Published on: 19-Nov-2022
झारखंड में बारिश उम्मीद से कम हुई, नतीजा यह हुआ कि खेत में लगी फसल चौपट हो गई। किसान बारिश की उम्मीदों में रह गए, बारिश हुई नहीं और किसान फिर एक साल पीछे चला गया। फौरी तौर पर बीते दिनों हेमंत सोरेन की सरकार ने प्रति किसान 3500 रुपये की सहायता राशि देने का ऐलान किया है।
24 में से 22 जिले सूखा प्रभावित
बारिश के होने या न होने की पुख्ता सूचना आज भी इंसान नहीं दे पाता है। उसे आसमान की तरफ देखना ही पड़ता है, झारखंड जैसे राज्य में यही हो रहा है। सितंबर से अक्टूबर तक जितनी बारिश की उम्मीद थी। उतनी हुई नहीं, नतीजा यह हुआ कि जो फसल खेत में लगी थी, वह या तो मुरझा गईं या फिर कुपोषण का शिकार होकर रह गईं। झारखंड के 24 में से 6 से 7 जिले ऐसे थे, जहां बारिश ज्यादा हो गई। ज्यादा
बारिश होने के नाते भी फसलें मार खा गईं। किसानों की इस तकलीफ को सरकार ने गंभीरता से देखा और सूखा घोषित करने के लिए एक टीम बनाई। जिसने वस्तुस्थिति का आंकलन कर अपनी रिपोर्ट दे दी है। सूखा घोषित करने के जो पैमाने हैं, उनके अनुसार 24 में से 22 जिले सूखा प्रभावित घोषित किये गए।
प्रति किसान 3500 रुपये का मुआवजा
बीते दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की मीटिंग की और उस मीटिंग में यह फैसला किया, कि सरकार किसानों को यूं ही परेशान नहीं होने देगी। सरकार ने तय किया कि हर किसान को 3500 रुपये दिये जाएंगे. इससे उनका दुख थोड़ा तो कम होगा। हाल के दिनों में
झारखंड की सिंचाई परियोजनाओं को लेकर भी मुख्यमंत्री चिंतित दिखे। वह हर खेत को पानी पहुंचाना चाहते हैं, पर यह अकेले राज्य सरकार के बूते की बात नहीं। इसमें केंद्र को सहयोग करना ही पड़ेगा।
पोखरे बनाने के लिए अनुदान
सूत्रों के अनुसार, इस संबंध में कई बार केंद्रीय कृषि मंत्री से पत्राचार भी किया गया पर केंद्र से बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं मिला। यह मान कर लोग चल रहे हैं कि किसानों के बारे में बात करना और किसान की योजनाओं को झारखंड की धरती पर उतारना दो अलग बातें हैं। शायद यही कारण था, कि जब केंद्र से झारखंड सरकार को मुकम्मल जवाब नहीं मिला तो झारखंड सरकार ने खुद ही कमर कस लिया। अब एक योजना का प्रारूप तैयार किया जा रहा है, इस योजना के तहत सरकार छोटे-छोटे पोखरों के लिए अनुदान की व्यवस्था करेगी। शर्त यह होगी कि इन पोखरों से सिर्फ सिंचाई और
मछली पालन ही किया जाएगा।
अभी यह योजना शुरूआती दौर में है, मान कर चलें कि दिसंबर के आखिरी तक यह तैयार हो जाएगी। अगर ऐसा हो गया तो, किसानों को थोड़ी राहत तो होगी ही, जो किसान बरसात के लिए आसमान की तरफ टकटकी लगाए देखता रहता है। वह सामान्य दिनों में होने वाली बारिश के जल को उस पोखरे में सहेज कर तो रख सकेगा। आने वाले दिनों में पंपिंग सेट की मदद से उस पोखरे के पानी से सिंचाई भी की जा सकती है, सरकार ने इस दिशा में कदम तो बढ़ा दिये हैं। देखते चलें, कब तक इस पर प्रभावी ढंग से अमल हो पाता है।