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फसल सुरक्षा

कृषि वैज्ञानिक कपास की इन किस्मों की बुवाई करने की सलाह दे रहे हैं

कृषि वैज्ञानिक कपास की इन किस्मों की बुवाई करने की सलाह दे रहे हैं

वर्तमान में गेहूं की फसल की कटाई हो चुकी है। साथ ही, कपास की बुवाई (cotton sowing) का वक्त प्रारंभ हो गया है। अब ऐसी स्थिति में जो किसान गेहूं के पश्चात कपास की खेती (cotton cultivation) करना चाहते हैं, उनके लिए कपास की बुवाई की कई बेहतरीन किस्में हैं, जो बेहतर उत्पादन प्रदान कर सकती हैं। 

कृषि वैज्ञानिकों ने अमेरिकन कपास या नरमा की खेती करने वाले कृषकों के लिए सलाह भी जारी कर दी है। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से कपास की अनुशंसित किस्में लगाने की सलाह दी जा रही है। 

इसके साथ इसकी बुवाई में ध्यान रखने वाली आवश्यक बातों के विषय में भी बताया जा रहा है। विभाग की तरफ से राजस्थान के कृषकों को 20 मई तक कपास की बिजाई करने के लिए कहा जा रहा है, जिससे कि कपास में गुलाबी सुंडी का प्रकोप न हो सके। इसके साथ ही कपास की उन्नत किस्मों के विषय में भी बताया जा रहा है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2818 किस्म 

RS of Narma (Cotton) 2818 नरमा आर.एस किस्म से 31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज हांसिल की जा सकती है। इसके रेशे की लंबाई 27.36 मिलीमीटर, मजबूती 29.38 ग्राम टेक्स आंकी गई है। 

टिंडे का औसत भार 3.2 ग्राम होता है। बिनौलों में 17.85 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है। इसकी ओटाई 34.6 प्रतिशत आंकी गई है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2827 किस्म 

RS of Narma (Cotton) 2827 नरमा (कपास) की आर.एस- 2827 किस्म से औसत 30.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 

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इसके रेशे की लंबाई 27.22 मिलीमीटर व मजबूती 28.86 ग्राम व टेक्स आंकी गई है। इसके टिंडे का औसत वजन 3.3 ग्राम होता है। इसके बिनौले में तेल की मात्रा 17.2 फीसद होती है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2013 किस्म

RS of Narma (Cotton) 2013 नरमा (कपास) की आरएस 2013 किस्म की ऊंचाई 125 से 130 सेमी होती है। इसकी पत्तियां मध्यम आकार की व हल्के हरे रंग की होती हैं। 

इसके फूलों की पखुड़ियों का रंग पीला होता है। यह किस्म 165 से 170 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में गुलाबी सुड़ी द्वारा हानि अन्य किस्मों की अपेक्षा कम होती है। 

यह किस्म पत्ती मरोड़ विषाणु बीमारी के प्रति भी अवरोधी है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 23 से 24 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

नरमा (कपास) की आरएसटी 9 किस्म 

RST 9 variety of Narma (cotton) नरमा (कपास) की आरएसटी 9 किस्म के पौधे की ऊंचाई 130 से 140 सेमी तक होती है। इसकी पत्तियां हल्के रंग की होती हैं और फूल का रंग हल्का पीला होता है। 

इसमें चार से छह एकांक्षी शाखाएं होती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम है, जिसका औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। यह किस्म 160 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

तेला (जेसिड) रोग से इस किस्म में कम हानि होती है। इस किस्म की ओटाई का प्रतिशत भी अन्य अनुमोदित किस्मों से अधिक है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 810 किस्म

RS of Narma (Cotton) 810 नरमा (कपास) की आर.एस. 810 किस्म के पौधे की ऊंचाई 125 से 130 सेमी होती है। इसके फूलों का रंग पीला होता है। इसके टिंडे का आकार छोटा करीब 2.50 से 3.50 ग्राम होता है। 

इसके रेशे की लंबाई 24 से 25 मिलीमीटर व ओटाई क्षमता 33 से 34 फीसद होती है। यह किस्म 165 से 175 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

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यह किस्म पत्ती मोड़क रोग की प्रतिरोधी है। इस किस्म से लगभग 23 से 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज हांसिल की जा सकती है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 875 किस्म

RS of Narma (Cotton) 875 नरमा (कपास) की आर.एस. 875 किस्म के पौधों की ऊंचाई 100 से 110 सेमी होती है। इसकी पत्तियां चौड़ी व गहरे हरे रंग की होती हैं। इसमें शून्य यानी जीरो से एक एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। 

इसके टिंडे का आकार मध्यम होता है और औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। इसके रेशे की लंबाई 27 मिलीमीटर होती है। इसमें तेल की मात्रा 23 प्रतिशत पाई जाती है, जो कि अन्य अनुमोदित किस्मों से ज्यादा है। 

इस किस्म की फसल 150 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई भी की जा सकती है।

बीकानेरी नरमा

बीकानेरी नरमा  (Bikaneri Narma) किस्म के पौधे की ऊंचाई लगभग 135 से 165 सेमी होती है। इसकी पत्तियां छोटी, हल्के हरे रंग की होती है और फूल छोटे और हल्के पीले रंग के होते हैं। 

इसमें चार से छह एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम और औसत वजन 2 ग्राम होता है। इसकी फसल 160 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में तेला (जेसिड) से अपेक्षाकृत कम हानि होती है।

मरू विकास (राज, एच.एच. 6) 

Desert Development (Kings, HH 6) नरमा (कपास) की मरू विकास (राज, एच.एच. 6) के पौधों की ऊंचाई 100 से 110 सेमी. और पत्तियां चौड़े आकार की होती हैं। इसका रंग हरे रंग का होता है। 

इसमें शून्य यानी जीरो से एक एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम और औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। इसके रेशे की लंबाई 27 मिलीमीटर होती है। 

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इसमे तेल की मात्रा 23 प्रतिशत पाई जाती है। इस किस्म की फसल 150 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई कर सकते हैं।

नरमा कपास की उन्नत किस्मों की बुवाई का तरीका 

नरमा कपास की उन्नत किस्मों की बुवाई के लिए 4 किलोग्राम प्रति बीघा की दर से बीज की जरूरत पड़ती है। बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति का फासला 67.50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे का फासला लगभग 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए।

नरमा की बुवाई का समय 15 अप्रैल से 15 मई तक माना जाता है। लेकिन किसान मई के अंत तक इसकी बिजाई कर सकते हैं।

सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल

सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल

किसान भाइयों खेत में खड़ी फसल जब तक सुरक्षित घर न पहुंच जाये तब तक किसी प्रकार की आने वाले कुदरती आपदा से  दिल धड़कता रहता है। किसान भाइयों के लिए खेत में खड़ी फसल ही उनके प्राण के समान होते हैं। इन पर किसी तरह के संकट आने से किसान भाइयों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। आजकल सर्दी भी बढ़ रही है। सर्दियों में शीतलहर और पाला भी कुदरती कहर ही है। कुदरती कहर के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। ओलावृष्टि, सर्दी, शीतलहर, पाला व कम सर्दी आदि की मुसीबतों से किसान भाई किस तरह से बच सकते हैं। आईये जानते हैं कि वे कौन-कौन से उपाय करके किसान भाई अपनी फसल को बचा सकते हैं।

जनवरी में चलती है शीतलहर

उत्तरी राज्यों में जनवरी माह में शीतलहर चलती है, जिसके चलते फसलों में पाला लगने की संभावना बढ़ जाती है। शीतलहर और पाले से सभी तरह की फसलों को नुकसान होता है। इसके प्रभाव से पौधों की पत्तियां झुलस जातीं हैं, पौधे में आये फूल गिर जाते हैं। फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं और जो नये दाने बने होते हैं, वे भी सिकुड़ जाते हैं। इससे किसान भाइयों को गेहूं की फसल का उत्पादन घट जाता है और उन्हें बहुत नुकसान होता है। यही वह उचित समय होता है जब किसान भाई फसल को बचा कर अपना उत्पादन बढ़ा सकते हैं क्योंकि जनवरी माह का महीना गेहूं की फसल में फूल और बालियां बनने का का समय होता है 

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कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं शीतलर व पाला से

किसान भाइयों गेहूं की फसल को शीतलहर व पाला से किस प्रकार के नुकसान हो सकते हैं, इस बारे में कृषि विशेषज्ञों ने जो जानकारी दी है, उनमें से होने वाले कुछ प्रमुख नुकसान इस प्रकार से हैं:-

  1. यदि खेत सूखा है और फसल कमजोर है तो सर्दियों में शीतलहर से सबसे अधिक नुकसान यह होता है कि पौधे बहुत जल्द ही सूख जाते हैं, पाला से इस प्रकार की फसल सबसे पहले झुलस जाती है।
  2. पाला पड़ने से पौधे ठुर्रिया जाते हैं यानी उनकी बढ़वार रुक जाती है। इस तरह से उनका उत्पादन काफी घट जाता है।
  3. शीतलहर या पाला से जिस क्षेत्र में तापमान पांच डिग्री सेल्सियश से नीचे जाता है तो वहां पर फसल का विकास रुक जाता है। वहां की फसल में दाने छोटे ही रह जाते हैं।
  4. शीतलहर से तापमान 2 डिग्री सेल्सियश से भी कम हो जाता है तो वहां के पौधे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, पत्तियां टूट सकतीं है। ऐसी दशा में बड़ी बूंदे पड़ने या बहुत हल्की ओलावृष्टि से फसल पूरी तरह से चौपट हो सकती है।



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बचाव के लिए रासायनिक व अन्य उपाय करने चाहिये

फसलों को शीतलहर से बचाने के लिए किसान भाइयों को रासायनिक एवं अन्य उपाय करने चाहिये। यदि संभव हो तो शीतलहर रोकने के लिए टटिया बनाकर उस दिशा में लगाना चाहिये जिस ओर से शीतलहर आ रही हो। जब शीतलहर को रोकने में कामयाबी मिल जायेगी तो पाला अपने आप में कम हो जायेगा।

कौन-कौन सी सावधानियां बरतें किसान भाई

किसान भाइयों को शीतलहर व पाले से अपनी गेहूं की फसल को बचाव के इंतजाम करने चाहिये। इससे किसान का उत्पादन भी बढ़ेगा तो किसान भाइयों को काफी लाभ भी होगा।  किसान भाइयों को कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिये, उनमें से कुछ खास इस प्रकार हैं:-

  1. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी के मौसम मे पाले से गेहूं की फसल को बचाने के लिए अनेक सावधानियां बरतनी पड़तीं हैं क्योंकि ज्यादा ठंड और पाले से झुलसा रोग की चपेट में फसल आ जाती है। मुलायम पत्ती वाली फसल के लिए पाला खतरनाक होता है। पाले के असर से गेहूं की पत्तियां पीली पड़ने लगतीं हैं। गेहूं की फसल को पाला से बचाने के लिए दिन में हल्की सिंचाई करें। खेत में ज्यादा पानी भरने से नुकसान हो सकता है।
  2. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान समय में कोहरा और पाला पड़ रहा है। पाले से बचाने के लिए गेहूं की फसल में सिंचाई के साथ दवा का छिड़काव करना होगा। गेहूं की फसल में मैंकोजेब 75 प्रतिशत या कापर आक्सी क्लोराइड 50 प्रतिशत छिड़काव करें।
  3. पाले से बचाव के लिए गेहूं की फसल में गंधक यानी डब्ल्यूजीपी सल्फर का छिड़काव करें। डस्ट सल्फर या थायो यूरिया का स्प्रे करें। इससे जहां पाला से बचाव होगा वहीं फसल की पैदावार बढ़ाने में भी सहायक होगा। डस्ट सल्फर के छिड़काव से जमीन व फसल का तापमान घटने से रुक जाता है और साथ ही यह पानी जमने नहीं देता है । किसान भाई डस्ट सल्फर का छिड़काव करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखें कि छिड़काव पूरे पौधे पर होना चाहिये। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक बना रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर व पाले की संभावना हो तो 15-15 दिन के अन्तराल से यह छिड़काव करते रहें।
  4. गेहूं की फसल में पाले से बचाव के लिए गंधक का छिड़काव करने से सिर्फ पाले से ही बचाव नहीं होता है बल्कि उससे पौधों में आयरन की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है, जो पौधों में रोगविरोधी क्षमता बढ़ जाती है और फसल को जल्दी भी पकाने में मदद करती है।
  5. पाला के समय किसान भाई शाम के समय खेत की मेड़ पर धुआं करें और पाला लग जाये तो तुरंत यानी अगले दिन सुबह ग्लूकोन डी 10ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। फायदा होगा।
  6. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दी के मौसम में पानी का जमाव हो जाता है जिससे कोशिकाएं फट जातीं हैं और पौधे की पत्तियां सूख जाती हैं और नतीजा यह होता है कि फसलों को भारी नुकसान हो जाता है। पालों से पौधों के प्रभाव से पौधों की कोशिकाओं में जल संचार प्रभावित हो जाता है और पौधे सूख जाते जाते हैं जिससे उनमें रोग व कीट का प्रकोप बढ़ जाता है। पाले के प्रभाव से फूल नष्ट हो जाते हैं।
  7. किसान भाई पाले से बचाव के लिए दीर्घकालीन उपाय के रूप में अपने खेत की पश्चिमी और उत्तरी मेड़ों पर शीतलहर को रोकने वाले वृक्षों को लगायें। इन पौधों में शहतूत, शीशम, बबूल, नीम आदि शामिल हैं। इससे शीत लहर रुकेगी तो पाला भी कम लगेगा और फसल को कोई नुकसान नहीं होगा।

