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बासमती

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

बतादें, कि तीव्रता से होते शहरीकरण की वजह से दून बासमती चावल विलुप्त हो रहा है। खबरों के मुताबिक, बीते सालों में इसकी खेती काफी घट गई है। दून बासमती, चावल की किस्म जो अपनी समृद्ध सुगंध और विशिष्ट स्वाद के लिए जानी जाती है। तेजी से लुप्त हो रही है।उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दून बासमती चावल की खेती का रकबा बीते पांच सालों में 62% प्रतिशत तक घट गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, दून बासमती चावल की पैदावार 2018 में जहां 410 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किया जा रहा था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा महज 157 हेक्टेयर तक सिमट गया है। यही नहीं इस खेती के सिकुड़ते क्षेत्रफल के कारण किसानों ने भी अपने हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया है। 2018 में 680 किसान दून बासमती चावल पैदा कर रहे थे। पांच सालों में 163 किसानों ने बासमती चावल की खेती बंद कर दी है।

दून बासमती चावल की सुगंध और स्वाद कैसा होता है ?

अपनी विशिष्ट कृषि-जलवायु परिस्थितियों की वजह से यह चावल दून घाटी के लिए स्थानिक महत्व रखता है। इसके अलावा, चावल की यह प्रजाति केवल बहते पानी में ही पैदा होती है। यह चावल की “बहुत ही नाजुक” किस्म है। यह पूरी तरह से जैविक रूप से उत्पादित अनाज है, रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग करने पर इसकी सुगंध और स्वाद खो जाता है। 

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दून बासमती, चावल की एक दुर्लभ किस्म होने के अतिरिक्त देहरादून की समृद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण भाग है। दून बासमती को दून घाटी में चावल उत्पादकों द्वारा विकसित किया गया था। दून बासमती चावल एक वक्त में बड़े क्षेत्रफल पर उगाया जाता था, जो अब एक विशाल शहरी क्षेत्र के तौर पर विकसित हो चुका है। अब दून बासमती चावल की खेती उंगलियों पर गिने जा सकने वाले कुछ ही क्षेत्रों तक ही सीमित है।

यह किस्म बड़ी तीव्रता से विलुप्त हो रही है 

तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण घटती कृषि भूमि जैसे कई कारणों से चावल की विशिष्ट किस्म तीव्रता से विलुप्त हो रही है। विपणन सुविधाओं का अभाव और सब्सिडी न मिलने जैसी वजहों ने दून बासमती चावल को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया हैं। बासमती चावल की विभिन्न अन्य प्रजातियां दून बासमती के नाम पर बेची जा रही हैं। दून बासमती के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।

धान की नई किस्म मचा रहीं धमाल

धान की नई किस्म मचा रहीं धमाल

हरित क्रांति की शुरुआत के दौर से अभी तक हुए अनुसंधानौं के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली ने धान की विश्व में धमाल मचाने वाली 1121, 1509,1637 ,1728 , 1718 के अलावा अनेक किस्में विकसित की हैं। समूचे विश्व में निर्यात होने वाली बासमती की अधिकांश किस्में पूसा संस्थान की देन हैं। 

किसान धान लगाने की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में उन्हें यह जानना जरूरी है किस किस्म से उत्पादन अच्छा मिलेगा एवं बाजार में किस किस्म की अच्छी मांग होगी।

पूसा धान की 10 नई किस्में (Top10 New Varieties of Pusa Dhan)

पूसा बासमती 1509

वर्ष 2013 में यह मूर्छित इस किस्म को पंजाब एवं दिल्ली राज्य के बासमती उगाने वाले क्षेत्रों के लिए संस्तुत किया गया लेकिन यह किस्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक में अच्छा उत्पादन दे रही है। 

इसकी औसत उपज 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। इसके पौधे अर्ध बोने एवं गिरने के प्रति प्रतिरोधी है। पकने पर इसके दाने झड़ते नहीं हैं। 

यह पर्ण झुलसा रोग, भूरा धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है । तीव्र सुगंध, लंबा दाना एवं पकने में गुणवत्ता युक्त होने के कारण इसकी समूचे विश्व में अच्छी मांग है।

पूसा 1612

55 से 62 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली यह किस्म पंजाब ,हरियाणा ,दिल्ली एवं जम्मू कश्मीर राज्य में सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म पूसा सुगंध 5 का विकसित रूप है। 

यह ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी है।पकने में 120 दिन का समय लेती है। इस किस्म में लीफ ब्लास्ट बीमारी के प्रतिरोधक  जीन विद्यमान हैं। पैदावार की दृष्टि से पूसा बासमती 1,  तरावड़ी एवं पूसा बासमती 1121 से अच्छी है। 

पूसा बासमती 6- 1401

पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में सिंचित अवस्था में यह किस्म 50 से 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है । यह मध्यम बोनी किस्म है। यह पकने पर गिरती नहीं है । 

दानों की समानता और पकने की गुणवत्ता के हिसाब से यह किस्म पूसा बासमती 1121 से बहुत अच्छी है। पकने पर दाना एक समान रहता है। सुगंध अच्छी है । 150 से 155 दिन में पकती है। 

उन्नत पूसा बासमती 1 -1460

पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में सिंचित अवस्था मैं यह किस्म 55 से 63 कुंतल तक उपज देती है। 135 से 40 दिन में पक्का तैयार होती है। 

उषा सुगंध 5-25 11

दिल्ली पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्य में यह किस्म में 55 से 62 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है। यह  उच्च उपज देने वाली सुगंधित चावल की किस्म उत्तर  भारत में वहु फसली पद्धति के लिए उत्तम है ।

सुगंधित और लंबी देने वाली यह किस्म पकाव में गुणवत्तापूर्ण है। झड़ने के प्रति सहिष्णु है। यह  भूरे धब्बे की प्रतिरोधी, पत्ती लपेटक एवं  ब्लास्ट के प्रति माध्यम प्रतिरोधी है। 125 दिन में तैयार हो जाती है। 

