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मूंगफली

भारत की मंडियों में तिलहन फसल सरसों की कीमतों में आई भारी गिरावट

भारत की मंडियों में तिलहन फसल सरसों की कीमतों में आई भारी गिरावट

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान में तिलहन फसलों में सर्वाधिक सरसों की कीमत प्रभावित हो रही है। विगत वर्ष के समापन में सरसों की कीमतों में काफी तीव्रता देखने को मिली थी। परंतु, अब सरसों की कीमतें एक दम नीचे गिरने लगी हैं। भारत भर की मंडियों में सरसों को क्या भाव मिल रहा है ? तिलहन फसलों का भाव निरंतर तीव्रता के पश्चात अब गिरावट की कवायद शुरू हो गई है। अधिकांश तिलहन फसलों की कीमतें अभी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।

कुछ एक फसलों में कमी दर्ज की जा रही है। तिलहन फसलोंकी बात करें तो सर्वाधिक सरसों के भाव प्रभावित हो रहे हैं। विगत वर्ष के अंत में सरसों की कीमतों में शानदार तीव्रता देखने को मिली थी। एक वक्त तो भाव 9000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। परंतु, अब भाव में एक दम से कमी आई है। आलम यह है, कि सरसों का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे चला गया है, जिस कारण से कृषक भी काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। 

भारत भर की मंडियों में सरसों की कीमत क्या है

केंद्र सरकार ने सरसों पर 5650 रुपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। परंतु, भारत की अधिकतर मंडियों में किसानों को MSP तक की कीमत नहीं मिल रही है। सरसों की फसल को औसतन 5500 रुपये/क्विंटल की कीमत मिल रही है। केंद्रीय कृष‍ि व क‍िसान कल्याण मंत्रालय के एगमार्कनेट पोर्टल के मुताबिक, शनिवार (6 जनवरी) को भारत की एक दो मंडी को छोड़ दें, तो तकरीबन समस्त मंडियों में मूल्य MSP से नीचे ही रहा है। शनिवार को सरसों को सबसे शानदार भाव कर्नाटक की शिमोगा मंडी में हांसिल हुआ। जहां, सरसों 8800 रुपये/क्विंटल के भाव पर बिकी है।


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इसी प्रकार, गुजरात की अमरेली मंडी में भाव 6075 रुपये/क्विंटल तक रहा है। इन दो मंडियों को छोड़ दें, तो बाकी समस्त मंडियो में सरसों 5500 रुपये/क्विंटल के नीचे ही बेची जा रही है, जो MSP से काफी कम है। वहीं, भारत की कुछ मंडियों में तो भाव 4500 रुपये/क्विंटल तक पहुंच गया। विशेषज्ञों का कहना है, की कम मांग के चलते कीमतों में काफी गिरावट आई है। यदि मांग नहीं बढ़ी, तो कीमतें और कम हो सकती हैं, जो कि कृषकों के लिए काफी चिंता का विषय है।


यहां पर आप बाकी फसलों की सूची भी देख सकते हैं 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसी भी फसल का भाव उसकी गुणवत्ता पर भी निर्भर रहता है। ऐसी स्थिति में व्यापारी क्वालिटी के हिसाब से ही भाव निर्धारित करते हैं। फसल जितनी शानदार गुणवत्ता की होगी, उसकी उतनी ही अच्छी कीमत मिलेंगे। यदि आप भी अपने राज्य की मंडियों में भिन्न-भिन्न फसलों का भाव देखना चाहते हैं, तो आधिकारिक वेबसाइट https://agmarknet.gov.in/ पर जाकर पूरी सूची की जाँच कर सकते हैं।

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

पिछले कुछ समय से टेक्नोलॉजी में काफी सुधार की वजह से कृषि की तरफ रुझान देखने को मिला है और बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को छोड़कर आने वाले युवा भी, अब धीरे-धीरे नई वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से भारतीय कृषि को एक बदलाव की तरफ ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

जो खेत काफी समय से बिना बुवाई के परती पड़े हुए थे, अब उन्हीं खेतों में अच्छी तकनीक के इस्तेमाल और सही समय पर अच्छा मैनेजमेंट करने की वजह से आज बहुत ही उत्तम श्रेणी की फसल लहलहा रही है। 

इन्हीं तकनीकों से कुछ युवाओं ने पिछले 1 से 2 वर्ष में तिलहन फसलों के क्षेत्र में आये हुए नए विकास के पीछे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। तिलहन फसलों में मूंगफली को बहुत ही कम समय में अच्छी कमाई वाली फसल माना जाता है।

पिछले कुछ समय से बाजार में आई हुई हाइब्रिड मूंगफली का अच्छा दाम तो मिलता ही है, साथ ही इसे उगाने में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो गए हैं। केवल दस बीस हजार रुपये की लागत में तैयार हुई इस हाइब्रिड मूंगफली को बेचकर अस्सी हजार रुपये से एक लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं।

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इस कमाई के पीछे की वैज्ञानिक विधि को चक्रीय खेती या चक्रीय-कृषि के नाम से जाना जाता है, जिसमें अगेती फसलों को उगाया जाता है। 

अगेती फसल मुख्यतया उस फसल को बोला जाता है जो हमारे खेतों में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसल जैसे कि गेहूं और चावल के कुछ समय पहले ही बोई जाती है, और जब तक अगली खाद्यान्न फसल की बुवाई का समय होता है तब तक इसकी कटाई भी पूरी की जा सकती है। 

इस विधि के तहत आप एक हेक्टर में ही करीब 500 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन कर सकते हैं और यह केवल 60 से 70 दिन में तैयार की जा सकती है।

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मूंगफली को मंडी में बेचने के अलावा इसके तेल की भी अच्छी कीमत मिलती है और हाल ही में हाइब्रिड बीज आ जाने के बाद तो मूंगफली के दाने बहुत ही बड़े आकार के बनने लगे हैं और उनका आकार बड़ा होने की वजह से उनसे तेल भी अधिक मिलता है। 

चक्रीय खेती के तहत बहुत ही कम समय में एक तिलहन फसल को उगाया जाता है और उसके तुरंत बाद खाद्यान्न की किसी फसल को उगाया जाता है। जैसे कि हम अपने खेतों में समय-समय पर खाद्यान्न की फसलें उगाते हैं, लेकिन एक फसल की कटाई हो जाने के बाद में बीच में बचे हुए समय में खेत को परती ही छोड़ दिया जाता है, लेकिन यदि इसी बचे हुए समय का इस्तेमाल करते हुए हम तिलहन फसलों का उत्पादन करें, जिनमें मूंगफली सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है।

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भारत में मानसून मौसम की शुरुआत होने से ठीक पहले मार्च में मूंगफली की खेती शुरू की जाती है। अगेती फसलों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इन्हें तैयार होने में बहुत ही कम समय लगता है, साथ ही इनकी अधिक मांग होने की वजह से मूल्य भी अच्छा खासा मिलता है। 

इससे हमारा उत्पादन तो बढ़ेगा ही पर साथ ही हमारे खेत की मिट्टी की उर्वरता में भी काफी सुधार होता है। इसके पीछे का कारण यह है, कि भारत की मिट्टि में आमतौर पर नाइट्रोजन की काफी कमी देखी जाती है और मूंगफली जैसी फसलों की जड़ें नाइट्रोजन यौगिकीकरण या आम भाषा में नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation), यानी कि नाइट्रोजन केंद्रीकरण का काम करती है और मिट्टी को अन्य खाद्यान्न फसलों के लिए भी उपजाऊ बनाती है। 

