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तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

रंगबिरंगी तितली किसके मन को नहीं भाती, लेकिन हम बात कर रहे हैं, प्रमुख दलहनी फसलों में से एक तितली मटर के बारे में। आमतौर पर इसे अपराजिता (butterfly pea, blue pea, Aprajita, Cordofan pea, Blue Tea Flowers or Asian pigeonwings) भी कहा जाता है। 

इंसान और पशुओं के लिए गुणकारी

बहुउद्देशीय दलहनी कुल के पौधोंं में से एक तितली मटर यानी अपराजिता की पहचान उसके औषधीय गुणों के कारण भी दुनिया भर में है। इंसान और पशुओं तक के लिए गुणकारी इस फसल की खेती को बढ़ावा देकर, किसान भाई अपनी कमाई को कई तरीके से बढ़ा सकते हैं। 

ब्लू टी की तैयारी

तितली मटर के फूल की चाय (Butterfly pea flower tea)

बात औषधीय गुणों की हो रही है तो आपको बता दें कि, चिकित्सीय तत्वों से भरपूर अपरजिता यानी तितली मटर के फूलों से अब ब्लू टी बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है।

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ब्लू टी से ब्लड शुगर कंट्रोल

जी हां परीक्षणों के मुताबिक तितली मटर (अपराजिता) के फूलों से बनी चाय की चुस्की, मधुमेह यानी कि डायबिटीज पीड़ितों के लिए मददगार होगी। जांच परीक्षणों के मुताबिक इसके तत्व ब्लड शुगर लेवल को कम करते हैं।

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पशुओं का पोषक चारा

इंसान के स्वास्थ्य के लिए मददगार इसके औषधीय गुणों के अलावा तितली मटर (अपराजिता) का उपयोग पशु चारे में भी उपयोगी है। चारे के रूप में इसका उपयोग भूसा आदि अन्य पशु आहार की अपेक्षा ज्यादा पौष्टिक, स्वादिष्ट एवं पाचन शील माना जाता है। तितली मटर (अपराजिता) के पौधे का तना बहुत पतला साथ ही मुलायम होता है। इसकी पत्तियां चौड़ी और अधिक संख्या में होने से पशु आहार के लिए इसे उत्तम माना गया है।

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अनुभवों के मुताबिक अपेक्षाकृत रूप से दूसरी दलहनी फसलों की तुलना में इसकी कटाई या चराई के बाद अल्प अवधि में ही इसके पौधों में पुनर्विकास शुरू हो जाता है। 

एशिया और अफ्रीका में उत्पत्ति :

तितली मटर (अपराजिता) की खेती की उत्पत्ति का मूल स्थान मूलतः एशिया के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र एवं अफ्रीका में माना गया है। इसकी खेती की बात करें तो मुख्य रूप से अमेरिका, अफीका, आस्ट्रेलिया, चीन और भारत में इसकी किसानी का प्रचलन है। 

मददगार जलवायु

  • इसकी खेती मुख्यतः प्रतिकूल जलवायु क्षेत्रों में प्रचलित है। मध्यम खारी मृदा इलाकों में इसका पर्याप्त पोषण होता है।
  • तितली मटर प्रतिकूल जलवायु जैसे–सुखा, गर्मी एवं सर्दी में भी विकसित हो सकती है।
  • ऐसी मिट्टी, जिनका पी–एच मान 4.7 से 8.5 के मध्य रहता है में यह भली तरह विकसित होने में कारगर है।
  • मध्यम खारी मिट्टी के लिए भी यह मित्रवत है।
  • हालांकि जलमग्न स्थिति के प्रति यह बहुत संवेदनशील है। इसकी वृद्धि के लिए 32 डिग्री सेल्सियस तापमान सेहतकारी माना जाता है।

तितली मटर के बीज की अहमियत :

कहावत तो सुनी होगी आपने, बोए बीज बबूल के तो फल कहां से होए। ठीक इसी तरह तितली मटर (अपराजिता) की उन्नत फसल के लिए भी बीज अति महत्वपूर्ण है। कृषक वर्ग को इसका बीज चुनते समय अधिक उत्पादन एवं रोग प्रतिरोध क्षमता का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।

