Published on: 24-Aug-2023
किसान धरमिंदर सिंह ने खेती की नवीन तकनीकों के जरिए दूरगामी सोच की बेहतरीन मिसाल कायम की है। इस नवीन यांत्रिक रोपाई तकनीक के जरिए से उन्होंने अपने उत्पादन को दोगुना कर लिया है।
पंजाब के संगरूर जनपद के किसान धरमिंदर सिंह अपने 52 एकड़ खेत में गेहूं एवं धान की पारंपरिक खेती किया करते थे। वह पारंपरिक ढ़ंग से प्रवासी श्रमिकों के सहायता से कद्दू और पूसा 44 चावल के किस्म के धान की खेती किया करते थे। उन्होंने वर्ष 2019 में एक रोपाई करने की मशीनरी किराए पर ली एवं इससे उनकी खेती की पैदावार दोगुनी हो गई।
किसान धरमिंदर ने कोरोना काल में दौरान खेती की तकनीक बदली
कोरोना काल के चलते संपूर्ण पंजाब में धान की कटाई के लिए प्रवासी मजदूरों की काफी कमी थी। इस दौरान धर्मेंद्र सिंह ने विगत वर्ष के अनुभव का फायदा उठाया एवं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अनुशंसित यांत्रिक रोपाई तकनीक का सहयोग लिया। साथ ही,
धान की रोपाई के लिए वॉक-बैक ट्रांसप्लांटर खरीदा। धरमिंदर सिंह को कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का भरपूर सहारा मिला। उनका कहना है, कि इस प्रकार से बोई गई धान की फसल सामान्य ढ़ंग से बोई गई फसल के मुकाबले काफी आसान होती है। इस मशीन की सहायता से बिजाई करने में कोई परेशानी भी नहीं आती है।
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किसान धरमिंदर ने केवीके के वैज्ञानिकों के निर्देशन में खेती की थी
धरमिंदर सिंह ने 2022 में केवीके वैज्ञानिकों के दिशा निर्देशन के उपरांत एक एकड़ के खेत में धान की कम वक्त में पकने वाली किस्म पीआर 126 की बुवाई की, जिसकी पैदावार पूसा 44 किस्म से तकरीबन डेढ़ क्विंटल प्रति एकड़ ज्यादा थी। साथ ही, इस किस्म में जल की खपत भी काफी कम होती थी। इसी की तर्ज पर उन्होंने साल 2023 में कम समयावधि की किस्मों पीआर 126,
पूसा बासमती 1509 एवं
पूसा बासमती 1886 की रोपाई करी। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि ट्रांसप्लांटर से धान की रोपाई करने पर प्रति वर्ग मीटर तकरीबन 30-32 पौधे सुगमता से लग जाते हैं। यह प्रति मीटर लगाए गए परिश्रम के मुकाबले में 16 से 20 पौधे अधिक हैं। इस मशीन की सहायता से लगाए गए धान की कतारें सीधी होती हैं। साथ ही, खेतों में खाद के छिड़काव करने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है। इसके अतिरिक्त खेत बेहतर ढ़ंग से हवादार होते हैं, जिससे फसलों में बीमारियों का संकट कम हो जाता है।
किसान धरमिंदर को दोगुनी उपज हांसिल हुई
धरमिंदर आगे कहते हैं, कि ट्रांसप्लांटर तकनीक से लगाए गए धान की उपज कद्दू विधि से लगाए गए धान के मुकाबले में प्रति एकड़ डेढ़ से दो क्विंटल ज्यादा होती है। पीआर 126 किस्म की समयावधि कम होने की वजह से गेहूं की कटाई एवं धान की रोपाई के मध्य पर्याप्त समय मिल जाता है। इस प्रकार धरमिंदर सिंह धान की दीर्घकालिक किस्मों की खेती को त्यागकर नवीन कृषि तकनीक अपनाकर इलाके के बाकी किसानों के लिए एक उदाहरण स्थापित कर दिया है।