Ad

फसल

जिरेनियम की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

जिरेनियम की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

जिरेनियम एक सुगंधित पौधा है, जिससे निकलने वाला तेल इत्र, साबुन और कॉस्मेटिक उद्योगों में अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। इसकी खुशबू गुलाब जैसी होती है, और यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी काफी लोकप्रिय है। भारत में जिरेनियम तेल की कीमत लगभग ₹20,000 प्रति लीटर तक है, लेकिन घरेलू उत्पादन बेहद कम है—सिर्फ 2 टन। वहीं, देश को 20 टन तेल आयात करना पड़ता है। ऐसे में जिरेनियम की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बन सकती है।कम निवेश, ज़्यादा मुनाफाजिरेनियम की खेती में लागत कम होती है, क्योंकि इसे बहुत ज़्यादा सिंचाई या रासायनिक खाद की आवश्यकता...
अधिक उपज देने वाली मक्का की उन्नत किस्में

अधिक उपज देने वाली मक्का की उन्नत किस्में

मक्का एक बहुपयोगी फसल है जिसका उपयोग अनाज, पशु चारे और औद्योगिक कच्चे माल के रूप में होता है। मक्का का आटा, मक्के की रोटी और अन्य खाद्य उत्पादों में इसका विशेष महत्व है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त जलवायु और उपजाऊ मिट्टी जरूरी होती है। मक्का गर्म और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह उगता है। साथ ही, सही किस्म का चयन भी बेहतर उत्पादन और मुनाफे के लिए आवश्यक है। आइए जानते हैं कुछ प्रमुख उन्नत किस्मों के बारे में । मक्का की उन्नत किस्में  भारत में मक्का की कई किस्में मौजूद है इन किस्में के फीचर्स निम्नलिखित दिए...
मल्टी लेयर फार्मिंग: एक आधुनिक और लाभकारी खेती प्रणाली

मल्टी लेयर फार्मिंग: एक आधुनिक और लाभकारी खेती प्रणाली

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अधिकांश जनसंख्या खेती पर निर्भर है। खेती में तकनीकी बदलाव और परंपरागत विधियों का मिश्रण अब किसानों के लिए आय बढ़ाने का साधन बन चुका है। इसी कड़ी में मल्टी लेयर फार्मिंग एक प्रभावी और टिकाऊ खेती प्रणाली के रूप में उभर रही है। यह विधि एक ही खेत में एक साथ कई फसलों को अलग-अलग ऊंचाई पर उगाने की अनुमति देती है। इस लेख में हम मल्टी लेयर फार्मिंग का महत्व, लाभ, कार्यप्रणाली, उपयुक्त फसलें, वेजिटेबल फार्मिंग मॉडल और इससे जुड़े सामान्य पहलुओं की जानकारी प्राप्त करेंगे।मल्टी लेयर फार्मिंग क्या है?मल्टी...
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने विकसित की चना की नयी किस्म पूसा चना 4037 अश्विनी

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने विकसित की चना की नयी किस्म पूसा चना 4037 अश्विनी

किसानों की आय में वृद्धि के उद्देश्य से कृषि विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थान लगातार अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की नई किस्मों का विकास कर रहे हैं। इसी दिशा में, ICAR-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा, नई दिल्ली ने चने की एक नई उन्नत किस्म पूसा चना 4037 अश्विनी विकसित की है। इस किस्म की विशेषता यह है कि यह लगभग 36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने की क्षमता रखती है। इस किस्म का नामकरण IARI की प्रतिभाशाली छात्रा एवं वैज्ञानिक डॉ. अश्विनी के सम्मान में किया गया है, जिनका हाल ही में तेलंगाना-आंध्र प्रदेश में आई बाढ़ में दुखद...
भिंडी के रोग - रोगों के नाम, लक्षण और नियंत्रण के उपाय

भिंडी के रोग - रोगों के नाम, लक्षण और नियंत्रण के उपाय

भिंडी की खेती भारत में एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय है, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। मुख्य रूप से इसे खरीफ के मौसम में उगाया जाता है। इस फसल की अच्छी पैदावार के लिए उपजाऊ मिट्टी, उपयुक्त मौसम और अनुकूल प्राकृतिक परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं। भिंडी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।भिंडी की बुवाई आमतौर पर मार्च से जून के बीच होती है और फसल जुलाई से सितंबर तक पककर तैयार हो जाती है।भिंडी की खेती में प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण उपाय 1. डैम्पिंग ऑफ (Damping Off)यह रोग बीज बोने के...
सदाबहार की खेती कैसे होती है और इसका क्या महत्व है

सदाबहार की खेती कैसे होती है और इसका क्या महत्व है

सदाबहार एक बहुवर्षीय (बार-बार फलने वाला) सजावटी औषधीय पौधा है, जो भारतभर में परती भूमि और रेतीली जगहों पर पाया जाता है। सदाबहार की जड़ो में इंडोल एल्कलॉइड्स — रॉबसिन (अजमालिसिन) और सर्पेंटिन होते है जो की इसे एक औषधीय पौधा बनाते है, इसकी खेती भारत में कई स्थानों पर की जाती है, इस लेख में हम आपको सदाबहार के गुणों और इसकी खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।सदाबहार में पाए जाने वाले एल्कलॉइड्ससदाबहार में एंटी-फाइब्रिलिक और हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने वाले गुण होते हैं। इसके पत्तों में विनब्लास्टिन और विनक्रिस्टिन नामक दो महत्वपूर्ण एल्कलॉइड्स पाए जाते हैं,...