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ग्वार

ग्वार की खेती कैसे की जाती है, जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में 

ग्वार की खेती कैसे की जाती है, जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में 

ग्वार अब भोजन, फार्मास्यूटिकल्स और तेल जैसे विभिन्न उद्योगों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। भारत में राजस्थान ग्वार का प्रमुख उत्पादक है जिसके बाद हरियाणा, गुजरात और पंजाब का स्थान आता है। 

ग्वार उत्पादन अब अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु तक भी बढ़ गया है। ग्वार का प्रमुख उत्पाद ग्वार गम है जो खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल होने वाला एक प्राकृतिक गाढ़ा एजेंट है। 

भारत से प्रमुख निर्यात में से एक ग्वार गम है, प्रक्रिया में कुछ और अनुसंधान और विकास और बेहतर तकनीक के साथ, यह किसानों के लिए अत्यधिक लाभदायक होगा।

ग्वार की फसल का महत्व 

ग्वार एक दलहनी फसल है, 'और दलहनी फसलों के मुकाबले ग्वार को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। ग्वार फली आमतौर पर चारे, बीज और सब्जी के उद्देश्य से उगाई जाती है। 

फसल से गोंद का उत्पादन होता है जिसे ग्वार गम कहा जाता है और विदेशों में निर्यात किया जाता है। इसके बीजों में 18% प्रोटीन और 32% रेशा होता है और भ्रूणपोष में लगभग 30-33% गोंद होता है।  

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ग्वार की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान 

ग्वार धुप में पनपने वाला पौधा है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की शुष्क भूमि की फसलें उच्च तापमान को सहन कर सकती हैं। उचित वृद्धि के लिए इसे 25° से 30°C के बीच मिट्टी के तापमान की आवश्यकता होती है। 

यह पाले के प्रति संवेदनशील है। यह निश्चित रूप से उत्तर भारत में खरीफ मौसम की फसल है, लेकिन कुछ किस्में मार्च से जून के दौरान बसंत-ग्रीष्म फसल के रूप में और अन्य किस्में जुलाई से नवंबर के दौरान दक्षिण भारतीय जलवायु परिस्थितियों में वर्षा ऋतु की फसल के रूप में उगाई जाती हैं।  

यह गर्म जलवायु को तरजीह देने वाली फसल है और गर्मियों के दौरान बारानी क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ती है। फसल 30 -40 सेमी वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ती है। भारी बारिश, जलभराव की स्थिति, नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया गतिविधि को कम करती है। 

ग्वार की फसल किस प्रकार की मिट्टी में अच्छी उपज देती है  

ग्वार फली सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है लेकिन मध्यम बनावट वाली बलुई दोमट मिट्टी इसके विकास के लिए बेहतर होती है। भरपूर धूप के साथ मध्यम बारिश फसल की बेहतर वृद्धि में मदद करती है। 

पौधा छाया को सहन नहीं कर सकता है और वनस्पति विकास के लिए लंबे दिन की स्थिति और फूल आने के लिए कम तापमान वाले दिनों की आवश्यकता होती है। 

ग्वार की फसल एक अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है। यह 7.5 -  8.0के बीच पीएच के साथ खारी और मध्यम क्षारीय मिट्टी को सहन कर सकता है। 

फसल की बुवाई के लिए भूमि की तैयार

रबी की फसल की कटाई के बाद मोल्ड बोर्ड हल से एक गहरी जुताई के बाद, डिस्क हैरो से 1 - 2 जुताई या कल्टीवेटर चलाकर पाटा लगाया जाता है। अच्छी जल निकासी सुविधा के लिए उचित रूप से समतल खेत की आवश्यकता होती है। 

ग्वार की उन्नत किस्में 

FS-277:- यह किस्म CCSHAU, हिसार द्वारा स्थानीय सामग्री से चयन द्वारा विकसित की गई थी और पूरे भारत में खेती के लिए अनुशंसित है। 

एचएफजी-119:- यह किस्म सीसीएसएचएयू, हिसार द्वारा चयन द्वारा विकसित की गई थी और भारत के पूरे ग्वार उत्पादक क्षेत्र में खेती के लिए अनुशंसित है। फसल 130-135 दिनों में काटी जाती है। यह बेहद सूखा सहिष्णु, गैर-बिखरने वाली और अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट किस्म के लिए प्रतिरोधी है।  

गुआरा-80:- यह किस्म पीएयू, लुधियाना द्वारा इंटरवैराइटल क्रॉस (एफएस 277 × स्ट्रेन नं. 119) से विकसित की गई, यह देश के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में खेती के लिए अनुशंसित है। यह 26.8 टन/हेक्टेयर हरा चारा और 8 क्विंटल/एकड़ बीज पैदा करता है। 

HG-182:- इस किस्म को CCSHAU, हिसार द्वारा आनुवंशिक स्टॉक (परिग्रहण HFC-182) से एकल पौधे के चयन से विकसित किया गया था। यह 110-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है  

मारू ग्वार (2470/12):- इस किस्म को काजरी, जोधपुर में एनबीपीजीआर, नई दिल्ली द्वारा आपूर्ति की गई जर्मप्लाज्म सामग्री की मदद से विकसित किया गया था। यह किस्म दो प्रकार की है जो पश्चिमी राजस्थान के लिए उपयुक्त है। 