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तितली मटर की कुछ उन्नत किस्में :

तितली मटर की उन्नत किस्मों की बात करें तो काजरी–466, 752, 1433, जबकि आईजीएफआरआई की 23–1, 12–1, 40 –1 के साथ ही जेजीसीटी–2013–3 (बुंदेलक्लाइटोरिया -1), आईएलसीटी–249 एवं आईएलसीटी-278 इत्यादि किस्में उन्नत प्रजाति में शामिल हैं। 

तितली मटर की बुवाई के मानक :

अनुमानित तौर पर शुद्ध फसल के लिए बीज दर 20 से 25 किलोग्राम मानी गई है। मिश्रित फसल के लिए 10 से 15 किलोग्राम, जबकि 4 से 5 किलोग्राम बीज स्थायी चरागाह के लिए एवं 8 से 10 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर अल्पावधि चरण चरागाह के लिए आदर्श पैमाना माना गया है। तय मान से बुवाई 20–25 × 08 – 10 सेमी की दूरी एवं ढ़ाई से तीन सेमी की गहराई पर करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिक उपचारित बीजों की भी सलाह देते हैं। अधिक पैदावार के लिए गर्मी में सिंचाई का प्रबंधन अनिवार्य है। 

तितली मटर की कटाई का उचित प्रबंधन :

मटर के पके फल खेत में न गिर जाएं इसलिए तितली मटर की कटाई समय रहते कर लेना चाहिए। हालांकि इस बात का ध्यान भी रखना अनिवार्य है कि मटर की फसल परिपक्व हो चुकी हो। जड़ बेहतर रूप से जम जाए इसलिए पहले साल इससे केवल एक कटाई लेने की सलाह जानकार देते हैं।

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तितली मटर के उत्पादन का पैमाना :

उपज बरानी की दशा में स्थितियां अनुकूल रहने पर लगभग 1 से 3 टन सूखा चारा और 100 से 150 किलो बीज प्रति हेक्टेयर मिल सकता है। इतनी बड़ी ही सिंचित जमीन पर सूखा चारा 8 से 10 टन, जबकि बीज पांच सौ से छह सौ किलो तक उपज सकता है। 

पोषक तत्वों से भरपूर खुराक :

तितली मटर में प्रोटीन की मात्रा 19-23 फीसदी तक मानी गई है। क्रूड फ़ाइबर 29-38, एनडीफ 42-54 फीसदी तो फ़ाइबर 21-29 प्रतिशत पाया जाता है। पाचन शक्ति इसकी 60-75 फीसदी तक होती है।

फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी का महीना खेती के लिहाज से बेहद शानदार होता है। वातावरण में कई फसलों के मानक के अनुसार नमी-ठंडी-गर्मी होती है। असल में, फरवरी एक ऐसा माह है जब ठंड की विदाई होती है और गर्मी धीरे-धीरे आती है। सच पूछें तो प्रारंभिक श्रेणी की गर्मी का आगमन फरवरी के आखिरी दिनों में शुरू हो ही जाता है। 

ऐसे में, किसान भाई क्या करें। किसान भाईयों के लिए यह माह बेहद मुफीद है। इस माह अगर वह ध्यान दे दें तो अनेक नकदी फसलों का अपने खेत में लगाकर बढ़िया पूंजी कमा सकते हैं।

फरवरी में बोएं क्या

पहला सवाल बड़ा मार्के का है। फरवरी में आखिर बोएं क्या। फरवरी में बोने के लिए नकद फसलों की लंबी फेहरिस्त है। आप फरवरी में सब्जियां बो सकते हैं। कई किस्म की सब्जियां हैं जो इस मौसम में ही बोई जाएं तो बढ़िया मुनाफ होता है।

कौन सी सब्जियां

फरवरी में आप करेला, खीरा, ककड़ी, अरबी, गाजर, चुकंदर, प्याज, मटर, मूली, पालक, गोभी, फूलगोभी, बैंगन, लौकी, करेला, लौकी, मिर्च, टमाटर आदि बो सकते हैं। इनमें बहुत सारी सब्जियां ऐसी हैं जो 90 दिनों का वक्त लेती हैं लेकिन कुछेक सब्जियां ऐसी भी हैं जो मात्र 50 से 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं।

