हरित क्रांति के बाद से भारत के खेतों में उर्वरकों का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ा है, हालांकि उर्वरकों के बढ़े हुए इस्तेमाल की वजह से प्रति व्यक्ति उत्पादकता में बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन इससे हमारी मृदा पर नकारात्मक असर देखने को मिला है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021 (Economic survey 2021-22) के अनुसार वर्तमान में पूरे विश्व भर में प्रतिवर्ष 16 हज़ार टन फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं यदि बात करें प्रति हेक्टेयर उर्वरक इस्तेमाल की, तो यह लगभग 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।
उर्वरकों के दुरुपयोग को रोकने के लिए आई नई वैज्ञानिक एडवाइजरी
अनाज और दलहनी फसलों के उत्पादन में उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल अथार्त दुरुपयोग होने की वजह से धीरे-धीरे प्रति किलोग्राम उर्वरक की मदद से होने वाली उत्पादकता में भी कमी दिखाई दे रही है।
ये भी पढ़ें: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार
रसायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से होने वाली समस्याएं :
बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य मांग की पूर्ति के लिए रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल तो अब अनिवार्य हो गया है, हालांकि बेहतर समुचित विकास के लिए पर्यावरण का सहयोग प्राप्त किए बिना, भविष्य में इस मांग की आपूर्ति करना नामुमकिन हो सकता है।
वर्तमान समय में रासायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से निम्न प्रकार की समस्याएं देखने को मिल रही है :
-
पानी का प्रदूषण (Water Eutrophication) :
वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे रासायनिक उर्वरक, पानी की गुणवत्ता को खराब करने में सर्वाधिक भूमिका निभा रहे हैं।
बारिश के मौसम के दौरान उर्वरक का इस्तेमाल किए हुए खेत के ऊपर से गुजरा हुआ पानी, जब किसी जगह पर इकट्ठा होता है तो वह अपने साथ उर्वरकों के दूषित पदार्थों को भी बहाकर ले जाता है, जो कि उस पानी को पूरी तरीके से अनुपयोगी बना देते हैं। इस प्रकार का पानी पूरे जलीय चक्र को प्रभावित कर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार यदि किसान भाई रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें अपने खेत में पड़े हुए पानी को, उर्वरकों के तुरंत इस्तेमाल के बाद बाहर नहीं छोड़ना चाहिए। इससे आपके आसपास में स्थित पानी के स्रोत दूषित हो सकते हैं, जो भविष्य में सम्पूर्ण परिस्थिति की तंत्र को बिगाड़ सकते हैं।
-
हरितगृह गैस का बढ़ता प्रभाव (Greenhouse Gas Emission) :
वर्तमान समय में इस्तेमाल किए जा रहे कुछ रासायनिक उर्वरक जैसे कि डीएपी (DAP) और यूरिया तथा पोटाश के लिए विदेश से आयात किए जा रहे कुछ उर्वरकों में ऐसे पदार्थ उपलब्ध होते हैं, जो खेत से निकलने वाली हरित गृह गैस 'मीथेन' की मात्रा को बढ़ा देते हैं।
यह मीथेन पृथ्वी से भूतापीय ऊर्जा को वापस लेकर जाने वाली किरणों को पर्यावरण में रोक देती है, जिससे धीरे-धीरे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और इसी बढ़ते तापमान की वजह से कम बारिश और सूखे के अलावा कई स्थानों पर बाढ़ जैसी समस्याएं देखने को मिलती है, जो कि अंततः किसान भाइयों के लिए ही खतरनाक साबित होती है।
इस हरित ग्रह प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को ऐसी फसलों का उत्पादन नहीं करना चाहिए जो ज्यादा मिथेन गैस निकालती हो।