HFG-156:- इस किस्म को हरियाणा में खेती के लिए CCSHAU, हिसार द्वारा विकसित किया गया था। यह 35 टन/हे. हरे चारे की उपज देने वाली लंबी, शाखित किस्म है।  

बुंदेल ग्वार-1:- इसे आईजीएफआरआई, झांसी में एकल पौधे चयन के माध्यम से विकसित किया गया था। यह 50-55 दिनों में पोषक चारा उपलब्ध कराती है। यह किस्म एपीफाइटोटिक क्षेत्र परिस्थितियों में पत्ती झुलसा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। यह आवास प्रतिरोधी है, उर्वरकों के प्रति उत्तरदायी है, सूखा सहिष्णु है।  

ग्वार क्रांति (आरजीसी-1031):- यह किस्म एआरएस, दुर्गापुरा में विकसित की गई थी और यह आरजीसी-936 × आरजीसी-986/पी-10 के बीच के इंटरवैरिएटल क्रॉस का व्युत्पन्न है। यह राजस्थान राज्य में खेती के लिए अनुशंसित है।

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बीज की बुवाई कैसे की जाती है ?

5 -6 किलोग्राम बीज एक एकड़ में बुवाई करने के लिए पर्याप्त है।  फसल जुलाई के प्रथम सप्ताह से 25 जुलाई तक बोई जाती है। 

जहां सिंचाई की सुविधा हो वहां फसल जून के अंतिम सप्ताह में या मानसून आने के बाद भी उगाई जा सकती है। गर्मी के दिनों में इसे मार्च के महीने में उगाया जा सकता है। बुवाई करें समय पंक्ति से पंक्ति की दुरी 45 cm रखें और पीज से बीज की दुरी 30 cm रखें।    

बीज उपचार 

फसल को मिट्टी जनित रोग से बचाने के लिए बीज को 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज से उपचारित किया जा सकता है। बीजों को बोने से 2-3 दिन पहले उपचारित किया जा सकता है। 

कवकनाशी बीज उपचार के बाद बीज को उपयुक्त राइजोबियम कल्चर @ 600 ग्राम / 12-15 किलोग्राम बीज के साथ टीका लगाया जाता है। 

फसल में सिंचाई प्रबंधन 

वैसे तो ग्वार की फसल को अधिक पानी की आश्यकता नहीं होती है। क्योंकी ये एक खरीफ की फसल है। इस मौसम में समय समय  पर बारिश होती रहती है जिससे फसल में पानी की कमी पूरी हो जाती है। 

अगर लंबे समय तक बारिश नहीं होती है तो फसल में सिंचाई अवश्य करें। फसल में जीवन रक्षक सिंचाई विशेष रूप से फूल आने और बीज बनने की अवस्था में दी जानी चाहिए।

फसल में उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन

बुवाई से कम से कम 15 दिन पहले लगभग 2.5 टन कम्पोस्ट या FYM का प्रयोग करना चाहिए। एफवाईएम या कम्पोस्ट का प्रयोग मिट्टी की जल धारण क्षमता में सुधार करने और पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए उपयोगी है।   

दलहनी फसल होने के कारण ग्वार फली की प्रारंभिक वृद्धि अवधि के दौरान शुरुआती खुराक के रूप में नाइट्रोजन की थोड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। ग्वार की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 10-15 किग्रा नाइट्रोजन और 20 किग्रा फास्फोरस की आवश्यकता होती है। 

नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय देना चाहिए। 

उर्वरक को बीज से कम से कम 5 सेंटीमीटर नीचे रखना चाहिए। उपयुक्त राइजोबियम स्ट्रेन और फॉस्फोरस सॉल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB) के साथ बीजों का उपचार फसल की उपज बढ़ाने के लिए फायदेमंद होता है। 

फसल में खरपतवार प्रबंधन 

ग्वार फली में बुवाई के 20-25 और 40-45 दिनों के बाद दो निराई - गुढ़ाई फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए पर्याप्त होती है। हालांकि, कभी-कभी श्रम उपलब्ध न होने के कारण रासायनिक खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।  

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फसल के अंकुरण से पहले पेंडीमिथालिन 250 gram/एकड़  ए.आई. उभरने से पहले छिड़काव करें और फसल के उभरने के बाद  उपयोग के लिए इमेज़ेटापायर 20 ग्राम/एकड़  ए.आई. 150 लीटर पानी में बुवाई के 20-25 दिनों पर दिया जाता है जो खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त होता है।

फसल की कटाई 

दाने वाली फसल के लिए, कटाई तब की जाती है जब पत्तियाँ सूख जाती हैं और 50% फली भूरी और सूखी हो जाती है। कटाई के बाद फसल को धूप में सुखाना चाहिए फिर थ्रेशिंग मैन्युअल रूप से या थ्रेशर द्वारा किया जाता है। 

चारे की फसल के लिए, फसल को फूल अवस्था में काटते समय। एक एकड़ में 6 - 8 क्विंटल बीज की उपज होती है। एक एकड़ में 100 क्विंटल तक हरे चारे की उपज हो जाती है। 

ग्वार की आधुनिक खेती से जुड़े संपूर्ण प्रबंधन व बिंदुओं की अहम जानकारी

ग्वार की आधुनिक खेती से जुड़े संपूर्ण प्रबंधन व बिंदुओं की अहम जानकारी

आज के समय में किसानों को आधुनिकता और नवीन तकनीकों व लाभकारी फसलों का चयन करने की आवश्यकता है। किसानों की आर्थिक स्थिति में निरंतर गिरावट आने की एक वजह यह भी है कि किसान अभी भी परंपरागत फसलों का ही उत्पादन करता है। 

