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मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं

मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं

जब भी हम कभी मधुमक्खी(मधुमक्षी / Madhumakkhi / Honeybee) का नाम सुनते हैं तो हमारे मन में मधु या शहद(अंग्रेज़ी:Honey हनी) का ख्याल जरूर आता है, जैसे की लोकप्रिय वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था- "यदि पृथ्वी से मधुमक्खियां खत्म हो जाएगी तो अगले 3 से 4 वर्षों में मानव प्रजाति भी खत्म हो जाएगी " इसी मंशा को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों की आय में बढ़ोतरी और प्रजाति के संरक्षण के लिए कृषि और पशु वैज्ञानिक निरंतर मधुमक्खी पालन से जुड़ी नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2021 (Economic survey 2021-22) के अनुसार भारत में शहद का मार्केट लगभग 21 बिलियन रुपए का है, जो कि 2027 तक 40 बिलियन रुपए होने का अनुमान है। इतने बड़े वैल्यू मार्केट को सही समय पर सही तकनीक का फायदा पहुंचाने के लिए सरकार भी प्रयासरत है।

क्या होता है मधुमक्खी पालन (Bee-Farming) :

भारत के प्राचीन कालीन इतिहास से ही कई जनजातियां एवं जंगलों में रहने वाले किसानों के द्वारा मधुमक्खी पालन किया जा रहा है, हाल ही में शहद की बढ़ती डिमांड की वजह से इस क्षेत्र में कई युवा किसानों की रुचि भी बढ़ी है। मधुमक्खी पालन को 'एपीकल्चर' (Apiculture) के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर मधुमक्खियों के लिए अलग-अलग डिजाइन के छत्ते (honeycomb / beehive; बीहाइव )  तैयार किए जा रहे हैं और इन्हीं कॉम्ब में मधुमक्खियों को रखा जाता है, जो आस पास में ही स्थित फूलों से शहद इकट्ठा कर छत्ते में जमा करती है, जिसे बाद में एकत्रित कर बाजार में बेचा जाता है।

मधुमक्खी पालन से होने वाले फायदे :

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार मधुमक्खी पालन से ना केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि इस मधुमक्खी पालन वाले स्थान के आसपास स्थित खेत में मक्खियों के द्वारा परागण या पोलिनेशन (Pollination) करने की वजह से खेत से उगायी गयी फसल की उपज भी अधिक प्राप्त होती है।

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मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले उत्पाद :

मुख्यतः मधुमक्खी पालन शहद प्राप्त करने के लिए ही किया जाता है, मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक शहद में कई प्रकार की औषधीय गुण होते हैं और इसे मानवीय शरीर में होने वाली कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले अन्य उत्पाद :

  • मधुमक्खी वैक्स (मोम; Beeswax ) :

आपने अपने घर में कई बार मोमबत्ती का इस्तेमाल किया होगा, यह मोमबत्ती मधुमक्खी पालन से ही प्राप्त एक उत्पाद होता है। वर्तमान में बढ़ती मोम की डिमांड भी किसानों को अच्छा मुनाफा दे रही है।

इसके अलावा इस वैक्स का इस्तेमाल कई प्रकार के फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक व्यवसाय में भी किया जाता है।

  • मधुमक्खी जहर (Bee-Venom) :

जब मधुमक्खियां अपनी सुरक्षा के लिए डंक मारती है, तो उनके शरीर में पाया जाने वाला वेनम (venom) यानि जहर हमारे शरीर में चला जाता है, जिससे सूजन और मांसपेशियों में दर्द होता है।

आधुनिक तकनीक की मदद से अब इस इस वेनम को भी मधुमक्खियों से प्राप्त किया जा रहा है, इसका इस्तेमाल आर्थराइटिस यानी गठिया (arthritis) जैसी खतरनाक बीमारी के इलाज में किया जाता है और जोड़ों में होने वाले दर्द के लिए होने वाली एपिथेरेपी (Apitherapy) में भी इस उत्पाद का इस्तेमाल किया जाता है।

  • रॉयल जेली (Royal Jelly) :

मधुमक्खी पालन से ही प्राप्त होने वाला यह उत्पाद स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है और इससे बनने वाली दवाइयों का इस्तेमाल फर्टिलिटी (Fertility) से जुड़े रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।

सुपरफूड के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला यह उत्पाद कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा खरीदा जा रहा है।

