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सरसों की खेती

सरसों के कीट और उनसे फसल सुरक्षा 

सरसों के कीट और उनसे फसल सुरक्षा 

सरसों बेहद कम पानी व लागत में उगाई जाने वाली फसल है। इसकी खेती को बढ़ावा देकर किसान अपनी माली हालत में सुधार कर सकते हैं। इसके अलावा विदेशों से मंगाए जाने वाले खाद्य तेलों के आयात में भी कमी आएगी। राई-सरसों की फसल में 50 से अधिक कीट पाए जाते हैं लेकिन इनमें से एक दर्जन ही ज्यादा नुकसान करते हैं। सरसों का माँहू या चेंपा प्रमुख कीट है एवं अकेला कीट ही 10 से 95 प्रतिशत तक नुकसान पहुॅचा सकता है । अतः किसान भाइयों को सरसों को इन कीटों के नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

 

चितकबरा कीट या पेन्टेड बग

  keet 

 इस अवस्था में नुकसान पहुॅचाने वाला यह प्रमुख कीट है । यह एक सुन्दर सा दिखने वाला काला भूरा कीट है जिस पर कि नारंगी रंग के धब्बे होते हैं। यह करीब 4 मिमी लम्बा होता है । इसके व्यस्क व बच्चे दोनों ही समूह में एकत्रित होकर पोधो से रस चूसते हैं जिससे कि पौधा कमजोर होकर मर जाता है। अंकुरण से एक सप्ताह के भीतर अगर इनका आक्रमण होता है तो पूरी फसल चैपट हो जाती है। यह कीट सितम्बर से नवम्बर तक सक्रिय रहता है । दोबारा यह कीट फरवरी के अन्त में या मार्च के प्रथम सप्ताह में दिखाई देता है और यह पकती फसल की फलियों से रस चूसता है । जिससे काफी नुकसान होता है । इस कीट द्वेारा किया जाने वाला पैदावार में नुकसान 30 प्रतिशत तथा तेल की मात्रा में 3-4 प्रतिशत आंका गया है ।

 

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नियंत्रणः जहा  तक सम्भव हो 3-4 सप्ताह की फसल में पानी दे देवें । कम प्रकोप की अवस्था में क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत धूल का 20-25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 500 मि.ली. दवा को 500 ली. पानी में मिलाकर छिड़कें ।फसल को सुनहरी अवस्था मे कटाई करें व जल्दी से जल्दी मड़ाई कर लेवंे।

 

आरा मक्खी

  makhi 

 इस कीट की सॅंूड़ी ही फसल को नुकसान पहुचाती है जिसका कि सिर काला व पीठ पर पतली काली धारिया होती है। यह कीट अक्तूबर में दिखाई देता है व नबम्बर  से दिसम्बर तक काफी नुकसान करता है । यह करीब 32 प्रतिशत तक नुकसान करता है । अधिक नुकसान में खेत ऐसा लगता है कि जानवरों ने खा लिया हो ।


 

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नियंत्रणः खेत में पानी देने से सूंडिंया पानी में डूब कर मर जाती हैं ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 500 मि.ली. दवा को 500 ली. पानी में मिलाकर  छिड़कें ।

 

बिहार हेयरी केटरपिलर

  caterpillar 

 इस कीट की सूंड़िया ही फसल को नुकसान पहुंचाती हैं । छोटी सॅंड़ी समूह में रहकर नुकसान पहुचाती है जबकि बडी सूंडी जो करीब 40-50 मि.मी. बडी हो जाती है तथा उसके ऊपर धने, लम्बे नांरगी से कत्थई रंग के बाल आ जाते हैं। यह खेत में घूम-घूम कर नुकसान करती है|यह पत्तियों को अत्यधिक मात्रा में खाती है । यह एक दिन में अपने शरीर के वजन से अधिक पत्तियां खा सकती है जिससे फसल नष्ट हो जाती है और फसल दोबारा बोनी पड़ सकती है । 

नियंत्रणः छोटी सूंडियों के  समूह को पत्ती सहित तोड़कर 5 प्रतिशत केरोसिन तेल के घोल में डालकर नष्ट कर दें ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 500 ली. पानी में  मिलाकर छिड़कें ।


 

फूल निकलने से फसल पकने तक लगने वाले कीट रोग

  sarso fool 

सरसों का चेंपा या मांहूः यह राई-सरसों का सबसे मुख्य कीट है । यह काफी छोटा 1-2 मि.मी.  लम्बा,पीला हरा रंग का चूसक कीड़ा है। यह पौधे की पत्ती, फूल, तना व फलियों से रस चूसता है, जिससे पौधा कमजोर होकर सूख जाता है । इनकी बढ़वार बहुत तेजी से होती है। यह कीट मधु का श्राव करते हैं जिससे पोैधे पर काली फफूॅद पनप जाती है । यह कीट कम तापमान और ज्यादा आर्द्रता होने पर ज्यादा बढता है। इसलिए जनवरी के अंत तथा फरवरी में इस कीट का प्रकोप अधिक रहता है । यह कीट फसल को 10 से 95 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है । सरसों में तेल की मात्रा में भी 10 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है ।


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नियंत्रणः चेंपा खेत के बाहरी पौधों पर पहले आता है। अतः उन पौधों की संक्रमित टहनियों को तोड़कर नष्ट कर देवें। जब कम से कम 10 प्रतिशत पौधों पर 25-26 चेंपा प्रति पौधा दिखाई देवंे तभी मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. या डाइमैथोएट 30 ई.सी. दवा को 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें । यदि दोबारा कीड़ों की संख्या बढ़ती है तो दोबारा छिड़काव करें। 

मटर का पर्णखनक -इस कीट की सॅंूडी़ छोटी व गंदे मटमेले रंग की होती है । पूरी बड़ी सॅंडी़ 3 मि.मी. लम्बी हल्के हरे रंग की होती हेै । यह पत्ती की दोनों पर्तों के बीच घुसकर खाती है और चमकीली लहरियेदार सुरंग बना देती है जिसे दूर से भी देखा जा सकता है । यह कीट 5-15 प्रतिशत तक नुकसान करता है । 

नियंत्रणः चेंपा के नियंत्रण करने से ही इस कीट का नियंत्रण हो जाता है ।

सरसों की खेती (Mustard Cultivation): कम लागत में अच्छी आय

सरसों की खेती (Mustard Cultivation): कम लागत में अच्छी आय

सरसों की खेती में किसान को कम लागत में अच्छी आय हो जाती है और इसमें ज्यादा लागत भी नहीं आती है सबसे बड़ी बात जहाँ पानी की कमी हो वहां इसका उत्पादन किया जा सकता है। इसके खेत को किसान दूसरी फसलों के लिए भी प्रयोग में ला सकता है. सरसों की फसल को दूसरी फसलों के साथ भी किया जा सकता है.इसको दूसरी फसलों के मेढ़ों पर लगा दिया जाता है इससे भी अच्छी पैदावार मिल सकती है.जैसे चने के खेत की मेंढ़, बरसीम की मेंढ़, गेंहूं की मेंढ़, मटर आदि की मेंढ़ पर भी लगाया जा सकता है। इसको जब किसी दूसरी फसल के साथ किया जाता है तो इसको बोलते हैं की सरसों की आड़ लगा दी है. इससे सरसों के पेड़ों की दूरी की वजह से सरसों की क्वालिटी भी बहुत अच्छी होती है और इनमे तेल भी अच्छा मिलता है।

सरसों की खेती के लिए खेत की तैयारी:

mustard Farming सरसों के खेत की तैयारी करते समय याद रखें की इसकी खेत में घास न होने पाए और हर बारिश के बाद खेत की जुताई कर देनी चाहिए जिससे की सरसों में पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती या फिर कम पानी की जरूरत होती है। सरसों के खेत की जुताई गहरी होनी चाहिए तथा इसकी मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए। सरसों की जड़ें गहरी जाती हैं इसलिए इसको गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। याद रहे की इसकी खेती समतल खेत में ज्यादा सही होती है इसको ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है तो इसके खेत में पानी नहीं भरना चाहिए नहीं तो इसकी फसल के गलने की समस्या हो जाती है।

सरसों की खेती के लिए बुवाई का समय:

mustard ki kheti सरसों की बुवाई दो समय पर की जा सकती है जो अगस्त से लेकर अक्टूबर तक की जाती है. राई सरसों को अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के पहले सप्ताह में लगा देना चाहिए। पीली सरसों को सितम्बर में लगा देना चाहिए तथा सामान्य सरसों या काली सरसों को 15 अक्टूबर से पहले बो देना चाहिए। ध्यान रहे की खेत में में पर्याप्त नमी होनी चाहिए जिससे की पौधे को पनपने में आसानी हो।

सरसों की खेती के लिए खाद और उर्वरक

mustard ki kheti उर्वरकों का प्रयोग मिट्‌टी परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए, इसके लिए हमें अपने खेत की मिट्‌टी की जाँच करा लेनी चाहिए जिससे की हमें पता रहता है की हमारी फसल के लिए किन-किन आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरत है इससे हमारी लागत में भी कमी आती है और फसल को भी भरपूर मात्रा में पोषक तत्व मिलते हैं। लेकिन फिर भी हम निम्न प्रकार से खाद और पोषक तत्व दे सकते हैं, सिचांई वाले क्षेत्रों मे नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, फास्फेट 60 किलोग्राम एवं पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। फास्फोरस का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में अधिक लाभदायक होता है। क्योकि इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है, यदि सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग न किया जाए तों गंधक की उपलब्धता की सुनिश्चित करने के लिए 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहियें| साथ में आखरी जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग लाभकारी रहता है। असिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त उर्वरकों की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिग के रूप में प्रयोग की जानी चाहिए| यदि डी ए पी का प्रयोग किया जाता है, तो इसके साथ बुवाई के समय 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिये लाभदायक होता है तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग बुवाई से पहले करना चाहियें. सिंचाई वाले क्षेत्रों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूंड़ो में बीज के 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे नाई या चोगों से दी जानी चाहिए।  नाइट्रोजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई (बुवाई के 25 से 30 दिन) के बाद टापड्रेसिंग में डाली जानी चाहिए। ऊपर दी गई जानकारी क्षेत्र एवं मिटटी के अनुसार कम या ज्यादा भी हो सकती है।

