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कृषि कार्य

मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

दोस्तों आज हमारा यह आर्टिकल मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें और मानसून से जुड़े सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी से जुड़ा होगा।

मानसून और किसानों से जुड़ी आवश्यक जानकारियों को प्राप्त करने के लिए हमारे इस आर्टिकल के अंत तक जरूर रहेंगे। 

मानसून के शुरुआती जुलाई महीने के कृषि कार्य

दोस्तों अगर बात करें मानसून के महीने की, तो मानसून का महीना किसानों के लिए सोने पर सुहागा होता है। मानसून का आरंभ महासागर तथा अरब सागर की तरफ से भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर आने वाली पावस हवाओं को कहा जाता हैं। 

मानसून के महीने में तेज हवाएं और तेज बारिश खूब होती है। इन मानसून हवाओं के प्रभाव से भारत के आसपास के क्षेत्र यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि क्षेत्रों में भारी वर्षा होती हैं। 

इन मानसून हवाओं का सक्रिय दक्षिण एशिया क्षेत्र में जून के महीने से लेकर सितंबर तक चलता रहता है।

किसान भाइयों पर मानसून का प्रभाव:

जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारतएकउपजाऊदेश है। यहां हर प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं इसीलिए इसे सोना उगलने वाली भूमि भी कहां जाता है। 

भारत में अधिकांश लोग कृषि विकास और उत्पादन पर ही अपना जीवन निर्भर करते हैं। मूल रूप से कहे तो भारत एक कृषि अर्थव्यवस्था का स्वरूप है। भारत की लगभग 50% जनसंख्या अपनी आजीविका कमाई कृषि के माध्यम से ही करती हैं।

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किसान भाइयों के लिए महत्वपूर्ण मानसून का महीना:

पूर्ण रूप से कृषि उद्योग पर निर्भर देश के लिए मानसून का महीना सब महीनों से आवश्यक महीना है। भारत की ज्यादातर कृषि भूमियों को सिंचाई की आवश्यकता होती है और यह भूमि मानसून की वर्षा के कारण भली प्रकार से सिंचित हो जाती है। 

यह दक्षिण पश्चिम मानसून के संपर्क से सिंचित होती हैं। कुछ ऐसी फसलें हैं जिनको भारी वर्षा की जरूरत पड़ती है, यह फसलें कुछ इस प्रकार है जैसे: चावल, दालें आदि। इन फसलों को भरपूर वर्षा की आवश्यकता होती है, ताकि यह फसलें पूर्ण रूप से उत्पादन कर सके। 

यह भारतीयों का मुख्य आहार भी है जो भारतीय खाना बेहद पसंद करते हैं। किसानों के अनुसार रबड़ के पेड़ों को अच्छे तापमान और भारी वर्षा की बहुत जरूरत पड़ती है। 

यह रबड़ के पेड़ दक्षिणी क्षेत्रों में रोपड़ होते हैं। किसानों का यह कहना है, कि मानसून की पहली बारिश पर ही फसलों का रोपण पूर्ण रूप से निर्भर होता है। विपत्ति संकट से जूझने वाले किसानों के लिए मानसून का महीना सबसे महत्वपूर्ण होता है। 

मानसून का सीजन किसानों के लिए क्यों महत्वपूर्ण होता है?

एक अच्छा मानसून का सीजन कृषि उद्योग को पुनर्जीवित करता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गांव तथा ग्रामीण में जल का कोई साधन नहीं होता हैं। मात्र नदियों और हैंडपंप के माध्यम से ही पानी का स्त्रोत बना रहता है।

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फसलों में पानी की प्राथमिक स्त्रोत को पूरा करने के लिए महिलाएं, पुरुषों बच्चों आदि को दूर दूर से पानी लाना पड़ता है। मानसून का महीना किसानों की इस गंभीर समस्याओं को दूर कर देता है। 

भारी वर्षा के कारण भूमिगत जल आवश्यकता की आपूर्ति होती है। मानसून का महीना ग्रामीण विकास में काफी सहायक होते है और भूमि के जलाशयों की भरपूर भरपाई होती हैं। 

किसान भाई विभिन्न प्रकार के कर्ज़ में डूबे होते हैं और इन कर्ज़ों को अदा करने में मानसून का सीजन मदद करता है। इसीलिए मानसून के सीजन को सबसे महत्वपूर्ण सीजन कहा जाता है। 

सरकार द्वारा किसानों को काफी कम मुनाफा होता है इस प्रकार किसानों को और ज्यादा अच्छे उपज की जरूरत पड़ती है।

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मानसून की शुरुआत के, जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें ?