भारत में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु क्षेत्र के कई किसान रॉयल जैली को बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं।

  • मधुमक्खी के द्वारा तैयार किया गया छत्ता गोंद (Propolis) :

इसे मधुमक्खियों के घर के रूप में जाना जाता है। हरियाणा और पंजाब के कुछ आधुनिक किसानों के लिए मधुमक्खी का छत्ता भी आय का अच्छा स्रोत बन कर सामने आया है। इसका इस्तेमाल गोंद बनाने में किया जाता है, जिससे कई बीमारियों का इलाज किया जाता है।

ऊपर बताए गए इन सभी उत्पादों के अलावा भी मधुमक्खियों से कई दूसरे प्रकार के उत्पाद प्राप्त होते हैं, जोकि मधुमक्खियों के संरक्षण में किए जा रहे प्रयासों की सुदृढ़ता तो बढ़ाते ही है, साथ ही लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाने के अलावा किसानी परिवार को भी मदद प्रदान करते हैं।

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बड़ी ब्रांड की कंपनियों का शहद वर्तमान में पन्द्रह सौ रुपए प्रति किलो की दर से बिकता है और इसकी मांग भविष्य में और तेजी से बढ़ने की संभावनाएं हैं, इसीलिए समुचित विकास को ध्यान में रखते हुए किसान भाई भी नीचे बताए गए तरीके से मधुमक्खी पालन कर सकते हैं :

कैसे करें मधुमक्खी की प्रजाति का चयन ?

अलग-अलग पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार मधुमक्खी की अलग-अलग प्रजातियों का पालन किया जाता है, ऐसी ही कुछ प्रजातियां निम्न प्रकार है :-

  • यूरोपियन मधुमक्खी (European Bees) :

इस प्रकार के मधुमक्खी को पालने पर एक कॉलोनी से लगभग 25 से 30 किलोग्राम शहद इकट्ठा किया जा सकता है।

यह मधुमक्खी मुख्यतः पतझड़ मौसम के समय ज्यादा उत्पादन देती है।

  • भारतीय मधुमक्खी (Indian or Asian Bees ) :

मधुमक्खी पालन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति ज्यादातर इसी मधुमक्खी को पालते हैं।

हालांकि इस प्रजाति की एक कॉलोनी में 6 से 8 किलोग्राम शहद ही प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इसका पालन करना आर्थिक रूप से कम दबाव वाला होता है।

  • स्टिंग्लेस मधुमक्खी (Stingless Bees) :

कम प्रति व्यक्ति आय वाले किसान भाई दवाइयां बनाने में इस्तेमाल आने वाले शहद और छत्ते के उत्पादन के लिए इस मधुमक्खी का पालन करते हैं।

यह मधुमक्खी एक बेहतरीन पोलिनेटर के रूप में भी काम करती है और इसके छत्ते के आसपास उगने वाले पेड़ पौधों और फसलों को फायदा पहुंचाती है।

इसके अलावा मधुमक्खियों की एक कॉलोनी में रहने वाली सभी मक्खियों को अलग-अलग श्रेणी में बांटा गया है, जिनमें रानी मधुमक्खी, ड्रोन मधुमक्खी और वर्कर मधुमक्खी को शामिल किया जाता है। रानी मधुमक्खी अंडे देती है और ज्यादातर समय कॉम्ब के अंदर ही बिताती है, जबकि ड्रोन मधुमक्खी रानी के साथ मेटिंग करने का काम करते हैं। इसके अलावा वर्कर श्रेणी की मधुमक्खियां छाते से बाहर निकल कर फूलों के मधुरस या नेक्टर (Nectar) से शहद का निर्माण करती हैं।

कैसे चुनें मधुमक्खी पालन के लिए सही जगह ?

