कृषि फसल उत्पादन से जुड़े किसानों के लिए महीने के अनुसार कृषि कार्य सुझावों के तहत, इस बार अगस्त माह में जानिये बागवानी फसलों की अधिक पैदावार और उससे मुनाफा कमाने के तरीकों के बारे में। हम बात करेंगे मौसमी फलों वाले पौधों अमरूद (Amarood/Guava), आँवला (Aanvala/Amla/Indian Gooseberry) के साथ ही अब साल भर मार्केट में डिमांड में बने रहने वाले केला (Kela/Banana) की फार्मिंग के तरीकों के बारे में। शुरुआत करते हैं अंग्रेजी में गुआवा (Guava) कहे जाने वाले अपने देशी बिही, जामफल या फिर अमरूद के पौधों को लगाने के तरीकों से।
अगस्त के महीने में अमरूद राेपण (Guava Planting) में कुछ वैज्ञानिक युक्तियों के प्रयोग से भरपूर पैदावार और मुनाफा मिलता है। अमरूद के पौधों का रोपण (Planting Guava plants) करते समय पौधों के बीच 5×5 मीटर की दूरी रखने की सलाह बागवानी सलाहकार देते हैं।
अमरूद राेपण (Guava Planting) की कई विधियां हैं। आम तौर पर पुराने पेड़ों के पास की भूमि पर अमरूद के नए पौधे स्वतः पनप जाते हैं। इनको निकालकर खेतों में इच्छित जगह पर रोपा जा सकता है। कलम विधि से भी अमरूद (Guava) के रोपण योग्य पौधे तैयार किये जा सकते हैं।
अमरूद के पत्तों से पौधे तैयार करने की भी विधि कारगर हो सकती है। इस तरीके से अमरूद का बाग तैयार करने के लिए किसान को अगस्त माह के पहले से तैयारी करनी होगी।
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बड़े खेत पर अमरूद के पौधों का रोपण (Planting Guava plants) करने के लिए किसान मित्र नर्सरी या फिर कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ ही उद्यानिकी विभाग से संबद्ध केंद्रों से अमरूद के उमदा किस्म के पौधे निर्धारित मूल्य पर खरीद सकते हैं। आम तौर पर अमरूद के पौधे उनकी खासियतों, क्षमता के आधार पर 10 रुपये से लेकर 300 से 500 रुपयों के वर्ग में बाजार में ऑनलाइन भी बेचे जा रहे हैं। देशी-विदेशी किस्म में से किसान अपनी पसंद के अमरूद के पौधों का चुनाव यहां कर सकते हैं।
अमरूद का पौधा रोपते समय जैविक खाद का उपयोग करने से पौधे को प्राकृतिक तरीके से वृद्धि करने में मदद मिलती है।
अमरूद का पौधा रोपते समय प्रति गड्ढा 25 से 30 किलोग्राम गोबर की खाद का मिश्रण उपयोग करना चाहिए।
इसके लिए पहले साल 260 ग्राम यूरिया, 375 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 500 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति पौधा उपयोग का बागवानी सलाहकारों ने सुझाव दिया है। इसी तरह आयु, कद एवं क्षमता के हिसाब से खाद एवं उर्वरक का प्रयोग कर अमरूद के पौधे को दीर्घकाल तक फलदायक रखा जा सकता है।
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अमरूद के पौधे की पत्ती पीली पड़ने, आकार छोटा होने तथा पौधों की बढ़त कम होने संबंधी परेशानी से परेशान होने की जरूरत नहीं। आम तौर पर जस्ता तत्व की कमी होने से अमरूद के पौधों में यह समस्या आती है। इन व्याधियों के समाधान के लिए 2 प्रतिशत जिंक सल्फेट के स्पे के अलावा 300 ग्राम जिंक सल्फेट को अमरूद के पौधों की जड़ों में डालने से भी अमरूद की पत्तियों के पीलेपन, पेड़ का आकार कम होने आदि जैसी समस्याओं का समाधान हो जाता है।
