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कृषि क्षेत्र में तकनीकों का उपयोग बढ़ाते हुए गांवों में ढांचागत विकास की दिशा में सरकार सतत संलग्नत है। सरकार खेती में रोजगार के अवसर बढाते हुए शिक्षत युवाओं को आकर्षित करना चाहती है ताकि युवाओं का ग्रामीण अंचल से पलायन रोका जा सके। खेती में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पढ़े-लिखे युवा गांवों में ही रहकर कृषि की ओर आकर्षित होंगे। टेक्नालाजी व इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ किसानों को होगा, साथ ही कृषि के क्षेत्र को और सुधारने में कामयाबी मिलेगी। यह विचार कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Minister of State for Agriculture and Farmer Welfare Narendra Singh Tomar) ने बीते दिनों व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि “जब देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे, यानी आजादी के अमृत काल तक भारतीय कृषि सारी दुनिया को दिशा देने वाली होनी चाहिए। अमृत काल में हिंदुस्तान की कृषि की विश्व प्रशंसा करे, लोग यहां ज्ञान लेने आएं, ऐसा हमारा गौरव हों, विश्व कल्याण की भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ हो,” ।
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केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रंखला की समापन कड़ी में कही। “प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से उद्बोधन में भी कृषि क्षेत्र को पुनः महत्व दिया है, जो इस क्षेत्र में तब्दीली लाने की उनकी मंशा प्रदर्शित करता है। पीएम ने आह्वान किया था कि किसानों की आय दोगुनी होनी चाहिए, कृषि में टेक्नालाजी का उपयोग व छोटे किसानों की ताकत बढ़नी चाहिए, हमारी खेती आत्मनिर्भर कृषि में तब्दील होनी चाहिए, पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए, कृषि की योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता होनी चाहिए, अनुसंधान बढ़ना चाहिए, किसानों को महंगी फसलों की ओर जाना चाहिए, उत्पादन व उत्पादकता बढ़ने के साथ ही किसानों को उनकी उपज के वाजिब दाम मिलना चाहिए।
पीएम के इस आह्वान पर राज्य सरकारें, किसान भाई-बहन, वैज्ञानिक पूरी ताकत के साथ जुटे हैं और इसमें आईसीएआर (ICAR - Indian Council of Agricultural Research) की भी प्रमुख भूमिका हो रही है। पिछले दिनों में किसानों में एक अलग प्रकार की प्रतिस्पर्धा रही है कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाएं, साथ ही पीएम श्री मोदी के आह्वान के बाद कार्पोरेट क्षेत्र को भी लगा कि कृषि में उनका योगदान बढ़ना चाहिए,” उन्होंने कहा। एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड योजना के दिशानिर्देशों का पूरा सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें श्री तोमर ने कहा कि “खाद्यान्न की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ अन्य देशों को भी उपलब्ध करा रहे हैं। यह यात्रा और बढ़े, इसके लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। खेती व किसानों को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाना है।
आईसीएआर व कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि के विकास में बहुत अच्छा काम किया है। उनकी कोशिश रही है कि नए बीजों का आविष्कार करें, उन्हें खेतों तक पहुंचाएं, उत्पादकता बढ़े, नई तकनीक विकसित की जाएं और उन्हें किसानों तक पहुंचाया जाएं। जलवायु अनुकूल बीजों की किस्में, फोर्टिफाइड किस्में जारी करना इसमें शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिकों ने कम समय में अच्छा काम किया, जिसका लाभ देश को मिल रहा है। आईसीएआर बहुत ही महत्वपूर्ण संस्थान हैं, जिसकी भुजाएं देशभर में फैली हुई हैं। कृषि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्थान लगा हुआ है।
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किसानों की माली हालत सुधारना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए 6,865 करोड़ रुपये के खर्च से दस हजार नए कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाना शुरू किया गया है। इनमें से लगभग तीन हजार एफपीओ बन भी चुके हैं। इनके माध्यम से छोटे-छोटे किसान एकजुट होंगे, जिससे खेती का रकबा बढ़ेगा और वे मिलकर तकनीक का उपयोग कर सकेंगे, अच्छे बीज थोक में कम दाम पर खरीदकर इनका उपयोग कर सकेंगे, वे आधुनिक खेती की ओर अग्रसर होंगे, जिससे उनकी ताकत बढ़ेगी और छोटे किसान आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