ओलावृष्टि से पूर्व बचाव के उपाय करें किसान भाई

जैसा कि आजकल मौसम का मिजाज खराब चल रहा है। आने वाले समय में ओलावृष्टि की भी संभावना व्यक्त की जा रही है। ऐसे में गेहूं की फसल को ओलावृष्टि बचाव के उपाय किसान भाइयों को करने चाहिये। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

  1. कृषि विशेषज्ञों ने अपनी राय देते हुए बताया है कि यदि ओलावृष्टि की संभावना व्यक्त की जा रही हो तो किसान भाइयों को अपने खेतों में हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिये जिससे फसल का तापमान कम न हो सके।
  2. बड़े किसान ओला से फसल को बचाने के लिए हेल नेट का प्रयोग कर सकते हैं जबकि छोटे किसानों के पास सिंचाई ही एकमात्र सहारा है।
  3. छोटे किसानों को कृषि विशेषज्ञों ने यह सलाह दी है कि हल्की सिंचाई के बाद 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से नाइट्रोजन का छिड़काव करना चाहिये। इससे पौधे मजबूत हो जाते हैं और वो ओलावृष्टि के बावजूद खड़े रहते हैं। इसके अलावा शीत लहर में भी पौधे गिरते नहीं है।
गाजर की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों की विस्तृत जानकारी

गाजर की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों की विस्तृत जानकारी

गाजर की पैदावार कच्चे के रूप में सेवन करने के लिए किया जाता है। गाजर एक बेहद ही लोकप्रिय सब्जी फसल है। लोगों द्वारा इसके जड़ वाले हिस्से का उपयोग खाने के लिए किया जाता है। जड़ के ऊपरी हिस्से को पशुओ को खिलाने के लिए उपयोग में लाते हैं। इसकी कच्ची पत्तियों को भी सब्जी तैयार करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। गाजर के अंदर विभिन्न प्रकार के गुण विघमान होते हैं, जिस वजह से इसका उपयोग जूस, सलाद, अचार, मुरब्बा, सब्जी एवं गाजर के हलवे को अधिक मात्रा में बनाने के लिए करते हैं। यह भूख को बढ़ाने एवं गुर्दे के लिए भी बेहद फायदेमंद होती है। इसमें विटामिन ए की मात्रा सबसे ज्यादा उपस्थित होती है। इसके साथ ही इसमें विटामिन बी, डी, सी, ई, जी की भी पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है। गाजर में बिटा-केरोटिन नामक तत्व उपस्थित होता है, जो कैंसर की रोकथाम में ज्यादा लाभकारी होता है। पहले गाजर केवल लाल रंग की होती थी। लेकिन वर्तमान समय में गाजर की विभिन्न उन्नत किस्में हैं, जिसमें पीले एवं हल्के काले रंग की भी गाजर पायी जाती है। भारत के लगभग समस्त क्षेत्रों में गाजर की पैदावार की जाती है।

गाजर की पैदावार से पहले खेत की तैयारी

गाजर का उत्पादन करने से पहले खेत की बेहतरीन ढ़ंग से गहरी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूर्णतय बर्बाद हो जाते हैं। जुताई के उपरांत खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, इससे भूमि की मृदा नम हो जाती है। नम जमीन में रोटावेटर लगाकर दो से तीन बारी तिरछी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मृदा में उपस्थित मिट्टी के ढेले टूट जाते हैं और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को एकसार कर दिया जाता है।

गाजर के खेत में उवर्रक कितनी मात्रा में देना चाहिए

जैसा कि हम सब जानते हैं कि किसी भी फसल की बेहतरीन पैदावार के लिए खेत में समुचित मात्रा में उवर्रक देना आवश्यक होता है। इसके लिए खेत की पहली जुताई के उपरांत खेत में 30 गाड़ी तक पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के अनुरूप देना होता है। इसके अतिरिक्त खेत की अंतिम जुताई के समय रासायनिक खाद के तोर पर 30 KG पोटाश, 30 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के अनुसार करना होता है। इससे उत्पादन काफी ज्यादा मात्रा में अर्जित होती है। ये भी पढ़े: गाजर का जडोंदा रोग एवं उनके उपाय

गाजर की खेती का समय, तरीका एवं बुवाई

गाजर के बीजों की बुवाई बीज के रूप में की जाती है। इसके लिए एकसार जमीन में बीजो का छिड़काव कर दिया जाता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 6 से 8 KG बीजों की जरूरत पड़ती है। इन बीजों को खेत में रोपने से पूर्व उन्हें उपचारित कर लें। खेत में बीजों को छिड़कने के उपरांत खेत की हल्की जुताई कर दी जाती है। इससे बीज खेत में कुछ गहराई में चला जाता है। इसके उपरांत हल के माध्यम से क्यारियों के रूप में मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है। इसके पश्चात फसल में पानी लगा दिया जाता है। गाजर की एशियाई किस्मों को अगस्त से अक्टूबर माह के बीच लगाया जाता है। साथ ही, यूरोपीय किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच की जाती है।

गाजर फसल की सिंचाई कब की जाती है

गाजर की फसल की प्रथम सिंचाई बीज रोपाई के शीघ्र बाद कर दी जाती है। इसके पश्चात खेत में नमी स्थिर रखने के लिए शुरुआत में सप्ताह में दो बार सिंचाई की जाती है। वहीं, जब बीज जमीन से बाहर निकल आए तब उन्हें सप्ताह में एक बार पानी दें। एक माह के बाद जब बीज पौधा बनने लगता है, उस दौरान पौधों को कम पानी देना होता है। इसके उपरांत जब पौधे की जड़ें पूर्णतय लंबी हो जाये, तो पानी की मात्रा को बढ़ा देना होता है।

गाजर की फसल में खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

गाजर की फसल में खरपतवार पर काबू करना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए खेत की जुताई के समय ही खरपतवार नियंत्रण दवाइयों का उपयोग किया जाता है। इसके उपरांत भी जब खेत में खरपतवार नजर आए तो उन्हें निराई – गुड़ाई कर खेत से निकाल दें। इस दौरान अगर पौधों की जड़ें दिखाई देने लगें तो उन पर मिट्टी चढ़ा दी जाती है। ये भी पढ़े: आगामी रबी सीजन में इन प्रमुख फसलों का उत्पादन कर किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं

गाजर की उपज एवं लाभ क्या-क्या होते हैं

गाजर की उम्दा किस्मों के आधार पर ज्यादा मात्रा में पैदावार प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 300 से 350 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं। कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं, जिनसे सिर्फ 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार अर्जित हो पाती है। कम समयांतराल में उपज प्राप्त कर किसान भाई बेहतरीन मुनाफा भी कमा लेते हैं। गाजर का बाजारी भाव शुरुआत में काफी अच्छा होता है। यदि कृषक भाई ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर गाजर को समुचित भाव पर बेच देते हैं, तो वह इसकी एक बार की फसल से 3 लाख तक की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। गाजर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद होती है।
राजस्थान सरकार देगी निशुल्क बीज : बारह लाख किसान होंगे लाभान्वित

राजस्थान सरकार देगी निशुल्क बीज : बारह लाख किसान होंगे लाभान्वित

राजस्थान सरकार पहली बार कृषि के उत्थान के लिए अलग से कृषि बजट लाई है. इस बजट में मिलेट प्रमोशन मिशन के लिए 100 करोड़ का प्रावधान किया गया है. इसके तहत फसल सुरक्षा मिशन के जरिए एक करोड़ पच्चीस लाख मीटर मे तारबंदी के लिए सहायता दी जाएगी, वहीं फसलों को आवारा पशुओं से बचाने के लिए हर गांव में एक नंदी शाला बनाने की योजना भी लाई गई है. जैविक खेती मिशन शुरू की जाएगी और साथ ही कस्टम हायरिंग सेंट्रल को १००० ड्रोन दिए जाने का प्रावधान किया गया है. अब होगी ड्रोन से राजस्थान में खेती, किसानों को सरकार की ओर से मिलेगी 4 लाख की सब्सिडी राजस्थान के कृषि बजट में की गई घोषणाओं को लेकर सरकार किसानों के बीच जा रही है और पूरी जानकारी दे रही है. जयपुर के दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र में बजट की घोषणाओं को लेकर एक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया. कार्यक्रम में किसानों को जानकारी दी गई कि अभी तक १५००० मूंग और ४२००० संकर बाजरा के बीजों का निशुल्क वितरण किसानों के बीच किया गया है. कार्यक्रम में जयपुर के अतिरिक्त जिला कलेक्टर अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि किस प्रकार अलग से पेश किए गए इस बजट के प्रावधानों का किसानों को लाभ मिलेगा और इससे उत्पादकता बढ़ेगी. खेती किसानी को बढ़ाने के लिए राजस्थान सरकार द्वारा १२ लाख लघु एवं सीमांत किसानों को निशुल्क बीज मुहैया कराई जानी है. इसके तहत ८ लाख संकर मक्का मिनीकट, १० लाख बाजरा, २.७४ लाख मूंग, २६३१५ मोठ, ३१२७५ उड़द एवं १ लाख ढेंचा बीज का किसानों के बीच मुफ्त में वितरण किया जाना है, जिससे छोटे एवं सीमांत किसानों के बीज को लेकर हो रही परेशानी समाप्त हो जाएगी. साथ ही खेती की लागत में भी कमी आएगी और आय में वृद्धि होगी.

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रबी या खरीफ किसी भी सीजन में किसानों को अच्छी बीज प्राप्त करने में काफी समस्या आती है. पैसा खर्च करने के बाद भी कई बार ऐसा होता है कि उन्हें नकली बीज मिलता है, जिससे फसल अच्छी नहीं होती और किसानों को आर्थिक नुकसान भी होता है. मौके पर कृषि पदाधिकारियों ने बताया कि २०२२ - २३ के कृषि बजट में किसान कल्याण कोष की रकम को दो हजार करोड़ से बढ़ाकर पांच हजार करोड़ रूपया कर दिया गया है. कृषि साथी योजना के अंतर्गत ११ मिशन चलाए जाएंगे, जिसके लिए प्रशासनिक स्वीकृति भी दे दी गई है. कई काम आरंभ भी किए जा चुके हैं. फार्म पॉन्ड और डिग्गी निर्माण में किसान रुचि ले रहे हैं. वही ग्रीन हाउस, शेड नेट हाउस, लोड टलन के लिए भी बड़ी मात्रा में किसानों का आवेदन प्राप्त हो रहा है.

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जयपुर में आयोजित इस सेमिनार में अधिकारियों ने बताया कि जिले में २० समुदायिक जल स्रोतों की स्थापना हो चुकी है. सांगानेर, बगरू, शाहपुरा में नवीन मंडी और मिनी फूड पार्क के लिए निशुल्क भूमि आवंटन का काम जारी है. वही सेमिनार में उपस्थित प्रतिभागियों ने बताया यह राज्य में ११४ नए दुग्ध उत्पादन सहकारी समितियों का पंजीकरण हुआ है, जिसमें केवल जयपुर में ६० समितियां है. इंदिरा गांधी नहर परियोजना में लगभग एक हजार छह सौ करोड़ रुपए की लागत से जीर्णोधार एवं सिंचाई संबंधी कार्य किया जा रहा है.
गायों को छुट्टा छोड़ने वालों पर कसा जायेगा शिकंजा

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आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा को लेकर सरकार का कड़ा कदम

मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) श्याम बहादुर सिंह ने रविवार को कहा कि सरकार ने
गौशालाएं (नंदीशालाएं) बनायी हैं, परन्तु कई परिवार फिर भी अपने मवेशियों को इन गौशालाओं में ले जाने की जगह सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के शाहजहांपुर जनपद में गायों को खुला छोड़े जाने के मामलों पर प्रतिबंध लगाने हेतु प्रशासन ने प्रत्येक गांव एवं प्रत्येक घर में मवेशियों की संख्या की सूची बनाना प्रारम्भ कर दिया है। प्रशासनिक अधिकारी ने कहा है, कि इस प्रयास से मवेशियों की संख्या की जानकारी में मदद मिलेगी एवं यह भी ज्ञात होगा कि किसने कितनी गायों को दूध न देने की वजह से खुला छोड़ दिया है। जिन्होंने छोड़ा है उनसे इसका कारण पूछा जायेगा।


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उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद में ५६ गौशालाएं हैं जिनमें १२,६६९ गायें हैं, चार गौशालाएं और स्थापित की जाएँगी। सीडीओ ने कहा कि उन्होंने सरकारी कर्मचारियों को निर्देशित किया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों के ग्रामीणों से बात करें एवं उन्हें अपने मवेशियों को दूध न देने पर खुला छोड़ने से मना करें। सीडीओ ने बताया कि प्रत्येक गांव के हर घर में गायों की संख्या की जानकारी के लिए एक सर्वेक्षण चलाया गया है। इस दौरान ग्रामीणों से पूछा जाएगा कि दूध न देने की स्थिति में कितने लोगों ने अपने मवेशियों को खुला छोड़ दिया है। मवेशियों को खुला छोड़ने के कारण कई सारे सड़क हादसे हो जाते हैं।

