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यूटूब की मदद से बागवानी सिखा रही माधवी को मिल चुका है नेशनल लेवल का पुरस्कार

यूटूब की मदद से बागवानी सिखा रही माधवी को मिल चुका है नेशनल लेवल का पुरस्कार

अपनी उम्र के युवा दिनों से ही पादप विज्ञान(Plant Science) और वनस्पति विज्ञान(Botany) में रुचि रखने वाली एक ग्रहणी, आज यूट्यूब पर एक चैनल के माध्यम से अपनी जैसे ही दूसरी गृहणियों को भी, जैविक खेती की मदद से प्राकृतिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर छत पर बागवानी यानी रूफटॉपबागवानी (Roof / Terrace gardening) के बारे में जानकारियां उपलब्ध करवा रही है। यूट्यूब पर माधवी (Mrs. Madhavi Guttikonda) के 'मैडगार्डनर' (MAD GARDENER) नाम के चैनल पर लगभग 5 लाख से अधिक सब्सक्राइबर (subscriber) हैं

Mrs. Madhavi Guttikonda - Youtube Chanel - MAD GARDENER

अपने घर की छत पर ही फूल और फलों से शुरुआत करने वाली माधवी पिछले 10 सालों से जैविक खेती की मदद से सब्जियां उगा रही है। इस प्रकार की जैविक सब्जी उत्पादन की शुरूआत माधवी ने 25 वर्ष की उम्र में अपनी शादी के बाद की थी।

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पुराने दिनों को याद कर माधवी बताती हैं कि शुरुआती दिनों में वह एक किराए के एक अपार्टमेंट में रहते थे और वहीं पर कुछ अलग-अलग प्रकार के अच्छे दिखने वाले फूलों के पौधों की बागवानी करना शुरू किया था, 

इस समय माधवी का फोकस बागवानी से पैसा कमाना नहीं था बल्कि केवल अपने शौक के खातिर ही फूलों के पौधे लगाए थे। माधवी बताती है कि आज उनका फोकस खाने वाली सब्जियों के उत्पादन की तरफ है और उनके घर में इस्तेमाल होने वाली एक सप्ताह की सब्जियों में से लगभग पांच दिन की सब्जी उनके खुद के उगाए हुए रूफटॉप गार्डन से ही इस्तेमाल की जाती है।

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अपने बेटे और बेटी के कहने पर 2018 में यूट्यूब चैनल की शुरुआत करने वाली माधवी को शुरुआत में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। भारत के अधिकतर कृषि उत्पादन क्षेत्र में हिंदी भाषी लोग होने के बावजूद इन्हें हिंदी नही आने के कारण, तेलुगु भाषा में बागवानी का यह चैनल शुरू करना पड़ा। 

लेकिन पहले ही महीने में उन्हें काफी सफलता मिली और पिछले कुछ सालों से कमाए गए अनुभव को वह आज भी सोशल मीडिया और यूट्यूब की मदद से आसानी से लोगों तक पहुंचाने में सफल रही हैं। 

माधवी वर्तमान में कम समय में पक कर तैयार होने वाली मौसमी सब्जियों का उत्पादन करना पसंद करती है, जिनमें टमाटर, मिर्ची और लौकी को अच्छी सब्जी मानती है। इसके अलावा वह ड्रैगन फ्रूट, पपीता और नींबू तथा केले जैसे छोटे पौधे भी अपनी छत पर बने हुए 18 स्क्वायर फीट के गार्डन में लगाकर परीक्षण कर चुकी हैं।

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माधवी का मानना है कि खेती और किसानी में यदि बेहतरीन तरीके की वैज्ञानिक तकनीक और नए विचारों वाली विधियों का इस्तेमाल किया जाए तो खेती उतनी मुश्किल नहीं होती, जितनी दिखाई देती है। 

पिछले कुछ समय से लोगों से हुए जुड़ाव को लेकर माधवी कहती हैं कि वह जब भी किसी नई प्रकार की सब्जी के उत्पादन के बारे में सोचती है तो वीडियो बनाने से पहले वह किसी भी प्रकार का रिसर्च नहीं करती और अपने चैनल के माध्यम से लोगों से ही उस सब्जी के लिए नए इनोवेटिव आईडिया लेने की कोशिश करती हैं। 

यदि कोई अनुभवी किसान माधवी को अपनी राय देते हैं, तो वह स्वयं उनसे पूरी बात कर जानकारी प्राप्त करती हैं और फिर उसे अपने अगले वीडियो में किसान भाइयों तक शेयर करती हैं। 

कंपोस्ट खाद के अलग-अलग बॉक्स में अपनी सब्जियों उगाने को प्राथमिकता देने वाली माधवी बताती हैं कि यदि मिट्टी का पूरा ध्यान रखा जाए और बीज को पूरे उपचार के बाद इस्तेमाल किया जाए, तो पौधे की उत्पादकता बढ़ाने के अलावा उसमें लगने वाले हानिकारक कीटनाशक और दूसरे कई प्रकार के मक्खियों से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

माधवी बताती है कि यदि सही समय पर उनके पास अच्छा विकल्प होता तो वह अवश्य एक बड़ी किसान के रूप में काम करना पसंद करती, लेकिन शहर में रहने की वजह से और जमीन ना होने के कारण केवल रूफटॉप बागवानी की मदद से ही वह खेती में अपने पैशन को बरकरार बनाए रख सकती थी। 

माधवी ने बताया कि उनके यूट्यूब चैनल 'मैड गार्डनर' की मदद से उन्हें महीने में लगभग एक लाख रुपए तक का रेवेन्यू प्राप्त हो जाता है। पिछले कुछ महीनों से से माधवी अपने यूट्यूब से प्राप्त होने वाली आय का 50% हिस्सा शहर के ही गरीब बच्चों को खाना खिलाने के लिए करती है।

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कृषि से जुड़ी एक मैगजीन के द्वारा साल 2021 में माधवी को टेरेस बागबानी के लिए राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार दिया गया था, इन लम्हों को याद करते हुए माधवी कहती है कि भारत के उपराष्ट्रपति से मिलने वाले इस पुरुस्कार के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था, 

लेकिन कृषि में अपने पैशन की वजह से आज उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। माधवी यहां तक कहती है कि कई बार तो वह हैरान हो जाती है जब 10 साल से छोटे बच्चे भी उनके वीडियो देख, कृषि में अपना पैशन विकसित कर पा रहे हैं।

भविष्य की नीतियों के बारे में जब माधवी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वह जल्द ही आसपास के क्षेत्र में ही खुद की जमीन खरीद कर स्वयं के इस्तेमाल में आने वाले खाने का उत्पादन करना चाहती है और बड़ी संस्थाओं के साथ मिलकर कृषि में इस्तेमाल होने वाले नई तकनीकों को किसान भाइयों तक पहुंचाने के लिए भी प्रयासरत है।

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माधवी अपने चैनल के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाकर उनकी आय बढ़ाने के अलावा कृषि क्षेत्र में नए इनोवेटिव विचार के प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, भले ही बड़े किसानों की तरह माधवी लाखों-करोड़ों रुपए का मुनाफा कर दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत ना बन पाए, लेकिन अपने अनुभव का इस्तेमाल कर कई किसानों को इस लायक बनाने में सफल रही है। 

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई भी उनके इस चैनल की मदद से छत पर की जाने वाली बागबानी के बारे में कुछ सीख कर अपने घर में इस्तेमाल होने वाली सब्जियों की जैविक खेती जरूर कर पाएंगे और भविष्य में बड़ी संस्थाओं से जुड़कर नई तकनीकों का इस्तेमाल कर कृषि व्यवसाय में भी मुनाफा कमा पाएंगे।

