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जीरा

महंगाई में लगातार इजाफे से लोगों की परेशानी बढ़ी, जीरे का भाव 700 पार

महंगाई में लगातार इजाफे से लोगों की परेशानी बढ़ी, जीरे का भाव 700 पार

महँगाई आज की तारीख में अपनी चरम सीमा पर है। आज केवल जीरा ही महंगा नहीं हुआ है, बल्कि अन्य दूसरे मसालों की भी कीमत बढ़ गई है। लाल मिर्च भी लोगों की आंखों से आंसू निकाल रही है। खुदरा बाजार में वर्तमान में भी लाल मिर्च 350 से 400 रुपये किलो बिक रही है। इसी प्रकार लौंग 1500 से 1800 रुपये किलो है। जैसा कि हम जानते हैं, कि महंगाई कम होने का नाम तक नहीं ले रही है। बतादें, कि एक चीज के भाव कम होते हैं, तो दूसरे खाद्य उत्पाद महंगे हो जाते हैं। विशेष कर मसालों के बढ़ते भावों ने आम जनता को परेशान कर दिया है, इससे खाने का स्वाद काफी परिवर्तित हो गया है। जीरा महंगा होने की वजह से बहुत से लोगों ने दाल और सब्जियों में तड़का लगाना बिल्कुल बंद कर दिया है। आम जनता को आशा है, कि वर्षा कम होने पर जीरे की कीमतों में गिरावट आएगी। परंतु, ऐसा कुछ होता हुआ तो नहीं नजर आ रहा है। मानसून के कमजोर पड़ने के पश्चात भी जीरा सस्ता होने की जगह महंगा ही होता जा रहा है। खुदरा बाजार में एक किलो जीरे की कीमत 700 रुपये से भी ज्यादा हो गई है। इससे रसोई का बजट काफी डगमगा गया है। यह भी पढ़ें: Spices or Masala price hike: पहले सब्जी अब दाल में तड़का भी हो गया महंगा, मसालों की कीमतों में हुई रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

आजकल जीरा का भाव 750 रुपये से 800 रुपये है

महंगाई का कहर इतना है, कि बुधवार को राजस्थान के नागौर जनपद स्थित मंडी में जीरा 53 हजार 111 रुपए प्रति क्विंटल बिका है। हालांकि, जीरे की कीमत में बढ़ोत्तरी होने से किसान गदगद हैं। इस वर्ष वे जीरा विक्रय करके अच्छी आमदनी कर रहे हैं। परंतु, आम जनता के ऊपर महंगाई का भार काफी बढ़ता ही जा रहा है। अब इसकी वजह से खुदरा बाजार में जीरा 750 रुपये से 800 रुपये किलो बिक रहा है। ऐसी स्थिति में 100 ग्राम जीरा खरीदने के लिए लोगों को 75 से 80 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

राजस्थान के किसान जीरे की खेती काफी बड़े पैमाने पर करते हैं

व्यापारियों ने बताया है, कि जीरे की नवीन फसल आने के उपरांत कीमतों में गिरावट आएगी। वर्तमान में मंडियों में मांग और आपूर्ति में काफी अंतर है। इसी वजह से कीमतें कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही हैं। वहीं, जानकारों ने बताया है, कि बहुत से स्टॉकिस्टों ने गैरकानूनी ढ़ंग से जीरे का भंडारण कर रखा है। बाजार में इससे भी जीरे की काफी कमी हो गई है। ऐसी स्थिति में आपूर्ति कम होने से कीमतें निरंतर बढ़ती ही जा रही हैं। बतादें, कि भारत में सबसे ज्यादा जीरे की पैदावार गुजरात में होती है। इसके पश्चात राजस्थान में किसान सबसे ज्यादा जीरे का खेती करते हैं।
जीरे की खेती कैसे की जाती है?

जीरे की खेती कैसे की जाती है?