मधुमक्खी पालन के लिए जगह चुनने से पहले ध्यान रखना चाहिए कि इनके कृत्रिम छत्तों को उसी स्थान पर लगाएं जहां पर पानी का कोई अच्छा स्रोत उपलब्ध हो, जैसे मानव निर्मित तालाब या नदी और झील का तटीय क्षेत्र। इसके अलावा छत्ते के आसपास के क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में वनस्पति होनी चाहिए, जिनमें सूर्यमुखी, मोरिंगा और कई दूसरे प्रकार के फूलों के पौधे हो सकते हैं। जगह को चुनने के बाद उसमें कृत्रिम छत्ते लगाने के उपरांत तुरंत इस जगह को बाहर से आने वाले लोगों के लिए पूरी तरीके से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। मधुमक्खी विकास क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों के अनुसार किसी सड़क और ध्वनि प्रदूषण वाले क्षेत्रों से मधुमक्खी के छत्तों को हमेशा दूर ही लगाना चाहिए, क्योंकि निरंतर ध्वनि प्रदूषण वर्कर मधुमक्खी की शहद एकत्रित करने की क्षमता को कम करने के अलावा कई प्रकार की बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है।

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कैसे करें मधुमक्खी के छत्ते का चुनाव और क्या हो पूरी प्रक्रिया ?

मधुमक्खी पालन के लिए सबसे पहले मधुमक्खी के कृत्रिम छत्ते की आवश्यकता होती है। इस छत्ते का आकार और डिज़ाइन आपके निवेश और बिजनेस की अवधी पर निर्भर कर सकता है। एक एकड़ के क्षेत्र में लगभग 3 से 4 मधुमक्खी के बड़े छत्ते लगाए जा सकते हैं। इन छत्तों को समय पर निरंतर निगरानी करने के लिए और सुरक्षा के लिए एक बॉक्स की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के बॉक्स में फ्लोर और बॉटम बोर्ड के अलावा लकड़ी के बने हुए फ्रेम होते है, जो कि एक सुपर चेंबर की तरह कार्य करते हैं। यह बॉक्स ऊपर और नीचे से ढका रहता है, जिसमें मधुमक्खियों के जाने के लिए जगह बनाई रहती है। बड़े स्तर पर व्यवसाय करने के लिए कई दूसरे प्रकार के उपकरण जैसे कि क्वीन गेट, हाउस टूल और शुगर फिटर के अतिरिक्त एक स्मोकर की आवश्यकता होती है। मधुमक्खी के छत्ते/बॉक्स को हमेशा पीले और हल्के हरे रंग से ही रंग किया चाहिए, जिससे मधुमक्खियों को जगह का आसानी से पता चल जाए, कभी भी मधुमक्खी के छत्ते को लाल या काले रंग से नहीं रँगना चाहिए। अब इस बॉक्स रूपी छत्ते में बाहर से लाकर मधुमक्खियों को डाल दिया जाता है। भारतीय मधुमक्खियां खासतौर पर पहले से तैयार किए हुए घर में रहना पसंद करती हैं, हालांकि यूरोपीयन मधुमक्खियां कई बार इस तरह तैयार छत्तों को छोड़कर आसपास में ही अपना खुद का छत्ता भी बना लेती हैं।

मधुमक्खी पालन में आने वाली समस्याएं और लगने वाले रोग :

वैसे तो मधुमक्खियां खुद ही एक बेहतरीन पोलिनेटर के रूप में कार्य करती हैं, इसलिए इनमें ज्यादा बीमारियां नहीं होती है, लेकिन बदलते पर्यावरणीय प्रभाव और कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से फूलों में पहुंचे दूषित और केमिकल तत्व मधुमक्खियों के शरीर में चले जाते हैं, जो कि उनके लिए नुकसानदायक हो सकते हैं।

  • वरोआ माइट (Varroa mites) :

यह कीट पिछले कई सालों से मधुमक्खी की कॉलोनियों को नुकसान पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। यह बड़ी से बड़ी मधुमक्खियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

मुख्यतः यह लार्वा और प्यूपा की मदद से प्रजनन करते हैं और धीरे-धीरे मधुमक्खियों के छत्ते तक अपनी पहुंच बना लेते हैं।

इससे ग्रसित हुई मधुमक्खियां के पंख धीरे-धीरे टूटने लगते हैं और उनके शरीर के कई अंगों को नुकसान होना शुरू हो जाता है।

हॉर्टिकल्चर क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार इस रोग के इलाज के लिए एपिवरोल टेबलेट (Apiwarol tablet) का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे पानी में मिलाकर मधुमक्खी के छाते के ऊपर तीन दिन के अंतराल में चार से पांच बार स्प्रे करना रहता है।

  • होर्नेट कीट (Hornet pest) :

मधुमक्खी पालन के दौरान यह कीट सबसे ज्यादा हानिकारक होता है और यह मधुमक्खी की पूरी कॉलोनी पर ही आक्रमण कर देता है और उन्हें पूरी तरीके से कमजोर बना देता है और धीरे-धीरे मधुमक्खियों को मारते हुए उसके छत्ते पर ही अपना कब्जा कर लेता है।