खेत की तैयारी

मान लें कि आप अपने खेत में खीरा बोना चाहते हैं। खीरा बोने के पहले आपके खेत की कंडीशन कायदे की होनी चाहिए। पहली शर्त यह है कि जो खेत की मिट्टी होनी चाहिए, वह रेतीली दोमट होनी चाहिए। दोमट मिट्टी में भी शर्त यह है कि उसमें जैविक तत्वों की प्रचुर मात्रा हो और पानी की निकासी उम्दा स्तर की हो। 

ऐसे, किसी भी जमीन पर आप अगर खीरा उगाना चाहेंगे तो फेल कर जाएंगे। यह बहुत जरूरी है कि दोमट मिट्टी हो और पानी ठहरे नहीं, निकास होता रहे। वैज्ञानिक भाषा में बात करें तो मिट्टी की गुणवत्ता पीएच 6 या पीएच 7 होनी चाहिए।

जमीन कैसे बनाएं

यह बेहद जरूरी है कि खेत में कोई घास-पतवार नहीं हो। यह बिल्कुल साफ-सुथरा होना चाहिए। दोमट मिट्टी को भुभुरा बनाने के लिए पूरे खेत को तीन से चार बार जोत लेना जरूरी होता है। हल-बैल से जोत रहे हैं तो पांच बार। ट्रैक्टर से जोत रहे हैं तो कम से कम 3 या अधिकतम चार बार जोतें। 

खेत जोतने के बाद मिट्टी में गाय के गोबर को मिलाएं। गाय का गोबर मिलाने के बाद खेत की उर्वरा शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। आप अन्य खाद का इस्तेमाल न करें तो बेहतर। जब गोबर मिला दिया गया तो अब आप 2.5 मीटर चौड़े और 60 सेंटीमीटर की लंबाई का फासला रख कर नर्सरी तैयार कर लें।

बिजाई

बिजाई फरवरी माह में करना उचित होता है। बीजों की बिजाई के वक्त 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी बेड पर दो-दो बीज बोयें और दोनों बीजों के बीच में कम से कम 60 सेंटीमीटर का फैसला जरूर रखें। 

बीज की गहराई कम से कम 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। 3 सेंटीमीटर गहराई में आप जब बीज डालते हैं तो उसे पक्षी निकाल नहीं सकेंगे। फिर उन्हें मुकम्मल रौशनी और हवा भी मिल सकेगी।

कैसे करें बिजाई

खीरे की खेती के लिए छोटी सुरंगी विधि का भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। इस विधि के तहत 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी के बेड पर बिजाई होती है। बीजों को बेड के दोनों तरफ 45 सेंटीमीटर के फा.ले पर बोया जाता है। बिजाई के पहले 60 सेंटीमीटर लंबे डंडों को मिट्टी में गाड़ देना चाहिए। 

फिर पूरे खेत को प्लास्टिक शीट से कवर कर देना चाहिए। जब मौसम सही हो जाए तो प्लास्टिक को हटा देना चाहिए। माना जाता है कि खीरे के बीज को गड्ढे में ही बोना चाहिए। आप चाहें तो गोलाकार गड्ढे बना कर भी बीज डाल सकते हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत में खीरे का एक किलोग्राम बीज काफी है। प्रति एकड़ एक किलोग्राम बीज इसका आदर्श फार्मूला है।

उपचार

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, बिजाई से पहले ही खीरे की फसल को कीड़ों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए अनुकूल रासायनिक का छिड़काव करना चाहिए। बेहतर यह हो कि आप बीजों का 2 ग्राम कप्तान के साथ उपचार कर लें, फिर बिजाई करें।

खीरे की किस्में

  • पंजाब खीरा

यह 2018 में जारी की गई किस्म है। इसके फल हरे गहरे रंग के होते हैं। इनका टेस्ट कड़वा नहीं होता। औसतन इनका वजन 125 ग्राम का होता है। इसकी तुड़ाई आप फसल बोने के 60 दिनों के भीतर कर सकते हैं। फरवरी में अगर आप यह फसल बोते हैं तो माना जा सकता है कि प्रति एकड़ 370 क्विंटल खीरा आपको मिलेगा।

