भारत भर में बहुत सारे किसान आजकल परंपरागत खेती को छोड़कर नकदी फसलों की खेती कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि महंगाई के इस युग में किसानों को मूंगफली जैसी फसलों की खेती पर अधिक बल देना चाहिए।
आज हम किसानों को मूंगफली की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं। मूंगफली की खेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए आपको इसकी उन्नत किस्म चुनने से लेकर फसल की बुवाई के आधुनिक तरीके एवं अन्य विधियों की जानकारी प्रदान करेंगे।
किसान भाई यदि अपने खेत में मूंगफली की फसल को उगाना चाहते हैं, तो इसके लिए यह जानना बेहद जरूरी है, कि आपके इलाके की जलवायु मूंगफली की फसल के लिए अनुकूल है या नहीं ?
मूंगफली भारत की महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। मूंगफली की खेती भारत के तकरीबन सभी राज्यों में होती है। परंतु, जहां उपयुक्त जलवायु होती है, वहां इसकी फसल शानदार और दाने पुष्ट होते हैं।
सूर्य की ज्यादा रोशनी और उच्च तापमान मूंगफली के पौधे के विकास के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। कृषक उत्तम पैदावार के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तापमान होना जरूरी है।
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मूंगफली की खेती वर्षभर की जा सकती है। परंतु, खरीफ सीजन की फसल के लिए जून महीने के दूसरे पखवाड़े तक इसकी बुवाई की जा सकती है।
मूंगफली की फसल उगाने के लिए खेत की तीन से चार बार जुताई करनी चाहिए। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई सही होती है। मूंगफली के खेत में नमी बरकरार रखने के लिए जुताई के बाद पाटा लगाना अति आवश्यक है।
इससे मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है। खेती की तैयारी करने के समय 2.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का प्रयोग करें।
मूंगफली की कुछ उन्नत किस्में जैसे कि आर.जी. 425, 120-130, एमए 10 125-130, एम-548 120-126, टीजी 37ए 120-130, जी 201 110-120 प्रमुख हैं।
इनके अलावा मूंगफली की अन्य किस्में जैसे कि एके 12, -24, जी जी 20, सी 501, जी जी 7, आरजी 425, आरजे 382 आदि भी अच्छा फसल देती हैं।
मूंगफली की बुवाई के समय बहुत सारी बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। गेंहू की कटाई के बाद अप्रैल के आखिर में मूंगफली की बुवाई की जाती है। वहीं, कुछ जगहों पर 15 जून से 15 जुलाई के मध्य मूंगफली की बुवाई की जाती है।
बीज की बुवाई से पहले 3 ग्राम थायरम या 2 ग्राम मैंकोजेब दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपयोग किया जाना चाहिए। इस दवाई के प्रयोग से बीज में लगने वाले रोगों से बचाया जा सकता है और इससे मूंगफली बीज का अंकुरण भी अच्छा होता है।
मूंगफली की खेती में खरपतवार नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक होता है। खर-पतवार ज्यादा होने से फसल पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। बुवाई के लगभग 3 से 6 सप्ताह के बीच विभिन्न प्रकार की घास निकलने लगती है।
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कुछ उपाय या दवा के इस्तेमाल से आप सुगमता से इस पर काबू कर सकते हैं। अगर आपने खरपतवार का प्रबंधन नहीं किया तो 30 से 40 प्रतिशत फसल बर्बाद हो जाती है।
मूंगफली की खेती में किसानों को 40,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आय हो सकती है। सिंचित इलाकों में मूंगफली का औसत उत्पादन 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है।
अगर मूंगफली का सामान्य भाव 80 रुपये प्रति किलो रहा तो किसान को खर्चा निकाल कर तकरीबन 90,000 रुपये की बचत हो सकती है।