मानसून के महीने में अच्छी फसलों की प्राप्ति के लिए किसान भाइयों को क्या करना चाहिए जानिए। जुलाई के महीने में किसान भाई को कोई कठिन काम करने की आवश्यकता नहीं है, कुछ आसान तरीके हैं जो कुछ इस प्रकार है:

  • मानसून का महीना मन मोह लेने वाला होता है काफी सुहाना और खूबसूरत मौसम होता है। इस मानसून के महीने में लोग घूमना फिरना काफी पसंद करते हैं और इस मौसम का भरपूर मजा लेते हैं।
  • हमारे भारत देश में सभी प्रकार की खेती पूर्ण रूप से मौसम पर ही निर्भर होती है।अच्छी बारिश के ज़रिए खेत, खलियान हरे भरे होकर लहराने लगते हैं। खेतों को हरा भरा देख किसानों में एक अलग तरह का उत्साह पैदा हो जाता है।

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जिस प्रकार हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं उसी प्रकार मानसून का महीना कुछ फसलों के लिए बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होता है। और कुछ फसलों को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

ऐसी स्थितियों से बचने के लिए हमारे किसान भाइयों को कुछ आसान तरीके अपनाने चाहिए:

  • मानसून के महीने में फसल को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को चाहिए कि वह खेतों में ज्यादा से ज्यादा अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए जलभराव को रोकना शुरू करें। जलभराव को रोकना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है, क्योंकि इससे हमारी फसलें खराब हो सकती हैं। जलभराव से बचने के लिए आपको खेत के बीच में गहरी नालियों की व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि जब भी कभी बारिश का पानी खेतों में जाए तो वह आसानी से बाहर निकल जाए, बिना फसलों को नुकसान पहुंचाए।
  • कृषि विशेषज्ञ मानसून के महीनों में नर्सरी फसलों की सुरक्षा के लिए हर तरह की जानकारी अवगत कराते हैं। जिस जानकारियों को अपनाकर आप अपनी नर्सरी फसलों की सुरक्षा कर सकते हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार जिन फल और सब्जियों की फसलों को ज्यादा पानी की आवश्यकता पड़े, उन फसलों को किसान भाई मानसून में लगाएं ताकि फसलों को पूर्ण रूप से जल प्राप्ति हो सके।
  • फसलों के बचाव के लिए जैविक कीटनाशक छिड़काव की बहुत आवश्यकता होती है। यह छिड़काव आपको समय-समय पर फसलों पर करते रहना है।
  • रासायनिक कीटनाशक तथा फफूंदी नाशक का उपयोग सिर्फ और सिर्फ कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर ही करें।
  • मानसून का महीना फसलों के लिए सफ़ेद मक्खियों का प्रकोप भी बन जाता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वह लगभग 5 किलो नीम की खली को अच्छी तरह से पानी में घोलकर मिला लें। फसलों की सुरक्षा के लिए फसलों पर छिड़काव करते रहे। क्योंकि यहां सफेद मक्खियां फसलों की उत्पादन क्षमता को रोकती हैं।

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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा यह आर्टिकल मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में सभी प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां मौजूद है। 

जिससे आप लाभ उठा सकते हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

फसल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए मई माह में कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण कार्य

फसल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए मई माह में कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण कार्य

कृषि में अच्छी उत्पादकता के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होता है। सबसे पहले जुताई किसी भी फसल की खेती के लिए सर्वप्रथम कार्य है। 

फसल की पैदावार खेत की जुताई पर आश्रित होती है। क्योंकि, अब रबी फसलों की कटाई का कार्य तकरीबन पूर्ण हो चुका है। 

अब ऐसे में किसान खरीफ सीजन की खेती की तैयारियों में जुट गए हैं। रबी फसल की कटाई के पश्चात खेत बिल्कुल खाली हो जाते हैं।

परंतु, खरीफ सीजन की खेती शुरू करने से पहले किसानों को ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य कर लेनी चाहिए। जमीन की उर्वरता को बढ़ाने के लिए ये काफी जरूरी है। 

इससे फसल उपज में काफी लाभ मिलता है। जानिए जुताई क्यों आवश्यक है। रबी फसल की कटाई के पश्चात खेत खाली हो जाते हैं। 

