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फसल का उत्पादन

वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयास से इस राज्य के गाँव में हुआ केसर का उत्पादन

वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयास से इस राज्य के गाँव में हुआ केसर का उत्पादन

कश्मीर केसर की पैदावार के मामले में अलग ही पहचान रखता है। पहली बार इसका उत्पादन सिक्किम के एक गांव में किया गया था। वैज्ञानिक अब इस फसल का रकबा मेघालय एवं अरुणांचल प्रदेश की तरफ विस्तृत कर रहे हैं। केसर सुगंध एवं औषधीय गुणों की विशेषता की वजह से जानी जाती है। भारत का कश्मीर बड़े पैमाने पर केसर की फसल का उत्पादन करता है। कश्मीर का केसर देश के साथ-साथ दुनियाभर में अपनी बेहतरीन पहचान रखता है। केंद्र सरकार द्वारा बीते काफी वक्त से केसर की खेती का रकबा बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई है। साथ ही, केसर का उत्पादन कश्मीर के अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी किया जाना चाहिए। फिलहाल वैज्ञानिकों द्वारा अद्भुत कार्य कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप कश्मीर के अलावा भी अन्य राज्यों में केसर की फसल होगी।

सिक्किम के किस गाँव में की गयी केसर की खेती

मीडिया खबरों के मुताबिक, वैज्ञानिक काफी वक्त से प्रयासरत थे, कि कश्मीर के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों में भी केसर की पैदावार की जा सके। साथ ही इसके रकबे को बढ़ाने में भी लगे हुए थे। नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन एंड रिसर्च द्वारा बहुत पहले से इस विषय पर शोध किया जा रहा था। नतीजतन दक्षिण सिक्किम में उपस्थित यांगतांग गांव में प्रथम बार केसर का सफलतापूर्वक उत्पादन एवं खेती हुई है। सामने आये परिणामों की वजह से वैज्ञानिक बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं।

इन राज्यों में बढ़ाया जायेगा केसर का उत्पादन

सिक्किम के उपरांत वैज्ञानिक फिलहाल दूसरे प्रदेशों तक बढ़ावा देने हेतु प्रयासरत हैं। आज केसर की बुवाई अरुणाचल प्रदेश में तवांग एवं मेघालय के बारापानी तक विस्तृत की जा रही है। मीडिया खबरों के मुताबिक, बहुत वक्त पूर्व सिक्किम सरकार द्वारा अपने राज्य के अलग अलग इलाकों में केसर की खेती की जाने की संभावना देखी गयी। क्योंकि सिक्किम की भूमि केसर की खेती हेतु उपयुक्त मानी गयी है। बतादें, कि पूर्वी सिक्किम में खमडोंग, पदमचेन, पंगतांग, सिमिक एवं समीपवर्ती इलाकों को केसर की बुवाई हेतु चिन्हित किया गया है। सिक्किम के अधिकारियों द्वारा जम्मू कश्मीर में पहुँच केसर की स्थिति का मुआयना किया जा चुका है।
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जानिए किस वजह से हो रही है केसर की खेती सफल

जम्मू कश्मीर एवं सिक्किम के बागवानी विभाग के अधिकारी केसर की पैदावार को लेकर निरंतर संपर्क साधे हुए हैं। इसके लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, किसी भी फसल का उत्पादन पर्यावरण पर काफी ज्यादा निर्भर होता है। यदि हम केसर की खेती के बारे में बात करें तो कश्मीर एवं सिक्किम मौसमिक एवं भौगोलिक दृष्टि से एक समान ही हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक, अधिकारिक रूप से यह सिद्ध किया गया है, कि सिक्किम सरकार द्वारा करीब डेढ़ एकड़ रकबे में केसर का उत्पादन किया जाता है। जिसका अच्छा खासा परिणाम भी देखने को मिला है।

जमीन के छोटे से भाग में किया गया केसर का उत्पादन

मीडिया खबरों के मुताबिक, सिक्किम के गवर्नर गंगा प्रसाद ने बताया था, कि मिशन 2020 में सिक्किम विश्वविद्यालय की निगरानी में जमीन के छोटे से भाग पर केसर का उत्पादन किया गया था। परिणामस्वरूप उस भूमि में बेहद अच्छा उत्पादन भी हुआ था। परिणामों को देखने के बाद केसर को अन्य राज्यों के दूसरे हिस्सों में बोने का फैसला लिया गया है। प्रदेश में 80 फीसद की दर से केसर का उत्पादन हुआ है।
इस राज्य के किसान फसल पर हुए फफूंद संक्रमण से बेहद चिंतित सरकार से मांगी आर्थिक सहायता