पूसा बासमती 1121

पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश उत्तराखंड एवं बासमती धान उगाने वाले सभी क्षेत्रों में सिंचित अवस्था में यह किस्म 40 से 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। पकने में 140 से 45 दिन लगते हैं । इसका दाना 8 मिलीमीटर लंबा होता है जो पकने के बाद 20 मिलीमीटर तक लंबा हो जाता है। 

पूसा आर एच-10 संकर धान

पंजाब ,हरियाणा, दिल्ली ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में यह किस्म 65 से 70 कुंतल तक उपज देती है। यह बासमती गुण वाली धान की विश्व में प्रथम संकर किस्म है। 

इसका दाना अत्यधिक सुगंधित ,लंबा और पतला है जो पकने पर लंबाई में 2 गुना बढ़ जाता है । यह  110 से 15 दिन का समय लेती है। 

पूसा बासमती 1718

यह किशन पूसा बासमती 1121 को संशोधित कर बनाई गई है। यह 1121 से 15 दिन पहले पक जाती है। लंबाई उतनी ही है लेकिन यह 11 21 किस्म के मुकाबले थोड़ा कम गिरती है। रोग कम आते हैं और उपज 1121 से ज्यादा होती है। 

पूसा बासमती 1728

यह धान की 14 01  किस्म से तैयार संशोधित प्रजाति है। बीएलबी रोग नहीं आता है। उपज भी 32 कुंतल प्रति एकड़ तक आ जाती है। 

पूसा बासमती 1637

इस किस्म से  30 कुंतल प्रति एकड़ तक उत्पादन मिल जाता है। यह भी पूसा की पूर्व में विकसित किस्मों की संशोधित प्रजाति है। मुख्य रूप से पूसा बासमती एक का यह संशोधित वर्जन है और गर्दन तोड़ जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है।

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 जो कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार दे कर किसानों को कर रही है मालामाल

धान की कई किस्में हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं इनमें से एक किस्म पूसा-1509 है जो किसानों को मालामाल कर रही है। एक एकड़ में ₹75000 तक की लागत देती है जिससे किसान की आर्थिक स्थिति में बहुत अच्छा असर पड़ता है। 

इस किस्म की धान लगाने से मुख्य फायदा यह है कि धान की कटाई होने के बाद हम उस खेत में सब्जियां भी लगा सकते हैं, ऐसे में किसान गेहूं लगाने के पहले सब्जियों से काफी रुपए कमा लेते हैं जिससे उनकी आय बढ़ जाती है। 

यह फसल न केवल कम दिनों में पकती है बल्कि इसकी खेती करने से किसानों को बहुत लाभ मिलता है इसलिए कई लोगों का कहना है कि धान की यह किस्म पूसा-1121 की जगह ले सकती है। 

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ना केवल भारत में सप्लाई होता है बल्कि इसकी मांग विदेशों में भी है। यूरोप में भी इस चावल की सप्लाई काफी मात्रा में होती है। कई एक्सपार्टों का कहना है कि विश्व बाजार में इस चावल के अच्छे दाम मिलेंगे। 

इस किस्म का चावल बहुत सुंदर है। चावल में सुगंध भी अच्छी है। धान की यह किस्म रोपाई के तीन महीने बाद तक पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती करने में पानी और खाद काम मात्रा में लगता है, अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। 

धान के इस किस्म के बीज की मांग बहुत है क्योंकि इससे किसानों को बहुत अच्छी पैदावार प्राप्त हो रही है। तरावडी की अनाज की मंडी बासमती की बड़ी मंडी है। 

और आजकल इस मंडी में पूसा-1509 किस्म की धान भी आना शुरू हो गई है। इस फसल का उत्पादन 20 से 22 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन हो रहा है और इसे बेचने पर 3800 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से रुपए मिलते हैं। मतलब किसानों को इसमें 75000 रुपए प्रति एकड़ तक की पैदावार मिल रही है। 

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पूसा-1509 किस्म का दबदबा क्यों :

धान की पूसा-1509 किस्म के आने के पहले किसान धान की पूसा-1121 नमक किस्म की खेती करते थे। इसकी खेती करने में किसानों को कुछ दिक्कत आती थी। जैसे इस प्रकार की किस्म के पौधों की ऊंचाई अधिक होती थी। 

शुरू से लेकर फसल के तैयार होने में लगभग 5 महीने का वक्त लगता था और अगर कटने पर एक रात खेत में रुक गई तो 15-20% तो खेत में ही झड़ जाती थी। जिसके कारण किसानों का काफी नुकसान हो जाता था। 

लेकिन पूसा-1509 किस्म में ये सब परेशानियां नहीं आतीं। यह किस्म पूसा-1121 का उन्नत रूप है इसलिए इस किस्म की मांग ज्यादा है। इसके अलावा इस किस्म की खेती करने में पानी की कम मात्रा का इस्तेमाल होता है जिससे पानी की बचत होती है। 

इस प्रकार के किस्म की खेती करने से किसान को काफी फायदा मिलता है। जानकारी के मुताबिक इस साल करीब 200 क्विंटल बीज किसानों को दिया गया है जिसकी रोपाई लगभग 50 हजार हेक्टेयर में की गई है। 

और अगले वर्ष इसकी मात्रा बढ़ाई जाएगी जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। आने वाले समय में पानी की और कमी होगी, पानी को बचाना है तो किसानों को इस तरह की किस्मों का चयन जरूर करना होगा।

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बुआई की जानकारी :

इस किस्म की धान की बुआई 17 मई से 21 जून तक कर सकते हैं एवं रोपाई का सही समय जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक है। एक एकड़ धान की रोपाई के लिए 4-5 कि.ग्रा. धान की आवश्यकता होती है। 

पूसा-1509 की कतार से कतार से दूरी 20cm और पौधे से पौधे की दूरी 15cm होनी चाहिए। बुआई के पूर्व बीजों का बीजोपचार कर लेना चाहिए। और उचित उर्वरक का चयन करना चाहिए। 