वहीं, गर्मी में खाली खेत पानी की कमी की वजह से सख्त हो जाते हैं, जिससे बचने के लिए खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यंत आवश्यक है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो खेत में केमिकल फर्टिलाइजेशन से भूमि के 6 इंच तक मृदा सख्त हो जाती है।

खरीफ के सीजन में कल्टीवेटर से जुताई करने पर खेत में 3 इंच तक ही जुताई हो पाती है। इससे खेत की कड़ी मिट्‌टी टूटती नहीं और जड़ों का विकास नहीं हो पाता है। इसके लिए कृषकों को गर्मी के मौसम में एक बार ग्रीष्मकालीन जुताई करनी अत्यंत आवश्यक है।

किस महीने में ग्रीष्मकालीन जुताई करनी चाहिए

ग्रीष्मकालीन जुताई करने का सबसे अनुकूल वक्त मई माह होता है। इस मौसम में तापमान काफी ज्यादा होता है। इस दौरान जमीन के अंदर कीड़े मकोड़े घर बना लेते हैं। 

साथ ही, जुताई करने से मृदा पलटती है, जिससे कीड़ों के साथ उनके अंडे और घर चौपट हो जाते हैं। इससे वो आगे खरीफ की फसल को हानि नहीं पहुंचा पाते। साथ-साथ जुताई के पश्चात मृदा के अंदर हवा का संचार होता है।

ग्रीष्मकालीन जुताई कितनी गहराई तक करनी चाहिए ?

ग्रीष्मकालीन जुताई जमीन में 6 इंच तक करनी आवश्यक है। बतादें, कि किसी भी फसल के जड़ का विकास 6 से 9 इंच तक होगा, जिससे फसल अच्छी तरह तैयार होती है। 

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इसके लिए किसान ट्रैक्टर के साथ दो हल वाले एमपी फ्लाई, डिस फ्लाई, क्यूचिजन फ्लाई मशीन के हल का उपयोग कर सकते हैं। इससे खेत में 6 इंच तक गहरी जुताई हो जाती है। जुताई करने पर बारिश होने के बाद खेत में पानी ठहरता है, जिससे मृदा में नमी बनी रहती है।

ग्रीष्मकालीन जुताई के क्या-क्या फायदे हैं ?

ग्रीष्मकालीन जुताई से मृदा में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि होती है। मिट्टी के पलट जाने से जलवायु का असर सुचारू रूप से मृदा में होने वाली प्रतिक्रियाओं पर पड़ता है। 

वहीं, वायु और सूर्य के प्रकाश की मदद से मिट्टी में विद्यमान खनिज ज्यादा सुगमता से पौधे के भोजन में परिणित हो जाते हैं। 

ग्रीष्मकालीन जुताई कीट एवं रोग नियंत्रण में सहायक है। हानिकारक कीड़े तथा रोगों के रोगकारक भूमि की सतह पर आ जाते हैं और तेज धूप से खत्म हो जाते हैं।

ग्रीष्मकालीन जुताई मृदा में जीवाणु की सक्रियता को काफी बढ़ाती है। यह दलहनी फसलों के लिए भी काफी ज्यादा उपयोगी है। ग्रीष्मकालीन जुताई खरपतवार नियंत्रण में भी मददगार है। 

कांस, मोथा आदि के उखड़े हुए हिस्सों को खेत से बाहर फेंक देते हैं। अन्य खरपतवार उखड़ कर सूख जाते हैं। खरपतवारों के बीज गर्मी व धूप से नष्ट हो जाते हैं।

बारानी खेती वर्षा पर निर्भर करती है अत: बारानी परिस्थितियों में वर्षा के पानी का अधिकतम संचयन करने लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना नितान्त आवश्यक है। 

अनुसंधानों से भी यह साफ हो चुका है, कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से 31.3 प्रतिशत बरसात का पानी खेत में समा जाता है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मिट्टी कटाव में भारी कमी होती है।

अर्थात् अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि गर्मी की जुताई करने से भूमि के कटाव में 66.5 फीसद तक की कमी आती है। 

ग्रीष्मकालीन जुताई से गोबर की खाद व अन्य कार्बनिक पदार्थ जमीन में बेहतर तरीके से मिल जाते हैं, जिससे पोषक तत्व जल्द ही फसलों को उपलब्ध हो जाते हैं।