इस वजह से उनकी फसल भंडारण में सरप्लस में रहती है, जिसके चलते किसान को उसकी फसल का सही मूल्य नहीं मिल पाता है।  

मेरीखेती द्वारा प्रसारित किए गए लेख और देश के गांव-गांव जाकर निःशुल्क आयोजित की जाने वाली मेरीखेती किसान पंचायत में भी निरंतर कृषकों को कृषि में आधुनिकता और शुद्धता को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। 

क्योंकि, जब तक किसान माँग और मौसम के अनुरूप फसल का चयन नहीं करेगा तब तक किसान की आर्थिक स्थिति सुदृण होने काफी कठिन है।   

ग्वार की आधुनिक खेती 

इसी कड़ी में आज हम आपको अच्छा मुनाफा दिलाने वाली फसल की जानकारी देंगे, जिसको हम ग्वार की फसल के नाम से जानते हैं। 

ग्वार की खेती के लिए आवश्यक नहीं कि सिंचित क्षेत्र ही हो, यह असिंचित क्षेत्र में भी आसानी से की जा सकती है। ग्वार एक सूखा प्रतिरोधी दलहनी फसल है। 

इसमें गहरी जड़ प्रणाली होने की वजह से पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है। बतादें, कि ग्वार के गम से विभिन्न प्रकार के उत्पाद और पशु आहार निर्मित किए जाते हैं, जिससे इस फसल की बाजार में हर समय मांग बनी रहती है। मेरीखेती के इस लेख में आपको  ग्वार की आधुनिक खेती की पूरी जानकारी प्रदान करेंगे। 

ग्वार की फसल के लिए खेत की तैयारी 

किसान भाई अगर ग्वार की खेती करने जा रहे हैं, तो सबसे पहले आपको जमीन तैयार करनी होगी। इसके लिए अधिक खरपतवार वाली भूमि की गर्मी के मौसम में एक जुताई करें। वहीं, वर्षा के साथ 1 से 2 जुताई कर खेत तैयार कर लें।

अगर संभव हो सके तो एक हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 गाडी गोबर की खाद डालें। इससे अंकुरण अच्छा होगा और प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ेगा। पहली जुताई मृदा पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिए। 

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इससे कम से कम  20 से 25 सेमी गहरी मृदा ढीली हो जाती है। इसके बाद एक या दो जुताई करके एकसार खेत तैयार करना चाहिए। इसमें जल निकासी की समुचित व्यवस्था होगी। 

ग्वार की उत्तम खेती के लिए मृदा व जलवायु 

यहां बतादें, कि ग्वार की फसल यूं तो कई तरह की मृदा में की जा सकती है। लेकिन, बेहतरीन फसल के लिए दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

यह भारी मृदा पीएच मान 7 से 8.5 तक में उगाई जा सकती है। ग्वार कम मध्यम वर्षा वाले इलाकों की बारानी फसल है। इसे लवणीय और क्षारीय मृदा में नहीं उगाया जा सकता।

ग्वार की बुवाई का उपयुक्त समय कौन-सा होता है ?

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ग्वार की फसल की बुवाई का समुचित वक्त जून का अंतिम सप्ताह या जुलाई का प्रथम पखवाड़ा रहता है। 

वहीं, इसकी उन्नत किस्मों में आरजीसी-936, आरजीसी 1002, आरजीसी-1003, आरजीसी-1066, एचजी-365, जीसी-1, आरजीसी 1017, एचजीसी 563, आरजीएम 112,आरजीसी 1038 और आरजीसी 986 हैं।

बीजोपचार और रोग नियंत्रण कैसे करें? 

किसान भाइयों को यह सलाह दी जाती है, कि ग्वार की फसल की बुवाई से पूर्व बीजों को बेहतर  से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए 2.0 ग्राम बाविस्टीन से किलोग्राम बीज को उपचारित कर बोएं। 

आंगमारी रोग की रोकथाम के लिए बीज को स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 200 पीपीएम या एग्रोमाईसीन 250 पीपीएम के घोल में 3 घंटे में भिगोकर उपचारित कर बुवाई करें। 

वहीं, जड़ गलन रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेण्डाइजिम या थाओफोट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें। इस बीमारी के जैविक नियंत्रण के लिए टाइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें। 

ग्वार की बुवाई का समुचित प्रबंधन 

ग्वार की बुआई के लिए बीज की उचित मात्रा के साथ ही इसकी सही विधि अपनाना लाभदायक हो सकता है। वैसे ग्वार की बुआई ड्रिल द्वारा या दो पोरों से की जाती है। 

कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। कम वर्षा और कम उपजाऊ वाले क्षेत्रों में बीज की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए। वैसे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 से 20 किलोग्राम बीज डालना चाहिए। 

ग्वार की फसल में उर्वरक का प्रयोग 

बतादें, कि शुष्क और अर्धशुष्क वाले क्षेत्रों में जहां हल्की मिट्टी पाई जाती है वहां नत्रजन 20 किलोग्राम और फास्फोरस 40 किलोग्राम डालना चाहिए। ग्वार एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन और फास्फोरस दोनो की सारी मात्रा बुवाई के दौरान ही डालें। 

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ग्वार की निराई-गुड़ाई कब और कैसे करें ? 

