गेरुई रोग से बचाव हेतु रोग के लक्षण दिखते ही प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट – 25 ई.सी.) 1.0 मि. ली. दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करें | जरूरी हो तो दूसरा छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें | समय से बोई गयी गेहूँ की फसल बाली निकलने की अवस्था में आ गयी है। इस दौरान बालियां काली पड़ना यानी कण्डुआ के लक्षण दिखें तो टिल्ट या किसी प्रभावी फफूंदनाशक का छिड़काव करे। रैक्सिल का छिड़काव 1.5 एमएल प्रति लीटर पानी में घोलकर साफ़ मौसम देखते हुए करें|
श्यामव्रण (एन्थ्रेक्नोज) रोग की उग्रता की स्थिति में पत्तों एवं बढ़ते फलों पर इंडोफिल एम-45 नामक फफूंदनाशी (0.2%) का 2-3 छिड़काव करें। फफूंद जनित पिंक रोग के कारण पूर्ण विकसित पेड़ों की टहनियां एक –एक करके सूखने लगती है| इसके नियंत्रण के लिए सूखी टहनियों को 15 से.मी. नीचे से छांट कर उसके कटे भाग पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का लेप लगाना चाहिए तथा इसमें फफूंदनाशी का 2-3 छिड़काव करना चाहिए | फल का आकार सरसों का दाना एवं मटर के दाने के बराबर होने पर भी छिड़काव करेंं।
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आलू की फसल तैयार होने की अवस्था में होती है | किसान भाई खुदाई से 7 से 10 दिन पहले ऊपर के पत्ते काटकर हटा दें ताकि आलू का छिलका सख्त हो जाए और उसे कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित भी किया जा सके।
फूल आते समय पौधों पर कीटनाशी दवा का छिड़काव न करें तथा बगीचे में पर्याप्त संख्या में मधुमक्खी के बाक्स रखवाएं। फल एवं बीज बेधक (फ्रूट एवं सीड बोरर) के प्रकोप से बचाव के लिए फल तोड़ाई के लगभग 40-45 दिन पहले से सायपरमेथ्रिन के दो छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें |
वायरस को फैलाने वाले कीड़ों के नियंत्रण का समुचित प्रबंध करें | इसके लिए नये कल्ले निकलते समय इमिडाक्लोरप्रिड (3 मिली/10 ली.) या क्यूनालफास (20 मिली./10 ली.) तथा डाइमेथोएट (15 मिली./10 ली.) का घोल बनाकर दो-दो छिड़काव करें |