संयुक्त राष्ट्र संस्थान से जुड़ी खाद्य एवं कृषि संस्थान (Food and Agriculture Organisation) की एक रिपोर्ट के अनुसार पोटाश और मैग्नेशियम की कमी को दूर करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे उर्वरकों का बहुत ही सीमित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए, इससे हरित गृह प्रभाव को कम करने में मदद तो मिलेगी ही, साथ ही सीमित प्रयोग से उत्पादकता की अच्छी प्राप्त होगी।
ये भी पढ़ें: जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ
-
मृदा में बढ़ती हुई अम्लता (Soil acidification) :
अम्लीय उर्वरकों के अधिक प्रयोग से भारतीय मृदा की अम्लता में बढ़ोतरी हो रही है, जो कि किसी भी पौधे की वृद्धि दर को धीरे कर सकती हैं। अम्लता बढ़ने से मृदा में पाए जाने वाले छोटे-छोटे जीव पाचन की प्रक्रिया नहीं कर पाते हैं, जिससे मृदा में उपलब्ध पोषक तत्व पौधे की जड़ों तक नहीं पहुंच पाते हैं। पोषक तत्वों की कमी की वजह से उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल के बावजूद भी पौधे की लंबाई और अनुमानित उत्पादकता वास्तविकता में कम प्राप्त होती है।
कृषि वैज्ञानिकों की राय में इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए रासायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जोकि मृदा के स्तर को पहले जैसा बनाने में सहायक साबित होते है। इसके लिए किसान भाई पशुओं से प्राप्त होने वाले गोबर का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर केंचुआ से प्राप्त खाद को भी उर्वरक के रूप में खेत में डाल सकते हैं।
-
मृदा अपरदन (Soil degradation / Soil erosion) :
मृदा की गुणवत्ता में भौतिक, रासायनिक और जैविक रूप से कमी आने को ही मृदा अपरदन कहा जाता है। वास्तविकता में मृदा अपरदन में, मृदा में उपलब्ध जैविक पदार्थों में आई कमी के साथ ही, उर्वरता में आई कमी के अलावा लवणता बढ़ने जैसी समस्याओं को शामिल किया जाता है।
अधिक उत्पादन और ज्यादा मुनाफे के लिए पंजाब और हरियाणा राज्य में पानी के अधिक इस्तेमाल और रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग की वजह से मृदा पर बढ़ता दबाव किसानों के साथ ही कृषि वैज्ञानिकों के लिए भी चिंता का विषय बनता जा रहा है।
उत्पादकता को पुनः स्थापित करने के लिए कृषि वैज्ञानिक प्रयासरत हैं, इसी राह पर चलते हुए अब पूसा के वैज्ञानिकों ने रासायनिक उर्वरकों से अलग अधिक उत्पादकता देने वाले जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए प्रयास जारी कर दिए है। खेतों की घटती उत्पादकता आने वाले समय में भारी खाद्य संकट भी पैदा कर सकती है।
-
किसानों पर बढ़ता आर्थिक दबाव (Monetary Pressure) :
उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल के लिए किसानों में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा आर्थिक दबाव पैदा कर रही है। यदि किसी एक किसान ने अपने खेत में ज्यादा उर्वरक इस्तेमाल किया और उस वर्ष उसके खेत से अधिक उत्पादकता प्राप्त हुई, तो उसी को देख कर दूसरे किसान भी अधिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। इससे मृदा पर बढ़ता दबाव और किसानों की जेब पर आया अतिरिक्त आर्थिक बोझ, उन्हें आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं की तरफ ले जा रहा है।
ऐसी समस्याओं से निजात पाने के लिए सरकार किसानों के बीच उर्वरकों के समोचित इस्तेमाल के लिए जागरूकता फैलाने के अलावा, कृषि मंत्रालय की वेबसाइट के द्वारा समय-समय पर बेहतर गुणवत्ता वाले उर्वरकों की जानकारी भी उपलब्ध करवा रही है।