दिसंबर माह के कृषि कार्य

दिसंबर माह के कृषि कार्य

गेहूं

खरपतवार नियंत्रण हेतु बोआई के 30-35 दिनों बाद सल्फोसल्फ्यूरान एवं मैटसल्फ्यूरान के मिश्रण वाली दवा का प्रयोग करें ताकि संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार एक साथ मर जाएं। अन्य कई दवाएं आती हैं और सभी की डोज एक एकड़ के हिसाब से बनती है। गेहूं की पछेती किस्मों की बिजाई अगेती आलू के खाली खेतों में करें। इसके लिए हलना, डब्लूयआर 544 पूसा गोल्ड जैसी किस्मों को लगाएं।

जौ

कम समय में पकने वाली किस्मों की बिाजाई भी कम पानी वाले क्षेत्रों में की जा सकती है।

चना

जिन खेतों में बोरोन तथा मोलिब्डेनम की कमी हो वहाँ 10 किलोग्राम बोरेक्स पाउडर व 10 किलोग्राम अमोनियम मोलिब्डेट प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

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राई-सरसों

कीट-नियंत्रण: लाही (अहिल्लवी) से इस फसल को काफी नुकसान होता है | रोकथाम हेतु मेटासिसटोक्स की 1 लीटर दवा 800 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करनी चाहिए |

आलू

आलू लाही रोग के नियंत्रण हेतु रोपाई के 45 दिन बाद फसल पर 0.1 टक्के रोगर या मेटासिस्टोक्स का घोल 2-3 बार 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये |

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 पिछेती आलू में दिसम्बर तथा जनवरी माह में अधिक ठंड की आशंका होने पर फसल की सिंचाई कर देनी चाहिये | पाले से बचाव के लिए खेत में नमी बरकरार रहनी चाहिए।

आम

 

 मधुआ कीट एवं पाउडरी मिल्ड्यू के नियंत्रण के लिए मंजर निकलने के समय बैविस्टिन या कैराथेन (0.2 प्रतिशत) तथा मोनोक्रोटोफ़ॉस या इमिडाक्लोरोपिड (0.05 प्रतिशत) का पहला रक्षात्मक छिड़काव करें |

लीची

 

मंजरी आने के 30 दिन पहले पौधों पर जिंक सल्फेट (2 ग्रा./लीटर) के घोल का पहला एवं 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करने से मंजरी एवं फूल अच्छे होते हैं |

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पपीता

 

 वृक्षारोपण के छ:महीने के बाद प्रति पौधा उर्वरक देना चाहिए | नाईट्रोजन – 150 -200 ग्राम, फ़ॉस्फोरस 200-250 ग्राम, पोटाशियम 100-150 ग्राम | तीनों उर्वरक 2-3 खुराक में वृक्ष लगाने से पहले फूल आने के समय तथा फल लगने के समय दे देना चाहिए |

अमरुद

फल-मक्खी के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 2.0 मि.ली./ली. या मोनोक्रोटोफ़ॉस 1.5 मिली./ली. की दर से पानी में घोल बनाकर फल परिपक्कता के पूर्व 10 दिनों के अंतर पर 2-3 छिड़काव करें |

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आंवला

तुड़ाई उपरांत फलों को डाइफोलेटान (0.15 प्रतिशत), डाइथेन एम – 45 या बैवेस्टीन (0.1 प्रतिशत)से उपचारित करके भण्डारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है |

जनवरी माह के कृषि कार्य

जनवरी माह के कृषि कार्य

गेहूं

गेहूं में ज्यादा टिलरिंग हेतु कई स्थानों पर जनवरी के पहले हफ्ते में गेहूं की खड़ी फसल को काटकर पशुओं के चारे में प्रयोग किया जाता है। तदोपरांत एकसाथ खेत में नाइट्रोजन का बुरकाव कर हल्का पानी लगा ​दिया जाता है। कटाई ठंडक आने पर की जाती है ताकि ​कटने के बाद समय से पूर्ण कल्ले बन सकें और उत्पादन ज्यादा हो। प्रथमत किसान एक क्यारी में इस प्रयोग को करके देखें। समझ में आने और उपयुक्त पाए जाने पर ज्यादा क्षेत्र में फैलाएं। हर हालत में खरपतवार नियंत्रण कर लें। चौड़ी और संकरी पत्ती वाले दोनों तरक के खरपतवार को एकसाथ मारने हेतु सल्फोसल्फूरान  एवं मैटसल्फूरान का मिश्रण डालें। केवल चौडी पत्ती वाले खरपतवार के लिए टू 4 डी या मैटसल्फूरान का छिड़काव करें। 