सरसों की प्रजातियां:

mustard ki kheti 2018 तक एआईसीआरपी- आरएम की छतरी के तहत, रेपसीड-सरसों की कुल 248 किस्में जारी की गई हैं, इनमें से 185 किस्मों को अधिसूचित किया गया है (भारतीय सरसों-113; टोरिया -25; पीली सरसों -17; गोभी सरसों -11) भूरा सरसों -5; करन राई -5; तारामिरा -8 और काली सरसों -1)। इनमें छह संकर और जैविक (सफेद जंग, अल्टरनेरिया ब्लाइट, पाउडर फफूंदी) और अजैविक तनाव (लवणता, उच्च तापमान) के लिए सहिष्णुता वाले किस्में और विशिष्ट लक्षणों को विशिष्ट बढ़ती परिस्थितियों के लिए अनुशंसित किया गया है।

ICAR-DRMR द्वारा विकसित रेपसीड-मस्टर्ड वैरायटी

पहला सीएमएस आधारित हाइब्रिड (NRCHB 506) और भारतीय सरसों की 05 किस्में (NRCDR 02, NRCDR 601, NRCHB 101, DRMRI 31 और DRMR150-35) और एक किस्म की पीली सरसों (NRCYS 05-02) DRMR द्वारा विकसित की गई है।

NRCDR 2 (भारतीय सरसों)

पहचान का वर्ष: 2006 अधिसूचना का वर्ष: - 2006/2007 अधिसूचना संख्या: 122 (ई) अधिसूचना की तारीख: 06/02/2007 केंद्र / राज्य: केंद्रीय जोन के लिए अनुशंसित: II (दिल्ली, हरियाणा, J & K, पंजाब और राजस्थान) कृषि पारिस्थितिक स्थिति: समय पर सिंचित स्थितियों की बुवाई। पौधे की ऊंचाई: 165- 212 सेमी औसत बीज की उपज: 1951-2626 किग्रा / हे तेल सामग्री: 36.5- 42.5% बीज का आकार: 3.5-5.6 ग्रा परिपक्वता के दिन: 131-156 दिन बोने के समय लवणता और उच्च तापमान के लिए सहिष्णु है। सफेद जंग की कम घटना, अल्टरनेरिया ब्लाइट, स्क्लेरोटिनिया स्टेम रोट, पाउडर फफूंदी और एफिड्स।

NRCHB-506 हाइब्रिड (भारतीय सरसों)

पहचान का वर्ष: 2008 अधिसूचना का वर्ष: - २०० of / २०० ९ अधिसूचना संख्या: 454 (E) अधिसूचना की तारीख: 11/02/2009 केंद्र / राज्य: केंद्रीय जोन के लिए अनुशंसित: III (राजस्थान और उत्तर प्रदेश) कृषि पारिस्थितिक स्थिति: अत्यधिक अनुकूलन पौधे की ऊंचाई: 180- 205 सेमी औसत बीज की उपज: 1550-2542 किग्रा / हे तेल सामग्री: 38.6- 42.5% बीज का आकार: 2.9-6.5 ग्राम परिपक्वता के दिन: 127-148 दिन टिप्पणी: उच्च तेल सामग्री

NRCDR 601 (भारतीय सरसों)

पहचान का वर्ष: 2009 अधिसूचना का वर्ष: - 2009/2010 अधिसूचना संख्या: 733 (ई) अधिसूचना दिनांक: 01/04/2010 केंद्र / राज्य: केंद्रीय जोन के लिए अनुशंसित: II (दिल्ली, हरियाणा, J & K, पंजाब और राजस्थान) कृषि पारिस्थितिक स्थिति: समय पर सिंचित स्थितियों की बुवाई। पौधे की ऊंचाई: 161- 210 सेमी औसत बीज की उपज: 1939-2626 किग्रा / हे तेल सामग्री: 38.7- 41.6% बीज का आकार: 4.2-4.9 ग्राम परिपक्वता के दिन: 137-151 दिन टिप्पणी: बुवाई के समय खारेपन और उच्च तापमान पर सहिष्णु। सफेद जंग की कम घटना, (हरिण सिर), अल्टरनेरिया ब्लाइट और स्क्लेरोटेनिया सड़ांध।

NRCHB 101 (भारतीय सरसों)

पहचान का वर्ष: 2008 अधिसूचना का वर्ष: - २०० of / २०० ९ अधिसूचना संख्या: 454 (E) अधिसूचना की तारीख: 11/02/2009 केंद्र / राज्य: केंद्रीय जोन के लिए अनुशंसित: III (एम.पी., यू.पी., उत्तराखंड और राजस्थान) और वी (बिहार, जेके, डब्ल्यूबी, ओडिशा, असोम, छत्तीसगढ़, मणिपुर)। कृषि पारिस्थितिक स्थिति: जोन III के लिए सिंचित लेट ज़ोन और ज़ोन V स्थितियों के लिए वर्षा आधारित। पौधे की ऊंचाई: 170- 200 सेमी औसत बीज की उपज: 1382-1491 किग्रा / हे तेल सामग्री: 34.6- 42.1% बीज का आकार: 3.6-6.2 ग्राम परिपक्वता के दिन: 105-135 दिन टिप्पणी: देर से बोए गए सिंचित और वर्षा की स्थिति के लिए उपयुक्त है

DRMRIJ-31 (गिरिराज) (भारतीय सरसों)

पहचान का वर्ष: 2013 अधिसूचना का वर्ष: - 2013/2014 अधिसूचना संख्या: 2815 (E) अधिसूचना की तारीख: 19/09/2013 केंद्र / राज्य: केंद्रीय जोन के लिए अनुशंसित: II (दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्से) कृषि पारिस्थितिक स्थिति: समय पर सिंचित स्थितियों की बुवाई पौधे की ऊंचाई: 180- 210 सेमी औसत बीज की उपज: 2225-2750 किग्रा / हे तेल सामग्री: 39- 42.6% बीज का आकार: 5.6 ग्राम परिपक्वता के दिन: 137-153 दिन टिप्पणी: बोल्ड बीज, उच्च तेल सामग्री और उच्च उपज किस्म।

DRMR 150-35 (भारतीय सरसों)

पहचान का वर्ष: 2015 अधिसूचना का वर्ष: - अधिसूचना संख्या: - अधिसूचना दिनांक: - केंद्र / राज्य: केंद्रीय जोन के लिए अनुशंसित: वी (बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असोम, छत्तीसगढ़ और मणिपुर) एग्रो इकोलॉजिकल कंडीशन: अर्ली बोई गई रेनफेड कंडीशन पौधे की ऊँचाई: जल्दी बोई गई बारिश की स्थिति औसत बीज की उपज: 1828 किग्रा / हे तेल सामग्री: 39.8% बीज का आकार: 4.66 ग्राम परिपक्वता का दिन: 114 दिन (86- 140 दिन) टिप्पणी: प्रारंभिक परिपक्वता, पाउडर फफूंदी और ए ब्लाइट के प्रति सहिष्णु

DRMR 1165-40 (भारतीय सरसों)

पहचान का वर्ष: 2018 अधिसूचना का वर्ष: - अधिसूचना संख्या: - अधिसूचना दिनांक: - केंद्र / राज्य: केंद्रीय जोन के लिए अनुशंसित: II (राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और जम्मू और कश्मीर) कृषि पारिस्थितिक स्थिति: समय पर बुवाई की गई स्थिति पौधे की ऊंचाई: 177-196 सेमी औसत बीज उपज: 2200-2600 किग्रा / हे तेल सामग्री: 40-42.5% बीज का आकार: 3.2-6.6 ग्राम परिपक्वता के दिन: 133- 151 दिन टिप्पणी: अंकुरित अवस्था में गर्मी सहनशील और नमी सहनशील होती है

NRCYS-05-02 (येलो सरसन)

पहचान का वर्ष: 2008 अधिसूचना का वर्ष: - २०० of / २०० ९ अधिसूचना संख्या: 454 (E) अधिसूचना की तारीख: 11/02/2009 केंद्र / राज्य: केंद्रीय अनुशंसित क्षेत्र / क्षेत्र: देश के पीले सरसों के बढ़ते क्षेत्र। कृषि पारिस्थितिक स्थिति: प्रारंभिक परिपक्वता पौधे की ऊंचाई: 110- 120 सेमी औसत बीज उपज: 1239-1715 किग्रा / हे तेल सामग्री: 38.2- 46.5% बीज का आकार: 2.2-6.6 ग्राम परिपक्वता के दिन: 94-181 दिन

खरपतवार नियंत्रण:

सरसों में खरपतवार नियंत्रण के लिए ज्यादा दवाओं का प्रयोग न करें जब सरसों में पहला पानी लगता है तो खरपतवार निकलने लगता है उसके लिए आप दवा या कीटनाशक की जगह खुरपी से निराई करा दें तो ज्यादा मुफीद रहेगा.अगर पानी से पहले सरसों के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार उग आते है। इनके नियंत्रण के लिए निराई गुड़ाई बुवाई के तीसरे सप्ताह के बाद से नियमित अन्तराल पर 2 से 3 निराई करनी आवश्यक होती हैं। रासयानिक नियंत्रण के लिए अंकुरण पूर्व बुवाई के तुरंत बाद खरपतवारनाशी पेंडीमेथालीन 30 ई सी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए।
जानिए, पीली सरसों (Mustard farming) की खेती कैसे करें?

जानिए, पीली सरसों (Mustard farming) की खेती कैसे करें?