ग्वार की फसल में खरपतवार के नियंत्रण के लिए निराई और गुड़ाई करना बेहद आवश्यक है। यह फसल की एक माह की अवस्था में संपन्न कर देनी चाहिए। 

इसके लिए इमेजाथाइपर 10% प्रतिशत एसएल दवा की 10 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति बीघा की दर से 100 से 125 लीटर पानी में डाल कर बुवाई के 30-35 दिन बाद स्प्रे करना चाहिए। 

ग्वार की फसल में सिंचाई प्रबंधन कैसे करें ? 

ग्वार की फसल की बिजाई जुलाई के अंतिम पखवाड़े में होती है। यदि दो सप्ताह तक अच्छी बारिश नहीं हो तो सिंचाई करनी चाहिए। 

इसके बाद अगस्त या सितंबर के आखिरी सप्ताह में सिंचाई की जानी चाहिए। ग्वार की फसल नवंबर में पक कर तैयार हो जाती है। अमूमन एक हेक्टेयर में 10 से 15 क्विंटल फसल होती है। 

इन राज्यों में सबसे ज्यादा ग्वार उत्पादन होता है ?

बता दें कि राजस्थान और हरियाणा में ग्वार की खेती सबसे ज्यादा एरिये में होती है। इन प्रदेशों में ग्वार का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक होता है। 

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इनके अलावा गुजरात, पंजाब, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महराष्ट आदि प्रदेशों में भी ग्वार की फसल होती है। भारत में विश्व का 80 प्रतिशत ग्वार का उत्पादन होता है। 

ग्वार के व्यापारिक उपयोग से भी लाखों की आय 

यहां बता दें कि ग्वार एक औद्योगिक फसल है। इससे गम या गोंद बनता है। इसके अनेक उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। पहले जिन उद्योगों में अरारोट या आलू और चावल के पदार्थों का प्रयोग किया जाता था अब उनमें ग्वार के गम का प्रयोग किया जाता है। 

यह सूती कपड़ो के निर्माण, कागज बनाने, सौंन्दर्य प्रसाधन, दवाइयों आदि के काम आता है। किसान या अन्य लोग ग्वार के गम का उद्योग लगा कर लाखों रुपये सालाना कमाई कर सकते हैं। अमेरिका सहित कई देशों में भारतीय देसी ग्वार की खासी मांग रहती है। यह स्टार्च से अधिक गाढ़ा घोल बनाने में सक्षम है।

Guar Farming: ग्वार की वैज्ञानिक खेती की जानकारी

Guar Farming: ग्वार की वैज्ञानिक खेती की जानकारी

ग्वार की खेती कम लागत वाली और कम पानी वाली फसल मानी जाती है। इसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में किया जाता है। बीते सालों में तो ग्वार गम की मांग इस कदर बढ़ी की किसी भाव इसका बीज नहीं मिला।

इसे सब्जी, हरा चारा, हरी खाद एवं ग्वार गम के दानों के लिए उगाया जाता है। गहरे जड़ तंत्र वाली फसल होने के साथ इसकी जड़ों से अन्य दलों की तरह मिट्टी में नत्रजन की मात्रा बढ़ती है। 

इसके दानो में 40 से 45% तक प्रोटीन होता है। इसके अलावा गैलेक्टोमेन्नन ग्वार गम मिलने के कारण इसे औद्योगिक फसल भी माना जाता है। इसकी उद्योगों के लिए विशेष मांग रहती है।

ग्वार की खेती

मृदा एवं जलवायु

ग्वार की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी श्रेष्ठ रहती है। बाकी इसे हर तरह की मिट्टी में लगाया जा सकता है। बेहतर जल निकासी वाली जमीन इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है क्योंकि इसकी जड़ें जमीन में गहरे तक जाती है लिहाजा खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरे तक करनी चाहिए।

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बुवाई का समय

ग्वार की बिजाई के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय उचित रहता है लेकिन जून में उन्हीं इलाकों में बिजाई करनी चाहिए जहां सिंचाई के साधन हो अन्यथा की दशा में जुलाई के पहले हफ्ते में ही इसकी बिजाई करनी चाहिए।

ग्वार  की उन्नत किस्में

gwar ki kheti अच्छे 

उत्पादन के लिए उन्नत किस्म का होना आवश्यक है ग्वार कई प्रयोजनों से लगाई जाती है लिहाजा इस चीज का ध्यान रखकर ही किस्म चुनें। 

ग्वार की खेती दाने के लिए हरे चारे के लिए हरी खाद के लिए एवं सब्जी वाली फली के लिए की जाती है और इसकी अलग-अलग किस्में है।

  • मध्य प्रदेश राज्य के लिए दाने वाली किस्में

इस श्रेणी की एचजी 565 किस्म कम समय में पकने वाली है इससे उपज 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक मिलती है एचजी 365 किस हमसे भी उपरोक्त अनुसार उपज मिलती है आरजीसी 1066 किस्म की उपज 18 कुंटल तक मिलती है।

  • सब्जी वाली किस्में

पूसा नवबाहर किस्म देरी से पकती है एवं इससे 40 से 50 कुंतल तक फलियां प्राप्त होती हैं। इस श्रेणी की दुर्गा बहार किस्म का फूल सफेद होता है और उपज 55 कुंटल के पार मिलती है।