इस राज्य के किसान फसल पर हुए फफूंद संक्रमण से बेहद चिंतित सरकार से मांगी आर्थिक सहायता

महाराष्ट्र राज्य में संतरा, मिर्च, पपीता पर रोगिक संक्रमण के बाद वर्तमान में चने की फसल भी संक्रमित हो रही है। चने पर फफूंद संक्रमण की वजह से पौधे बर्बाद होते जा रहे हैं, इस बात से किसान बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं। बतादें, कि इस वर्ष में चने की पैदावार काफी कम हुई है। इसके साथ साथ अन्य फसल भी जैसे कि मिर्च, संतरा और पपीता सहित बहुत सारी फसलों पर फफूंद संक्रमण एवं कीटों का प्रकोप जारी है। उत्पादकों को लाखों की हानि वहन करनी पड़ रही है। महाराष्ट्र राज्य में फसलीय रोगों की वजह से फसलें बेहद गंभीर रूप से नष्ट होती जा रही हैं। किसान सरकार से सहायता की फरियाद कर रहे हैं। ऐसे में महाराष्ट्र के किसानों की चने की फसल भी फफूंद के कारण रोगग्रसित हो गयी है। विशेषज्ञों के अनुसार, कीट एवं फफूंद से फसलों को बचाने हेतु किसानों को बेहतर ढंग से फसल की देखभाल करने की अत्यंत आवश्यकता है।

चने की फसल को बर्बाद कर रहा फफूंद

महाराष्ट्र राज्य में चने की फसल फफूंद की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। प्रदेश में चने का उत्पादन फसल बर्बाद होने के कारण घटता जा रहा है। महाराष्ट्र राज्य के नंदुरबार जनपद में चने की फसल का उत्पादन काफी बड़े क्षेत्रफल में उच्च पैमाने पर किया जाता है। फफूंद की वजह से चने के पौधे खराब होना आरंभ हो चुके हैैं। किसान इस बात से बेहद चिंतित हैं, कि यदि चने की फसल इसी प्रकार नष्ट होती रही तो, उनके द्वारा फसल पर किया गया व्यय भी निकाल पाना असंभव सा साबित होगा।


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आखिर किस वजह से यह समस्या उत्पन्न हुई है

महाराष्ट्र के बहुत सारे जनपदों में चने की फसल का उत्पादन किया जाता है। प्रतिवर्ष चने का उत्पादन कर किसान अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं। परंतु चने की फसल में फफूंद संक्रमण की वजह से किसानों को इससे अच्छी आय मिलने की अब कोई संभावना नहीं बची है। फसल रोगिक संक्रमण की वजह से काफी प्रभावित हो गयी है। विशेषज्ञों द्वारा चने की फसल पर फफूंद लगने का यह कारण बताया गया है, कि बेमौसम बरसात एवं आसमान में बादल छाए रहने की वजह से फसल को पर्याप्त मात्रा में धूप नहीं मिल पायी है और धूप न मिलना इस संक्रमण की मुख्य वजह बना है। फफूंद ने चने की फसल को गंभीर रूप से बर्बाद करना आरंभ कर दिया है।

