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सूखा

हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow)

हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow)

जिस प्रकार मनुष्य को स्वस्थ रहने और कार्य करने की क्षमता बढ़ाने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती हैं। उसी  प्रकार पशुओं, गायों को भी अच्छे हरे भरे चारों की आवश्यकता होती है।

ताकि वह उन्हें खाकर  दूध का निर्यात कर सकें। गौ, पशुओं के संतुलित आहार को देखते हुए किसानों द्वारा पशुओं को सूखा चारा, हरा चारा की पूर्ण मात्रा दी जाती है। 

जिससे उन गौ पशुओं को पर्याप्त पोषक तत्वों की सही मात्रा मिल सके। हरे चने द्वारा पशुओं को उनका शरीर विकास करने और ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन करने की क्षमता मिलती है। यह पोषक तत्व सिर्फ हरे चने से ही प्राप्त हो सकता है।

गौ , पशु चारे के  प्रकार ( Types of Cow, Animal Feed)

best green fodder for cows

चारों के निम्नलिखित प्रकार होते हैं

किसान अपने गौ ,पशुओं को यह दो प्रकार के चारों द्वारा पोषक तत्व देता है। हरे चारों में  एकदलीय तथा द्विदलीय चारों में फसलें मौजूद होती है। हरे चारों के लिए किसान गिनीघास , ज्वार ,मकई, बाजरा, संकरित नेपियर, यशवंत दीनानाथ जयवंत घास आदि एकदलीय चारा की फसलें है। 

द्विदलीय चारा की फसलों के लिए ल्यूसर्न घास, बरसीम स्टाइलो तथा लोबिया आदि मौजूद होते हैं। द्विदलीय फसलों में बहुत मात्रा में पोषक तत्व की प्राप्ति होती है। 

तथा इसमें काफी प्रोटीन भी पाया जाता है। वहीं दूसरी ओर एकदलीय चारे में सिर्फ 4 से 7 प्रतिशत प्रोटीन की ही प्राप्ति होती है। द्विदलीय चारे से लगभग 2 गुना प्रोटीन प्राप्त किया जाता है इसमें अधिकतर 15 से 20% प्रोटीन मौजूद होते हैं।

हरे चारे की योगिता (Green Fodder Yogic)

benefits of green fodder

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पशु आहार के लिए हरे चारे की निम्नलिखित उपयोगिता आए हैं;

  • हरे चारे में पानी अधिक मात्रा में पाया जाता है जो सूखे चारों में नहीं होता। हरे चारे खाकर पशु अपने शरीर में पानी की कमी को दूर करते हैं।
  • हरा चारा काफी स्वादिष्ट व मुलायम होने के कारण पशु इसे बहुत आनंद के साथ खाते हैं।
  • हरे चारे पचने में भी आसान होते हैं। हरे चारे का सेवन करने से पशुओं को आसान मात्रा में घुलनशील शक्कर की प्राप्ति होती है।
  • द्विदलीय चारे के सेवन से पशुओं को खनिज तथा प्रोटीन की प्राप्ति होती है।
  • हरे चारे का सेवन कर पशु की भूख पूर्ण होती है, हरे चारे का सेवन करने से पशुओं का शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है।
  • हरे चारे में प्राकृतिक रूप से पोषक तत्व  मौजूद होता है।
  • इसमें मौजूद पौष्टिक तत्व शरीर में विटामिन ए की पूर्ति करते हैं तथा पशुओं के अंधापन को कम करने की क्षमता रखते हैं।
  • हरे चारे द्वारा पशुओं के शरीर को आर्जीनीन, ग्लूटामिक एसिड जैसे महत्वपूर्ण पौष्टिक एसिड तत्वों की प्राप्ति होती है।
  • गर्भावस्था में पशुओं को हरा चना देने से बछड़ा स्वस्थ पैदा होता है।वहीं दूसरी ओर यदि पशुओं को गर्भावस्था में हरा चारा के माध्यम से पौष्टिक तत्व न मिले तो बछड़ा अंधा ,कमजोर या अन्य शारीरिक विकलांगता से पूर्ण पैदा होता है।

पशुओं की स्वास्थ्य की देख भाल : (Health care of animals)

Health care of animals

गौ ,गाय, पशुओं आदि को विभिन्न प्रकार के टीकाकरण करवाना चाहिए। ताकि उनके विभिन्न विभिन्न प्रकार के रोगों की रोकथाम हो सके। उन्हें कोई भी रोग - रोग ग्रस्त ना कर सके। 

इसीलिए नियमित रूप से पशुओं की समय-समय पर जांच कराते रहना उचित होगा। किसान को चाहिए कि वह गौ, पशुओं को कीड़ों की दवाई समय पर दे। साथ ही पशुओं को चिकित्सा अधिकारी द्वारा जांच कराएं।

जावी (जौ) क्या है ( What is Javi Barley)

Javi Barley

जौ गेहूं का ही स्वरूप है। जौ गेहूं कि ही जाति होती है। जिसको हम आटे में पीसकर रोटी बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। प्राचीन काल में ऋषि, मुनि, वैद्य कई कार्यों में जौ का प्रयोग करते थे। 