उर्वरकों का उपयोग मृदा के परीक्षण के हिसाब से करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रिटी लक्नोर + सेफनर का उपयोग बुआई के 3-4 दिन बाद करना चाहिए। इस प्रकार की किस्म में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती इसलिए समय समय पर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। जब दाने परिपक्व हो जाएं तो इसकी कटाई कर लें। 

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धान की यह किस्म किसानों को नुकसान दे सकती है :

धान की इस केस में इतनी खूबियां होने के बावजूद भी कुछ खामियां भी हैं। देश के कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में बासमती जो सबसे पॉपुलर धान की किस्म थी उसमें एक दिक्कत सामने आ गई है। 

अभी तक ठीक काम कर रहे धान की इस किस्म में कुछ खामियों के कारण सरकार द्वारा इसके बीज वापस लिए जा रहे हैं इसलिए जो भी किसान धान कि इस किस्म की फसल करते हैं वह अब सावधान हो जाएं। 

ऐसा ठीक उसी प्रकार हुआ है जिस प्रकार किसी कंपनी की गाड़ी में खराबी आ जाने के कारण वह कंपनी उस गाड़ी को वापस ले लेती है। सरकार द्वारा ऐसा अहम फैसला इसलिए लिया गया है ताकि किसानों को ज्यादा नुकसान का सामना ना करना पड़े। 

अगर आप भी धान की किस्म के बीज वापस करना चाहते हैं तो आप 21 मई के पहले वापस कर सकते हैं। इसके लिए आपको खरीदी की ओरिजिनल रसीद दिखानी पड़ेगी तभी आप इस किस्म के बीजों को वापस कर सकते हैं। बीज वापसी के बदले किसानों को उनका पैसा या फिर नए बीज दिए जाएंगे।

इतने पॉपुलर बीज को क्यों लिया वापस लेने का फैसला :

जानकारी के मुताबिक एक किसान ने इस बीज के लिए शिकायत की थी जिसके कारण पूसा ने इसका टेस्ट किया जिसमें पता चला कि इसकी उपज सिर्फ 40 फ़ीसदी है जो कि 80 से 90 फ़ीसदी होना चाहिए इसीलिए सरकार द्वारा यह बीज वापस लिया जा रहा है। 

खराबी सिर्फ एक लाट में थी, जिसकी वजह से २५ फरवरी से ४ अप्रैल २०२२ तक की अवधी वाले कर्नाल क्षेत्र से बिक्री हुए एक लाट को वापस लिया जा रहा है। उस बिक्री की रसीद दिखा के किसान भाई बदले में नया बीज या पैसे वापस ले सकते हैं। 

किसान भाई क्षेत्रीय केंद्र करनाल, फोनः 018 42267169 पर बात कर सकते हैं। आशा करते हैं की पूसा-1509 की खेती से सम्बंधित जानकारी किसान भाइयों को पसंद आयी हो, इससे सम्बंधित किसी भी प्रकार की जानकारी चाहतें हों या अपने सुझाव देना चाहें तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। 

जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। 

और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। 

यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

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रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। 

इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

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 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। 

इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

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इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। 

उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। 

पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

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 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। 

जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन

पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन

वर्तमान समय में हमारे देश में चावल की कई प्रकार की किस्में बोई जाती हैं। इन किस्मों में कुछ किस्में किसानों के लिए लाभदायक, कुछ किस्में किसानों के लिए कम लाभदायक और वहीं दूसरी ओर बात की जाए तो कुछ किस्मों से किसानों को नुकसान भी होता है। 

इसी सब को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा चावल की एक नई किस्म पूसा 1692 बनाई गई है जो कि पूसा 1509 और पूसा 1121 के बीच की किस्म है। 

धान एक खरीफ की फसल है क्योंकि हम जानते हैं कि खरीफ की फसल बोने का समय नजदीक आ रहा है, ऐसे में किसानों की सबसे ज्यादा नजर बासमती की नई किस्मों में है जो उन्हें अधिक से अधिक लाभ दे सके। जिन किसानों को कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन करना होता है यह फसल उन किसानों के लिए विकसित की गई है।

इस किस्म को पूसा ने जून 2020 में विकसित किया है। आंकड़ों के मुताबिक किसान की आय फसल के दाम बढ़ने से नहीं बल्कि फसल की पैदावार बढ़ने से बढ़ती है। 

इसी सब को देखते हुए पूसा ने धान की यह किस्म पूसा 1692 विकसित की है जिस की पैदावार पूसा की अन्य किस्मों से अधिक बताई जा रही है। ऐसे में यह किस्म किसानों के लिए बहुत अधिक लाभदायक साबित हो सकती है। 

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पूसा बासमती 1692 की खासियत :

पूसा ने इस किस्म की खासियत के बारे में बताया है कि यह किस्म बहुत ही कम समय में तैयार होने वाली किस्म है। इस किस्म की फसल लगभग 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। 

ऐसे में किसान गेहूं बोने के पहले खेत में दूसरी प्रकार की सब्जियां उगाकर और अधिक लाभ पा सकते हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि यह पूसा 1509 की तुलना में प्रति एकड़ 5 क्विंटल ज्यादा पैदावार देती है। 

इस किस्म का चावल ज्यादा टूटता नहीं है जिससे 50% चावल खड़ा निकलता है। यह किस में किसानों को 1 एकड़ में 27 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है। 

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पूसा 1692 के उत्पादन क्षेत्र :

देश में इस किस्म की धान का उत्पादन केवल कुछ स्थानों में ही सीमित है जिनमें दिल्ली हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश हैं। क्योंकि वैज्ञानिकों के मुताबिक यहां की जलवायु इस किस्म के लिए उपयुक्त मानी जा रही है। 

हमारा देश बासमती चावल का सबसे ज्यादा उत्पाद ही नहीं बल्कि इसका निर्यात भी सबसे ज्यादा करता है दुनिया के करीब डेढ़ सौ देशों में भारत के यहां से बासमती सप्लाई होता है। 

भारत सालाना करीब 30 हजार करोड़ रुपए के चावल का निर्यात करता है। खास बात यह है कि बासमती चावल की इस किस्म को बोने का टैग अभी कुछ ही राज्यों को मिला है जिनमें हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश,दिल्ली के बाहरी क्षेत्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। 