  • चारे वाली किस्में

चारे के लिए लगाई जाने वाली किस्मों में एच एफ जी 119 देरी से पकने वाली किस्म है। इससे 300 से 325 कुंतल चारा मिलता है।

  • हरियाणा राज्य के लिए ग्वार की किस्में

हरियाणा राज्य के लिए ग्वार की एचजी 75, 182, 258, 365 ,563, 870 , 884, 867 तथा एच जी-2 -204 आदि किसमें प्रमुख हैं।

  • राजस्थान राज्य के लिए ग्वार की किस्में

राजस्थान के लिए आरजीसी सीरीज की 1033, 1066,1038,  1003, 1002, 986,112 आरजीसी 197 किस्में प्रमुख हैं।

  • पंजाब के लिए ग्वार की किस्में

हरियाणा राज्य के लिए संस्कृत सभी किस्मों के अलावा एचजी 112किस्म यहां के लिए उपयुक्त है।

  • उत्तर प्रदेश के लिए ग्वार की किस्में

उत्तर प्रदेश के लिए hg 563 एवं 365 किस्म उपयुक्त हैं। गुजरात के लिए जीसी एक एवं 238 किसमें संस्तुत हैं।

  • आंध्र प्रदेश के लिए ग्वार की किस्में

आंध्र प्रदेश के लिए आरजीसी 936 , आरजीएम 112 एचजी 563, एचजी 365 किस्म उपयुक्त हैं। महाराष्ट्र हेतु आरजीसी 9366,  एचजी 563 एवं 365 किस्म उपयुक्त हैं।   ग्वार की खेती की जानकारी

बीज दर

क्योंकि ग्वार का उत्पादन कई प्रयोजनों के लिए किया जाता है अतः ग्वार बीज उत्पादन हेतु 15 से 20 किलोग्राम, सब्जी के लिए 15 किलोग्राम, चारा एवं हरी खाद के लिए 40 से 45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

बीज जनित रोगों से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम 1 ग्राम एवं कैप्टन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचारित करके ही बीज बोना चाहिए। इसके अलावा 20 पर राइजोबियम कल्चर का लेप करने से उत्पादन बढ़ता है।

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उर्वरक प्रबंधन

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए लेकिन यदि मिट्टी की जांच नहीं हुई है तो दाने वाली फसल में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस 20 बटा 25 गंधक एवं 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। 

सब्जी वाली फसल के लिए 25 केजी नाइट्रोजन, 50 फास्फोरस, 20 पोटाश,  25 गंधक एवं 20 केजी जिंक आखरी जोत में मिला देनी चाहिए। चारा उत्पादन वाली फसल में गंधक एवं जिनक नहीं डालनी चाहिए। 

पोटाश की मात्रा दोगुनी की जा सकती है। इसके अलावा नाइट्रोजन 20 किलोग्राम एवं फास्फोरस 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।

ग्वार में कीट रोग नियंत्रण

ग्वार में कई तरह के कीट लगते हैं ।आवारा पशुओं को भी यह बेहद भारती है । इसकी खेती गांव में सड़क के नजदीकी खेतों में नहीं करनी चाहिए । 

पशुओं से नुकसान होने की आशंका वाले क्षेत्रों में इसकी खेती कड़ी सुरक्षा के बाद ही सफल होगी। ग्वार के महु या चेंपा भी लगता है इसे रोकने के लिए अमीना क्लोरोफिल एवं डाई मेथड में से किसी एक दवा की उचित मात्रा का छिड़काव करें। 

फली एवं पति छेदक कीट के नियंत्रण के लिए चुनाव फास्ट डे डे मील प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। लिफाफा जैसे जैसे भी कहा जाता है कि नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा कार्य पर पर ध्यान पूर्वक निर्देश पढ़कर छिड़काव करें। 

फफूंदी जनित रोगों से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम मैनकोज़ेब एवं घुलनशील गंधक में से किसी एक का एक दो बार छिड़काव करें। बैक्टीरियल बीमारियों के लिए स्टेप तो साइकिल इन 3 ग्राम प्रति एकड़ पर्याप्त पानी में घोलकर छिड़काव करें।

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

मार्च का महीना किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। किसान इस महीने विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई करते है तथा धन की उच्च दर पर प्राप्ति करते हैं। 

इस महीने किसान तरह तरह की सब्जियों की बुवाई करते है जैसे: खीरा, ककड़ी, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजे, तरबूजे, भिंडी, ग्वारफल्ली आदि। मार्च के महीने में बोई जाने वाली सब्जियों की जानकारी:

खीरे की फसल कि पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

खीरे की सब्जियों की टोकरी Cucumber crop

खीरे की खेती के लिए खेतों में आपको क्यारियां बनानी होती है। इसकी बुवाई लाइन में ही करें।  लाइन की दूरी 1.5 मीटर रखें और पौधे की दूरी 1 मीटर। 

बुवाई के बाद 20 से 25 दिन बाद गुड़ाई करना चाहिए। खेत में सफाई रखें और तापमान बढ़ने पर हर सप्ताह हल्की सिंचाई करे, खेत से खरपतवार हटाते रहें।