मुनि और ऋषि आहारों में जौ का सेवन भी करते थे।इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जौ गेहूं हमारे लिए कितना उपयोगी होगा। जौ का इस्तेमाल आयुर्वेद में कई प्रकार की औषधि बनाने के रूप में भी किया जाता है जो कई बीमारियों से हमारे शरीर की सुरक्षा करती है। 

जैसे पेट दर्द होना , कभी कभी भूख ना लगना, दस्त की शिकायत होना , सर्दी जुखाम जैसी समस्या का होना ,ज्यादा प्यास ना लगना आदि जैसे : रोगों से छुटकारा पाने के लिए जौ इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है।

जौ के फायदे ( Benefits of Barley)

जौ के एक नहीं बहुत सारे फायदे होते है।इसमें मौजूद पौष्टिक तत्व जैसे : कैल्शियम पोटैशियम, सैलीसिलिक एसिड ,फॉस्फोरस एसिड, आदि महत्वपूर्ण तत्व पाए जाते हैं। 

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यह महत्वपूर्ण तत्व कई प्रकार के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।अतः हर दृष्टिकोण से देखें तो जौ हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद है। 

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जौ कहां पाया जाता है ( Where is barley found)

जौ बलुई मिट्टी में बोया जाता है इसके अंदर शीत तथा नमी  सहने की बहुतअधिक क्षमता होती है। जौ का सबसे बड़ा उत्पादन क्षेत्र उत्तर प्रदेश को माना जाता है। 

जहां इसकी भारी मात्रा में पैदावार होती है। तथा जौ का उत्पादन इन राज्यों में भी पाया जाता है जैसे: राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब आदि। यह सभी क्षेत्र भारी मात्रा में जौ की पैदावार करते हैं।

जौ का दूसरा नाम ( another name for barley)

जौ दिखने में गेहूं की तरह होता है जौ को बार्ले नाम से भी पुकारा जाता है तथा या एक खाद्य पदार्थ हैं। लोग इसे आम भाषा में जौ के ही नाम से पहचानते हैं। 

बाकी अनाजों की नजर से देखे तो जौ को लोग काफी कम पसंद करते हैं। लेकिन इसमें कई तरह के पौष्टिक गुण होते हैं  जो बाकी अनाजों में नहीं होते। हरा चारे गौ के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है हरे चारे के क्या लाभ होते हैं, तथा हरे चारे से जुड़ी कई प्रकार की जानकारी हमने अपने इस पोस्ट में दी हैं। 

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सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद निवासी किसान ने बड़ा कमाल किया है, क्योंकि उन्होंने सूखे खेत में भी सीताफल की खेती सफल तरीके से कर लाखों कमाएँ हैं। किसान १२ लाख रुपए का मुनाफा केवल आधा एकड़ भूमि से अर्जित कर लेता है। महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद में पैठण तालुका कुछ क्षेत्रों के किसान पूर्व के कई दिनों से गीला सूखा तो कभी सूखे की मार से ग्रसित हो रहे थे, इस कारण से कृषकों को सिर्फ निराशा और हताशा हासिल हो रही थी। परंतु औरंगाबाद जनपद में धनगॉंव निवासी किसान संजय कांसे ने कठोर परिश्रम एवं द्रढ़ निश्चय से आधा एकड़ भूमि में सीताफल की खेती कर लाखों रूपये कमाए हैं और अब तक करीब उनके बगीचे में लगभग ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है।
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धनगांव निवासी संजय कांसे जी एक छोटे किसान हैं। पूर्व पारंपरिक फसल उगाने वाले संजय कांसे ने रचनात्मक सोच व कठोर परिश्रम से वर्ष २०१६ में उन्होंने अपने आधा एकड़ भूमि में सीताफल का उत्पादन किया। इसके साथ ही, अन्य क्षेत्रों में मोसंबी का रोपण किया गया है, जिसमें संजय कांसे ने सोलह बाई सोलह फुट पर ६०० पौधों की रोपाई की। उन्होंने इस दौरान सूखाग्रस्त जैसे संकटों का भी सामना किया। लेकिन उन्होंने इससे निपटने हेतु उचित मार्ग विकसित किया और बाग की साही योजना के अनुरूप भली भांति देख भाल की। अब उनकी अड़िग मेहनत और द्रण निश्चय के परिणामस्वरूप एक पेड़ करीब ३५ से ४० किलो फल प्रदान कर रहा है।
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संजय कांसे को फल का क्या भाव मिल रहा है

महाराष्ट्र का किसान संजय कांसे तीन वर्ष से अच्छी खासी पैदावार उठा रहा है। इस वर्ष उन्होंने आधा एकड़ भूमि में सीताफल की फसल उत्पादित की है, जो कि करीब 20 टन हुई है। पंद्रह दिन पूर्व संजय कांसे के पहले और दूसरे फल की छटाई हुई है। इसमें उन्हें ११० रुपये प्रति किलो के हिसाब से भाव प्राप्त हुआ है। संजय कांसे वार्षिक १२ लाख का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। अभी तक करीब ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है। साथ ही अन्य फलों का भी उत्पादन करीब ९ से १० टन तक होगा।

