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सरसों की फसल को एमएसपी पर खरीदने की तैयारी पूरी करने का निर्देश

सरसों की फसल को एमएसपी पर खरीदने की तैयारी पूरी करने का निर्देश

केंद्र सरकार इस बार एमएसपी पर सरसों की खरीद करेगी। सरकार ने इसकी संपूर्ण तैयारियां कर ली हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने बुधवार को इस बात की जानकारी दी है। भारत में इस बार सरसों की काफी शानदार पैदावार हुई है, जिस पर केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने किसानों का आभार प्रकट किया है। 

कृषि मंत्री का कहना है, कि इस साल किसानों ने भारी मात्रा में सरसों की पैदावार की है। इसके लिए समस्त किसान भाई-बहन बधाई के पात्र हैं। मुंडा ने कहा कि उन्होंने संबंधित विभागों को सरसों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदने के लिए कहा है। ताकि किसानों को उपज बेचने में कोई कठिनाई न आए और उन्हें उपज की समुचित धनराशि मिल सके।

MSP पर सरसों की खरीद की जाएगी 

मीडिया को एक ब्रीफिंग में मुंडा ने आगे बताया कि सरकार ने रबी फसलों के विपणन सीजन के दौरान मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत सरसों की खरीद की तैयारी की है। उन्होंने कहा, "सरकार के लिए किसानों का हित सर्वोपरि है। अगर सरसों की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे जाती हैं, तो सरकार किसानों से एमएसपी पर सरसों खरीदेगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए आवश्यक व्यवस्थाएं भी की गई हैं।"

खरीद की सारी तैयारियां पूर्ण करने का निर्देश दिया है 

उन्होंने कहा कि रबी विपणन सीजन (आरएमएस) के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों को पहले से ही पीएसएस के तहत सरसों की खरीद के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया गया है, ताकि किसानों को किसी भी तरह की कठिनाई का सामना न करना पड़े। उन्होंने कहा, "रबी विपणन सीजन-2023 के दौरान गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और असम राज्यों से पीएसएस के तहत खरीद की मंजूरी 28.24 एलएमटी सरसों थी।"

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कृषकों को अधिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा 

आरएमएस-2024 के लिए भी सभी सरसों उत्पादक राज्यों को सूचित किया गया है, कि यदि राज्य में सरसों का वर्तमान बाजार मूल्य अधिसूचित एमएसपी से कम है, तो पीएसएस के तहत सरसों की खरीद का प्रस्ताव समय रहते भेजें। उन्होंने कहा कि आरएमएस-2024 के लिए सरसों का एमएसपी 5,650 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास है, कि किसानों को उनकी उपज का सही भाव मिल सके और उन्हें अपने उत्पाद को बेचने में कोई समस्या न आए।

खुशखबरी: इस राज्य में मूंग की खेती को बढ़ावा देने लिए 50% प्रतिशत अनुदान

खुशखबरी: इस राज्य में मूंग की खेती को बढ़ावा देने लिए 50% प्रतिशत अनुदान

किसान भाई वर्तमान में अपनी रबी फसलों की कटाई और प्रबंधन में जुटे हुए है। अप्रैल महीने के अंत तक तकरीबन सभी फसलों की कटाई पूर्ण हो जाएगी। वहीं, जायद फसलों का सीजन भी अब शुरू हो चुका है। 

ऐसे में किसान कटाई संपन्न होने के बाद जायद फसलों में से मूंग की खेती कर सकते हैं। अगर आप भी मूंग की खेती करते हैं या इस बार करने की सोच रहे हैं तो ये खबर आप ही के लिए है। 

दरअसल, मूंग की खेती के लिए राज्य सरकार 50% प्रतिशत तक अनुदान दे रही है। आप भी इस अनुदान का फायदा उठाकर शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। 

मूंग के बीजों पर कितना अनुदान मिलेगा

मूंग की खेती करने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर यह है, कि योगी सरकार की तरफ से इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिड़ी प्रदान की जा रही है। अब ऐसे में उत्तर प्रदेश के किसान इसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 

यूपी सरकार मूंग के बीजों पर 50% प्रतिशत सब्सिडी प्रदान कर रही है। अब जैसे मान लीजिए मूंग के एक किलो बीज का मूल्य 80 रुपए है, तो किसान को 40 रुपए में मूंग का बीज उपलब्ध कराया जाएगा। 

इस प्रकार किसान मूंग के प्रमाणिक उन्नत बीज आधी कीमत पर भी हांसिल कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के किसानों को अनुदान पर मूंग के बीज पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा।

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यह अनुदान किसानों को दलहन योजना के अंतर्गत प्रदान किया जाएगा। साथ ही, अनुदान की धनराशि डीबीटी (DBT) के जरिए किसानों के खाते में हस्तांतरित की जाएगी। इसके लिए किसान को बीज खरीदने से पहले विभाग की वेबसाइट पर अपना पंजीकरण कराना होगा। 

किसान भाई योजना का लाभ उठाने के लिए इस प्रकार आवेदन करें 

अगर आप भी उत्तर प्रदेश के किसान हैं, तो आप मूंग की खेती के लिए 50% प्रतिशत अनुदान (Subsidy) पर मूंग के बीजों की खरीदकर लाभांवित हो सकते हैं। 

इसके लिए आपको सबसे पहले राजकीय कृषि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पोर्टल agriculture.up.gov.in पर अपना पंजीकरण करना होगा। साथ ही, किसानों को यहां से ही बीज की खरीदारी करनी होगी, जो किसान पहले से पंजीकृत हैं उनको पुनः पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं है।

गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

आपदा को अवसर में कैसे बदला जाता है, यह कोई यूपी से सीखे। कोरोना के जिस भयावह दौर में आम आदमी अपने घरों में कैद था। उस दौर में भी ये यूपी के किसान ही थे, जो तमाम सावधानियां बरतते हुए भी खेत में काम कर रहे थे या करवा रहे थे। नतीजा क्या निकला? यूपी गेहूं के उत्पादन में पूरे देश में नंबर 1 बन गया। कुछ चीजें जब हो जाती हैं और आप उनके बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो पता चलता है कि यह तो चमत्कार हो गया। ऐसा कभी सोचा ही नहीं गया था और ये हो गया। कुछ ऐसी ही कहानी है यूपी के कृषि क्षेत्र की। कोरोना के जिस कालखंड में आम आदमी अपनी जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, सावधानियां बरतते हुए चल रहा था, उस यूपी में ही किसानों ने कभी भी अपने खेतों को भुलाया नहीं। क्या धान, क्या गेहूं, क्या मक्का हर फसल को पूरा वक्त दिया। निड़ाई, गुड़ाई से लेकर कटाई तक सब सही तरीके से संपन्न हुआ। यहां तक कि कोरोना काल में भी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की। इन सभी का अंजाम यह हुआ कि यूपी गेहूं के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भर हुआ बल्कि देश भर में सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादक राज्य भी बन गया।


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अकेले 32 प्रतिशत गेहूं का उत्पादन करता है यूपी

यूपी के एग्रीकल्चर मिनिस्टर सूर्य प्रताप शाही के अनुसार, यूपी में देश के कुल उत्पादन का 32 फीसद गेहूं उपजाया जाता है। यह एक रिकॉर्ड है, पहले हमें पड़ोसी राज्यों से गेहूं के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। अब हमारा गेहूं निर्यात भी होता है, पड़ोसी राज्यों की जरूरत के लिए भी भेजा जाता है। शाही के अनुसार, ढाई साल तक कोरोना में भी हमारे किसानों ने निराश नहीं किया। इन ढाई सालों के कोरोना काल में सिर्फ कृषि सेक्टर की उत्पादकता बढ़ी। किसानों ने दुनिया को निराश नहीं होने दिया। खेतों में अन्न पैदा होता रहा तो गरीबों को मुफ्त में राशन लेने की दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चलाई गई। आपको तो पता ही होगा कि देश में 80 करोड़ तथा उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ लोगों को प्रतिमाह मुफ्त में दो बार राशन दिया गया। राज्य सरकार ने भी किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने के साथ ही यह तय किया कि महामारी के चलते किसी के भी रोजगार पर असर न पड़े। कोई भूखा न सोए, एक जनकल्याणकारी सरकार का यही कार्य भी होता है।

21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर मिली सिंचाई की सुविधा

आपको बता दें कि यूपी में पिछले 5 सालों में हर सेक्टर में कुछ न कुछ नया हुआ है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से पिछले पांच साल में प्रदेश में 21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई की सुविधा मिली है। सरयू नहर परियोजना से पूर्वी उत्तर प्रदेश के 9 जिलों में अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई सुनिश्चित हुई है। हर जिले में व्यापक स्तर पर नलकूप की स्कीम चलाने के साथ सिंचाई की सुविधा को बढ़ाने के लिए पीएम कुसुम योजना के तहत किसानों को अपने खेतों में सोलर पंप लगाने की व्यवस्था की जा रही है। तो, अगर गेहूं समेत कई फसलों के उत्पादन में हम लोग आगे बढ़े हैं तो यह सब अचानक नहीं हो गया है। यह सब एक सुनिश्चित योजना के साथ किया जा रहा था, जिसका नतीजा आज सामने दिख रहा है।
पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

भारत के साथ दुनिया भर में गेहूं खाना बनाने का एक मुख्य स्रोत है। अगर वैश्विक हालातों पर गौर करें, तो इन दिनों दुनिया भर में गेहूं की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण गेहूं के दामों में तेजी से इजाफा देखने को मिला है। दरअसल, गेहूं का उत्पादन करने वाले दो सबसे बड़े देश युद्ध की मार झेल रहे हैं, जिसके कारण दुनिया भर में गेहूं का निर्यात प्रभावित हुआ है। अगर मात्रा की बात की जाए तो दुनिया भर में निर्यात होने वाले गेहूं का एक तिहाई रूस और यूक्रेन मिलकर निर्यात करते हैं। पिछले दिनों दुनिया में गेहूं का निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसके कारण बहुत सारे देश भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।


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दुनिया में घटती हुई गेहूं की आपूर्ति के कारण बहुत सारे देश गेहूं खरीदने के लिए भारत की तरफ देख रहे थे। लेकिन उन्हें इस मोर्चे पर निराशा हाथ लगी है। क्योंकि भारत में इस बार ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण गेहूं की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। अन्य सालों की अपेक्षा इस साल देश में गेहूं का उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत कम हुआ था। जिसके बाद भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस साल रबी के सीजन में एक बार फिर से गेहूं के बम्पर उत्पादन की संभावना जताई है।


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आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के डायरेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा है, कि इस साल देश में पिछले साल के मुकाबले 50 लाख टन ज्यादा गेहूं के उत्पादन की संभावना है। क्योंकि इस साल गेहूं के रकबे में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही इस साल किसानों ने गेहूं के ऐसे बीजों का इस्तेमाल किया है, जो ज्यादा गर्मी में भी भारी उत्पादन दे सकते हैं। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर गेहूं की फसल के उत्पादन एवं रिसर्च के लिए शीर्ष संस्था है। अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है, कि तेज गर्मी से भारत में अब गेहूं की फसल प्रभावित होने लगी है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।

इस साल देश में इतना बढ़ सकता है गेहूं का उत्पादन

कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि, इस साल भारत में लगभग 11.2 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। जो पिछले साल हुए उत्पादन से लगभग 50 लाख टन ज्यादा है। इसके साथ ही अधिकारियों ने बताया कि इस साल किसानों ने गेहूं की डीबीडब्लू 187, डीबीडब्लू 303, डीबीडब्लू 222, डीबीडब्लू 327 और डीबीडब्लू 332 किस्मों की बुवाई की है। जो ज्यादा उपज देने में सक्षम है, साथ ही गेहूं की ये किस्में अधिक तापमान को सहन करने में सक्षम हैं।


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इसके साथ ही अगर गेहूं के रकबे की बात करें, तो इस साल गेहूं की बुवाई 211.62 लाख हेक्टेयर में हुई है। जबकि पिछले साल गेहूं 200.85 लाख हेक्टेयर में बोया गया था। इस तरह से पिछली साल की अपेक्षा गेहूं के रकबे में 5.36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि इस साल की रबी की फसल के दौरान राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में गेहूं के रकबे में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी हुई है।