इसके लिए आप समय-समय पर कृषि विभाग से सॉइल हेल्थ कार्ड के जरिए अपनी मिट्टी में उपलब्ध उर्वरकों की जांच भी करवा सकते हैं।

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मूंगफली के द्वारा किए गए नाइट्रोजन के केंद्रीकरण की वजह से हमें यूरिया का छिड़काव भी काफी सीमित मात्रा में करना पड़ता है, जिससे कि फर्टिलाइजर में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो सकते हैं। 

इसी बचे हुए पैसे का इस्तेमाल हम अपने खेत की यील्ड को बढ़ाने में भी कर सकते हैं। यदि आपके पास इस प्रकार की हाइब्रिड मूंगफली के अच्छे बीज उपलब्ध नहीं है तो उद्यान विभाग और दिल्ली में स्थित पूसा इंस्टीट्यूट के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर एडवाइजरी जारी की जाती है जिसमें बताया जाता है कि आपको किस कम्पनी की हाइब्रिड मूंगफली का इस्तेमाल करना चाहिए। 

समय-समय पर होने वाले किसान चौपाल और ट्रेनिंग सेंटरों के साथ ही दूरदर्शन के द्वारा संचालित डीडी किसान चैनल का इस्तेमाल कर, युवा लोग मूंगफली उत्पादन के साथ ही अपनी स्वयं की आर्थिक स्थिति तो सुधार ही रहें हैं, पर इसके अलावा भारत के कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाने में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं। 

आशा करते हैं कि मूंगफली की इस चक्रीय खेती विधि की बारे में Merikheti.com कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आप भी भारत में तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के अलावा अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार करने में सफल होंगे।

जायद सीजन में मूंगफली की खेती किसानों को शानदार मुनाफा दिला सकती है

जायद सीजन में मूंगफली की खेती किसानों को शानदार मुनाफा दिला सकती है

भारत भर में बहुत सारे किसान आजकल परंपरागत खेती को छोड़कर नकदी फसलों की खेती कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि महंगाई के इस युग में किसानों को मूंगफली जैसी फसलों की खेती पर अधिक बल देना चाहिए। 

आज हम किसानों को मूंगफली की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं। मूंगफली की खेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए आपको इसकी उन्नत किस्म चुनने से लेकर फसल की बुवाई के आधुनिक तरीके एवं अन्य विधियों की जानकारी प्रदान करेंगे।

मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु की आवश्यकता 

किसान भाई यदि अपने खेत में मूंगफली की फसल को उगाना चाहते हैं, तो इसके लिए यह जानना बेहद जरूरी है, कि आपके इलाके की जलवायु मूंगफली की फसल के लिए अनुकूल है या नहीं ? 

मूंगफली भारत की महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। मूंगफली की खेती भारत के तकरीबन सभी राज्यों में होती है। परंतु, जहां उपयुक्त जलवायु होती है, वहां इसकी फसल शानदार और दाने पुष्ट होते हैं।

मूंगफली की खेती के लिए कैसा मौसम होना चाहिए ?

सूर्य की ज्यादा रोशनी और उच्च तापमान मूंगफली के पौधे के विकास के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। कृषक उत्तम पैदावार के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तापमान होना जरूरी है। 

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मूंगफली की खेती वर्षभर की जा सकती है। परंतु, खरीफ सीजन की फसल के लिए जून महीने के दूसरे पखवाड़े तक इसकी बुवाई की जा सकती है। 

मूंगफली की खेती के लिए भूमि की तैयारी

मूंगफली की फसल उगाने के लिए खेत की तीन से चार बार जुताई करनी चाहिए। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई सही होती है। मूंगफली के खेत में नमी बरकरार रखने के लिए जुताई के बाद पाटा लगाना अति आवश्यक है।

इससे मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है। खेती की तैयारी करने के समय 2.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का प्रयोग करें। 

मूंगफली के लिए कौन-से किस्म का बीज उपयोग करें ?

मूंगफली की कुछ उन्नत किस्में जैसे कि आर.जी. 425, 120-130, एमए 10 125-130, एम-548 120-126, टीजी 37ए 120-130, जी 201 110-120 प्रमुख हैं। 

इनके अलावा मूंगफली की अन्य किस्में जैसे कि एके 12, -24, जी जी 20, सी 501, जी जी 7, आरजी 425, आरजे 382 आदि भी अच्छा फसल देती हैं। 

मूंगफली की बुवाई के समय ध्यान रखने योग्य बातें ?

मूंगफली की बुवाई के समय बहुत सारी बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। गेंहू की कटाई के बाद अप्रैल के आखिर में मूंगफली की बुवाई की जाती है। वहीं, कुछ जगहों पर 15 जून से 15 जुलाई के मध्य मूंगफली की बुवाई की जाती है।

बीज की बुवाई से पहले 3 ग्राम थायरम या 2 ग्राम मैंकोजेब दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपयोग किया जाना चाहिए। इस दवाई के प्रयोग से बीज में लगने वाले रोगों से बचाया जा सकता है और इससे मूंगफली बीज का अंकुरण भी अच्छा होता है।

मूंगफली की खेती में खरपतवार पर कैसे नियंत्रण रखें 

मूंगफली की खेती में खरपतवार नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक होता है। खर-पतवार ज्यादा होने से फसल पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। बुवाई के लगभग 3 से 6 सप्ताह के बीच विभिन्न प्रकार की घास निकलने लगती है। 

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कुछ उपाय या दवा के इस्तेमाल से आप सुगमता से इस पर काबू कर सकते हैं। अगर आपने खरपतवार का प्रबंधन नहीं किया तो 30 से 40 प्रतिशत फसल बर्बाद हो जाती है।

मूंगफली की खेती से कितनी कमाई की जा सकती है ?

मूंगफली की खेती में किसानों को 40,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आय हो सकती है। सिंचित इलाकों में मूंगफली का औसत उत्पादन 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है। 

अगर मूंगफली का सामान्य भाव 80 रुपये प्रति किलो रहा तो किसान को खर्चा निकाल कर तकरीबन 90,000 रुपये की बचत हो सकती है।

मूंगफली फसल में कीट और रोग नियंत्रण

मूंगफली फसल में कीट और रोग नियंत्रण

मूंगफली में उपज हानि करने वाले प्रमुख कीट एफिड्स, जैसिड, थ्रिप्स, सफेद मक्खी, लीफ माइनर, व्हाइट ग्रब, आर्मी वार्म और हेलियोथिस आदि है। 

एफिड्स, जैसिड्स, थ्रिप्स और व्हाइट फ्लाई जैसे प्रमुख रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रण करने के लिए  फॉस्फैमिडोन 0.03% या डाइमेथोएट 0.03% या मिथाइल-ओ डेमेटॉन 0.025% का 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करे। 

लाइट ट्रैप लीफ माइनर के पतंगों को आकर्षित करता है, जिन्हें इकट्ठा किया जाता है और फिर नष्ट कर दिया जाता है।

डाइक्लोरवोस 0.05% या मोनोक्रोटोफॉस 0.04% के छिड़काव से भी इन कीड़ों को नियंत्रित किया जा सकता है या क्विनालफॉस 0.05% या एंडोसल्फान 0.07% या कार्बेरिल 0.2% Dust 15 दिन के अंतराल पर डालने से कीटों की अच्छी रोकथाम की जा सकती है|  