कितना आया लागत खर्च

बतादें कि कटाई के चौथे दिन संजय कांसे के खेत में सीताफल बिलकुल तैयार हो चुके थे। सीताफल करीब ५०० से ७०० ग्राम का रहता है। किसान ने इसकी खेती हेतु करीब ८० से ९० रुपये व्यय किये हैं। मिलीबग रोग के अतिरिक्त अन्य किसी कीटों का प्रकोप सीताफल पर नहीं होता है, यह इसकी मुख्य विशेषता है। लेकिन इस वर्ष जब अत्यधिक बारिश के कारण फलीय स्थिरता बेहद डगमगा गयी, परंतु कृषि के क्षेत्र में अच्छी जानकारी रखने वाले लोगों से जानकारी प्राप्त कर संजय कांसे ने सफलतापूर्वक खेती की।
यूके के वैज्ञानिकों ने गेंहू की Rht13 किस्म विकसित की

यूके के वैज्ञानिकों ने गेंहू की Rht13 किस्म विकसित की

यूके के वैज्ञानिकों ने गेंहू की एक खास किस्म पर शोध कर के उसका नाम Rht13 दिया है। गेंहू की इस किस्म से कम नमी वाली भूमि अथवा सूखी भूमि पर भी बंपर उत्पादन मिलता है। खेती करने में सबसे ज्यादा दिक्कत सूखाड़ जमीन में होती है। अच्छी वर्षा नहीं होने से किसानों के चेहरे पर मायूसी के बादल छा जाते हैं। अगर बारिश अच्छी नहीं हुई तो किसानों की उम्मीद निराशा में बदल जाती है। अब ऐसी स्थिति में यूके के वैज्ञानिकों ने शोध कर के गेंहू की एक नवीन किस्म को तैयार किया है। गेहूं की इस किस्म की सूखी जमीन पर भी खेती कर बंपर उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। वहीं, वैज्ञानिकों ने गेंहू के इस प्रजाति को Rht13 नाम दिया है। गेंहू की ये किस्म कम नमी वाली भूमि अथवा सूखी भूमि पर भी बेहतरीन उत्पादन देगा। Rht13 फसल की लंबाई पारंपरिक गेंहू की तुलना में कम होगी। इस फसल से किसानों को बेहद लाभ मिलेगा। सबसे प्रमुख बात यह है, कि इसकी कम पानी वाले क्षेत्र में भी बेहतरीन पैदावार होगी।

Rht13 गेंहू की प्रमुख विशेषताएं

Rht13 गेंहू की बुवाई जमीन के बेहद अंदर तक की जाती है। ये एक बेहतरीन उत्पादन देने वाली प्रजाति है। इसमें विभिन्न तरह की मृदा एवं जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ सकने की शक्ति है। Rht13 गेहूं में एक जीन होता है, जिसे Rht13 के नाम से जाना जाता है। यह जीन पौधे को ज्यादा शाखाओं और ज्यादा दाने उत्पादित करने में सहयोग करता है। Rht13 जीन की वजह, Rht13 गेंहू पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक उत्पादन देता है।

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Rht13 किस्म के गेंहू से किसानों को क्या क्या लाभ हैं

Rht13 से किसानों को फायदे ही फायदे हैं, क्योंकि Rht13 गेहूं पारंपरिक किस्मों के मुकाबले में लगभग 20 प्रतिशत ज्यादा उत्पादन देता है। सिर्फ इतना ही नहीं Rht13 गेहूं विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों में बेहतर ढ़ंग से बढ़ता है।

Rht13 किस्म तूफानी मौसम को सहन करने में भी समर्थ है

शोधकर्ताओं की मानें, तो गेंहू की किस्म Rht13 की जमीन के अंतर्गत काफी गहराई से बुवाई की जाए तो, ये किसानों को कई प्रकार से फायदा पहुंचा सकता है। इसमें तूफान को भी झेलने की क्षमता होती है। किसानों को इसकी खेती करने से कम परिश्रम में अच्छा मुनाफा मिल सकता है।
बिहार में 11 जिले घोषित हुए सूखाग्रस्त, हर परिवार को मिलेंगे 3500 रुपये

बिहार में 11 जिले घोषित हुए सूखाग्रस्त, हर परिवार को मिलेंगे 3500 रुपये

इस साल कई राज्यों में मानसून की बेरुखी देखने को मिली है, जिसके कारण राज्यों के कई जिलों में सामान्य से कम बरसात दर्ज की गई। इसका असर यह हुआ है कि राज्य में सूखे जैसे हालत बन गए हैं और कई किसानों की खेत में खड़ी फसलें तबाह हो गईं हैं। कुछ इस प्रकार का दृश्य बिहार में ज्यादा देखने को मिल रहा है। बिहार में इस साल लगभग 11 जिलों में सामान्य से कम बरसात हुई है, जिसके कारण खरीफ की फसलें सूख गईं हैं और उत्पादन में पिछले साल की अपेक्षा लगभग 70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इस बार कम बरसात की वजह से बिहार के कई जिलों में धान रोपाई का रकबा भी घटा है, जिसका सीधा असर धान के उत्पादन पर पड़ा है। इन सभी घटनाक्रमों को देखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी अध्यक्षता में कैबिनेट की एक मीटिंग बुलाई और राज्य के 11 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐलान किया है कि सूखाग्रस्त गांवों में रहने वाले प्रत्येक परिवार को बिहार सरकार सहायता राशि के तौर पर 3500 रूपये का अनुदान प्रदान करेगी। यह अनुदान राशि सरकार के द्वारा सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजी जाएगी।