बासमती चावल की यह किस्म कम अवधि में ज्यादा उपज देने वाली किस्म है जिससे आईसीएआर नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। इसे बोने से लेकर कटने तक में 115 से 120 दिन का समय लगता है। 

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पूसा 1692 की पैदावार :

इस किस्म की पैदावार अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग होती है। जैसे मोदीपुरम में पैदावार 74 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बताई जा रही है। इसके अलावा पीबी1692 की औसत पैदावार 52.6 क्विंटल बताई जा रही है। 

पूसा की नई किस्में 3 वर्षों के परीक्षण के दौरान पूसा की अन्य किस्मों की अपेक्षा 18% ज्यादा औसत पैदावार दी है। दिल्ली राज्य में पूसा 1692 ने 6.79% हरियाणा में 21% जबकि उत्तर प्रदेश में 7.5 प्रतिशत ज्यादा पैदावार दी है। जो कि अन्य किस्मों के अपेक्षा काफी अधिक है। 

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पीबी 1692 के प्रमुख गुण :

इस किस्म के बालियों की औसत लंबाई 27 सेंटीमीटर होती है जो पूरी तरह से फैली होती है। इसके 1000 बीजों का भार लगभग 29 ग्राम होता है। इस किस्म की रोग प्रतिरोधी क्षमता अन्य किस्मों की अपेक्षा काफी अधिक है। 

इसकी रोग प्रतिरोधी क्षमता पूसा 1121 की भांति काम करती है लेकिन गर्दन तोड़ बीमारी में यह पूसा 1121 से अधिक सहनशील है। इस किस्म के चावल लगभग 9 मिलीमीटर लंबी और 2 मिलीमीटर चौड़े होते हैं। जबकि पकने के बाद चावल की लंबाई 75 मिली मीटर तक हो जाती है इस प्रकार के चावल की खुशबू काफी अच्छी होती है। 

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कम समय की किस्म होने के कारण इस की कटाई जल्दी हो जाती है जिससे खेत में दूसरी फसल बोने का पर्याप्त समय मिल जाता है। इन दूसरी फसलों के माध्यम से किसान और अधिक रुपए कमा सकता है।

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

हमारे देश में गेहूं के बाद जिस फसल के उत्पादन सबसे ज्यादा किया जाता है वह है धान। विश्व में सबसे ज्यादा चावल उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर आता है। इसी कारण सरकार धान के उत्पादन पर ज्यादा ध्यान दे रही है। जिस वजह से सरकार धान की नई नई किस्में ला रही है, जिनमें से पूसा बासमती 1728 भी धान की एक किस्म है। इस किस्म की धान में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। किसान इसमें आवश्यकता पड़ने पर समय समय पर सिंचाई कर सकते हैं। इस प्रकार की धान में किसान को उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। उर्वरक की मात्रा सीमित होनी चाहिए। पूसा द्वारा निर्मित धान की इस किस्म में रोगरोधी क्षमता काफी अधिक है।

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पूसा 1728, पूसा 6 का एक नया वर्जन है लेकिन इस किस्म का उत्पादन पूसा 1401 जैसा ही है। कृपा करके सानु स्पेशल की देखरेख बहुत अच्छे से करें तो वह स्पेशल से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं।

पूसा 1728 की तैयारी :

पूसा द्वारा विकसित यह बासमती चावल किस्म एक अच्छी उपज देने वाली किस्म है। इस किस्म की बुआई 20 मई से लेकर 22 जून के बीच करनी चाहिए। एवं इसके पौधों की रोपाई का समय 15 जून से 5 जुलाई के मध्य होता है।

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फसलों में बीमारी लगने पर किसान अनेक प्रकार की जहरीली दवाओं का छिड़काव चावल की फसल पर कार्य था। जिस कारण से हमारे देश का चावल विदेशों से कई बार रिजेक्ट हो जाता था। इसलिए इस किस्म के पौधों में दवाई के छिड़काव की आवश्यकता न के बराबर होती है। किसान को बहुत कम मात्रा में स्प्रे की जरूरत पड़ेगी। एसे में किसानों के पैसे की बचत होगी। इस प्रकार की धान में प्रति एकड़ 4 से 5 किलोग्राम रोपाई और अनुसंधित धान के लिए 1 से 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की रोपाई है। इसमें दुख तारों की बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए और दो पौधों की बीच की दूरी का अंतर 15 सेंटीमीटर होना चाहिए।

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पूसा 1728 : फसल का बीज उपचार :

किसी भी फसल के बीज की बुवाई से पहले उसके बीच का बीज उपचार करना बहुत जरूरी होता है धान की इस किस्म के बीज के बीज उपचार करने के लिए इसे पहले 10 ग्राम बाविस्टिन और 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइगिसन का 8 लीटर पानी के घोल में 24 घंटे तक भिगोते हैं। यह घोल 4 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। इससे बीज का अच्छी तरह से बीज उपचार हो जाता है और किसान द्वारा स्वस्थ बीज बोने से फसल की पैदावार भी अधिक होती है।

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पूसा 1728 में उर्वरक की मात्रा :

फसल में उर्वरक मिलाने से उस फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। जैविक उर्वरक की अपेक्षा कीटनाशक उर्वरक से अधिक पैदावार होती है लेकिन कीटनाशक के छिड़काव से फसलें जहरीली हो जाती हैं। धान की फसल में उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी का परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। इसमें उर्वरक का इस्तेमाल रोपाई के 35 से 40 दिन बाद करना चाहिए। इस प्रकार की फसल में औसत उपज पर्याप्त मात्रा में होती है। दोनों की परिपक्व होने पर इस फसल को काट लेते हैं। इसकी औसत उपज 20 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ है। धान की इस किस्म से किसान अच्छी उपज प्राप्त करता है और मुनाफा कमाता है।