  • पंजाब नवीन खीरा

यह आज से 14 साल पुरानी किस्म है। इसका आकार बेलनाकार होता है। इस फसल में न तो कड़वापन होता है, न ही बीज होते हैं। यह 68 जिनों में पक जाने वाली फसल है। इसकी पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ ही होती है।

करेले की बुआई

करेले की बुआई दो तरीके से होती हैः बीज से और पौधे से। आपकी जिससे इच्छा हो, उस तरीके से बुआई कर लें। बाजार में बीज और पौधे, दोनों मौजूद हैं। 

करेले के दो से तीन बीज 2.5 से 5 मीटर की दूरी पर बोएं। बोने के पहले बीज को 24 घंटे तक पानी में जरूर भिगोना चाहिए ताकि अंकुरण जल्द हो। जो नदियों के किनारे का इलाका है, वहां करेले की बढ़िया खेती होती है। खेती के पहले जमीन को जोतना बेहद जरूरी है। 

इसके बाद दो से तीन बार जमीन पर कल्टीवेटर चलवा देना चाहिए। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, अंकुरण में भी तेजी आती है। उम्मीद है, हमारी दी हुई यह जानकारी आपकी आमदनी बढ़ाने में फायदेमंद साबित होगी।

मेरी खेती से डबल शाफ्ट रोटावेटर खरीदने पर आपको मिलेगी भारी छूट, जानिए ऑफर के बारे में

मेरी खेती से डबल शाफ्ट रोटावेटर खरीदने पर आपको मिलेगी भारी छूट, जानिए ऑफर के बारे में

किसान भाइयों रोटावेटर आज के दिन हर किसान की जरूरत बन गया है। रोटावेटर के इस्तेमाल से आसानी से खेत की जुताई की जा सकती है। ये खेत को एक बार में ही अच्छी तरह से भुरभुरा कर देता है, जिससे कि किसान का समय और पूँजी दोनों बचते हैं। 

इसके इस्तेमाल के बाद आपको खेत में कल्टीवेटर अथवा हैरो से जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती है। डबल शाफ्ट रोटावेटर से जुताई करने के बाद मिट्टी एकदम भुरभुरी हो जाती है और बिल्कुल समतल भी हो जाती है। इसके इस्तेमाल से खेत की मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है। 

आज के इस लेख में हम आपको इस डबल शाफ्ट रोटावेटर के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे जेसे कि ये कैसे काम करता है। हमारे इस लेख में आप ये भी जानेंगे कि मेरी खेती से अगर आप ये रोटावेटर खरीदते हैं, तो आपको कितनी छूट मिलेगी।

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डबल शाफ्ट रोटावेटर की विशेषताएँ

डबल शाफ्ट रोटावेटर एक ही बार में मिट्टी को भुरभुरा कर देता है। इस रोटावेटर को (न्यूनतम 35 - 40 एचपी) के ट्रैक्टर से आसानी से चलाया जा सकता है। डबल शाफ्ट रोटावेटर में दोनों धुरी एक ही दिशा में, एक ही गति से घूमती हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक ही बार में मिट्टी बेहतर भुरभुरी हो जाती है। 

यह 7 फीट से 12 फीट तक के आकार में मौजूद है और मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए एल, जे और सी प्रकार जैसे विभिन्न आकार के ब्लेड को रोटर से जोड़ा जा सकता है। 

कार्य की चौड़ाई: 203 -205 मिमी, संचालन की गति (किमी प्रति घंटा): 3.63-3.91, क्षेत्र क्षमता: 0.629-0.734 हेक्टेयर/घंटा; क्षेत्र दक्षता: 82.9-94.1%, कट की गहराई: 6.0-6.3 मिमी, ईंधन खपत: 5.90-6.29 मील प्रति घंटे। ये रोटावेटर आज कल किसानों की पहले पसंद बन गए हैं। 