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किन-किन जिलों को किया गया है सूखाग्रस्त घोषित

बिहार सरकार ने ऐसे 11 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया है जहां सामान्य से कम बरसात हुई है। इन जिलों में जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, शेखपुरा, नवादा, मुंगेर, लखीसराय,भागलपुर, बांका, जमुई और नालंदा का नाम शामिल है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कैबिनेट बैठक में कहा है कि अब इन 11 जिलों के 96 प्रखंडों के सभी 7841 गांवों को सूखग्रस्त माना जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया कि इन 11 जिलों में सबसे ज्यादा मार जमुई जिले के ऊपर पड़ी है। इस बार जमुई में मात्र 20 प्रतिशत धान के रकबे में ही धान की रोपाई की गई है। इसके बाद बांका का नम्बर है, इस जिले में भी इस बार मात्र 37 प्रतिशत धान के रकबे में ही धान की रोपाई की गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि बिहार सरकार ने बिहार आकस्मिक निधी से 500 करोड़ रुपये निकाले हैं। इन पैसों के द्वारा सूखाग्रस्त गावों के हर एक परिवार को 3500-3500 रूपये दिए जायेंगे। इसके अलावा किसानों की विशेष सहायता पर भी बिहार सरकार 600 करोड़ रूपये खर्च करने जा रही है।

बाढ़ से प्रभावित हुई फसल पर भी मिलेगा मुआवजा

जहां राज्य के कई जिलों में कम बरसात की वजह से सूखे के हालत है, तो कुछ जिलों में अतिवृष्टि के कारण फसलें चौपट हो गईं हैं। इसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि जल्द ही खराब हुई फसलों के लिए भी मुआवजे का ऐलान किया जाएगा। इसके लिए फिलहाल सर्वे का काम किया जा है। खेतों में पानी जमा होने के कारण सर्वे करने में कठिनाई आ रही है। जल्द ही सर्वे का काम निपटाया जाएगा और फसल की क्षतिपूर्ति कृषि इनपुट सब्सिडी के तौर पर किसानों को बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा दिया जाएगा।


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सामान्य से 40 प्रतिशत कम हुई बरसात

इस साल बिहार में सामान्य से 40 प्रतिशत तक कम बरसात हुई है। कई जिलों में यह आंकड़ा 60 प्रतिशत के ऊपर तक पहुंच गया है। हर साल बिहार में मानसून के दौरान 992 मिमी बारिश होती है, इसे सामान्य बरसात माना जाता है। लेकिन इस बार प्रदेश में मानसून के दौरान मात्र 683 मिमी बरसात ही दर्ज की गई है जो सामान्य से 40 फीसदी कम है। खरीफ सीजन को मानसून पर आधारित सीजन माना जाता है, इस बार कम बरसात होने की वजह से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। इसके साथ ही राज्य के कई बांध और तालाब खाली पड़े हैं। जिनमें इस साल पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं है।

भीषण सूखे की वजह से धान के रकबे में हुई घटोत्तरी

धान की फसल के लिए पानी बेहद जरूरी संसाधन है। पर्याप्त पानी के बिना धान की फसल को उगाना बेहद मुश्किल काम है। इस साल सूखे की वजह से राज्य में धान के रकबे में भारी कमी आई है। अगर रकबे की तुलना पिछले साल से करें तो इस साल 1.97 लाख हेक्टेयर कम जमीन पर धान की खेती की गई है, जिसका सबसे बड़ा कारण पानी की घटती उपलब्धता है।
बिहार सरकार छठ पूजा से पहले देगी सूखा से प्रभावित किसान परिवार को ३५०० रुपये की आर्थिक सहायता

बिहार सरकार छठ पूजा से पहले देगी सूखा से प्रभावित किसान परिवार को ३५०० रुपये की आर्थिक सहायता

