉक फॉस्फेट @ 10 बैग या 500 किलोग्राम प्रति एकड़ या 4 बैग सुपरफॉस्फेट 200 किलोग्राम लगा सकते हैं। 3. नवंबर के दौरान या अपने मानसून के मौसम के दौरान 500 ग्राम यूरिया और 750 ग्राम पोटाश / पेड़, पेड़ के तने से 1 मीटर दूर अर्धवृत्ताकार गड्ढे में डालें। 4. फलों के गिरने का एक प्रमुख कारण सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है। आपको एक सामान्य सूक्ष्म पोषक मिश्रण लागू करना चाहिए, जिसमें अधिकांश पोषक तत्व होते हैं, जिसे आप उर्वरक की दुकान में पूछ सकते हैं। 10 किग्रा / एकड़ आने वाले साल में आपको कुछ सुधार देखने को मिल सकता है। 5. फलों के आकार में सुधार के लिए बाजार में उपलब्ध बहुत सी चीजों को आप आजमाते हैं, और अपने पौधे के लिए उपयुक्त पाते हैं। साल में एक बार खाद और सूक्ष्म पोषक तत्व लगाना न भूलें और आपको 2 या 3 साल में पूरा परिणाम मिल सकता है।

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यह भारत में कटहल का सबसे आम रोग है।  रोग सड़ने के कारण नए फलों के समय से पहले गिरने का कारण बनता है और इसके परिणामस्वरूप असामान्य रूप से आर्द्र परिस्थितियों में उपज का भारी नुकसान हो सकता है। कई बार नर फूलों के सड़ने को मादा फूलों के सड़ने की गलती मान ली जाती है।  फलों के विकास के दौरान 15 दिनों के अंतराल पर मैंकोजेब @ 2.5 मिली/ली या कार्बेन्डाजिम @ 1 ग्राम/लीटर का छिड़काव फल सड़न को नियंत्रित करने में प्रभावी पाया गया।
कटहल की लोकप्रियता की वजह से इसके ऊपर फिल्म तक बन चुकी है

कटहल की लोकप्रियता की वजह से इसके ऊपर फिल्म तक बन चुकी है

कटहल की लोकप्रियता का आंकलन इस बात से लगाया जा सकता है, कि इस पर फिल्म भी बनी है। इस लेख में हम आपको इसकी खेती और इससे होने वाले फायदों के संदर्भ में बताएंगे। हमारे भारत में तकरीबन हर दूसरा इंसान कटहल की सब्जी अथवा अचार का प्रेमी होता है। इसकी लोकप्रियता का आंकलन सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है, कि इसपर 'कटहल' नाम की फिल्म तक भी रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म की कहानी कटहल की चोरी पर आधारित है। यदि फिल्म की बात की जाए तो उसमें विधायक के घर से दो कटहल चोरी होते हैं। यह दो कटहल उस विधायक के लिए क्या अहमियत रखते हैं, यह आप फिल्म देखकर ही जा सकते हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको कटहल की खेती कब और कैसे होती है, इसके संदर्भ में जानकारी देने जा रहे हैं। साथ ही, हम आपको यह भी बताएंगे कि इससे एक वर्ष में कितनी आय हो सकती है।

कटहल की बिजाई हेतु उपयुक्त समय

दरसअल, कटहल की विभिन्न प्रजातियां होती हैं। 'विएतनाम सुपर अर्ली' को छोड़कर एक एकड़ खेत में बाकी प्रजातियों के 140 कटहल के पौधे रोपे जा सकते हैं। साथ ही, एक एकड़ में विएतनाम सुपर अर्ली किस्म के लगभग 250 पौधे लग जाते हैं। सभी पौधों को कम से कम 15 फीट के फैसले पर खेत में लगाया जाता है। जानकारी के अनुसार, पौधा रोपण के पांच साल उपरांत कटहल की पैदावार शुरू हो जाती है। खेत में इसके पौधों के रोपण का समुचित समय अप्रैल से अगस्त के मध्य होता है। यदि खेत में पानी की दिक्कत नहीं है, तो आप इसको किसी भी सीजन में लगा सकते हैं। क्योंकि कटहल की पैदावार के लिए प्रचूर मात्रा में जल की जरुरत पड़ती है।