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चना

यूरिया 2% घोल का छिड़काव फली बनते समय 10 दिनों के अंतराल पर दो बार सायंकाल के समय करें। चना की फसल को फली भेदक कीट से सर्वाधिक नुकसान होता है। फली भेदक का प्रकोप देर से बोई जाने वाली फसल में अपेक्षाकृत अधिक होता है। कीट नियंत्रण के लिए 0.07% एन्डोसल्फान 35 ई.सी. (2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी) घोल का 10 दिनों के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव करें।

  

राई-सरसों

 

 रतुआ, धब्बा आदि रोगों हेतु कार्बन्डाजिम फफूंदीनाशक का घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए।

आलू

सरसों के कीट चेंपा की अधिकता आलू के पत्तों पर हो जाए तो

पौधों को काटकर खेत से बाहर कर दें। प्राक्केट घास नाशक दवा का छिड़काव पौधे काटने के बाद एक बार 2 लीटर प्रति हेक्टर की दर से छिडकाव कर देने पर पुन: पत्तियाँ नहीं निकल पाती हैं।

आम

तने के चारों ओर गुड़ाई करके मिथाइल पैराथियॉन के 200 ग्रा. धूल भुरकाव करें।

लीची

 

मंजरी आने के सम्भावित समय से तीन माह पहले पौधों में सिंचाई न करें तथा आंतरिक फसल न लगाएं।

आँवला

 

 गोबर की खाद की सम्पूर्ण मात्रा, नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा जनवरी-फरवरी माह में फूल आने से पहले डाल दें। शेष नत्रजन की आधी मात्रा जुलाई-अगस्त के महीने में डालें। सिंचाई के लिए खारे पानी का प्रयोग न करें। फल देने वाले बागानों में पहली सिंचाई खाद देने के तुरन्त बाद जनवरी-फरवरी में करनी चाहिए । फूल आने के समय (मध्य मार्च से मध्य अप्रैल तक) सिंचाई नहीं करनी चाहिए ।

फरवरी माह के कृषि कार्य

फरवरी माह के कृषि कार्य

गेहूँ

 

 गेरुई रोग से बचाव हेतु रोग के लक्षण दिखते ही प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट – 25 ई.सी.) 1.0 मि. ली. दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करें | जरूरी हो तो दूसरा छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें | समय से बोई गयी गेहूँ की फसल बाली निकलने की अवस्था में आ गयी है। इस दौरान बालियां काली पड़ना यानी कण्डुआ के लक्षण दिखें तो टिल्ट या किसी प्रभावी फफूंदनाशक का छिड़काव करे। रैक्सिल का छिड़काव 1.5 एमएल प्रति लीटर पानी में घोलकर साफ़ मौसम देखते हुए करें|

आम

 

 श्यामव्रण (एन्थ्रेक्नोज) रोग की उग्रता की स्थिति में पत्तों एवं बढ़ते फलों पर इंडोफिल एम-45 नामक फफूंदनाशी (0.2%) का 2-3 छिड़काव करें।  फफूंद जनित पिंक रोग के कारण पूर्ण विकसित पेड़ों की टहनियां एक –एक करके सूखने लगती है| इसके नियंत्रण के लिए सूखी टहनियों को 15 से.मी. नीचे से छांट कर उसके कटे भाग पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का लेप लगाना चाहिए तथा इसमें फफूंदनाशी का 2-3 छिड़काव करना चाहिए | फल का आकार सरसों का दाना एवं मटर के दाने के बराबर होने पर भी छिड़काव करेंं।

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आलू

 

 आलू की फसल तैयार होने की अवस्था में होती है | किसान भाई  खुदाई से 7 से 10 दिन पहले ऊपर के पत्ते काटकर हटा दें ताकि आलू का छिलका सख्त हो जाए और उसे कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित भी किया जा सके।

लीची

 

 फूल आते समय पौधों पर कीटनाशी दवा का छिड़काव न करें तथा बगीचे में पर्याप्त संख्या में मधुमक्खी के बाक्स रखवाएं। फल एवं बीज बेधक (फ्रूट एवं सीड बोरर) के प्रकोप से बचाव के लिए फल तोड़ाई के लगभग 40-45 दिन पहले से सायपरमेथ्रिन के दो छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें | 

