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मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

Published on: 24-May-2022
मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)
फसल बागवानी फसल सब्जियां

सब्जियां हमारे शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी होती हैं। सब्जियों में विभिन्न विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जो हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं जिससे हमारा शरीर कार्य करने योग बनता है। 

उन सब्जियों में से एक मूली (Radish) भी है, जिनको खाने से हमें लाभ होता हैं। मूली की खेती की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

मूली की खेती

मूली की फसल किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। यह कम लागत और कम समय में अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर इस फसल द्वारा फायदा पहुंचता है और किसान काफी अच्छे आय की प्राप्ति करते हैं।

भारत में मूली उत्पादन करने वाले कुछ मुख्य क्षेत्र है जैसे: पश्चिम बंगाल,असम, हरियाणा गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि क्षेत्रों में मूली की खेती काफी उच्च कोटि पर की जाती है। 

ये भी देखें: शलजम की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

मूली की ख़ेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मूली की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु ठंडी की होती हैं। ठंडी में मूली की फसल की अच्छी प्राप्ति होती है किसान ठंडी के मौसम में मूली की खेती कर बहुत ही अच्छा लाभ उठाते हैं। 

मूली की खेती के लिए 10 से 15 डिग्री सेल्सियस का तापमान बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। कभी-कभी अधिक तापमान की वजह से मूली की जड़े कड़ी और कड़वी रह जाती है। 

इस प्रकार अधिक तापमान मूली की फसल के लिए उपयोगी नहीं है।किसानों द्वारा आप मूली की फसल को सालभर उगा सकते हैं पर उच्च मौसम ठंडी का है। 

मूली की ख़ेती के लिए भूमि को तैयार करना

मूली की ख़ेती के लिए भूमि का अच्छे से चयन कर लेना चाहिए। किसान मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाकों में बुवाई की सलाह देते हैं। किसान मैदानी क्षेत्रों में मूली की बुवाई का उचित समय सितंबर से जनवरी तक का उपयुक्त समझते हैं।

वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी इलाकों में मूली की बुवाई लगभग अगस्त के महीने तक होती है। मूली की खेती के लिए जीवांशयुक्त, दोमट मिट्टी या बलुई मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं। 

खेती के लिए यह दोनों मिट्टी बहुत ही उपयोगी होती है। बुवाई करने के लिए मिट्टी के लिए सबसे अच्छा पीएच मान 6 पॉइंट 5 के आस पास रखना जरूरी होता है। 

मूली की बुवाई

मूली की बुवाई से पूर्व खेतों को अच्छी तरह से जुताई की बहुत आवश्यकता होती है।खेत की जुताई आप को कम से कम 6 से 5 बार करनी होती है तब जाकर खेत अच्छी तरह से तैयार होते हैं। 

मूली की फसल गहरी जुताई मांगती है क्योंकि इसकी जड़े भूमि में काफी अंदर तक जाती है। जब जताई हो जाए तो इनको ट्रैक्टर या मिट्टी पलटने वाले हल द्वारा भी जुताई की जाती है। 

इसके बाद किसान करीब दो से तीन बार कल्टीवेटर खेतों में चला कर भी जुताई करते हैं। जुताई हो जाने के बाद पाटा लगाना अनिवार्य है।

मूली की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

मूली की ख़ेती के लिए किसान कुछ सामान्य प्रकार की खाद का इस्तेमाल करते हैं। जैसे: करीब 150 क्विंटल गोबर की खाद का यह फिर कम्पोस्ट का इस्तेमाल, नाइट्रोजन 100 किलो की मात्रा मे, स्फुर 50 किलो, 100 किलो लगभग पोटाश की आवश्यकता पड़ती है प्रति हेक्टेयर के हिसाब से, इन खादो को विभिन्न विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। 

जैसे: स्फुर,पोटाश, गोबर की खाद को खेत तैयार करते वक्त इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के लगभग 15 से 30 दिनों के बाद दो भागों में विभाजित कर नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है।

मूली की ख़ेती के लिए सिंचाई

मूली की बुवाई, मूली की ख़ेती करते समय भूमि में नमी बरकरार रखना आवश्यक होता है। यदि भूमि नम नहीं है तो बुवाई करने के तुरंत बाद हल्की पानी से सिंचाई कर दें ताकि फसल उत्पादन हो सके। 

वर्षा ऋतु के मौसमों में मूली की फ़सल को सिंचाई देने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा ऋतु में भूमि जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक होता है। मूली की फसल गर्मी में 4 से 5 दिन के अंदर सिंचाई मांगती है।

वहीं दूसरी ओर ठंडी के दिनों में मूली की फसल में 10 से 15 दिन के अंदर सिंचाई करना होता है। किसान आधी मेड़ की सिंचाई करते हैं इस प्रक्रिया द्वारा पूरी मेड़ में नमीयुक्त के साथ भुरभुरी पन बना रहता हैं।

मूली की फसल को कीट मुक्त रखने के उपाएं

मूली की फसल में विभिन्न विभिन्न प्रकार के कीट लग सकते हैं। फसल को कीट मुक्त बनाए रखने के लिए आपको खेत में खरपतवार की उचित व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए। खेतों में समय समय पर आपको निराई गुड़ाई करते रहना जरूरी होता है। 

मूली की फसल के लिए गहरी जुताई करें और जब सबसे आखिरी जुताई करें, तो खाद-उर्वरक में 6 से 8 किलोग्राम फिप्रोनिल को खाद में भली प्रकार से मिलाकर खेतों में डालें। इन प्रतिक्रिया को अपनाने से खेतों में दीमक तथा कीटों से बचाव किया जाता है।

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल मूलीकीखेती(Radish cultivation in hindi) काफी पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल के जरिए आपने विभिन्न विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त की होगी। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

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