राजस्थान के सीताराम सेंगवा बागवानी से कमा रहे हैं लाखों का मुनाफा

राजस्थान के सीताराम सेंगवा बागवानी से कमा रहे हैं लाखों का मुनाफा

पूरा विश्व आज जल के अभाव से प्रभावित है, किसानों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है। राजस्थान के ज्यादातर क्षेत्रों में जल की कमी के बावजूद भी कई किसान फसलों से अच्छी खासी पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। इन किसानों में जोधपुर के सीताराम सेंगवा भी सम्मिलित हैं। ४२ वर्षीय सीताराम सेंगवा ने २२ की आयु से खेती शुरू कर एक बड़ी उपलब्धी हासिल की है। कृषि एवं बागवानी में नाम व धन अर्जन के बाद वो संतुष्ट हैं कि उन्होंने सरकारी नौकरी की जगह कृषि को प्राथमिकता दी है। किसान सीताराम सेंगवा खेती के लिए ड्रिपस्प्रिंकलर सिंचाई के माध्यम से बूंद-बूंद जल का उपयोग कर उम्दा किस्म के पौधे तैयार कर रहे हैं। फिलहाल उनके द्वारा नर्सरी में तैयार उम्दा पौधे पुरे देश में लगाये जा रहे हैं। उनकी इस सफलता में भाकृअनुप - केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (ICAR – Central Arid Zone Research Institute) के वैज्ञानिकों का भी सहयोग रहा है। यही कारण है कि आज कृषि में मुनाफा एवं बागवानी का नुस्खा उपयोग कर सीताराम सेंगवा २० लाख वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं।


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सीताराम सेंगवा राजस्थान राज्य के जोधपुर जनपद की भोपालगढ़ तहसील के पालड़ी राणावतन गांव में कृषि कार्य कर रहे हैं। सीताराम सेंगवा ने २५ बीघा खेत के साथ बेहतरीन पौधों की नर्सरी स्थापित की है। वह अपनी पत्नी, बेटों एवं बेटियों के सहयोग से आज बेहतर आजीविका के लिए अच्छा मुनाफा कर पा रहे हैं। एक वक्त वह भी था जब विघालय से शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत उनके सारे मित्र सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गए थे। लेकिन सन २००१ में भी सीताराम ने खेती को ही प्राथमिकता दी थी। आज सीताराम सेंगवा २२ वर्ष की आयु से खेती के सफर में सफलता हासिल कर राज्य सरकार एवं वैज्ञानिकों से विभिन्न प्रकार के सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं।

तरह तरह की किस्म के पौधे हैं सीताराम सेंगवा की नर्सरी में

सीताराम सेंगवा २०१८ से पूर्व केवल पारंपरिक खेती ही करते थे, लेकिन वर्ष २०१८ में काजरी की वैज्ञानिक अर्चना वर्मा के द्वारा बागवानी सम्बंधित प्रशिक्षण लेने के उपरांत नर्सरी का कार्य भी आरम्भ कर दिया था। कृषि के साथ-साथ नर्सरी प्रबंधन में वैज्ञानिक तकनीकों की सहायता से सीताराम सेंगवा ने हजारों उम्दा किस्म के पौधे तैयार किए। आज उनकी नर्सरी में चंदन के २ हजार, शीशम के ३ हजार, बेर के १० हजार, ताइवान पपीते के ५ हजार, सहजन के १० हजार, आंवला के ३ हजार, अमरूद के २५००, अनार के ३ हजार, गोभी के २० हजार, टमाटर के २० हजार, बैंगन के २० हजार, खेजड़ी के ७ हजार, गूगल धूप के १५००, करोंदा के २ हजार, नीम के २ हजार, मालाबार नीम के ५ हजार एवं नींबू के ५ हजार उम्दा किस्म के पौधे बिक्री हेतु उपलब्ध हैं। उन्नत बीजों से उत्पादित ये पौधे ही सीताराम सेंगवा के सफल होने की वजह हैं। यही वजह है कि पिछले वर्ष उन्होंने ७० से ८० हजार पौधे विक्रय किये हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा एवं राजस्थान के जालौर, सीकर,जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर व बालोतरा के किसान भी बेहतरीन किस्म के पौधे खरीदने के लिए आते रहते हैं। सीताराम सेंगवा केवल उम्दा किस्म के पौधे उत्पादित करने के साथ साथ ही होम डिलीवरी की माध्यम से लेने वाले के पास भी पहुँचाते हैं।


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सीताराम सेंगवा ने स्वयं आत्मनिर्भर बन अन्य किसानों के लिए भी रोजगार का अवसर प्रदान किया

सीताराम सेंगवा कृषि एवं बागवानी के माध्यम से आत्मनिर्भर बन पाए हैं, साथ ही गांव के कई किसानों व महिलों को भी रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में उनका यह सफर बेहद संघर्षमय एवं चुनौतीपूर्ण रहा है। खेती में सीताराम सेंगवा के सराहनीय योगदान के लिए काजरी संस्थान ने उनकी सराहना करते हुए सम्मानित किया है। विभिन्न उपलब्धियां हासिल करने के उपरांत सीताराम को गर्व है कि वह एक सफल किसान हैं। सीताराम कहते हैं कि उनके अधिकतर मित्रगण सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं, लेकिन वे मेरे कार्य की काफी सराहना करते हैं। सीताराम के मित्रों का कहना है कि सीताराम द्वारा खेती करने का निर्णय सही व उत्तम था। साथ ही, सीताराम का भी यही मत है कि नौकरी की अपेक्षा उनके द्वारा कृषि को प्राथमिकता देना बेहतरीन निर्णय था।
आधुनिक तकनीक से बीन्स व सब्जी पैदा कर नवनीत वर्मा बने लखपति

आधुनिक तकनीक से बीन्स व सब्जी पैदा कर नवनीत वर्मा बने लखपति

मध्य प्रदेश के बैतूल निवासी किसान नवनीत वर्मा वर्तमान में बीन्स एवं सब्जियों को देश के साथ साथ विदेशों में भी निर्यात कर रहे हैं। पूर्व में पारंपरिक कृषि से हताश होकर आधुनिक खेती की तरफ रुख किया, जिसके लिए उन्होंने इधर उधर से कर्ज लेकर इसकी तैयारी की। अन्य कई सारे किसान इसी कारण से आधुनिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। आधुनिक खेती में किसानों को अत्यधिक श्रम नहीं करना पड़ता एवं किसान परंपरागत खेती की अपेक्षा शीघ्र पैदावार अर्जित कर लेते हैं। पारंपरिक खेती की तुलना में किसान बागवानी फसलों के जरिये अधिक बार पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए कमाई भी पारंपरिक फसलों से अधिक होती है। इन्ही सब पहलुओं को देखते हुए पारंपरिक कृषि प्रणाली की जगह आधुनिक तकनीक से सब्जियों का उत्पादन वर्तमान में किसानों की प्राथमिकता बन गयी है।

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इस बात के एक उदाहरण मध्य प्रदेश के बैतूल निवासी किसान नवनीत वर्मा हैं। सोयाबीन, गन्ना, मूंग, मक्का, गेहूं की कृषि आजमाने के बाद जब आय कम होने लगी तो उन्होंने अपने मित्र की सलाह मानकर सब्जियों व बीन्स की खेती करना प्रारंभ कर दिया। जिसका बेतहर संरक्षण एवं उत्तम पैदावार लेने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया, जिसके अंतर्गत उन्होंने शेडनेट एवं पॉलीहाउस जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया। कभी कर्ज लेकर आधुनिक खेती करने वाले नवनीत वर्मा आज मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र की मंडियों समेत अन्य अरब देशों तक सब्जियों व बीन्स को बेचकर औसतन १ लाख रुपये माह के हिसाब से अर्जित कर रहे हैं।

नवनीत कितने एकड़ भूमि में सब्जियों का उत्पादन करते हैं ?