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पौधों को साफ जल की जरूरत पड़ती है

अब यहां ध्यान देने योग्य बात यह है, कि कटहल के पौधों को सिर्फ साफ पानी दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, जिस जगह पर कटहल का पौधा रोपण किया गया है। वहां पानी की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए। बतादें, कि चार साल के उपरांत कटहल का एक पौधा तकरीबन 25 किलो फल देना चालू कर देता है। इसके पश्चात पेड़ पर क्विंटल के हिसाब से पैदावार मिलती है। इसका अर्थ यह है, कि जितना पौधा फैलेगा और बढ़ेगा वह उतना ही अधिक उत्पादन देगा।

कटहल से आप कितनी आय अर्जित कर सकते हैं

फिलहाल, यदि कमाई की बात की जाए तो पांच साल के उपरांत एक पौधे से करीब 80 किलो कटहल की पैदावार हो सकती है। ऐसी स्थिति में 250 पौधों से कम से कम 20,000 किलो कटहल निकलेंगे। साथ ही, बाजार में कम से कम 40 रुपये किलो कटहल का भाव मिल जाता है। इसी प्रकार आप एक एकड़ में कटहल का पौध रोपण पांच वर्ष के पश्चात तकरीबन आठ लाख रुपये तक का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि सरकार की ओर से इसके पौधों पर अच्छा-खासा अनुदान भी दिया जाता है। जिससे किसानों को लागत में भी काफी हद तक राहत मिल पाएगी।
इस राज्य में कटहल, आंवला और जामुन की खेती करने पर मिलेगा 50 प्रतिशत अनुदान

इस राज्य में कटहल, आंवला और जामुन की खेती करने पर मिलेगा 50 प्रतिशत अनुदान

बिहार सरकार आए दिन किसानों के हित में नई नई योजनाऐं जारी कर रही है। बिहार सरकार द्वारा बागवानी क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है। राज्य में इसके लिए बागवानी विकास मिशन योजना एवं सूक्ष्म सिंचाई योजना समेत विभिन्न योजना चलाई जा रही है। बिहार राज्य में किसान वर्तमान में पारंपरिक खेती करने की जगह बागवानी फसलों में अधिक रूचि ले रहे हैं। नालंदा, नवादा, पटना, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी सहित तकरीबन समस्त जनपद में किसान आंवला, कटहल, आम, अमरूद और जामुन की खेती कर रहे हैं। इससे इन जिलों में हरियाली तो बढ़ गई है, साथ में किसानों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है।

सूक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना के अंतर्गत अनुदान दिया जा रहा है

ऐसी स्थिति में भी बिहार सरकार राज्यों में बागवानी क्षेत्र का विस्तार कर रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना, एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना एवं सुक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना समेत कई योजना चला रही है। इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को बंपर अनुदान दिया जा रहा है। फिलहाल, उद्यान निदेशालय ने सूक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना के अंतर्गत किसानों को फल की खेती करने पर मोटा अनुदान देने का निर्णय किया है। योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होगा। 

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इन बागवानी फसलों पर 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा

सुक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना के अंतर्गत बिहार सरकार नींबू, जामुन, बेर, आंवला और कटहल की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान दे रही है। विशेष बात यह है, कि अनुदान की धनराशि प्रत्यक्ष तौर पर किसानों के खातों में हस्तांतरित की जाएगी। इस योजना का प्रमुख उदेश्य किसानों की आमदनी में इजाफा और उनकी आर्थिक हालत में सुधार लाना है। साथ ही प्रदेश में हरियाली भी बढ़ानी है।