आवारा पशुओं ने किसानों को फसल के विकल्प चुनने के लिए किया विवश

जनपदों में पशु तस्करों एवं गोहत्या में संदिग्ध लोगों के विरुद्ध सख्त कारवाई हेतु कदम उठाये जा रहे हैं। इसी बीच कई किसानों ने छुट्टा मवेशियों की समस्या पर अपनी पीड़ा जाहिर की है। मिर्जापुर थाना क्षेत्र के काकर कठा गांव निवासी किसान सर्वेश कुमार कश्यप ने बताया, ‘मेरे पास छह एकड़ भूमि है एवं मेरे परिवार में आठ सदस्य हैं। महिलाएं दिन में गृहकार्य करके फसलों की देखरेख करती हैं एवं पुरुष रात्रि को आवारा पशुओं से फसल की देखरेख करते हैं। आवारा पशुओं के झुंड को फसल से दूर करने हेतु पटाखे आदि का प्रयोग करते हैं। छुट्टा पशुओं के द्वारा फसल में होने वाले नुकसान के भय से अधिकतर किसानों को फसलों के विकल्प अपनाने के लिए विवश कर दिया है।


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आवारा पशु इन फसलों को शीघ्रता से नष्ट कर देते हैं

अल्लाहगंज क्षेत्र के मनिहार गांव के एक सीमांत किसान भगत कुमार शर्मा ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व तक वह बड़ी मात्रा में चने एवं अरहर की खेती करते थे, लेकिन आवारा पशुओं इन फसलों को आसानी से नष्ट कर देते हैं। उन्होंने बताया, अधिकतर किसान अब सिर्फ धान, गेहूं एवं गन्ना को विकल्प के रूप में चुन रहे हैं। बतादें कि मीरानपुर कटरा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक राजेश यादव ने कहा कि वह स्वयं के गांव शिवरा से शाहजहांपुर शहर तक, प्रतिदिन ३५ किलोमीटर की यात्रा के दौरान आवारा पशुओं की वजह से होने वाली सड़क दुर्घटनाएं देखते हैं। इसी सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि कुछ दिन पूर्व दो बैलों की आपस में भिड़ंत होने के कारण मेरी गाड़ी उनसे सड़क पर टकरा गयी, जिससे उनके साथ और भी दो लोग चोटिल हो गए। आवारा पशु प्रतिदिन २ से ४ सड़क दुर्घटनाओं की वजह बन रहे हैं।
अब किसानों को आवारा जानवरों से मिलेगी निजात, ये सरकार दे रही है खेत की तारबंदी के लिए 60 फीसदी पैसा

अब किसानों को आवारा जानवरों से मिलेगी निजात, ये सरकार दे रही है खेत की तारबंदी के लिए 60 फीसदी पैसा

भारत में इन दिनों आवारा और छुट्टा जानवर किसानों के लिए बड़ी मुसीबत बने हुए हैं, जिसके कारण किसानों को हर साल नुकसान झेलना पड़ता है। आवारा जानवर किसानों की फसलों को उजाड़ देते हैं, जिससे किसानों के उत्पादन में असर पड़ता है। इसके साथ ही आवारा और छुट्टा जानवरों के अलावा जंगली पशु भी किसानों की फसलों को भरपूर नुकसान पहुंचाते हैं। खेतों में खड़ी फसलों को नीलगाय और अन्य जंगली पशु चौपट कर देते हैं। इन समस्याओं का असर सीधे किसानों की आय पर पड़ता है। इस समस्या का एकमात्र उपाय है, कि किसान अपने खेत में तारबंदी करवा ले। इससे आवारा पशु और जंगली जानवर किसानों के खेत में नहीं पहुंचे, जिससे फसल को सीधा नुकसान नहीं होगा। लेकिन अगर आज के युग की बात करें तो तारबंदी करवाना एक बेहद महंगा सौदा है। जो हर किसान के बस की बात नहीं है। एक बार तारबंदी करवाने में किसानों के लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं। इसलिए किसान इस तरह के उपायों को अपनाने से कतरा रहे हैं। किसानों की इस समस्या को देखते हुए अब राजस्थान सरकार आगे आई है। राजस्थान सरकार ने घोषणा की है, कि राज्य सरकार अपने राज्य के किसानों के लिए तारबंदी करवाने के लिए कुल खर्च का 60 फीसदी पैसा देगी। इसके तहत राजस्थान सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए मुख्यमंत्री किसान साथी योजना चलाई है। जिसमें सरकार ने बताया है, कि फसल सुरक्षा मिशन के तहत जानवरों से फसल की सुरक्षा के लिए किसानों को अधिकतम 60 फीसदी अनुदान दिया जाएगा। अगर रुपये की बात करें तो यह अनुदान अधिकतम 48,000 रुपये तक दिया जाएगा।


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इस योजना के अंतर्गत न आने वाले किसानों को भी राजस्थान सरकार तारबंदी के कुल खर्च का 50 फीसदी अनुदान देती है। अगर रुपये की बात करें तो यह आर्थिक मदद अधिकतम 40,000 रुपये तक हो सकती है। सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है, कि इस साल के बजट में सरकार ने तारबंदी के लिए अलग से प्रावधान किया है। नए कृषि बजट में राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन के तहत 35,000 किसानों को अगले 2 साल में अनुदान दिया जाएगा। यह अनुदान 100 करोड़ रुपये का होगा, जिसके अंतर्गत राज्य के खेतों में 25 लाख मीटर की तारबंदी की जाएगी।

अनुदान प्राप्त करने के लिए ये किसान होंगे पात्र

राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन के तहत तारबंदी करवाने के लिए किसान की खुद की कृषि योग्य 1.5 हेक्टेयर भूमि एक ही जगह पर होनी चाहिए। अगर किसान की 1.5 हेक्टेयर भूमि एक ही जगह पर नहीं है, तो 2 या 3 किसान संयुक्त रूप से अपनी 1.5 हेक्टेयर जमीन की तारबंदी करवाने के लिए मिलकर इस योजना के अंतर्गत आवेदन कर सकते हैं।

अनुदान प्राप्त करने के लिए यहां करें आवेदन

इस योजना के अंतर्गत लाभ उठाने के लिए किसान भाई अपने नजदीकी जिले के कृषि विभाग के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। इसके साथ ही अधिक जानकारी के लिए हेल्पलाइन नंबर 18001801551 पर कॉल करके जानकारी हासिल कर सकते हैं। इसके साथ ही किसान भाई राजस्थान किसान साथी पोर्टल पर भी विजिट कर सकते हैं। इस पोर्टल पर राजस्थान सरकार किसान भाइयों से समय-समय पर तारबंदी के लिए आवेदन मांगती रहती है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को अधिकतम 400 मीटर तक की तारबंदी के लिए अनुदान मिल सकता है।
इन राज्यों की सरकारें खेत के चारों तरफ ताराबंदी करवाने के लिए दे रही हैं सब्सिडी