किसान भाइयों आप इसको खरीद कर आसानी से एक ही बार में जुताई कर सकते हैं। डबल शाफ्ट रोटावेटर के इस्तेमाल के बाद आपको हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती है ,डबल शाफ्ट रोटावेटर से एक बार जुताई के बाद खेत में सीधा फसल के बीजों की बुवाई कर सकते है।

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मेरी खेती से ख़रीदे डबल शाफ्ट रोटावेटर कम दामों पर

किसान भाइयों जैसा की आप जानते है डबल शाफ्ट रोटावेटर के बहुत फायदे है। अगर आप डबल शाफ्ट रोटावेटर खरीदने के इच्छुक हैं, तो मेरी खेती के माध्यम से आप इसकी खरीद कर सकते हैं। 

मेरी खेती पर आपके लिए एक ऑफर है, जिसमें आपको ये डबल शाफ्ट रोटावेटर कम कीमत पर मिल सकता है। अगर आप खरीदने के इच्छुक है तो यहां क्लिक करें

इन फूलों की करें खेती, जल्दी बन जाएंगे अमीर

इन फूलों की करें खेती, जल्दी बन जाएंगे अमीर

अगर आप भी जल्दी अमीर होना चाहते हैं, तो जिरेनियम की खेती (Geranium Cultivation) का विकल्प चुन सकते हैं. इसकी खेती करने के लिए पहली बार करीब रक लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं. लेकिन इसके आयल की बात करें, तो मार्केट में इसकी डिमांड काफी हाई है. अहर आप किसान हैं, और आप यही सोचते हैं कि, पारम्परिक खेती के जरिये ही अच्छी कमाई की जा सकती है, तो आप यहां गलत हो सकते हैं. आपको बता दें कि पारम्परिक खेती के अलावा खुशबूदार फूलों और जड़ी बूटियों की खेती करके भी काफी अच्छा खासा मुनाफा कमाया जा सकता है. हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें भी किसानों को फूलों की खेती करने का बढ़ावा दे रही हैं. जिसके लिए भारी भरकम अनुदान भी सरकार की तरफ से दिया जा रहा है. अब अगर ऐसे में किसानों को भी खुशबूदार फूलों की खेती करके मालामाल होने का ये मौका जाया नहीं होने देना चाहिए. इसके लिए किसानों को खेती के लिए अच्छे किस्म के फूलों का चयन करना होगा. जिसका बाजार में अच्छा भाव मिल जाए. हमारे देश में खुशबूदार चीजों की काफी अच्छी बिक्री की जाती है. खुशबूदार फूलों से बनी चीजें लोगों को बेहद आकर्षित करती हैं. जिनमें से इत्र, शैंपू, साबुन और ब्यूटी प्रोडक्ट्स शामिल हैं. इसके अलावा खुशबूदार फूलों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में भी किया जाता है. अगर कोई किसान फूलों की खेती करने का मन बना रहा है, तो उनके लिए जिरेनियम की खेती (Geranium Cultivation) करना एक बढ़िया विकल्प हो सकता है. जानकारी के मुताबिक जिनेरियम आयल की डिमांड बाजारों में खूब रहती है. जिस वजह से इसकी कीमत हजारों रुपये किलो रहती है. जिस वजह से किसान कम समय में ही अमीर बन सकते हैं.

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खेती में पानी की निकासी हो अच्छी

जिनेरियम की खेती (Geranium Cultivation) के लिए किसानों को इसमें ज्यादा लागत लगाने की जरूरत नहीं होती. इसकी खेती चाहें तो कहीं भी कर सकते हैं. बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी होती है. इसके साथ ही मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच में बेहतर माना जाता है. जिरेनियम की बुवाई करने से पहले किसानों को इस बात का खास ख्याल रखना होगा, कि खेत की जुताई सही ढ़ंग से हुई हो. साथ ही खेत में पानी की निकासी भी अच्छी होनी चाहिए. पानी की अच्छी निकासी पौधों को अच्छा उत्पादन देने में कारगर होती है. अगर फसलों में पानी भरा रहेगा तो पौधों की जड़ों के सड़ने का खतरा भी बना रहता है.