ककड़ी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

ककड़ी सब्जियां की बेल kakdi ki kheti

ककड़ी की फसल आप किसी भी उपजाऊ जमीन पर उगा सकते हैं।ककड़ी की बुवाई के लिए मार्च का समय बहुत ही फायदेमंद होता है। या सिर्फ 1 एकड़ भूमि में 1 किलो ग्राम बीज के आधार पर उगना शुरू हो जाती है। 

खेत को आपको तीन से चार बार जोतना होता है ,उसके बाद आपको खेतों में गोबर की खाद डालनी होती है। ककड़ी की बीजों को किसान 2 मीटर चौड़ी क्यारियों में किनारे किनारे पर लगाते है। इनकी दूरी लगभग 60 सेंटीमीटर होती है।

करेले की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Bitter gourd crop complete information) in Hindi

karele ki kheti

करेले की खेती दोमट मिट्टी में की जाती है। करेले को आप दो तरह से बो सकते हैं। पहले बीच से दूसरा पौधों द्वारा ,आपको करेले की खेती के लिए दो से तीन दिन की जरूरत पढ़ती है। 

इसकी बीच की दूरियों को 2.5 से लेकर 5 मीटर तक की दूरी पर रखना चाहिए।किसान करेले के बीज को बोने से पहले  लगभग 24 घंटा पानी में डूबा कर रखते हैं। ताकि उसके अंकुरण जल्दी से फूट सके। 

पहली जुताई किसान हल द्वारा करते हैं उसके बाद किसान तीन से चार बार हैरो या कल्टीवेटर द्वारा खेत की जुताई करते हैं।

लौकी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Gourd crop complete information) in Hindi

lauki ki kheti

लौकी की खेती आप हर तरह की मिट्टी में कर सकते हैं लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिए बहुत ही उपयोगी है। लौकी की खेती करने से पहले आपको इसके बीज को 24 घंटे पानी में डूबा कर रखना है अंकुरण आने तक, एक हेक्टेयर में आपको 4.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।

तुरई फसल की पूर्ण जानकारी ( Full details of turai crop) in Hindi

turai ki fasal

तोरई की फसल को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना चाहिए। किसानों द्वारा प्राप्त जानकारियों से यह पता चला है।कि नदियों के किनारे वाली भूमि पर खेती करना बहुत ही अच्छा होता है। 

खेती करने से पहले जमीन को अच्छे से जोत लेना चाहिए। पहले हल द्वारा उसके बाद दो से तीन बार हैरो या कल्टीवेटर  से जुताई करना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में कम से कम 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

पेठा फसल की पूर्ण जानकारी( Complete information about Petha crop)

पेठा सब्जियों की बेल Petha crop

पेठा यानी कद्दू को दोमट मिट्टी में बोना बहुत ही  फायदेमंद होता है। पेठा की खेती के लिए दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें। मिट्टियों को भुरभुरा बनाएं तथा खेतों की अच्छे ढंग से जुताई करें। एक हेक्टेयर में लगभग 7 से 8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

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खरबूजे की फसल (melon crop) in Hindi

melon crop

मार्च के महीने में खरबूजा बहुत ही फायदेमंद तथा पसंदीदा फलों में से एक है। किसान इसकी खेती नदी तट पर करते हैं। खेती करने से पहले बालू में एक थाला बनाते हैं और बीज बोने से थोड़ी देर पहले खेत को अपने हल के जरिए जोतते हैं। खरबूजे की फसल बोने के बाद इसकी सिंचाई को कम से कम 2 या 3 दिन बाद से करना शुरू कर देना चाहिए।

तरबूजे की फसल ( watermelon crop) in Hindi

watermelon crop

गर्मी में तरबूज को बहुत ही शौक से खाया जाता है।तरबूज में पानी की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है, इसको खाने से आप ताजगी का अनुभव करते हैं। इस फसल में लागत बहुत कम लगती है लेकिन मुनाफा उससे कई गुना होता है। 

तरबूज की फसल बहुत ही कम समय में उग जाती है, जिससे किसानों को काफी मुनाफा भी मिलता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें ,कि तरबूज में कीट और रोग का प्रकोप काफी बड़ा रहता है। किसानों को चाहिए कि वैज्ञानिकों के मुताबिक तरबूज की फसलों की देखरेख करें। तरबूज की फसलें 75 से 90 दिनों के अंदर पूर्ण रुप से तैयार हो जाती है।

भिंडी की फसल( okra harvest) in Hindi

भिंडी सब्जियां bhindi ki kheti

किसान भिंडी की फसल फरवरी से मार्च के दरमियान जोतना शुरू कर देते हैं। भिंडी की खेती हर तरह की मिट्टी में की जाती है। खेती से पूर्व दो तीन बार खेतों की जुताई करें। 

जिससे मिट्टियों में भुरभुरा पन आ जाए, जमीन को समतल कर दे। खेतों में लगभग 15 से 20 दिन पहले इनकी निराई-गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण रहे इसके लिए कई प्रकार का रासायनिक प्रयोग भी किसान करते हैं।

ग्वार फली की फसल( guar pod crop) in Hindi

गुआर सब्जियों की फसल guar ki kheti

ग्वार फली किसानों कि आय का बहुत महत्वपूर्ण साधन होता है। किसान ग्वार फली का इस्तेमाल हरी खाद ,हरा चारा ,हरी फली , दानों आदि के लिए करते है। ग्वार फली में प्रोटीन तथा फाइबर का बहुत ही अच्छा स्त्रोत होता है। 