इन राज्यों की सरकारें खेत के चारों तरफ ताराबंदी करवाने के लिए दे रही हैं सब्सिडी

एक बार फसल उत्पादन के बाद उसकी देखरेख में भी किसानों को बहुत ज्यादा समय और धन राशि लगाने की जरूरत होती है। कभी-कभी छोटी-मोटी दुर्घटनाओं या फिर प्राकृतिक कारणों से पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। जिसका पूरा नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है। आजकल हम देख रहे हैं, कि देश में बहुत से लाखों से आवारा पशुओं की संख्या बढ़ने की खबर आती रहती है। यह पशु इधर-उधर किसी आश्रय की तलाश में घूमते रहते हैं। जब नहीं भूख लगती है, तो ज्यादातर ये खेतों की ओर अपना रुख करते हैं। भूखे पशुओं के पास कोई चारा नहीं होता वह पूरी की पूरी फसल को खा जाते हैं या फिर बर्बाद कर देते हैं।
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सरकार समय-समय पर आवारा प्रश्नों के रहने के लिए भी कुछ ना कुछ सुविधा का इंतजाम करती रहती है। लेकिन साथ ही हमें खेतों में खड़ी हुई अपनी फसल को बचाने के लिए भी कुछ ना कुछ करने की जरूरत है। हाल ही, में राजस्थान सरकार ने इसका समाधान खोज निकाल लिया है। राजस्थान में चलाई जा रही मुख्यमंत्री कृषक साथी योजना के तहत फसल सुरक्षा मिशन अभियान चलाया जा रहा है। जिसके तहत खेत की तारबंदी के लिए नए मापदंड निर्धारित हुए हैं। इससे फसल की सुरक्षा करने में खास मदद मिलेगी।

फेंसिंग की ऊंचाई करवाएं 15 फीट ऊंचाई

किसानों के सुझावों पर अमल करते हुए राजस्थान सरकार ने फसल सुरक्षा मिशन के तहत तारबंदी के मापदंडों में बदलाव किया है। इस मामले में कृषि आयुक्त कानाराम शर्मा बताते हैं, कि अब किसान तारबंदी में 6 हॉरिजोंटल और 2 डायगोनल वायर के स्थान पर 5 होरिजेंटल और 2 डायगोनल के हिसाब से तारबंदी करा सकते हैं। अगर पहले की बात करें तो पहले 10 फीट की दूरी पर ही पिलर लगाकर ही तराबंदी करवाई जा सकती थी। लेकिन अब इस दूरी को बढ़ाकर 15 फीट कर दिया गया है। अब 15 फीट की दूरी पर पिलरों को स्थापित करके फेंसिंग की जा सकती है। पहले एक्स्ट्रा पिलर का सपोर्ट 10 वें पिलर पर दिया जाता था। लेकिन अब उसमें भी बदलाव करते हुए इसे 15वें पिलर पर कर दिया गया है।

किस हिसाब से मिलेगा अनुदान

अजय सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन की बात माने तो किसान या तो केवल अकेले ही या फिर किसानों का समूह बनाकर तारबंदी करवा सकते है। फसल सुरक्षा मिशन के तहत हर किसान को 400 रनिंग मीटर की सीमा तक की तारबंदी के लिए ही अनुदान दिया जाएगा। अगर आपके खेत की परिधि से ज्यादा है तो आपको खुद का खर्च करते हुए खेत के चारों ओर कच्ची पक्की दीवार या फिर तारबंदी करवानी होगी।

कितनी होगी अनुदान की राशि

  • मुख्यमंत्री कृषक साथी स्कीम के तहत फसल सुरक्षा मिशन 'तारबंदी योजना' में आवेदन करके किसान 40 से 60 फीसदी तक अनुदान ले सकते हैं।
  • लघु और सीमांत किसानों के लिए तारबंदी की लागत का 60% सब्सिडी यानी अधिकतम 48,000 रुपये का अनुदान दिए जाने की बात की गई है।
  • अन्य वर्ग के किसानों के लिए तारबंदी के खर्च पर 50% की सब्सिडी या 40,000 रुपये का अनुदान दिया जाएगा।

कहां करें आवेदन

अगर आप राजस्थान के किसान हैं और खुद की जमीन पर खेती करते हैं। तो आप जिले के कृषि विभाग के कार्यालय में जाकर तारबंदी करवाने के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं। खेत की तारबंदी पर अनुदान लेने के लिए राज किसान पोर्टल rajkisan.rajasthan.gov.in पर भी आवेदन कर सकते हैं।
मूंग की खेती में लगने वाले रोग एवं इस प्रकार से करें उनका प्रबंधन

मूंग की खेती में लगने वाले रोग एवं इस प्रकार से करें उनका प्रबंधन

इन दिनों देश में जायद मूंग की बुवाई चल रही है। कुछ दिनों में ही यह ग्रीष्मकालीन मूंग खेतों में लहलहाने लगेगी। पौधों के बढ़ने के साथ ही मूंग की खेती में कई प्रकार के रोग लगना प्रारंभ हो जाते हैं जिनके कारण फसल बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं  मूंग की फसल में लगने वाले रोगों के बारे में। साथ ही रोगों का प्रबंधन किस प्रकार से किया जाए ताकि फसल को नुकसान न हो, इसके बारे में भी जानकारी दी जाएगी।

पीला मोज़ेक रोग

यह मूंग की फसल में लगने वाला विषाणु जनित रोग है, जो तेजी से फैलता है। यह सबसे ज्यादा सफेद मक्खियों के कारण फैलता है। इसकी वजह से फसल कई बार पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। जब पौधों में इसका अटैक होता है तो पत्तियों में पीले धब्बे पड़ जाते हैं। कुछ समय बाद पत्तियां पूरी तरह से पीली होकर सूख जाती हैं। जिन पेड़ों में इसका ज्यादा असर होता है उनमें फलियों और बीजों पर भी पीले धब्बे दिखाई देते हैं। ये भी पढ़े: फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

इस प्रकार से पाएं इस रोग से छुटाकारा

इस रोग से निपटने के लिए बुवाई एक समय ऐसी किस्मों का चयन करें जिनमें इस रोग का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए बुवाई के लिए मूंग की टी.जे.एम.-3, के-851, पंत मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम. -1 जैसी किस्मों को ले सकते हैं। इसके अलावा यदि प्रारम्भिक अवस्था में ही रोग लगना शुरू हो गया है तो पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। साथ ही बाजार में उपलब्ध कीटनाशकों का प्रयोग भी कर सकतें हैं।