नींबू वर्गीय फल

 

 वायरस को फैलाने वाले कीड़ों के नियंत्रण का समुचित प्रबंध करें | इसके लिए नये कल्ले निकलते समय इमिडाक्लोरप्रिड (3 मिली/10 ली.) या क्यूनालफास (20 मिली./10 ली.) तथा डाइमेथोएट (15 मिली./10 ली.) का घोल बनाकर दो-दो छिड़काव करें |

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

पटना। विश्व के कई देश कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की जुगत में लगे हुए हैं। लेकिन जलवायु अनुकूल न होने के कारण कई स्थानों पर खेती को मदद नहीं मिल पाती है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम भी भारत में कृषि मॉडल बनाने के लिए सर्वे कर रही है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु पसंद आयी है। वह जल्दी ही बिहार में न्यू कृषि मॉडल बनाने जा रहे हैं, जिससे खेती और किसानों फायदा मिलेगा। बिहार में बीसा समिट (BISA-CIMMYT) की तरफ से जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम को बिहार सरकार ने सभी 38 जिलों में लागू कर दिया है। बीते तीन दिनों से अमेरिका के कोर्नेल विश्वविद्यालय से वैज्ञानिकों की टीम बिहार में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम संचालित कर रही है। इस दौरान अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु बेहद पसंद आयी है।
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टीम ने जुटाई फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी

- अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम ने बिहार के भगवतपुर जिले के एक गांव, जो की सीआरए (Climate Resilient Agriculture (CRA) Programme under Jal-Jeevan-Haryali Programme) यानी जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम के अंतर्गत आता है, का दौरा किया है। यहां मुआयना के बाद टीम ने फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) की जानकारी भी जुटाई है। इसके अलावा बीसा पूसा ( बोरोलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साऊथ एशिया - Borlaug Institute for South Asia (BISA)) में चल रहे लांग ट्रर्म ट्राइल्स, जीरो टिलेज विधि और मेड़ विधि के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई हैं। जल्दी ही बिहार में इसका असर देखने को मिलेगा।
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- बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की पूरे विश्व में सराहना हो रही है। यहां आकर कई देशों के वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। बिहार समेत देश के अन्य कई कृषि संस्थानों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम किसानों तक पहुंच रहे हैं। इससे फसल का विविधीकरण करके और नई तकनीकी का उपयोग करके किसानों को फायदा देने की योजना बनाई जा रही है। जो आगामी दिनों में प्रभावी रूप से दिखाई देगी। ------ लोकेन्द्र नरवार
मार्च माह के कृषि संबंधी आवश्यक कार्य

मार्च माह के कृषि संबंधी आवश्यक कार्य

मार्च के महीने में रबी की फसले पक कर तैयार हो जाती है इस समय किसानों को बहुत सी बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। यहां आप जानेगे की इस महीने में आप आपने कृषि कार्यों को आसानी से कैसे करें। 

दलहनी फसलें 

मार्च माह में चने, मटर और मसूर की फसल पर कीट और रोगों का ज्यादा प्रकोप होता है। चने की फसल में छेदक कीट का प्रकोप भारी मात्रा में होता है, यह पत्तियों और पौधों के कोमल हिस्सों से रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुंचाते है। इस कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस 1 लीटर को 600-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दे या फिर इसके स्थान पर 250 ml इमामेक्टिन बेंजोएट का भी उपयोग कर सकते है। 

मसूर की फलियों पर इस कीट के प्रभाव को कम करने के लिए फेनवालरेट रसायन की 750 मिली लीटर या मोनोक्रोटोफास 1 लीटर को 600 -800 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दे। साथ ही मटर और मसूर की खेती में चेपा कीट को नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान की 50 इ सी की 2 लीटर मात्रा या फारमेथियन 25 इ सी की 1 लीटर मात्रा को 600 -700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करे। 

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मार्च माह यानी ग्रीष्मकाल में उड़द और मूँग की भी बुवाई की जाती है। मूँग और उड़द की विभिन्न किस्में है जिनकी बुवाई मार्च में की जाती है। उड़द की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है: आजाद उड़द, पंत उड़द 19, पी डी यू 1, के यू 300, के यू जी 479, एल यू 391 और पंत उड़द 35। इसके अलावा मूँग की भी कुछ उन्नत किस्में है मेहा, मालवीय, जाग्रती, सम्राट, पूषा वैशाखी और ज्योति आदि है।