स्पोडोप्टेरा और हेलियोथिस आदत में नैक्टरल हैं और इसलिए नियंत्रण के उपाय होने चाहिए या तो सुबह के समय या देर शाम के समय या अधिमानतः रात के दौरान लिया जाता है। 

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इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए क्लोरपाइरीफॉस 0.05% या एंडोसल्फान 0.07% या मोनोक्रोटोफॉस 0.05% या क्विनालफॉस 0.05% का छिड़काव करें। प्रारंभिक लार्वा चरण में इन कीटनाशकों को प्रयोग करके कीटों को  प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जाता है। 

जिन क्षेत्रों में सफेद सूंडी की समस्या बहुत गंभीर है, वहां की मिट्टी में की गर्मी  में गहरी जुताई करनी की आवश्यकता है। फसल की बुवाई  से पहले लगभग 10 सेंटीमीटर गहरे कूंड़ों में फोरेट 10% दाने 10 से 15 किग्रा/एकड़ की दर से डालें।

मूंगफली की फसल में रोग नियंत्रण 

मूंगफली पर लगने वाले महत्वपूर्ण रोग टिक्का, तना सड़न, जंग, पत्ती के धब्बे हैं।  कार्बेन्डाजिम 0.05% + मैंकोजेब 0.2% का छिड़काव करके टिक्का और जंग को नियंत्रित किया जा सकता है। 

बड नेक्रोसिस एक वायरस के कारण होता है लेकिन कोई नियंत्रण उपाय नहीं सुझाया जाता है, हालांकि, थ्रिप्स वायरस को प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार हैं, इसको प्रणालीगत कीटनाशक छिड़काव करके नियंत्रित किया जाना चाहिए |

जून माह में मूंगफली की उन्नत खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

जून माह में मूंगफली की उन्नत खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

मूंगफली भारत की प्रमुख महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है। यह गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सर्वाधिक उगाई जाती है। 

भारत देश के बाकी राज्य जैसे कि मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है। राजस्थान में इसकी खेती तकरीबन 3.47 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है, जिससे तकरीबन 6.81 लाख टन उपज प्राप्त होती है। 

मूंगफली की औसत उपज 1963 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर (2010-11) है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्‌ के अधीनस्थ अनुसंधानों संस्थानों एवं कृषि विश्वविद्यालयों ने मूंगफली की उन्नत तकनीकियाँ जैसे उन्नत किस्में, रोग नियंत्रण, निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण आदि विकसित की हैं। इनकी जानकारी आपको नीचे प्रदान की गई है।

मूंगफली की फसल के लिए भूमि तथा उसकी तैयारी

मूंगफली की खेती के लिए बेहतरीन जल निकासी वाली, भुरभुरी दोमट व बलुई दोमट जमीन सबसे अच्छी रहती है। मृदा पलटने वाले हल तथा बाद में कल्टीवेटर से दो जुताई करके खेत को पाटा लगाकर एकसार कर लेना चाहिए। 

जमीन में दीमक व विभिन्न प्रकार के कीड़ों से फसल के संरक्षण हेतु क्विनलफोस 1.5 प्रतिशत 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के साथ भूमि में मिला देना चाहिए।

मूंगफली का बीज एवं इसकी बुवाई

मूंगफली की बुवाई प्रायः मानसून शुरू होने के साथ ही हो जाती है। उत्तर भारत में यह समय सामान्य तोर पर 15 जून से 15 जुलाई के बीच का होता है। 

कम फैलने वाली किस्मों के लिए बीज की मात्रा 75-80 कि.ग्राम. प्रति हेक्टेयर एवं फैलने वाली किस्मों के लिये 60-70 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल में लेनी चाहिए।  

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बुवाई के लिए बीज निकालने के लिए स्वस्थ फलियों का चयन करना चाहिए या उनका प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। बुवाई से 10-15 दिन पहले गिरी को फलियों से अलग कर लेना चाहिए। 

मूंगफली की फसल के लिए बीजोपचार 

बीज को रोपने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेण्डिजिम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लेनी चाहिए। 

इससे बीजों का अंकुरण काफी अच्छा होता है तथा प्रारंभिक अवस्था में लगने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है। 

दीमक और सफेद लट से संरक्षण के लिए क्लोरोपायरिफास (20 ई.सी.) का 12.50 मि.ली. प्रति किलो बीज का उपचार बुवाई से पहले कर लेना चाहिए। 

मूंगफली की कतार में बुवाई करनी चाहिए। गुच्छे वाली/कम फैलने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार का फासला 30 से.मी. तथा फैलने वाली किस्मों के लिए 45 से.मी.रखें। 

पौधों से पौधों की दूरी 15 से. मी. ही रखनी चाहिए। बुवाई हल के पीछे, हाथ से या सीडड्रिल द्वारा की जा सकती है। भूमि की किस्म एवं नमी की मात्रा के अनुसार बीज जमीन में 5-6 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।

मूंगफली की खेती में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 

उर्वरकों का इस्तेमाल भूमि की किस्म, उसकी उर्वराशक्ति, मूंगफली की किस्म, सिंचाई की सुविधा आदि के अनुरूप होता है। 

मूंगफली दलहन परिवार की तिलहनी फसल होने के नाते इसको सामान्य रूप से नाइट्रोजनधारी उर्वरक की जरूरत नहीं होती। 

फिर भी हल्की मृदा में प्रारंभिक बढ़वार के लिये 15-20 किग्रा नाइट्रोजन तथा 50-60 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर के हिसाब से देना लाभकारी होता है। 

उर्वरकों की संपूर्ण मात्रा खेत की तैयारी के वक्त ही भूमि में मिला देनी चाहिए। अगर कम्पोस्ट या गोबर की खाद उपलब्ध हो तो उसे बुवाई के 20-25 दिन पहले 5 से 10 टन प्रति हैक्टेयर खेत में बिखेरकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए। 

बतादें, कि ज्यादा उपज के लिए अंतिम जुताई से पूर्व जमीन में 250 कि.ग्रा.जिप्सम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से मिला देना चाहिए।

मूंगफली की खेती में नीम की खल का प्रयोग

नीम की खल के प्रयोग का मूंगफली के उत्पादन में अच्छा प्रभाव पड़ता है। अंतिम जुताई के समय 400 कि.ग्रा. नीम खल प्रति हैक्टर के हिसाब से देना चाहिए। 

नीम की खल से दीमक का नियंत्रण हो जाता है तथा पौधों को नत्रजन तत्वों की पूर्ति हो जाती है। नीम की खल के प्रयोग से 16 से 18 प्रतिशत तक की उपज में वृद्धि, तथा दाना मोटा होने के कारण तेल प्रतिशत में भी वृद्धि हो जाती है। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों में अधिक उत्पादन के लिए जिप्सम भी प्रयोग में लेते हैं।

मूंगफली की फसल में सिंचाई प्रबंधन 

मूंगफली खरीफ फसल होने के कारण इसमें सिंचाई की प्रायः आवश्यकता नहीं पड़ती। सिंचाई देना सामान्य रूप से वर्षा के वितरण पर निर्भर करता हैं फसल की बुवाई यदि जल्दी करनी हो तो एक पलेवा की आवश्यकता पड़ती है। 

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यदि पौधों में फूल आते समय सूखे की स्थिति हो तो उस समय सिंचाई करना आवश्यक होता है। फलियों के विकास एवं गिरी बनने के समय भी भूमि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। 