आज हम पीली सरसों की बात करेंगे पीली सरसों लाभदायक होने के साथ-साथ अपने पूजा पाठ में भी काम आती है जैसे सरसों दो तरह की होती हैं काली सरसों और पीली सरसो काली सरसों के लिए हम पहले ही अपने वेबसाइट पर लेख दे चुके हैं कई जगह पर लोग राइ को भी सरसों बोल देते हैं जबकि राई और सरसों में बहुत फर्क होता है. पीली सरसों से जो तेल निकलता है उच्च गुणवत्ता का होता है इसमें आप पकवान बनाने से लेकर अचार तक के प्रयोग में ला सकते हैं. सामान्यतः यह सरसों 110 से 125 दिन के बीच में पकती है इसकी मुख्यतः 3 प्रजातियां होती हैं पीतांबरी, नरेंद्र सरसों 2 , एक होती है के-88. इसको खेत की मेड़ों के सहारे भी लगा सकते हैं जैसे आप गेहूं की फसल की जो क्यारियां होती हैं उनकी मेंड़ पर इसको लगाया जा सकता है और अलग से इसकी कोई देखभाल भी नहीं की जाती इसकी लंबाई 6 फुट होती है इसका प्रयोग बीज निकालने के बाद माताएं और बहने झाड़ू के रूप में करती हैं आज भी गांव में जहाँ पशुओं की जगह होती है वहां झाड़ू के रूप में इसका प्रयोग होता है. ये भी पढ़े: गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

खेत की तयारी:

सरसों की खेती

जैसे हम दूसरी फसलों के लिए खेत की तयारी करते हैं वैसे ही इसके लिए भी हम खेत को गहराई में जुताई करके खेत की मिटटी को भुरभुरी कर लेते हैं. इसको ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है इसके लिए 2 पानी काफी होते हैं और अगर बारिश हो जाये तो एक पानी से ही काम चल जाता है. इसके खेत में अगर हम गोबर की बनी हुई खाद प्रयोग करते हैं तो आपको ज्यादा रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. इसके खेत को पहली जुताई गहरी लगा के बाकि की जुताई के समय पाटा या सुहागा जरूर लगाएं और ध्यान रहे इसके खेत में दूब खास न होने पाए नहीं तो वो फसल को ठीक से ज़माने नहीं देती है.

उन्नतिशील प्रजातियाँ

क्र.सं.प्रजातियाँविमोचनकीतिथिनोटीफिकेशनकीतिथिपकनेकीअवधि (दिनोमें)उत्पादनक्षमता (कु०/हे0)तेलकाप्रतिशतविशेषविवरण1 पीताम्बरी 2009 31.08.10 110-115 18-20 42-45 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु 2 नरेन्द्र सरसों-2 1996 09.09.97 125-130 16-20 44-45 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु 3 के-88 1978 19.12.78 125-130 16-18 40-45 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु  

पीली सरसों की बुवाई कब की जाती है?

पीली सरसों की बुबाई का समय 15 सितम्बर से 30 सितम्बर तक कर देनी चाहिए लेकिन यह समय मौसम और राज्य के हिसाब से आगे पीछे भी हो सकता है.

सिंचाई :

सिंचाई की बहुत ज्यादा आवश्यकता इसमें होती नहीं, अगर कोई माहोट लग जाये / या सर्दी में कोई बारिश हो जाये तो दूसरे पानी की जरूरत नहीं होती है.वैसे इसको एक पानी फूल बनने के समय और दूसरा फली में दाना पड़ने के समय चाहिए होता है.

रोग और फसल की सुरक्षा:

सरसों के रोग

1. आरा मक्खीइस

आरा मक्खीइस कीट की सूड़ियाँ काले स्लेटी रंग की होती है जो पत्तियो को किनारो से अथवा पत्तियों में छेद कर तेजी से खाती है। तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।

सरसों के रोग और कीट

2. चित्रित बगइस

चित्रित बगइस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ चमकीले काले, नारंगी एवं लाल रंग के चकत्ते युक्त होते है। शिशु एवं प्रौढ पत्तिया, शाखाओं, तनो, फूलो एवं फलियों का रस चूसते हैं जिससे प्रभावित पत्तियाँ किनारो से सूख कर गिर जाती है। प्रभावित फलियों में दाने कम बनते है। ये भी पढ़े: सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

3. बालदार सूड़ी

बालदार सूड़ी काले एवं नारंगी रंग की होती है तथा पूरा शरीर बालो से ढका रहता है। सूडियाँ प्रारम्भ से झुण्ड मे रहकर पत्तियों को खाती है तथा बाद मे पूरे खेत में फैल कर पत्तियो को खाती है तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।

सरसों के रोग और कीट

4. माहूँइस

माहूँइस कीट की शिशु एवं प्रौढ़ पीलापन लिए हुए रंग के होते है जो पौधो के कोमल तनों, पत्तियों, फूलो एवं नई फलियों के रस को चूसकर कमजोर कर देते हैं। माहूँ मधुस्राव करते है जिस पर काली फफूँदी उग आती है जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है।

5. पत्ती सुरंगक कीट

पत्ती सुरंगक कीट इस कीट की सूडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती है जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखाये बन जाती है।गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए।संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।आरा मक्खी की सूडियों को प्रातः काल इक्ट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।प्रारम्भिक अवस्था में झुण्ड में पायी जाने वाली बालदार सूडियों को पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए।प्रारम्भिक अवस्था में माहूँ से प्रभावित फूलों, फलियों एवं शाखाओं को तोड़कर माहूँ सहित नष्ट कर देना चाहिए।पकने का समय:पिली सरसों पकने में 110 से 125 दिन का समय लेती है.तेल की मात्रा:इसमें तेल की मात्रा सामान्य सरसों से ज्यादा होती है, लगभग 40 से 45 % तक होती है जब की सामान्य सरसों में यही तेल की मात्रा 30 से 35 % तक ही होती है.

जानिए सरसों की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियां

जानिए सरसों की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियां

किसान भाइयों वर्तमान समय में सरसों का तेल काफी महंगा बिक रहा है। उसको देखते हुए सरसों की खेती करना बहुत लाभदायक है। कृषि वैज्ञानिकों ने अनुमान जताया है कि इस बार सरसों की खेती से दोगुना उत्पादन मिल सकता है, यानी इस बार की जलवायु सरसों की खेती के अनुकूल रहने वाली है। तिलहनी फसल की एमएसपी काफी बढ़ गयी है। तथा बाजार में एमएसपी से काफी ऊंचे दामों पर सरसों की डिमांड चल रही है। इन संभावनाओं को देखते हुए किसान भाई अभी से सरसों की अगैती फसल लेने की तैयारी में जुट गये हैं। 

खाली खेतों में अगैती फसल लेने से होगा बहुत फायदा

Mustard ki kheti 

 जो किसान भाई खरीफ की खेती नहीं कर पाये हैं, वो अभी से सरसों की खेती की अगैती फसल लेने की तैयारी में जुट गये हैं। इन किसानों के अलावा अनेक किसान ऐसे भी हैं जो खरीफ की फसल को लेने के बाद सरसों की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन किसानों ने गन्ना,प्याज, लहसुन व अगैती सब्जियों की खेती के लिए खेतों को खाली रखते हैं, वो भी इस बार सरसों के दामों को देखते हुए सरसों की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जो किसान भाई सरसों की अगैती फसल लेंगे वे अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं। इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च के कृषि विशेषज्ञ डॉ. नवीन सिंह का कहना है कि जो खेत सितम्बर तक खाली हो जाते हैं, उनमें कम समय में तैयार होने वाली सरसों की खेती करके किसान भाई अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। उनका कहना है कि भारतीय सरसों की अनेक किस्में ऐसी हैं जो जल्दी तैयार हो जाती हैं और वो फसलें उत्पादन भी अच्छा दे जाती हैं।

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सरसों के कीट और उनसे फसल सुरक्षा 

अच्छी प्रजातियों का करें चयन

mustard ki kheti 

 किसान भाइयों, आइये जानते हैं कि सरसों की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली कौन-कौन सी अच्छी प्रजातियां हैं:- 

1.पूसा अग्रणी:- इस प्रजाति के बीज से सरसों की फसल मात्र 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस बीज से किसान भाइयों को प्रति हेक्टेयर लगभग 14 क्विंटल सरसों का उत्पादन मिल जाता है। 

2. पूसा तारक और पूसा महक:- सरसों की ये दो प्रजातियों के बीजों से भी अगैती फसल ली जा सकती है। इन दोनों किस्मों से की जाने वाली खेती की फसल 110 से 115 दिनों के बीच पक कर तैयार हो जाती है। खाद, पानी, बीज आदि का अच्छा प्रबंधन हो तो इन प्रजातियों से प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल की पैदावार मिल जाती है। 

3. पूसा सरसों-25 :- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पूसा सरसों-25 ऐसी प्रजाति है जिससे सबसे कम समय में फसल तैयार होती है। उन्होंने बताया कि इस प्रजाति से मात्र 100 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। इससे पैदावार प्रति हेक्टेयर लगभग 15 क्विंटल उत्पादन मिल जाता है। 

4. पूसा सरसों-27:- इस प्रजाति के बीज से औसतन 115 दिन में फसल तैयार हो जाती है तथा पैदावार 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास रहती है। 

5. पूसा सरसों-28:- इस प्रजाति से खेती करने वालों को थोड़ा विशेष ध्यान रखना होता है। समय पर बुआई के साथ निराई-गुड़ाई एवं खाद-पानी का प्रबंधन अच्छा करके किसान भाई प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल तक की पैदावार ले सकते हैं। 

6. पूसा करिश्मा: इस प्रजाति से सरसों की फसल 148 दिनों के आसपास तैयार हो जाती है तथा इस प्रजाति से प्रति हेक्टेयर 22 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है। 

7. पूसा विजय: इस प्रजाति के बीजों से फसल लगभग 145 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है तथा इससे प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक फसल ली जा सकती है। 

8.पूसा डबल जीरो सरसों -31:- इस किस्म के बीज से  सरसों की खेती  140 दिनों में तैयार होती है तथा इससे उत्पादन प्रति हेक्टेयर 23 क्विंटल तक लिया जा सकता है। 