छठ पूजा से पूर्व बिहार सरकार ने सूखाग्रस्त परिवारों की 500 करोड़ रुपये धनराशि देकर सहायता करने का बिगुल बजा दिया है। सूखाग्रस्त प्रत्येक किसान परिवारों को 3500 रुपये की आर्थिक सहायता मुहैय्या कराई जाएगी। देश व प्रदेश अत्यधिक बारिश, सूखा एवं बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बहुत प्रभावित हुआ है, जिसकी वजह से किसानों की आजीविका को खतरा और बहुत नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। किसानों की करोड़ों रुपये की फसल चौपट हो चुकी है। मूसलाधार बारिश के कारण किसानों को हुए बेहद नुकसान से राहत दिलाने के लिए बिहार सरकार आर्थिक सहायता कर रही है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, सहित समस्त राज्य सरकारें फसल मुआवजा एवं केंद्र की योजनाओं के चलते किसानों को बीमा की धनराशि प्रदान करने में सहायता कर रही हैं। इसी क्रम में बिहार सरकार भी किसानों की सहायता के लिए कदम उठा रही है। बिहार के मुख्यमंत्री ने सूखाग्रस्त किसानों की मदद करने का एलान किया है। बिहार राज्य के मुख्यमंत्री ने हेलीकॉप्टर एवं भूमिगत स्तर पर घूमकर फसल में हुई हानि का मुआयना किया था। बिहार के समस्त जनपदों की जमीनी सच्चाई को देखा है, जिसके अंतर्गत 11 जनपद ऐसे हैं , जो कि काफी हद तक सूखाग्रस्त हो चुके हैं। सभी जनपदों का मुआयना करने के उपरांत जनपदों की 937 पंचायतों को गंभीर रूप से सूखाग्रस्त माना गया है।


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बिहार सरकार देगी हर सूखाग्रस्त किसान परिवार को 3500 रुपये की आर्थिक सहायता

बिहार सरकार द्वारा प्रत्येक सूखाग्रस्त परिवार को 3500 रुपये की आर्थिक सहायता मुहैय्या कराई जायेगी। इसी के चलते राज्य सरकार ने 500 करोड़ रुपये की धनराशि डाल दी है। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने समस्त जनपदों के डीएम एवं सम्बंधित अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा है कि छठ पूजा से पूर्व किसी भी हालत में सूखाग्रस्त किसान परिवारों के खाते में आर्थिक सहायता की धनराशि शीघ्रता से पहुँच जानी चाहिए, जिसके लिए सम्बंधित अधिकारी एवं कर्मचारी सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। बिहार राज्य के मुख्यमत्री नीतीश कुमार जी का सख्त आदेश है कि कोई भी पीड़ित किसान आर्थिक सहायता से वंचित नहीं रहना चाहिए। किसान द्वारा किसी भी प्रकार की शिकायत होने के उपरांत सम्बंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी।

तमिलनाडू राज्य सरकार द्वारा 481 करोड़ की किसानों को दी गयी आर्थिक सहायता

तमिलनाडू राज्य सरकार द्वारा 4.43 लाख किसानों को 481 करोड़ रुपये की किसानों को आर्थिक सहायता दी गयी है। पत्रकारों के माध्यम से बताया गया है कि तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन द्वारा साल 2021-22 के लिए तमिलनाडु के 4.43 लाख पीड़ित किसानों की फसल सुरक्षा के लिए 481 करोड़ रुपये धनराशि का फसल बीमा क्लेम पारित हो चुका है। साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन द्वारा प्रारंभिक वित्त वर्ष के लिए फसल बीमा योजना को राज्य अनुदान के तहत 2,057 करोड़ रुपये की धनराशि प्रदान की है। राज्य सरकार साल 2021- 22 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों की भरपूर सहायता करने का कार्य कर रही है। राज्य सरकार द्वारा किसानों की आर्थिक सहायता करने से किसानों को काफी हद तक राहत मिलेगी एवं राज्य की अर्थव्यवस्था भी अच्छी होगी।
किसानों को हेमंत सरकार का मरहम

किसानों को हेमंत सरकार का मरहम

झारखंड में बारिश उम्मीद से कम हुई, नतीजा यह हुआ कि खेत में लगी फसल चौपट हो गई। किसान बारिश की उम्मीदों में रह गए, बारिश हुई नहीं और किसान फिर एक साल पीछे चला गया। फौरी तौर पर बीते दिनों हेमंत सोरेन की सरकार ने प्रति किसान 3500 रुपये की सहायता राशि देने का ऐलान किया है।


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24 में से 22 जिले सूखा प्रभावित

बारिश के होने या न होने की पुख्ता सूचना आज भी इंसान नहीं दे पाता है। उसे आसमान की तरफ देखना ही पड़ता है, झारखंड जैसे राज्य में यही हो रहा है। सितंबर से अक्टूबर तक जितनी बारिश की उम्मीद थी। उतनी हुई नहीं, नतीजा यह हुआ कि जो फसल खेत में लगी थी, वह या तो मुरझा गईं या फिर कुपोषण का शिकार होकर रह गईं। झारखंड के 24 में से 6 से 7 जिले ऐसे थे, जहां बारिश ज्यादा हो गई। ज्यादा बारिश होने के नाते भी फसलें मार खा गईं। किसानों की इस तकलीफ को सरकार ने गंभीरता से देखा और सूखा घोषित करने के लिए एक टीम बनाई। जिसने वस्तुस्थिति का आंकलन कर अपनी रिपोर्ट दे दी है। सूखा घोषित करने के जो पैमाने हैं, उनके अनुसार 24 में से 22 जिले सूखा प्रभावित घोषित किये गए।