आम तौर पर अमरूद के पौधों, पेड़ों पर साल में दो बार फल लगते हैं। वर्षाकाल के फलों का स्वाद ठंड में आने वाले फलों के मुकाबले पनछीटा, या फीका होता है। वर्षा के समय अमरूद के फल अधिक तो लगते हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता खराब होती है। इस मौसम के फलों में कीड़े लगने की भी समस्या रहती है। कुछ अनुभवी कृषक इस मौसम में फल न लेकर शरद ऋतु आधारित अमरूद की पैदावार की तैयारी पर अधिक ध्यान देते हैं। अगस्त महीने में किसान अमरूद के पौधे रोप तो सकते हैं लेकिन उनको मानसून में बाग में जल निकासी के प्रबंध का खास ध्यान रखना चाहिए। साथ ही बाग में पनप रहे अमरूद के पौधों की सतत निगरानी भी अगस्त में जरूरी है ताकि किसी भी रोग के लक्षण दिखने पर उसका तत्काल निदान किया जा सके।
आँवला वो चमत्कारी फल है जिसके पौधे, पेड़ों की पत्तियों, शाखाओं, जड़ों तक का व्यापक महत्व है। रसोई की खाद्य सामग्री से दवाई की प्रयोगशालाओं के रसायन तक आँवला अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुका है। एक तरह से इंडियन गूसबेरी (Indian Gooseberry) यानी आँवला (Aanvala/Amla) की प्राकृतिक खेती, हर्बल उत्पादों की व्यापक पहचान बन चुका है। आँवला का मुरब्बा, जूस, अचार, हलवा आदि के अलावा चूरन आदि कई उत्पाद भारतीय हर्बल प्रोडक्ट्स की पहचान हैं।
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आँवला (Aanvala/Amla/Indian Gooseberry) के पौधों को सहेजने के लिए अगस्त का माह अहम होता है। इस महीने में आँवला के एक साल के पौधे के लिए प्रति पौधा 10 किलोग्राम गोबर या वर्मीकम्पोस्ट खाद एवं 50 ग्राम नाइट्रोजन व 35 ग्राम पोटाश का उपयोग करने की सलाह बागवानी सलाहकार देते हैं।
इस मात्रा को 10 वर्ष या उससे ऊपर के वृक्षों में जो क्रमशः बढ़ाते हुए 100 कि.ग्रा. गोबर या कम्पोस्ट खाद एवं 500 ग्राम नाइट्रोजन व 350 ग्राम पोटाश का मिश्रण तैयार कर उपयोग में लाया जा सकता है।
किसान मित्रों को आँवला के पौधे का फफूंद जनित रोगों से बचने की खास जरूरत है। अगस्त के दौरान आँवला के पौधों पर नीले फफूंद रोग की आशंका बलवती रहती है। इसके नियंत्रण के लिए फलों को बोरेक्स या नमक से उपचारित कर फलों की सुरक्षा की जा सकती है। कार्बेन्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल 0.1 प्रतिशत के उपचार से भी आँवला के फलों को रोगों से सुरक्षित रखा जा सकता है।
अगस्त के दौरान केला (Kela/Banana) के रखरखाव के बारे में भा.कृ .अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान सस्थान (ICAR-Indian Institute of Soybean Research) ने एडवाइजरी जारी की है।
सलाह के अनुसार केले में प्रति पौधा 100 ग्राम पोटाश एवं 55 ग्राम यूरिया का उपयोग करना चाहिए। इसे केले के पौधे से 50 सेंटीमीटर दूर गोलाकार प्रयोग कर हल्की गुड़ाई की मदद से मिट्टी में पूरी तरह मिश्रित करने की सलाह दी गई है।
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केला (Kela/Banana) के पौधों में पनामा विल्ट की समस्या हो सकती है। इसकी रोकथाम बाविस्टीन के घोल से संभव है। इसकी 1.5 मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में तैयार घोल को केले के पौधों के चारों तरफ की मिट्टी पर छिड़काव की सलाह दी गई है। लगभग 20 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करने से पनामा विल्ट का उपचार होने की जानकारी कृषि वैज्ञानिकों ने दी है।