किसानों ने सरकार से की आर्थिक सहायता की गुहार

फसल के गंभीर रूप से प्रभावित होने की वजह से पीड़ित किसान राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार से सहायता हेतु गुहार कर रहे हैं। राज्य के बहुत सारे जनपदों के किसानों ने महाराष्ट्र कृषि विभाग से भी सहायता के लिए मांग की है। किसानों का कहना है, कि फसलों को बर्बाद कर रहे इस रोग से चना की फसल के उत्पादन में निश्चित रूप से घटोत्तरी होगी। फफूंद रोग बेहद तीव्रता से पौधों को बर्बाद करता जा रहा है, यहां तक कि बड़े पौधे भी इस रोग की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। बचे हुए पौधे भी कोई खाश उत्पादन नहीं दे पाएंगे। किसानों ने बहुत बेहतरीन ढंग व मन से चने की फसल का उत्पादन किया था। इसलिए उनको इस वर्ष रबी सीजन में चने की फसल से होने वाली पैदावार से अच्छा खासा मुनाफा मिलने की आशा थी। परंतु परिणाम बिल्कुल विपरीत ही देखने को मिले हैं। किसान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से आर्थिक सहायता हेतु गुहार कर रहे हैं।
इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि एक हेक्टेयर में करीब 25 टन शकरकंद का उत्पादन होता होता है। यदि किसान इसकी कीमत 10 रुपए किलो के हिसाब से भी मानें तो एक एकड़ से उत्पादक न्यूनतम 1.25 लाख रुपए अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में विश्वभर में भारत से बहुत सारे उत्पाद व वस्तुएं निर्यात की जाती रही हैं, शकरकंद उनमें से एक है। आलू की भाँति दिखने वाला शकरकंद की भारत सहित विश्वभर में माँग की जाती है। दरअसल, विश्वभर में शकरकंद निर्यातकों की सूचि में भारत छठवें स्थान पर है, परंतु जिस प्रकार से किसान इसके उत्पादन पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इस हिसाब से बहुत जल्द भारत चीन को पछाड़कर निर्यातकों की सूचि में प्रथम स्थान हासिल प्राप्त करलेगा। बतादें, कि देश के बहुत सारे राज्यों में शकरकंद का उत्पादन बेहतरीन तरीके से किया जा रहा है एवं किसान इसकी फसल से अच्छा खासा लाभ भी उठा पा रहे हैं। आगे हम इस लेख में शकरकंद के उत्पादन से कैसे अधिक मुनाफा कमा पाएंगे इस विषय में हम चर्चा करेंगे। शकरकंद का उत्पादन करने हेतु सर्वप्रथम उत्पादक द्वारा स्वयं की भूमि का मृदा परीक्षण करना होगा। यदि किसान के भूमि की मृदा अत्यंत कठोर एवं पथरीली है अथवा किसान के खेत में जलभराव जैसी दिक्कत भी है, ऐसे में कृषकों हेतु शकरकंद का उत्पादन करना अच्छा नहीं होगा। साथ ही, यदि आपके खेत की मृदा का पीएच मान 5.8 से 6.8 के मध्य है, तो आप शकरकंद का उत्पादन करना बेहद आसानी से कर सकते हैं। शकरकंद का उत्पादन करने के दौरान सिंचाई का अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना अत्यंत आवश्यक है। यदि किसानों ने ग्रीष्म ऋतु में शकरकंद के पौधे लगाए हैं, उस समय रोपाई के तुरंत उपरांत सिंचाई नहीं करनी चाहिए। किसान भाई ध्यान रखें कि सिंचाई सप्ताह में केवल एक बार ही हो। यदि बरसात का मौसम है, तो किसान बिल्कुल भी शकरकंद में बिल्कुल पानी न लगाएं।

किसान खाद किस तरह से लगाएं

वर्तमान दौर में यदि आप किसी भी फसल का उत्पादन कर रहे हैं, याद रहे कि आपकी फसल का उत्पादन खेतों में दिए गए खाद की गुणवत्ता एवं मात्रा एक अहम भूमिका निभाती है। यदि कृषक शकरकंद का उत्पादन कर रहे हैं, तो किसानों को निज खेतों में नाइट्रोजन, फॉस्फोसर एवं पोटाश का समुचित मात्रा में उपयोग करना चाहिए। साथ ही, यदि आपकी जमीन अत्यधिक अम्लीय है, ऐसी स्थिति में कृषकों को मैग्निशियन सल्फेट, जिंकोसल्फेट एवं बोरोन का उपयोग करना होगा। ऐसे उर्वरकों को किसान कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञों के दिशा निर्देशानुसार ही समुचित मात्रा में दें।


