भारत के अंदर अमरूद की फसल आम, केला और नीबू के बाद चौथे स्थान पर आने वाली व्यावसायिक फसल है। भारत में अमरुद की खेती की शुरुआत 17वीं शताब्दी से हुई। अमेरिका और वेस्ट इंडीज के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र अमरुद की उत्पत्ति के लिए जाने जाते हैं। अमरूद भारत की जलवायु में इतना घुल मिल गया है, कि इसकी खेती बेहद सफलतापूर्वक की जाती है।
वर्तमान में महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार और उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जा रही है। पंजाब में 8022 हेक्टेयर के भू-भाग परअमरूद की खेती की जाती है और औसतन पैदावार 160463 मीट्रिक टन है। इसके साथ ही भारत की जलवायु में उत्पादित अमरूदों की मांग विदेशों में निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसके चलते इसकी खेती व्यापारिक रूप से संपूर्ण भारत में भी होने लगी है।
अमरुद का स्वाद खाने में ज्यादा स्वादिष्ट और मीठा होता है। अमरुद के अंदर विभिन्न औषधीय गुण भी विघमान होते हैं। इस वजह से इसका इस्तेमाल दातों से संबंधी रोगों से निजात पाने के लिए भी किया जाता है। बागवानी में अमरूद का अपना एक अलग ही महत्व है। अमरूद फायदेमंद, सस्ता और हर जगह मिलने की वजह से इसे गरीबों का सेब भी कहा जाता है। अमरुद के अंदर विटामिन सी, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व विघमान होते हैं।
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अमरुद से जेली, जूस, जैम और बर्फी भी बनायीं जाती हैं। अमरुद के फल की अच्छे से देख-रेख कर इसको ज्यादा समय तक भंडारित किया जा सकता है। किसान भाई अमरुद की एक बार बागवानी कर तकरीबन 30 साल तक उत्पादन उठा सकते हैं। किसान एक एकड़ में अमरूद की बागवानी से 10 से 12 लाख रूपए वार्षिक आय सुगमता से कर सकते हैं। यदि आप भी अमरूद की बागवानी करने का मन बना रहे हैं तो यह लेख आपके लिए अत्यंत लाभकारी है। क्योंकि, हम इस लेख में आपको अमरुद की खेती के बारे में जानकारी देंगे।
पंजाब पिंक: इस किस्म के फल बड़े आकार और आकर्षक सुनहरी पीला रंग के होते हैं। इसका गुद्दा लाल रंग का होता है, जिसमें से काफी अच्छी सुगंध आती है। इसके एक पौधा का उत्पादन वार्षिक तकरीबन 155 किलोग्राम तक होता है।
इलाहाबाद सफेदा: इसका फल नर्म और गोल आकार का होता है। इसके गुद्दे का रंग सफेद होता है, जिस में से आकर्षक सुगंध आती है। एक पौधा से तकरीबन सालाना पैदावार 80 से 100 किलोग्राम हो सकती है।
ओर्क्स मृदुला: इसके फल बड़े आकार के, नर्म, गोल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं। इसके एक पौधे से वार्षिक 144 किलोग्राम तक फल हांसिल हो जाते हैं।
सरदार: इसे एल 49 के नाम से भी जाना जाता है। इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है। इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। इसका प्रति पौधा वार्षिक उत्पादन 130 से 155 किलोग्राम तक होती है।
श्वेता: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है। फल में सुक्रॉस की मात्रा 10.5 से 11.0 फीसद होती है। इसकी औसतन पैदावार 151 किलो प्रति वृक्ष होती है।
पंजाब सफेदा: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी और सफेद होता है। फल में शुगर की मात्रा 13.4% प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.62 प्रतिशत होती है।
अन्य उन्नत किस्में: इलाहाबाद सुरखा, सेब अमरूद, चित्तीदार, पंत प्रभात, ललित इत्यादि अमरूद की उन्नत व्यापारिक किस्में है। इन सभी किस्मों में टीएसएस की मात्रा इलाहबाद सफेदा और एल 49 किस्म से ज्यादा होती है।
भारतीय जलवायु में अमरूद इस तरह से घुल मिल गया है, कि इसकी खेती भारत के किसी भी हिस्से में अत्यंत सफलतापूर्वक सुगमता से की जा सकती है। अमरूद का पौधा ज्यादा सहिष्णु होने की वजह इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में बड़ी ही आसानी से की जा सकती है। अमरुद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है।
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इसलिए इसकी खेती सबसे अधिक शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। अमरुद के पौधे सर्द और गर्म दोनों ही जलवायु को आसानी से सहन कर लेते हैं। किन्तु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके छोटे पौधों को नुकसान पहुंचाता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है। वहीं, पूर्ण विकसित पौधा 44 डिग्री तक के तापमान को भी सहन कर सकता है।
जैसा कि उपरोक्त में आपको बताया कि अमरूद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा हैं। भारतीय जलवायु के अनुसार इसकी खेती हल्की से भारी और कम जल निकासी वाली किसी भी तरह की मृदा में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परंतु, इसकी बेहतरीन व्यापारिक खेती के लिए बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है। क्षारीय मृदा में इसके पौधों पर उकठा रोग लगने का संकट होता है।
इस वजह से इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए। इसकी शानदार पैदावार लेने के लिए इसी तरह की मिट्टी के खेत का ही इस्तेमाल करें। अमरूद की बागवानी गर्म एवं शुष्क दोनों जलवायु में की जा सकती है। देश के जिन इलाकों में एक साल के अंदर 100 से 200 सेमी वर्षा होती है। वहां इसकी आसानी से सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है।
अमरूद की खेती के लिए बीजों की बुवाई फरवरी से मार्च या अगस्त से सितंबर के महीने में करना सही है। अमरुद के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीकों से की जाती है। खेत में बीजों की बुवाई के अतिरिक्त पौध रोपाई से शीघ्र उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। यदि अमरुद के खेत में पौध रोपाई करते हैं, तो इसमें पौधरोपण के वक्त 6 x 5 मीटर की दूरी रखें। अगर पौध को वर्गाकार ढ़ंग से लगाया गया है, तो इसके पौध की दूरी 15 से 20 फीट तक रखें। पौध की 25 से.मी. की गहराई पर रोपाई करें।
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इससे पौधों और उसकी शाखाओं को फैलने के लिए काफी अच्छी जगह मिल जायेगी। अमरूद के एक एकड़ खेत वाली भूमि में तकरीबन 132 पौधे लगाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि इसकी खेती की बुवाई बीजों के जरिए से कर रहे हैं, तो फासला पौध रोपाई के मुताबिक ही होगा और बीजों को सामान्य गहराई में बोना चाहिए।
बिजाई का ढंग - खेत में रोपण करके, कलम लगाकर, पनीरी लगाकर, सीधी बिजाई करके इत्यादि तरीके से बिजाई कर सकते हैं।
चयनित प्रजनन में अमरूद की परंपरागत फसल का इस्तेमाल किया जाता है। फलों की शानदार उपज और गुणवत्ता के लिए इसे इस्तेमाल में ला सकते हैं। पन्त प्रभात, लखनऊ-49, इलाहाबाद सुर्ख, पलुमा और अर्का मिरदुला आदि इसी तरह से विकसित की गई है। इसके पौधे बीज लगाकर या एयर लेयरिंग विधि द्वारा तेयार किए जाते हैं। सरदार किस्म के बीज सूखे को सहने लायक होते हैं और इन्हें जड़ों द्वारा पनीरी तैयार करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए पूर्णतय पके हुए फलों में से बीज तैयार करके उन्हें बैड या नर्म क्यारियों में अगस्त से मार्च के माह में बिजाई करनी चाहिए।
बतादें, कि क्यारियों की लंबाई 2 मीटर और चौड़ाई 1 मीटर तक होनी चाहिए। बिजाई से 6 महीने के पश्चात पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है। नवीन अंकुरित पनीरी की चौड़ाई 1 से 1.2 सेंटीमीटर और ऊंचाई 15 सेंटीमीटर तक हो जाने पर यह अंकुरन विधि के लिए इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जाती है। मई से जून तक का वक्त कलम विधि के लिए उपयुक्त होता है। नवीन पौधे और ताजी कटी टहनियों या कलमें अंकुरन विधि के लिए उपयोग की जा सकती हैं।
ये भी देखें: Gardening Tips: अगस्त में अमरूद, आँवला, केला से जुड़ी सावधानियां एवं देखभालबहुत से बागों में दीमक का संक्रमण आरंभ हो चुका है। ऐसी स्थिति में सामान्यतः पेड़ की जड़ें खोखली हो रही हैं। किसान अन्य पेड़ों को संक्रमण से बचाने के लिए रोगग्रस्त पेड़ पौधों को जड़ समेत उखाड़ फेंकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि दीमक का संक्रमण बढ़ने की स्थिति में पेड़ की जड़ों में गोबर की खाद सहित ट्राइकोडर्मा उर्वरक का मिश्रण कर उपयोग करना चाहिए।
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