इनके अच्छे स्त्रोत के कारण इनको पशुओं के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। जिससे पशुओं को विभिन्न प्रकार के प्रोटीन की प्राप्ति हो सके। किसान ग्वार फली की खेती दो मौसम में करते हैं पहला बहुत गर्मी के मौसम में तथा दूसरा  बारिश के मौसम में। 

ग्वार फली की बुवाई किसान मार्च के महीने में 15 से लेकर 25 तारीख के बीच खेती करना शुरू कर देते हैं। ग्वार फली की फसलें 60 से 90 दिन के अंदर पूर्ण रूप से तैयार हो जाती है तथा यहां कटाई के लायक़ हो जाती हैं। 

ग्वार फली में बहुत तरह के पौष्टिक तत्व भी मौजूद होते हैं इनका उपयोग विभिन्न प्रकार की सब्जियों को बनाने तथा सलातो के रूप में किया जाता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट द्वारा मार्च के महीने में उगाई जाने वाली सब्जियों की पूर्ण जानकारी पसंद आई होगी। 

आपने इन सब्जियों के विभिन्न प्रकार के लाभ को जान लिया होगा। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया पर शेयर करें धन्यवाद।

इस पौधे के प्रयोग से गंजापन होता है दूर साथ ही चेहरे पर आयेगा नूर

इस पौधे के प्रयोग से गंजापन होता है दूर साथ ही चेहरे पर आयेगा नूर

प्राकृतिक चिकित्सा की विशेषज्ञ प्रीतिका मजूमदार के अनुरूप ग्वारपाठे मतलब एलोवेरा (Aloe vera) अत्यंत फायदेमंद पौधा होता है। जिसमें विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण हैं जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद भी होता है। प्रतिदिन इसका निरंतर उपयोग कर बहुत सारे रोगों व बिमारियों से निजात पा सकते हैं। घृत कुमारी या ग्वारपाठा मतलब एलोवेरा एक ऐसा पौधा है, जिसका उपयोग बहुत सारी बिमारियों को दूर करने के साथ-साथ सौंदर्य को बढ़ाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। बाजार में एलोवेरा से निर्मित उत्पाद अपनी विशेष पहचान और स्थान रखते हैं। आज हम इस लेख में जानेंगे, कि कैसे और कौन-सी चीजों में यह अत्यंत लाभकारी होता है।

ग्वारपाठा मतलब एलोवेरा से क्या-क्या लाभ होते हैं

जली त्वचा में लाभकारी

ग्वारपाठे के पत्ते को काटकर इसके अंदर के गूदे को बाहर लेकर के यदि आप त्वचा पर दिन में करीब 23 बार इसका लेप करते हैं, तो आपकी जलन खत्म होकर शीतलता में परिवर्तित हो जाती है।


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स्किन टैनिंग के लिए लाभकारी

ग्वारपाठा स्किन टैनिंग को दूर भगाने में भी अहम भूमिका निभाता है। इसके छिलके को उतारने के उपरांत इसको अच्छी तरह पीसकर जले हुए शारीरिक हिस्से पर लगाने से जख्म ठीक हो जाता है और जलन भी पूरी तरह खत्म हो जाती है।

त्वचा में सौंदर्य और निखार लाए

ग्वारपाठा व एलोवेरा रंग को निखारने में काफी सहायक साबित होता है। अगर आप इसको गुलाब जल में मिश्रित कर के अपनी जांघों पर लगाते हैं, तो इससे आपको पहले से बहुत बदलाव देखने को मिलेगा। इसलिए आपको ग्वारपाठा यानी एलोवेरा का उपयोग विभिन्न प्रकार के सौंदर्य उत्पादों में किया जाता है। क्योंकि यह त्वचा को नमी उपलब्ध कराके उसको काफी निखार देता है।

पिंपल दूर करने में सहायक

एलोवेरा को काटकर उसमें से निकाले गए गूदे में अगर चार भाग में दो भाग शहद में मिश्रण कर पिंपल पर लगाएं। तो, आपको अतिशीघ्र ही इसका अच्छा परिणाम देखने को मिलेगा।

सिर सर्द करे जड़ से खत्म

सिर दर्द होने की स्थिति में ग्वारपाठे के गूदे में गेहूं के आटे में मिश्रण कर उसके उपयोग से 2 रोटी बनाएं। रोटी बनने के बाद उसको अच्छी तरह दबाकर के देशी घी में डालें। उस रोटी का सेवन सूर्योदय से पूर्व करलें। इसका नियमित रूप से 57 दिन तक निरंतर सेवन करेंगे तो आपका कैसा भी सिर दर्द हो बिल्कुल सही हो जाएगा।

गंजे के भी सिर पर बाल उगादे

एलोवेरा गंजापन दूर करने में भी काफी सहायक साबित होता है। आपको लाल रंग के ग्वारपाठे जिसके अंतर्गत नारंगी एवं कुछ लाल रंग के फूल होते हैं। उसके गूदे को स्प्रिट में गलाने के उपरांत सिर पर लेप लगाने से गंजे के सिर पर भी बाल आ जाते हैं। इतना ही नहीं यह बालों को काला करने में भी सहायता करता है।