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कितनी होगी पैदावार

आज के समय में फसल उत्पादकों हेतु बेहतरीन फसल का चुनाव सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण बात है। किसानों को जिस फसल से अत्यधिक लाभ हो सके एवं उनके द्वारा किये गए व्यय को निकालकर वह अच्छी आमंदनी भी अर्जित कर सकें। हालाँकि, शकरकंद की बात की जाए तो यह फसल काफी अच्छी आमंदनी करने में सहायक साबित होती है। उत्पादन की बात करें तो एक हेक्टेयर में तकरीबन 25 टन शकरकंद की पैदावार होती है। किसान कम से कम 10 रुपए किलो भी शकरकंद का मूल्य रखें उस गणित से एक एकड़ में उत्पादन कर किसान न्यूनतम 1.25 लाख रुपए का लाभ अर्जित कर सकते हैं।
नववर्ष के जनवरी माह में करें इन सब्जियों का उत्पादन मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

नववर्ष के जनवरी माह में करें इन सब्जियों का उत्पादन मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

नया साल आ गया है, नए साल के आरंभ में फसलों का चयन उस हिसाब से करना अच्छा होगा जिससे आपको आगामी कुछ माह के अंतराल में ही अच्छा खासा मुनाफा हो सके। नववर्ष के जनवरी माह में किसान उन फसलों को उगाएं, जिनसे किसानों को होली आने तक बेहतरीन लाभ अर्जित हो सके। नए साल के समय में खेतीबाड़ी या कृषि के क्षेत्र में इस वर्ष काफी कुछ अच्छा, नवीन एवं अलग होना है। किसानों की आशाएं नए साल सहित एक बार पुनः जाग्रत हो गई हैं। फसलों से अच्छी पैदावार लेने हेतु किसान निरंतर कोशिशों में जुटे हुए हैं। फिलहाल, बहुत सारे किसानों द्वारा खेतों में सरसों, गेंहू, तोरिया एवं सब्जी फसलों का उत्पादन करना शुरू किया है। अगर आपने अभी ऐसी सब्जियों की बुवाई नहीं की है, तो आप मौसम के अनुरूप कुछ विशेष सब्जियों का चयन करके 2 से 3 माह में बेहतरीन उत्पादन कर सकते हैं। हम आपको आगे यह बताने वाले हैं, कि जनवरी के मौसम में किन सब्जियों का उत्पादन करना चाहिए। किसानों को उन फसलों का उत्पादन करें जिनसे उनको बेहतरीन मुनाफा अर्जित हो सके।

टमाटर का उत्पादन करें

ये बात जग जाहिर है, कि टमाटर की सब्जी बारह महीने चलने वाली फसल है, जिसका उत्पादन प्रत्येक सीजन में किया जा सकता है। सर्दियों के मौसम में भी टमाटर की फसल का उत्पादन किया जा जा सकता है। परंतु फसल को अत्यधिक ठंड-शर्द हवाओं से संरक्षित करना होगा, आप चाहें तो खेत के एक भाग में टमाटर का पौधरोपण कर सकते हैं। बेहतरीन एवं सुरक्षित उत्पादन हेतु पॉलीहाउस अथवा ग्रीन हाउस के भीतर भी टमाटर की फसल उगा सकते हैं। एक बार बुवाई अथवा पौध की रोपाई के उपरांत 10 दिन के अंतराल में एक बार सिंचाई करनी बेहद जरूरी होगी। टमाटर की बेहतरीन किस्मों से कृषि की जा रही है तो निश्चित रूप से आपको होली तक टमाटर का अच्छा उत्पादन प्राप्त हो जाएगा।

मिर्च का उत्पादन करें

सर्दी हो अथवा गर्मी, प्रत्येक मौसम में मिर्च को अत्यधिक उपभोग में लिया जाता है। आपको यह बतादें, कि सर्दियों के मौसम में मिर्च का उपभोग काफी बढ़ जाता है। इस वजह से जनवरी माह में मिर्च का उत्पादन करना अच्छा होगा। अगर नवंबर माह के अंदर आपने मिर्च की नर्सरी को तैयार किया हो, तो इन पौधों को खेत के किनारे मेड़ों पर भी उगा सकते हैं।


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लेकिन याद रहे कि पौधों के मध्य में 18 से 24 इंच की दूरी अवश्य हो। सर्दियों में मिर्च की फसल में अधिक पानी देने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। इस वजह से 10 से 15 दिन के अंतराल में हल्का सा जल जरूर दें, जिससे 60 से 90 दिनों के भीतर बेहतरीन उत्पादन हाँसिल हो सके।