जीरा एक मसाला फसल है, जिसकी खेती मसाले के रूप में की जाती है। यह जीरा देखने में बिल्कुल सोंफ की तरह ही होता है, किन्तु यह रंग में थोड़ा अलग होता है | जीरे का उपयोग कई तरह के व्यंजनों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए करते है।  

इसके अलावा इसे खाने में कई तरह से उपयोग में लाते है, जिसमे से कुछ लोग इससे पॉउडर या भूनकर खाने में इस्तेमाल करते है। जीरे का सेवन करने से पेट संबंधित कई बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। जीरे का पौधा शुष्क जलवायु वाला होता है, तथा इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है भारत में जीरे की खेती सबसे अधिक राजस्थान और गुजरात में की जाती है, यहाँ पर पूरे देश का कुल 80% जीरा उत्पादित किया जाता है, जिसमे 28% जीरे का उत्पादन अकेले राजस्थान राज्य में होता है, इसके पश्चिमी क्षेत्र में राज्य का कुल 80% जीरा उत्पादन होता है | वही पड़ोसी राज्य गुजरात में राजस्थान की अपेक्षा अधिक पैदावार होती है | वर्तमान समय में जीरे की उन्नत किस्मो को ऊगा कर उत्पादन क्षमता को 25% से 50% तक बढ़ाया जा सकता है | अधिकतर किसान भाई जीरे की उन्नत किस्मो को उगाकर अच्छा लाभ भी कमा रहे है | यदि आप भी जीरे की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको जीरा की खेती कैसे करें (Cumin Farming in Hindi) तथा जीरा का भाव इसके बारे में जानकारी दी जा रही है।   

जीरे की खेती के लिए मिटटी की आवश्यकता                     

जीरे की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, तथा भूमि का P.H. मान भी सामान्य होना चाहिए | जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है, इसलिए इसके पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते है | इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है, तथा अधिक गर्म जलवायु इसके पौधों के लिए उपयुक्त नहीं होती है | जीरे के पौधों को रोपाई के पश्चात् 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों की वृद्धि के समय 20 डिग्री तापमान उचित होता है | इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते है |

जीरे की किस्में 

वर्तमान समय में जीरे की कई तरह की उन्नत किस्मो को तैयार किया गया है, जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है। आर. जेड. 19 , जी. सी. 4 , आर. जेड. 209 , जी.सी. 1

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जीरे की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी        

जीरे की फसल करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है। इसके लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के तौर पर 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालकर जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में खाद अच्छी तरह से मिल जाती है।  खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है। 

फसल में उर्वरक और खाद प्रबंधन 

पलेव के बाद खेत की आखरी जुताई के समय 65 किलो डी.ए.पी. और 9 किलो यूरिया का छिड़काव खेत में करना होता है | इसके बाद खेत में रोटावेटर लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है | मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है| इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं उत्पन्न होती है | इसके अतिरिक्त 20 से 25 KG यूरिया  की मात्रा को पौधों के विकास के समय तीसरी सिंचाई के दौरान पौधों को देना होता है |

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जीरे की बुवाई के लिए बीज दर                

जीरे के बीजों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है| इसके लिए छिड़काव और ड्रिल तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है | ड्रिल विधि द्वारा रोपाई करने के लिए एक एकड़ के खेत में 8 से 10 KG बीजो की आवश्यकता होती है | वही छिड़काव विधि द्वारा बीजो की रोपाई के लिए एक एकड़ के खेत में 12 KG बीज की आवश्यकता होती है | बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें कार्बनडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | छिड़काव विधि के माध्यम से रोपाई के लिए खेत में 5 फ़ीट की दूरी रखते हुए क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है |