9. एनआरसीडीआर-2 :- इस उन्नत किस्म के बीज से सरसों की फसल 131-156 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। अच्छे प्रबंधन से प्रति हेक्टेयर 20 से 27 क्विंटल तक का उत्पादन लिया जा सकता है। 

10. एनआरसीएचबी-506 हाइब्रिड:- अधिक पैदावार के लिए यह बीज अच्छा माना जाता है। इससे सरसों की फसल 127-145 दिनों में तैयार हो जाती है। जमीन, जलवायु और उचित देखरेख से इस बीज से प्रति हेक्टेयर 16 से 26 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है। 

11. एनआरसीएचबी 101:- इस प्रजाति के बीच सेसरसों की फसल 105-135 दिनों में तैयार होती है तथा पैदावार प्रति हेक्टेयकर 15 क्विंटल तक ली जा सकती है। 

12. एनआरसीडीआर 601:- यह प्रजाति भी अधिक पैदावार चाहने वाले किसान भाइयों के लिए सबसे उपयुक्त है। इस बीच से की जाने वाली खेती से फसल 137 से 151 दिनों में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 20 से 27 क्विटल तक पैदावार ली जा सकती है।

कब होती है बुवाई और कब होती है कटाई

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 कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सरसों की अगैती की फसल की बुआई का सबसे अच्छा समय सितम्बर का पहला सप्ताह माना जाता है। यदि किसी कारण से देर हो जाये तो सितम्बर के दूसरे और तीसरे सप्ताह में अवश्य ही बुआई हो जानी चाहिये। इस अगैती फसल की कटाई जनवरी के शुरू में ही हो जाती है। अधिक पैदावार वाली प्रजातियों में एक से डेढ़ महीने का समय अधिक लगता है। इस तरह की फसलें फरवरी के अंत तक तैयार हो जाती हैं। 

सरसों की अगैती फसल के लाभ

सरसों की कम अवधि में तैयार होने वाली अगैती फसल से अनेक लाभ किसान भाइयों को मिलते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
  1. अगैती फसल लेने से सरसों की पैदावार माहू या चेपा कीट के प्रकोप से बच जाती है। इसके अलावा ये फसलें बीमारी से रहित होतीं हैं।
  2. सरसों की अगैती फसल लेने से खेत जल्दी खाली हो जाते हैं तथा एक साल में तीन फसल ली जा सकती है।

अगैती फसल के लिए किस तरह करें देखभाल

  1. बुवाई के समय उर्वरक प्रबंधन के लिए खेत में प्रति हेक्टेयर एक क्विंटल सिंगल सुपर फास्फेट, 40 किलो यूरिया और 25 से 30 किलो एमओपी डालें।
  2. खरपतवार को रोकने के लिए बुआई से एक सप्ताह बाद पैंडीमेथलीन का 400 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। एक माह बाद निराई-गुड़ाई की जानी चाहिये।
  3. सिंचाई के लिए खेत की देखभाल करते रहें। बुआई के लगभग 35 से 40 दिन बाद खेत का निरीक्षण करें। आवश्यकता हो तो सिंचाई करें। उसके बाद एक और सिंचाई फली में दाना आते समय करनी चाहिये लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब फूल आ रहे हों तब सिंचाई नहीं करनी चाहिये।
  4. पहली सिंचाई के बाद पौधों की छंटाई करनी चाहिये। उस समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 20 सेंटी मीटर रहे। इसी समय यूरिया का छिड़काव करें।
  5. खेत की निगरानी करते समय माहू या चेपा कीट के संकेत मिलें तो पांच मिली लीटर नीम के तेल को एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।या इमीडाक्लोप्रिड की 100 मिली लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें। यदि लाभ न हो तो दस-बारह दिन बाद दुबारा छिड़काव करें।
  6. फलियां बनते समय थायोयूरिया 250 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव करें। जब 75 प्रतिशत फलियां पीली हो जायें तब कटाई की जाये। पूरी फलियों के पकने का इंतजार न करें वरना दाने चिटक कर गिरने लगते हैं।

जानिए सरसों की बुआई के बाद फसल की कैसे करें देखभाल

जानिए सरसों की बुआई के बाद फसल की कैसे करें देखभाल

किसान भाइयों यदि हम आज सरसों की फसल की बात करे तो आजकल सरसों के तेल के दाम बहुत ऊंचे होने के कारण इसका महत्व बढ़ गया है। प्रत्येक किसान अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए सरसों की फसल करना चाहेगा। उस पर यदि सरसों की फसल अच्छी हो जाये तो सोने पर सुहागा हो जायेगा।  इसके लिये किसान भाइयों को शुरू से अंत तक फसल की देखभाल करनी होगी। किसान भाइयों को समय-समय पर जरूरत के हिसाब से खाद-पानी, निराई-गुड़ाई, रोग, कीट प्रकोप से बचाने के अनेक उपाय करने होंगे।

सबसे पहले पौधों की दूरी का ध्यान रखें

बुआई के बाद सबसे पहले किसान भाइयों को बुआई के लगभग 15 से 20 दिनों के बाद खेत का निरीक्षण करना चाहिये तथा पौधों  का विरलीकरण यानी निश्चित दूरी से अधिक पौधों की छंटाई करनी चाहिये ।  इससे फसल को  दो तरह के लाभ मिलते हैं। पहला लाभ  यह कि  पौधों के लिए आवश्यक 10-15 सेन्टीमीटर की दूरी मिल जाती है। जिससे फसल को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। दूसरा लाभ यह है कि खरपतवार का नियंत्रण भी  हो जाता है।

सिंचाई का विशेष प्रबंध करें

सरसों की फसल के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी होती है। बरसात होती है तो उसका ध्यान रखते हुए सिंचाई का प्रबंधन करना होता है। सरसों की अच्छी फसल के लिए खेत की नमी, फसल की नस्ल और मिट्टी  की श्रेणी के अनुसार किसान भाइयों को खेत की जांच पड़ताल करनी चाहिये। उसके बाद आवश्यकता हो तो पहली सिंचाई 15 से 20 दिन में ही करें। उसके बाद 30 से 40 दिन बाद उस समय सिंचाई करें जब फूल आने वाले हों।  इसके बाद तीसरी सिंचाई 2 से ढाई महीने के बाद उस समय करनी चाहिये जब फलियां बनने वाली हों। जहां पर पानी की कमी हो या पानी खारा हो तो किसान भाइयों को चाहिये कि अपने खेतों में सिर्फ एक ही बार सिंचाई करें।



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कैसे करें खरपतवार का नियंत्रण

सिंचाई के अच्छे प्रबंधन के साथ ही सरसों की फसल की देखभाल में खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि किसान भाई जब खेत में खाद व सिंचाई का अच्छा प्रबंधन करते हैं तो खेत में सरसों के पौधों के साथ ही उसमें उग आये खरपतवार भी तेजी से विकसित होने लगते हैं। इसका फसल पर सीधा प्रभाव पड़ने लगता है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि सरसों की फसल की देखभाल करते समय खरपतवार के नियंत्रण पर विशेष ध्यान दें।  खरपतवार का नियंत्रण इस प्रकार करना चाहिये:-
  1. बुआई के लगभग 25 से 30 दिन बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिये। इससे पौंधों के सांस लेने की क्षमता बढ़ जाती है तथा  इससे  पौधों को तेजी से अच्छा विकास होता है।
  2. खरपतवार का अच्छी तरह नियंत्रण करने से फसल में 60 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। किसान भाइयों को अच्छी फसल का लाभ हासिल करने के लिए खरपतवार का प्रबंधन करना ही होगा।
  3. खरपतवार के नियंत्रण के लिए किसान भाई रासायनिक पदार्थों का भी उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए पेन्डी मिथैलीन (30 ईसी) की 3.5 लीटर को 1000 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के तुरन्त बाद छिड़काव करना चाहिये।  यदि पेन्डी मिथेलीन का प्रबंध न हो सके उसकी जगह फ्रलुक्लोरेलिन (45 ईसी) का घोल मिलाकर छिड़काव करना चाहिये ।  इससे खरपतवार नहीं उत्पन्न होता है।
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कीट प्रकोप व रोग का ऐसे करें उपचार

कहते हैं कि जब तक फसल सुरक्षित किसान भाई के घर न पहुंच जाये तब तक अनेक बाधाएं फसलों में लगतीं रहतीं हैं। ऐसी ही एक बड़ी व्याधि हैं कीट प्रकोप और फसली रोग। इनसे बचाने के लिए किसान भाइयों को लगातार अपनी फसल की निगरानी करते रहना चाहिये और जो भी कीटों का प्रकोप और रोग के संकेत दिखाई दें तत्काल उनका उपचार करना चाहिये। वरना फसल की पैदावार काफी प्रभावित होती है और किसान भाइयों को  होने वाले अच्छे लाभ पर ग्रहण लग जाता है। आइये जानते हैं कि सरसों की फसल पर कौन-कौन से रोग और कीट लगते हैं और किस प्रकार से किसान भाइयों को उनका उपचार करना चाहिये। सरसों की फसल पर लगने वाले रोग व कीट इस प्रकार हैं:-
  1. चेंपा या माहू
  2. आरा मक्खी
  3. चितकबरा कीट
  4. लीफ माइनर
  5. बिहार हेयरी केटर पिलर
  6. सफेद रतुवा
  7. काला धब्बा या पर्ण चित्ती
  8. चूर्णिल आसिता
  9. मृदूरोमिल आसिता
  10. तना गलन



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1. चेंपा या माहू: सरसों का प्रमुख कीट चेंपा या माहू है। जो फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर देता है। सरसों में लगने वाले माहू पंखों वालें और बिना पंखों वाले हरे या सिलेटी रंग के होते हैं। इनकी लम्बी डेढ़ से तीन मिलीमीटर होती है। इस कीट के शिशु व प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नई फलियों के रस चूसकर उनको कमजोर एवं क्षतिग्रस्त करते हैं। इस कीट के प्रकोप का खतरा दिसम्बर से लेकर मार्च तक बना रहता है।  इस दौरान किसान भाइयों को सतर्क रहना चाहिये।

