जैविक खाद तैयार करने की प्रमुख विधियों के बारे में जाने यहां

Published on: 13-Jun-2024
Updated on: 25-Jun-2024

रासायनिक खेती की तुलना में जैविक खेती बराबर या अधिक उत्पादन देती है, इसलिए कृषकों की उत्पादकता और मृदा की उर्वरता दोनों में जैविक खेती बहुत प्रभावी है। 

जैविक खेती वर्षा आधारित क्षेत्रों में और भी अधिक लाभदायक है। जैविक खेती से उत्पादन की लागत कम होती है और कृषक भाइयों को अधिक आय मिलती है।

जैविक खाद तैयार करने की प्रमुख विधियाँ

1. बायोगैस स्लरी बनाने की विधि  

बायोगैस संयंत्र में गोबर गैस की पाचन प्रक्रिया में 25 प्रतिशत ठोस पदार्थ गैस में बदल जाता है और 75 प्रतिशत ठोस पदार्थ खाद में बदल जाता है। 

जो बायोगैस स्लरी कहलाता है, एक वर्ष में दो घनमीटर के बायोगैस संयंत्र में 50 किलोग्राम प्रतिदिन या 18.25 टन गोबर डाला जाता है। 

उस गोबर से लगभग दस टन बायोगैस स्लेरी का खाद मिलता है, जो 80 प्रतिशत नमी से भरपूर है। ये खेती के लिए बेहतरीन खाद है। इसमें 1.5 से 2 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1 प्रतिशत सल्फर और 1 प्रतिशत पोटाश होता है।

ये भी पढ़ें: जैविक खेती के लिए किन बातों को महत्व दें और बेहतर बनाने के प्रमुख तरीके

अमोनियम नाइट्रेट, बायोगैस संयंत्र में गोबर गैस की पाचन क्रिया के बाद 20 प्रतिशत नाइट्रोजन बनता है।

खेत में सिंचाई नाली का तुरंत उपयोग रासायनिक खाद की तरह फसल पर तुरंत लाभ देता है और उत्पादन को 10–20 प्रतिशत बढ़ाता है। 

स्लरी खाद में नाइट्रोजन, सल्फर, पोटाश और सूक्ष्म पोषण तत्वों के अलावा ह्यूमस भी होता है, जो मिट्टी की संरचना को सुधारता है और इसकी जल धारण क्षमता को बढ़ाता है।                          

सिंचित खेती में 10 टन सूखी खाद की आवश्यकता होगी, जबकि असिंचित खेती में 5 टन की आवश्यकता होगी। ताजी गोबर गैस स्लरी की सिंचित खेती में 3-4 टन प्रति हैक्टर की आवश्यकता होगी। 

अन्तिम बखरनी के दौरान सूखी खाद और सिंचाई के दौरान ताजी स्लरी का उपयोग करें। स्लरी का उपयोग करने से फसलों को तीन वर्ष तक धीरे-धीरे पोषक तत्व मिलते रहते हैं।

2. वर्मी कम्पोस्ट

केंचुआ को भूमि की आंत और कृषकों का दोस्त कहा जाता है। यह सेंद्रिय पदार्थ मिट्टी और ह्यूमस को एकत्र करके जमीन की अन्य परतों में फैलता है। 

इससे जमीन पोली होती है, हवा का प्रवेश बढ़ता है और जलधारण क्षमता बढ़ती है। रसायनिक और सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया केंचुओं के पेट में होती है, जिससे नत्रजन, स्फुर और पोटाश सहित अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। 

वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती, मच्छर और मक्खी नहीं बढ़ते, और वातावरण को प्रदूषित नहीं करता।

तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु जीवित रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट लगभग डेढ़ से दो महीने में तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।

ये भी पढ़ें: जैविक खेती का प्रमुख आधार ट्राइकोडर्मा क्या है? इसके प्रयोग की विधि एवं लाभ क्या क्या है?

वर्मी कम्पोस्ट बनने की विधि

कचरे से खाद तैयार किया जाना है उसमें से कांच-पत्थर, धातु के टुकड़े अच्छी तरह अलग कर इसके पश्चात वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिये 10x4 फीट का प्लेटफार्म जमीन से 6 से 12 इंच तक ऊंचा तैयार किया जाता है। 

इस प्लेटफार्म पर छाया के लिए झोपड़ी और दो रद्दे ईट लगाए, प्लेटफार्म पर सूखा चारा, तीन से सात क्विंटल गोबर की खाद और सात से आठ क्विंटल कूड़ाकरकट (गार्वेज) बिछाकर झोपड़ीनुमा आकार देकर अधपका खाद बनाया जाता है।                    

दस से पंद्रह दिन तक झारे से सिंचाई करने से खाद का तापमान कम होता है। 100 वर्ग फीट में 10,000 केंचुए छोड़े जाते हैं। 

केचुए छोड़ने के बाद, टांके को जूट के बोरे से ढंक दिया जाता है और चार दिन तक झारे से सिंचाई की जाती है ताकि 45–50% नमी बनी रहे। 

ध्यान रखें कि अधिक गीलापन हवा को बंद कर देगा, जिससे सूक्ष्म जीवाणु तथा केचुए मर जाएंगे या काम नहीं कर पाएंगे।

Ad