जिससे फलियाँ बड़ी तथा खूब भरी हुई बनें। अतः वर्षा की मात्रा के अनुरूप सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है।

मूंगफली की फलियों का विकास जमीन के अन्दर होता है। अतः खेत में बहुत समय तक पानी भराव रहने पर फलियों के विकास तथा उपज पर बुरा असर पड़ सकता है। 

अतः बुवाई के समय यदि खेत समतल न हो तो बीच-बीच में कुछ मीटर की दूरी पर हल्की नालियाँ बना देना चाहिए। जिससे वर्षा का पानी खेत में बीच में नहीं रूक पाये और अनावश्यक अतिरिक्त जल वर्षा होते ही बाहर निकल जाए।

कृषि में निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण

निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण का इस फसल के उत्पादन में बड़ा ही महत्त्व है। मूंगफली के पौधे छोटे होते हैं। अतः वर्षा के मौसम में सामान्य रूप से खरपतवार से ढक जाते हैं। 

ये खरपतवार पौधों को बढ़ने नहीं देते। खरपतवारों से बचने के लिये कम से कम दो बार निराई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। 

पहली बार फूल आने के समय दूसरी बार 2-3 सप्ताह बाद जबकि पेग (नस्से) जमीन में जाने लगते हैं। इसके बाद निराई गुड़ाई नहीं करनी चाहिए। 

जिन खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या हो तो बुवाई के 2 दिन बाद तक पेन्डीमेथालिन नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव कर देना चाहिए।

मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (pests and diseases)

मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (pests and diseases)

मूंगफली में रोग बहुत लगते हैं। इनमें प्रमुख रूप से बीज से पैदा होेने वाले रोगों की संख्या ज्यादा है। फसल को रोग मुक्त रखने के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना आवश्यक है। 

मई—जून की गर्मी में खेत की दो तीन गहरी जुताई करेंं। हर जुताई के मध्य एक हफ्ते का अंतर रहे। फसल लगाने से पूर्व खेत में 50 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राईकोडर्मा मिलाकर एक हफ्ते छांव में रखें। 

बाद में इसे जुताई से पूर्व खेत में बुरक दें। बीज का उपचार किसी भी प्रभावी फफूंदनाशक कार्बन्डाजिम, बाबस्टीन आदि की उचित मात्रा से करें। 

खेत में सिंचाई का पानी कहीं जमा न हो इस तरह का समतलीकरण करें। इन उपायों से रोग की 70 प्रतिशत संभावना नहीं रहती। 

बीज का सड़न रोग (seed rot disease)

moongfuli

कुछ रोग उत्पन्न करने वाले कवक बीज उगने लगता है उस समय इस पर आक्रमण करते हैं। इससे बीज पत्रों, बीज पत्राधरों एवं तनों पर गोल हल्के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। 

बाद में ये धब्बे मुलायम हो जाते हैं तथा पौधे सड़ने लगते हैं और फिर सड़कर गिर जाते हैं। बचाव हेतु प्रमाणित एवं  2.5 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचार करके बोएं। 

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रोजेट रोग

रोजेट (गुच्छरोग)

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विषाणुजनित यह रोग पौधों में बोनापन लाता है। उनकी बढ़वार रुक जाती है। रोग को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित पौधों को जैसे ही खेत में दिखाई दें, उखाड़कर फेंक देना चाहिए। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 3 लीटर पानी में घोल कर छिड़केंं। 

टिक्का रोग

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यह गंभीर रोग है। आरम्भ में पौधे के नीचे वाली पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे भूरे रंग के छोटे-छोटे गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं इसके प्रभाव से खेत में केवल तने ही शेष रह जाते हैं।  

रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 को 2 किलोग्राम एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से दस दिनों के अन्तर पर दो-तीन छिड़काव करने चाहिए। 

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कीट नियंत्रण

रोमिन इल्ली पत्तियों को खाकर पौधों को अंगविहीन करती है। पूर्ण विकसित इल्लियों पर घने भूरे बाल होते हैं। इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफास 1 लीटर कीटनाशी दवा को 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 

मूंगफली का माहू कीट सामान्य रूप से छोटा एवं भूरे रंग का होता है। यह बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होकर पौधों का रस चूसते हैं। साथ ही वाइरस जनित रोग के फैलाने में सहायक भी होती है। 

इसके नियंत्रण के लिए इस रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए। 

लीफ माइनर moongfuli

लीफ माइनर के प्रकोप होने पर पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं। इसके गिडार पत्तियों में अन्दर ही अन्दर हरे भाग को खाते रहते हैं और पत्तियों पर सफेद धारियॉं सी बन जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में घोल छिड़काव करें।

सफेद लट

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मूंगफली को बहुत ही क्षति पहुँचाने वाला बहुभोजी कीट है। मादा कीट मई-जून के महीनें में जमीन के अन्दर अण्डे देती है। इनमें से 8-10 दिनों के बाद लट निकल आते हैं।  

क्लोरोपायरिफास से बीजोपचार प्रारंभिक अवस्था में पौधों को सफेद लट से बचाता है। अधिक प्रकोप होने पर खेत में क्लोरोपायरिफास का प्रयोग करें । 

इसकी रोकथाम फोरेट की 25 किलोग्राम मात्रा को प्रति हैक्टर खेत में बुवाई से पहले भुरक कर की जा सकती है। सिंचित क्षेत्रों में औसत उपज 20-25 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है। 

लागत 30 हजार प्रति हैक्टेयर खर्चने पर लाभा 40 हजार तक का होता है। यह रेट 30 रुपए प्रति किलोग्राम रहने पर प्राप्त होता है।

भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से ऊर्जा के मामले में दक्ष स्मार्ट स्क्रीन विकसित की

भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से ऊर्जा के मामले में दक्ष स्मार्ट स्क्रीन विकसित की

भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के छिलकों से पर्यावरण के अनुकूल एक स्मार्ट स्क्रीन विकसित की है, जो न केवल गोपनीयता को बनाए रखने में मदद कर सकती है बल्कि इससे गुजरने वाले प्रकाश एवं गर्मी को नियंत्रित करके ऊर्जा संरक्षण और एयर कंडीशनिंग लोड को कम करने में भी मदद कर सकती है। 

प्रोफेसर एस. कृष्णा प्रसाद के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक समूह ने सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस), बैंगलोर, जो कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का एक स्वायत्त संस्थान है, के डॉ. शंकर राव के साथ मिलकर मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से इस तरह के एक सेलूलोज़-आधारित स्मार्ट स्क्रीन को विकसित करने में एक अहम उपलब्धि हासिल की है।   peanut

इस स्मार्ट स्क्रीन के अनुप्रयोग में, तरल क्रिस्टल अणुओं को एक बहुलक सांचे में ढाला गया। इस सांचे का निर्माण सेलुलोज नैनोक्रिस्टल (सीएनसी) का उपयोग करके किया गया। 

ये सेलुलोज नैनोक्रिस्टल आईआईटी रुड़की में प्रोफेसर युवराज सिंह नेगी की टीम द्वारा मूंगफली के छोड़े हुए छिलकों से तैयार किए गए थे। 

तरल क्रिस्टल अणुओं के अपवर्तनांक को एक विद्युतीय क्षेत्र के अनुप्रयोग के जरिए एक खास दिशा की ओर मोड़ दिया गया। विद्युतीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में, बहुलक और तरल क्रिस्टल के अपवर्तनांकों के बेमेल होने की वजह से प्रकाश का प्रकीर्णन हुआ। 