आपको बतादें कि नवनीत वर्मा ने 10 एकड़ भूमि में मौसंबी, स्ट्राबैरी, स्ट्राबैरी एवं बेर का उत्पादन प्रारंभ किया था। रोचक बात यह है कि किसान नवनीत वर्मा के ही एक मित्र ने उनको सब्जियों की खेती करने के लिए सलाह दी थी। उन्होंने मित्र की सलाह को बिना किसी भय के मान लिया एवं कर्ज लेकर के सब्जियों की पैदावार प्रारंभ करदी।

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सरकार आधुनिक तकनीकों से खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कई लाभकारी योजनाओं के अंतर्गत शेडनेट आदि तकनीकों पर अनुदान देती है। जिसका लाभ लेकर नवनीत भी अब तक १ एकड़ भूमि में शेडनेट लगा चुके हैं और आज अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। उन्होंने पहले २० लाख का खर्च कर ककड़ी, गोभी, टमाटर लगाए परन्तु बीन्स के जरिये अधिक आय होने के कारण उन्होंने सिर्फ बीन्स की ही फसल लगाने का निर्णय किया। बीन्स की खेती में २० प्रतिशत रासायनिक उर्वरक व ८० प्रतिशत जैविक खाद का उपयोग होता है। नवनीत वर्मा बीन्स के बीज भी उत्पादित करते हैं।
भारत के इन क्षेत्रों में केले की फसल को पनामा विल्ट रोग ने बेहद प्रभावित किया है

भारत के इन क्षेत्रों में केले की फसल को पनामा विल्ट रोग ने बेहद प्रभावित किया है

भारत के अंदर केले का उत्पादन गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। पनामा विल्ट रोग से प्रभावित इलाके बिहार के कटिहार एवं पूर्णिया, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, बाराबंकी, महाराजगंज, गुजरात के सूरत और मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जनपद हैं। भारत में केले की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। साथ ही, यह देश विश्व के सबसे बड़े केले उत्पादकों में से एक है। भारत विभिन्न केले की किस्मों की खेती के लिए जाना जाता है, जिनमें लोकप्रिय कैवेंडिश केले के साथ-साथ रोबस्टा, ग्रैंड नैने एवं पूवन जैसी अन्य क्षेत्रीय प्रजातियां भी शम्मिलित हैं। प्रत्येक किस्म की अपनी अलग विशेषताएं हैं। ऐसी स्थिति में यदि केले की फसल को कुछ हो जाए तो इसका प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव किसानों की आमदनी पर पड़ता है। साथ ही, देशभर के केला किसानों के लिए पनामा विल्ट रोग एक नई समस्या के रूप में आया है। यह बीमारी उनकी लाखों की फसल को बर्बाद कर रही है।

पनामा विल्ट रोग

यह एक कवक रोग है। इस संक्रमण से केले की फसल पूर्णतय बर्बाद हो सकती है। पनामा विल्ट फुसैरियम विल्ट टीआर-2 नामक कवक की वजह से होता है, जिससे केले के पौधों का विकास बाधित हो जाता है। इस रोग के लक्षणों पर नजर डालें तो केले के पौधे की पत्तियां भूरी होकर गिर जाती हैं। साथ ही, तना भी सड़ने लग जाता है। यह एक बेहद ही घातक बीमारी मानी जाती है, जो केले की संपूर्ण फसल को चौपट कर देती है। यह फंगस से होने वाली बीमारी है, जो विगत कुछ वर्षों में भारत के अतिरिक्त अफ्रीका, ताइवान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित विश्व के बहुत सारे देशों में देखी गई। इस बीमारी ने वहां के किसानों की भी केले की फसल पूर्णतय चौपट कर दी है। वर्तमान में यह बीमारी कुछ वर्षों से भारत के किसानों के लिए परेशानी का कारण बन गई है।

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पनामा विल्ट रोग की इस तरह रोकथाम करें

पनामा विल्ट रोग की रोकथाम के संबंध में वैज्ञानिकों एवं किसानों की सामूहिक कोशिशों से इस बीमारी का उपचार किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है, कि पनामा विल्ट बीमारी की अभी तक कोई कारगर दवा नहीं मिली है। हालाँकि, CISH के वैज्ञानिकों ने ISAR-Fusicant नाम की एक औषधी बनाई है। इस दवा के इस्तेमाल से बिहार एवं अन्य राज्यों के किसानों को काफी लाभ हुआ है। सीआईएसएच विगत तीन वर्षों से किसानों की केले की फसल को बचाने की कोशिश कर रहा है। इस वजह से भारत भर के किसानों तक इस दवा को पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

पनामा विल्ट रोग का इन राज्यों में असर हुआ है

हमारे भारत देश में केले का उत्पादन बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं मध्य प्रदेश में किया जाता है। पनामा विल्ट रोग से प्रभावित बिहार के कटिहार और पूर्णिया, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, बाराबंकी, महाराजगंज, गुजरात के सूरत और मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जनपद हैं। ऐसी स्थिति में यहां के कृषकों के लिए यह बेहद आवश्यक है, कि वो अपने केले की फसल का विशेष रूप से ध्यान रखते हुए उसे इस बीमारी से बचालें।
करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

आजकल हर क्षेत्र में काफी आधुनिकीकरण देखने को मिला है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए करेला की खेती बेहद शानदार सिद्ध हो सकती है। 

दरअसल, जो करेला की खेती से प्रतिवर्ष 20 से 25 लाख रुपये की शानदार आमदनी कर रहे हैं। हम जिस सफल किसान की हम बात कर रहे हैं, वह उत्तर प्रदेश के कानुपर जनपद के सरसौल ब्लॉक के महुआ गांव के युवा किसान जितेंद्र सिंह है। 

यह पिछले 4 वर्षों से अपने खेत में करेले की उन्नत किस्मों की खेती (Cultivation of Varieties of bitter gourd) करते चले आ रहे हैं।

किसान जितेंद्र सिंह के अनुसार, पहले इनके इलाके के कृषक आवारा और जंगली जानवरों की वजह से अपनी फसलों की सुरक्षा व बचाव नहीं कर पाते हैं। 

क्योंकि, किसान अपने खेत में जिस भी फसलों की खेती करते थे, जानवर उन्हें चट कर जाते थे। ऐसे में युवा किसान जिंतेद्र सिंह ने अपने खेत में करेले की खेती करने के विषय में सोचा। क्योंकि, करेला खाने में काफी कड़वा होता है, जिसके कारण जानवर इसे नहीं खाते हैं।

करेला की खेती से संबंधित कुछ विशेष बातें इस प्रकार हैं ?  

किसानों के लिए करेला की खेती (Bitter Gourd Cultivation) से अच्छा मुनाफा पाने के लिए इसकी खेती जायद और खरीफ सीजन में करें। साथ ही, इसकी खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।

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किसान करेले की बुवाई (Sowing of Bitter Gourd) को दो सुगम तरीकों से कर सकते हैं। एक तो सीधे बीज के माध्यम से और दूसरा नर्सरी विधि के माध्यम से किसान करेले की बिजाई कर सकते हैं। 

गर आप करेले की खेती (Karele ki kheti) नदियों के किनारे वाले जमीन के हिस्से पर करते हैं, तो आप करेल की अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

करेले की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ?

करेले की खेती से शानदार उपज हांसिल करने के लिए कृषकों को करेले की उन्नत किस्मों (Varieties of Bitter Gourd) को खेत में रोपना चाहिए। वैसे तो बाजार में करेले की विभिन्न किस्में उपलब्ध हैं। 

परंतु, आज हम कुछ विशेष किस्मों के बारे में बताऐंगे, जैसे कि- हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1, कल्याणपुर बारहमासी, काशी सुफल, काशी उर्वशी पूसा विशेष आदि करेला की उन्नत किस्में हैं। 

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किसान किस विधि से करेले की खेती कर रहा है ?