एमएसपी से ज्यादा मिल रहे हैं गेहूं के दाम

अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए इस साल गेहूं के दामों में भारी तेजी देखने को मिल रही है। बाजार में गेहूं एमएसपी से 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा दामों पर बिक रहा है। अगर वर्तमान बाजार भाव की बात करें, तो बाजार में गेहूं 30 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इसके उलट भारत सरकार द्वारा घोषित गेहूं का समर्थन मूल्य 20.15 रुपये प्रति किलो है। बाजार में उच्च भाव के कारण इस साल सरकार अपने लक्ष्य के अनुसार गेहूं की खरीदी नहीं कर पाई है। किसानों ने अपने गेहूं को समर्थन मूल्य पर सरकार को बेचने की अपेक्षा खुले बाजार में बेचना ज्यादा उचित समझा है। अगर इस साल एक बार फिर से गेहूं की बम्पर पैदावार होती है, तो देश में गेहूं की सप्लाई पटरी पर आ सकती है। साथ ही गेहूं के दामों में भी कमी देखने को मिल सकती है।
दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से आने से पूर्व पुनः एक बार फिर से गेहूं महंगा हो चुका है। बतादें, कि इससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि आगामी दिनों में इसका भाव और बढ़ सकता है। साथ ही, इससे पूर्व जनवरी माह में भी गेहूं की कीमत सातवें आसमान पर पहुँच गई थी। केंद्र सरकार के बहुत सारे प्रयासों के बावजूद भी महंगाई कम ही नहीं हो पा रही है। आलम यह है, कि एक वस्तु सस्ती होती है, तो दूसरी वस्तु महंगी हो जाती है। टमाटर एवं हरी सब्जियों के भाव में गिरावट दर्ज की है। वर्तमान में गेहूं एक बार पुनः महंगा हो गया है। ऐसा बताया जा रहा है, कि त्योहारी सीजन से पूर्व ही गेहूं के भाव 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। ऐसी स्थिति में फूड इन्फ्लेशन बढ़ने की संभावना एक बार पुनः बढ़ गई है। साथ ही, व्यापारियों ने बताया है, कि इंपोर्ट ड्यूटी के कारण विदेशों से खाद्य पदार्थों का आयात प्रभावित हो रहा है। इससे सरकार के ऊपर निर्यात ड्यूटी हटाने को लेकर काफी दबाव बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को महंगाई पर लगाम लगाने के लिए समय-समय पर सरकारी भंडार से भी गेहूं और चावल जैसे खाद्य पदार्थ को जारी करना पड़ रहा है।

गेंहू की कीमत बढ़ने से इन खाद्यान पदार्थों की कीमत भी बढ़ेगी

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, त्योहारी दिनों की वजह से बाजार में गेहूं की डिमांड बढ़ गई है। वहीं, मांग में बढ़ोतरी से गेहूं की आपूर्ति काफी प्रभावित हो गई है, जिससे कीमतें 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं। यदि कीमतों में इजाफे का यह हाल रहा तो, आगामी दिनों में खुदरा महंगाई और भी बढ़ सकती है। गेहूं एक ऐसा अनाज है, जिससे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। अगर
गेहूं की कीमत में बढ़ोतरी होती है, तो रोटी, बिस्कुट, ब्रेड एवं केक समेत विभिन्न खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो जाएंगे।

भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद इंपोर्ट ड्यूटी

मुख्य बात यह है, कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं के भाव में मंगलवार को 1.6% का इजाफा दर्ज किया गया। इससे गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच गई, जोकि 10 फरवरी के बाद का सर्वोच्च स्तर है। ऐसा बताया जा रहा है, कि विगत छह महीनों के दौरान गेहूं का भाव तकरीबन 22% प्रतिशत बढ़ा हैं। साथ ही, रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार एस ने केंद्र सरकार के समक्ष गेहूं के आयात पर से ड्यूटी हटाने की मांग उठाई है। दरअसल, उन्होंने बताया है, कि अगर सरकार गेहूं पर से इंपोर्ट ड्यूटी हटा देती है, तो निश्चित रूप से इसकी कीमत कम हो सकती है। दरअसल, भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद आयात ड्यूटी लगाई है, जिसे हटाने को लेकर कोई तत्काल योजना नजर नहीं आ रही है।

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खाद्य पदार्थों की कीमतों में इस तरह गिरावट होगी

साथ ही, 1 अक्टूबर तक सरकारी गेहूं भंडार में केवल 24 मिलियन मीट्रिक टन ही गेहूं का भंडार था। जो पांच वर्ष के औसतन 37.6 मिलियन टन के मुकाबले में बेहद कम है। हालांकि, केंद्र ने फसल सीजन 2023 में किसानों से 26.2 मिलियन टन गेहूं की खरीदारी की है, जो लक्ष्य 34.15 मिलियन टन से कम है। वहीं, केंद्र सरकार का अंदाजा है, कि फसल सीजन 2023-24 में गेहूं उत्पादन 112.74 मिलियन मीट्रिक टन के करीब होगा। इससे खाद्य पदार्थों के भाव में गिरावट आएगी।
हरियाणा सरकार ने धान खरीदी को लेकर घोषणा की है, बाजरे के लिए कोई MSP निर्धारित नहीं की

हरियाणा सरकार ने धान खरीदी को लेकर घोषणा की है, बाजरे के लिए कोई MSP निर्धारित नहीं की