कुछ वोल्ट के एक विद्युतीय क्षेत्र के अनुप्रयोग से, तरल क्रिस्टल अणु दिशा परिवर्तन की एक प्रक्रिया से गुजरे, जिसके परिणामस्वरूप अपवर्तनांकों में मेल हुआ और उपकरण लगभग तुरंत ही पारदर्शी हो उठा। 

जैसे ही विद्युतीय क्षेत्र का प्रयोग बंद किया गया, यह प्रणाली प्रकीर्णन वाली अवस्था में वापस लौट आई। बटन दबाने पर उपलब्ध दो अवस्थाओं के बीच यह उत्क्रमणीय बदलाव हजारों चक्रों में हुआ। इस उत्क्रमणीय बदलाव के दौरान अनिवार्य रूप से व्यतिरेक या बटन दबाने की गति में कोई परिवर्तन नहीं होने दिया गया।

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इन वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस उपकरण ने, जिसका जिक्र एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स के हाल के अंक में किया गया है, उसी सिद्धांत का अनुसरण किया जिसकी वजह से सर्दियों में सुबह के समय कोहरा पैदा होता है। 

ऐसा केवल तभी होता है जब पानी की बूंदें सही आकार की होती हैं, और वह हवा के साथ मौजूद रहती हैं। प्रकाश की आने वाली किरणें इन दोनों को अलग-अलग अपवर्तनांकों वाली वस्तुओं के रूप में देखती हैं और इस तरह से उनका प्रकीर्णन हो जाता है 

जिसके परिणामस्वरुप कोहरे का नजारा उपस्थित होताहै। इसी तरह, बहुलक और तरल क्रिस्टल को सही आकार में सह-अस्तित्व में होना चाहिए ताकि स्मार्ट स्क्रीन के लिए आवश्यक प्रकाशीय गुण निर्मित हो सकें। 

इस उपकरण पर काम करने वाले छात्र, सुश्री प्रज्ञा और डॉ. श्रीविद्या, इस बात पर जोर देते हैं किवाणिज्यिक स्रोतों से उपलब्ध सीएनसी के मुकाबले आईआईटी रूड़कीकी सामग्री के बेहतर प्रदर्शन के साथ इस उपकरण के व्यतिरेक को नियंत्रित करने में सीएनसी के निर्माण का प्रोटोकॉल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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इन वैज्ञानिकों ने बताया कि सैद्धांतिक रूप से इस उपकरण को किसी भी सेल्यूलोज या कृषि जनित अपशिष्ट से विकसित किया जा सकता है। 

मूंगफली के कचरे के कुछ खास गुणों के कारण, मूंगफली के कचरे से विकसित स्मार्ट स्क्रीन को सबसे अधिक कारगर पाया गया है। 

लक्षित गोपनीयता निर्माण के मूल इरादे के अलावा, इस उपकरण को व्यापक संभावित अनुप्रयोगों, खासकर अवरक्त प्रकाश की मात्रा और खिड़की को नियंत्रित करके इसे अनुमन्य सीमा तक गुजारते हुए ऊर्जा संरक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। 

उदाहरण के लिए, इस तकनीक लैस एक खिड़की पूरे दृश्य क्षेत्र के लिए पारदर्शी रहेगी, पूरे प्रांगण को ठंडा रखते हुए गर्मी के विकिरण के अवांछनीय स्तर को काफी कम किया जा सकता है।

मूंगफली की बुवाई

मूंगफली की बुवाई

दोस्तों आज हम बात करेंगे मूंगफली की बुवाई की, मूंगफली की बुवाई कहां और किस प्रकार होती है। मूंगफली से जुड़ी सभी आवश्यक और महत्वपूर्ण बातों को जानने के लिए कृपया हमारे पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें: 

मूंगफली की बुवाई कहां होती है?

मूंगफली एक तिलहनी फसल है भारत में सभी फसलों की तरह मूंगफली भी महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। मूंगफली की अधिक पैदावार गुजरात आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में भारी मात्रा में उगाई जाती है।

कुछ और भी ऐसे राज्य हैं जहां मूंगफली की पैदावार काफी ज्यादा होती है। जैसे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब इन राज्यों में मूंगफली की फसल को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। 

राजस्थान में लगभग मूंगफली की खेती 3.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्रों में होती हैं। मूंगफली का उत्पादन करीब 6.81 लाख टन होता है। मूंगफली के भारी उत्पादन से आप इस फसल की उपयोगिता का अंदाजा लगा सकते हैं।

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मूंगफली की खेती के लिए भूमि को तैयार करना:

सबसे पहले खेतों की जुताई कर लेना चाहिए। खेतों की जुताई करते वक्त जल निकास की व्यवस्था को उचित ढंग से बनाना चाहिए। 

मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए। खेतों के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सबसे सर्वोत्तम मानी जाती है भूमि उत्पादन के लिए, खेतों को मिट्टी पलटने वाले हल और उसके बाद कल्टीवेटर से अच्छी तरह से दो से तीन बार खेतों की जुताई कर लेनी चाहिए। 

भूमि को पाटा लगाकर अच्छी तरह से समतल कर लेना उचित होता है। मूंगफली की फसल में दीमक और कीड़े लगने की संभावना बनी रहती है। मूंगफली की फसल को दीमक और कीड़ों से सुरक्षित रखने के लिए क्विनलफोस 1.5 प्रतिशत 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से भूमि की आखिरी जुताई के दौरान अच्छी तरह से भूमि में मिला देना चाहिए। 

मूंगफली की फसल के लिए बीज का चयन:

किसान मूंगफली की बुवाई मानसून के शुरुआती महीने में करना शुरू कर देते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार भारत में करीब 15 से 20 जून से लेकर 15 से 20 जुलाई के बीच मूंगफली की फसल की बुवाई होती है।

किसान मूंगफली की फसल के लिए दो तरह की बीज का इस्तेमाल करते हैं। पहली कम फैलने वाली बीज की किस्म जो लगभग 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टर होती है। और वहीं दूसरी ओर फैलने वाली बीज की किस्म जो लगभग 60 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टर इस्तेमाल किया जाता है। 

बुवाई के लिए स्वस्थ फल्लियाँ और प्रमाणित बीज का चयन करना उचित रहता है। किसान बीज बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेण्डिजिम दवा 1 किलो प्रति बीज के हिसाब से उपचारित करते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा बीज में अंकुरण अच्छे ढंग से होता है। मूंगफली बीजों की इन दो किस्मों की बुवाई अलग-अलग ढंग से की जाती है। 

मूंगफली की फसल के लिए खाद और उर्वरक का इस्तेमाल:

किसान उर्वरक का इस्तेमाल भूमि की उर्वराशक्ति को देखते हुए और मूंगफली की कौन सी किस्म बोई गई है इसके आधार पर करते हैं। मूंगफली एक तिलहनी फसल है, इस प्रकार मूंगफली की फसल को नाइट्रोजनधारी उर्वरक की जरूरत होती है। 

खेत को तैयार करते वक्त उर्वरकों की अच्छी मात्रा भूमि में मिक्स करें। खेतों की बुवाई करने से लगभग 20 से 25 दिन पहले ही कम्पोस्ट और गोबर की खाद को 8 से 10 टन प्रति हेक्टर को पूरे खेत में अच्छी तरह से बिखेर कर फैलाकर मिला देना आवश्यक होता है। 250 किलोग्राम जिप्सम प्रति हैक्टर का इस्तेमाल करने से काफी अधिक मूंगफली का उत्पादन होता है।