इस प्रकार की कीट से बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय यह है कि उस पूरे छत्ते को ही नष्ट कर देना चाहिए, जिससे कि यह आसपास में ही स्थित दूसरे छत्तों में ना फैले।

हालांकि इसके अलावा भारतीय मधुमक्खी की प्रजाति में कई दूसरी प्रकार की माइक्रोबियल बीमारियां भी होती है, जोकि बैक्टीरिया के अधिक वृद्धि के कारण होती है। इसके इलाज के लिए एंटीमाइक्रोबॉयल टेबलेट का एक घोल बनाकर उसे कॉलोनी के आसपास के क्षेत्र में समय समय पर स्प्रे करना चाहिए।

कैसे करें मधुमक्खी की कॉलोनी का अच्छे से प्रबंधन ?

जब भी किसी फूल के पौधे से नेक्टर निकलने का समय होता है उस समय तो मधुमक्खियां अपने आप जाकर खाने की व्यवस्था कर लेती है, लेकिन बारिश और ऑक्सीजन के दौरान इनके भोजन के लिए 20 से 25 किलोग्राम शुगर की आवश्यकता होती है। मधुमक्खी पालन के दौरान किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि किसी भी प्रजाति को भूखा नहीं रखना चाहिए और शुगर तथा पोलन सप्लीमेंट को मिलाकर एक पेस्ट तैयार करके इसमें प्रोटीन के कुछ मात्रा के लिए सोयाबीन का आटा मिला सकते हैं। इस तैयार पेस्ट को मधुमक्खियों की कॉलोनी के बाहर रख देना चाहिए, जिसे समय मिलने पर कॉलोनी के सभी सदस्य अपने आप भोजन के रूप में इस्तेमाल कर लेंगे।

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मधुमक्खी पालन बढ़ाने के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

मधुमक्खी पालन व्यवसाय की भविष्यकारी सम्भावनाओं को समझते हुए भारत सरकार और कई स्थानीय राज्य सरकारें लोगों को मधुमक्खी पालन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। पिछले कुछ समय से भारत सरकार ने 'स्वीटरिवॉल्यूशन' यानी 'मधु क्रांति'(Madhukranti) नाम का पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू किया है, जो मुख्यतः मधुमक्खी उत्पादन व्यवसाय में सक्रिय लोगों को नई तकनीकों के बारे में जानकारी देने के अलावा उन्हें बेहतर उत्पादन के लिए अच्छी ट्रेनिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवाता है। इसके अलावा राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड(National Bee Board - NBB) के द्वारा लांच किये गए राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन और मधु मिशन(नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन; National Beekeeping and Honey Mission - NBHM) की मदद से भारत सरकार मधुमक्खी से प्राप्त होने वाले उत्पाद की गुणवत्ता की बेहतर जांच के लिए स्रोत उपलब्ध करवाने के साथ ही किसानों की आय बढ़ाने को मुख्य लक्ष्य के रूप में रखा गया है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में शहद के निर्यात में भारत की भागीदारी बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत 'हनीकॉर्नर' नाम का एक मार्केटिंग टूल भी तैयार किया गया है। "मधुक्रांति पोर्टल" व "हनी कॉर्नर" सहित शहद परियोजनाओं का शुभारंभ कार्यक्रम से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें आत्मनिर्भर भारत स्कीम के तर्ज पर काम करते हुए भारत सरकार मधु क्रांति के लिए साल 2017 से लगातार सब्सिडी उपलब्ध करवा रही है, इस प्रकार के नई सरकारी योजनाओं की अधिक जानकारी के लिए आप अपने राज्य सरकार के कृषि और बागवानी मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। शहदमिशन के अंतर्गत खादीऔरग्रामोद्योगआयोग (KVIC) किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए जागरूकता के अलावा ट्रेनिंग और छत्ते के रूप में इस्तेमाल होने वाले 'बी-बॉक्स'(Beehive Box) उपलब्ध करवा रहा है। आशा करते हैं कि भविष्य में मधुमक्खी पालन के लिए प्रयासरत किसान भाइयों को MERIKHETI.COM के द्वारा इस व्यवसाय के बारे में संपूर्ण जानकारियां मिल गई होगी और भविष्य में आप भी सरकारी स्कीमों का बेहतर इस्तेमाल करते हुए समुचित विकास की अवधारणा पर चलकर भारत के निर्यात को बढ़ाने के अलावा स्वयं की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर पाएंगे।

