आज के समय में किसानों को आधुनिकता और नवीन तकनीकों व लाभकारी फसलों का चयन करने की आवश्यकता है। किसानों की आर्थिक स्थिति में निरंतर गिरावट आने की एक वजह यह भी है कि किसान अभी भी परंपरागत फसलों का ही उत्पादन करता है।
इस वजह से उनकी फसल भंडारण में सरप्लस में रहती है, जिसके चलते किसान को उसकी फसल का सही मूल्य नहीं मिल पाता है।
मेरीखेती द्वारा प्रसारित किए गए लेख और देश के गांव-गांव जाकर निःशुल्क आयोजित की जाने वाली मेरीखेती किसान पंचायत में भी निरंतर कृषकों को कृषि में आधुनिकता और शुद्धता को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
क्योंकि, जब तक किसान माँग और मौसम के अनुरूप फसल का चयन नहीं करेगा तब तक किसान की आर्थिक स्थिति सुदृण होने काफी कठिन है।
इसी कड़ी में आज हम आपको अच्छा मुनाफा दिलाने वाली फसल की जानकारी देंगे, जिसको हम ग्वार की फसल के नाम से जानते हैं।
ग्वार की खेती के लिए आवश्यक नहीं कि सिंचित क्षेत्र ही हो, यह असिंचित क्षेत्र में भी आसानी से की जा सकती है। ग्वार एक सूखा प्रतिरोधी दलहनी फसल है।
इसमें गहरी जड़ प्रणाली होने की वजह से पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है। बतादें, कि ग्वार के गम से विभिन्न प्रकार के उत्पाद और पशु आहार निर्मित किए जाते हैं, जिससे इस फसल की बाजार में हर समय मांग बनी रहती है। मेरीखेती के इस लेख में आपको ग्वार की आधुनिक खेती की पूरी जानकारी प्रदान करेंगे।
किसान भाई अगर ग्वार की खेती करने जा रहे हैं, तो सबसे पहले आपको जमीन तैयार करनी होगी। इसके लिए अधिक खरपतवार वाली भूमि की गर्मी के मौसम में एक जुताई करें। वहीं, वर्षा के साथ 1 से 2 जुताई कर खेत तैयार कर लें।
अगर संभव हो सके तो एक हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 गाडी गोबर की खाद डालें। इससे अंकुरण अच्छा होगा और प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ेगा। पहली जुताई मृदा पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिए।
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इससे कम से कम 20 से 25 सेमी गहरी मृदा ढीली हो जाती है। इसके बाद एक या दो जुताई करके एकसार खेत तैयार करना चाहिए। इसमें जल निकासी की समुचित व्यवस्था होगी।
यहां बतादें, कि ग्वार की फसल यूं तो कई तरह की मृदा में की जा सकती है। लेकिन, बेहतरीन फसल के लिए दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
यह भारी मृदा पीएच मान 7 से 8.5 तक में उगाई जा सकती है। ग्वार कम मध्यम वर्षा वाले इलाकों की बारानी फसल है। इसे लवणीय और क्षारीय मृदा में नहीं उगाया जा सकता।
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ग्वार की फसल की बुवाई का समुचित वक्त जून का अंतिम सप्ताह या जुलाई का प्रथम पखवाड़ा रहता है।
वहीं, इसकी उन्नत किस्मों में आरजीसी-936, आरजीसी 1002, आरजीसी-1003, आरजीसी-1066, एचजी-365, जीसी-1, आरजीसी 1017, एचजीसी 563, आरजीएम 112,आरजीसी 1038 और आरजीसी 986 हैं।
किसान भाइयों को यह सलाह दी जाती है, कि ग्वार की फसल की बुवाई से पूर्व बीजों को बेहतर से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए 2.0 ग्राम बाविस्टीन से किलोग्राम बीज को उपचारित कर बोएं।
आंगमारी रोग की रोकथाम के लिए बीज को स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 200 पीपीएम या एग्रोमाईसीन 250 पीपीएम के घोल में 3 घंटे में भिगोकर उपचारित कर बुवाई करें।
वहीं, जड़ गलन रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेण्डाइजिम या थाओफोट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें। इस बीमारी के जैविक नियंत्रण के लिए टाइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें।
ग्वार की बुआई के लिए बीज की उचित मात्रा के साथ ही इसकी सही विधि अपनाना लाभदायक हो सकता है। वैसे ग्वार की बुआई ड्रिल द्वारा या दो पोरों से की जाती है।
कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। कम वर्षा और कम उपजाऊ वाले क्षेत्रों में बीज की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए। वैसे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 से 20 किलोग्राम बीज डालना चाहिए।
बतादें, कि शुष्क और अर्धशुष्क वाले क्षेत्रों में जहां हल्की मिट्टी पाई जाती है वहां नत्रजन 20 किलोग्राम और फास्फोरस 40 किलोग्राम डालना चाहिए। ग्वार एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन और फास्फोरस दोनो की सारी मात्रा बुवाई के दौरान ही डालें।
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ग्वार की फसल में खरपतवार के नियंत्रण के लिए निराई और गुड़ाई करना बेहद आवश्यक है। यह फसल की एक माह की अवस्था में संपन्न कर देनी चाहिए।
इसके लिए इमेजाथाइपर 10% प्रतिशत एसएल दवा की 10 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति बीघा की दर से 100 से 125 लीटर पानी में डाल कर बुवाई के 30-35 दिन बाद स्प्रे करना चाहिए।
ग्वार की फसल की बिजाई जुलाई के अंतिम पखवाड़े में होती है। यदि दो सप्ताह तक अच्छी बारिश नहीं हो तो सिंचाई करनी चाहिए।
इसके बाद अगस्त या सितंबर के आखिरी सप्ताह में सिंचाई की जानी चाहिए। ग्वार की फसल नवंबर में पक कर तैयार हो जाती है। अमूमन एक हेक्टेयर में 10 से 15 क्विंटल फसल होती है।
बता दें कि राजस्थान और हरियाणा में ग्वार की खेती सबसे ज्यादा एरिये में होती है। इन प्रदेशों में ग्वार का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक होता है।
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इनके अलावा गुजरात, पंजाब, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महराष्ट आदि प्रदेशों में भी ग्वार की फसल होती है। भारत में विश्व का 80 प्रतिशत ग्वार का उत्पादन होता है।
यहां बता दें कि ग्वार एक औद्योगिक फसल है। इससे गम या गोंद बनता है। इसके अनेक उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। पहले जिन उद्योगों में अरारोट या आलू और चावल के पदार्थों का प्रयोग किया जाता था अब उनमें ग्वार के गम का प्रयोग किया जाता है।
यह सूती कपड़ो के निर्माण, कागज बनाने, सौंन्दर्य प्रसाधन, दवाइयों आदि के काम आता है। किसान या अन्य लोग ग्वार के गम का उद्योग लगा कर लाखों रुपये सालाना कमाई कर सकते हैं। अमेरिका सहित कई देशों में भारतीय देसी ग्वार की खासी मांग रहती है। यह स्टार्च से अधिक गाढ़ा घोल बनाने में सक्षम है।