हरियाणा में बाजरे की सरकार द्वारा खरीद शुरू हो गई है। हैफेड (हरियाणा राज्य सहकारी आपूर्ति और विपणन संघ लिमिटेड) द्वारा सर्व प्रथम रेवाड़ी, कनीना, चरखी दादरी, भिवानी और कोसली की मंडियों में बाजरे की खरीद की जाएगी। वहीं, धान की सरकारी खरीद के लिए किसानों को थोड़ा इंतजार करना होगा। माना जा रहा है, कि 1 अक्टूबर तक धान की खरीद की जा सकती है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तरफ से दिए गए निर्देश के उपरांत बाजरे की सरकारी खरीद चालू हो गई है। परंतु, किसानों को अब भी धान की सरकारी खरीद की प्रतीक्षा है। ऐसा माना जा रहा है, कि 1 अक्टूबर से धान की खरीद चालू हो सकती है। आपको बतादें, कि बाजरे की खरीद का भुगतान राज्य सरकार की भावांतर भरपाई योजना के अंतर्गत किया जाएगा। फसल की खरीद का पैसा 72 घंटे में सीधा किसानों के बैंक खातों में भेजा जाएगा। साथ ही, बेहतर और औसत क्वालिटी (FAQ) वाले बाजरे की खरीद प्रचलित बाजार दर पर होगी। साथ ही, यह खरीद उन किसानों से की जाएगी, जो मेरी फसल-मेरा ब्योरा पोर्टल पर रजिस्टर्ड और वेरीफाइड हैं।

भावांतर भरपाई योजना के अंतर्गत भुगतान किया जाएगा

किसानों को प्रचलित मंडी दर एवं एमएसपी (MSP) के अंतर का भुगतान राज्य सरकार की भावांतर भरपाई योजना के अंतर्गत किया जाएगा। फसल खरीद की धनराशि सीधे किसानों के बैंक एकांउट में भेजा जाएगा।

धान खरीदी एक अक्टूबर से शुरू हो सकती है

बाजरा के एमएसपी 2,500 रुपये की अपेक्षा 1,900 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिलेगा। निजी व्यापारियों द्वारा बासमती चावल की 1509 किस्म की दर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल की खरीद अब तक स्थिर बनी हुई है। परमल किस्म के धान की सरकारी खरीद अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक शुरू होने की संभावना है।

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जनपद की मंडियों में खरीद नहीं हो पा रही है

बाजार समिति के अधिकारी का कहना है, कि बाजारा और धान की खरीद का ऐलान 25 सिंतबर से शुरू होने के निर्देश दिए गए हैं। परंतु, सरकारी एजेसियों द्वारा अभी तक विभिन्न जिलों की मंडियों में प्रक्रिया तक चालू नहीं हुई है। बाजरे की खरीद 2,200 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर निर्धारित की गई है। परंतु, निजी व्यापारियों द्वारा बाजरे की खरीद 1,900 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर की जा रही है।

किसान को 300 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है

कमीशन एजेंट एसोसिएशन के पदाधिकारी गौरव तेवतिया ने खरीफ फसल की खरीद में हो रहे विलंभ पर अधिकारियों को दोषी ठहराया है। उनका कहना है, कि बाजरे की खरीदी के लिए किसी आधिकारिक एजेंसी का चयन नहीं किया गया है। इससे किसानों को प्रति क्विंटल 300 रुपये की हानि हो रही है। साथ ही, अब किसानों को भी विश्वास नहीं है, कि भावांतर भरपाई योजना के जरिए से हो रही हानि की भरपाई की जाएगी अथवा नहीं।

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बाजरा इस कारण से कम कीमत पर बिकेगा

फसल बिक्री के लिए जो सरकारी पोर्टल में रजिस्ट्रेशन प्रणाली 888999 है उसमें गड़बड़ी है। वहीं, अब तक केवल 35 फीसद ही धान उत्पादक किसान पंजीकृत हो पाए हैं। इससे यह संभावना है, कि ज्यादातर लोग बाजरा एवं धान एमएसपी से नीचे कम भाव में बेचेंगे। मंडियों में तकरीबन 2,200 क्विंटल बाजरा, 5,400 गांठ कपास और 20,000 क्विंटल से ज्यादा बासमती धान की आवक हुई है।
केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

धान के समर्थन मूल्य में 100 रू. प्रति क्विंटल की वृद्धि - केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

नई दिल्ली। केन्द्र की मोदी सरकार ने किसानों के हक में एक और महत्वपूर्ण फैसला लिया है। सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों के
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी की है। इनमें मुख्य रूप से धान के समर्थन मूल्य में 100 रुपए की बढ़ोतरी की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति इसकी मंजूरी दी है। सरकार द्वारा तय की गई कीमतें इन फैसलों के औसत उत्पादन लागत से पचास फीसदी अधिक है।

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सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि सरकार लगातार किसानों के हित में काम कर रही है। किसानों को दी जा रहीं सुविधाओं के चलते उत्पादन में बंपर वृद्धि हुई है। खरीफ की फसलों के उत्पादन में 2.5 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है। सरकार किसानों की आय दोगुना करने के संकल्प के साथ बीते आठ साल में कई दफा एमएसपी भी तेजी से बढ़ाती रही है।

ऐसे तय होती है एमएसपी

- केन्द्र सरकार प्रत्येक वर्ष कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइज (सीएसीपी) [Commission for Agricultural Costs & Prices(CACP)] की सिफारिश पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती है। इसके लिए सरकार ने लागत प्लस पचास फीसदी का फार्मूला तय कर रखा है। यह सरकार की तरफ से किसानों को मिलने वाला तय मूल्य है।

ये हैं प्रमुख प्रमुख फसलें :

- धान, बाजरा, मक्का, ज्वार, मूंगफली, मूंग, तिल, सन, कपास, सोयाबीन, उड़द आदि खरीफ की फसलें हैं। इनकी बुवाई जून से जुलाई तक होती हैं। जबकि नवंबर से दिसंबर में कटाई होती है।

इन फसलों पर इतना बढ़ाया गया है एमएसपी:

1- धान(सामान्य व ग्रेड ए) - 100 रु. 2- ज्वार (हाइब्रिड व मालदंडी) - 232 रु. 3- बाजरा - 100 रु. 4- मक्का - 92 रु. 5- मूंग - 480 रु. 6- उड़द - 300 रु. 7- मूंगफली -300 रु. 8- सोयाबीन (पीला) - 350 रु. 9- तिल - 523 रु. 10- कपास - 354 रु. ------ लोकेन्द्र नरवार
महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

कपास की खेती से दोगुनी होगी किसानों की आमदनी - महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम

मुम्बई। कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना बन गई है। भले ही केन्द्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कॉटन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6380 रु. तय किया है। जबकि महाराष्ट्र में किसानों को कॉटन का भाव 12000 रु. प्रति क्विंटल मिल रहा है। इसीलिए इस साल कपास की बुवाई पर किसान काफी जोर दे रहे हैं। कृषि विभाग भी चाहता है कि किसान ज्यादा से ज्यादा कपास की बुवाई करें, जिससे किसानों को फायदा मिले। और किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए। कृषि विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन और किसानों की भागी से इस बार उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद जताई जा रही है। महाराष्ट्र के कई गांवों में कपास की एक ही किस्म लगाने और उत्पादन में इजाफा करने का प्लान बनाया गया है।

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कपास का रकबा बढाने के लिए पहल

- 'एक-गांव, एक-पहल' के तहत महाराष्ट्र के 63 गांवों में 6 हजार 225 हेक्टेयर में एक साथ कपास की बुवाई की जाएगी। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। यहां कपास का रकबा साल दर साल बढ़ रहा है। इस अभियान का मकसद तभी पूरा होगा, जब किसानों को फसल का पूरा दाम मिले। ये भी देखें: कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

ये ब्लॉक होंगे अभियान में शामिल

- 'एक गांव-एक किस्म' अभियान के तहत नगर तालुका में 9 गांव शामिल होंगे। इसमें 774 हेक्टेयर में कपास की खेती होगी। पथरडी तालुका में 13 गांवों को शामिल किया गया है। इनमें 1460 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल होगा। शेवगांव तालुका के 8 गांवों में 1 हजार 200 हेक्टेयर एरिया शामिल किया जाएगा। इस पहल के जरिए रकबा तो बढ़ेगा ही साथ में उत्पादन में भी इजाफा होगा. जिससे किसानों की आय बढ़ेगी। ------ लोकेन्द्र नरवार
MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

कृषि मंत्रालय ने फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)(MSP), प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण एवं अन्य प्रमुख विषयों पर सुझाव देने के लिए 29 सदस्यीय एक वृहद कमेटी का गठन करने की जानकारी दी है।

इन्होंने किया किनारा :

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग करने वाले किसान संगठनों ने समिति में शामिल होने के लिए नाम प्रस्तावित नहीं किया है। हालांकि इसके बाद भी सरकार ने घोषित की गई समिति में संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) के तीन सदस्यों के लिए स्थान खाली रखा है।

सचिव होंगे अध्यक्ष

यदि भविष्य में मोर्चा की तरफ से नाम आता है तो इन्हें समिति में जोड़ा जाएगा। अधिसूचित समिति द्वारा दिए जाने वाले सुझावों के बारे में भी स्पष्ट किया गया है। इसके लिए तीन प्रमुख विषयों को स्पष्ट किया गया है। बताया गया है कि इस समिति की अध्यक्षता पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल करेंगे।

समिति में शामिल दिग्गज नाम :

वृहद कमेटी में नीति आयोग सदस्य रमेश चंद, कृषि अर्थशास्त्री डॉ. सीएससी शेखर, आईआईएम अहमदाबाद के डॉ. सुखपाल सिंह के अलावा उन्नत किसान भारत भूषण त्यागी के नाम शामिल हैं। किसान प्रतिनिधियों के रूप में तीन स्थान संयुक्त किसान मोर्चा के लिए खाली रखे गए हैं। अन्य किसान संगठनों में भारतीय कृषक समाज अध्यक्ष डॉ. कृष्णवीर चौधरी, गुणवंत पाटिल, प्रमोद कुमार चौधरी, गुणी प्रकाश व सैय्यद पाशा पटेल का नाम दर्ज है।

समिति में इनको जगह :

सहकारिता क्षेत्र से इफको चेयरमैन दिलीप संघानी, विनोद आनंद के अलावा सीएसीपी के सदस्य नवीन पी. सिंह को समिति में शामिल किया गया है। ये भी पढ़ें: अब सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को मिलेगा सरकार की योजनाओं का लाभ कृषि विश्वविद्यालय व संस्थानों से डॉ. पी चंद्रशेखर, डॉ. जेपी शर्मा (जम्मू) और जबलपुर के डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन का नाम शामिल किया गया है। केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों में कृषि सचिव, आइसीएआर के महानिदेशक, खाद्य सचिव, सहकारिता सचिव, वस्त्र सचिव और चार राज्य सरकारों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा के कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिवों की समिति में भूमिका रहेगी।

प्रभावी एमएसपी व्यवस्था बनाने देगी सुझाव

संयुक्त सचिव (फसल) को इस समिति का सचिव नियुक्त किया गया है। अधिसूचना जारी करने के साथ ही इसमें समिति के गठन का उद्देश्य भी स्पष्ट किया गया है। समिति के गठन का उद्देश्य प्राथमिकता के तौर पर एमएसपी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाना है। अतः समिति भारत के किसानों के हित में लागू एमएसपी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने पर अपना सुझाव देगी। ये भी पढ़ें: केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

बाजार अवसर का लाभ उठाने पर फोकस

कृषि उपज की विपणन व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए समिति देश और दुनिया में बदल रहे परिदृश्य के अनुसार लाभ के तरीकों पर ध्यान आकृष्ट कर अपनी राय रखेगी। इस समिति के गठन का मूल उद्देश्य किसानों को अधिक से अधिक लाभ दिलाना होगा।
कौशल विकास
समिति प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन प्रदान करने के तौर तरीकों पर भी अपनी सलाह प्रदान करेगी। इसके लिए किसान संगठनों को शामिल कर इसमें मूल्य श्रृंखला विकास और भविष्य की जरूरतों के लिए अनुसंधान के माध्यम से भारतीय प्राकृतिक खेती के विस्तार पर सुझाव दिए जाएंगे।