जख्म पर लगाएं ग्वारपाठा

एलोवेरा कुत्ते द्वारा काटने से हुए जख्म को भरने में काफी अच्छा होता है। ग्वारपाठे को एक तरफ से छीलकर इसके गूदे वाले भाग में पिसे हुए सेंधानमक का छिड़काव करें। उसके बाद इसको कुत्ते द्वारा काटी गयी जगह पर लगाऐं। इसका अच्छा फायदा आपको निरंतर इसके चार बार प्रयोग करने के उपरांत ही मिलेगा।

ग्वारपाठा से पिंपल होंगे दूर

आप एलोवेरा के उपयोग से भी पिंपल की समस्या से राहत पा सकते हैं। ऐसे में आप एलोवेरा को प्रभावित स्थान पर लगाएं। कुछ समय बाद अपनी त्वचा को धो लें।
ग्वार की ये 5 किस्में किसानों को देंगी ज्यादा उपज और मुनाफा

ग्वार की ये 5 किस्में किसानों को देंगी ज्यादा उपज और मुनाफा

किसान बीन्स की खेती से भी काफी शानदार आय अर्जित कर सकते हैं। किसान तरबूज की बेहतरीन किस्मों का चयन करके शानदार उत्पादन एवं मुनाफा दोनों अर्जित कर सकते हैं। बीन्स लता वाले समूह का एक पौधा होता है। 

इसके पौधों पर निकलने वाली फलियां सेम अथवा बीन्स कहलाती हैं, जिन्हें सब्जी के तौर पर उपयोग किया जाता है। इसको ग्वार के नाम से भी जाना जाता है, इसकी फलियां भिन्न-भिन्न आकार की होती हैं। 

जो दिखने में सफेद, हरी और पीले रंग की होती हैं। बीन्स की मुलायम फलियां सब्जी के तौर पर उपयोग की जाती हैं। इसके अंदर प्रोटीन, विटामिन तथा कार्बोहाइड्रेट की पर्याप्त मात्रा उपस्थित होती है।  

साथ ही, यह सब्जी कुपोषण को दूर करने में ज्यादा लाभकारी होती है। इसके चलते बाजार में इसकी मांग वर्ष भर बनी रहती है। ऐसी स्थिति में किसानों के लिए ग्वार की खेती बड़े लाभ का सौदा सिद्ध हो सकती है। 

क्योंकि इसका उत्पादन करके किसान शानदार आय कर सकते हैं। तरबूज का ज्यादा उत्पादन लेने के लिए कृषकों को उसकी सही समय पर खेती एवं शानदार किस्मों का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। 

इसकी कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिसमें तो कीट लगते हैं और ही रोग लगता है। इन किस्मों की खेती से किसान काफी शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। 

ग्वार की 5 किस्में

टाइगर ग्वार सीड्स    

शक्ति सीड्स कंपनी का यह वैराईटी ज्यादा शाखाओं एवं ज्यादा फैलाव वाली ग्वार किस्म है। इस किस्म के दाने गोल, चमक और वजनदार होते है। 

जड़ गलन, झुलसा, ब्लाईट जैसे रोगों के प्रति उच्च सहनशील प्रजाति है। लंबी अवधि के साथ पकती है, जिसका 100 से 110 का वक्त लग जाता है। 

अधिकतम उत्पादन के साथ 7 से 10 क्विंटल / एकड़ उत्पादन देखने को मिलता है। यह किस्म समस्त प्रकार की मृदा में उपयुक्त मानी गई है।

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ग्वार की सुपर एक्स -7    

सुपर एक्स -7 किस्म के पौधो की ऊंचाई 90 से 100 सेंटीमीटर मानी जाती है। भारत में सिंचित और असिंचित अवस्था दोनों में की जा सकती है। 

इस किस्म को पकने में 80 से 100 दिन का समयांतराल लग जाता है। इसका ओसत उत्पादन 6 से 8 क्विंटल / एकड़ देखा जा सकता है। यह बीज किस्म ब्लाईट, जड़ गलन जैसें रोगों के प्रति सहनशील होती है। 

ग्वार की एच जी -365     

विभिन्न शाखाओं के साथ फैलने वाली यह प्रजाति प्रमाणित उन्नत प्रजाति है। यह 60 से 70 दिनों के समयांतराल में शीघ्रता से पकने वाली किस्म है। पैदावार की बात की जाए तो 18-20 क्विंटल / हेक्टेयर लिया जा सकता है। 

ग्वार की कोहिनूर 51 किस्म

बतादें, कि बीन्स की कोहिनूर 51 किस्म का फल हरे रंग का होता है। इसके फल बाकी किस्मों से लंबे होते हैं। इस बीन्स के बीज को रोपने के 48-58 दिनों की अवधि में पहली तुड़ाई शुरू हो जाती है। 

वहीं, ये किस्म 90 से 100 दिनों में पूर्णतय तैयार हो जाती हैं। इस किस्म की खेती किसान तीनों सीजन मतलब कि रबी, खरीफ एवं जायद में कर सकते हैं।

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ग्वार की अर्का संपूर्ण किस्म

अर्का संपूर्ण किस्म का निर्माण भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा किया गया है। इस प्रजाति के पौधों पर रतुआ एवं चूर्णिल फफूंद का रोग नहीं लगता है। 

इस प्रजाति के पौधे रोपाई के तकरीबन 50 से 60 दिन पश्चात उत्पादन देना चालू कर देते हैं, जिनका प्रति हेक्टेयर समकुल उत्पादन 8 से 10 टन के करीब होता है।