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718 : 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा
धान की एक और किस्म विकसित की गई है जिसका नाम पूसा बासमती 1718 है। धान की इस किस्म से किसानों को अधिक फायदा मिल रहा है। यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक पैदावार दे रही है और धान की इस किस्में में बीमारियों का खतरा भी कम है। धान की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक देती है। इस किस्म की धान का दाना लंबा और चमकदार है एवं तना मोटा है। इस फसल से आप अच्छी पैदावार प्राप्त करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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इस किस्म की धान के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए अपने खेत में ज्यादा पानी नहीं रुकने देना चाहिए और दूसरा पानी खेत की नमीं को देखते हुए देना चाहिए।

पूसा 1718 की तैयारी :

धान की इस किस्म की बुवाई हम 14 मई से 20 जून के बीच में कर सकते हैं अगर किसी कारणवश हम बुवाई करने में विलंब कर देते हैं तो भी हम इस किस्म से अच्छा उत्पादन कमा सकते हैं।

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इसके साथ ही आप इसकी रोपाई जून के दूसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह के बीच में कर सकते हैं। बासमती धान के लिए 4 से 5 किलोग्राम प्रति एकड़ रोपाई की आवश्यकता होती है। इस किस्म की रोपाई में क्यारियों और पौधों के बीच की दूरी पर भी ध्यान रखा जाता है। अगर हम कतार की बात करें तो कतार से कतार के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर इसके अलावा दो पौधों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसमें आप 110 किलोग्राम प्रति एकड़ नाइट्रोजन अर्थात यूरिया डाल सकते हैं। धान लगाने के 30 दिन के अंदर खेत में यूरिया डाल देना चाहिए। इसके साथ ही खेत में ज्यादा पानी ना रुकने दें और खेत की नमी को देखते हुए ही सिंचाई करें। ऐसा करने से पौधों की लंबाई ज्यादा नहीं बढ़ पाती है। जिससे धान के झड़ने की समस्या नहीं होती।

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पूसा 1718 की विशेषताएं

धान की एक किस्म पूसा 1121 का डुप्लीकेट वर्जन है। यह पूसा 1121 की तरह ही बनाई गई है लेकिन इसमें कुछ परिवर्तन किए गए हैं जैसे पूसा 1121 में लगने वाली गर्दन मरोड़ बीमारी पूसा 1718 में नहीं लगती। इसके साथ ही इस किस्म के पौधे की लंबाई कम और मोटाई ज्यादा है। जिससे इसका दाना गिरता नहीं है। पूसा 1121 का दाना हल्का लाल और पूछा 1718 का दाना हल्का पीला होता है। भारत के 7 राज्यों में किसकी खेती की जाती है जिनमें हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़ आदि प्रमुख हैं। इस फसल में बीमारी ना के बराबर लगती है जिसके कारण इसमें हम कीटनाशकों का उपयोग ना भी करें तो भी कोई समस्या नहीं जाती। इसके साथ ही अगर हम उत्पादन की बात करें तो किस का उत्पादन 20 से 25 कुंटल प्रति एकड़ होता है जो कि किसानों के लिए लाभदायक होता है।

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धान की किस्म पूसा 1718, पूसा 1121 की समस्याओं को देखते बनाई गई है इससे जो समस्याएं पूसा 1121 की उत्पादन में आती थी वह 1718 के उत्पादन में नहीं आती।
धान की उन्नत किस्में अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान हो रहे मजबूत

धान की उन्नत किस्में अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान हो रहे मजबूत

रायपुर। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां धान फसल के लिए अनुकूल वातावरण होने के कारण किसान साल में दो बार धान की फसल लगाते हैं, जो सदियों से उनकी आय का एक बहुत बड़ा साधन बना हुआ। वहीं नई तकनीकों के उपयोग ने भी धान फसल की पैदावार बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभाई है। यदि बात करें अच्छी किस्मों की तो यहां जवा फूल, दुबराज, विष्णु भोग, लुचई, देव भोग, कालीमूज, बासमती के अलावा कुछ ऐसी किस्में हैं, जिनसे किसान ज्यादा आय अर्जित कर रहे हैं। वहीं रायपुर में स्थित इंदिरा गांधी कृषि महाविद्यालय ने धान की नई-कई किस्मों की खोज की है, जिसको अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान समृद्धि की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा संचालित की जा रही योजनाओं का लाभ भी किसान बखूबी उठा रहे हैं और अपने सपनों को पंख लगा रहे हैं।

रोज सामने आ रही आत्मनिर्भरता की कहानी

कभी नक्सली और पिछड़े राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ आज खेती-किसानी के मामले में देश में सिरमौर बना हुआ है। यहां के किसान इतने आत्मनिर्भर हो चुके हैं कि उन्हें अब अपने भविष्य की चिंता कम ही सताती है। वहीं सरकार की ऋण माफी और बोनस जैसी योजनाओं के कारण भी यहां के किसान खेती की ओर और आकर्षित हुए हैं, जिनके आत्मनिर्भर बनने की कहानी अक्सर सामने आती रहती है। कई किसान तो ऐसे थे जिनकी हालत काफी खराब थी, पर धान की उन्नत किस्म अपनाकर उन्होंने न केवल अपना जीवन सुधारा, बल्कि एक प्रकार से राज्य में खेती किसानी का प्रचार-प्रसार कर जो लोग खेती किसानी छोड़ने का मन बना चुके थे, उन्हें फिर से खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी किया।


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नर-नारी धान अपनाकर समृद्ध बन रहे किसान

वहीं छत्तीसगढ़ में एक ऐसी धान की किस्म भी है जिसको अपनाकर किसान अधिक मुनाफा कमा रह हैं। इस किस्म का नाम नर-नारी धान है। धान की इस किस्म को अपनाकर किसान एक एकड़ में एक लाख रुपए तक का फायदा ले रहे हैं। शायद आप में से कईयों ने धान की इस किस्म के बारे में न सुना हो, लेकिन यह काफी मुनाफे की फसल है। इसमें नर व मादा पौधों को खेत में ही क्रास यानी पूरक परागण कराया जाता है। इस दौरान नर पौधों का पराग मादा पौधे में जाता है, जिससे बीज बनता है और इसी से धान के पौधे तैयार किये जाते हैं। धान की इस किस्म की खासियत ये हैं, कि इसकी एक एकड़ खेती में 10 से 15 क्विंटल की पैदावार होती है। धान के इस बीज की मांग मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ज्यादा है। छत्तीसगढ़ के किसान भाई इस किस्म को लगाकर तगड़ा मुनाफा ले रहे हैं।

महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी बढ़ी मांग

नर-नारी धान की खासियत है कि यदि आप एक एकड़ में इस धान की बुवाई करते हैं, तो एक एकड़ में 15 क्विंटल धान होता है. प्रति क्विंटल धान की कीमत लगभग 9 हजार रुपए है. यानी एक एकड़ के खेत में आपको 1.35 लाख रुपए मिल जाते हैं. छत्तीसगढ़ के धमतरी, बालोद व दुर्ग जिले में किसान इस किस्म का धान उगा रहे हैं। धमतरी में 5 हजार एकड़ से ज्यादा में इस तरह की धान की खेती की जा रही है। रायपुर में धीरे-धीरे इसका रकबा बढ़ने लगा है। नर-नारी धान का परागण करने के लिए रस्सी या बांस का सहारा लिया जाता है। दो कतार में नर व 6-8 कतारों में मादा पौधे होते हैं। इन्हें सीड पैरेंट्स भी कहा जाता है। इसकी रोपाई का तरीका दूसरी किस्मों से बिल्कुल अलग है। इसके पौधे को रोपाई से तैयार किया जाता है। बोनी या लाईचोपी पद्धति से इस धान का उत्पादन संभव नहीं है। पादप प्रजननन विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के एचओडी डॉ. दीपक शर्मा ने कहा कि नर-मादा धान की किस्म से किसानों को अच्छा फायदा हो रहा है। इसका रकबा बढ़ रहा है। ये हाइब्रिड धान है जिसका बीज बनता है।


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छत्तीसगढ़ में साल दर साल धान खरीदी का नया रिकॉर्ड बन रहा

छत्तीसगढ़ में साल दर साल धान खरीदी का नया रिकॉर्ड बन रहा है। सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के किसानों ने वर्ष 2021-21 में किसानों ने सरकार को धान बेचकर करीब 20 हजार करोड़ रुपये कमाए हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार का दावा भी है कि अब खेती-किसानी छत्तीसगढ़ में लाभकारी व्यवसाय बन गया है। आंकड़ों के मुताबिक चालू खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 में धान की रिकॉर्ड खरीदी की गई है। इस साल 21.77 लाख किसानों से करीब 98 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया है। इसके एवज में किसानों को करीब 20 हजार करोड़ रुपयों का भुगतान राज्य सरकार द्वारा किए जाने का दावा किया गया है।

सुगंधित धान की वैज्ञानिकों ने सहेजी किस्में

वहीं दूसरी ओर छग में जिस धान की मांग ज्यादा बढ़ रही है और सरकार जिस धान को ज्यादा महत्व दे रही है वैसे-वैसे यहां से कुछ धान की किस्में विलुप्त होती जा रही हैं और कुछ तो विलुप्ति की कगार पर भी पहुंच गई थी ऐसे में इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों के साथ मिलकर इन्हें सहेजा। कृषि विज्ञान केंद्रों ने भी इस काम में पूरी मदद की। महज 10-15 साल पहले तक जवा फूल, दुबराज, विष्णु भोग, लुचई जैसी सुगंधित धान की किस्में राज्य की पहचान थी। हालांकि किसानों को इनकी पैदावार से लाभ नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे स्वर्णा, एमटीयू 1010 जैसी किस्मों को सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदने लगी। ऐसे सुगंधित धान की कई वैरायटी विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई। कई गांवों से तो ये गायब ही हो गई। कुछ किसान अपने उपयोग के लिए सीमित क्षेत्र में उगा रहे थे, लेकिन उनकी संख्या व एरिया सीमित था। इसे गंभीरता से लेते हुए चार साल पहले इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी रायपुर ने इन्हें सहेजने का बीड़ा उठाया और इन किस्मों को सहेजने में कड़ी भूमिका निभाई। कृषि वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में जाकर न सिर्फ इन किस्मों को ढूंढा बल्कि उन्हें सहेजने में भी बड़ी भूमिका निभाई।

कृषि के क्षेत्र में छग को मिले कई पुरस्कार

धान की अलग-अलग प्रकार के पैदावार के लिए जाने जाने वाले छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। छत्तीसगढ़ को उन्नत कृषि प्रबंधन और किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई वर्गो में सम्मानित किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ को कई राष्ट्रीय अवार्ड भी अब तक मिल चुके हैं, जिससे विश्व पटल पर छत्तीसगढ़ एक सितारे के रूप में चमक और दमक रहा है।
असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

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भले ही भारत के पूर्वोत्तर राज्य विकास की मुख्यधारा में अन्य राज्यों की तरह न जुड़ पाए हों, लेकिन इन राज्यों ने अब वो कर दिखाया है जो खेती-किसानी के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम है। दरअसल, अब असम राज्य की मुख्य फसल विदेशों में नाम कमाने लगी है जो राज्य के निवासियों के लिए कमाल की खबर है। गौर करने वाली बात है कि उत्तर भारतीय राज्यों के इतर असम में किसान मुख्यतौर पर गेहूं की बजाय धान उगाते हैं।


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यहां के चावल की खूशबू और स्वाद कमाल का होता है जिसके चलते देशभर में, यहां से आए चावलों को लोग बड़े चाव से खाते हैं और खपत भी काफी है। चूंकि, लोगों के बीच असम से आने वाले चावल खासे पसंद किए जाते हैं, यही वजह है कि पिछले सालों के दौरान यहां कि कुछ किस्मों को जीआई टैग दिया गया था। अब हाल ही में असम के चावल की कुछ किस्में दुबई भेजी गईं। इन चावलों को APEDA के सहयोग से भेजा गया। दुबई भेजी जाने वाली किस्मों का नाम जोहा और एजुंग (Izong rice) हैं। गौर करने वाली बात है कि असम का जोहा चावल (Joha Rice) बासमती से कम नहीं है। इसकी विशेषता के कारण ही इसे जीआई टैग दिया गया है। वैसे इसकी सुगंध बासमती जैसी नहीं है बल्कि थोड़ी अलग है। लेकिन जोहा अपने स्वाद, खुशबू और खास तरह के आनाज को लेकर जाना जाता है। इसकी विदेशों में मांग बासमती से कम नहीं है। यह खबर असम के किसानों को उत्साहित करने वाली है।