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 प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में होगा बोर्ड का गठन अनुसंधान संस्थानों व कृषि विज्ञान केंद्रों को ज्ञान केंद्र बनाने और कृषि शैक्षणिक संस्थानों में प्राकृतिक खेती प्रणाली के पाठ्यक्रम और कौशल विकास की कार्यनीतियों पर भी सुझाव देना समिति की भूमिका का हिस्सा होगा।
फसल विविधीकरण
फसल विविधीकरण (क्राप डायवर्सिफिकेशन) के लिए भी समिति का उद्देश्य निर्धारित किया गया है। इसमें समिति, उत्पादक और उपभोक्ता राज्यों के मध्य जरूरतों के हिसाब से समन्वय के उपाय सुझाने का कार्य करेगी। ये भी पढ़ेंदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था कृषि विविधीकरण और नवीन फसलों के विक्रय के लिए लाभकारी मूल्य प्रदान करने के तरीकों पर भी समिति अपनी सलाह प्रस्तुत करेगी। यह समिति सूक्ष्म सिंचाई योजना की समीक्षा के साथ इसमें सुधार एवं किसान हितैषी सुधारों को भी प्रस्तुत करेगी।
कृषि-कृषक विकास के लिए वृहद किसान कमेटी गठित, एमएसपी पर किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

कृषि-कृषक विकास के लिए वृहद किसान कमेटी गठित, एमएसपी पर किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

विपक्ष ने लिखित में मांगा जवाब, किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

लीगल गारंटी ऑफ एमएसपी (Legal Guarantee of MSP) यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी संबंधी केंद्र सरकार के कदम पर विपक्ष गरम है, जबकि गारंटी की मांग करने वाले
किसान संगठनों ने नए आंदोलन की तैयारी की बात कही है।

कांग्रेस-बसपा ने पूछा सवाल -

संसद में जब कांग्रेस और बसपा सांसदों ने कमेटी के बारे में लिखित सवाल पूछा तो, जवाब में सरकार ने वृहद किसान कमेटी के गठन की मंशा के बारे में जानकारी दी। सरकार ने बताया कि, कमेटी का गठन एमएसपी व्यवस्था को और ज्यादा प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने के लिए किया गया है। केंद्र के मुताबिक इसका गठन सुझाव देने किया गया है, न कि गारंटी प्रदान करने। ये भी पढ़े: MSP को छोड़ बहुत कुछ है किसानों के लिए इस बजट में

किसान संगठन रुष्ट

जिन किसानों के हित संवर्धन के लिए यह वृहद समिति बनाई गई है, उससे जुड़े कुछ किसान संगठन इस कमेटी से रुष्ट हैं। इनका भी आमना-सामना सरकार से बहस के मोर्चे पर हो सकता है। किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने के लिए सरकार ने वृहद कमेटी का गठन किया है। एमएसपी के लिए इस समिति के गठन पर संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार के बीच विरोधाभास कायम है।

विरोधाभास का कारण

आंदोलनकारी किसान संगठन कृषि उपज की एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं। इसके उलट केंद्र सरकार ने एमएसपी पर गारंटी देने से मना कर दिया है।

कमेटी गठन का कारण

कंपनी गठन का उद्देश्य बताते हुए केंद्र सरकार का कहना है कि, सरकार ने कमेटी का गठन एमएसपी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने का सुझाव देने के लिए किया है। इसका उद्देश्य किसी तरह की गारंटी देना नहीं है। यह सिर्फ कृषि जगत सुधार संबंधी सुझाव, परामर्श के लिए गठित की गई है। कमेटी गठन के नोटिफिकेशन में गारंटी जैसी किसी बात का जिक्र नहीं है।

आंदोलन का रुख

इस बारे में सरकार द्वारा स्पष्ट किए जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।

केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर का जवाब

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में इस बारे में स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कांग्रेस सांसद दीपक बैज और बीएसपी सांसद कुंवर दानिश अली के सवाल के जवाब में लोकसभा में उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि, सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने के लिए नहीं, बल्कि इसे और ज्यादा प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने के लिए कमेटी के गठन का आश्वासन दिया था।

कमेटी का गठन

गौरतलब है 29 सदस्यीय कमेटी गठित की जा चुकी है। ऐसे में एमएसपी के विषय पर एक बार फिर सरकार और किसान संगठनों का आमना-सामना हो सकता है। ये भी पढ़े: MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

सांसदों का सवाल

सांसदों ने पूछा था कि, क्या सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को दिसंबर, 2021 के दौरान किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी प्रदान करने के लिए एक समिति गठित करने का आश्वासन दिया था। साथ ही पूछा था कि क्या सरकार का विचार किसानों के उत्थान के लिए एमएसपी हेतु कोई कानून बनाने का है। क्या सरकार की योजना एमएसपी व्यवस्था का विस्तार 22 अनिवार्य कृषि फसलों के अलावा अन्य फसलों तक भी करने का है?

एमएसपी गारंटी पर तर्क-वितर्क

कुछ कृषि अर्थशास्त्रियों की राय में एमएसपी पर गारंटी देने से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उनके तर्क का आधार है कि जो फसलें एमएसपी के दायरे में हैं, उनकी पूरी खरीद मौजूदा दर पर की जाए तो इस पर लगभग 17 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। तर्क दिया जाता है कि ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था, पाकिस्तान से भी ज्यादा खराब हो जाएगी। वहीं प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था के नुकसान की बात करने वाले इस बात को भूल जाते हैं कि देश में किसान 50 पैसे किलो प्याज, लहसुन और दो रुपये किलो आलू बेचने के लिए विवश हैं।

किसान संगठन की मांग

किसान संगठनों ने सरकार से ऐसी कानूनी व्यवस्था की मांग की है जिससे एमएसपी के दायरे में आने वाली फसलों की निजी तौर पर खरीद भी उससे कम स्तर पर नहीं हो, ताकि किसानों को नुकसान न हो। कृषक हित से जुड़े संगठनों के अनुसार एमएसपी की सार्थकता तभी है जब खरीद गारंटी कानून लागू हो। नहीं तो स्थिति जस की तस ही रहेगी।

आंदोलन की तैयारी

संयुक्त किसान मोर्चा अराजनैतिक, इस समिति के गठन से सहमत नहीं है। उसके अनुसार समिति का गठन सरकार की इच्छानुसार फैसला करने व एमएसपी पर खानापूर्ति करने के लिए किया गया है।

मोर्चा ने इस कमेटी में शामिल नहीं होने की घोषणा की है।

मोर्चा के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले के अनुसार एमएसपी की गारंटी का कानून बनवाने के लिए आंदोलन ही अब एकमात्र चारा बचा है। जिसके लिए तैयारी की जा रही है।
MSP Committee: संयुक्त किसान मोर्चा को बिनोद आनंद पर क्यों है आपत्ति?