प्याज का उत्पादन करें

सर्द जलवायु में प्याज से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है, कि 17 जनवरी तक प्याज के पौधों का रोपण कर सकते हैं। अगर प्याज की बाजार में मांग के बारे में बात करें तो लाल प्याज सहित हरे प्याज की भी अच्छी खासी मांग रहती है। प्याज की खेती से बेहतरीन उत्पादन हेतु खेतों में पहले उर्वरक डाल क्यारियां तैयार करें।


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इसके उपरांत 10 से 20 सेमी की दूरी पर प्याज का पौधरोपण की कर दें। आपको बतादें कि प्याज की बुवाई या रोपाई हेतु सबसे अच्छा समय शाम का माना जाता है। प्याज में हल्की सिंचाई करने से फसल में नमी बनी रहती है।

कंद सब्जियों का उत्पादन करें

ठंड के मौसम को कंद सब्जियों का भी मौसम माना जाता हैं, आलू से लेकर अदरक, हल्दी, शकरकंद, गाजर, मूली आदि का उत्पादन किया जाता है। यह समस्त फसलें 60 से 90 दिन में पूरी तरह उपभोग हेतु तैयार हो जाती हैं। यह भूमि में उत्पादन करने वाली सब्जियां हैं, इस वजह से मृदा में सामान्य नमी का होना जरुरी है। जिन खेतों में जलभराव हो वहाँ कंद सब्जियां ना उगाएं, इसकी वजह से उत्पादन में सड़न-गलन उत्पन्न हो जाती है। इन बागवानी सब्जियों की अप्रैल माह तक बाजार में खरीद बनी रहती है।

हरी पत्तेदार सब्जियां उगाएँ

सर्दियों की प्रसिद्ध हरी सब्जियां पालक, मेथी, धनिया, बथुआ एवं सरसों का साग अत्यधिक मांग में रहता है। एक बार खेतों में इन सब्जियों का उत्पादन करके प्रथम कटाई के उपरांत हर 15 दिन के अंतराल में 3 से 4 बार कटाई ली जा सकती है। हरी पत्तेदार सब्जियों में आयरन की बहुत अच्छी मात्रा पायी जाती है। बहुत सारे लोग इन सब्जियों को सुखाकर वर्षभर उपयोग करते हैं, जिन्हें ड्राई वेजिटेबल्स भी कहा जाता है। अगर आप जनवरी माह में इन सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं, तो मार्च माह तक आपको खूब उत्पादन प्राप्त हो जाएगा।

मटर के उत्पादन से होंगे यह लाभ

मटर का उत्पादन सर्दियों के मौसम में किया जाता है, परंतु इससे किसान मात्र एक बार की खेती से वर्ष भर लाभ उठा सकते हैं। जनवरी में मटर की बुवाई कर एकसाथ उत्पादन लेकर इसकी प्रोसेसिंग करें एवं इसको फ्रोजन मटर का रूप दें। इस तरह आपकी उपज पूरे वर्ष बिकेगी एवं बर्बाद भी नहीं होगी। बतादें कि बहुत सारे डेयरी केंद्र, परचून की दुकान एवं विभिन्न उत्पाद श्रेणियों पर फ्रोजन मटर की माँग रहती है। चाहें तो ई-नाम के माध्यम से सीधे ऑनलाइन मंडी में मटर का उत्पादन को विक्रय किया जा सकता है।
खुशखबरी: इस राज्य में आवारा पशुओं से परेशान किसानों को मिलेगी राहत