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APEDA के अध्यक्ष एम अंगमुथु ने कहा है कि जिस तरह का मौसम असम का रहता है, उसे देखते हुए यहां सभी तरह की बागवानी फसलें उगाई जा सकती हैं। साथ ही यहां से निर्यात भी आसानी से किया जा सकता है क्योंकि बगल से भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और चीन जैसे देश हैं जो राज्य से अपनी सीमा साझा करते हैं। वैसे चावल ही असम की एकमात्र फसल नहीं है जिसकी विदेशों में मांग है। बल्कि यहां के नींबुओं की मांग मिडिल ईस्ट और ब्रिटेन में बहुत है। यही वजह है कि यहां से अब तक 50 मीट्रिक टन नींबू का एक्सपोर्ट पहले ही किया जा चुका है। यही नहीं, यहां के कद्दू और लीची भी बाहर भेजे जा रहे हैं और लोग इनके स्वाद को खासा पसंद भी कर रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों ने पिछले छह सालों में खेती में अपना नया मुकाम स्थापित किया है, जो इन राज्यों की सफलता की कहानी कहता है। एक आंकड़े के मुताबिक, पिछले छह सालों में यहां उगने वाले कृषि उत्पादों के निर्यात में करीब 84 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। जाहिर है कि आने वाले सालों में इन राज्यों का कृषि में योगदान और बढ़ेगा और जिसका असर देश की जीडीपी में होगा, जो सुखद बात है।
अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

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उसना और बासमती चावल पर लागू नहीं होगा यह निर्देश

नई दिल्ली। भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है, अब गैर बासमती चावल के निर्यात (rice export) पर सरकार 20 फीसदी शुल्क वसूलेगी। बताया जा रहा है कि चालू खरीफ फसल सत्र में धान की फसल का रकबा काफी घट गया है। यही कारण है कि घरेलू आपूर्ति बढाने के लिए सरकार ने निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क बढ़ा दिया है, इसमें
उसना चावल (Usna Chawal or Parboiled Rice) को शामिल नहीं किया गया है। बृहस्पतिवार को राजस्व विभाग ने इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी है। केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने बासमती (Basmati) और उसना चावल को छोड़कर सभी प्रकार की किस्मों के चावलों के निर्यात (chawal niryat) पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगना तय है। अभी तक खरीफ सत्र में धान की बुवाई का क्षेत्र 5.62 फीसदी से घटकर 383.99 लाख हेक्टेयर रह गया है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में बारिश कम होने के कारण धान का बुवाई क्षेत्र घट गया है। चीन के बाद भारत चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। वैश्विक स्तर पर भारत में चावल का 40 प्रतिशत हिस्सा है। ये भी पढ़ें - असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

9 सितंबर से लागू होगा सीमा शुल्क

भारत सरकार द्वारा 9 सितंबर से चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लागू किया जा रहा है। बासमती व उसना चावल को इस नियम से बाहर रखा जाएगा। बताया जा रहा है कि भारत में चावल को रोकने के लिए यह नियम लागू किया गया है।

150 से अधिक देशों को गैर बासमती चावल निर्यात करता है भारत

वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत ने 2.12 करोड़ चावल का निर्यात किया था। जिसमें से 39.4 लाख टन बासमती चावल शामिल था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान गैर बासमती चावल का निर्यात 6.11 अरब डॉलर का व्यापार रहा था। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में 150 से अधिक देशों में गैर बासमती चावल का निर्यात किया था। ये भी पढ़ें - भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव की संभावना

चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लगाने के अलावा इसी महीने होने वाली नवीकरणीय ऊर्जा प्रदर्शनी यानी 'रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो-2022' (Renewable Energy India Expo) में हरित उपकरणों के विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है, साथ ही देश मे स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिति, अवसर और चुनौतियों के बारे में श्वेत पत्र जारी किया जा रहा है।

28-30 सितंबर को होगा कार्यक्रम

इन्फोर्मा मार्केट्स इन इंडिया (Informa Markets in India) द्वारा जारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि आगामी 28-30 सितंबर को ऊर्जा के क्षेत्र में एशिया के सबसे बड़े 15वें क्रिस्टल संस्करण रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो 2022 कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम दिल्ली के समीप उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में इंडिया एक्सपो मार्ट (India Expo Centre & Mart ) में होगा। ------ लोकेन्द्र नरवार
भारत सरकार के सामने नई चुनौती, प्रमुख फसलों के उत्पादन में विगत वर्ष की अपेक्षा हो सकती है कमी

भारत सरकार के सामने नई चुनौती, प्रमुख फसलों के उत्पादन में विगत वर्ष की अपेक्षा हो सकती है कमी

फिलहाल भारत सरकार के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है, इस साल खरीफ और रबी की फसलों में भारी कमी होने की संभावना है, इसका कारण है कई जगहों पर वर्षा की असमानता। इस साल कई राज्यों के कई क्षेत्रों में या तो औसत से ज्यादा बरसात हुई है या औसत से बहुत कम वर्षा हुई है, जिसका असर सीधा फसलों के उत्पादन में पड़ रहा है। औसत से ज्यादा बरसात वाले क्षेत्रों में फसलें बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं, कई जगह फसलें सड़ के पूरी तरह से चौपट हो गई हैं, तो कई जगह सूखे की वजह से फ़सलों की वैसी ग्रोथ नहीं हुई है जैसी उम्मीद की जा रही थी। हरियाणा और पंजाब में कम बरसात की वजह से एक बहुत बड़े रकबे की धान की खेती अविकसित रह गई है। इसलिए नीति निर्माताओं का अनुमान है कि 2022-23 में प्रमुख फसलों के उत्पादन में भारी कमी आ सकती है, जिसका असर भारत के सामान्य लोगों पर पड़ेगा। अगर तय लक्ष्य के मुताबिक़ फसलों का उत्पादन नहीं हुआ तो बाजार में अनाज की कमी हो जाएगी, जिससे खाने पीने की चीजों के दाम में बढ़ोत्तरी हो सकती है, जो सरकार के लिए एक नया सिरदर्द है। सरकार को इससे निपटने के लिए जल्द से जल्द योजना बनाने की जरुरत है।