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प्रति किसान 3500 रुपये का मुआवजा

बीते दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की मीटिंग की और उस मीटिंग में यह फैसला किया, कि सरकार किसानों को यूं ही परेशान नहीं होने देगी। सरकार ने तय किया कि हर किसान को 3500 रुपये दिये जाएंगे. इससे उनका दुख थोड़ा तो कम होगा। हाल के दिनों में झारखंड की सिंचाई परियोजनाओं को लेकर भी मुख्यमंत्री चिंतित दिखे। वह हर खेत को पानी पहुंचाना चाहते हैं, पर यह अकेले राज्य सरकार के बूते की बात नहीं। इसमें केंद्र को सहयोग करना ही पड़ेगा।

पोखरे बनाने के लिए अनुदान

सूत्रों के अनुसार, इस संबंध में कई बार केंद्रीय कृषि मंत्री से पत्राचार भी किया गया पर केंद्र से बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं मिला। यह मान कर लोग चल रहे हैं कि किसानों के बारे में बात करना और किसान की योजनाओं को झारखंड की धरती पर उतारना दो अलग बातें हैं। शायद यही कारण था, कि जब केंद्र से झारखंड सरकार को मुकम्मल जवाब नहीं मिला तो झारखंड सरकार ने खुद ही कमर कस लिया। अब एक योजना का प्रारूप तैयार किया जा रहा है, इस योजना के तहत सरकार छोटे-छोटे पोखरों के लिए अनुदान की व्यवस्था करेगी। शर्त यह होगी कि इन पोखरों से सिर्फ सिंचाई और मछली पालन ही किया जाएगा।


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अभी यह योजना शुरूआती दौर में है, मान कर चलें कि दिसंबर के आखिरी तक यह तैयार हो जाएगी। अगर ऐसा हो गया तो, किसानों को थोड़ी राहत तो होगी ही, जो किसान बरसात के लिए आसमान की तरफ टकटकी लगाए देखता रहता है। वह सामान्य दिनों में होने वाली बारिश के जल को उस पोखरे में सहेज कर तो रख सकेगा। आने वाले दिनों में पंपिंग सेट की मदद से उस पोखरे के पानी से सिंचाई भी की जा सकती है, सरकार ने इस दिशा में कदम तो बढ़ा दिये हैं। देखते चलें, कब तक इस पर प्रभावी ढंग से अमल हो पाता है।
चना की फसल अगर रोगों की वजह से सूख रही है, तो करें ये उपाय

चना की फसल अगर रोगों की वजह से सूख रही है, तो करें ये उपाय

चना एक ऐसी फसल है, जो किसानों को काफी फायदा पहुंचाती है। लेकिन अगर इसकी अच्छे से देख-रेख ना की जाए तो इसमें बहुत जल्द रोग लग जाता है। चने की फसल में लगने वाले कुछ रोग हैं उखेड़ा, रतुआ, एस्कोकाइटा ब्लाईट, सूखा जड़ गलन, आद्र जड़ गलन, ग्रे मोल्ड ऐसे में किसान फसल लगाने के बाद हमेशा ही परेशान रहते हैं, कि अपनी चने की फसल को किस तरह से इन लोगों से बचाया जाए। आप कुछ बातें ध्यान में रखते हुए अपनी फसल को इन बीमारियों से बचा सकते हैं।

उखेड़ा:

चने की फसल में यह रोग बहुत ही आसानी से लग जाता है, यह फफूंद से लगने वाला एक तरह का रोग है और चने की फसल को इससे बचाने के कुछ उपाय हैं।
  • किसानों को चाहिए कि वह रोग प्रतिरोधी किस्म जैसे कि 1, एच.सी. 3, एच.सी. 5, एच.के. 1, एच.के. 2, सी.214, उदयरोगप्रतिरोधक किस्में जैसे- एच.सी, अवरोधी, बी.जी. 244, पूसा- 362, जे जी- 315, फूले जी- 5, डब्ल्यू आर - 315, आदि से खेती करें।
  • बीज के उपचार के लिए 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी $ विटावैक्स 1 ग्राम का 5 मिली लीटर पानी में लेप बनाकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से प्रयोग करें।
  • जितना ज्यादा हो सके खेती में हरी और ऑर्गेनिक खाद ही डालें।
  • अगर आप के खेत में चने की खेती में बार-बार यह बीमारी हो रही है तो आपको कोशिश करनी चाहिए कि आप तीन-चार साल के लिए खेत में चना गाना बंद कर दें।
  • जब भी आप खेत में चने की बुवाई कर रहे हैं तो थोड़ी सी गहरी बुवाई करें जो लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर तक गहरी हो।


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रतुआ रोग

यह रोग चने की पत्तियों में होता है और इस रोग के होने के बाद फसल में पत्तों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं जो धीरे-धीरे पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। इस रोग से फसल को बचाने के लिए आपको निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
  • जितना ज्यादा हो सके फसल को कीटनाशक मुक्त रखें।
  • रोग प्रतिरोधी जैसे कि गौरव आदि ही उगाएं।