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मूंगफली की फसल की सिंचाई:

मूंगफली की फसल को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं, क्योंकि यह एक खरीफ फसल होती है। मूंगफली की फसल की सिंचाई बारिश पर ही पूर्व से आधारित होती है। 

मूंगफली की फसल की जल्दी बुवाई के लिए पलेवा का उपयोग करें। मूंगफली की फसल में फूल अगर सूखे नजर आए हैं तो जल्दी ही सिंचाई करना आवश्यक होता है।सिंचाई करने से फलियां अच्छे से बड़ी और खूब भरी हुई नजर आती है।

किसानों के अनुसार फलियों का उत्पादन जमीन के भीतर होता है और काफी ज्यादा टाइम तक पानी भरने से फलियां खराब भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में जल निकास की व्यवस्था को बुवाई के वक्त विकसित करना उचित होता। 

इस प्रक्रिया को अपनाने से बारिश के दिनों में पानी खेतों में नहीं भरने पाते और ना ही फसल को किसी भी तरह का कोई नुकसान होता है। 

मूंगफली की फसल में निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण:

मूंगफली की फसल के लिए सबसे महत्वपूर्ण निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण होता है। निराई गुड़ाई की वजह से फसलों में अच्छा उत्पादन होता है। बारिश के दिनों में खरपतवार ढक जाते हैं खरपतवार पौधों को किसी भी प्रकार से बढ़ने नहीं देते हैं। 

फसलों को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए कम से कम दो से तीन बार खेतों में निराई और गुड़ाई करनी चाहिए। पहली निराई गुड़ाई फूल आने के टाइम करें और दूसरी लगभग 2 से 3 सप्ताह बात करें। जब नस्से भूमि के भीतर प्रवेश करने लगे। इस प्रक्रिया को अपनाने के बाद कोई और निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती हैं।

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मूंगफली फसल की कटाई का उचित समय:

किसानों के अनुसार जब पौधों की पत्तियां पीली रंग की नजर आने लगे तो कटाई की प्रक्रिया को शुरू कर दें। मूंगफली की फलियों को पौधों से अलग करने के बाद कम से कम 8 से 10 दिन तक उन्हें खूब अच्छी तरह से सुखा लेना आवश्यक होता है। 

मूंगफली की फलियों को किसान लगभग तब तक सुखाते हैं जब तक उनमें 10% नमी ना बचे। इस प्रतिक्रिया को किसान इसलिए अपनाते हैं क्योंकि नमी वाली फलियों को इकट्ठा या भंडारित करने से उन में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का प्रकोप बना रहता है। 

खासकर सफेद फंफूदी जैसे रोग पैदा हो सकते हैं। मूंगफली की कटाई करने के बाद इन तरीकों को अपनाना आवश्यक होता है। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल मूंगफली की बुवाई पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में मूंगफली की बुवाई से जुड़ी सभी प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारी मौजूद हैं। 

यदि आप हमारी जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

Mungfali Ki Kheti: मूंगफली की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

Mungfali Ki Kheti: मूंगफली की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

आज हम आपको इस लेख में मूंगफली की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाले हैं। परंपरागत फसलों के तुलनात्मक मूंगफली को ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल माना जाता है। यदि किसान मूंगफली की खेती वैज्ञानिक ढंग से करते हैं, तो वह इस फसल से ज्यादा उत्पादन उठाकर बेहतरीन मुनाफा कमा सकते हैं। बतादें, कि खरीफ सीजन के फसल चक्र में मूंगफली की खेती का नाम सर्वप्रथम आता है। भारत के कर्नाटक,आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में प्रमुख तौर पर मूंगफली की खेती की जाती है। 

मूंगफली की खेती

यदि आप मूंगफली का उत्पादन करके बेहतरीन पैदावार से ज्यादा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो मूंगफली की खेती कब और कैसे करनी चाहिए,
मूंगफली की बुवाई का समुचित समय क्या है? मूंगफली की उन्नत किस्म कौन सी है? मूंगफली हेतु बेहतर खाद व उर्वरक आदि से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी आपको होनी ही चाहिए। तब ही आप मूंगफली की उन्नत खेती कर सकेंगे। मूंगफली की उन्नत खेती करने के इच्छुक किसानों को इस लेख को आखिर तक अवश्य होंगे। 

मूंगफली की खेती किस इलाके में की जाती है

मूंगफली को तिलहनी फसलों की श्रेणी में रखा गया है, जो ऊष्णकटबंधीय इलाकों में बड़ी ही सुगमता से उत्पादित की जा सकती हैं। जो किसान मूंगफली की खेती करने की योजना बना रहे हैं, उनको इस लेख को ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ना चाहिए। इस लेख में किसानों को मूंगफली की उन्नत खेती किस प्रकार करें? इस विषय में विस्तृत रूप से जानकारी दी जाएगी। 

मूंगफली की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु कौन-सी है

मूंगफली की खेती करने के लिए अर्ध-उष्ण जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती से बेहतरीन उत्पादन पाने के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरुरत होती है। मूंगफली फसल के लिए 50 से 100 सेंटीमीटर बारिश सर्वोत्तम मानी जाती है।

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मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है। परंतु, मूंगफली की फसल से बेहतरीन पैदावार लेने के लिए बेहतरीन जल निकासी और कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी गई है। इसकी खेती के लिए मृदा पीएच मानक 6 से 7 के मध्य होना आवश्यक है। 

मूंगफली फसल के लिए खेत की तैयारी

मूंगफली की खेती के लिए प्रथम जुताई मृदा पलटने वाले हल कर खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें। जिससे कि उसमें उपस्थित पुराने अवशेषों, खरपतवार एवं कीटों का खत्मा हो जाये। खेत की आखिरी जुताई करके मृदा को भुरभुरी बनाकर खेत को पाटा लगाकर समतल कर लें। खेत की अंतिम जुताई के दौरान 120 कि.ग्रा./एकड़ जिप्सम/फास्फोजिप्सम उपयोग करें। दीमक एवं अन्य कीड़ों से संरक्षण के लिए किनलफोस 25 किग्रा एवं निम की खली 400 किग्रा प्रति हैक्टेयर खेत में डालें। 

भारत के अंदर मूंगफली की खेती के लिए विभिन्न किस्में मौजूद हैं, जो कि निम्नलिखित हैं।

फैलने वाली वैरायटी:- आर जी-382 (दुर्गा), एम-13, एम ए-10, आर एस-1 और एम-335, चित्रा इत्यादि। 

मध्यम फैलने वाली वैरायटी:- आर जी-425, गिरनार-2, आर एस बी-87, एच एन जी-10 और आर जी-138, इत्यादि।

झुमका वैरायटी:- ए के-12 व 24, टी जी-37ए, आर जी-141, डी ए जी-24, जी जी-2 और जे एल-24 इत्यादि। 

मूंगफली के बीज की क्या दर होनी चाहिए

मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों के लिए 100 कि.ग्रा. और फैलने वाली प्रजातियों के लिए 80 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से जरुरी होता है।  

मूंगफली के बीज को किस प्रकार उपचारित किया जाए

मूंगफली के बीज का समुचित ढंग से अंकुरण करने के लिए बीज को उपचारित अवश्य कर लें। कार्बोक्सिन 37.5% + थाइरम 37.5 % की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. के अनुरूप बीज को उपचारित किया जाए। 