श्याम वर्ण रोग

यह एक खतरनाक रोग है जिसके कारण उत्पादन में 25 से लेकर 60 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। अगर आसमान में बादल छाए हुए है तो फसल में यह रोग आसानी से लग सकता है। इस रोग के कारण पेड़ की पत्तियों में गंभीर धब्बे दिखाई देते हैं। इससे पत्तियों में छेद हो जाते हैं और अंततः पत्तियां झड़ जाती हैं। पेड़ों के तनों पर गहरे और गंभीर घाव बन जाते है और अंततः नए पौधे मर जाते हैं। ये भी पढ़े: चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग और इनका प्रबंधन

इस प्रकार से करें इस रोग का प्रबंधन

पेड़ों में लक्षण दिखाई देने पर 15 दिनों के अंतराल पर जिऩेब या थीरम का छिडक़ाव करें। इसके पहले बुवाई के पहले भी बीजों को उपचारित करें, इसके उपरांत बुवाई करें। साथ ही कार्बेन्डाजिम या मेनकोजेब का छिड़काव भी इस रोग को जल्द ही खत्म कर देता है।

चूर्णी फफूंद रोग

यह वायु द्वारा परपोषी पौधों के द्वारा फैलने वाला रोग है जो गर्मी और शुष्क वातावरण में फैलता है। अपनी उग्र अवस्था में यह रोग फसल का 21% हिस्सा नष्ट कर सकता है। इस रोग के कारण मूंग के पौधों की पत्तियों ने निचले हिस्सों में गहरे रंग के धब्बे प्रकट होते हैं। इसके साथ ही छोटी-छोटी बिंदियां भी दिखाई देने लगती हैं। समय के साथ ही इन बिंदियों और धब्बों का आकार बढ़ने लगता है और यह रोग पत्तियों के साथ पौधों के तनों पर भी फैल जाता है। इससे अंततः पौधे पूरी तरह से सूख जाते हैं। ये भी पढ़े: मध्य प्रदेेश में एमएसपी (MSP) पर 8 अगस्त से इन जिलों में शुरू होगी मूंग, उड़द की खरीद

इस प्रकार से करें चूर्णी फफूंद रोग का प्रबंधन

फसल में इस रोग से निपटने के लिए  कवकनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम या केराथेन के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। इनका छिड़काव रोग के लक्षण दिखते ही शुरू कर दें। इसके बाद 15-20 दिन के अंतराल में इनका छिड़काव करते रहें।

सर्कोस्पोरा पर्णदाग रोग

यह एक कवक रोग है जो मूंग की फसल में बरसात के मौसम में तथा शुष्क मौसम में फैलता है। गर्म तापमान, लगातार वर्षा, और उच्च आर्द्रता के कारण यह रोग मूंग के पौधे को अपनी जद में ले लेता है। इस रोग के कारण आमतौर पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं जो लाल बाहरी किनारों से घिरे होते हैं। जब यह रोग फसल में ज्यादा फैल जाता है तो मूंग के पेड़ों की शाखाओं और तने पर भी धब्बे दिखाई देते हैं।

सर्कोस्पोरा पर्णदाग रोग का प्रबंधन

संक्रमित फसल अवशेषों को नष्ट करने के साथ ही खेत की सफाई से यह रोग नियंत्रित होता है। बुवाई से पहले कवकनाशी कैप्टान या थीरम से बीज को उपचारित कर लें। इसके साथ ही मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू. पी. और कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू. पी. के घोल का छिड़काव करने से भी इस रोग के प्रसार में नियंत्रण पाया जा सकता है।

लीफ कर्ल

यह एक विषाणु जनित रोग है जो मक्खियों के कारण या बीजों के कारण फैलता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियों में झुर्रियां आने लगती हैं। इसके साथ ही पत्तियां जरूरत से ज्यादा बड़ी होने लगती हैं। इससे पौधे का विकास रुक जाता है और पौधे में नाम मात्र की फलियां आती है। बुवाई के 4 से 5 सप्ताह के भीतर ही पौधों में ये लक्षण दिखाई देने लग जाते हैं। इस रोग से संक्रमित पौधों को खेत में दूर से ही पहचाना जा सकता है। ये भी पढ़े: इस राज्य के किसान फसल पर हुए फफूंद संक्रमण से बेहद चिंतित सरकार से मांगी आर्थिक सहायता

लीफ कर्ल रोग का प्रबंधन

इस रोग को नियंत्रित करने के लिए बुवाई से पहले बीज को इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करना चाहिए। इसके साथ ही बुवाई के 15 दिनों के बाद इमिडाक्लोप्रिड को पानी में घोलकर छिड़काव भी करना चाहिए। इससे लीफ कर्ल रोग को फसल पर प्रकोप कम हो सकता है।
गाजर का जडोंदा रोग एवं उनके उपाय

गाजर का जडोंदा रोग एवं उनके उपाय

डॉ. हरि शंकर गौड़ एवं डॉ. उजमा मंजूर कृषि महाविद्यालय, गलगोटियास विश्वविद्यालय ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश

गाजर स्वास्थ्य के लिए आवश्यक विटामिन ए, खनिज और आहार फाइबर का बहुत महत्वपूर्ण स्रोत है। गाजर की मूसला जड़ का सेवन करने से खून की कमी और आंखों की रोशनी से संबंधित बीमारियों से बचा जा सकता है। गाजर को सलाद के रूप में कच्चा खाया जाता है या सब्ज़ी, करी बनाने के लिए पकाया जाता है। गाजर का हलवा या खीर लोकप्रिय स्वास्थ्यवर्धक मिठाई हैं । ताजा गाजर का रस अत्याधिक पौष्टिक और ताजगी-भरा पेय है। लाल या बैंगनी गाजर को किण्वन करके तैयार की गई कांजी एक पौष्टिक, स्वादिष्ट खट्टा पेय है, जो गर्मियों में बहुत तरोताजा कर देती है। गाजर को विभिन्न रूपों में अचार या सूखे टुकड़े, फ्लेक्स या पाउडर के रूप में संरक्षित किया जा सकता है। इनकी बाजार में बहुत मांग है। जाहिर है, लाल, पीली या बैंगनी
गाजर का उत्पादन किसानों के लिए फायदे की खेती है। व्यापारियों और उद्योगों को भी लाभदायक व्यवसाय के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले गाजर की आवश्यकता होती है। स्वस्थ गाजर 2-6 सेंटीमीटर की औसत मोटाई के साथ 10-30 सेंटीमीटर लंबी टेपरिंग मूसला जड़ें होती हैं। वे अच्छी पानी की उपलब्धता और जल निकासी वाली हल्की रेतीली, बलुई मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ती हैं। अधिकतर किसान गाजर को एक ही खेत में बार-बार, या अन्य सब्जियों के साथ मिश्रित फसलों में उगाते हैं। अक्सर वे पाते हैं कि कुछ गाजर विकृत हैं और दो या दो से अधिक शाखाओं में विभाजित हैं जो सीधी या टेढ़ी मेढ़ी  हो सकती हैं। अक्सर वे कई बारीक  जड़ों से ढके होते हैं। ऐसी गाजर बाजार में स्वीकार नहीं की जाती है। इस प्रकार, किसानों को उनके श्रम, समय और निवेश की भारी हानि होती है। उनको बहुत आर्थिक घाटा हो जाता है। गाजर जडोंदा रोग का प्रमुख कारण जड़-गाँठ सूत्रकृमि / नेमाटोड द्वारा संक्रमण है। ये अधिकांश सब्जियों की फसलों के गंभीर कीट हैं। ये बहुत छोटे, पतले कृमि होते हैं जिन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। ये बड़ी संख्या में मिट्टी में पाए जाते हैं। पौधों की नई जड़ों में प्रवेश करते हैं और जड़ के ऊतकों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। वे पास के जड़ के ऊतकों की सूजन  (जड़-गाँठ ) का कारण बनते हैं। इससे जड़ द्वारा मिट्टी से लिए गए पोषक तत्व और जल पौधे के ऊपरी भागों तक नहीं पहुँच पाते हैं। इससे पौधों की वृद्धि और उपज में कमी आती है। छोटे और पीले रंग के पौधे खेतों में कुछ स्थानों पर देखे जाते हैं जहां इन पादप परजीवी सूत्रकृमियों का जनसंख्या घनत्व अधिक होता है। एक चम्मच मिट्टी में सैकड़ों सूत्रकृमि हो सकते हैं ।

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सूत्रकृमियो द्वारा क्षतिग्रस्त जड़ों पर कवक और बैक्टीरिया भी हमला करते हैं और जटिल रोग बनाते हैं। इन सूत्रकृमियो की एक बहुत विस्तृत मेजबान श्रृंखला है और 3000 से अधिक विभिन्न प्रकार के पौधों को संक्रमित करते हैं। टमाटर, बैंगन, भिंडी, चौलाई, आलू, चुकंदर, मिर्च, गाजर, खीरे,  लौकी, तोरी, करेला, टिंडा, कद्दू, स्क्वैश, शरबत, तरबूज, कस्तूरी-खरबूज आदि सभी फसलें सूत्रकृमियो से संक्रमित होते  हैं। इन सूत्रकृमियों का जनसंख्या घनत्व वर्षों में मिट्टी में बढ़ता रहता है। जब किसानों द्वारा एक या एक से अधिक मौसमों में या गाजर के साथ एक ही खेत में ऐसी फसलें उगाई जाती हैं, तो ये सूत्रकृमि गाजर की युवा बढ़ते नल-जड़ में प्रवेश कर जाते हैं और उस बिंदु पर इसकी वृद्धि को रोक देते हैं। इसकी वजह से पौधे टैप-रूट की एक और शाखा पैदा करता है। नई नल-जड़ भी संक्रामक सूत्रकृमि से संक्रमित हो सकती है, और वह जड़ भी शाखित हो जाती है। जब एक ही पौधे की मूसला जड़ की कई शाखाएँ बढ़ रही होती हैं, तो वे छोटी और कभी-कभी मुड़ी हुई रहती हैं । इस प्रकार, ये गाजर लगातार पोषक तत्वों और पानी का उपभोग कर रहे हैं, लेकिन सामान्य गाजर को अच्छी दिखने वाली सीधी सुडोल गाजर नहीं बनाते हैं। सूत्रकृमि के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के उपाय पादप परजीवी सूत्रकृमि अपने जीवन चक्र के एक या अधिक चरण मिट्टी में व्यतीत करते हैं। एक बार जब वे पौधे की जड़ों में प्रवेश कर जाते हैं, तो उपचार करने का कोई तरीका उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए, खेत में फसल बोने से पहले सूत्रकृमि की संख्या को कम करने के लिए कई तरीकों को अपनाने की आवश्यकता होती है। जड़-गांठ सूत्रकृमि द्वारा गाजर की जड़ों के संक्रमण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं: 1. ऐसे खेत में गाजर कभी  न उगाएं जिसमें पिछले मौसम में उगाई गई सब्जियों की फसल में छोटी या बड़ी सूजन या जड़-गांठ हो । कटाई के समय फसलों की बारीक जड़ों को धीरे से निकालें, धीरे से पानी से धो लें और जड़-गांठ सूत्रकृमि देखने के लिए आवर्धक लेंस से जड़ का निरीक्षण करें। 2. फसल चक्र अपनाएं। गाजर को उन खेतों में उगाया जा सकता है जिनमें पिछली फसल गेहूँ, जौ, जई, सरसों, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तिल आदि थी। 3. मिट्टी को गर्म और सुखाने के लिए खेत की गहरी गर्मियों की जुताई करें।  सूत्रकृमि  गर्म और सूखी मिट्टी को सहन नहीं कर पाते हैं. इसलिए ऊपरी मिट्टी की परत में इनकी संख्या घट जाती है । 4. ट्राइकोडर्मा विरिडे, ट्राइकोडर्मा हर्जियानम या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस जैसे जैव-एजेंटों से समृद्ध गोबर खाद का प्रयोग करें। 5. यदि संभव हो तो फसल चक्र अपनाएं जिसमें खेत को दो भागों में बांटा जाता है। गेहूँ/जौ/जई/ज्वार/बाजरा/मक्का/सरसों/तिल को एक वर्ष में एक भाग में तथा दूसरे भाग में सब्ज़ियों को वैकल्पिक वर्षों में उगाया जा सकता है। किसान भाई उपरोक्त तरीकों से रोग की पहचान कर उसका उपचार करें तथा स्वस्थ गाजर का उच्च उत्पादन लेकर अधिक लाभ पाएं। आपके क्षेत्र के पास कृषि महाविद्यालयों में परामर्श के लिए विशेषज्ञ उपलब्ध हो सकते हैं। मिट्टी में सूत्रकृमियों की उपस्थिती तथा जनसंख्या घनत्व की जांच भी यहां की प्रयोगशाला में करवा सकते हैं।  गलगोटिया विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कृषि महाविद्यालय में ऐसे विशेषज्ञ हैं जो बिना किसी शुल्क के फसलों के रोगों  की पहचान कर सकते हैं और उनके इलाज के लिए मार्गदर्शन कर सकते हैं।  किसान भाई, बहिन इसका लाभ उठा सकते हैं।