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एस्कोकाइटा ब्लाईट

यह रोग चने की खेती के बीजों से ही आरंभ हो जाता है और फसल में फूल आने में अड़चन पैदा करता है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए आपको बीजों पर खास ध्यान देने की जरूरत है।
  • रोग प्रतिरोधक किस्में जैसे कि सी-235, एच सी-3 या हिमाचल चना-1 उगायें।
  • केवल प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें।

सूखा जड़ गलन

यह रोग चने की खेती में ज्यादातर गलत बीज या फिर गलत मिट्टी से होता है। इस रोग में फसल में फूल से फली बनने में समस्या आती है। पौधे की पत्तियां और तने भूरे रंग के होकर झड़ने लगते हैं। इस रोग के निदान के लिए आपको कुछ उपाय करने की आवश्यकता है।


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  • अगर बार बार किसी मिट्टी में सूखा जड़ गलन रोग हो रहा है, तो आपको उसमें चने की खेती करना बंद कर देना चाहिए।
  • गेहूं और जौ की खेती के साथ एक फसल चक्र बनाएं इससे चने की खेती में सूखा जड़ गलन रोग कम होने लगता है।
  • खेत में फसल के अवशेष को ना छोड़ें और बहुत ज्यादा गहरी जुताई करें।

मोल्ड

यह रोग भी चने की फसल की जड़ें और पत्तियों को नष्ट कर देता है। इसमें फसल में फूल से फल बन ही नहीं पाता है और आप की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है। इस रोग से बचने के लिए आपको नीचे दिए गए उपाय अपनाने चाहिए।
  • फसल के दो पौधों के बीच में अच्छी खासी दूरी बनाए।
  • चने की खेती के साथ-साथ बीच में अलसी की खेती का फसल चक्र बनाए रखें।
  • फसल की आत्यधिक वनस्पतिक वृद्धि न होने दें।
  • खेत में अत्यधिक पानी न दें।
इन सबके अलावा चने की खेती में एन्थ्रेक्नोज, स्टेमफाइलियम पत्ता धब्बा रोग, फोमा पत्ता ब्लाईट व स्टंट रोग भी देखने को मिलता है और आप बाकी रोग की तरह इन्हें भी सही तरह से फसल चक्र को बरकरार रखते हुए ठीक कर सकते हैं। इसके अलावा हमेशा ही सही तरह से निरीक्षण करने के बाद ही खेती के लिए बीज खरीदें और रोग प्रतिरोधक किस्मों को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

गेट्स फाउंडेशन के चेयरमैन ब‍िल गेट्स (Bill Gates) द्वारा पूसा कैंपस में गेहूं एवं चने की उन प्रजातियों की फसलों के विषयों में जाना जो जलवायु पर‍िवर्तन की जटिलताओं का सामना करने में समर्थ हैं। विश्व के अरबपति बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) का भृमण करते हुए, यहां के पूसा परिसर में तकरीबन डेढ़ घंटे का समय व्यतीत किया एवं खेती व जलवायु बदलाव के विषय में लोगों से विचार-विमर्श किया।

बिल गेट्स ने कृषि क्षेत्र में अपनी रुची जाहिर की

आईएआरआई के निदेशक ए.के. सिंह द्वारा मीडिया को कहा गया है, कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष एवं ट्रस्टी बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई के कृषि-अनुसंधान कार्यक्रमों, प्रमुख रूप से जलवायु अनुकूलित कृषि एवं संरक्षण कृषि में गहन रुचि व्यक्त की।

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इसी मध्य गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई की जलवायु में बदलाव सुविधा एवं कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च पैमाने के सहित खेतों में उत्पादित की जाने वाली फसलों के विषय में जानकारी अर्जित की है। बिल गेट्स ने मक्का-गेहूं फसल प्रणाली के अंतर्गत सुरक्षित कृषि पर एक कार्यक्रम में भी मौजूदगी दर्ज की। गेट्स ने संरक्षण कृषि के प्रति अपनी विशेष रुचि व्यक्त की। उसकी यह वजह है, कि गेट्स का एक लक्ष्य विश्व स्तर पर कुपोषण की परेशानी का निराकरण करना है। इसलिए ही वह स्थायी कृषि उपकरण विकसित करने के लिए निवेश कर रहे हैं। बिल गेट्स द्वारा खेतों में कीड़ों एवं बीमारियों की निगरानी हेतु आईएआरआई द्वारा विकसित ड्रोन तकनीक समेत सूखे में उत्पादित होने वाले छोले पर हो रहे एक कार्यक्रम को ध्यानपूर्वक देखा।