युवा किसान जितेंद्र सिंह अपने खेत में करेले की खेती ‘मचान विधि’ (Scaffolding Method) से करते हैं। इससे उन्हें काफी अधिक उत्पादन मिलती है। 

करेले के पौधे को मचान बनाकर उस पर चढ़ा देते हैं, जिससे बेल निरंतर विकास करती जाती है और मचान के तारों पर फैल जाती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने खेत में मचान बनाने के लिए तार और लकड़ी अथवा बांस का इस्तेमाल किया जाता है। 

यह मचान काफी ऊंचा होता है। तुड़ाई के दौरान इसमें से बड़ी ही सुगमता से गुजरा जा सकता है। करेले की बेलें जितनी अधिक फैलती हैं उससे उतनी ही अधिक उपज हांसिल होती है। 

वे बीघा भर जमीन से से ही 50 क्विंटल तक उत्पादन उठा लेते हैं। उनका कहना है, कि मचान बनाने से न तो करेले के पौधे में गलन लगती है और ना ही बेलों को क्षति पहुँचती है।

करेले की खेती से कितनी आय की जा सकती है ?

करेले की खेती से काफी शानदार उत्पादन करने के लिए किसान को इसकी उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए। जैसे कि उपरोक्त में बताया गया है, कि युवा किसान जितेंद्र सिंह पहले अपने खेत में कद्दू, लौकी और मिर्ची की खेती किया करते थे, 

जिसे निराश्रित पशु ज्यादा क्षति पहुंचाते थे। इसलिए उन्होंने करेले की खेती करने का निर्णय लिया है। वहीं, आज के समय में किसान जितेंद्र 15 एकड़ में करेले की खेती कर रहे हैं और शानदार मुनाफा उठा रहे हैं। 

जितेंद्र के मुताबिक, उनका करेला सामान्य तौर पर 20 से 25 रुपये किलो के भाव पर आसानी से बिक जाता है। साथ ही, बहुत बार करेला 30 रुपये किलो के हिसाब से भी बिक जाता है। अधिकांश व्यापारी खेत से ही करेला खरीदकर ले जाते हैं। 

उन्होंने यह भी बताया कि एक एकड़ खेत में बीज, उर्वरक, मचान तैयार करने के साथ-साथ अन्य कार्यों में 40 हजार रुपये की लागत आती है। वहीं, इससे उन्हें 1.5 लाख रूपये की आमदनी सरलता से हो जाती है। 

जितेंद्र सिंह तकरीबन 15 एकड़ में खेती करते हैं। ऐसे में यदि हिसाब-किताब लगाया जाए, तो वह एक सीजन में करेले की खेती से तकरीबन 15-20 लाख रुपये की आय कर लेते हैं। 

करेले की खेती करने का सही तरीका जानें

करेले की खेती करने का सही तरीका जानें

किसान करेले की खेती कर तगड़ा मुनाफा कमा सकते है, जानिये किस प्रकार करें करेले की खेती। सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के अलावा सब्जियों और फलों की खेती पर भी अधिक जोर दिया जा रहा है। 

किसानों की आय बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। ताकि किसान खेती कर मुनाफा कमा सके और कृषि क्षेत्र का विकास किया जा सके। 

करेले के उत्पादन के लिए किस प्रकार की मिट्टी होनी चाहिए ?

करेले की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी को बेहतर माना जाता है। करेले की अधिक उपज के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि होनी चाहिए। 

इस मिट्टी के अलावा नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी को भी बेहतर माना जाता है। किसान उपाऊ मिट्टी में करेले की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकता है। 

करेले के उत्पादन के लिए उचित तापमान 

करेले की खेती के लिए ज्यादा तापमान की आवश्यकता नहीं रहती है। करेले के बेहतर उत्पादन के लिए नमी का होना आवश्यक है। 

करेले की खेती के लिए उचित तापमान 20 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए। करेले का उत्पादन नमी वाली भूमि में अक्सर बेहतर होता है। 

करेले की उन्नत किस्में 

किसान बेहतर और अधिक उत्पादन के लिए करेले की इन किस्मों का चयन कर सकते है। करेले की उन्नत किस्मों में सम्मिलित है, पूसा औषधि, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, बारहमासी, पूसा विशेष, पंजाब करेला-1, पूसा दो मौसमी, सोलन सफ़ेद, सोलन हरा, एस डी यू- 1, प्रिया को-1, कल्याणपुर सोना और पूसा शंकर-1। 

करेले की बुवाई का उचित समय 

करेले की बुवाई क्षेत्रों के अनुसार अलग अलग समय पर की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में करेले की बुवाई जून से जुलाई के बीच में की जाती है। 

ऐसे ही गर्मी के मौसम में करेले की बुवाई जनवरी से मार्च के बीच में की जाती है और जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से जून के बीच तक की जाती है। 

करेले की बुवाई का तरीका जानें 

करेले के बीजो की बुवाई का सही तरीका इस प्रकार है। करेले के बीजो की बुवाई दो प्रकार से की जा सकती है एक तो बीजो को सीधा खेत में बो कर और दूसरा करेले की नर्सरी तैयार करके भी करेले की बुवाई की जा सकती है। 

  1. करेले की बुवाई से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर ले। खेत की जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना ले। 
  2. खेत में बनाई गई प्रत्येक क्यारी 2 फ़ीट की दूरी पर होनी चाहिए। 
  3. क्यारियों में बेजो की रोपाई करते वक्त बीज से बीज की दूरी 1 से 1.5 मीटर होनी चाहिए। 
  4. करेले के बीज को बोते समय , बीज को  2 से 2 .5 सेमी गहरायी पर बोना चाहिए। 
  5. बुवाई के एक दिन पहले बीज को पानी में भिगोकर रखे उसके बाद बीज को अच्छे से सूखा लेने के बाद उसकी बुवाई करनी चाहिए। 

करेले के खेत में सिंचाई कब करें 

करेले की खेती में वैसे सिंचाई की कम ही आवश्यकता होती है। करेले के खेत में समय समय पर हल्की सिंचाई करें और खेत में नमी का स्तर बने रहने दे। 

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जिस खेत में करेले की बुवाई का कार्य किया गया है वह अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए।  खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए। खेत में पानी के रुकने से फसल खराब भी हो सकती है। 

करेले की फसल में कब करें नराई - गुड़ाई 

खेत में निराई गुड़ाई की आवश्यकता शुरुआत में होती है। करेले की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए समय समय पर नराई गुड़ाई करनी चाहिए। 

फसल में पहला पानी लगने के बाद खेत में अनावश्यक पौधे उगने लगते है जो फसल की उर्वरकता को कम कर देते है। ऐसे में समय पर ही खेत में से खरपतवार को उखाड़ कर खेत से दूर फेंक देना चाहिए। 

करेले की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है 

करेले की फसल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता है। करेले की फसल बुवाई के 60 से 70 दिन बाद ही पककर तैयार हो जाती है। 

करेले के फल की तुड़ाई सुबह के वक्त करें, फलों को तोड़ते वक्त याद रहे डंठल की लम्बाई 2 सेंटीमीटर से अधिक होनी चाहिए इससे फल लम्बे समय तक ताजा बना रहता है।

ऑफ सीजन में गाजर बोयें, अधिक मुनाफा पाएं (sow carrots in off season to reap more profit in hindi)

ऑफ सीजन में गाजर बोयें, अधिक मुनाफा पाएं (sow carrots in off season to reap more profit in hindi)

गाजर जो दिखने में बेहद ही खूबसूरत होती है और इसका स्वाद भी काफी अच्छा होता है स्वाद के साथ ही साथ विभिन्न प्रकार से हमारे शरीर को लाभ पहुंचाती है। गाजर से जुड़ी पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें । जानें कैसे ऑफ सीजन में गाजर बोयें और अधिक मुनाफा पाएं। 