गेहूँ और जौ    

इस समय गेहूँ और जौ की खेती में किसान को समय समय पर सिंचाई का कार्य करते रहना चाहिए। गेहूँ और जौ की खेती में 15 -20 दिन के अंतराल पर खेत में पानी लगाया जाना चाहिए। लेकिन ध्यान रहें खेत में सिंचाई का कार्य कभी तेज हवाओं के दौरान न करें। तेज हवाओं के दौरान सिंचाई का कार्य किया जाता है, तो इससे फसल के गिरने का डर रहता है। बदलते मौसम के दौरान गेहूँ और जौ में पीला रतुआ रोग होने की ज्यादा संभावनाएं रहती है। यदि गेहूँ की फसल में आपको काले रंग पुष्क्रम दिखाई दे तो उन्हें तोड़कर फेंक दे या फिर मिटटी में अच्छे से दबा दे। 

ज्यादा तापमान बढ़ने की वजह से गेहूँ की पीली पत्तियां काली धारियों वाली पत्तियों में बदल जाती है। किसान इस रोग की रोकथाम के लिए प्रोपीकोनजोल 25 इ सी की 1% की दर का छिड़काव करें। यदि रोग का प्रकोप ज्यादा होता है, तो इसका फिर से छिड़काव किया जा सकता है। इस रासायनिक दवा का छिड़काव करनाल बंट रोग को भी नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। 

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यदि गेहूँ की फसल में माहू रोग लगता है तो 2 मिली लीटर डाइमेथोएट या 20 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दे। यदि प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है तो इसका फिर से छिड़काव किया जा सकता है।

ग्रीष्मकाल की चारा फसलों की बुवाई 

पशुओं के चारे के लिए किसानों द्वारा ग्रीष्मकाल में चारा फसलें उगाई जाती है जैसे ग्वार, लोबिया, ज्वार, मक्का और बाजरा। इस मौसम में चारा फसलें आसानी से उगाई जा सकती है। चारा फसलों की अच्छी पैदावार के लिए किसानों को सही बीज का चयन करना चाहिए। बुवाई से पहले किसान बीज का उपचार कर ले। बीज उपचार के लिए किसान 1 किलो बीज में 2.5 ग्राम थीरम और बाबिस्टीन का उपयोग कर सकता है।

बरसीम में बीज उत्पादन 

बरसीम एक चारा फसल हैं, जिसे मुख्यत पशुओं के चारे के लिए उगाया जाता है। मार्च के दूसरे सप्ताह से बरसीम की कटाई बंद कर देनी चाहिए। यदि आप बरसीम का बीज बनाना चाहते हो तो खेत में नमी खत्म न होने दे। जब तक बरसीम में फूल आये और उसमे दाना न पड़े तब तक उसमे सिंचाई करनी चाहिए। बरसीम में दाना पड़ने के बाद, पौधों पर सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण का छिड़काव किया जा सकता है। इससे बीज की अधिक पैदावार होती है। बरसीम में फूल आने के बाद उसमे खरपतवार जैसी परेशानियां भी देखने को मिलती है, खरपतवार के पौधों को उसी समय उखाड़ कर फेंक दे।

गन्ने की बुवाई 

मार्च के माह में उत्तरी भारत में गन्ने की खेती की जाती है। गन्ने की खेती करने के लिए गन्ने के बीज टुकड़ो का रोग रहित रहना जरूरी है। पेड़ी का बीज उपयोग करने से फसल में रोग लगने की ज्यादा संभावनाएं रहती है। इसलिए बुवाई से पहले गन्ने के बीज टुकड़ो का उपचार कर ले। बीज उपचार करने के लिए किसान 2 ग्राम बाबिस्टीन में गन्ने के बीज टुकड़ो को 15 मिनट तक भिगो कर रखे। 

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रबी की फसल की कटाई के बाद किसान भूमि की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए हरी खाद वाली फसलों की बुवाई कर सकते है। हरी फसलों में सम्मिलित है ढेंचा, सनई, लोबिया और ग्वार। किसानों द्वारा हरी खाद के लिए ज्यादातर दलहनी फसलें उगाई जाती है। यह फसलें मिट्टी की भौतिक दशा को सुधारने के साथ साथ मिट्टी में जीवांश की मात्रा को भी बढ़ाती है। हरी खाद के प्रयोग से दूसरी फसल में कम खाद की जरूरत पड़ती है।