हजारों रुपये किलो बिक रहा जिरेनियम आयल

अगर आप पहली बार जिरेनियम की खेती (Geranium Cultivation) कर रहे हैं, तो इसके लिए आपको करीब लाख रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं. जिरेनियम आयल की बाज़ार में काफी डिमांड है. हालांकि बाजार में इसका आयल करीब 20 हजार रुपये किलो तक बेचा जा रहा है. इसकी खेती का सबसे बड़ा फायदा किसानों को यह होता है कि, एक बार की बुवाई के बाद्द इसके पौधे से लगभग चार से पांच साल तक की कमाई पक्की हो जाती है.
किसानों को जागरूकता और सूझ बूझ से खेती करने की अत्यंत आवश्यकता है : Merikheti.com

किसानों को जागरूकता और सूझ बूझ से खेती करने की अत्यंत आवश्यकता है : Merikheti.com

किसान भाई बेहद समस्याओं का सामना करते हैं। कभी प्राकृतिक आपदाएं तो कभी निराश्रित पशुओं से होने वाली हानि तो कभी फसल का समुचित मूल्य ना मिल पाना। किसान हमेशा चुनौतियों से घिरे रहते हैं। साथ ही, हमारे किसान भाई फसल उत्पादन करने से पूर्व किस फसल का चयन करें और किस फसल का नहीं उनको इस बात की जानकारी का अभाव होता है। इसलिए, आज भी किसान भाई परंपरागत तरीके से कृषि करने में अधिक विश्वास रखते हैं। भूमिगत तौर पर किसान फसल वहां की मृदा और जलवायु के अनुरूप उगाते हैं। लेकिन फायदेमंद और लाभकारी विकल्प को चुनने में मात खा जाते हैं। यूँ तो भारत में बहुत सी अनुपयोगी चीजों का भी विपणन कर किसान भाइयों को गुमराह किया जाता है। लेकिन कुछ फसलें ऐसी भी हैं जिनका उत्पादन समय की मांग के अनुरूप किया जाए तो किसान अच्छी आय कर सकते हैं। किसानों को अगर सुखी और समृद्ध बनना है, तो उनको काफी सजग और जागरूक होने की अत्यंत आवश्यकता है। किसानों की दयनीय स्थिति को देखकर मेरीखेती टीम को काफी हमदर्दी होती है। आजकल किसान सड़कों पर ज्यादा खेत में कम दिखाई देता है, कभी फसल हानि के मुआवजे की गुहार करने तो कभी फसल के समुचित न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग के लिए किसान सड़कों पर मायूस घूमता रहता है। किसानों को अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के संपर्क में रहने की आवश्यकता है। क्योंकि कृषि के क्षेत्र में शोधकर्ता और जानकारों को काफी अनुभव होता है। इस बात के बहुत से प्रमाण भी हैं, कि कृषि वैज्ञानिकों की सलाहनुसार किसानों ने खेती करके अच्छी आय और पैदावार हांसिल की है। इनकी सलाह से खेती करने वाले किसान काफी फायदे में रहते हैं। क्योंकि इनको कृषि क्षेत्र के विषय में काफी जानकारी होती है। तो मानी सी बात है, कि किसानों को इससे काफी लाभ मिलेगा।

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किसानों को जागरूक होने की बेहद आवश्यकता है

किसान भाइयों को जागरूक होना ही पड़ेगा अन्यथा उनके हालात बदल नहीं पाएंगे। किसान यदि सही सूझ-बूझ और बेहतर तरीके से कृषि करें तो उनको काफी उन्नति और प्रगति हांसिल हो सकती है। Merikheti.com वेब पोर्टल पर हम कृषि से जुड़ी सही और सटीक जानकारी किसान भाइयों को प्रदान करते हैं। साथ ही, कृषि से संबंधित किसानों की समस्याओं का भी हल यथावत रूप से उनको देने का भी कार्य करते हैं। हम किसानों के लिए समर्पित भाव से कार्य करते आए हैं। किसानों के विकास को प्राथमिकता में रखते हुए हम किसानों को बेहतर जानकारी देने से लेकर प्रति माह किसान पंचायत का आयोजन एवं अन्य हितकर कार्य करते हैं।