बिल गेट्स (Bill Gates) ने दौरा करने के बाद क्या कहा

संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह द्वारा गेट्स के दौरा को कृषि अध्ययन एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कारगर कदम बताया है। गेट्स का कहना है, क‍ि देश में कृष‍ि के राष्ट्रीय प्रोग्राम अपनी बेहद अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। फाउंडेशन से जुड़कर कार्य करने एवं सहायता लेने हेतु योजना निर्मित कर दी जाएगी। जलवायु परिवर्तन, बायोफोर्टिफिकेशन से लेकर फाउंडेशन सहयोग व मदद करेगा तब और बेहतर होगा। आईएआरआई को जीनोम एडिटिंग की भाँति नवीन विज्ञान के इलाकों में जीनोम चयन एवं मानव संसाधन विकास का इस्तेमाल करके पौधों के प्रजनन के डिजिटलीकरण पर परियोजनाओं हेतु धन उपलब्ध कराया जाएगा।
मानसून की धीमी रफ्तार और अलनीनो बढ़ा रहा किसानों की समस्या

मानसून की धीमी रफ्तार और अलनीनो बढ़ा रहा किसानों की समस्या

आपकी जानकरी के लिए बतादें, कि विगत 8 जून को केरल में मानसून ने दस्तक दी थी। इसके उपरांत मानसून काफी धीमी गति से चल रही है। समस्त राज्यों में मानसून विलंभ से पहुंच रहा है। केरल में मानसून के आने के पश्चात भी फिलहाल बारिश औसत से कम हो रही है। साथ ही, मानसून काफी धीरे-धीरे अन्य राज्यों की ओर बढ़ रही है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत बहुत से राज्यों में लोग बारिश के लिए तरस रहे हैं। हालांकि, बिहार एवं झारखंड में मानसून की दस्तक के उपरांत भी प्रचंड गर्मी पड़ रही है। लोगों का लू एवं तेज धूप से हाल बेहाल हो चुका है। यहां तक कि सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता में गर्मी की वजह से फसलें सूख रही हैं। ऐसी स्थिति में किसानों के मध्य अलनीनो का खतरा एक बार पुनः बढ़ चुका है। साथ ही, जानकारों ने बताया है, कि यदि मौसम इसी प्रकार से बेईमान रहा तो, इसका असर महंगाई पर भी देखने को मिल सकता है, जिससे खाद्य उत्पाद काफी महंगे हो जाऐंगे।

अलनीनो की वजह से महंगाई में बढ़ोत्तरी हो सकती है

मीडिया खबरों के अनुसार, अलनीनो के कारण भारत में खुदरा महंगाई 0.5 से 0.6 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। मुख्य बात यह है, कि अलनीनो की वजह से आटा, गेहूं, मक्का, दाल और चावल समेत खाने-पीने के समस्त उत्पाद भी महंगे हो जाऐंगे। साथ ही, अलनीनो का प्रभाव हरी सब्जियों के ऊपर भी देखने को मिल सकता है। इससे
शिमला मिर्च, खीरा, टमाटर और लौकी समेत बाकी हरी सब्जियों की कीमतों में काफी इजाफा हो जाऐगा।

मानसून काफी आहिस्ते-आहिस्ते चल रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केरल में 8 जून को मानसून का आगमन हुआ था। जिसके बाद मानसून काफी आहिस्ते-आहिस्ते चल रही है। यह समस्त राज्यों में विलंब से पहुँच रहा है। विशेष बात यह है, कि मानसून के आगमन के उपरांत भी अब तक बिहार समेत विभिन्न राज्यों में वर्षा समान्य से भी कम दर्ज की गई है। अब ऐसी स्थिति में सामान्य से कम बारिश होने से खरीफ फसलों की बिजाई पर प्रभाव पड़ सकता है। अगर मानसून के अंतर्गत समुचित गति नहीं आई, तो देश में महंगाई में इजाफा हो सकता है। यह भी पढ़ें: मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

2023-24 में इतने प्रतिशत महंगाई होने की संभावना

भारत में अब तक बारिश सामान्य से 53% प्रतिशत कम दर्ज की गई है। सामान्य तौर पर जुलाई माह से हरी सब्जियां महंगी हो जाती हैं। साथ ही, ब्रोकरेज फर्म ने फाइनेंसियल ईयर 2023-24 में महंगाई 5.2 प्रतिशत रहने का अंदाजा लगाया है। उधर रिजर्व बैंक ने कहा है, कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई 5 प्रतिशत अथवा उससे कम भी हो सकती है।

चीनी की पैदावार में इस बार गिरावट देखने को मिली है

बतादें, कि भारत में सामन्यतः चीनी की पैदावार में विगत वर्ष की अपेक्षा कमी दर्ज की गई है। साथ ही, चावल की हालत भी ठीक नहीं है। इस्मा के अनुसार, चीनी की पैदावार 3.40 करोड़ टन से घटकर 3.28 करोड़ टन पर पहुंच चुकी है। साथ ही, यदि हम चावल की बात करें तो अलनीनो के कारण इसका क्षेत्रफल इस बार सिकुड़ सकता है। वर्षा कम होने के चलते किसान धान की बुवाई कम कर पाऐंगे, क्योंकि धान की फसल को काफी ज्यादा जल की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में धान की पैदावार में गिरावट आने से चावल महंगे हो जाएंगे, जिसका प्रभाव थोक एवं खुदरा बाजार में देखने को मिल सकता है।