बीज की बुवाई 

इन क्यारियों में बीजो का छिड़काव कर उन्हें हाथ या दंताली से दबा दिया जाता है| इससे बीज एक से डेढ़ CM नीचे दब जाता है | इसके अलावा यदि आप ड्रिल विधि द्वारा बीजो की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत में पंक्तियो को तैयार कर लेना होता है, तथा प्रत्येक पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है | पंक्तियों में बीजो की रोपाई 10 से 15 CM की दूरी पर की जाती है | चूंकि जीरे की फसल रबी की फसल के साथ लगाई जाती है, इसलिए इसके बीजो को नवंबर माह के अंत तक लगाना उचित होता है। 

फसल में सिचांई प्रबंधन  

जीरे के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरुरत होती है।  इसकी प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है, तथा प्रारंभिक सिंचाई को पानी के धीमे बहाव के साथ करना होता है, ताकि बीज पानी के तेज बहाव से बहकर किनारे न आ जाये। इसके पौधों को अधिकतर 5 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई के बाद बाकी की सिंचाई को 10 से 12 दिन के अंतराल में करना होता है |

फसल में खरपतवार नियंत्रण 

जीरे के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। रासायनिक विधि में आक्साडायर्जिल की उचित मात्रा को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लिया जाता है, जिसे बीज रोपाई के तत्पश्चात खेत में छिड़क दिया जाता है| प्राकृतिक विधि में पौधों की निराई-गुड़ाई की जाती है। इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के तक़रीबन 20 दिन बाद की जाती है, तथा बाकी की गुड़ाई को 15 दिन के अंतराल में करना होता है। इसके पौधों को अधिकतम दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है। 

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फसल की उपज 

जीरे की उन्नत किस्में बीज रोपाई के तक़रीबन 100 से 120 दिन पश्चात् पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों में लगे बीजो का रंग हल्का भूरा दिखाई देने लगे उस दौरान पुष्प छत्रक को काटकर एकत्रित कर खेत में ही सूखा लिया जाता है। इसके बाद सूखे हुए पुष्प छत्रक से मशीन द्वारा दानो को निकल लिया जाता है। उन्नत किस्मो के आधार पर जीरे के एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 7 से 8 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है।  जीरा का बाज़ारी भाव 200 रूपए प्रति किलो तक होता है, जिस हिसाब से किसान भाई जीरे की एक बार की फसल से 40 से 50 हज़ार तक की कमाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। 

गंभीर रोगों की दवा हैं जंगली पौधे

गंभीर रोगों की दवा हैं जंगली पौधे

खरपतवार समझकर किसान ब्रज में खत्म कर रहे हैं इन जंगली बूटियों को। ब्रज अंचल हो या अन्य क्षेत्रीय वनौषधियां यहां खत्म होती जा रही हैं। पशुओं के रोग हों या मानव स्वास्थ्य सभी से इनका गहरा नाता रहा है। खरपतवार समझकर खत्म की जा रहीं यह सभी औषधियां बहुत उपयोगी हैं। इन पर हर अनुसंधान संस्थान में काम चल रहा है। यहां जीएलए विश्वविद्यालय में सेवानिवृत्त डीएचओ बीएल पचौरी एक हर्बल वाटिका बनाकर इस पर काम कर रहे हैं। आइए जानें कौन-सी हैं यह औषधियां और कितनी उपयोगी हैं। फरास का पेड़ ब्रज का मुख्य वृक्ष रहा है। वर्तमान में यह विलुप्त होने के कगार पर है। इसे गर्मी का कुचालक माना जाता है। जिस खेत की मेंढ़ पर यह पौधा खड़ा हो वहां फसल को पाला नहीं मार सकता। गर्मी का प्रभाव इसके 50 मीटर से ज्यादा दूरी तक नहीं हो सकता। यह वृक्ष महाभारत कालीन है। कहा जाता है कि इस वृक्ष पर आकाशीय बिजली नहीं गिरती। इसीलिए बरसात के दिनों में जंगली जीव इसके नीचे शरण लेते हैं। खारे पानी में मौजूद तत्व कार्बन डाई एवं मोनो आक्साइड आदि को खत्म करता है। खारे पानी में उत्पन्न होने वाली गैस को खत्म करता था। इसकी पत्ती खिलाने से जानवरों का दूध बढ़ता है।