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मूंगफली की बुआई किस प्रकार से की जाए

मूंगफली की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जा सकती है। मूंगफली का बीजारोपण रेज्ड बेड विधि द्वारा करना चाहिए। इस विधि के अनुरूप बुवाई करने पर 5 कतारों के उपरांत एक-एक कतार खाली छोड़ते हैं। झुमका किस्म:- झुमका वैरायटी के लिए कतार से कतार का फासला 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की फासला 10 से.मी. आवश्यक होता है। विस्तार किस्मों के लिए:- विस्तार किस्मों के लिए कतार से कतार का फासला 45 से.मी. वहीं पौधे से पौधे का फासला 15 सें.मी. रखें। बीज को 3 से 5 से.मी. की गहराई में ही बोयें। 

मूंगफली की खेती में खरपतवार नियंत्रण

मूंगफली फसल में सत्यानाशी, कोकावा, दूधघास, मोथा, लकासा, जंगली चौलाइ, बनचरी, हिरनखुरी, कोकावा और गोखरू आदि खरपतवार प्रमुख रूप से उग जाते हैं। इनकी रोकथाम करने के लिए 30 और 45 दिन पर निदाई-गुड़ाई करें, जिससे कि खरपतवार नियंत्रण मूंगफली की जड़ों का फैलाव अच्छा होने के साथ मृदा के अंदर वायु का संचार भी हो जाता है। 

मूंगफली की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

जायद की फसल के लिए सिचाई – बतादें कि प्रथम सिंचाई बुवाई के 10-15 दिन उपरांत, दूसरी सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन के उपरांत एवं तीसरी फूल एवं सुई निर्माण के वक्त, चौथी सिचाई 50-75 दिन उपरांत मतलब फली बनने के समय तो वहीं पांचवी सिचाई फलियों की प्रगति के दौरान (75-90 दिन बाद) करनी जरूरी होती है। यदि मूंगफली की बुवाई वर्षाकाल में करी है, तब वर्षा के आधार पर सिंचाई की जाए। 

मूंगफली की फसल में लगने वाले कीट

रस चूसक/ पत्ती सुरंगक/ चेपा/ टिक्का/ रोजेट/फुदका/ थ्रिप्स/ दीमक/सफेद लट/बिहार रोमिल इल्ली और मूंगफली का माहू इत्यादि इसकी फसल में विशेष तौर पर लगने वाले कीट और रोग हैं। 

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मूंगफली की खुदाई हेतु सबसे अच्छा समय कौन-सा होता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि मूंगफली के पौधों की पत्तियों का रंग पीला होने लग जाए। फलियों के अंदर के टेनिन का रंग उड़ जाए और बीज का खोल रंगीन हो जाने के उपरांत खुदाई करें। खुदाई के दौरान खेत में हल्की नमी होनी चाहिए। बतादें, कि भंडारण और अंकुरण क्षमता स्थिर बनाये रखने के लिए खुदाई के उपरांत सावधानीपूर्वक मूंगफली को सुखाना चाहिए। मूंगफली का भंडारण करने से पूर्व यह जाँच कर लें कि मूंगफली के दानो में नमी की मात्रा 8 से 10% प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 

मूंगफली की खेती में कितना खर्च और कितनी आय होती है

मूंगफली की खेती को बेहतरीन पैदावार देने वाली फसल मानी जाती है। इसकी खेती करने में लगभग 1-2 लाख रुपए तक की लागात आ जाती है। यदि किसानों के हित में सभी कुछ ठीक रहा तो प्रति हेक्टेयर तकरीबन 5-6 लाख की आमदनी की जा सकती है।

मूंगफली की फसल को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कीट व रोगों की इस प्रकार रोकथाम करें

मूंगफली की फसल को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कीट व रोगों की इस प्रकार रोकथाम करें

मूंगफली भारत की प्रमुख तिलहनी फसलों में से एक है। इसकी सबसे ज्यादा खेती तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में की जाती है। बतादें, कि मूंगफली की फसल में विभिन्न प्रकार के कीट और रोग लगते हैं। 

इन रोगों एवं कीटों पर काबू करना काफी आवश्यक होता है। मूंगफली भारत की मुख्य तिलहनी फसलों में से एक है। इसकी सबसे ज्यादा खेती तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में होती है। 

इनके आलावा अन्य राज्यों जैसे- राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब में भी इसकी खेती होती है। बतादें, कि मूंगफली की बुवाई प्रायः मॉनसून शुरू होने के साथ ही हो जाती है। 

उत्तर भारत में यह वक्त सामान्य रूप से 15 जून से 15 जुलाई के बीच का होता है। मूंगफली की खेती के लिए समुचित जल निकास वाली भुरभुरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उत्तम होती है। 

साथ ही, मूंगफली की फसल में खरपतवार पर रोक लगाने के अलावा कीटों और रोगों पर नियंत्रण पाना भी अत्यंत आवश्यक होता है। क्योंकि, फसल में खरपतवार, कीट और रोगों का अधिक प्रभाव होने से फसल पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है।

मूंगफली की फसल को प्रभावित करने वाले कीट

मूंगफली की फसल में सामान्यतः सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक लगते हैं। मध्य प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई से पहले फोरेट 10जी या कार्बोफ्यूरान 3जी 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें। 

इसके अतिरिक्त दीमक के प्रकोप को रोकने के लिए क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें।

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साथ ही, रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर अथवा डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली. प्रति लीटर के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें। 

इसी प्रकार पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण के लिए क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का एक लीटर प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मूंगफली की फसल को प्रभावित करने वाल रोग व नियंत्रण

मूंगफली की फसल में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर एवं तना गलन व रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

साथ ही, छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें। वहीं रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके विस्तार को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी के मान से घोल बनाकर स्प्रे करना चाहिए।

मूंगफली की अच्छी पैदावार के लिए सफेद लट कीट की रोकथाम बेहद जरूरी है

मूंगफली की अच्छी पैदावार के लिए सफेद लट कीट की रोकथाम बेहद जरूरी है

मूंगफली की खेती से किसान भाई सिर्फ तभी पैदावार हांसिल कर सकते हैं। जब वह मूंगफली की फसल में सफेद लट के रोग से निजात पा सकें। सफेद लट मृदा में पाए जाने वाले बहुभक्षी कीट हैं। इनको जड़ लट के तौर पर भी जाना जाता है। बतादें, कि सफेद लट कीट अपना भोजन मृदा में मौजूद ऑर्गेनिक पदार्थ और पौधों की जड़ों से अर्जित करते हैं। मूंगफली के अतिरिक्त सफेद लट आलू, अखरोट, तम्बाकू एवं विभिन्न अन्य तिलहन, दालें और सब्जी की फसलें अमरूद, गन्ना, नारियल, सुपारी की जड़ों पर आक्रमण कर अपना भोजन अर्जित करते हैं। सफेद लट मूंगफली की फसल को 20-80 प्रतिशत तक हानि पहुँचा सकती हैं।

सफेद लट का प्रकोप किस समय ज्यादा होता है

सामान्य तौर पर सफेद लट साल भर मौजूद रहते हैं। परंतु, इनकी सक्रियता बरसात के मौसम के समय अधिक नजर आती है। मानसून की प्रथम बारिश मई के मध्य अथवा जून माह में वयस्क लट संभोग के लिए बड़ी तादात में बाहर आते हैं। खेत में व उसके आसपास मौजूद रहने वाली मादाएं प्रातः काल जल्दी मिट्टी में वापिस आती हैं। साथ ही, अंडे देना चालू कर देती हैं। पुनः अपने बचे हुए जीवन चक्र के लिए मिट्टी में लौट जाते हैं। आगामी मानसूनी बारिश तक तकरीबन एक मीटर की गहराई पर मृदा निष्क्रिय स्थिति में रहती है। 

