जैविक खेती एक ऐसी कृषि पद्धति है, जिसमें रासायनिक कीटनाशकों, रासायनिक उर्वरकों और कृत्रिम पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है।
इसके बजाय, इस विधि में प्राकृतिक तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे कृषि, पशु और फसल अपशिष्टों का उपयोग, बायोडिग्रेडेबल कचरे का पुनः उपयोग, और मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक विधियों को अपनाया जाता है।
जैविक खेती का उद्देश्य पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना उत्पादकता बढ़ाना और मृदा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।
आने वाले समय में जैविक खेती को लेकर सरकारी प्रयासों की दिशा और योजनाओं से जुड़े अधिक विवरण साझा किए जा रहे हैं, जिनमें विशेष रूप से पारंपरिक कृषि पद्धतियों को फिर से अपनाना और जैविक उत्पादों का उत्पादन बढ़ाना शामिल है।
इन सभी योजनाओं से जुड़ी जानकारी नीचे आप इस लेख में देख सकते है।
भारत सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं और पहलुओं पर काम कर रही है, ताकि किसानों को जैविक खेती के फायदे मिले और देश में पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके।
यह योजना राज्यों में जैविक खेती नीति को बढ़ावा देती है, जिसमें किसानों को जैविक कृषि पद्धतियों से संबंधित लाभ और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। जैविक नीति खासकर जरूरतमंद लोगों के लिए स्वास्थ्य की दिशा में काम करती है।
यह योजना विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत के राज्यों जैसे असम, त्रिपुरा, मेघालय आदि में जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
इसका लक्ष्य जैविक उत्पादों का भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन करने के लिए मूल्य श्रृंखला को बनाए रखना है।
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इस मिशन का मुख्य उद्देश्य तेल पाम की खेती को बढ़ावा देना और खाद्य तेलों के उत्पादन में वृद्धि करना है।
इसमें जैविक खेती की रणनीतियाँ शामिल हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना उत्पादन बढ़ाने पर जोर देती हैं।
इस योजना का उद्देश्य मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार लाकर कृषि उत्पादकता को बढ़ाना है।
यह जैविक खेती के तरीके को बढ़ावा देता है और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करता है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा होती है।
यह योजना किसानों को जैविक खेती के तत्वों के रूप में प्रशिक्षण देने पर केंद्रित है। इसके तहत जैविक खेती के लिए भूमि का आवंटन भी किया जाता है, जिससे बागवानी के क्षेत्र में जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है।
यह योजना जैविक खेती की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है, खासकर उत्तर प्रदेश में, जिससे घरेलू बिक्री और उत्पादन में वृद्धि होती है। ओ.डी.ओ.पी. पद्धति से जैविक उत्पादों की बिक्री को प्रोत्साहन मिलता है।
इस विधि में सिंथेटिक उर्वरकों से बचकर पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धतियों का पालन किया जाता है। यह जैविक खेती को सुदृढ़ और टिकाऊ बनाने के लिए महत्वपूर्ण है, और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी सुनिश्चित करती है।
2018 में शुरू की गई यह नीति जैविक खेती को बढ़ावा देती है और वैश्विक बाजार में बदलाव लाती है।
यह नीति जैविक खेती के वित्तीय पहलुओं पर केंद्रित है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैविक उत्पादों की मांग को बढ़ावा मिलता है।
इस परियोजना का उद्देश्य प्राकृतिक कृषि तत्वों, जैव कीटनाशकों और जैव उर्वरकों को बढ़ावा देकर रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम करना है।
इसके साथ ही, यह योजना टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है और प्रमाणन योजनाओं को समर्थन देती है। यूरोपीय संघ और स्विट्जरलैंड इस पहल को सहयोग प्रदान करते हैं।