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यूपी, बिहार, गंगीय पश्चिम बंगाल और झारखंड में इस साल बेहद कम बरसात हुई है, जिसका असर खरीफ की खेती पर पड़ना तय है। यह क्षेत्र चावल के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इस साल कम वर्षा के कारण यहां पर चावल के उत्पादन में भारी कमी हो सकती है, इस सीजन में इन राज्यों में कम से कम 11 मिलियन टन चावल के उत्पादन में कमी हो सकती है। पिछले साल इन राज्यों में चावल का कुल उत्पादन 111.8 मिलियन टन था, इस साल घटकर 100-102 मिलियन टन होने की संभावना है, इसको देखते ही सरकार पहले से ही अलर्ट हो गई है, इसलिए सरकार ने पहले गैर-बासमती चावल निर्यात  (chawal niryat) पर प्रतिबन्ध लगाया उसके बाद टुकड़ा चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। चावल के अतिरिक्त कपास के उत्पादन में भी भारी कमी की संभावना है, क्योंकि इस खेती में भी असमान वर्षा और मौसम की मार पड़ी है, जिससे कपास की खेती भी प्रभावित हुई है। कपास के उत्पादन में कमी घरेलू कपड़ा उद्योग को प्रभावित करेगी। उत्पादन की कमी के कारण बाजार में कपास महंगा हो सकता है जिसका सीधा असर कपड़ा बनाने में आने वाली लागत पर पडेगा। आगामी वर्ष में कपड़ा उत्पादन की लागत बढ़ भी सकती है।

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कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस साल कपास का उत्पादन तय लक्ष्य से लगभग 35 लाख गांठ कम हो सकता है, जो एक चिंता का विषय है। भारत सरकार के लक्ष्य के अनुसार इस साल कपास का उत्पादन 370 लाख गांठ होना चाहिए था। लेकिन अब इसके 335-345 लाख गांठ होने की संभावना है, जो लक्ष्य से काफी कम है। बाजार में कपास की मांग में हुई अप्रत्याशित वृद्धि के हिसाब से कपास का उत्पादन नहीं हो रहा है जिसका नकारात्मक प्रभाव सीधे कपड़ा उद्योग पर दिखेगा। इस साल वस्त्रोद्योग के लिए कपास की उपलब्धता सीमित हो सकती है। असमान्य वर्षा और मौसम की मार का असर दलहन की फसलों पर भी पड़ा है। भारत में ऐसा कई बार हो चुका है जब मौसम की मार के कारण दलहन की फसलें खराब हो चुकी हैं और जिसके कारण दालें सामान्य लोगों की थाली से गायब हो गईं थीं, क्योंकि इस दौरान दालों के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई। वैसी ही स्थित इस बार भी निर्मित हो सकती है, क्योंकि दलहन की फसल इस बार बुरी तरह से प्रभावित हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बार दलहन की फसलों का उत्पादन अपने तय लक्ष्य 10.5 मिलियन टन से काफी कम हो सकता है, जिसकी वजह से भारत सरकार को बाजार में सुचारू रूप से सप्प्लाई जारी रखने के लिए चुनौती का सामना करना होगा। इसके लिए हो सकता है कि भारत को लगभग 30 लाख टन दालों का आयात करना पड़े। भारत सरकार के द्वारा दालों का आयत करना कोई नया मामला नहीं है। अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पहले भी दालों का आयात करता रहा है।

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देश में निर्मित हो रही इन सभी परिस्तिथियों का असर तिलहन पर भी पड़ना तय है। अन्य फसलों की तरह तिलहन के उत्पादन में भी कमी का अनुमान है। जिसका असर भारतीय बाजार पर होगा। पिछले कुछ सालों से खाद्य तेलों की कीमतों में अप्रत्याशित रूप से उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है जो इस साल भी जारी रह सकता है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार इस साल तिलहन का उत्पादन 21.5-22.5 मिलियन टन होने का अनुमान है जो तय लक्ष्य से लगभग 5 मिलियन टन कम है। भारत सरकार ने इस साल देश में 26.9 मिलियन टन तिलहन के उत्पादन का लक्ष्य रखा था, जो पिछले साल हुए उत्पादन से 3 मिलियन टन ज्यादा था। पिछले साल देश में लगभग 23.9 मिलियन टन तिलहन का उत्पादन हुआ था। यह पहली बार नहीं है जब भारत को तिलहन के उत्पादन में कमी का सामना करना पडेगा। पहले भी भारत में ऐसा हो चुका है, जिसकी भरपाई के लिए सरकार बड़ी मात्रा में खाद्य तेल का आयात करती है ताकि भारत के बाजार में खाद्य तेल की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके और खाद्य तेल की कीमतों को कंट्रोल में रखा जा सके।

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कुल मिलाकर देखा जाए तो असमान्य वर्षा और मौसम की मार की वजह से ज्यादातर फसलों के उत्पादन में कमी होने की सम्भावना है। जिसका सीधा असर बाजार में चीजों की उपलब्धता पर पडेगा, हो सकता है कि इसके कारण खाद्य चीजों के साथ वस्त्रों जैसी मूलभूत चीजों के दामों में भी उतार चढ़ाव देखने को मिले। हालांकि अभी से सितम्बर के बाद आने वाले मौसम की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। अगर मौसम करवट लेता है तो उसका असर आने वाली फसलों पर जरूर पडेगा, जिससे उत्पादन में कमी या वृद्धि होना संभव है।