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मूंगफली के खेत में सफेद लट संक्रमण के लक्षण

यह कीट भूमिगत है, इसलिए इस कीट से होने वाली हानि को सामान्य तौर पर दरकिनार कर दिया जाता है। संक्रमित पौधा पीला पड़ता दिखाई देने के साथ-साथ मुरझाया हुआ दिखाई पड़ता है। ऐसे में आखिर में पौधा सूख जाता है, जिसको बड़ी सहजता से जमीन से निकाला जा सकता है। भारी संक्रमण में पौधे मर जाते हैं। साथ ही, मरे हुए पौधे खेतों के भीतर पेचो में दिखाई देते हैं। सफेद लट पौधों की जड़ों को भी खाकर समाप्त कर देते हैं। लटों की वजह से मूंगफली की पैदावार में भारी हानि होती है। वयस्क लट रात में सर्व प्रथम पत्तियों में छेद करते हैं। उसके उपरांत सिर्फ मध्य पत्ती की मध्य शिरा को छोड़कर पूरी पत्ती को चट कर जाते हैं।

मूंगफली के खेत में सफेद लट कीट प्रबंधन

बतादें, कि यदि किसी इलाके में सफेद लटों का आक्रमण है, तो वहां इसका प्रबंधन एक अकेले किसान की कोशिशों से संभव नहीं है। इसके लिए समुदायिक रूप से सभी किसान भाइयों को रोकथाम के उपाय करने पड़ेंगे। सफेद लट का प्रबंधन सामुदायिक दृष्टिकोण के जरिए से करना ही संभव होता है। 

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सफेद लट का वयस्क प्रबंधन

  • प्रथम बारिश होने के उपरांत एक लाइट ट्रैप/हेक्टेयर की दर से लगाएं।
  • लट संभावित इलाकों में खेतों के आस-पास के वृक्षों की कटाई कर दें। साथ ही, जो झाड़ियां खेत के पास है उन्हें काट के खत्म कर दें।
  • सूर्यास्त के दौरान वृक्षों और झाड़ियों पर कीटनाशकों जैसे कि इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल @ 1.5 मिली/लीटर अथवा मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल @ 1.6 मिली/लीटर का छिड़काव करें।
  • पेड़ों के पास गिरे हुए लटों को एकत्रित करके उनको समाप्त कर दें।

सफेद लट कीट प्रबंधन

  • यदि जल की उपलब्धता है, तो अगेती बुवाई करें।
  • किसान भाई बेहतर तरीके से विघटित जैविक खाद का इस्तेमाल करें।
  • किसान भाई प्यूपा को प्रचंड धूप के संपर्क में लाने हेतु गर्मियों में गहरी जुताई करें।
  • छोटे पक्षियों को संरक्षित करने पर अधिक ध्यान दें, क्योंकि यह इन सफेद लट का शिकार करते हैं।
  • बुवाई से पूर्व मृदा में कार्बोफ्यूरान 3 सीजी @ 33.0 किग्रा/हेक्टेयर अथवा फोरेट 10 सीजी @ 25.0 किग्रा/हेक्टेयर मिलाएं।
  • सफेद लट संक्रमित खेतों में बुवाई वाली रेखाओं में कीटनाशकों जैसे कि थियामेथोक्सम 25 डब्ल्यूएस @ 1.9 लीटर/हेक्टेयर अथवा फिप्रोनिल 5 एफएस का @ 2.0 लीटर/हे. का उपयोग करें।
  • संभावित इलाकों में बीज उपचार के लिए बिजाई से पूर्व क्लोरपायरीफॉस 20EC @ 6.5-12.0 मिली/किग्रा अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL @ 2.0 मिली/किग्रा से बीज का उपचार करें।
  • खेतों में वयस्क सफेद लट नजर आने पर फसलों की जड़ों में क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी@ 4.0 लीटर/हेक्टेयर अथवा क्विनालफॉस 25 ईसी @ 3.2 से लीटर/हेक्टेयर छिड़काव करें।

मूंगफली की इस किस्म की खेती करने वाले किसानों की बेहतरीन कमाई होगी

मूंगफली की इस किस्म की खेती करने वाले किसानों की बेहतरीन कमाई होगी

मूगंफली की किस्म डी.एच. 330 की खेती कम जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है। मूंगफली की पैदावार मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में की जाती है। इन राज्यों में सूखे के कारण मूंगफली की पैदावार में किसानों के समक्ष काफी चुनौतियां आती हैं। यहां पर कम बारिश होने के कारण मूंगफली की कम पैदावार होती है। साथ ही, किसान भाइयों की कमाई भी कम होती है। ऐसी स्थिति में आज हम मूगंफली की प्रजाति डी.एच. 330 के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसकी खेती के लिए कम पानी की जरूरत पड़ती है।

मूंगफली की बुवाई कब की जाती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि
मूंगफली की बुवाई जुलाई के माह में की जाती है। यह बिजाई के 30 से 40 दिन पश्चात अंकुरित होने लगती है। इसमें फूल निर्माण के उपरांत फलियां आने लगती हैं। यदि आपके क्षेत्र में कम बारिश एवं सूखे की संभावना बनी रहती है, तो इसकी उत्पादकता में गिरावट नहीं होगी। इसके लिए 180 से 200 एमएम की वर्षा काफी होती है।

मूंगफली की खेती के लिए मृदा की तैयारी

मृदा की तैयारी करने के लिए खेत की जुताई के पश्चात एक बार इसमें सिंचाई कर दें। बुवाई के उपरांत जब पौधों में फलियां आना शुरू हो जाऐं तो पौधों की जड़ों की चारों तरफ मिट्टी को चढ़ा दें। इससे फली की पैदावार अच्छी तरह से होती है। मृदा की तैयारी करना बेहतर फसल उत्पादकता के लिए काफी अहम होती है। यह भी पढ़ें: मूंगफली की फसल को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कीट व रोगों की इस प्रकार रोकथाम करें

मूंगफली का अच्छा उत्पादन कैसे प्राप्त करें

किसान मूंगफली का उत्पादन बढ़ाने के फसल की बुवाई के समय जैविक खाद का छिड़काव कर सकते हैं। इसके अरिरिक्त इंडोल एसिटिक को 100 लीटर पानी में मिला कर वक्त-वक्त पर फसल पर छिड़काव करते रहें। यह भी पढ़ें: मूंगफली की अच्छी पैदावार के लिए सफेद लट कीट की रोकथाम बेहद जरूरी है

मूंगफली की फसल में लगने वाले रोगों से बचाव

मूंगफली की फसल के अंतर्गत कॉलर रॉट रोग, टिक्का रोग एवं दीमक लगने की संभावना काफी अधिक रहती है। इसके लिए कार्बेंडाजिम, मैंकोजेब जैसे फफूंदनाशक एवं मैंगनीज कार्बामेट की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के समयांतराल पर लगभग 4 से 5 बार छिड़काव करना चाहिए। किसान भाइयों को मूंगफली की इस किस्म डी.एच. 330 की बुवाई से बेहतरीन उत्पादन के लिए और किसी भी रोग से जुड़ी जानकारी हेतु कृषि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें।