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मूली

मूली की सफल खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

मूली की सफल खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

मूली की फसल बीज बुवाई के 1 महीने की समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। सलाद में एक विशेष स्थान रखने वाली मूली सेहत के लिए अत्यंत फायदेमंद और अहम महत्व रखती है। 

मूली की खेती हर जगह काफी आसानी से की जा सकती है। बतादें, कि मूली अधिक तापमान के प्रति सहनशील है, किन्तु सुगंध विन्यास और आकार के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। 

क्योंकि, तापमान ज्यादा होने की वजह से जड़ें कठोर और चरपरी हो जाती हैं। मूली की सफल खेती के लिए 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना गया है। 

आज के वक्त में यह कहना कि सही नहीं होगा कि मूली केवल इसी मौसम में लगाई जाती है या लगाई जानी चाहिए। क्योंकि, मूली की उपलब्धता सर्दी, गर्मी और बरसात हर सीजन में बरकरार होती है।

मूली की खेती के लिए भूमि की तैयारी  

मूली की बेहतरीन पैदावार पाने के लिए रेतीली दोमट और दोमट मृदा ज्यादा उपयुक्त रहती है। मटियार भूमि मूली की फसल उत्पादकता के लिए अनुकूल नहीं होती है। 

क्योंकि, इसमें जड़ों का सही से विकास नहीं हो पाता है। बीज उत्पादन के लिए ऐसी जमीन का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पानी के निकास की बेहतरीन व्यवस्था हो और फसल के लिए प्रर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ उपलब्ध हो। 

मृदा गहराई तक हल्की, भुरभुरी व कठोर परतों से मुक्त होनी चाहिए। उसी खेत का चुनाव करें जिसमें विगत एक साल में बोई जाने वाली किस्म के अतिरिक्त कोई दूसरी किस्म बीज उत्पादन के लिए ना उगाई गई हो। 

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किसान भाई 5-6 जुताई कर खेत को बेहतर तरीके से तैयार करलें। मूली के लिए गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। क्योंकि, इसकी जड़ें जमीन में गहरी हो जाती हैं। 

गहरी जुताई के लिए ट्रेक्टर या मृदा पलटने वाले हल से जुताई करें। इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाएं, जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं।

मूली की फसल की बुवाई 

मूली एक ऐसी फसल है, जिसको वर्ष भर उगाया जा सकता है। फिर भी व्यवसायिक स्तर पर इसे मैदानों में सितंबर से जनवरी तक और पहाड़ों में मार्च से अगस्त तक बिजाई की जाती है। 

बतादें, कि साल भर मूली उगाने के लिए इसकी प्रजातियों के मुताबिक, उनकी बुवाई के समय का चयन किया जाता है। जैसे कि मूली की पूसा रश्मि पूसा हिमानी की बुवाई का समय मध्य सितम्बर है तथा जापानी सफेद एवं व्हाईट आइसीकिल किस्म की बुवाई का समय मध्य अक्टूबर है। 

वहीं, पूसा चैत्की की बुवाई मार्च के आखिरी समय में करते हैं और पूसा देशी किस्म कि बुवाई अगस्त माह के बीच में की जाती है। 

मूली की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 

मूली की शानदार पैदावार लेने के लिये खेत में 15 से 20 टन गोबर की सड़ी खाद बुवाई के 15 दिन पूर्व खेत में डाल देनी चाहिए। इसके अलावा 80 से 100 किग्रा नत्रजन, 40-60 किग्रा फास्फोरस और 80-90 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

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नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के वक्त ही डाल देनी चाहिए। वहीं, बचे हुए आधे नत्रजन को दो बार में देना अत्यंत लाभकारी होता है। 

मूली की फसल में सिंचाई प्रबंधन   

वर्षा ऋतू की फसल में सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं है। परंतु, गर्मी वाली फसल में 4-5 दिन के अंदर सिंचाई करें। वहीं, सर्दी वाली फसल में 10 से 15 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। 

मूली की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ? 

बतादें, कि फसलों व सब्जियों की भाँति मूली की उत्तम उपज के लिए बीज का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसलिए किसान मूली के बीज का बहुत सोच समझकर चयन करें। 

मूली की उन्नत किस्मों में पंजाब सफेद, रैपिड रेड, व्हाइट टिप, पूसा हिमानी, पूसा चेतवी, पूसा रेशमी और हिसार मूली नं. 1 आदि प्रमुख किस्में हैं। पूसा चेतवी जहां मध्यम आकार की सफेद चिकनी मुलायम जड़ वाली है, वहीं यह अत्यधिक तापमान वाले समय के लिए भी अधिक अनुकूल पाई गई है। 

इसी प्रकार पूसा रेशमी भी काफी ज्यादा उपयुक्त है। साथ ही, अगेती किस्म के तोर पर अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार अन्य किस्में भी अपना विशेष महत्व रखती हैं और हर जगह, हर समय लगाई जा सकती हैं। 

मूली की फसल में लगने वाले रोग एवं प्रबंधन

मूली की फसल को एफिड, सरसों की मक्खी, पत्ती काटने वाली सूंडी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पीस कर बेहतरीन ढ़ंग से मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिड़काव करें।

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सफेद गेरुआ रोग: इसमें पत्ती के निचले स्तर पर सफेद फफोले बन जाते है।

रोकथाम: रिडोमिल एम. जेड..78 नामक फफूंदी नाशक को 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

सफेद किट्ट: पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे दिखाई देते हैं। 

रोकथाम: बीज को बोने से पहले अच्छी तरीके से शोधित कर लेना चाहिए. बाविस्टीन, प्रोपीकोनाजोल 1.5-2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। 

झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों पर गोल.गोल छल्ले के रूप में धब्बे दिखाई पड़ते हैं।

रोकथाम: बीज को बाविस्टीन 1 से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से सूचित करना चाहिए. मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

सब्जियां हमारे शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी होती हैं। सब्जियों में विभिन्न विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जो हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं जिससे हमारा शरीर कार्य करने योग बनता है। 

उन सब्जियों में से एक मूली (Radish) भी है, जिनको खाने से हमें लाभ होता हैं। मूली की खेती की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

मूली की खेती

मूली की फसल किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। यह कम लागत और कम समय में अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर इस फसल द्वारा फायदा पहुंचता है और किसान काफी अच्छे आय की प्राप्ति करते हैं।

भारत में मूली उत्पादन करने वाले कुछ मुख्य क्षेत्र है जैसे: पश्चिम बंगाल,असम, हरियाणा गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि क्षेत्रों में मूली की खेती काफी उच्च कोटि पर की जाती है। 

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मूली की ख़ेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मूली की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु ठंडी की होती हैं। ठंडी में मूली की फसल की अच्छी प्राप्ति होती है किसान ठंडी के मौसम में मूली की खेती कर बहुत ही अच्छा लाभ उठाते हैं। 

मूली की खेती के लिए 10 से 15 डिग्री सेल्सियस का तापमान बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। कभी-कभी अधिक तापमान की वजह से मूली की जड़े कड़ी और कड़वी रह जाती है। 

इस प्रकार अधिक तापमान मूली की फसल के लिए उपयोगी नहीं है।किसानों द्वारा आप मूली की फसल को सालभर उगा सकते हैं पर उच्च मौसम ठंडी का है। 

मूली की ख़ेती के लिए भूमि को तैयार करना

मूली की ख़ेती के लिए भूमि का अच्छे से चयन कर लेना चाहिए। किसान मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाकों में बुवाई की सलाह देते हैं। किसान मैदानी क्षेत्रों में मूली की बुवाई का उचित समय सितंबर से जनवरी तक का उपयुक्त समझते हैं।

वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी इलाकों में मूली की बुवाई लगभग अगस्त के महीने तक होती है। मूली की खेती के लिए जीवांशयुक्त, दोमट मिट्टी या बलुई मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं। 

खेती के लिए यह दोनों मिट्टी बहुत ही उपयोगी होती है। बुवाई करने के लिए मिट्टी के लिए सबसे अच्छा पीएच मान 6 पॉइंट 5 के आस पास रखना जरूरी होता है। 

मूली की बुवाई

मूली की बुवाई से पूर्व खेतों को अच्छी तरह से जुताई की बहुत आवश्यकता होती है।खेत की जुताई आप को कम से कम 6 से 5 बार करनी होती है तब जाकर खेत अच्छी तरह से तैयार होते हैं। 

मूली की फसल गहरी जुताई मांगती है क्योंकि इसकी जड़े भूमि में काफी अंदर तक जाती है। जब जताई हो जाए तो इनको ट्रैक्टर या मिट्टी पलटने वाले हल द्वारा भी जुताई की जाती है। 

इसके बाद किसान करीब दो से तीन बार कल्टीवेटर खेतों में चला कर भी जुताई करते हैं। जुताई हो जाने के बाद पाटा लगाना अनिवार्य है।

मूली की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

मूली की ख़ेती के लिए किसान कुछ सामान्य प्रकार की खाद का इस्तेमाल करते हैं। जैसे: करीब 150 क्विंटल गोबर की खाद का यह फिर कम्पोस्ट का इस्तेमाल, नाइट्रोजन 100 किलो की मात्रा मे, स्फुर 50 किलो, 100 किलो लगभग पोटाश की आवश्यकता पड़ती है प्रति हेक्टेयर के हिसाब से, इन खादो को विभिन्न विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। 

जैसे: स्फुर,पोटाश, गोबर की खाद को खेत तैयार करते वक्त इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के लगभग 15 से 30 दिनों के बाद दो भागों में विभाजित कर नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है।

मूली की ख़ेती के लिए सिंचाई

मूली की बुवाई, मूली की ख़ेती करते समय भूमि में नमी बरकरार रखना आवश्यक होता है। यदि भूमि नम नहीं है तो बुवाई करने के तुरंत बाद हल्की पानी से सिंचाई कर दें ताकि फसल उत्पादन हो सके। 

वर्षा ऋतु के मौसमों में मूली की फ़सल को सिंचाई देने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा ऋतु में भूमि जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक होता है। मूली की फसल गर्मी में 4 से 5 दिन के अंदर सिंचाई मांगती है।

वहीं दूसरी ओर ठंडी के दिनों में मूली की फसल में 10 से 15 दिन के अंदर सिंचाई करना होता है। किसान आधी मेड़ की सिंचाई करते हैं इस प्रक्रिया द्वारा पूरी मेड़ में नमीयुक्त के साथ भुरभुरी पन बना रहता हैं।

मूली की फसल को कीट मुक्त रखने के उपाएं

मूली की फसल में विभिन्न विभिन्न प्रकार के कीट लग सकते हैं। फसल को कीट मुक्त बनाए रखने के लिए आपको खेत में खरपतवार की उचित व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए। खेतों में समय समय पर आपको निराई गुड़ाई करते रहना जरूरी होता है। 

मूली की फसल के लिए गहरी जुताई करें और जब सबसे आखिरी जुताई करें, तो खाद-उर्वरक में 6 से 8 किलोग्राम फिप्रोनिल को खाद में भली प्रकार से मिलाकर खेतों में डालें। इन प्रतिक्रिया को अपनाने से खेतों में दीमक तथा कीटों से बचाव किया जाता है।

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल मूलीकीखेती(Radish cultivation in hindi) काफी पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल के जरिए आपने विभिन्न विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त की होगी। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

किसान नवीन तकनीक से उत्पादन कर आलू, मूली और भिंडी से कमाएं बेहतरीन मुनाफा

किसान नवीन तकनीक से उत्पादन कर आलू, मूली और भिंडी से कमाएं बेहतरीन मुनाफा

फिलहाल मंडी में आलू, भिंडी एवं मूली का समुचित भाव प्राप्त करने के लिए काफी मशक्क्त करनी होती है। अगर किसान नई तकनीक और तरीकों से कृषि करते हैं, तो वह अपनी पैदावार को अन्य देशों में भी भेज करके बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान दौर में खेती-किसानी ने आधुनिकता की ओर रुख कर लिया है, जिसकी वजह से किसान अपने उत्पादन से मोटी आमदनी भी करते हैं। किसानों को यह बात समझने की बहुत जरूरत है, कि पारंपरिक तौर पर उत्पादन करने की जगह किसान विज्ञान व वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार खेती करें। क्योंकि किसानों की इस पहल से वह कम खर्च करके अच्छा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं, साथ ही, किसानों को नवाचार की अत्यंत आवश्यकता है। अगर न्यूनतम समयावधि के अंतर्गत किसान कृषि जगत में प्रसिद्धि एवं धन अर्जित करना चाहते हैं तो किसानों को बेहद जरूरत है कि वह नवीन रूप से कृषि की दिशा में अग्रसर हों। किसान उन फसलों का उत्पादन करें जो कि बाजार में अपनी मांग रखते हैं साथ ही उनसे अच्छा लाभ भी मिल सके। किसान हरी भिंडी की जगह लाल भिंडी, सफेद मूली के स्थान पर लाल मूली एवं पीले आलू की बजाय नीले आलू का उत्पादन करके किसान अपना खुद का बाजार स्थापित कर सकते हैं। इस बहुरंगी कृषि से किसान बेहद मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी वजह यह है, कि इन रंग बिरंगी सब्जियों की मांग बाजार में बहुत ज्यादा रहती है। परंतु फिलहाल भारत में भी सब्जियां केवल खाद्यान का माध्यम नहीं है, वर्तमान में इनकी बढ़ती मांग से किसान सब्जियों को विक्रय कर बहुत मोटा लाभ कमा सकते हैं। इसके अतिरिक्त भी लाल भिंडी में कैल्शियम, जिंक एवं आयरन जैसे तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। ऐसे बहुत सारे गुणों से युक्त होने की वजह से बाजार में इस भिंडी का भाव 500 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से अर्जित होता है। यह साधारण सी फसल आपको बेहतरीन मुनाफा प्रदान कर सकती है।
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नीले आलू के उत्पादन से कमाएं मुनाफा

हम सब इस बात से भली भांति परिचित हैं, कि आलू की फसल को सब्जियों का राजा कहा जाता है। इसलिए आलू प्रत्येक रसोई में पाया जाता है, आजतक आपने सफेद या पीले रंग के बारे में सुना होगा और खाए भी होंगे। परंतु फिलहाल बाजार में आपको नीले रंग का आलू भी देखने को मिल जायेगा, बहुत सारे पोषक तत्वों से युक्त है। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, मेरठ के वैज्ञानिकों ने नीले रंग के आलू की स्वदेशी किस्म को विकसित कर दिया है। इस किस्म को कुफरी नीलकंठ के नाम से जाना जाता है, इस आलू में एंथोसाइनिल एवं एंटी-ऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं। एक हैक्टेयर में नीले आलू की बुवाई करने के उपरांत किसान 90 से 100 दिन की समयावधि में तकरीबन 400 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नीला आलू दोगुने भाव में विक्रय हो बिकता है, इस अनोखी सब्जी के उत्पादन से पूर्व मृदा परीक्षण करके कृषि वैज्ञानिकों से सलाह-जानकारी ले सकते हैं।

लाल मूली के उत्पादन से होगा लाभ

मूली एक ऐसी फसल है,जो कि सभी को बहुत पसंद आती है। मूली का उपयोग घर से लेकर ढाबे तक सलाद के रूप में किया जाता है। परंतु वर्तमान दौर में अन्य सब्जियों की भाँति मूली का रंग भी परिवर्तित हो गया है। आपको बतादें कि आजकल बाजार में लाल रंग की मूली भी उपलब्ध है। लाल रंग की मूली का उत्पादन सर्दियों के दिनों में किया जाता है। जल-निकासी हेतु अनुकूल बलुई-दोमट मिट्टी लाल मूली के उत्पादन हेतु सबसे बेहतरीन मानी जाती है। किसान नर्सरी में भी लाल मूली की पौध को तैयार कर इससे अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। मूली कतारों में उत्पादित की जाती है। इसकी 40 से 60 दिनों के अंदर किसान कटाई कर सकते हैं, जिससे 54 क्विंटल तक उत्पादन लिया जा सकता है। साधारण-सफेद मूली का बाजार में भाव 50 रुपये प्रति किलोग्राम होता है। परंतु देश-विदेश में लाल रंग की मूली का भाव 500 से 800 रुपये किलोग्राम है।
मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली का सेवन भारत के सभी हिस्सों में किया जाता है। आज हम आपको इसमें होने वाले रोगों के बचाव के बारे में बताते हैं। भारत के हर हिस्से में मूली की खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए रेतीली भुरभुरी मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मूली में विटामिन, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और कैल्सियम भरपूर मात्रा में मौजूद होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की पीएच वैल्यू 6 से 8 के मध्य होनी चाहिए। आज हम आपको इसमें लगने वाले रोग एवं उनसे बचाव के विषय में आपको जानकारी देने जा रहे हैं।

बालदार सुंडी

यह रोग मूली में शुरुआत की अवस्था में ही लग जाता है। बालदार सुंडी रोग पौधों को पूरी तरह से खा जाता है। यह कीट पत्तियों सहित पूरी फसल का नुकसान कर देते हैं, जिससे पौधे अपना भोजन सूर्य के प्रकाश से ग्रहण नहीं कर पाते हैं। इसके बचाव के लिए क्विनालफॉस उर्वरक का उपयोग किया जाता है। यह भी पढ़ें:
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ह्वाइट रस्ट

इस प्रकार के कीट आकार में बेहद छोटे होते हैं। यह मूली के पत्तियों पर लगते हैं। यह कीट पत्तियों का रस चूसकर उसको पीले रंग का कर देते हैं। इस किस्म का रोग इस बदलते जलवायु परिवर्तन की वजह से ज्यादा देखने को मिल रहा है। इससे संरक्षण के लिए आप मैलाथियान उर्वरक की उचित मात्रा का छिड़काव मूली के पौधों पर कर सकते हैं।

झुलसा रोग

यह मौसम के मुताबिक लगने वाला रोग है। मूली में यह रोग जनवरी और मार्च महीने के मध्य लगता है। झुलसा रोग लगने से पौधों की पत्तियों पर काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। साथ ही, मूली का रंग भी काला पड़ जाता है। इससे बचाव के लिए मैन्कोजेब तथा कैप्टन दवा का उचित मात्रा मे जल के घोल के साथ छिड़काव करने से इस रोग को रोका जा सकता है। यह भी पढ़ें: किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

काली भुंडी रोग

यह भी पत्तियों में लगने वाला एक कवक रोग है। इसमें पौधों की पत्तियों में पानी कमी होने की वजह से यह सूख सी जाती हैं। यदि यह रोग अन्य मूली में लगता है, तो यह पूरी फसल में फैल जाता है। किसान को बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए आप इसके लक्षण दिखते ही 6 से 10 दिन के समयांतराल पर मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं। उपरोक्त में यह सब मूली की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग हैं। इन रोगों की वजह से किसानों को काफी हानि का सामना करना पड़ता है।
किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की 70% फीसदी से ज्यादा आबादी कृषि व कृषि संबधी कार्यों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। हम लोग खेती-किसानी का कार्य हम जितना सहज समझते हैं, वास्तविकता में यह उतना ज्यादा आसान नहीं है। 

दरअसल, खेती में भी कृषकों को जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। कृषि क्षेत्र के अंदर सर्वाधिक जोखिम फसल को लेकर है। अगर उचित समय पर फसल की बुवाई कर दी जाए तो पैदावार शानदार हांसिल हो सकती है। 

वहीं अगर समय का प्रतिकूल चुनाव किया गया तो कोई सी भी फसल बोई जाए उत्पादन बहुत कम हांसिल होता है। परिणामस्वरूप, किसानों की आमदनी में भी गिरावट आ जाती है। 

किसानों को प्रत्येक फसल की शानदार उपज प्राप्त हो सके इसके लिए हम आपको बताएंगे कि आप किस महीने में कौन-सी सब्जी की बुवाई करें। जिससे आपको ज्यादा उपज के साथ ही बेहतरीन लाभ हांसिल हो सके। माहवार सब्जी की खेती कृषकों के लिए सदैव लाभ का सौदा रही है। 

किसान भाई जनवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को वर्ष के प्रथम महीने जनवरी में किसान भाईयों को मूली, पालक, बैंगन, चप्पन कद्दू, राजमा और शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। 

किसान भाई फरवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

फरवरी के महीने में राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्डी, अरबी, ग्वार बोना ज्यादा लाभदायक होता है। 

किसान भाई मार्च के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को मार्च के महीने में लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिंडी, अरबी, ग्वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया और करेला की खेती करने से लाभ हांसिल हो सकता है। 

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किसान भाई अप्रैल के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अप्रैल के महीने में चौलाई, मूली की बुवाई कर सकते हैं। 

किसान भाई मई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई मई के महीने में मूली, मिर्च, फूलगोभी, बैंगन और प्याज की खेती से शानदार पैदावार अर्जित कर सकते हैं। 

किसान भाई जून के महीने में इन फसलों को उगाएं  

कृषक जून के महीने में किसानों को करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्डी, टमाटर, प्याज, चौलाई, शरीफा, फूलगोभी, खीरा-ककड़ी और लोबिया आदि की बुवाई करनी चाहिए।

किसान भाई जुलाई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई जुलाई के महीने में खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिंडी, टमाटर, चौलाई, मूली की फसल लगाना ज्यादा मुनाफादायक रहता है।

किसान भाई अगस्त के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अगस्त के महीने में बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्स स्प्राउट, चौलाई, गाजर, शलगम और फूलगोभी की बुवाई करना अच्छा रहता है।

किसान भाई सितंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई सितंबर के महीने में आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकोली, गाजर, शलगम और फूलगोभी की खेती से शानदार उपज प्राप्त हो सकती है।

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किसान भाई अक्टूबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई अक्टूबर के महीने में काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, राजमा, मटर, ब्रोकोली, सलाद, बैंगन, हरी प्याज, लहसुन, गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू और टमाटर की खेती करना लाभकारी हो सकता है।

किसान भाई नवंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई नवंबर के महीने में टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज, मटर, धनिया, चुकंदर, शलगम और फूलगोभी की फसल को उगाकर कृषक बेहतरीन लाभ कमा सकते हैं।

किसान भाई दिसंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई दिसंबर के महीने में पालक, पत्ता गोभी, सलाद, बैंगन, प्याज, टमाटर, काली सरसों के बीज और मूली की खेती से बेहतरीन मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।

जानिए मूली की खेती कैसे करें

जानिए मूली की खेती कैसे करें

मूली की खेती पूरे भारत वर्ष में की जाती है. इसकी खेती मैदानी इलाकों के साथ साथ पहाड़ी इलाकों में भी की जाती है. मूली (Radish) को सलाद, सब्जी , अचार के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. इसको खाने से मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. कहते हैं ना की स्वस्थ शरीर ही पहला सुख होता है. अगर आपका शरीर स्वस्थ नहीं है तो आपके पास कितनी भी धन दौलत हो आप उनका सुख नहीं भोग सकते हो. तो ईश्वर ने हमें सब्जियों के रूप में ऐसी ओषधियाँ दी है जिनको खाने से हम अपना शरीर बिलकुल स्वस्थ्य रख सकते हैं. इन्हीं सब्जियों में मूली भी एक सब्जी है. मूली एक जड़ वाली सब्जी है इसमें विटामिन सी एवं खनीज तत्व का अच्छा स्त्रोत है| मूली लिवर  एवं पीलिया मरीजों के लिए भी अच्छी बताई गई है. वैसे तो मूली वर्षभर उपयोग में ली जाती है किन्तु मूली को सर्दियों में ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है. इसके पत्तों की सब्जी बनाई जाती है एवं इसके जड़ वाले हिस्से की सब्जी, सलाद, अचार और पराठा भी बनाया जाता है.

खेत की तैयारी:

जब हम मूली के लिए खेत की तैयारी करते हैं तो सबसे पहले हम उस खेत को गहरे वाले हल से जुताई करते हैं उसके बाद उसको कल्टीवेटर से 3 - 4 जुताई करके हलका पाटा लगा देते हैं. इसकी बुबाई अगर बेड बना करें तो ज्यादा सही रहता है. ये एक जड़ वाली फसल है तो इसको गहराई वाली और फोक मिटटी की आवश्यकता होती है. इसमें गोबर के खाद की मात्रा अच्छी खासी होनी चाहिए.

मूली की उन्नत किस्में:

मूली की फसल लेने के लिए ऐसी उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए, जो देखने में सुंदर व खाने में स्वादिष्ट हो, साथ ही अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली होनी चाहिए| मूली की खेती मैदानी इलाकों में सितंबर से जनवरी तक और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अगस्त तक आसानी से की जा सकती है| वैसे मूली की तमाम ऐसी एशियन और यूरोपियन किस्में उपलब्ध हैं, जो मैदानी व पहाड़ी इलाको में पूरे साल उगाई जा सकती है| इस लेख में मूली की उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है| मूली की खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूली की उन्नत खेती कैसे करें



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तोरई की खेती में भरपूर पैसा

 

मूली की उन्नत किस्में एवं कुछ एशियन किस्में:

मूली की कुछ किस्में ऐसी हैं जो की भारत के साथ साथ पड़ोस के और सामान वातावरण वाले देशों में भी उगाई जाती है. विवरण निचे दिया गया है: पूसा चेतकी- डेनमार्क जनन द्रव्य से चयनित यह किस्म पूर्णतया सफेद, मूसली, नरम, मुलायम, ग्रीष्म ऋतु की फसल में कम तीखी जड़ 15 से 22 सेंटीमीटर लम्बी, मोटी जड़, पत्तियां थोड़ी कटी हुई, गहरा हरा एवं उर्ध्वमुखी, 40 से 50 दिनों में तैयार, ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु हेतु उपयुक्त फसल (अप्रैल से अगस्त ) और औसत पैदावार 250 से 270 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है| जापानी सफ़ेद- इस किस्म की जड़ें सफ़ेद लम्बी 15 से 22 सेंटीमीटर बेलनाकार, कम तीखी मुलायम और चिकनी होती है| जड़ों का नीचे का भाग कुछ खोखला होता है| इसकी बुवाई का सर्वोत्तम समय 15 अक्तूबर से 15 दिसंबर तक है बोने के 45 से 55 दिन बाद फसल खुदाई के लिए तैयार और पैदावार क्षमता 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है| पूसा हिमानी- इस मूली की किस्म की जड़े 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी, मोटी, तीखी, अंतिम छोर गोल नहीं होते, सफेद एवं टोप हरे होते है| हल्का तीखा स्वाद और मीठा फ्लेवर, बोने के 50 से 60 दिन में परिपक्व, दिसम्बर से फरवरी में तैयार और औसत पैदावार 320 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है. पूसा रेशमी- इसकी जड़ें 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी , मध्यम मोटाई वाली, लेकिन उपरी सिरे वाली, समान रूप से चिकनी और हलकी तीखी होती है| उपरी भाग मध्यम ऊंचाई वाला और हलके हरे रंग कि कटावदार पतियों वाला होता है| यह किस्म मध्य सितम्बर से अक्टूम्बर तक बुवाई के लिए उपयुक्त है बोने के 55 से 60 दिन बाद तैयार और उपज क्षमता 315 से 350 प्रति हेक्टेयर है| जौनपुरी मूली- यह उत्तर प्रदेश कि प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय किस्म है| यह 70 से 100 सेंटीमीटर लम्बी और 7 से 10 सेंटीमीटर मोटी होती है| इस किस्म का छिलका और गुदा सफ़ेद होता है| गुदा मुलायम, कम चरपरा और मीठा होता है| हिसार मूली न 1- इस मूली की उन्नत किस्म की जड़ें सीधी और लम्बी बढ़ने वाली होती है| जड़ें सफ़ेद रंग कि होती है, यह किस्म सितम्बर से अक्तूबर तक बोई जाती है| यह किस्म बोने के 50 से 55 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है| यह प्रति हेक्टेयर 225 से 250 क्विंटल तक उपज दे देती है| कल्याणपुर 1- इस मूली की उन्नत किस्म की जड़ें सफ़ेद चिकनी मुलायम और मध्यम लम्बी होती है| बोने के 40 से 45 दिन बाद यह खुदाइ के लिए तैयार हो जाती है| पूसा देशी- इस मूली की किस्म कि जड़ें सफ़ेद, मध्यम, मोटी 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी और बहुत चरपरी होती है| इसकी जड़ें नीचे कि ओर पतली होती है| पौधों का उपरी भाग मध्यम ऊंचाई वाला होता है और पत्तियां गहरे हरे रंग कि होती है| यह मध्य अगस्त से अक्टूम्बर के आरंभ तक बुवाई के लिए उत्तम किस्म है| यह बोने के 40 से 55 दिन बाद तैयार हो जाती है. पंजाब पसंद- यह जल्दी पकने वाली किस्म है, यह बिजाई के बाद 45 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं| इसकी जड़ें लम्बी, रंग में सफेद और बालों रहित होती है| इसकी बिजाई मुख्य मौसम और बे-मौसम में भी की जा सकती है| मुख्य मौसम में, इसकी औसतन पैदावार 215 से 235 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और बे-मौसम में 150 क्विंटल होती है| अन्य एशियन किस्में- चाइनीज रोज, सकुरा जमा, व्हाईट लौंग, के एन- 1, पंजाब अगेती और पंजाब सफेद आदि है| ये किस्में भी अच्छी पैदावार वाली और आकर्षक है| यूरोपियन किस्में व्हाईट आइसीकिल- यह मूली की किस्म ठंडी जलवायु के लिए उपयुक्त है| इसकी जड़ें सफ़ेद, पतली कम चरपरी और स्वादिष्ट होती है| इसकी जड़ें सीधी बढ़ने वाली होती है| जो नीचे के ओर पतली होती जाती है| इसे खेत में लम्बे समय तक रखने पर भी इसकी जड़ें खाने योग्य बनी रहती है| इसे 15 अक्टूम्बर से फ़रवरी तक कभी भी बो सकते है| इस किस्म कि मुली बोने के करीब 30 दिन बाद तैयार हो जाती है| रैपिड रेड व्हाईट टिपड- इस किस्म कि मूली का छिलका लाल रंग का होता है| जो थोड़ी सी सफेदी लिए होता है| जिसके कारण मुली देखने में अत्यंत आकर्षक लगती है| इसकी जड़ें छोटे आकार वाली होती है और उनका गुदा सफ़ेद रंग का होता है तथा मुली कम चरपरी होती है| इस किस्म कि बुवाई मध्य अक्टूम्बर से फ़रवरी तक कभी भी कि जा सकती है| इस किस्म कि मुली बोने के लगभग 25 से 30 दिन बाद तैयार हो जाती है| स्कारलेटग्लोब- यह मूली की अगेती किस्म है, जो बोने के 25 से 30 दिन बाद तैयार हो जाती है| इसकी जड़ें छोटी मुलायम और ग्लोब के आकार वाली होती है| इसकी जड़ें खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगती है| फ्रेंच ब्रेकफास्ट- यह भी मूली की एक अगेती किस्म है, यह किस्म बुवाई के 27 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है| जड़ें बड़े आकार में छोटी, मुलायम, गोलाकार तथा कम चरपरी होती है| जो खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगती है| मूली के बीज बनाने के तरीके: इसके अच्छे और तंदुरुस्त पौधों को चुन कर उसे पकने के लिए छोड़ देना चाहिए. जब ये पक जाएँ तो इन्हें काट कर अच्छे से सुखा लेना चाहिए. इसके बीजों को किसी सूखी हुई जगह पर रख लेना चाहिए.  
बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा

बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा

बारिश के मौसम में खेतों में जहां पानी की समस्या नहीं रहती, वहीं ज्यादा बारिश की स्थिति में पैदावार के नष्ट होने का भी खतरा मंडराने लगता है। लेकिन हम बात कर रहे हैं बारिश के मौसम में कम समय, अल्प लागत में पनपने वाली ऐसी सब्जियों की जिनसे किसान वर्ग दमदार उत्पादन के साथ तगड़ा मुनाफा कमा सकता है। आम जन भी इससे अपने घरेलू खर्च में बचत कर सकते हैं। मानसून की बारिश सब्जियों की पैदावार के लिए एक तरह से आदर्श स्थिति है। ऐसा इसलिए क्योंकि बरसात के मौसम में सिंचाई की समस्या से किसान को छुटकारा मिल जाता है। देश के कई हिस्सों में मानसून की दस्तक के साथ ही वेजिटेबल फार्मिंग (Vegetable Farming) यानी सब्जियों की पैदावार का भी बढ़िया वक्त आ चुका है। मानसून का मौसम खरीफ की किसानी के लिए अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा कुछ सब्जियां ऐसी भी हैं जो बारिश के पानी की मदद से तेजी से वृद्धि करती हैं।

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 सिंचाई की लागत कम होने से ऐसे में किसान के लिए मुनाफे के अवसर बढ़ जाते हैं। तो फिर जानें कौन सी हैं वो सब्जियां और उन्हें किस तरह से उगाकर किसान लाभ हासिल कर सकते हैं। 

ककड़ी (खीरा) और मूली

किसानों के लिए सलाद के साथ ही तरकारी में उपयोग की जाने वाली ककड़ी (खीरा) और मूली बारिश में कमाई का तगड़ा जरिया हो सकती है। इन दोनों के पनपने के लिए बारिश का मौसम एक आदर्श स्थिति है। इतना ही नहीं इसकी पैदावार के लिए किसान को ज्यादा जगह की जरूरत भी नहीं पड़ती, बल्कि छोटी सी जगह पर किसान मात्र 21 से 28 दिनों के भीतर बेहतर कमाई कर सकते हैं। 

फली वाली सब्जियां

जी हां हरी-भरी बीन्स जैसे कि सेम, बरबटी लगाकर भी किसान कम समय में अच्छे उत्पादन के साथ बढ़िया आमदनी कर सकते हैं।

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फलीदार सब्जियों के पनपने के लिए जुलाई और अगस्त का महीना सबसे अनुकूल माना गया है। बेलदार पौधे होने के कारण इन्हें लगाने के लिए भी ज्यादा जरूरत नहीं होती। पेड़ या दीवार के सहारे फलीदार सब्जियों की पैदावार कर किसान रुपयों की बेल भी पनपा सकते हैं। मानसूनी जलवायु फलीदार पौधों के विकास के लिए आदर्श स्थिति भी है। 

कड़वा नहीं कमाऊ है करेला

कड़वाहट की बात आए तो भारत में यह जरूर कहते हैं कि, करेला वो भी नीम चढ़ा, लेकिन किसान के लिए कमाई के दृष्टिकोण से करेला मिठास घोल सकता है। दरअसल करेला कड़वा जरूर है, लेकिन यह कई तरीकों से औषधीय गुणों से भी भरपूर है। करेला मनुष्य को कई तरह की बीमारियों से बचाव करने में भी सहायक है। विविध व्यंजनों एवं औषधीय रूप से महत्वपूर्ण करेले की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। तो किसान बारिश के कालखंड में बेलदार करेले की पैदावार कर अल्प अवधि में बड़ा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। 

हरी मिर्च की खनक और धनिया की महक

कहते हैं न साग-तरकारी का स्वाद हरी मिर्च और धनिया की रंगत के बगैर अधूरा है। खास तौर पर बारिश के मौसम में बाजार में हरी मिर्च और धनिया की मांग और दाम उफान पर रहते हैं। किसान के खेत की मिट्टी बलुआ दोमट या लाल हो तो यह फिर सोने पर सुहागा वाली स्थिति होगी। ये दोनों ही मिट्टी इनकी पैदावार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। बारिश के मौसम किसान खेत में, जबकि इसके स्वाद के दीवाने लोग अपने किचन या फिर छत एवं बाग-बगीचे में मिर्च और धनिया को उगा सकते हैं। किचन में उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक की जालीदार टोकनियों में भी पानी की मदद से हरा-भरा धनिया तैयार किया जा सकता है। 

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भटा, टमाटर की पैदावार

वैसे तो बैंगन यानी की भटा और टमाटर की पैदावार साल भर की जा सकती है। लेकिन बारिश का मौसम इन दोनों सब्जियों की पैदावार के लिए बहुत अनुकूल माना गया है। सर्दी में भी इनकी खेती की जा सकती है। तो क्या तैयार हैं आप अपने खेत, छत या फिर बगीचे में ककड़ी, मूली, फलीदार सब्जियों, धनिया-मिर्च और भटा-टमाटर जैसी किफायती सब्जियों को उगाने के लिए।

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

सितंबर महीने में अपने परती पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई

भारत के खेतों में मानसून की शुरुआत में बोयी गयी
खरीफ की फसलों को अक्टूबर महीने की शुरुआत में काटना शुरू कर दिया जाता है, पर यदि किसी कारणवश आपने खरीफ की फसल की बुवाई नहीं की है और जुलाई या अगस्त महीने के बीत जाने के बाद सितंबर में किसी फसल के उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं, तो आप कुछ फसलों का उत्पादन कर सकते है, जिन्हें मुख्यतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मानसून में बदलाव :

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में भारत के लगभग सभी हिस्सों से मानसून लौटना शुरू हो जाता है और इसके बाद मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ना ही ज्यादा ठंडा रहता है। इस मौसम में किसी भी सीमित पानी की आवश्यकता वाली फसल की पौध को वृद्धि करने के लिए एक बहुत ही अच्छी जलवायु मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस्तेमाल आने वाली सब्जियों की बुवाई मुख्यतः अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह या फिर सितंबर में की जाती है।

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  • मटर की खेती

 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में के साथ 400 मिलीमीटर की बारिश में तैयार होने वाली यह सब्जी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। मानसून के समय अच्छी तरीके से पानी मिली हुई मिट्टी इसके उत्पादन को काफी बढ़ा सकती है।अपने खेत में दो से तीन बार जुताई करने के बाद इसके बीज को जमीन से 2 से 3 सेंटीमीटर के अंदर दबाकर उगाया जा सकता है।
मटर की खेती से संबंधित पूरी जानकारी और बीमारियों से इलाज के लिए यह भी देखें : जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें
  • पालक की खेती

वर्तमान में उत्तरी भारत में पालक के लगभग सभी किसानों के द्वारा हाइब्रिड यानी कि संकर बीज का इस्तेमाल किया जाता है। 40 से 50 दिन में पूरी तरह से तैयार होने वाली यह सब्जी किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है, हालांकि इसकी पौध लगाने से पहले किसानों को मिट्टी की अम्लता की जांच जरूर कर लेनी चाहिए। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य बेहतर उत्पादन देने वाली यह सब्जी पतझड़ के मौसम में सर्वाधिक वृद्धि दिखाती है। प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम बीज की मात्रा से बुवाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।
पालक की खेती के दौरान खेत को तैयार करने की विधि और इस फसल में लगने वाले रोगों से निदान के बारे में 
संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए, यह भी देखें : पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
  • पत्ता गोभी की खेती

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में शुरुआत में नर्सरी में पौध उगाकर 20 से 40 दिन में खेत में पौध को स्थानांतरित कर उगायी जा सकने वाली यह सब्जी भारत में लगभग पूरे वर्ष भर इस्तेमाल की जाती है। 70 से 80 दिनों के अंतर्गत पूरी तरह तैयार होने वाली यह फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में आसानी से बेहतरीन उत्पादकता प्रदान कर सकती है। ड्रिप सिंचाई विधि तथा उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से इस फसल की पत्तियों की ग्रोथ काफी तेजी से बढ़ती है। 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में तैयार होने वाली यह सब्जी की फसल जब तक कुछ पत्तियां नहीं निकालती है, अच्छी मात्रा में पानी की मांग करती है। इस फसल की खास बात यह है कि इससे बहुत ही कम जगह में अधिक पैदावार की जा सकती है, क्योंकि इसके दो पौध के मध्य की दूरी 30 सेंटीमीटर तक रखनी होती है, इस वजह से एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार से 40 हज़ार छोटी पौध लगायी जा सकती है।
पत्ता गोभी फसल तैयार करने की संपूर्ण जानकारी और इसकी वृद्धि के दौरान होने वाले रोगों के निदान के लिए,
यह भी देखें : पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
  • बैंगन की खेती

भारत में अलग-अलग नामों से उगाई जाने वाली यह सब्जी 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। हालांकि, इस सब्जी की खेती खरीफ और रबी की फसल के अलावा पतझड़ के समय भी की जाती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगने वाली यह फसल अम्लीय मिट्टी में सर्वाधिक प्रभावी साबित होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में बैंगन उत्पादित करने के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और उसके बाद खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर 50 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बुवाई जाती है। ऑर्गेनिक खाद और रासायनिक उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से 8 से 10 दिन के अंतराल पर बेहतरीन सिंचाई की मदद से भारत के किसान काफी मुनाफा कमा रहे है।
बैंगन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई नई विधियों की संपूर्ण जानकारी के लिए, 
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  • मूली की खेती

सितंबर से लेकर अक्टूबर के महीनों में उगाई जाने वाली यह सब्जी बहुत ही जल्दी तैयार हो सकती है। पिछले कुछ समय में बाजार में बढ़ती मांग की वजह से इस फसल का उत्पादन करने वाले किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। 15 से 20 सेंटीग्रेड के तापमान में अच्छी उत्पादकता देने वाली यह फसल उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार प्रभावी साबित होती है। किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र से अपनी खेत की मिट्टी की अम्लीयत या क्षारीयता की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन के लिए खेत की पीएच लगभग 6.5 से 7.5 के मध्य होनी चाहिए। सितंबर के महीने में अच्छी तरीके से खेत को तैयार करने के बाद गोबर की खाद का इस्तेमाल कर, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करते हुए उचित सिंचाई प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूली की फसल में लगने वाले कई प्रकार के रोग और इसकी अलग-अलग किस्मों की जलवायु के साथ उत्पादकता का पता लगाने के लिए, 
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  • लहसुन की खेती

ऊटी 1 और सिंगापुर रेड तथा मद्रासी नाम की अलग-अलग किस्म के साथ उगाई जाने वाली लहसुन की फसल लगभग 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बोयी जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से सिंचाई की हुई मिट्टी इस फसल की उत्पादकता के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होती है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 किलोग्राम बीज के साथ उगाई जाने वाली यह खेती कई प्रकार के रोगों के खिलाफ स्वतः ही कीटाणुनाशक की तरह बर्ताव कर सकती है। बलुई और दोमट मिट्टी में प्रभावी साबित होने वाली यह फसल भारत में आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात राज्य में उगाई जाती है। वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा लहसुन की गोदावरी और श्वेता किस्मों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस फसल का उत्पादन जुताई और बिना जुताई वाले खेतों में किया जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों में सितंबर के महीने को लहसुन की बुवाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जबकि समतल मैदानों में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवंबर महीने में की जाती है।
लहसुन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और जलवायु के साथ उनकी प्रभावी उत्पादकता को जानने के अलावा,
इस फसल में लगने वाले रोगों के निदान के लिए यह भी देखें : लहसुन को कीट रोगों से बचाएं
भारत के किसान भाई इस फसल के बारे में कम ही जानकारी रखते है, परंतु अरुगुला (Arugula) सब्जी से होने वाली उत्पादकता से कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसे भारत में गारगीर (Gargeer) के नाम से जाना जाता है।यह एक तरीके से पालक के जैसे ही दिखने वाली सब्जी की फसल होती है जो कि कई प्रकार के विटामिन की कमी को दूर कर सकती है। पिछले कुछ समय से उत्तरी भारत के कुछ राज्यों में इस सब्जी की डिमांड बढ़ने की वजह से कई युवा किसान इसका उत्पादन कर रहे है। सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बोई जाने वाली यह सब्जी वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छा उत्पादन दे सकती है, परंतु यदि मिट्टी की ph 7 से अधिक हो तो यह अधिक प्रभावी साबित होती है। पानी के सीमित इस्तेमाल और जैविक खाद की मदद से इस फसल की वृद्धि दर को काफी तेजी से बढ़ाया जा सकता है। इस सब्जी की फसल की छोटी पौध 7 से 10 दिन में अंकुरित होना शुरू हो जाती है। बहुत ही कम खर्चे पर तैयार होने वाली यह फसल 30 दिन में पूरी तरीके से तैयार हो सकती है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसकी बुवाई सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जाती है, जबकि उत्तरी भारत में यह अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में बोयी जाती है। इस फसल के उत्पादन में बहुत ही कम सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है परंतु फिर भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के सीमित इस्तेमाल से उत्पादकता को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।


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आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को सितंबर महीने में बुवाई कर उत्पादित की जा सकने वाली फसलों के बारे में दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी और यदि आप भी किसी कारणवश खरीफ की फसल का उत्पादन नहीं कर पाए है तो खाली पड़ी हुई जमीन में इन सब्जी की फसलों का उत्पादन कर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
दिसंबर महीने में बोई जाने वाली इन सब्जियों से होगी बंपर कमाई, जाने कैसे।

दिसंबर महीने में बोई जाने वाली इन सब्जियों से होगी बंपर कमाई, जाने कैसे।

सर्दी का आगमन हो चुका है और इस व्यस्त मौसम के लिए किसानों के पास अपने खेत को तैयार करने का यह सही समय है। कई लोगों के लिए यह समय छुट्टियां मनाने और अपने प्रिय जनों के साथ समय बिताने का समय होता है, लेकिन किसानों के लिए सर्दी के इस मौसम में भी पूर्णमूल्यांकन और तैयारी करने का समय माना जाता है। दिसंबर के इस महीने को सब्जियों की खेती के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है। मिट्टी में नमी और सर्द वातावरण के बीच किसान मूली, टमाटर, पालक, गोभी और बैगन की खेती कर अच्छे प्रोडक्शन के साथ बढ़िया मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। वैसे तो नई तकनीकों के कारण ऑफ सीजन में भी खेती करना आसान हो गया है, लेकिन प्राकृतिक वातावरण में उगने वाली सब्जियों की बात ही कुछ अलग होती है।


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यदि आप सोचते हैं, कि ज्यादातर स्वादिष्ट सब्जी गर्मियों के दौरान उगाई जाती हैं। जब आप के बगीचे में सब कुछ खिला हुआ होता है, तो आप गलत हैं। सर्दी अपने साथ स्वादिष्ट हरी सब्जियों की भरमार लेकर आती है, जिन्हें आप अपने बगीचे में काफी आसानी से उगा सकते हैं। इस मौसम में उगने वाली सब्जियां न केवल स्वाद में अच्छी होती हैं, बल्कि पोषण प्रदान करने के अलावा कई तरह से फायदेमंद भी होती हैं। सब्जी की खेती निश्चित रूप से एक लाभदायक व्यापार है और यह सिर्फ बड़े किसानों के लिए नहीं है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए भी लाभदायक है। एक छोटे पैमाने के सब्जी के खेत में सालभर कमाई की संभावना होती है। खुले आसमान में खेती के अलावा आप ग्रीन हाउस में भी इस सीजन में सब्जियां उगा सकते हैं। किसान अगर कुछ खास बातों का ध्यान रखकर के सीजनल सब्जियों की खेती करें तो अच्छी उत्पादकता के साथ-साथ बढ़िया मुनाफा आराम से हासिल कर सकता है। दिसंबर के महीने में बोई जाने वाली जिन सब्जियों की जानकारी हम आपको देने जा रहे हैं, उससे आपको कई गुना फायदा मिलेगा।

फूलगोभी की खेती

फूलगोभी सर्दियों की सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय सब्जियों में से एक है और यह भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सर्दियों के इस मौसम में गोभी वर्गीय सब्जियां जैसे फूलगोभी ब्रोकली पत्ता गोभी की खेती करना बहुत ही आसान होता है। क्योंकि इन दिनों मिट्टी में नमी और वातावरण में सर्दी होती है, जिससे नेचुरल प्रोडक्शन लेने में मदद मिलती है। किसान चाहे तो गोभी की खेती ग्रीन हाउस में भी कर सकते हैं, एक्सपर्ट की बात करें तो 75 से 80 क्विंटल प्रति एकड़ तक का उत्पादन सर्दियों के मौसम में गोभी का होता है। जिसे आप आसानी से इस मौसम में उगा कर और नजदीकी बाजार में बेचकर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।


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बैगन की खेती

बैगन की खेती करने के लिए भी यह महीना बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दिनों किसान बैगन की खेती करके लाखों रुपए कमाते हैं, बैगन की सब्जी भारतीय जन समुदाय में बहुत प्रसिद्ध है। विश्व में सबसे ज्यादा बैगन चीन में उगाया जाता है, बैगन उगाने के मामले में भारत का दूसरा स्थान है। बैगन विटामिन और खनिजों का भी अच्छा स्रोत है। वैसे तो इसकी खेती पूरे साल की जाती है, लेकिन इस मौसम में बैगन की खेती करना किसानों के लिए आसान होता है। क्योंकि मिट्टी में नमी के कारण और मौसम में ठंड के कारण किसानों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। एक्सपर्ट की राय की बात करें, तो एक हेक्टेयर में करीब साड़े 400 से 500 ग्राम बीज डालने पर लगभग 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का बैगन का उत्पादन आसानी से मिल जाता है।

टमाटर की खेती

टमाटर विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है। भारतीय पकवानों में टमाटर का अपना एक विशेष स्थान है। इसे सब्जी बनाने से लेकर सलाद सूप चटनी और ब्यूटी प्रोडक्ट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खेती भारत में बड़े पैमाने पर होती है कई किसान टमाटर की खेती कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं अगर आप एक हेक्टेयर में भी टमाटर की खेती करते हैं तो आप 800 से 1200 क्विंटल तक का उत्पादन कर सकते है। ज्यादा पैदावार पैदावार के कारण किसानों को लागत से ज्यादा मुनाफा होता है। एक्सपर्ट की राय की बात करें तो अगर आप एक हेक्टेयर में टमाटर की खेती करते हैं तो आपको लगभग 15लाख रुपए तक की कमाई होगी।


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गाजर-मूली की खेती

मूली और गाजर भारत के लगभग हर क्षेत्र में उगाए जाते हैं, इनका उपयोग सब्जियों के अलावा अचार और मिठाई बनाने के लिए भी किया जाता है। सर्दी के मौसम में इनकी डिमांड बहुत ज्यादा होती है। इसकी खेती करके लागत बहुत ही कम लगती है, अगर वही हम बात कमाई की करें, तो किसान गाजर और मूली को 1 हेक्टेयर में लगभग 150 क्विंटल तक का उत्पादन कर सकते है। विशेष तौर पर सर्दी का मौसम है, गाजर और मूली की खेती करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। गर्मी के मौसम में अगर आप गाजर और मूली को उपजाना चाहते हैं, तो आपको भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। तो किसान इस तरह की सब्जियों की खेती इस सर्दी के मौसम में करके बंपर पैदावार के साथ बंपर कमाई आसानी से अर्जित कर सकते है।
इस फार्मिंग के जरिये एक स्थान पर विभिन्न फसल उगा सकते हैं

इस फार्मिंग के जरिये एक स्थान पर विभिन्न फसल उगा सकते हैं

मल्टीलेयर फार्मिंग(Multilayer Farming) में एक स्थान पर विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जा सकता है। किसान सोच समझ के फसलों का चयन कर काफी कम भूमि में से भी लाखों रुपये की आमंदनी कर सकते हैं। कृषि देश की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है, क्योंकि देश की बहुत बड़ी जनसँख्या कृषि पर ही आश्रित रहती है। किसानों को अच्छी आय वाली खेती के लिए कृषि विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक अपने-अपने स्तर से शोध करते रहते हैं। एक खेती में ही अन्य फसल का भी उत्पादन कर किसान दोगुना मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। परंतु आज हम आपको उस खेती के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले हैं। जिसके अंतर्गत एक, दो नहीं कृषि की विभिन्न परतें (Layer) होती हैं। सभी परतों पर फसल उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। इसलिए ही इसका नाम मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) है। मल्टीलेयर फार्मिंग(Multilayer Farming), नाम से ही पता चलता है, कि एक ही जगह पर विभिन्न प्रकार की खेती करना। इसमें 3, 4 ही नहीं 5 प्रकार की कृषि भी की जा सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसमें मृदा के प्रयोग को देखा जाता है। हालाँकि कुछ फसलें भूमि के अंदर दबी हों, कुछ ऊपर, कुछ अधिक बड़े स्तर पर एवं कुछ अन्य किस्मों की कृषि की जा सकती है। फसल चक्र के संदर्भ में बात करें तो कुछ कम, कुछ मध्यम एवं कुछ पकने में ज्यादा वक्त लगा सकती हैं।


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मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) में फसलों का बेहतर चुनाव करने में सतर्कता अत्यंत आवश्यक है। प्रथम परत में बड़े पौधे लगाने पर अन्य परत खराब हो जाएंगी। विशेषज्ञों ने बताया है, कि पहली परत में छोटे पौधे के रूप में अदरक एवं हल्दी का उत्पादन कर सकते हैं। दूसरी परत में भी कम ऊंचाई एवं कम गहराई साग-सब्जियों की फसलों का चुनाव करें। तीसरी परत में बड़े पेड या पौधे, पपीता अथवा अन्य फलदार पौधे उगाये जा सकते हैं। चौथी परत में किसी भी बेल फसल उगा सकते हैं। यह पोषक तत्व भूमि से लेती रहेगी, परंतु इसका विस्तार अत्यधिक सीमित होगा।

क्यों आवश्यक है, मल्टीलेयर फार्मिंग का परीक्षण

मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) से उचित मुनाफा अर्जित करने हेतु इसका प्रशिक्षण लेना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए कृषि विशेषज्ञ अथवा कृषि वैज्ञानिक या फिर किसी कृषि अधिकारी से सलाह ली जा सकती है। दरअसल, फसलों के उत्पादन हेतु पर्यावरण का अनुकूल होना अति आवश्यक है। देश के भिन्न-भिन्न राज्यों में तापमान अलग अलग रहता है। ऐसे में जिस स्थान पर मल्टीलेयर फार्मिंग की जाए, वहाँ फसलों का बेहतर चुनाव उसी के अनुकूल हो, इससे किसान 4 से 5 गुना अधिक बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

मल्टीलेयर फार्मिंग छत पर भी कर सकते हैं।

मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) भूमि ही बल्कि छत पर भी उत्पादित की जा सकती है, परंतु इसके उत्पादन हेतु छत पर भूमि की तरह अवस्था निर्मित होगी। देसी खाद युक्त मृदा की मोटी परत छत पर बिछा दीजिए। अगर पौधे ज्यादा गहराई वाले हैं, तो मृदा की परत एवं ज्यादा मोटी हो। बैंगन, टमाटर, भिंडी, गाजर, मूली, पालक आदि फसलें छत पर उत्पादित की जा सकती हैं।


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इसके अंतर्गत 70 प्रतिशत कम जल की आवश्यकता है।

मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) का विशेष फायदा यह है, कि इसमें जल की न्यूनतम आवश्यकता होती है। दरअसल, एक ही मृदा की परत में समस्त फसलें उगायी जाती हैं। जब एक फसल को जल दिया जाता है, तो अन्य फसलों की भी सिंचाई हो जाती है। इस प्रकार लगभग 70 फीसदी कम जल की आवश्यकता होती है।
सर्दियों में घर पर ही उगाएं बिना केमिकल का इस्तेमाल किए ऑर्गेनिक सब्जियां

सर्दियों में घर पर ही उगाएं बिना केमिकल का इस्तेमाल किए ऑर्गेनिक सब्जियां

सर्दियों का मौसम रंग-बिरंगी, हरी पत्तेदार, स्वादिष्ट और ताजा सब्जियों का मौसम होता है। इन दिनों की एक और खास बात यह है, कि इन दिनों में सब्जियां जल्दी खराब भी नहीं होती हैं। इन दिनों मेथी, पालक, धनिया, सरसों के साग से लेकर गाजर, मूली, बीन्स, मटर, शकरकंद, चेरी टमाटर, ब्रोकली और हरी प्याज खूब पसंद की जाती है। सब्जियां खरीदने के लिए जब भी हम बाजार जाते हैं, तो हमारे दिमाग में एक चीज जरूर आती है। वह यह कि हम कहीं इन सब्जियों का उत्पादन केमिकल आदि डालकर तो नहीं किया गया है। ऐसे में हम उन सब्जियों को पकाने में जरा परहेज करते हैं। आज हम आपको बताएंगे, कि अपने घर की छोटी सी बालकनी या फिर किचन गार्डन में आप कौन-कौन सी सब्जियां उगा सकते हैं और वह भी एक दम बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किए।

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चेरी टमाटर

टमाटर एक ऐसी सब्जी है, जो लगभग बाकी सभी सब्जियों में डाली जाती है, टमाटर डालते ही सब्जी का स्वाद बढ़ जाता है। टमाटर की सब्जी को लगभग हर मौसम में उगाया जा सकता है और इसका उत्पादन आसानी से हो जाता है। लेकिन सर्दियों में इसे उगाना और भी आसान है। बाजार में भी टमाटर की बहुत मांग है। इसे अपने घर की छत, गार्डन या बालकनी में उगा सकते हैं। आप चाहें तो इसका बना-बनाया प्लांट ऑर्डर कर सकते हैं या फिर बीज समेत अपने गार्डन में ताजा टमाटर उगाएं। सर्दियों में लाल टमाटर सूप और सैलेड के तौर पर खूब इस्तेमाल होता है। इसके अलावा अगर आप पारंपरिक टमाटर की खेती नहीं करना चाहते हैं, तो आप अपनी बालकनी गार्डन में चेरी टमाटर याने की छोटे-छोटे दिखने वाले टमाटर का उत्पादन भी कर सकते हैं। यह टमाटर सूप आदि के लिए भी अच्छा रहता है और अगर आप इसका इस्तेमाल सब्जी में करते हैं, तो यह सब्जी का स्वाद काफी बढ़ा देता है।

प्याज

भारतीय घरों में शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जब प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। प्याज के बिना सब्जियों में स्वाद लाना जरा मुश्किल हो जाता है। इसकी खेती या गार्डनिंग करने के लिए सर्दियों का समय उचित रहता है। आप चाहें तो मिट्टी, कंपोस्ट, खाद, कोकोपीट डालकर गमले में प्याज का बल्ब लगा सकते हैं। यदि किचन में प्याज की जड़ पड़ी हैं, तो आप सीधा पानी का एक जार तैयार करके भी हरी प्याज का उत्पादन ले सकते हैं। ये किचन में इस्तेमाल होने वाली सबसे सामान्य सब्जी है, जो अब घर बैठे पर कम मेहनत में आपको ताजा मिल जाएगी। सर्दियों में इसकी ग्रोथ भी अच्छी होती है, इसलिए अपनी किचन गार्डन में ये सदाबहार सब्जी जरूर लगाएं।

गाजर-मूली

गाजर का हलवा खाना चाहते हो या फिर मूली के पराठे दोनों के लिए ही गाजर और मूली होना बेहद जरूरी है। आजकल बाजार में गाजर और मूली में सबसे ज्यादा केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है। अब इन्हें आप घर पर ही उगा सकते हैं, ठंड और शीतलहर के मध्य इन सब्जियों की तेजी से ग्रोथ होती है। इन्हें घर पर उगाने के लिए गमले की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। घर बेकार पड़ी बाल्टी या टब में भी इन जड़ वाली सब्जियों को उगा सकते हैं। एक बार बुवाई के बाद ही ये सब्जियां 40 से 60 दिन के अंदर अच्छा-खासा उत्पादन देने लगती हैं।

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हरी पत्तेदार सब्जियां

हरी सब्जियों को घर पर उगाना सबसे ज्यादा आसान होता है। इनमें आपको ज्यादा मेहनत करने की जरूरत भी नहीं पड़ती है और एक बार बीज डालने के बाद यह सब्जियां अपने आप ही उग जाती हैं। पालक, मेथी, धनिया, सरसों का साग जैसी हरी पत्तेदार सब्जियां ही सर्दियों की शान हैं। जाने कितने व्यंजन इन सब्जियों से पूरी सर्दियों में बनते हैं। पते की बात तो ये है, कि सबसे ज्यादा आयरन और न्यूट्रिएंट्स इन्हीं पत्तेदार सब्जियों में होते हैं। इसलिए फटाफट इनके सीड्स ऑइनलाइन मार्केट या किसी नर्सरी से मंगवाकर गार्डनिंग चालू कर दीजिए। आप चाहें तो इन देसी पत्तेदार सब्जियों के अलावा विदेश की स्विस चार्ड, रोलाई, केल, एशियाई साग भी उगा सकते हैं।

बीन्स-मटर

हालांकि बींस और मटर की खेती करना जरा सा मुश्किल होता है। लेकिन फिर भी आप इसकी दो अलग-अलग वैरायटी बेलदार और झाड़ीदार में से किसी एक का चुनाव करके अपने घर में जगह के अनुसार उत्पादन शुरू कर सकते हैं। इन्हें कम दाम में घर पर ही उगा सकते हैं, इस काम के लिए दिसंबर से लेकर फरवरी सबसे अच्छा समय होता है।
इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

भारत में ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती करते हैं। जिसमें वो रबी, खरीफ, दलहन और तिलहन की फसलें उगाते हैं। इन फसलों के उत्पादन में लागत ज्यादा आती है जबकि मुनाफा बेहद कम होता है। ऐसे में सरकार ने किसानों की सहायता करने के लिए बागवानी मिशन को लॉन्च किया है। जिसमें सरकार किसानों को बागवानी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि किसान ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा पाएं और उनकी इनकम में बढ़ोत्तरी हो। बागवानी फसलों की खेती में लागत बेहद कम आती है, इसलिए इनमें मिलने वाला मुनाफा ज्यादा होता है। सरकार के विशेषज्ञों का मानना है कि बागवानी फसलों से किसानों की इनकम में बढ़ोत्तरी हो सकती है। अगर किसान भाई मूली की खेती करें तो वो बेहद कम समय में अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। मूली विटामिन से भरपूर होती है। इसमें मुख्यतः विटामिन सी पाया जाता है। साथ ही मूली फाइबर का एक बड़ा स्रोत है। ऐसे में यह इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है। मूली की खेती भारत में किसी भी मौसम में की जा सकती है।

मूली की खेती के लिए मिट्टी का चयन

सामान्यतः मूली की खेती हर तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। लेकिन भुरभुरी, रेतली दोमट मिट्टी में इसके शानदार परिणाम देखने को मिलते हैं। भारी और ठोस मिट्टी में मूली की खेती करने से बचना चाहिए। इस तरह की मिट्टी में मूली की जड़ें टेढ़ी हो जाती हैं। जिससे बाजार में मूली के उचित दाम नहीं मिलते। मिट्टी का चयन करते समय ध्यान रखें कि इसका पीएच मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए।

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ऐसे करें जमीन की तैयारी

सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लें। खेत में ढेलियां नहीं होनी चाहिए। जुताई के समय खेत में 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से गोबर की सड़ी हुई खाद डालें।  प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा अवश्य फेरें।

मूली की बुवाई

मूली के बीजों की बुवाई पंक्तियों में या बुरकाव विधि द्वारा की जाती है। अच्छी पैदावार के लिए बीजों को 1.5 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। बुवाई के दौरान ध्यान रखें कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए और पौध से पौध की दूरी 7.5 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक एकड़ खेत में बुवाई के लिए 5 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है। मिट्टी के बेड पर बुवाई करने पर मूली की जड़ों का शानदार विकास होता है।

मूली की फसल में सिंचाई

गर्मियों के मौसम में मूली की फसल में हर 6 से 7 दिन बाद सिंचाई करें। सर्दियों के मौसम में 10 से 12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। मूली की फसल में जरूरत से ज्यादा सिंचाई नहीं करना चाहिए। ज्यादा सिंचाई करने से जड़ों का आकार बेढंगा और जड़ों के ऊपर बालों की वृद्धि बहुत ज्यादा हो जाती है। गर्मियों के मौसम में कटाई के पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे मूली ताजा दिखती है। साथ ही खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।

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फसल की कटाई

मूली की फसल बुवाई के 40 से 60 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई पौधे को हाथों से उखाड़कर की जाती है। उखाड़ने के बाद मूली को धोएं और उनके आकार के अनुसार अलग कर लें। इसके बाद इन्हें टोकरियों और बोरियों में भरकर मंडी में भेज दें।

मूली की खेती में इतनी हो सकती है कमाई

भारत के विभिन्न राज्यों में मूली की अलग-अलग किस्मों की खेती की जाती है। जिनका उत्पादन भी अलग-अलग होता है। भारत में मुख्यतः पूसा देसी, पूसा चेतकी, पूसा हिमानी, जापानी सफेद, गणेश सिंथेटिक और पूसा रेशमी किस्म की मूली की किस्मों का चुनाव किया जाता है। ये किस्में बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं। एक हेक्टेयर खेत में मूली की खेती करने पर किसान भाई 250 क्विंटल तक की पैदावार ले सकते हैं। जिससे वो 2 लाख रुपये बेहद आसानी से कमा सकते हैं।