श्री तोमर ने कहा कि कृषि क्षेत्र में निजी निवेश के लिए सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का प्रावधान किया है। साथ ही अन्य संबद्ध क्षेत्रों को मिलाकर डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड तय किया गया है। एग्री इंफ्रा फंड (Agri Infra Fund) के अंतर्गत 14 हजार करोड़ रु. के प्रोजेक्ट आ चुके हैं, जिनमें से 10 हजार करोड़ रु. के स्वीकृत भी हो गए हैं। सिंचाई के साधनों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जल सीमित है इसलिए सूक्ष्म सिंचाई पर फोकस है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का लाभ आम किसानों तक पहुंचाने के लिए सूक्ष्म सिंचाई कोष 5 हजार करोड़ रु. से बढ़ाकर 10 हजार करोड़ रु. किया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हुई है। इस स्कीम में अभी तक लगभग साढ़े 11 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 2 लाख करोड़ रु. से ज्यादा राशि जमा कराई जा चुकी हैं।
Source : PIB (Press Information Bureau)
Government of India
आजादी का अमृत महोत्सव में केंद्रीय कृषि मंत्री के उद्बोधन के साथ संपन्न हुई आईसीएआर की 75 व्याख्यानों की श्रंखला
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प्रारंभ में आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने स्वागत भाषण दिया। संचालन उप महानिदेशक डा. आर.सी. अग्रवाल ने किया।
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खेती-किसानी के क्षेत्र में प्राचीन काल से पशुपालन विशेषकर गाय का विशेष महत्व रहा है। आज वंदना कुमारी दूध प्रसंस्करण के माध्यम से अच्छी कमाई कर अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं।
बतादें, कि वंदना कुमारी ने गौ-पालन शुरू करने का फैसला लेने से पहले दो बार नहीं सोचा। जीवन में बेहतर उपलब्धि हांसिल करने का उनका दृढ़ संकल्प ही था, जिसने उनको गौ-पालन प्रारंभ करने के लिए प्रेरित किया।
एक गृहिणी के लिए जीवन में सब कुछ काफी सुगम नहीं था। कुछ नवीन करने के उनके जूनून ने समस्या और बाधाओं का सामना करने में काफी सहायता की।
कृषि विज्ञान केन्द्र (KVK), बांका (बिहार) की मदद के फलस्वरूप बन्दना को पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सफल डेयरी किसान के तोर पर स्थापित करने में सहयोग प्राप्त हुआ।
बतादें, कि 13 एकड़ कृषि योग्य जमीन और 8 एकड़ बंजर जमीन वाले परिवार में आय बढ़ाने के लिए अपने परिवार की मदद करना उनके लिए बड़ी मजबूरी थी।
खेती में सक्रियता से भाग लेने के उपरान्त कृषि उत्पादकता को बेहतर करना वंदना का लक्ष्य बन गया था। बंदना ने साल 2011 में केवीके का भ्रमण करके और वैज्ञानिकों से मिलकर कृषि भूमि की उत्पादक क्षमता को बढ़ाने के संबंध में दिशा-निर्देश लिया।
इसके पश्चात कृषि विज्ञान केन्द्र से उनका जुड़ाव काफी बढ़ता गया और उत्पादकता बढ़ाने के लिए केवीके के वैज्ञानिकों द्वारा समयानुसार सही सलाह दी गई। केवीके के वैज्ञानिकों की मदद से वह अपनी कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता में बढ़ोतरी करने में सफल हुई।
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वंदना ने समकुल बंजर जमीन में से 2.75 एकड़ को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित करने में सफलता हांसिल की। एक नया कीर्तिमान स्थापित करने का जज्बा रखने वाली वंदना ने खेती के दौरान केवीके की तकनीकी मदद से वर्ष 2012 में एक धान ओसाई मशीन को विकसित किया।
वंदना के नवाचार को परखते हुए एक विख्यात निजी कंपनी द्वारा महिंद्रा समृद्धि अवार्ड से उन्हें पुरस्कृत किया गया और सम्मान स्वरूप 51 हजार की नकद धनराशि प्राप्त हुई।
वंदना के गांव को National Innovative वित Climate Resilient Agriculture (NICRA) परियोजना के कार्यान्वयन हेतु चयन किया गया, जिसके तहत उन्होंने हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन, यूरिया से पुआल का उपचार, साइलेज बनाने के अतिरिक्त हरे चारे की उपज संबंधी तकनीकें सीखी और अपनाई। इसके अलावा कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों में भी हिस्सा लिया।
NICRA परियोजना के अंतर्गत ग्रामीणों के लिए आयोजित किए जाने वाले कृषि गतिविधियों में बेहतर सहयोग देने के बाद वंदना ने विविधता लाने के लिए साल 2016 में गौपालन शुरू करने का निर्णय किया।
उन्होंने अपने पिता (पेशे से पशु चिकित्सक) से पशुपालन की बारीकियां सीखीं जो वंदना को असलियत में डेयरी फार्मिंग के लिए प्रेरित करने वाला साबित हुआ, उन्होंने दूध देने वाली 10 गायों को खरीदकर नया उद्यम शुरू किया।
प्रत्येक गाय व चारा उत्पादित 7-10 लीटर दूध के साथ उनकी गोशाला में औसत दूध उत्पादन लगभग 70-80 लीटर प्रति दिन प्राप्त होता था। वह अपनी गोशाला में उत्पादित दूध की मात्रा से संतुष्ट थीं।
लेकिन जब दूध बेचने की बात आई तो बंदना को खरीदार ढूंढने में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसी दौरान केवीके के जरिए से वंदना को फरवरी, 2020 में "आय बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पाद विकास" विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला, जिसका आयोजन पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, मोहनपुर, नदिया, पश्चिम बंगाल द्वारा किया जा रहा था।