ये भी पढ़ें: कम उर्वरा शक्ति से बेहतर उत्पादन की तरफ बढ़ती हमारी मिट्टी
उर्वरकों के बढ़ते प्रभाव से होने वाली समस्याओं का समाधान :
ऊपर बताई जानकारी से सभी किसान भाइयों को यह तो समझ में आ गया होगा कि उर्वरकों का अधिक इस्तेमाल उनके लिए हमेशा हानिकारक ही होता है,
यदि आप भी अपने आर्थिक बोझ को कम करने के लिए प्रयासरत हैं तो नीचे बताए गए कुछ समाधान को अपनाकर फायदा उठा सकते हैं :-
-
पता लगाएं मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों की सही मात्रा :
भारत में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रकार की मृदा में पाई जाती है और प्रत्येक मृदा में उपलब्ध पोषक तत्व भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं।
यदि किसी मृदा में पहले से ही नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा है तो, उस मृदा में डीएपी और यूरिया जैसे उर्वरक का इस्तेमाल कोई सकारात्मक उत्पादकता नहीं देगा बल्कि आपके लिए नुकसान ही करेगा।
ये भी पढ़ें: कहां कराएं मिट्टी के नमूने की जांच
अपने खेत में पाई जाने वाली मृदा को पास में ही स्थित किसी कृषि सेवा केंद्र में जाकर 'सोयल हेल्थ कार्ड स्कीम' (Soil Health card scheme) के जरिए उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। इस कार्ड में खेत की मृदा में पाए जाने वाले 12 मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्वों की जानकारियां उपलब्ध करवाई। सोयल हेल्थ कार्ड से प्राप्त रिपोर्ट की मदद से अपने खेत में केवल उसी पोषक तत्व से जुड़े उर्वरक का इस्तेमाल करें, जिसकी कमी पाई गई है।
-
कैसे करें उर्वरकों का सही इस्तेमाल और प्रबंधन ?
उर्वरकों के सही प्रबंधन में हम कुछ आधार निर्धारित कर सकते हैं, जैसे कि प्रत्येक प्रकार की फसल के लिए उर्वरक का इस्तेमाल अलग-अलग हो सकता है , इसलिए किसी भी फसल को उगाने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें और केवल सही समय पर ही उर्वरक का छिड़काव करें, जिससे बेहतर उत्पादकता के साथ ही पौधे की वृद्धि दर अधिक प्राप्त होगी।
इसके अलावा उर्वरक की सही मात्रा का इस्तेमाल भी फर्टिलाइजर के बेहतर प्रबंधन में शामिल किया जा सकता है, यदि किसी फसल को कम उर्वरक की आवश्यकता है तो उसमें केवल सीमित मात्रा में ही छिड़काव करें, पौधे की वृद्धि दर सुचारू रूप से होने पर उर्वरक का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।
ये भी पढ़ें: पौधे को देखकर पता लगाएं किस पोषक तत्व की है कमी, वैज्ञानिकों के नए निर्देश
किसी भी उर्वरक का इस्तेमाल करने से पहले किसान भाइयों को यह जानकारी अवश्य प्राप्त करनी चाहिए कि वह उर्वरक किस कंपनी के द्वारा तैयार किया गया है और इस कंपनी के उत्पादों के साथ किसानों का पूर्व अनुभव कैसा रहा है, इससे आपको सही ब्रांड से उत्पाद खरीदने का अंदाजा लग जाएगा।
ये भी पढ़ें: ऐसे करें असली और नकली खाद की पहचान, जानिए विशेष तरीका
यदि आप अपने खेत से एक से अधिक जगह से मृदा के सैंपल ले जाकर जांच करवाते हैं तो अलग-अलग सैंपल में प्राप्त हुई पोषक तत्वों की अलग-अलग मात्रा को ध्यान में रखते हुए उर्वरकों की छिड़काव की मात्रा को कम या अधिक किया जा सकता है।
आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से खेती में आने वाली समस्याएं और उनके समाधान से जुड़ी हुई जानकारी किसान भाइयों को मिल गई होगी।इस एडवाइजरी का इस्तेमाल कर भविष्य में आप भी खेत की उर्वरता को बरकरार रखने के साथ ही उत्पादकता को बढ़ाने में सक्षम हो पाएंगे और आर्थिक मजबूती सुनिश्चित कर पाएंगे।