झरबेरी

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झरबेरी जंगलों में लगातार घट रही है। राजस्थान में आज भी इसे पशुओं के चारे में प्रयोग में लाया जाता है। इससे दूध की पौष्टिकता के साथ घी में सुगंध बढ़ती है। इसके साथ यह पशुओं को कई बीमारियों से दूर रखता है।

बरना

barna

बरना का पेड़ ब्रज में बहुतायत में हुआ करता था। इसे वरुण देवता का द्योतक माना जाता है।इस वृक्ष से सूखा पड़ने की सूचना तीन माह पहले ही मिल जाती थी। यह गर्मी में अच्छा फल फूल रहा हो तो समझ जाता था, इस बार बरसात अच्छी होंगी। अन्यथा सूखा पड़ेगा। गलाघोंटू के लिए इसकी लकड़ी को पशुओं के गले में बांधा जाता है। इसकी छाल का काढ़ा आज भी आदिवासी अपने पशुओं को रोग संक्रमण से बचाने के लिए पिलाते हैं।

कदंब

kadamb

कदंब के पास गाय बांधने से पशु में दूध बढ़ता और प्रजनन क्षमता में सुधार होता है।इसीलिए भगवान कृष्ण ने सारी लीलाएं इसके पास कीं। इसके साथ ही इससे गेस्ट्रिक ट्रबल खत्म होती है। विषाणु एवं जीवाणुनाशी है।

करील

kareel

करील को हमने मिटा दिया है। दिल के रोगों, ब्लड प्रैसर का समाधान इस वृक्ष से होता है। गर्मी से बचने के लिए काम आता है। मिर्गी रोग के लिए इसकी कोपल व फूल की सब्जी बनाकर खाई जाती थी। इसके फल टैंटी का अचार आज भी चाव से खाया जाता है।

सहजन

sehjan

सहजन का वृक्ष हमारी जमीन को भी ठीक करता है।गठिया से जुड़े रोगों को दूर करता है। इसकी छाल व जड़ काम में आती है। गंभीर गैस्ट्रिक रोगियों को सहजन का मुरब्बा खाने की सलाह वैद्य आज भी देते हैं।

गोंदी

gondi

गोंदी ब्रज की मुख्य वनौषधि थी। इसे सरस्वतीजी का द्योतक माना जाता था। गले के रोगों के लिए इसकी पत्ती प्रयोग में लाई जाती थी। गले के छाले या कष्ट इसकी पत्तियों से खत्म न हों तो समझ जाता था कि कोई गंभीर रोग होने वाला है।

पीलू

पीलू  ब्रज का प्रमुख वृक्ष रहा है। राधा- कृष्ण की लीलाओं में भी इसका जिक्र आता है। यहां इसे खड़ार के नाम से भी जाना जाता है। इसकी जड़ अरब देश में मुस्लिम, बहुतायत में प्रयोग करते हैं। यहां भी लोग एक दशक पूर्व तक इसकी टहनियों को दातुन के रूप में प्रयोग करते थे। यह मुख के रोगों के लिए वरदान है। दांतों के रोग पायरिया आदि को दूर करने के गुण इसमें विद्यमान हैं।

पसैंदू ‘तमाल’

tamal

पसैंदू तमाल वृक्ष खुरपका मुंहपका में इसके पके फलों को घाव पर बांधते थे। फलों को पानी में उबालकर संक्रमित स्थान को धोते थे। इसके नीचे बच्चों को नहलाने से त्वचा रोग दूर होते हैं। गुजरात में भी यह पाया जाता है। ज्यादा पानी वाले क्षेत्रों में पैरों की उंगलियां गलने के रोग दूर करने में इसका प्रयोग होता है। इसके बीजों में नाइट्रोजन ज्यादा होती है। इसीलिए किसान इसके नीचे की मिट्टी खेतों में डालते थे। इसे श्याम तमाल के नाम से भी जाना जाता है। इंडोनेशिया में इसके फल को आम की तरह प्रयोग करते हैं।

मेरेला ‘वन मैथी’

methi

मेरेला ‘वन मैथी’ जानवरों का दूध बढ़ाती है। मरुआ की सुगंध अच्छी होती है। कीटनाशक गुण होने के कारण बच्चों के पेट में कृमि होने पर गुदा मुख पर लगाया जाता है। इसका रायता पीने से गैस्ट्रिक ट्रबल खत्म होती है। इसके नीचे सर्प नहीं आता है। यदि आ भी जाए तो वह इस पौधे के दायरे में आने पर निष्क्रिय हो जाता है। इसका प्रयोग मिर्गी रोग में भी किया जाता है।

ऊंट कटेरा

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ऊंट कटेरा जंगली खरपतवार है। यह जानवारों के दूध बढ़ाने में काम आता है। गर्भाधान की क्रिया को ठीक करता है। हरे चारे के रूप में इसके सेवन से पशु दूसरे ब्यांत में दूध अच्छा देता है। ग्लायडिया विदेशी पुष्प है। यह गर्मियों में भी यहां अच्छा होता है। ब्रज में चूंकि खारी पानी की समस्या है। इसलिए इसकी खेती खारी पानी वाले इलाकों में बहुत अच्छी हो सकती है।

चंद्रसूर

chandraasur

चंद्रसूर बहुत पुराना गठिया रोकने एवं महिला व पशुओं में दूध कम उतरने की समस्या को कम करने के काम में आता है। मान्यता है कि इसके पत्ते पर बच्चों को बैठकर खिलाने से उनमें वजन बढ़ता है। यह क्षारीय भूमि में होता है। पहले यह मेंथी के साथ होता था।

कलिहारी

kalihari

कलिहारी की जड़ छह फीट नीचे तक जाती है। इसमें क्रोमोजोम बहुत होते हैं। पहले फसलों का उत्पादन बढ़ाने के काम आता था। प्रसव से पहले बच्चा आसानी से नहीं होता तो सिर से पैर तक इसका लेप किया जाता था। क्रोमोजोम की संख्या के चलते पहले ब्रीडिंग में भी इसका उपयोग करते थे। अब वैज्ञानिकों के अन्य आधुनिक संसाधन विकसित कर लिए हैं तो इसकी उपयोगिता खत्म हो गई है।

लटजीरा

latjeera

इसे ब्रज में ओंगा के नाम से जाना जाता है। यह एण्टी एलर्जिक, एण्टी सेप्टिक एवं एण्टी वायरल गुणों वाला होता है। इसको चारे के रूप में खिलाने से पशुओं की आधी बीमारी खत्म हो जाती हैं। हड्डी टूटने पर इसके पत्तां को घी के साथ छौंक करके पशुओं को खिलाया जाता था। इसकी जड़ बहुत उपयोगी है। लोग इसकी दातुन भी करते थे। गर्भाशय के रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके चावल खाने से भूख नहीं लगती।

दूब घास

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दूब घास को हम सब भूल रहे हंै। यह नीली, हरी, गांदर, और सफेद चार तरह की होती है। यह एण्टी वायरल, एण्टी बैक्टीरयल व एण्टी सेप्टिक होती है। इसके रस से बच्चों की नकसीर व महिलाओं का प्रदर की बीमारी दूर होती है। कॉलेस्ट्राल को कंट्रोल करती है। गांवों में चेचक मोतीझला होने पर नीम के साथ घर में या मुख्य द्वार पर इसे लगाया जाता है। जरूरत इस बात की है कि किसान इन वनौषधियों के महत्व को समङों और इनका उपयोग करें।

बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

कहते हैं, मसालों की खोज सबसे पहले भारत में ही हुई, भारत से ही मसाले दुनिया भर में फैले। ये ऐसे मसाले हैं, जिनकी खुशबू से ही लोगों के चेहरे खिल उठते हैं। आपने पढ़ा ही होगा कि मसाले बेच कर एक तांगावाला इस देश में मसाला किंग के नाम से फेमस हो गया।
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मसाले हर किसी को भाते हैं, किसी को ज्यादा, किसी को कम। मसालों की खेती विदेशी पूंजी को भारत में लाने का एक बड़ा जरिया है। हमारे यहां जो मसाले तैयार होते हैं, उनकी विदेशों में जबरदस्त डिमांड है। दुनिया का शायद ही कोई देश ऐसा हो, जहां मसालों की खपत हो और वे भारतीय मसाला नहीं खाते हों। भारतीय मसालों का डंका हर तरफ बज रहा है, ये आज से नहीं सैकड़ों सालों से है।

रायपुर में शोध

रायपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में इन दिनों बीजीय मसालों (seed spices) पर शोध चल रहा है। दर्जनों शोधार्थी बीजीय मसालों पर शोध कर रहे हैं, वो एक नए मसाले की तलाश में हैं। वो हींग, मेथी, जीरा, जायफल, धनिया, सरसों के इतर कुछ ऐसे बीजीय मसालों की तलाश में हैं, जो सबसे अलग हो। मजे की बात यह है कि इन बीजीय मसालों को ही कॉकटेल कर वे कोई नया मसाला तैयार करने की नहीं सोच रहे हैं। वो सच में कुछ नया करना चाह रहे हैं, यही कारण है कि पिछले 9-10 महीनों से वो शोध कर रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी परिणाम पर नहीं पहुंचे हैं, शोध जारी है।

भारत है नंबर 1

आपको पता ही होगा कि भारत मसाला उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। भारत को तो मसालों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है, इन मसालों के औषयधी गुणों के कारण देश-दुनिया में इनकी डिमांड निरंतर बढ़ती जा रही है। दुनिया भर के व्यापारी हमारे देश में आते हैं, भारत के नक्शे को देखें तो जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विभिन्न प्रकार के मसालों का उत्पादन होता है। इन सभी मसालों का अपना अलग मिजाज है, कोई बीमारी में काम आता है तो कोई रोगों से लड़ने की ताकत देता है। तो कोई स्वाद को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है, तो कोई मसाला ऐसा भी होता है जो आपकी पाचन क्रिया को दुरुस्त कर देता है। इन मसालों के रहते अब नए मसालों की खोज इसलिए की जा रही है ताकि चार मसालों के स्थान पर एक ही मसाला भोजन में डाला जाए और उसका कोई साइड इफेक्ट न हो।
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परंपरागत मसाले

अगर बात करें मुख्य बीजीय मसाले की तो वो परंपरागत हैं। जैसे जीरा, धनिया, मेथी, सौंफ, अजवायन, सोवा, कलौंजी, एनाइस, सेलेरी, सरसों तथा स्याहजीरा। इन सभी की खेती देश के उन इलाकों में की जाती है, जहां इनके लायक मौसम बढ़िया होता है। दरअसल, बीजीय मसाले अर्धशुष्क और शुष्क इलाकों में ही उगाए जा सकते हैं। जहां बहुत ज्यादा गर्मी होगी या बहुत ज्यादा ठंड पड़ती हो, वहां मसाले नहीं उगाए जा सकते। फसल ही चौपट हो जाएगी, दरअसल शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रों में जल की कमी होती है और जो उपलब्ध भूजल होता है, वह सामान्यतः लवणीय होता है। आपको पता ही होगा कि बीजीय मसाला फसलों को धान या गेहूं अथवा मक्के की तरह पानी की जरूरत नहीं होती। इनका काम कम जल में भी चल जाता है।
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अनुदान की योजना