क्या उपाय करने चाहिये

जब फसल चेंपा या माहू से प्रभावित दिखें और उसका प्रभाव बढ़ता दिखे तो किसान भाइयों को तत्काल एक्टिव होकर डाइमिथोएट  30 ईसी या मोनोग्रोटोफास (न्यूवाक्रोन) का लिक्विड एक लीटर को 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिये। यदि दुबारा कीट का प्रकोप हों तो 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये।  माहू से प्रभावित पौधों की शाखाओं को तोड़कर जमीन में दबा देना चाहिये।  इसके अलावा किसान भाइयों को माहू से प्रभावित फसल को बचाने के लिए कीट नाशी फेंटोथिओन 50 ईसी एक लीटर को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये। इसका छिड़काव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि शाम के समय स्प्रे करना होगा। sarson ki kheti 2. आरा मक्खी: सरसों की फसल में लगने वाले इस कीट के नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50 ईसी की एक लीटर को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिये। एक बार में कीट न खत्म हों तो दुबारा छिड़काव करना चाहिये। 3.चितकबरा कीट : इस कीट से बचाव करने के लिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से क्यूलनालफास चूर्ण को 1.5 प्रतिशत को मिट्टी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। जब इस कीट का प्रकोप अपने चरम सीमा पर पहुंच जाये तो उस समय मेलाथियान 50 ईसी की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़कना चाहिये। 4.लीफ माइनर: इस कीट के प्रकोप के दिखते ही मेलाथियान 50 ईसी का छिड़काव करने से लाभ मिलेगा। 5.बिहार हेयरी केटर पिलर : डाइमोथिएट के घोल का छिड़काव करने से इस कीट से बचाव हो सकता है। 6. सफेद रतुवा : सरसों की फसल में लगने वाले रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार तीन बार तक छिड़काव किया जा सकता है। 7. काला धब्बा या पर्ण चित्ती: इस रोग से बचाव के लिए आईप्रोडियाँन, मेन्कोजेब के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। 8. चूर्णिल आसिता: इस रोग की रोकथाम करने के लिए सल्फर का 0.2 प्रतिशत या डिनोकाप 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करे। 9. मृदूरोमिल आसिता: सफेद रतुआ के प्रबंधन से ये रोग अपने आप ही नियंत्रित हो जाता है। 10. तना गलन: फंफूदीनाशक कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत का छिड़काव फूल आने के समय किया जाना चाहिये। बुआई के लगभग 60-70 दिन बाद यह रोग लगता है। उसी समय रोगनाशी का छिड़काव करने  से  फायदा मिलता है।



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सरसों की फसल के रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

सरसों की फसल के रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

सरसों की फसल का रकबा बढ़ गया है क्योकि खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति में आये अंतर की वजह से इसकी कीमत अच्छी रहने की उम्मीद है. इसी वजह से इसकी बुबाई भी ज्यादा मात्रा में की गई है. अभी हमारे किसान भाई सरसों में पानी और खाद लगा कर उसकी बढ़वार और पेड़ पर कोई रोग न आये उसके ऊपर ध्यान केंद्रित रख रहे हैं. सरसों की खेती में लागत काम और देखभाल ज्यादा होती है क्योकि इसको कच्ची फसल बोला जाता है. इसको कई प्रकार के कीटों से खतरा रहता है इनमे मुख्यतः माहू मक्खी, सुंडी, चेंपा आदि है. अगर इसका समय से उपचार न किया जाये तो ये 10 से 90% तक फसल को नुकसान कर जाता है. इसलिए यह अति आवश्यक है कि इन कीटों की सही पहचान कर उचित और समय पर रोकथाम की जाए. यदि समय रहते इन रोगों एवं कीटों का नियंत्रण कर लिया जाये तो सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा सकती है.

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मेरीखेती के WhatsApp ग्रुप के सदस्य ने हमें अपने खेत का फोटो भेजा तथा इस पर जानकारी चाही इस पर हमारे सलाहकार मंडल के सदस्य श्री दिलीप यादव जी ने उनकी समस्या का समाधान किया. नीचे दिए गए फोटो को देखकर आप भी अपने उचित सलाह हमारे किसान भाइयों को दे सकते हैं.

सरसों के प्रमुख कीट और नियंत्रण:

आरा मक्खी:

इस समय सरसों में चित्रित कीट व माहू कीट का प्रकोप होने का डर ज्यादा रहता है. इसके असर से शुरू में फसलों के छोटे पौधों पर आरा मक्खी की गिडारें ( सुंडी, काली गिडार व बालदार गिडार) नुकसान पंहुचाती हैं, गिडारें काले रंग की होती हैं जो पत्तियों को बहुत तेजी के साथ किनारों से विभिन्न प्रकार के छेद बनाती हुई खाती हैं जिसके कारण पत्तियां बिल्कुल छलनी हो जाती हैं. इससे पेड़ सूख जाता है और समाप्त हो जाता है. उपाय: मेलाथियान 50 ई.सी. की 200 मि.ली. मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें, तथा पानी भी लगा दें. जिससे की नीचे आने वाले कीट डूब कर मर जाएँ.

माहू या चेंपा:

यह रोग देर से बोई गई प्रजाति पर ज्यादा आता है लेकिन कई बार मौसम अगर जल्दी गरम हो जाये और फसल पर फलियां बन रही हों या कच्ची हो तो इसका ज्यादा नुकसान होता है. यह फसल को पूरी तरह से ख़तम कर देता है. उपाय: बायोएजेन्ट वर्टिसिलियम लिकेनाइ एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं 7 दिन के अंतराल पर मिथाइल डिमेटोन (25 ई.सी.) या डाइमिथोएट (30 ई.सी) 500 मि.ली./हेक्टेयर का छिड़काव करें.

मृदुरोमिल आसिता:

लक्षण- जब सरसों के पौधे 15 से 20 दिन के होते हैं तब पत्तों की निचली सतह पर हल्के बैंगनी से भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं बहुत अधिक नमी में इस रोग का कवक तने तथा स्टेग हैड’ पर भी दिखाई देता है| यह रोग फूलों वाली शाखाओं पर अधिकतर सफेद रतुआ के साथ ही आता हैं|

सफेद रतुआ

लक्षण- सरसों की पत्तियों के निचली सतह पर चमकीले सफेद उभरे हुए धब्बे बनते हैं, पत्तियों को ऊपरी सतह पीली पड़ जाती हैं, जिससे पत्तियों झुलसकर गिर जाती हैं एवं पौधे कमजोर हो जाते हैं| रोग की अधिकता में ये सफेद धब्वे तने और कलियों पर भी दिखाई देते नमी रहने पर रतुआ एवं रोमिल रोगो के मिले जुले धन्ये ‘स्टेग हैड” (विकृत फ्लों) पर साफ दिखाई देते हैं|

काले धब्बों का रोग

लक्षण- सरसों की पत्तियों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनते हैं, जो बाद में तेजी से बढ़ कर काले और बड़े आकार के हो जाते हैं, एवं इन धब्बों में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं| रोग की अधिकता में बहुत से धवे आपस में मिलकर बड़ा रूप ले लेते हैं तथा फलस्वरूप पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं, तने और फलों पर भी गोल गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं|

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तना गलन

लक्षण- सरसों के तनों पर लम्बे व भूरे जलसिक्त धब्बे बनते हैं, जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तह बन जाती है, यह सफेद फंफूद पत्तियों, टहनियों और फलियों पर भी नजर आ सकते हैं| उग्र आक्रमण यदि फुल निकलने या फलियाँ बनने के समय पर हो तो तने टूट जाते हैं एवं पौधे मुरझा कर सूख जाते हैं| फसल की कटाई के उपरान्त ये फफूंद के पिण्ड भूमि में गिर जाते हैं या बचे हुए दूठों (अवशेषों) में प्रर्याप्त मात्रा में रहते हैं, जो खेत की तैयारी के समय भूमि में मिल जाते हैं| उपरोक्त रोगों का सामूहिक उपचार- सरसों की खेती को तना गलन रोग से बचाने के लिये 2 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें|

छिड़काव कार्यक्रम

सरसों की खेती में आल्टनेरिया ब्लाईट, सफेद रतुआ या ऊनी मिल्ड्यू के लक्षण दिखते ही डाइथेन एम- 45 का 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव सरसों की खेती पर दो बार 15 दिन के अन्तर पर करें| जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर वर्ष अधिक होता है, वहां बाविस्टिन से 2 ग्राम प्रति किलो को दर से बीज का उपचार करे और इसी दवा का बिजाई के 45 से 50 और 65 से 70 दिन बाद 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें|
देश की सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बिक रही सरसों

देश की सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बिक रही सरसों

दशकों से खाद्य तेलों के मामलों में हम आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं। हमें जरूरत के लिए खाद्य तेल विदेशों से मंगाने पढ़ते रहे हैं। इस बार सरसों का क्षेत्रफल बढ़नी से उम्मीद जगी थी कि हम विदेशों पर खाद्य तेल के मामले में काफी हद तक कम निर्भर रहेंगे लेकिन मौसम की प्रतिकूलता ने सरसों की फसल को काफी इलाकों में नुकसान पहुंचाया है। इसका असर मंडियों में सरसों की आवक शुरू होने के साथ ही दिख रहा है। समूचे देश की मंडियों में सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर ही बिक रही है। सरसों सभी मंडियों में 6000 के पार ही चल रही है।