MSP Committee: संयुक्त किसान मोर्चा को बिनोद आनंद पर क्यों है आपत्ति?

संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) ने एक प्रेस नोट जारी किया है। इसमें मोदी सरकार द्वारा गठित एमएसपी कमेटी (MSP Committee) के सदस्य बिनोद आनंद की सदस्यता को कटघरे में रखा गया है। मोर्चा के मुताबिक आनंद का कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। कौन हैं बिनोद आनंद, कृषि और कोऑपरेटिव और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का उन्हें कितना अनुभव है। एमएसपी कमेटी में शामिल किए जाने पर संयुक्त किसान मोर्चा को आपत्ति क्यों है? जानिये-

विरोधाभास की वजह

केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा वृहद समिति के गठन के बाद संयुक्त किसान मोर्चा की नाराजगी और बढ़ गई है। इस बार केंद्र सहित सदस्य बिनोद आनंद निशाने पर हैं।



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केंद्र सरकार के केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने वृहद समिति के गठन का कारण कृषि एवं कृषक उन्नयन के प्रति सरकार की सजगता बताया है। केंद्र सरकार द्वारा बहुप्रतीक्षित एमएसपी कमेटी (MSP Committee) गठन के बाद विपक्ष की ओर से कांग्रेस और बसपा ने लिखित सवाल किए थे।

तीन नाम रिक्त

कमेटी के गठन के लिए सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा से तीन नाम प्रस्तावित करने कहा था। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने मोर्चा की ओर से इस समिति के लिए प्रस्तावित नामों के लिए 6 महीने तक इंतजार किया। इस संदर्भ ने मोर्चा ने अभी तक नाम नहीं सुझाए हैं।

समिति के खिलाफ मोर्चा का मोर्चा

कमेटी गठित होने के बाद मोर्चा ने सदस्यों के साथ ही सदस्य चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। मोर्चा ने कई सदस्यों पर सरकार और डब्ल्यूटीओ का समर्थक होने का आरोप लगाया है। ऐसे ही एक सदस्य बिनोद आनंद (Binod Anand) पर आरोप हैं कि उनका कृषि से कोई लेना देना ही नहीं है।



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वहीं दूसरी ओर आनंद के पक्ष में दावा है कि, बिनोद आनंद काफी लंबे अर्से से खेती-किसानी के साथ ही सहकारिता क्षेत्र के लिए सेवा प्रदान कर रहे हैं। वो किसान आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं, ऐसा भी उन्हें चुनने वालों का कहना है।

मोर्चा का प्रेस नोट

संयुक्त किसान मोर्चा अराजनैतिक ने आनंद की काबलियत पर प्रेस नोट के जरिए सवाल उठाए हैं। प्रेस नोट में दर्ज है कि, किसान सहकारिता समूह के प्रतिनिधि के तौर पर बिनोद आनंद को इस कमेटी में शामिल किया गया है, जिनका कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। मोर्चा ने सोशल मीडिया प्रोफाइल के हवाले से बिनोद आनंद को कटघरे में रखने की कोशिश की है। मोर्चा के अनुसार आनंद 2010-14 तक बीजेपी की ह्यूमन राइट्स सेल की नेशनल टीम में शामिल रहे। मोर्चा का ये भी कहना है कि आनंद ने धानुका एग्रो-केमिकल (Dhanuka Agritech Limited) में भी सलाहकार के तौर पर काम किया।

प्राइवेट कंसल्टेंसी का हवाला

अपने खिलाफ खोले गए मोर्चा के मोर्चे पर बिनोद आनंद ने भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने प्राइवेट सेक्टर में कंसंल्टेंसी से परिवार का भरण-पोषण करने का हवाला दिया एवं दूसरे किसान नेताओं को चंदाजीवी करार दिया। उन्होंने सवाल किया कि, बीजेपी का सदस्य होने से क्या कोई सदस्य किसान नहीं हो सकता? साथ ही जोड़ा कि, किसी भी पार्टी में आस्था रखने वाला सदस्य किसान हो सकता है।

बिनोद आनंद और कृषि कानून

बिहार में नवादा जिले के घोस्तमा गांव में रहने वाले बिनोद आनंद पढ़े-लिखे छोटे किसान हैं। आनंद खेती के तौर-तरीके बदलकर उसे मॉडर्न बनाने पक्षधर हैं, ताकि किसानों के जीवन स्तर में सुधार आ सके। आनंद चर्चा में इसलिए आए क्योंकि वे कृषि कानूनों में संशोधन करके उसे लागू करने के पक्ष में थे। उन्होंने इसके लिए कुछ शर्तों के साथ अपनी संस्था के नाम से इस कानून के पक्ष में 3,13,363 किसानों के समर्थन से संबंधित पत्र, आंदोलन के दौरान ही केंद्र सरकार को सौंप दिए थे। ये भी पढ़ेंकेन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

किया था विरोध

उन्होंने कांट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट (Model Contract Farming Act, 2018) में किसानों से कोर्ट जाने का अधिकार छीने जाने पर अपना विरोध दर्ज कराया था। इसके अलावा तीनों कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों पर भी उन्होंने आपत्ति जताई थी। इनमें सुधार की शर्त के साथ ही उन्होंने सरकार को समर्थन प्रदान किया था। आनंद का कहना है कि, मंदसौर किसान आंदोलन में उन्होंने शिव कुमार शर्मा कक्का और गुरुनाम सिंह चढूनी के साथ सहभागिता की थी। आनंद, राष्ट्रीय किसान महासंघ के सदस्यों में से एक सदस्य हैं। मंदसौर कांड मामले में जंतर-मंतर पर लंबे समय तक किए गए धरना प्रदर्शन में भी वे शामिल रहे। किसानों को कर्ज मुक्त करने के साथ ही कृषि फसल की पूरी कीमत की मांग के साथ वे आंदोलन कर चुके हैं।

