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करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा - करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी

Published on: 10-Feb-2020

करेले की खेती भारत में गर्मी और बरसात दोनों मौसम में की जाती है. करेले को शुगर के मरीजों के लिए राम बाण ओषधि बताया गया है, ये उच्च रक्तचाप वाले मरीज के लिए भी बहुत उपयोगी है. करेले को सब्जी, जूस और अचार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. इसको काट कर सुखा लेते है जिससे की इसकी सब्जी बेमौसम भी बनाई जा सकती है. सबसे अहम बात यह है कि इसकी खेती करना आवारा पशुओं की समस्या से भी मुक्ति का एक अच्छा जरिया है। 

करेले की फसल को जंगली एवं आवारा पशु भी कड़वा होने के कारण नहीं खाते। करेले का जूस, अचार, सब्जी बहुताय में प्रयोग में लाई जाने लगी है। इसके चलते इसकी मांग भी बढ़ रही है। करेले की खेती उन ​इलाकों में भी की जा सकती है जहां अवारा पशुओं का आतंक है। करेले को पशु कड़वाहट और गंध के चलते नहीं खाते। इसकी पूसा संस्थान ने कई उन्नत किस्में विकसित की हैं।

करेले के लिए खेत की तैयारी और उपयुक्त मिटटी

करेले के खेत के लिए दोमट बलुई मिटटी बहुत उपयोगी होती है इसको भुरभुरी मिटटी में भी किया जा सकता है. इसके खेत में पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की करेले की बेल को पर्याप्त नमी के साथ सूखे का भी होना जरूरी है.जिससे की बेल गल न जाये। इसके खेत को पहले मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके ऊपर से हेरों से जुताई करके सुहागा/ पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत का लेवल सही बना रहे।

करेले की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

जैसा की सभी फसलों के लिए सादी गोबर की खाद बहुत उपयोगी होती है तो करेला के लिए भी हमें बनी हुई गोबर की खाद को पहली जुताई के बाद खेत में अच्छे से मिला दें बाद में नाइट्रोजन और दीमक की दवा मिला दें जिससे की पौधे में रोग न लगे। फूल आने के समय इथरेल 250 पी. पी. एम. सांद्रता का उपयोग करने से मादा फूलों की संख्या अपेक्षाकृत बढ़ जाती है,और परिणामस्वरूप उपज में भी वृद्धि होती है.250 पी. पी. एम. का घोल बनाने हेतु (0.5 मी. ली.) इथरेल प्रति लीटर पानी में घोलना चाहिए करेले की फसलों को सहारा  देना अत्यंत आवश्यक है. जिससे की इसकी बेल को ऊपर चढाने में मदद मिलती है उससे इसके फल पीले नहीं पड़ते हैं.

करेले की मुख्य किस्में

ग्रीन लांग, फैजाबाद स्माल, जोनपुरी, झलारी, सुपर कटाई, सफ़ेद लांग, ऑल सीजन, हिरकारी, भाग्य सुरूचि , मेघा –एफ 1, वरून –1 पूनम, तीजारावी, अमन नं.- 24, नन्हा क्र.–13

बीज की मात्रा और नर्सरी डालने का तरीका

खेत में बनाये हुए हर थाल या बैड में चारों तरफ 4–5 बीज 2–3 से. मी. गहराई पर बो देना चाहिए। गर्मी की फसल हेतु बीज को बुवाई से पूर्व 12–18 घंटे तक पानी में रखना चाहिए इससे बीज को उगने में आसानी रहती है. पौलिथिन बैग में एक बीज/प्रति बैग ही बोते है। बीज का अंकुरण न होने पर उसी बैग में दूसरा बीज पुन बुवाई कर देना चाहिए. इन फसलों में कतार से कतार की दूरी 1.5 मीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 से 120 से. मी. रखना चाहिए।

करेले के कीट, रोग और उसके उपचार

रेड बीटल

यह एक हानिकारक कीट है, जो कि करेला के पौधे पर प्रारम्भिक अवस्था पर आक्रमण करता है. यह कीट पत्तियों का भक्षण कर पौधे की बढ़वार को रोक देता है। इसकी सूंडी काफी खतरनाक होती है, जोकि करेला पौधे की जड़ों को काटकर फसल को नष्ट कर देती है।

इलाज एवं रोकथाम

रेड बीटल से करेला की फसल सुरक्षा हेतु पतंजलि निम्बादी कीट रक्षक का प्रयोग अत्यन्त प्रभावकारी है. 5 लीटर कीटरक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकर, सप्ताह में दो बार छिड़काव करने से रेड बीटल से फसल को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

पाउडरी मिल्ड्यू रोग

यह रोग करेला पर एरीसाइफी सिकोरेसिएटम की वजह से होता है. इस कवक की वजह से करेले की बेल एंव पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल फैल जाते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। इस रोग में पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं।

घरेलू या जैविक उपचार

इस रोग से करेला की फसल को सुरक्षित रखने के लिए 5 लीटर खट्टी छाछ में 2 लीटर गौमूत्र तथा 40 लीटर पानी मिलाकर, इस गोल का छिड़काव करते रहना चाहिए। प्रति सप्ताह एक छिड़काव के हिसाब से लगातार तीन सप्ताह तक छिड़काव करने से करेले की फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है.रोग की रोकथाम हेतु एक एकड़ फसल के लिए 10 लीटर गौमूत्र में 4 किलोग्राम आडू पत्ते एवं 4 किलोग्राम नीम के पत्ते व 2 किलोग्राम लहसुन को उबाल कर ठण्डा कर लें, 40 लीटर पानी में इसे मिलाकर छिड़काव करने से यह रोग पूरी तरह फसल से चला जाता है।

एंथ्रेक्वनोज रोग

करेला फसल में यह रोग सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैं, जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया में असमर्थ हो जाता है. फलस्वरुप पौधे का विकास पूरी पूरी तरह से नहीं हो पाता।

करेले की फसल की तुड़ाई

फसल की तुड़ाई करते समय याद रखें की फल को एकदम हरे समय पर ही तोड़ें यानि कच्चा फल ही तोड़ें जिससे की मंडी में ले जाते समय आपके फल का रंग कुदरती इतना चमकदार होगा की सबसे पहले आपके फसल को लोग तरजीह देंगें। सामान्य किस्मों में पूसा विशेष किस्म प्रति हैक्टेयर करीब 200 कुंतल उपज देकर 70 हजार का शुद्ध मुनाफा दे जाती है। 

इसके अलावा पूसा मौसमी एवं पूसा औषधि भी तकरीबन इतना ही उत्पादन देती हैं। पूसा संस्थान की शंकर किस्मों में पूूूसा हाइब्रिड 1 450 कुंतल उपज एवं 90 हजार का लाभ देती है। इसके अलावा  पूसा हाइ​ब्रिड 2550 कुंतल उपज देकर सवा लाख रुपए तक शुद्ध लाभ दे जाती है। लगाने के लिए बीजों को गीले कपड़े में भिगोकर रखें। इसके बाज प्रभावी फफूंदनाशक से उपचारित करने के बाद बोएंं। 

बीजों को नाली बनाकर उसकी मेढों पर ही लगाएं ताकि पानी लगाने पर ज्यादा खर्चा न करना पड़े। अहम बात यह है कि करेले की बेल की लम्बाई और बढ़वार को ध्यान मेें रखते हुए ही एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी तय करें।

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