ऑफ सीजन में गाजर की खेती दें अधिक मुनाफा

सलाद के लिए गाजर का उपयोग काफी भारी मात्रा में होता है शादियों में फेस्टिवल्स विभिन्न विभिन्न कार्यक्रमों में गाजर के सलाद का इस्तेमाल किया जाता है। इसीलिए लोगों में इसकी मांग काफी बढ़ जाती है, बढ़ती मांग को देखते हुए इनको ऑफ सीजन भी उगाया जाता है विभिन्न रासायनिक तरीकों से और बीज रोपड़ कर। 

गाजर की खेती

गाजर जिसको इंग्लिश में Carrot के नाम से भी जाना जाता है। खाने में मीठे होते हैं तथा दिखने में खूबसूरत लाल और काले रंग के होते हैं। लोग गाजर की विभिन्न  विभिन्न प्रकार की डिशेस बनाते हैं जैसे; गाजर का हलवा सर्दियों में काफी शौक और चाव से खाया जाता है। ग्रहणी गाजर की मिठाइयां आदि भी बनाती है। स्वाद के साथ गाजन में विभिन्न प्रकार के विटामिन पाए जाते हैं जैसे विटामिनए (Vitamin A) तथा कैरोटीन (Carotene) की मात्रा गाजर में भरपूर होती है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए कच्ची गाजर लोग ज्यादातर खाते हैं इसीलिए गाजर की खेती किसानों के हित के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। 

गाजर की खेती करने के लिए जलवायु

जैसा कि हम सब जानते हैं कि गाजर के लिए सबसे अच्छी जलवायु ठंडी होती है क्योंकि गाजर एक ठंडी फसल है जो सर्दियों के मौसम में काफी अच्छी तरह से उगती है। गाजर की फसल की खेती के लिए लगभग 8 से 28 डिग्री सेल्सियस का तापमान बहुत ही उपयोगी होता है। गर्मी वाले इलाके में गाजर की फसल उगाना उपयोगी नहीं होता। 

ये भी देखें: गाज़र की खेती: लाखों कमा रहे किसान

ऑफ सीजन में गाजर की खेती के लिए मिट्टी का उपयोग

किसान गाजर की अच्छी फसल की गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए तथा अच्छी उत्पादन के लिए दोमट मिट्टी का ही चयन करते हैं क्योंकि यह सबसे बेहतर तथा श्रेष्ठ मानी जाती है। फसल के लिए मिट्टी को भली प्रकार से भुरभुरा कर लेना आवश्यक होता है। बीज रोपण करने से पहले जल निकास की व्यवस्था को बना लेना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की जलभराव की स्थिति ना उत्पन्न हो। क्योंकि जलभराव के कारण फसलें सड़ सकती हैं , खराब हो सकती है, जड़ों में गलन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है तथा फसल खराब होने का खतरा बना रहता है। 

गाजर की खेती का सही टाइम

किसानों और विशेषज्ञों के अनुसार गाजर की बुवाई का सबसे अच्छा और बेहतर महीना अगस्त से लेकर अक्टूबर तक के बीच का होता है। गाजर की कुछ अन्य किस्में  ऐसी भी हैं जिनको बोने का महीना अक्टूबर से लेकर नवंबर तक का चुना जाता है और यह महीना सबसे श्रेष्ठ महीना माना जाता है। गाजर की बुवाई यदि आप रबी के मौसम में करेंगे , तो ज्यादा उपयोगी होगा गाजर उत्पादन के लिए तथा आप अच्छी फसल को प्राप्त कर सकते हैं।

ऑफ सीजन में गाजर की फसल के लिए खेत को तैयार करे

किसान खेत को भुरभुरी मिट्टी द्वारा तैयार कर लेते हैं खेत तैयार करने के बाद करीब दो से तीन बार हल से जुताई करते हैं। करीब तीन से 5 दिन के भीतर अपने पारंपरिक हल से जुताई करना शुरू कर देते हैं और सबसे आखरी जुताई के लिए पाटा फेरने की क्रिया को अपनाते हैं।  खेत को इस प्रकार से फसल के लिए तैयार करना उपयुक्त माना जाता है।

गाजर की उन्नत किस्में

गाजर की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इनकी विभिन्न विभिन्न प्रकार की  किस्मों का उत्पादन करते हैं। जो ऑफ सीजन भी उगाए जाते हैं। गाजर की निम्न प्रकार की किस्में होती है जैसे:

  • पूसा मेघाली

पूसा मेघाली की बुआई लगभग अगस्त से सितंबर के महीने में होती है। गाजर की इस किस्म मे भरपूर मात्रा में कैरोटीन होता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है। यह फसल उगने में 100 से लेकर 110 दिनों का समय लेते हैं और पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं।

  • पूसा केसर

गाजर कि या किस्म भी बहुत ही अच्छी होती है या 110  दिनों में तैयार हो जाती हैं। पूसा केसर की बुआई का समय अगस्त से लेकर सितंबर का महीना उपयुक्त होता है।

  • हिसार रसीली

हिसार रसीली सबसे अच्छी किस्म होती है क्योंकि इसमें विटामिन ए पाया जाता है तथा इसमें कैरोटीन भी होता है। इसलिए बाकी किस्मों से यह सबसे बेहतर किसमें होती है। यह फसल तैयार होने में लगभग 90 से 100 दिनों का टाइम लेती है।

  • गाजर 29

गाजर की या किस्म स्वाद में बहुत मीठी होती है इस फसल को तैयार होने में लगभग 85 से 90 दिनों का टाइम लगता है।

  • चैंटनी

चैंटनी किस्म की गाजर दिखने में मोटी होती है और इसका रंग लाल तथा नारंगी होता है इस फसल को तैयार होने में लगभग 80 से 90 दिन का टाइम लगता है।

  • नैनटिस

नैनटिस इसका स्वाद खाने में बहुत स्वादिष्ट तथा मीठे होते हैं या फसल उगने में 100 से 120 दिनों का टाइम लेती है। 

 दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल Gajar (agar sinchai ki vyavastha ho to), Taki off-season mein salad ke liye demand puri ho aur munafa badhe काफी पसंद आया होगा और हमारा यह आर्टिकल आपके लिए बहुत ही लाभदायक साबित होगा। हमारे इस आर्टिकल से यदि आप संतुष्ट है तो ज्यादा से ज्यादा इसे शेयर करें।

खीरे की खेती बन रही है मोटी कमाई का जरिया , इस तकनीक की सहायता से किसान कर रहे दुगुना उत्पादन

खीरे की खेती बन रही है मोटी कमाई का जरिया , इस तकनीक की सहायता से किसान कर रहे दुगुना उत्पादन

गर्मियों में खीरे की खेती से किसान कमा रहे है मोटा मुनाफा। आइये आज के इस आर्टिकल में जानते है, किस प्रकार की तकनीक का उपयोग कर किसान खीरे से मोटी कमाई कर रहे है। 

यह कहानी है उतार प्रदेश के किसान दिलीप कुमार की जिन्होंने ड्रिप तकनीक की सहायता से खीरे की खेती कर भारी मुनाफा कमाया है। 

दिलीप कुमार ने बताया ड्रिप विधि से खीरे की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए। जुताई करने के बाद पुरे खेत में मेढ़ बनाते है और उन सभी मेढ़ों को पन्नी के जरिये अच्छे से ढक देते है। 

सभी मेढ़ों पर खीरे के बीज की बुवाई लगभग डेढ फ़ीट पर होनी चाहिए। खेत की मेढ़ों पर ड्रिप बिछा दी जाती है, और जब खीरे का पौधा बढ़ने लग जाता है तो इसी ड्रिप के द्वारा पौधों में सिंचाई की जाती है। ऐसा करने के बाद पौधों को बांस के जरिये सीधा डोरी या रस्सी से बाँध दिया जाता है। 