कैमोमाइल फसल के फूल उगाकर एलोपैथी विज्ञान में योगदान दे रहे पंजाब और महाराष्ट्र के युवा किसान, आप भी जानें क्या है कैमोमाइल की फसल और इसके फायदे

कैमोमाइल फसल के फूल उगाकर एलोपैथी विज्ञान में योगदान दे रहे पंजाब और महाराष्ट्र के युवा किसान, आप भी जानें क्या है कैमोमाइल की फसल और इसके फायदे

प्राचीन सभ्यताओं के दौरान कैमोमाइल (Chamomile) के पौधे का इस्तेमाल कई रोगों के इलाज में जड़ी-बूटी के लिए किया जाता था। यह 'मैट्रीकेरिया कैमोमिला' नामक प्रजाति से संबंध रखने वाला एक पौधा है। प्राचीन समय में दक्षिणी-पूर्वी यूरोप के क्षेत्र में इसका उत्पादन होता था और वर्तमान में यह पौधा जर्मनी, फ्रांस और रूस जैसे देशों में उगाया जाता है। पिछले 10 सालों से पंजाब, महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर क्षेत्र में रहने वाले भारतीय युवा किसान भी कैमोमाइल पौधे का उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

क्या है कैमोमाइल का पौधा और इसके सेवन से होने वाले फायदे ?

वर्तमान में कैमोमाइल पौधे के गीले फूलों को तोड़कर उनमें से नीले रंग का एक तेल निकाला जाता है, जिसका इस्तेमाल कई एंटीसेप्टिक दवाओं में किया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों की राय में इस पौधे के फूल को सुखाकर इससे एक पाउडर भी बनाया जा रहा है, जिससे एंटी-इन्फ्लेमेटरी (Anti-Inflammatory) तत्व के रूप में घाव पर लगाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा कैमोमाइल के फूलों से 'एल्फा बिसाबोलोल ऑक्साइड' (Alfa Bisabolol oxide) नामक एक रासायनिक पदार्थ भी प्राप्त किया जाता है, जिसे हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ ही चोट वाले निशान पर लगाया जाता है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में अब कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां कैमोमाइल के पौधे से चाय बनाने का काम भी कर रही हैं, इसके लिए पहले फूलों को तोड़ कर कुछ समय तक धूप में सुखाया जाता है और फिर उन्हें गर्म करके पूरी तरीके से उपचारित किया जाता है। हल्के मीठे स्वाद वाली यह चाय, ह्रदय और शरीर को स्वस्थ रखने में सहायता करती है। [caption id="attachment_11112" align="alignnone" width="750"]Loose leaf chamomile tea (Source: Wiki, Author-ianakoz) कैमोमाइल चाय पत्ती खुली हुई (Loose leaf chamomile tea)(Source: Wiki, Author-ianakoz)[/caption] वर्तमान में एलोपैथी विज्ञान के अलावा होम्योपैथी और आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में भी इस पौधे के फूलों का काफी इस्तेमाल किया जा रहा है।

कैमोमाइल के उत्पादन के लिए आवश्यक जलवायु एवं मृदा :

वर्तमान में वैश्विक स्तर पर जर्मन कैमोमाइल को सबसे ज्यादा उत्पादित किया जाता है। इस पौधे के उत्पादन के लिए नमी वाले क्षेत्र की आवश्यकता होती है और तापमान 5 डिग्री से लेकर 20 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य होना चाहिए। भारत में रबी के सीजन में इस पौधे की खेती की जाती है और अक्टूबर महीने के आखिरी सप्ताह या नवंबर महीने के पहले पखवाड़े तक इसकी बुवाई की जानी चाहिए।

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कैमोमाइल के बीज बोने के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां :

इसको पौधे के बीजों को इसके फूलों से प्राप्त किया जाता है। वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य के तटीय इलाकों में इसकी सीधी बुवाई वाली तकनीक को अपनाया जाता है, जिसमे बीज का सीधे खेत में ही रोपण किया जाता है, जबकि पंजाब और जम्मू कश्मीर क्षेत्र में नर्सरी विधि के माध्यम से पौधरोपण किया जाता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए आधा किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। किसान भाई ध्यान रखें कि बीजों के अंकुरण के समय अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होना चाहिए। वर्तमान में उतर भारत में रहने वाले कुछ किसान भाई गर्मियों के मौसम में भी पॉलीहाउस तकनीक की मदद से इस फसल का उत्पादन कर रहे हैं। भारतीय जलवायु के अनुसार जनवरी महीने की शुरुआत तक पौधे की तेजी से वृद्धि होती है, हालांकि अगले एक महीने तक इसकी वर्द्धि धीमी गति से होती है। बेहतर उर्वरकों के इस्तेमाल से फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह में फूल तोड़ कर इस्तेमाल योग्य बनाया जा सकता है। मार्च महीने की शुरुआती दौर में तापमान 30 डिग्री से ऊपर हो जाने पर इस पौधे से अधिक बीज प्राप्त होते हैं और बेहतर परिपक्वता की वजह से इससे बनने वाली चाय का स्वाद भी बेहतरीन हो जाता है। इसीलिए पंजाब के भटिंडा क्षेत्र में रहने वाले किसान गुरदीप सिंह बताते हैं कि वह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए मार्च महीने के शुरुआती दिनों में फूलों को तोड़कर बीज को बाजार में बेचते हैं, इससे वह तैयार उत्पाद को चाय बनाने वाली कंपनियों को अधिक दाम पर बेच सकते हैं। पौधों की सिंचाई के दौरान नमी के स्तर को लगातार बनाए रहना चाहिए, इसके लिए समय-समय पर सीमित मात्रा में सिंचाई करनी चाहिए। पूरी फसल को तैयार करने में 8 से 10 सीमित सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

कैसे करें खाद और उर्वरकों का बेहतर प्रबंधन तथा खरपतवार नियंत्रण ?

पौधे की बेहतर वृद्धि के लिए एक बार फूल निकलने पर नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि कृषि वैज्ञानिकों की राय में कैमोमाइल की फसल पर फास्फोरस और पोटेशियम जैसे रासायनिक उर्वरकों का प्रभाव बहुत ही कम होता है, इसलिए इनके प्रयोग से बचना चाहिए। कैमोमाइल के पौधे शुरुआत में बहुत ही धीमी गति से बढ़ते हैं, इसीलिए खरपतवार तेजी से बड़ी हो जाती है और उसके नियंत्रण में समस्या होती है। शुरुआत में खरपतवार को हाथ से ही खुरपी की मदद से समय-समय पर निराई गुड़ाई कर नियंत्रित करना सुविधाजनक रहता है। वर्तमान में कुछ रासायनिक उर्वरकों जैसे डी-सोडियम साल्ट और ऑक्सीफ्लोरफेन का इस्तेमाल कर भी खरपतवार को नष्ट किया जा रहा है।

कैमोमाइल के पौधे से प्राप्त होने वाली उपज :

भारतीय जलवायु और किसानों के द्वारा किये जाने वाले उर्वरकों के प्रयोग को आधार मानते हुए कृषि वैज्ञानिकों की राय में प्रति हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 4000 किलोग्राम ताजे फूल इकट्ठे किए जा सकते हैं, हालांकि कुछ क्षेत्रों में बदलते तापमान की वजह से अधिक उत्पादन भी प्राप्त हो सकता है। [caption id="attachment_11114" align="alignnone" width="1200"]Chamaemelum Nobile (Source Wikimedia; Author- H. Zell) Chamaemelum Nobile (Source Wikimedia; Author- H. Zell)[/caption] अप्रैल के पहले सप्ताह में फूलों का वजन भी अधिक प्राप्त होता है और 1000 फूलों में 150 किलोग्राम तक वजन हो जाता है। वर्तमान में कई बड़े किसान कोल्ड स्टोरेज सुविधा की मदद से कैमोमाइल चाय की अधिक मांग होने के समय ही अपने उत्पाद को बाजार में बेचते हैं, इससे उन्हें अधिक मुनाफा होता है।