कोऑपरेटिव रिलेशन

कोऑपरेटिव सेक्टर से उनके संबंधों के बारे में भी बात की जाती है। वे दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में कई कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं।

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वे सहकारिता क्षेत्र के जाने-माने संस्थान पुणे स्थित वैकुंठ मेहता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट के अल्मुनाई हैं। कृषि और कॉपरेटिव को लेकर आणंद, गुजरात स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट यानी इरमा और हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस के कई कार्यक्रमों का वे हिस्सा रह चुके हैं। आनंद, कॉन्फेडरेशन ऑफ एनजीओ ऑफ रूरल इंडिया (सीएनआरआई) के महासचिव हैं।

आरोप नहीं नाम दें

आरोपों के जवाब में बिनोद आनंद ने उल्टा मोर्चा को सलाह दी है। उन्होंने कहा कि, लंबे इंतजार के बाद भी संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने नाम नहीं दिया है। ऐसे में सरकार ने एमएसपी व्यवस्था को प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने, फसल विविधीकरण और जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के लिए कमेटी का गठन कर दिया। सरकार ने इस वृहद समिति में मोर्चा की ओर से प्रस्तावित तीन नामों के लिए जगह भी रिक्त छोड़ी है। ऐसे में कमेटी के किसी सदस्य पर सवाल उठाने की बजाय मोर्चा को अपने आपसी झगड़ों को खत्म करना चाहिए। साथ ही मोर्चा को इस समिति का हिस्सा बनकर किसान के हित में काम करने के लिए सहयोग करना चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा से आनंद ने सहयोगी रुख अपनाने की अपील की है, वहीं मोर्चा का रुख सरकार के खिलाफ मोर्चा जारी रखने का नजर आ रहा है।
एमपी के सीएम शिवराज की समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी घोषणा की टाइमिंग पर सवाल

एमपी के सीएम शिवराज की समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी घोषणा की टाइमिंग पर सवाल

सीएम ने आखिरी दौर में की घोषणा, अब सर्वर डाउन

पहले ही उपज बेच चुके हैं कुछ किसान, चूक गए चौहान मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर मूंग की सरकारी खरीद शुरू करने का निर्णय लिया है। किसान हित में मुख्यमंत्री के इस निर्णय को देर से लिया गया फैसला बताया जा रहा है। मध्य प्रदेश में मूंग की खेती करने वाले किसानों के लिए समर्थन मूल्य पर उपज खरीदने के सरकारी निर्णय की जरूरी खबर आई तो जरूर है, लेकिन देरी से। गुड न्यूज ये भी है कि सरकार ने इस साल समर्थन मूल्य में आंशिक लेकिन वृद्धि जरूर की है।



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टाइमिंग पर सवाल -

भले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह एक किसान समर्थित फैसला हो, लेकिन इसकी टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन पर मूंग के समर्थन मूल्य की घोषणा के संदर्भ में चूक गए चौहान वाली कटूक्तियां की जा रहीं हैं।

उपज बेच चुके किसान -

किसानों का कहना है कि, मध्य प्रदेश सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीदी करने में देर कर दी है। इस घोषणा एवं खरीदी संबंधी रजिस्ट्रेशन आदि की प्रक्रिया पूरी होने के पहले तक अधिकांश किसानों ने कृषि उपज मंडी में ओने-पोने दाम पर मूंग की अपनी उपज बेच दी है।



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प्रक्रिया इस बार -

मध्य प्रदेश में इस साल समर्थन मूल्य पर खरीदी करने का रजिस्ट्रेशन सिर्फ सहकारी सोसायटी के माध्यम से हो रहा है। ऐसी स्थिति में पंजीकरण का अन्य कोई विकल्प न होने से भी किसान असमंजस में हैं, कि वे किस तरह समर्थन मूल्य पर उपज का रजिस्ट्रेशन कराएं। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बरेली आदि क्षेत्रों में ग्रीष्म कालीन सीजन में गेहूं, चना, कटाई के फौरन बाद मूंग की खेती शुरू कर दी जाती है। इस चक्र के अनुसार इस बार भी क्षेत्र के कृषकों ने लगभग 18 से 20 हजार हेक्टेयर भूमि में मूंग की बोवनी की थी।



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तंत्र की खामी -

इंटरनेट आधारित समर्थन मूल्य पर कृषि उपज के रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया तंत्र की सबसे बड़ी समस्या सर्वर डाउन होने की है। किसानों ने जी तोड़ मेहनत कर मूंग उपजाई थी, लेकिन सरकारी खरीद नीति ने फिलहाल किसानों की मुसीबत बढ़ा दी है। कई जगहों पर सर्वर डाउन होने की वजह से पंजीयन नहीं हो पा रहे हैं। पंजीकरण सिर्फ सहकारी सोसायटी से होने के कारण दूसरा विकल्प न होने से भी किसान मूंग की उपज के पंजीकरण से वंचित हैं।



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इनको किया था दायरे में शामिल -

सरकार ने पूर्व में धान, गेहूं, चना आदि उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की थी, लेकिन सरकार के द्वारा हाल ही में मूंग की उपज को समर्थन मूल्य के दायरे में लाया गया।

पिछले माह के मुकाबले अंतर -

पिछले साल सरकार ने मूंग के बारे में 15 जून से समर्थन मूल्य की घोषणा की थी। इस साल सरकार ने 18 जुलाई से समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीदी प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। हालांकि इस बार सरकार ने समर्थन मूल्य में 79 रुपए की वृद्धि की है।

समर्थन मूल्य तब और अब -

सरकार ने इस वर्ष मूंग का समर्थन मूल्य 79 रुपए बढ़ाकर 7275 रुपए तय किया है। पिछले साल मूंग का समर्थन मूल्य 7196 रुपए था। आंकड़ों के मान से इस बार बाडी क्षेत्र में 18 से 20 हजार हेक्टेयर भूमि में मूंग की बोवनी हुई।