ऐसा करने से पौधा सीधा बढ़ता है और फसल अच्छी और ज्यादा रहती है। फलों को तोड़ने में भी आसानी होती है। खीरा की बुवाई के 60 से 65 दिन बाद ही पौधों पर फल निकलना शुरू हो जाते है। 

इन फलों को रोजाना तोड़कर बाजारों में बेचा जा सकता है। खीरे की फसल लगभग 2 महीने तक फल प्रदान करती है , इसके फलों को तोड़कर बाजार में कई बार बेचा जा सकता है।

किसानों द्वारा खीरे की खेती मुनाफे के तौर पर की जा रही है। यदि किसान खीरे की खेती वैज्ञानिक तौर से करें तो ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। लेकिन इसके लिए किसान को खीरे की बुवाई से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।

बाराबंकी में स्थित कुतलूपुर गांव के दिलीप कुमार ने बताया वो पिछले तीन वर्ष से एक बीघे जमीन पर खीरे की खेती कर रहे है। 

उन्होंने खीरे की खेती ड्रिप विधि की सहायता से शुरू की आज वो खीरे के खेती लगभग 4 बीघे जमीन पर कर रहे है। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया खीरे की खेती से वो सालाना 3 से 4 लाख रुपए सालाना कमा रहे है। 

खीरा बहुत जल्दी तैयार होने वाली फसल 

खीरा की फसल लगभग 60 से 65 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। यह बहुत जल्दी तैयार होनी वाली फसल है। दीलिप कुमार ने बताया खीरे की एक बीघे खेती में लगभग 15 से 20 हजार का खर्चा आता है। 

खीरे की ड्रिप विधि द्वारा खेती में बीज, बांस, डोरी, पन्नी, ड्रिप, लेबर और कीटनाशक दवाइयों का खर्चा आता है। लेकिन इससे मुनाफा भी 3 से 4 लाख रुपए सालाना कमाए जा सकते है। 

खीरा बहुत जल्दी तैयार होने वाली फसल है। भोजन के साथ सलाद के अलावा खीरे को कच्चा भी खाया जा सकता है। इस फसल की बुवाई कर छोटे किसान भी इससे मुनाफा कमा सकते है। प्रति हेक्टेयर में खीरे का उत्पादन 100 से 150 क्विंटल होती है। 

एक एकड़ खेत में बीज की कितनी मात्रा होनी चाहिए ?

खीरे की बुवाई करते वक्त याद रहे, प्रति हेक्टेयर खेत में बीज की 1 किलोग्राम मात्रा की आवश्यकता रहती है। बीज की बुवाई से पहले बीज का उपचार करना आवश्यक है।  

यह भी पढ़ें: जायद में खीरे की इन टॉप पांच किस्मों की खेती से मिलेगा अच्छा मुनाफा

बिना उपचार के बीजो की खेतों में बुवाई करने से फसल में रोग लगने की ज्यादा आशंकाए रहती है। इसीलिए बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कप्तान से उपचारित करना चाहिए। 

कच्ची अवस्था में तोड़े खीरे के फल 

खीरे के फलों को कच्ची अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए, कच्चे फलों की बाजार में अच्छी कीमत होती है। फलों को एक दिन बाद छोड़कर तोडना चाहिए। 

फलों को तेज धार वाले चाकू से काटना चाहिए ताकि खीरे की बैल को कोई नुक्सान न पहुंचे। खीरे को पीला पड़ने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए , फल को तोड़ते समय फल नरम होना चाहिए। 

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे के फूल का सर्वाधिक इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। इसके साथ-साथ शादियों में भी घर और मंडप को सजाने में गेंदे का उपयोग होता है। यही कारण है, कि बाजार में इसकी निरंतर साल भर मांग बनी रहती है। 

ऐसे में किसान भाई यदि गेंदे की खेती करते हैं, तो वह कम खर्चा में बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। बिहार में किसान पारंपरिक फसलों की खेती करने के साथ-साथ बागवानी भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। 

विशेष कर किसान वर्तमान में गुलाब एवं गेंदे की खेती में अधिक रूची एवं दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी पहले की तुलना में अधिक बढ़ गई है। 

यहां के किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की मांग केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि राज्य के बाहर भी हो रही है। राज्य में बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जिनकी जिन्दगी फूलों की खेती से पूर्णतय बदल गई है।

बिहार सरकार फूल उत्पादन रकबे को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

परंतु, वर्तमान में बिहार सरकार चाहती है, कि राज्य में फूलों की खेती करने वाले कृषकों की संख्या और तीव्र गति से बढ़े। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने फूलों के उत्पादन क्षेत्रफल को राज्य में बढ़ाने के लिए मोटा अनुदान देने की योजना बनाई है। 

दरअसल, बिहार सरकार का कहना है, कि फूल एक नगदी फसल है। यदि राज्य के किसान फूलों की खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। ऐसे में वे खुशहाल जिन्दगी जी पाएंगे। 

यह भी पढ़ें: इन फूलों की करें खेती, जल्दी बन जाएंगे अमीर

बिहार सरकार 70 % प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है

यही वजह है, कि बिहार सरकार ने एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत फूलों की खेती करने वाले किसानों को अच्छा-खासा अनुदान देने का फैसला किया है। 

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती पर नीतीश सरकार वर्तमान में 70 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। यदि किसान भाई इस अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो वे उद्यान विभाग के आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

किसान भाई अगर योजना के संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो horticulture.bihar.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।

बिहार सरकार द्वारा प्रति हेक्टेयर इकाई लागत तय की गई है

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती के लिए बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 40 हजार निर्धारित किया है। बतादें, कि इसके ऊपर 70 प्रतिशत अनुदान भी मिलेगा। 

किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में गेंदे की खेती करते हैं, तो उनको राज्य सरकार निःशुल्क 28 हजार रुपये प्रदान करेगी। इसलिए किसान भाई योजना का फायदा उठाने के लिए अतिशीघ्र आवेदन करें।

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है। 

सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है। 

सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।

1. सूरजमुखी की एमएसएफएस-8 (MSFS-8) किस्म 

सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है। 

2. सूरजमुखी की केवीएसएच-1 (KVSH-1) किस्म 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है। 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। 

3. सूरजमुखी की एसएच-3322 (SH-3322) किस्म 

सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है। 

किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है। 

4. सूरजमुखी की ज्वालामुखी (Jwalamukhi) किस्म 

सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है। 

ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में किसान कर रहे हैं सूरजमुखी की खेती, आय में होगी बढ़ोत्तरी

ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। 

5. सूरजमुखी की एमएसएफएच-4 (MSFH-4) किस्म

सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है। 

एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। 

अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

हमारे यूजर श्री संजय शर्मा जी, राकेश कुमार ग्राम कलुआ नगला, ने ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी मांगी थीड्रैगन फ्रूट मूलतः वियतनाम,थाईलैंड,इज़रायल और श्रीलंका में मशहूर है.या आप कह सकते हैं की वहीं से ये दुनियां में फैला है.ड्रैगन फ्रूट का पेड़ कैकटस प्रजाति का होता है। इसे कम उपजाऊ मिट्टी और कम पानी के साथ भी उगाया जा सकता है। इसको बीज के साथ भी उगाया जा सकता है लेकिन ये एक लम्बी और कठिन प्रक्रिया है इसको कटिंग के साथ उगाने की सलाह दी जाती है इसके फ्रूट से शरीर को कई पोषक तत्व मिलते हैं इसको खाने से मधुमेह, शरीर में दर्द और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो की शरीर को कई तरह के रोगों से लड़ने में सहायता करता है। भारत में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में भी बढ़ने लगी है।

लगाने का समय:

ड्रैगन फ्रूट को साल में दो बार लगाया जा सकता है एक फरवरी और सितम्बर के महीने में इसको लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की मौसम ज्यादा गर्म न हो जिससे की पौधे को ज़माने में दिक्कत न हो। जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी कटिंग को लगाना ज्यादा अच्छा होता है और उसके जल्दी से फल आने की गारंटी होती है। इसके फल सितम्बर से दिसंबर तक आते हैं इनको 5 से 6 बार तोडा जाता है।

मिट्टी की सेहत:

इसको जैसा की हमने बताया है इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है दोमट मिटटी सबसे ज्यादा मुफीद होती है लेकिन क्योकि ये कैक्टस प्रजाति का पौधा है तो इसे कम उपजाऊ,पथरीली और कम पानी वाली जगह भी आसानी से उगाया जाता है। इसकी मिटटी में जल जमा नहीं होना चाहिए. ये पौधा कम पानी चाहता है. बेहतर होगा की इसको ऐसी जमीन में लगाया जाना चाहिए जहाँ पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और जहाँ पानी  का ठहराब न हो।

उपयुक्त जलवायु:

इसको बहुत ज्यादा तापमान भी बर्दास्त नहीं होता नहीं होता है तो इससे बचने के लिए इसके लिए छाया की व्यवस्था की जा सकती है. वैसे गर्मी से बचने के लिए इसमें समय समय पर पानी देना होता है. पानी देने के लिए ड्राप सिचांई ज्यादा अच्छी रहती है. एक बार कम तापमान में इसका पौधा जम जाये तो ये ज्यादा तापमान को भी झेल लेता है।

खेत की तैयारी:

इसके लिए खेत को समतल करके अच्छी जुताई करके 2 मीटर के अंतराल पर 2 X2 X2 फुट के गड्ढे बना देने चाहिए तथा इसको 15 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए जिससे की इसकी गर्मी निकल जाये उसके बाद इसमें गोबर की सूखी और बनी हुई खाद बालू , मिटटी और गोबर को बराबर के अनुपात में गड्ढे में भर देना चाहिए और कटिंग लगाने के बाद रोजाना शाम को ड्राप सिंचाई करनी चाहिए. ये पौधे को जमने में और बढ़ने में सहायता करता है।

ड्रैगन फ्रूट्स के प्रकार:

[caption id="attachment_2984" align="aligncenter" width="300"]Dragon fruit ड्रैगन फल[/caption] ड्रैगन फ्रूट्स ३ तरह के होते है. लाल रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल , सफेद रंग के गूदे वाला पीले रंग का फल और सफेद रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल. सभी तीनों तरह के फल भारत में उगाये जा सकते हैं. लेकिन लाल रंग के गूदे वाले लाल फल को भारत में ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इसकी उपज बाजार की मांग के अनुरूप करनी चाहिए. इसका बजन सामान्यतः 300 ग्राम से 800 ग्राम तक होता है और इसके फल की तुड़ाई एक पेड़ से 3 से 4 बार होती है।

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रखरखाब:

  • इसके पेड़ को किसी सहारे की जरूरत होती है क्योकि जब पेड़ बढ़ता है तो ये अपना वजन सह नहीं पता है तो इसके पेड़ के पास कोई सीमेंटेड पिलर या लकड़ी गाड़ देनी चाहिए जो की इसके पेड़ का बजन सह सके।
  • आप ड्रैगन फलों के पौधों को कटिंग और बीज दोनों से उगा सकते हैं। हालांकि, बीज द्वारा ड्रैगन फल की सिफारिश नहीं की जाती है क्योंकि इसमें लंबा समय करीब करीब 5 साल का वक्त लग जाता है।
  • जब आप कटिंग से ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं, तो 1 फुट लंबाई का 1 साल पुराना कटिंग लगाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
  • ड्रैगन फ्रूट कुछ शेड को सहन कर सकता है और गर्म जलवायु परिस्थितियों को प्राथमिकता देता है। इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है.ड्रैगन फ्रूट प्लांट को मध्यम नम मिट्टी की आवश्यकता होती है जो कि ड्राप सिंचाई से पूरी कि जा सकती है.
  • आप फूल और फल आने के समय पानी की मात्रा बढ़ा सकते हैं। ड्रैगन फ्रूट कि खेती में ड्रिप सिंचाई ही सबसे उपयुक्त होती है।
  • ड्रैगन फल आसानी से बर्तन, कंटेनर, छत पर और घर के बगीचे के पिछवाड़े में उगाए जा सकते हैं.यदि आप कंटेनर को सूरज की रोशनी के लिए खिड़की के पास रखते हैं, तो ड्रैगन फलों को घर के अंदर उगाया जा सकता है।
  • ड्रैगन फलों के पौधों को दुनिया के उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय स्थानों में उगाया जा सकता है।
  • किसी भी अन्य फलों के पौधों की तरह, ड्रैगन फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • ड्रैगन फ्रूट के पौधों को 40 ° C के तापमान तक सबसे अच्छा उगाया जा सकता है।

बाजार:

इसकी मांग वहां ज्यादा होती है जहाँ हेल्थ को लेकर लोग जागरूक होते है इसका मतलब है की आप इसको बड़े शहरों में बेच सकते हो जहाँ आपको इसकी अच्छी कीमत मिल जाएगी. इसका कीमत 150 से 250 रुपये किलो के हिसाब से होती है इसको अगर एक्सपोर्ट करना हो तो जैसे ही इसका रंग लाल होना शुरू हो तभी इसको तोड़ लेना चाहिए तथा ध्यान रहे की इसमें कोई निशान या किसी बजन से दबे नहीं, नहीं तो इसके ख़राब होने के चांस बढ़ जाते है।

रोग:

ड्रैगन फ्रूट में कोई रोग नहीं आता है अभी तक ऐसा कुछ रोग इसका मिला नहीं है हाँ लेकिन ध्यान रहे जब इसके फूल और फल आने का समय हो उस समय मौसम साफ और शुष्क होना चाहिए आद्रता वाले मौसम में फल पर दाग आने की संभावना रहती है. रखरखाब में सबसे ज्यादा इसको लगाने के समय पर जरूरत होती है।

खाद:

  • ड्रैगन फ्रूट्स को खाद की जरूरत ज्यादा होती है. ये एक गूदा वाला फल होता है तो इससे अच्छा और बड़ा फल लेने के लिए इसके  फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • पौधे की उपलब्धता और बाजार के बारे में स्थान स्थान के हिसाब से बदल जाते हैं. इसके लिए बेहतर है की आप अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी से बात करें तथा पूरी जानकारी लेने के बाद ही इसकी खेती शुरी करें।
लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

सन;1780 मे पहली बार भारत देश मे दस्तक देने वाला फल लीची , जिसकी जरूरत आज भी शहरी और ग्रामीण बाजारों में काफी तेज़ी मे है। 

लीची एक मात्र ऐसा फल है जो हमारे शरीर को डी हाइड्रेशन यानी की पानी की कमी की पूर्ति करता है।इसी कारण भारत के पश्चिमी इलाको मे इसकी मांग बहुत है। 

इसी के साथ साथ इसमें विटामिन सी होता है, जो हमारे शरीर मे कैल्शियम की कमी की पूर्ति करता है। इसमें केरोटिन और नियोसीन भी होता है जो शरीर मे इम्यूनिटी को बढ़ाता हैं। 

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भारत मे लीची का उत्पादन सबसे ज्यादा त्रिपुरा मे होता है। इसके अलावा अन्य राज्य झारखंड , पश्चिम बंगाल , बिहार , उतरप्रदेस और पंजाब मे। 

भारत मे किसानों के लिए लीची की फसल से अच्छा मुनाफा होता है ,लेकिन साथ ही साथ अच्छी देखभाल भी करनी पड़ती है।

लीची की फसल को तैयार होने मे काफी समय लगता है, इसलिए किसानों को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है । ऐसे मे किसानों को संपूर्ण फसल को तैयार करने मे लागत खर्चा भी ज्यादा लगता है।