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सरसों को रोकें या बेचें

Sarson

घटती कृषि जोतों के चलते ज्यादातर किसान लघु या सीमांत ही हैं। कम जमीन पर की गई खेती से उनकी जरूरत है कभी पूरी नहीं होती। इसके चलते वह मजबूर होते हैं फसल तैयार होने के साथ ही उसे मंडी में बेचकर अगली फसल की तैयारी की जाए और घरेलू जरूरतों की पूर्ति की जाए लेकिन कुछ बड़ी किसान अपनी फसल को रोकते हैं। किसके लिए वह तेजी मंदी का आकलन भी करते हैं। बाजार की स्थिति सरकार की नीतियों पर निर्भर करती है। यदि सरकार ने विदेशों से खाद्य तेलों का निर्यात तेज किया तो स्थानीय बाजार में कीमतें गिर जाएंगे। रूस यूक्रेन युद्ध यदि लंबा खींचता है तो भी बाजार प्रभावित रहेगा। पांच राज्यों के चुनाव में खाद्य तेल की कीमतों का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए दिक्कत जदा रहा। सरकार किसी भी कीमत पर खाद्य तेलों की कीमतों को नीचे लाना चाहेगी। इससे सरसों की कीमतें गिरना तय है। मंडियों में आवक तेज होने के साथ ही कारोबारी भी बाजार की चाल के अनुरूप कीमतों को गिराते उठाते रहेंगे।

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प्रतिकूल मौसम ने प्रभावित की फसल

Sarson ki fasal

यह बात अलग है कि देश में इस बार सरसों की बुवाई बंपर स्तर पर की गई लेकिन इसे मौसम में भरपूर झकझोर दिया। बुबाई के सीजन में ही बरसात पढ़ने से राजस्थान सहित कई जगहों पर किसानों को दोबारा फसल बोनी पड़ी। इसके चलते फसल लेट भी हो गई। पछेती फसल में फफूंदी जनित तना गलन जैसे कई रोग प्रभावी हो गए। इसका व्यापक असर उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता पर पड़ा है। हालिया तौर पर फसल की कटाई के समय पर हरियाणा सहित कई जगहों पर ओलावृष्टि ने फसल को नुकसान पहुंचाया है।

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रूस यूक्रेन युद्ध का क्या होगा असर

रूस यूक्रेन युद्ध का असर समूचे विश्व पर किसी न किसी रूप में पड़ना तय है। परोक्ष अपरोक्ष रूप से हर देश को इस युद्ध का खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। युद्ध अधिक लंबा खिंचेगा तो विश्व समुदाय के समर्थन में हर देश को सहभागिता दिखानी ही पड़ेगी। इसके चलते गुटनिरपेक्षता की बात बेईमनी होगी और विश्व व्यापार प्रभावित होगा। कोरोना काल के दौरान बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उद्यम को एक और बड़ा झटका लगेगा। विदेशों पर निर्भरता वाली वस्तुओं की कीमतों में इजाफा होना तय है।

सरकारी समर्थन मूल्य से ऊपर बिक रही सरसों

sarson ke layi

सरसों की फसल की मंडियों में आना शुरू हुई है जिसके चलते अभी वो एमएसपी से ऊपर बिक रही है। मंडी में आवक बढ़ने के बाद स्थिति स्पष्ट होगी कि खरीददार सरसो को कितना गिराएंगे। उत्तर प्रदेश की मंडियों में सरसों 6200 से 7000 तक बिक रही है वहीं कई जगह वह 7000 के पार भी बिक रही है। गुजरे 3 दिनों में सरसों की कीमतें में 200 से 400 ₹500 तक की गिरावट एवं कई जगह कुछ बढत साफ देखी गई। 15 मार्च तक सरसों की आवक और उत्पादन के अनुमानों के आधार पर बाजार में कीमतों की स्थिरता का पता चल पाएगा। अभी खरीदार दैनिक मांग के अनुरूप सरसों की पेराई का फल एवं तेल की सप्लाई दे रहे हैं। कारोबारी एवं किसानों के स्तर पर स्टॉक की पोजीशन 15 मार्च के बाद ही क्लियर होगी।

सरसों की खेती से होगी धन की बरसात, यहां जानिये वैज्ञानिक उपाय जिससे हो सकती है बंपर पैदावार

सरसों की खेती से होगी धन की बरसात, यहां जानिये वैज्ञानिक उपाय जिससे हो सकती है बंपर पैदावार

सरसों (Mustard; sarson) भारत में एक प्रमुख तिलहन की फसल है, इसकी खेती ज्यादातर उत्तर भारत में की जाती है। इसके साथ ही उत्तर भारत में सरसों के तेल का बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि भारत तिलहन का बहुत बड़ा आयातक देश है, इसलिए सरकार भारत में तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती है। सरकार ने पिछले कुछ सालों में सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी का ज्यादा से ज्यादा प्रयास किया है ताकि भारत को तिलहन उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। सरसों की खेती रबी सीजन में की जाती है, इस फसल की खेती में ज्यादा संसाधन नहीं लगते और न ही इसमें ज्यादा सिंचाई की जरुरत होती है। एक आम और छोटा किसान कम संसाधनों के साथ भी सरसों की खेती कर सकता है। लेकिन अगर हम पिछले कुछ समय को देखें तो जलवायु परिवर्तन और मौसम की भीषण मार का असर सरसों की खेती पर भी हुआ है, जिसके कारण उत्पादन में कमी आई है और खेती लागत बढ़ती जा रही है। ऐसे में यदि किसान सरकार द्वारा बताये गए वैज्ञानिक उपायों का इस्तेमाल करते हैं, तो वो इस घाटे की भरपाई आसानी से कर सकते हैं।


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किन-किन राज्यों में होती है सरसों की खेती

भारत में कुछ राज्यों में सरसों की खेती बहुतायत में होती है। इनमें पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात का नाम शामिल है। इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी सरसों की खेती के अनुकूल है और राज्य के किसान भी खेती करना पसंद करते हैं।

मिट्टी की जांच किस प्रकार से करें

किसी भी फसल की खेती में मिट्टी सबसे महत्वपूर्ण घटक है। इसलिए किसान को चाहिए कि सबसे पहले वह अपने खेत की मिट्टी की प्रयोगशाला में जांच करवायें, ताकि उसे मिट्टी की कमियों, संरचना और इसकी जरूरतों का पता चल सके। मिट्टी की जांच के पश्चात किसानों को इसका रिपोर्ट कार्ड दिया जाता है, जिसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) कहते हैं। इसमें मिट्टी के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होती है। कार्ड में दी गई जानकारी के अनुसार ही निश्चित मात्रा में खाद-उर्वरक, बीज और सिंचाई करने की सलाह किसानों को दी जाती है। यह वैज्ञानिक तरीका सरसों की पैदावार को कई गुना तक बढ़ा सकता है।

सरसों की बुवाई

भारत में सरसों की बुवाई प्रारम्भ हो चुकी है। वैसे तो सरसों की बुवाई अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक की जा सकती है। लेकिन यदि इस फसल की बुवाई 5 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर के मध्य की जाए, तो बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। सरसों की बुवाई करने के पहले खेत को पर्याप्त गहराई तक अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए। इसके बाद हैप्पी सीडर या जीरो टिल बेड प्लांटर के माध्यम से 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सरसों के उन्नत बीजों की बुवाई करनी चाहिए।


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बाजार में उपलब्ध सरसों की उन्नत किस्में

भारतीय बाजार में वैसे तो सरसों की उन्नत किस्मों की लम्बी रेंज उपलब्ध है। लेकिन इन दिनों आरजीएन 229, पूसा सरसों 29, पूसा सरसों 30, सरसों की पीबीआर 357, कोरल पीएसी 437, पीडीजेड 1, एलईएस 54, जीएससी-7 (गोभी सरसों) किस्में को किसान बेहद पसंद कर रहे हैं। इसलिए सरसों के इन किस्मों के बीजों की बाजार में अच्छी खासी मांग है।

सरसों की फसल में सिंचाई किस प्रकार से करें

सरसों वैसे तो विपरीत परिस्तिथियों में उगने वाली फसल है। फिर भी यदि सिंचाई का साधन उपलब्ध है तो इस फसल के लिए 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं। इस फसल में पहली बार सिंचाई बुवाई के 35 दिनों बाद की जाती है, इसके बाद यदि जरुरत महसूस हो तो दूसरी सिंचाई पेड़ में दाना लगने के दौरान की जा सकती है। किसानों को इस बात के विशेष ध्यान रखना होगा कि जिस समय सरसों के पेड़ में फूल लगने लगें, उस समय सिंचाई न करें। यह बेहद नुकसानदायक साबित हो सकता है और इसके कारण बाद में किसानों को उम्दा क्वालिटी की सरसों प्राप्त नहीं होगी।

ध्यान देने वाली अन्य चीजें

सरसों की खेती में खरपतवार की समस्या एक बड़ी समस्या है। इससे निपटने के लिए किसानों को खेत की निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। साथ ही यदि खेत में खरपतवार जरुरत से ज्यादा बढ़ गया है, तो किसानों को परपैंडीमेथालीन (30 EC) की एक लीटर मात्रा 400 लीटर पानी में घोलकर खेत में स्प्रे के माध्यम से छिड़कना चाहिए। ऐसा करने से किसानों को खरपतवार से निजात मिलेगी। अगर किसान चाहें तो खेत की जुताई करते समय मिट्टी में खरपतवारनाशी मिला सकते हैं ताकि बाद में परपैंडीमेथालीन के छिड़काव की जरुरत ही न पड़े। सरसों की फसल में माहूं या चेंपा कीट के आक्रमण की संभावना बनी रहती है। ये कीट फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं, इनकी रोकथाम के लिए किसान बाजार में उपलब्ध बढ़िया कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं। यदि किसान सरसों की खेती के साथ मधुमक्खी का पालन करते हैं तो उन्हें रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से बचना चाहिए। रासायनिक कीटनाशकों की जगह पर वो नीम के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं, इसके लिए 5 मिली लीटर नीम के तेल को 1 लीटर पानी के साथ मिश्रित करें और उसका खेत में छिड़काव करें।
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सरसों की फसल में अच्छी पैदावार के लिए खेत की मेढ़ों पर मधुमक्खी पालन के डिब्बे जरूर रखें। मधुमक्खियां फसल की मित्र कीट होती है, जो पॉलीनेशन में मदद करती हैं, इससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी संभव है। इसके साथ ही किसानों को मधुमक्खी पालन से अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। सरसों की खेती में कुछ और चीजें ध्यान देने की जरुरत होती है, जैसे- जब सरसों के पेड़ में फलियां लगने लगें तब पेड़ के तने के निचले भाग की पत्तियों को हटा दें, इससे फसल की देखभाल आसानी से हो सकेगी और पूरा का पूरा पोषण पेड़ के ऊपरी भाग को मिलेगा। इसके साथ ही यदि ठंड के कारण फसल में पाला लगने की आशंका हो, तो 250 ग्राम थायोयूरिया को 200 लीटर पानी में घोलकर फसल के ऊपर छिड़काव कर दें। यह वैज्ञानिक उपाय करने के बाद फसल में पाला लगने की संभावना खत्म हो जाएगी।
खुशखबरी: इस राज्य में बढ़ा इतने हेक्टेयर सरसों की फसल का रकबा