खुशखबरी: इस राज्य में आवारा पशुओं से परेशान किसानों को मिलेगी राहत

राजस्थान राज्य सरकार द्वारा मुख्यमंत्री जन सहभागिता योजना को स्वीकृति प्रदान करदी है। इस योजना के अंतर्गत कृषकों को आवारा पशुओं द्वारा मचाई जा रही तबाही से राहत प्रदान करने हेतु 1,500 ग्राम पंचायतों में गौशाला एवं आश्रय निर्मित किए जाएंगे। वर्तमान में अधिकांश राज्यों में छुट्टा घूमने वाले गौवंशों की संख्या में बढ़वार देखने को मिल रही है। इन दुधारू पशुओं से जब पशुपालकों को दूध की प्राप्ति नहीं होती तो इनको सड़कों पर आवारा छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में यह पशु सड़कों को ही अपना घर मान लेती हैं। जिसकी वजह से आए दिन सड़क दुर्घटनाओं की खबर सुनने को मिलती हैं। साथ ही, इनके खाने के लिए चारे की कोई व्यवस्था ना होने की वजह से ये पशु खेतों में घुंसकर फसलों को नष्ट कर देते हैं। जो कि किसानों के लिए ही चुनौती उत्पन्न करती है। राजस्थान, यूपी और बिहार में आवारा गौवंशों की परेशानियों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। इन तीनों प्रदेशों की राज्य सरकारें स्वयं के स्तर पर इस चुनौती से निपटने हेतु कार्य कर रही हैं। इसी क्रम में हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यानी राजस्थान सरकार ने भी अहम निर्णय लिया है। राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा ग्राम पंचायतों के अंतर्गत पशु आश्रय स्थल एवं गौशालाओं के निर्माण की घोषणा करदी है। इस कार्य को मुख्यमंत्री सहभागिता योजना के चलते किया जाना है।

गौशाला/पशु आश्रय स्थल बनाने की क्या रणनीति है

राजस्थान राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री जन सहभागिता योजना को मंजूरी देदी है। इसके प्रथम चरण में 1,500 ग्राम पंचायतों में गौशालाएँ व पशु आश्रय स्थल बनेंगे, इसके लिए 1,377 करोड़ रुपये का बजट जारी किया गया है। इस योजना के अंतर्गत ऐसी ग्राम पंचायतों में प्राथमिकता से पशुओं हेतु आश्रय स्थल निर्मित किए जाने हैं। जहां इनको चलाने हेतु बेहतर कार्यकारी एजेंसी (ग्राम पंचायत, स्वयं सेवी संस्था उपस्थित रहेगी। राज्य इन इन ग्राम पंचायतों में गौशाला निर्माण हेतु एक-एक करोड़ रुपये की धनराशि का आबंटन किया जाना है । इस योजना के अनुसार, 90% फीसद धनराशि को राज्य सरकार एवं 10% फीसद धनराशि को कार्यकारी एजेंसी द्वारा वहन किया जाना है। फिलहाल, इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2022-23 में 183.60 करोड़ रुपये के खर्च से 200 एवं वर्ष 2023-24 में 1,193.40 करोड़ रुपये के खर्च से 1,300 ग्राम पंचायतों में गौशालाऐं बनायी जा रहा है।
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किसानों को छुट्टा पशुओं से मिलेगी राहत

आवारा पशुओं की तादात में वृद्धि का सर्वाधिक नुकसान किसानों को ही तो भोगना होता है। यह आवारा पशु खेतों में जाकर के फसलों को खा जाते हैं। फसल का उत्पादन प्राप्त होने से पूर्व ही किसानों के सारा खेत पशु खाकर साफ कर देते हैं। इस प्रकार पूरे सीजन अथक प्रयास और परिश्रम करने वाले किसानों को केवल निराशा और हताशा ही प्राप्त होती है। आवारा पशुओं द्वारा बहुत बार किसानों को उस हद तक हानि हो जाती है। जिसका मुआवजा तक किसानों को मिलना काफी कठिन सा हो जाता है, जिस की वजह से आर्थिक समस्या उत्पन्न हो जाती है। परंतु, अब राजस्थान के किसानों की इस परेशानी का निराकरण तो निकलेगा ही, साथ ही, छुट्टा एवं निराश्रित पशुओं को आश्रय स्थल भी मुहैय्या हो पाएगा।
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सरकार पशुपालकों को भी अनुदान मुहैय्या करा रही है

मीडिया की खबरों के मुताबिक, वर्ष 2022-23 के अंतर्गत ही राजस्थान सरकार द्वारा अपने बजट में ग्राम पंचायतों में गौशाला एवं पशु आश्रय स्थल निर्माण एवं उनके बेहतरीन ढ़ंग से संचालन हेतु की घोषणा करदी थी। इसी दिशा में अग्रसर होकर कार्य करते हुए राजस्थान राज्य में गौशालाओं को 9 महीने तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है। वहीं, पशुपालकों हेतु 5 रुपये प्रति लीटर के अनुरूप दूध पर अनुदान का भी प्रावधान दिया गया है।