लीची के पालन के लिए सिंचाई और खाद उर्वरक का इस प्रकार करे इस्तेमाल :

insect pest in litchi

लीची की फसल के लिए हमेशा आपको थाला विधि से ही सिंचाई करनी चाहिए। हमें केवल तब तक सिंचाई करनी है ,जब तक पौधों मे फूल आना न लग जाए। 

उसके बाद हमें नवंबर माह से फरवरी माह तक लीची की फसल की सिंचाई नहीं करनी चाहिए। लीची के पौधों को पानी देने का सबसे अच्छा समय शाम का होता है, क्योंकि इससे दिन की गर्मी की वजह से वाष्पीकरण भी नहीं होता है और पौधों को अच्छी तरह से जल की पूर्ति भी होती हैं। 

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इसके अलावा अच्छी खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें और साथ ही साथ पौधे के आस पास बिल्कुल भी खरपतवार ना रहने दे। खरपतवार सभी प्रकार की फसलों के लिए सबसे खतरनाक होता है। 

इस से बचाव के लिए समय समय पर लीची के पौधों के आस पास ध्यान रखे और खरपतवार बिल्कुल भी न रहने दे। जब पौधे 6 से 7 माह के हो जाते है, तो उसके बाद आप पौधों मे फव्वारे के द्वारा पानी की छटाई अवस्य रूप से करे। 

अप्रैल महीने से लेकर नवंबर महीने तक लीची के पौधे की पूर्ण रूप से सिंचाई करे । इस समय तेज गर्मी के कारण पौधों को पानी की पूर्ति सही ढंग से नहीं करवाने पर संपूर्ण फसल पर बहुत असर पड़ता है।

लीची के पौधों की इस प्रकार करे कांट - छांट और रख - रखाव :

production of litchi crops

लीची के पौधों की रख - रखाव करना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है ,क्योंकि इसके बिना पूरी फसल भी खराब हो सकती है। 

इसके लिए आप गर्मी और सर्दी की ऋतू मे जब पोधा 4-5 साल का होता है, तो इस समय उसकी अवांछित टहनियों और साखाओ को हटा देना चाहिए । इससे जो भी कीट पतंग और मकड़िया बिना धूप पहुंचने के कारण शाखाओं में छिप जाती हैं वे नष्ट हो जाएंगी। 

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इससे पौधे का अच्छे से भरण-पोषण होगा और फसल की उपज भी अच्छी होगी। फलों की तुड़ाई करने के बाद आप पौधे की जितनी भी रोग ग्रसित ,अवांछित, खराब टहनियों और पत्तियों को हटा दे। 

संपूर्ण खेत के चारों तरफ से बाढ करना बहुत जरूरी है,इससे आसपास के पशु फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। साथ ही साथ इससे फसल की उपज मे भी इजाफा होगा।

लीची की फसल मे आने वाली समस्याओं का इस प्रकार करे समाधान :

litchi farming

लीची की फसल का सही से रखरखाव और अच्छी उपज के लिए किसानों को काफी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है, जिनके बारे मे आज हम आपको बताएंगे की किस प्रकार आप इन समस्याओं से निदान पा सकते है। एक अच्छी फसल का उत्पादन कर सकते हैं तो चलिए जानते है इनके बारे मे

  1. लीची के फलों का फटना और छोटा होने से बचाव :- लीची के पौधों को गर्म और तेज हवाओं के कारण इनके फलों पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखाई देता है क्योंकि इससे फल फटना तथा छोटा होना शुरू हो जाते है। ऐसे मे आप  बोरेक्स  ( 5ग्राम लिटर ) या बोरिक अम्ल (4 ग्रा./ली.) के घोल का 2-3 बार छिड़काव करें । इससे फसल की अच्छी पैदावार होगी।फलों के फटने की समस्या भी दूर हो जायेगी ।
  2. लीची मे मकड़ी का लग जाने से बचाव : लीची मे अगर एक बार मकड़ी लग जाती है, तो पूरी फसल को बर्बाद कर देती है। यह मकड़ी लीची के पौधों की टहनियां ,पत्ते और फलों को चुस्ती रहती है। जिसके कारण पूरा पौधा कमजोर पड़ जाता है और नष्ट हो जाता है। इससे बचाव के लिए आप सितंबर और अक्टूबर माह मे केलथेन या फ़ॉसफामिडान (1.25 मि.ली./लीटर) का घोल बनाकर 10- 15 दिन का अंतराल लेकर छिड़काव करें।
  3. लीची के फलों को झड़ने से रोकने के सुझाव :लीची के फलों का झड़ना संपूर्ण फसल के लिए काफी नुकसानदायक होता है। ऐसा पानी की कमी और किटों के कारण होता है।इससे बचाव के लिए आप पौधे मे फल लगने के मात्र सप्ताह भर के अंदर - अंदर क्रॉनिक्सएक्स 2 मिलीलीटर / 4. 8 लीटर या फिर आप ए एन ए 20 मिलीग्राम प्रति लीटर के घोल का बारी-बारी से छिड़काव करें। इससे फलों का झड़ना बंद हो जाएगा।

लीची के पौधे का पूर्ण विकास और प्रबंध इस प्रकार करें :

Litchi farmers

लीची के पौधे का संपूर्ण तरह से विकास होने मे 15 से 20 साल तक का समय लगता है। ऐसे मे पौधे का पूर्ण विकास और सही रखरखाव होना बहुत ही जरूरी होता है।अच्छी उपजाऊ जमीन और अच्छी जलवाष्प का होना भी काफी आवश्यक होता है। 

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लीची के पौधों को लगाते समय प्रति पौधे के बीच मे 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए। किसान भाई प्रत्येक एक हेक्टर में 90 से 200 लीची के पौधे लगाएं। 

लीची के पौधों का अच्छे से विकास करने के लिए उनको क्रमबद्ध कतारों मे जरूर लगाए। नियमित रूप से सिंचाई और समय-समय पर पौधों की जरूरत के अनुसार खाद और उर्वरक का छिड़काव करना ना भूलें।

भारत मे लीची का बढ़ता हुआ आयात इस प्रकार :

litchi production in india

भारतीय बाजार की तुलना मे अंतरराष्ट्रीय बाजार मे नवंबर माह से लेकर मार्च माह तक काफी ज्यादा लीची की मांग होती है। भारत मे लीची का फल जुलाई महीने तक संपूर्ण रूप से तैयार होकर बाजार मे उपलब्ध होता है। 

ऐसे समय पर अंतरराष्ट्रीय बाजार मे लीची की मांग बढ़ जाती है। भारत से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा एपीडी कार्यक्रम की भी प्रमुख भूमिका है। 

भारत से सबसे ज्यादा लीची का निर्यात सऊदी अरेबिया संयुक्त अरब अमीरात, ओमान , कुवैत  ,बेल्जियम  ,बांग्लादेश और नार्वे जैसे देशों को होता है। 

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भारतीय बाजार मे लीची की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में काफी कम है , लेकिन पिछले कुछ सालों मे इसकी कीमत मे इजाफा हुआ है। 

साथ ही साथ भारत सरकार द्वारा किसान भाइयों के लिए फसलों की रखरखाव और जानकारी के लिए कई सारे कार्यक्रम भी किए जाते हैं। 

इसके अलावा लॉकडाउन लगने के कारण किसानों को लीची की फसल को भारतीय बाजार मे बेचने के लिए काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा लेकिन आने वाले सालों मे लीची का आयात बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। 

अतः हमारे द्वारा बताए गए इन सभी सुझाव समस्याओं एवं उनके निदान जो की लीची की फसल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। साथ ही साथ इसके अलावा किसान भाई समय-समय पर लीची के पौधों का उचित रखरखाव और खाद रूप का छिड़काव करते रहे।