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वर्तमान में स्वास्थ्य के प्रति सतर्क जनसंख्या कैमोमाइल चाय का इस्तेमाल एक एंटीऑक्सीडेंट और पाचन क्षमता में सुधार करने के लिए कर रही है। प्रतिदिन कैमोमाइल चाय के सेवन से शरीर की प्रतिरोधी क्षमता तो बढ़ती ही है, साथ ही ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम किया जा सकता है। आशा करते हैं हमारे किसान भाइयों को Merikheti.com के माध्यम से भारतीय परिक्षेत्र में अभी तक अनजान 'कैमोमाइल फसल' के उत्पादन के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी बेहतर कीट और रोग प्रबंधन तथा लागत-उत्पादन अनुपात को समझते हुए अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।
इस फूल की खेती कर किसान हो सकते हैं करोड़पति, इस रोग से लड़ने में भी सहायक

इस फूल की खेती कर किसान हो सकते हैं करोड़पति, इस रोग से लड़ने में भी सहायक

कैमोमाइल फूल में निकोटीन नहीं होता है, यह पेट से जुड़े रोगों से लड़ने में काफी सहायक है। इसके अतिरिक्त इन फूलों का प्रयोग सौंदर्य उत्पाद निर्माण हेतु किया जाता है। कैमोमाइल फूल की खेती किसानों के अच्छे दिन ला सकती है। देश में करीब समस्त प्रदेश फूलों की खेती अच्छे खासे अनुपात में करते हैं क्योंकि फूलों के उत्पादन से किसानों को बेहतर लाभ अर्जित होता है। भारत के फूलों की मांग देश-विदेशों में भी काफी होती है। राज्य सरकारें भी फूलों की खेती को प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न प्रकार का अनुदान प्रदान कर रही हैं। अब हम बात करेंगे एक ऐसे फूल के बारे में जिसकी खेती किसानों को मालामाल कर सकती है। इस फूल की विशेषता यह है, कि इस फूल की खेती करने में बेहद कम लागत लगती है, जबकि आमंदनी अच्छी खासी होती है। इसी कारण से इस फूल की खेती को अद्भुत व जादुई व्यापार भी बोलते हैं। मतलब इसमें हानि होने का जोखिम काफी कम होता है।


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बतादें कि जिस फूल के बारे में हम बता रहे हैं, उस फूल का नाम है कैमोमाइल फूल इसका उत्पादन कर बेचने से किसान काफी लाभ उठा सकते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद हमीरपुर में व बुंदेलखंड में इस फूल का उत्पादन अच्छे खासे पैमाने पर हो रहा है, निश्चित रूप से वहां के कृषकों की आय में भी वृद्धि हुई है। फायदा देख अन्य भी बहुत सारे किसान कैमोमाइल फूल की खेती करना शुरू कर रहे हैं। इस जादुई फूल का उपयोग होम्योपैथिक व आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में किया जाता है। औषधियाँ बनाने के लिए इन फूलों को दवा बनाने वाली निजी कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है।

कैमोमाइल फूल किस रोग में काम आता है

न्यूज वेबसाइट मनी कंट्रोल के अनुसार, कैमोमाइल फूल में निकोटीन नहीं होता है। यह पेट से संबंधित रोगों के लिए बहुत लाभकारी है। इसके अतिरिक्त भी इन फूलों का उपयोग सौंदर्य उत्पादों के निर्माण में होता है। स्थानीय किसानों ने बताया है, कि इस फूल के उत्पादन करने के आरंभ से किसानों की किस्मत बदल गई है। कम लागत में अधिक मुनाफा अर्जित हो रहा है, किसानों के मुताबिक आयुर्वेद कंपनी में जादुई फूलों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। अब फायदा देखते हुए बहुत से किसानों ने इस फूल की खेती शुरू कर दी है।

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जल्द ही करोड़पति बन सकते हैं

कैमोमाइल फूल की विशेषता यह है, कि इसे बंजर भूमि पर भी उत्पादित किया जा सकता है। इसकी वजह इस फूल के उत्पादन में जल खपत का कम होना है। साथ ही, एक एकड़ में इसकी खेती कर आप ५ क्विंटल कैमोमाइल फूल अर्जित कर सकते हैं, वहीं एक हेक्टेयर में करीब १२ क्विंटल जादुई फूल पैदा होते हैं। किसानों के अनुसार, इस फूल की खेती में आने वाले खर्च से ५-६ गुना अधिक आय प्राप्त हो सकती है। इसकी फसल तैयार होने में ६ महीने का समय लगता है। यानी किसान ६ माह में लाखों की आमंदनी कर सकते हैं। यदि आप इस कैरोमाइल फूल का उत्पादन आरंभ करते हैं, तो शीघ्र ही करोड़पति भी बन सकते हैं।