कृषि में अच्छी उत्पादकता के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होता है। सबसे पहले जुताई किसी भी फसल की खेती के लिए सर्वप्रथम कार्य है।
फसल की पैदावार खेत की जुताई पर आश्रित होती है। क्योंकि, अब रबी फसलों की कटाई का कार्य तकरीबन पूर्ण हो चुका है।
अब ऐसे में किसान खरीफ सीजन की खेती की तैयारियों में जुट गए हैं। रबी फसल की कटाई के पश्चात खेत बिल्कुल खाली हो जाते हैं।
परंतु, खरीफ सीजन की खेती शुरू करने से पहले किसानों को ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य कर लेनी चाहिए। जमीन की उर्वरता को बढ़ाने के लिए ये काफी जरूरी है।
इससे फसल उपज में काफी लाभ मिलता है। जानिए जुताई क्यों आवश्यक है। रबी फसल की कटाई के पश्चात खेत खाली हो जाते हैं।
वहीं, गर्मी में खाली खेत पानी की कमी की वजह से सख्त हो जाते हैं, जिससे बचने के लिए खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यंत आवश्यक है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो खेत में केमिकल फर्टिलाइजेशन से भूमि के 6 इंच तक मृदा सख्त हो जाती है।
खरीफ के सीजन में कल्टीवेटर से जुताई करने पर खेत में 3 इंच तक ही जुताई हो पाती है। इससे खेत की कड़ी मिट्टी टूटती नहीं और जड़ों का विकास नहीं हो पाता है। इसके लिए कृषकों को गर्मी के मौसम में एक बार ग्रीष्मकालीन जुताई करनी अत्यंत आवश्यक है।
किस महीने में ग्रीष्मकालीन जुताई करनी चाहिए
ग्रीष्मकालीन जुताई करने का सबसे अनुकूल वक्त मई माह होता है। इस मौसम में तापमान काफी ज्यादा होता है। इस दौरान जमीन के अंदर कीड़े मकोड़े घर बना लेते हैं।
साथ ही, जुताई करने से मृदा पलटती है, जिससे कीड़ों के साथ उनके अंडे और घर चौपट हो जाते हैं। इससे वो आगे खरीफ की फसल को हानि नहीं पहुंचा पाते। साथ-साथ जुताई के पश्चात मृदा के अंदर हवा का संचार होता है।
ग्रीष्मकालीन जुताई कितनी गहराई तक करनी चाहिए ?
ग्रीष्मकालीन जुताई जमीन में 6 इंच तक करनी आवश्यक है। बतादें, कि किसी भी फसल के जड़ का विकास 6 से 9 इंच तक होगा, जिससे फसल अच्छी तरह तैयार होती है।
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इसके लिए किसान ट्रैक्टर के साथ दो हल वाले एमपी फ्लाई, डिस फ्लाई, क्यूचिजन फ्लाई मशीन के हल का उपयोग कर सकते हैं। इससे खेत में 6 इंच तक गहरी जुताई हो जाती है। जुताई करने पर बारिश होने के बाद खेत में पानी ठहरता है, जिससे मृदा में नमी बनी रहती है।
ग्रीष्मकालीन जुताई के क्या-क्या फायदे हैं ?
ग्रीष्मकालीन जुताई से मृदा में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि होती है। मिट्टी के पलट जाने से जलवायु का असर सुचारू रूप से मृदा में होने वाली प्रतिक्रियाओं पर पड़ता है।
वहीं, वायु और सूर्य के प्रकाश की मदद से मिट्टी में विद्यमान खनिज ज्यादा सुगमता से पौधे के भोजन में परिणित हो जाते हैं।
ग्रीष्मकालीन जुताई कीट एवं रोग नियंत्रण में सहायक है। हानिकारक कीड़े तथा रोगों के रोगकारक भूमि की सतह पर आ जाते हैं और तेज धूप से खत्म हो जाते हैं।
ग्रीष्मकालीन जुताई मृदा में जीवाणु की सक्रियता को काफी बढ़ाती है। यह दलहनी फसलों के लिए भी काफी ज्यादा उपयोगी है। ग्रीष्मकालीन जुताई खरपतवार नियंत्रण में भी मददगार है।
कांस, मोथा आदि के उखड़े हुए हिस्सों को खेत से बाहर फेंक देते हैं। अन्य खरपतवार उखड़ कर सूख जाते हैं। खरपतवारों के बीज गर्मी व धूप से नष्ट हो जाते हैं।
बारानी खेती वर्षा पर निर्भर करती है अत: बारानी परिस्थितियों में वर्षा के पानी का अधिकतम संचयन करने लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना नितान्त आवश्यक है।
अनुसंधानों से भी यह साफ हो चुका है, कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से 31.3 प्रतिशत बरसात का पानी खेत में समा जाता है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मिट्टी कटाव में भारी कमी होती है।
अर्थात् अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि गर्मी की जुताई करने से भूमि के कटाव में 66.5 फीसद तक की कमी आती है।
ग्रीष्मकालीन जुताई से गोबर की खाद व अन्य कार्बनिक पदार्थ जमीन में बेहतर तरीके से मिल जाते हैं, जिससे पोषक तत्व जल्द ही फसलों को उपलब्ध हो जाते हैं।