समय के बदलने के साथ-साथ भारतीय किसानों की सोच और खेती करने का तरीका भी बदला है। वर्तमान में किसान भाई पारंपरिक खेती के अतिरिक्त बहुत सारी फसलों में भी हाथ आजमा रहे हैं।
वह अब धान, ज्वार, सरसों की फसल के साथ साथ और भी कई तरह के पौधों को उगा रहे हैं। इनमें बहुत सारे औषधीय पौधे भी हैं। भारत में अब इनका चलन भी काफी ज्यादा बढ़ गया है।
पीपली इनमें से एक औषधीय पौधा है, जिसकी खेती से किसान भाइयों को तगड़ी आय हो रही है। आगे इस लेख में जानेंगे पीपली की खेती से होने वाले मुनाफे के बारे में।
प्रमुख रूप से पीपली का पौधा छोटी पीपली और बड़ी पीपली 2 प्रकार का होता है। पीपली की खेती करने के लिए इसकी बेहतर किस्म का चयन करना अत्यंत आवश्यक होता है।
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सामान्य तौर पर किसान नानसारी चिमाथी और विश्वम किस्मों के पौधे की खेती करना ज्यादा उचित समझते हैं। पीपली की खेती के लिए लाल मिट्टी, बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती हैं।
ध्यान रहे कि पीपली की खेती वाली जमीन पर पानी के निकलने के लिए ड्रेनेज व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। अधिकांश पीपली की खेती दक्षिण के हिस्सों में की जाती है, जिनमें तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं।
पीपली की खेती करने के दौरान उसके लिए उपयुक्त मात्रा में सिंचाई की सुविधा होनी चाहिए। इसके साथ-साथ नमी वाली जलवायु होनी चाहिए। इसे फरवरी या मार्च के महीने में लगाना चाहिए।
खेत में बेहतर तरीके से जुताई करने के पश्चात खाद और पोटाश फास्फोरस डालने के बाद आप पीपली के पौधे को लगा सकते हैं। धूप से पीपली का पौधा बर्बाद हो सकता है।
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इसके लिए आपको वहां छांव करने की आवश्यकता पड़ सकती है। पीपली का पौधा लगाने के पश्चात 5 से 6 साल तक रहता है, जिससे आप मुनाफा कमा सकते हैं।
पीपली के पौधे की रोपाई के पश्चात ही लगभग 6 महीने के अंदर उसमें फूल आने शुरू हो जाते हैं। जैसे ही फूल काले पड़ जाएं। उन्हें तोड़ लेना चाहिए और सूखने के बाद वह बेचने के लायक हो जाते हैं.
एक हेक्टेयर की बात करें तो इसमें 4 से 6 क्विंटल की उपज होती है. जिससे आपको अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है। मेडिकल के क्षेत्र में पीपली का पौधा काफी काम आता है। सर्दी, खांसी, जुकाम, अस्थमा, पीलिया इन बीमारियों में यह पौधा अत्यंत कारगर साबित होता है।