सरकार उन इलाकों में, जहां भूजल कम है, बीजीय मसाले की खेती करने वाले किसानों को अनुदान भी देने की योजना बना रही है। हालांकि, ये हार्ड कोर कैश क्राप्स हैं, ये तैयार होते ही बिक जाते हैं और देश-विदेश से इनके ग्राहक भी आते हैं। आपको बता दें कि भारत में जिन मसालों का उत्पादन होता है, वे सबसे ज्यादा मात्रा में अमेरिका, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में निर्यात होता है। यहां से ठीक-ठाक विदेशी मुद्रा भी आ जाती है। अगर आप भी बीजीय मसालों की खेती करना चाहते हैं, तो पूरे पैटर्न को समझ लें। इस खेती में पैसे तो हैं पर रिस्क भी कम नहीं है, उस रिस्क को अगर आप सहन कर सकते हैं, तो बीजीय मसालों की खेती में बहुत पैसा है और आप उससे मुनाफा कमा सकते हैं।
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जैसा कि हम जानते हैं, कि चरम सीमा पर महंगाई होने की वजह से आम जनता की रसोई का बजट खराब हो गया है। टमाटर और हरी सब्जियों के उपरांत फिलहाल मसालों ने भी लोगों की परेशानियां बढ़ाना शुरू कर दिया है। इनकी कीमतों में कई गुना इजाफा दर्ज किया गया है। बारिश के चलते देश में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है। इससे आम जनता के साथ- साथ खास लोगों के किचन का भी बजट डगमगा चुका है। हरी सब्जियों के पश्चात यदि किसी खाद्य पदार्थ की कीमतों में सबसे ज्यादा बढ़वार हुई है, तो वो हैं मसालें। पिछले एक महीने में मसालों के भाव में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है। विशेष बात यह है, कि विगत 15 दिन में ही कुछ मसालों की कीमत में दोगुनी वृद्धि हुई है। इससे प्रत्येक वर्ग की जेब पर बोझ बढ़ गया है।

दूध, मसाले, हरी सब्जियों सहित कई सारे खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ी हैं

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बारिश की वजह से केवल हरी सब्जियां ही नहीं बल्कि दूध, मसाले और अन्य खाद्य उत्पाद की कीमतें भी बढ़ गई हैं। महंगाई का आंकलन इस बात से किया जा सकता है, कि जो जीरा थोक भाव में विगत वर्ष 300 रुपये किलो था, अब उसकी कीमत 700 रुपये से भी ज्यादा हो गई है। साथ ही, खुदरा बाजार में यह 1000 रुपये लेकर 1200 रुपये किलो बिक रहा है। इससे ग्राहक के साथ-साथ व्यापारी भी चिंता में आ गए हैं।

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लाल मिर्च की कीमतों में दोगुना उछाल

इसी संदर्भ में व्यापारियों का कहना है, कि जीरा इतना ज्यादा महंगा हो जाएगा, उन्हें ऐसी कभी आशंका ही नहीं थी। साथ ही, कृषि विशेषज्ञ की माने तो इस वर्ष फरवरी और मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश ने जीरे की फसल को काफी ज्यादा प्रभावित किया है। यही वजह है, कि 2 महीने की समयावधि में जीरा बहुत ज्यादा महंगा हो गया। परंतु, मानसून के आगमन के पश्चात अचानक दूसरे मसाले भी महंगे हो गए। विशेष कर हल्दी एवं लाल मिर्च की कीमत दोगुनी से भी ज्यादा बढ़ गई है।

मसालों की कीमत में एक वर्ष दौरान कितना उछाल आया (मसालों की कीमत किलो में है)

मसाले बीते वर्ष का रेट होलसेल रेट रिटेल प्राइस
जीरा ₹300 ₹700 ₹1000-1200
हल्दी ₹80-90 ₹160 ₹300
लाल मिर्च ₹110-120 ₹260 ₹400
लौंग ₹600 ₹1100 ₹1500-1800
दालचीन ₹500  ₹700 ₹1100-1400
सौंठ ₹130 ₹500 ₹700-800