खुशखबरी: इस राज्य में बढ़ा इतने हेक्टेयर सरसों की फसल का रकबा

हरियाणा राज्य के जनपद अंबाला में सरसों की खेती के क्षेत्रफल में २७७० हेक्टेयर तक बढ़ोत्तरी हुई है। सरसों का विकास देख राज्य सरकार के अधिकारी प्रसन्न हैं, किसानों को भी अच्छी खासी आय की संभावना है। फिलहाल, खरीफ सीजन की तैयार फसलें कटाई होने के उपरांत बिक्रय की जाने लगी हैं। साथ ही, किसानों द्वारा उनके खेतों में रबी फसलों की बुवाई होना आरंभ हो गयी है। प्राकृतिक आपदा जैसे सूखा, बाढ़ व बारिश से किसानों की बीते खरीफ सीजन की फसलों को बेहद हानि हुई ही। किसान अब तक उस नुकसान की भरपाई भी नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए उचित समय से ही रबी फसलों की बुवाई आरंभ कर दी है। किसान बेहतर उत्पादन देने वाली फसलों के चयन पर काफी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, और अधिक आय अर्जन में सहायक फसलों की बुवाई अधिकाँश कर रहे हैं। हरियाणा में तिलहनी फसलों के क्षेत्रफल में वृद्धि का भी यही कारण है।

हरियाणा में सरसों की बुवाई का कितना रकबा बढ़ा है

हरियाणा राज्य के अंबाला जनपद से ही तिलहनी फसलों के उत्पादन से संबंधित अच्छी खबर सामने आयी है। मीडिया के मुताबिक, इस जिले में तिलहनी फसलों की तीव्रता से बढ़ोत्तरी हुई है। इस वर्ष केवल सरसों की खेती का क्षेत्रफल ५१६० हेक्टेयर पर पहुँच गया है, जबकि वर्ष २०२०-२१ के रबी सीजन में यह २३९० हेक्टेयर था। इसी प्रकार बीते साल की अपेक्षा में २७७० हेक्टेयर रकबा बढ़ गया है, विषेशज्ञों के अनुसार तो किसानों को पहले सरसों की फसलों में हानि हुई थी। लेकिन अब अनुमानुसार, सरसों की बुवाई में बढ़ोत्तरी की वजह से किसानों को बेहद लाभ अर्जित हो सकता है।

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नवंबर में कितना रकबा बढ़ा

अंबाला जनपद में नवंबर के बीच तक लगभग ४४०० हेक्टेयर में सरसों व तकरीबन ३५०० हेक्टेयर में तोरिया की बुवाई संपन्न हो चुकी है। बुवाई की बात करें तो विगत दिनों में तीव्रता से वृद्धि हुई है। किसानों के अनुसार विगत वर्ष इसी सीजन में सरसों के उत्पादन में घटोत्तरी हुई थी। किसान स्वयं के द्वारा किये गए खर्च को प्राप्त करने में असमर्थ रहे थे, इसी वजह से किसानों को इस बार ज्यादा आशा है।

आखिर क्यों बढ़ रहा है सरसों के उत्पादन का रकबा

किसान सरसों का उत्पादन कर मोटी कमाई कर रहे हैं, हरियाणा के किसानों के अनुसार काली व पीली सरसों का बेहतर भाव प्राप्त हो रहा है। विगत ऋतु में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा पर तिलहनी फसलें विक्रय की गई थीं। इस वर्ष रकबे में वृध्दि हुई है, संभावना है, कि किसानों को इस वर्ष बोई जा रही फसल से अच्छा उत्पादन मिल सकता है। किसानों की आमंदनी बढने की वजह से आगामी वर्षो में धीरे-धीरे इसके क्षेत्रफल में वृद्धि होगी, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के अधिकारियों के अनुसार गेहूं के तुलनात्मक सरसों में व्यय काफी कम होता है। इसी वजह से किसान सरसों की अत्यधिक बुवाई करते हैं, वहीं कटाई के उपरांत और भी फसलें सुगमता से बो सकते हैं। सरसों के रकबे का बढ़ना हरियाणा राज्य के लिए अच्छी खबर है।
किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं

किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नवगोल्ड किस्म के सरसों का उत्पादन आम सरसों के मुकाबले अच्छी होती है। जानें इसकी खेती के तरीके के बारे में। हमारे भारत देश में सरसों की खेती रबी के सीजन में की जाती है। इसकी खेती के लिए खेतों की बेहतरीन जुताई सहित सिंचाई की उत्तम व्यवस्था भी होनी चाहिए। बाजार में आजकल कई तरह की सरसों की किस्में पाई जाती हैं। ऐसी स्थिति में नवगोल्ड भी सरसों की एक विशेष किस्म की फसल हैं, जिसकी खेती कर आप कम परिश्रम में अधिक पैदावार कर सकते हैं।

नवगोल्ड किस्म के सरसों के उत्पादन हेतु तापमान

नवगोल्ड किस्म के सरसों की पैदावार 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान में की जाती है। इसकी खेती समस्त प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। परंतु, बलुई मृदा में इसकी बेहतरीन पैदावार होती है। इसके बीज की बुआई बीजोपचार करने के बाद ही करें, जिससे पैदावार काफी बेहतरीन होती है।

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नवगोल्ड किस्म के सरसों के उत्पादन हेतु सर्वप्रथम खेत को रोटावेटर के माध्यम से जोत लें। साथ ही, पाटा लगाकर खेत को एकसार करलें। साथ ही, इस बात का खास ख्याल रखें कि एकसार भूमि पर ही सरसों के पौधों का अच्छी तरह विकास हो पाता है।

नवगोल्ड किस्म की फसल में सिंचाई

नवगोल्ड किस्म के बीजों का निर्माण नवीन वैज्ञानिक विधि के माध्यम से किया जाता है। इस फसल को पूरी खेती की प्रक्रिया में बस एक बार ही सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फसल में सिंचाई फूल आने के दौरान ही कर देनी चाहिए।

नवगोल्ड किस्म की खेती के लिए खाद और उर्वरक

नवगोल्ड किस्म के बीजों के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल अच्छा माना जाता है। इसके उत्पादन के लिए गोबर के खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। मृदा में नाइट्रोजन, पोटाश की मात्रा एवं फास्फोरस को संतुलन में रखना चाहिए।

सरसों की खेती के लिए खरपतवार का नियंत्रण

सरसों की खेती के लिए इसके खेत को समयानुसार निराई एवं गुड़ाई की जरूरत पड़ती है। बुवाई के 15 से 20 दिन उपरांत खेत में खर पतवार आने शुरू हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आप खरपतवार नाशी पेंडामेथालिन 30 रसायन का छिड़काव मृदा में कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि इसमें लगने वाले प्रमुख रोग सफ़ेद किट्ट, चूणिल, तुलासिता, आल्टरनेरिया और पत्ती झुलसा जैसे रोग लगते हैं, तो आप फसलों पर मेन्कोजेब का छिड़काव कर सकते हैं। नवगोल्ड किस्म के सरसों में सामान्य किस्म के मुकाबले अधिक तेल का उत्पादन होता है। साथ ही, इसकी खेती के लिए भी अधिक सिंचाई एवं परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
सरसों की खेती से जुड़े सभी जरूरी कार्यों की जानकारी

सरसों की खेती से जुड़े सभी जरूरी कार्यों की जानकारी

सरसों एवं राई की फसल प्रमुख तिलहनी (मूंगफली, सरसों, सोयाबीन) फसलों के रूप में की जाती है। सरसों की फसल को कम खर्चा में ज्यादा मुनाफा देने के लिए जाना जाता है। सरसों की खेती विशेष रूप से राजस्थान के माधवपुर, भरतपुर सवई, कोटा, जयपुर, अलवर, करोली आदि जनपदों में की जाती है। सरसों का इस्तेमाल उसके दानो से तेल निकालकर किया जाता है। हमारे भारत में सरसों के तेल का उपयोग ज्यादा मात्रा में होता है। सरसों के बीजों से तेल के अतिरिक्त खली भी निकलती है। जिसको पशु आहार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। इसकी खली में तकरीबन 2.5 प्रतिशत फास्फोरस, 1.5 प्रतिशत पोटाश और 4 से 9 प्रतिशत नत्रजन की मात्रा मौजूद रहती है। इस वजह से इसे बाहरी देशो में खाद के तौर पर भी उपयोग करते है। परंतु, भारत इसे केवल पशु आहार के रूप में इस्तेमाल में लाता है। सरसों के दानो में महज 30 से 48 प्रतिशत तक तेल विघमान रहता है। साथ ही, इसके सूखे तनो को ईंधन के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं। आज हम आपको इस लेख में सरसों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।

सरसों के प्रकार

भारत में प्रमुख तौर पर सरसों दो प्रकार की पायी जाती है, जो काली सरसों एवं पीली सरसों के नामों से जानी जाती है। किसान भाई जिसकी मिटटी और मौसम के अनुसार खेत में बुवाई करके अच्छी पैदावार उठा सके। यदि सही मायने में देखा जाए तो अधिकांश किसान काली एवं भूरी सरसो की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं, जिनकी विस्तृत जानकारी इस प्रकार है:- यह भी पढ़ें: किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं

काली सरसों

काली सरसों गोल आकार के कड़े एवं पीली सरसों की तुलना में बड़े बीज होते हैं। इस सरसों का रंग गहरा भूरा से लेकर काला होता है। इस सरसों का प्रयोग किसान भाई अधिकांश खेती की फसल विक्रय के लिए करते हैं। इसकी पैदावार भी अधिक होती है। इसका प्रयोग खाने के तेल में अधिक होता है, तथा पेरने के बाद इसमें खली ज्यादा निकलती और जो जानवरों को भी खिलाने फायदेमंद होती है, या किसान भाई सीधे मंडी में भी बेच सकते है।

पीली सरसों

पीली सरसों को राई भी कहा जाता है, जिसके दाने काले सरसों के दानों की अपेक्षा में आकार में छोटे होते हैं। साथ ही, स्वाद भी दोनों में थोड़ा अंतराल होता है। जहां, काले सरसों के दाने का तेल निकालकर खाने में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, राई के दाने अचार में डालने एवं तड़का लगाने के लिए करते हैं। यदि इसके गुणों के संबंध में बात की जाए तो दोनों में समान गुण और पोषक तत्व होते हैं।

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त मृदा जलवायु और तापमान

सरसों की फसल के लिए सर्दियो के मौसम को काफी अच्छा माना जाता है। इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए 18 से 24 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। सरसों के पौधों में फूल निकलने के वक्त वर्षा अथवा छायादार मौसम फसल के लिए हानिकारक होता है। सरसों की खेती को करने के लिए सर्वाधिक बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। क्षारीय और मृदा अम्लीय मिट्टी में इसकी फसल का उत्पादन नहीं किया जा सकता है। यह भी पढ़ें: सरसों की खेती से होगी धन की बरसात, यहां जानिये वैज्ञानिक उपाय जिससे हो सकती है बंपर पैदावार

पूसा बोल्ड

इस किस्म के पौधे 125 से 140 दिन के समयांतराल में उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके पौधों की फलिया मोटी होती हैं। इसके दानो से 37-38 प्रतिशत तक ही तेल अर्जित किया जा सकता है। यह प्रति हेक्टेयर के मुताबिक 20 से 25 क्विंटल का उत्पादन देता है।

वसुंधरा (R.H. 9304)

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 180-190 CM होती है। इसमें निकलने वाली फली सफेद रोली तथा चटखने प्रतिरोधी है। इसके पौधे पककर 130-135 दिन में उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते है। साथ ही, यह किस्म प्रति हेक्टेयर के अनुसार 25 से 27 क्विंटल की पैदावार देती है।

अरावली (आर.ऍन. 393)

सरसों की इस किस्म में फसल को पककर तैयार होने में 135 से 140 दिन का वक्त लगता है। इसके पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं तथा इसके बीजों से 43 प्रतिशत तक का तेल प्राप्त हो जाता है। यह सफेद रोली प्रतिरोधी पौधा होता है, जिसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर के अनुसार 22 से 25 क्विंटल होती है। यह भी पढ़ें: सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय इसके अलावा भी सरसों की विभिन्न किस्मों को उगाया जाता है। जैसे कि जगन्नाथ (बी.एस.5), बायो 902 (पूसा जय किसान), टी 59 (वरुणा), आर.एच. 30, आषीर्वाद (आर.के. 3-5), स्वर्ण ज्योति (आर.एच. 9802), लक्ष्मी (आर.एच. 8812) आदि।

सरसों उत्पादन के लिए खेत की तैयारी

सरसों के बीजों को खेत में लगाने से पूर्व उसके खेत को बेहतर ढ़ंग से तैयार कर लेना चाहिए, जिससे सरसों की बेहतरीन पैदावार अर्जित की जा सके। सरसों की खेती के लिए भुरभुरी मृदा की जरूरत पड़ती है। चूँकि सरसों की फसल खरीफ की फसल के पश्चात की जाती है, इस वजह से खेत की बेहतर ढ़ंग से गहरी जुताई करनी चाहिए। ऐसा करने से खेत में पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट किए जाऐं। इसके उपरांत खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें, जिससे खेत की मृदा में बेहतर ढ़ंग से धूप लग जाये। इसके उपरांत रोटावेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दें। जुताई के उपरांत पाटा लगाकर चलवा दें, जिससे खेत बिल्कुल एकसार हो जायेगा। साथ ही, जल-भराव जैसी परेशानी भी नहीं होगी।

सरसों की बुवाई का उपयुक्त समय व तरीका

सरसों की बुवाई सितम्बर से लेकर अक्टूबर के बीच कर देनी चाहिए। अक्टूबर के अंत तक भी इसकी बुवाई को किया जा सकता है। परंतु, सिर्फ सिंचित क्षेत्रों में। इसकी बुवाई के लिए 25 से 27 डिग्री तापमान को काफी अच्छा माना जाता है। सरसों की बुवाई कतारों में की जाती है। इसके लिए खेत में 30 CM का फासला रखते हुए कतारों को तैयार कर लेना चाहिए। इसके उपरांत 10 CM का फासला रखते हुए सरसों के बीजों को लगाना चाहिए। बीजों की बुवाई से पूर्व उन्हें मैन्कोजेब की उपयुक्त मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके पश्चात भूमि की नमी के मुताबिक बीजों को गहराई में लगा देना चाहिए। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 3 से 5 किलो बीजो की जरूरत पड़ती है। यह भी पढ़ें: खुशखबरी: इस राज्य में बढ़ा इतने हेक्टेयर सरसों की फसल का रकबा किसी भी फसल की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए खेत को पर्याप्त मात्रा में खाद एवं उर्वरक देने की जरूरत होती है। इसके लिए खेत की जुताई के दौरान 8 से 10 टन पुरानी गोबर के खाद को प्रति हेक्टेयर के मुताबिक ड़ाल देना चाहिए। इसके पश्चात खेत में ट्रैक्टर चलवा कर गोबर को बेहतर ढ़ंग से मिला दें। रासायनिक खाद के तौर पर प्रति हेक्टेयर के मुताबिक 30 से 40 किलोग्राम फास्फोरस, 375 किलोग्राम जिप्सम, 80 KG नत्रजन और 60 KG गंधक की मात्रा को खेत में डालें। फास्फोरस की संपूर्ण व नत्रजन की आधी मात्रा को जुताई के दौरान और आधी मात्रा को शुरुआती सिंचाई के वक्त दें।

सरसों के पौधों की सिंचाई कब और किस तरह करें

चूंकि, सरसों के बीजों की रोपाई सर्दियों के मौसम में होती है। इस वजह से इन्हें ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। परंतु, समुचित वक्त पर सिंचाई कर बेहतर उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। इसकी प्रथम सिंचाई बीजों की रोपाई के शीघ्र बाद कर देनी चाहिए। इसके उपरांत दूसरी सिंचाई को 60 से 70 दिन के समयांतराल में कर देना चाहिए। यदि खेत में सिंचाई की जरूरत होती है, तो उसमें पानी लगा देना चाहिए।

सरसों के खेत में खरपतवार पर कैसे नियंत्रण करें

सरसों के पौधे अच्छे से विकास करें इसके लिए खरपतवार पर नियंत्रण करना अनिवार्य होता है। इसके लिए प्राकृतिक ढ़ंग से निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देना चाहिए। इसकी पहली गुड़ाई 25 से 30 दिन के समयांतराल में कर देनी चाहिए। इसके उपरांत वक्त-वक्त पर जब खेत में खरपतवार नजर आए तो उसकी गुड़ाई कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त फ्लूम्लोरेलिन की पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के साथ छिड़काव कर रासायनिक ढ़ंग से खरपतवार पर काबू किया जा सकता है। यह भी पढ़ें: सरसों की खेती (Mustard Cultivation): कम लागत में अच्छी आय

सरसों की कटाई, उत्पादन एवं फायदा

सरसों की फसल लगभग 125 से 150 दिन के समयांतराल में पूर्ण रूप से पककर तैयार हो जाती है, जिसके पश्चात इसकी कटाई की जा सकती है। अगर समुचित समय पर इसके पौधों की कटाई नहीं की जाती है, तो इसकी फलियाँ चटखने लगती है, जिससे पैदावार 7 से 10 प्रतिशत की कमी हो सकती है। जब सरसों के पौधों में फलियाँ पीले रंग की नजर आने लगे तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। सरसों के पौधे प्रति हेक्टेयर के अनुसार 25 से 30 क्विंटल का उत्पादन देते हैं। सरसों का बाजार भाव काफी अच्छा होता है, जिससे किसान भाई सरसों की फसल कर बेहतर आय कर सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की सरसों की तीन नई उन्नत किस्में, जानें इनकी खासियत

कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की सरसों की तीन नई उन्नत किस्में, जानें इनकी खासियत

सीएसएसआरआई (CSSRI) के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सोडिक मतलब कि क्षारीय भूमि इलाकों के लिए सरसों की तीन उन्नत किस्में सीएस-61, सीएस-62 और सीएस-64 विकसित की गई हैं। बतादें, कि विकसित की गई सरसों की ये तीनों किस्में कृषकों को वर्ष 2024 तक मिलेगी। भारत के किसानों को ज्यादा लाभ हांसिल कराने के लिए केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI) ने सरसों की 3 नवीन उन्नत किस्मों को तैयार किया है। सरसों की इन तीनों बेहतरीन किस्मों से किसानों को ज्यादा उत्पादन मिलेगा। साथ ही, सरसों की इन तीनों किस्मों की खेती सोडिक अर्थात क्षारीय भूमि में भी सहजता से की जा सकेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित की गई सरसों की तीनों प्रजातियां किसानों के हाथों में साल 2024 तक उपलब्ध हो पाऐंगी। दरअसल, हम बात कर रहे हैं, सीएस-61, सीएस-62 और सीएस-64 किस्मों के बारे में।

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किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं ज्ञात हो कि इन किस्मों से पूर्व भी कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सरसों की कुछ लवण सहनशील किस्में सीएस-56, सीएस-58 और सीएस-60 किस्में तैयार की जा चुकी हैं, जो वर्तमान में किसानों को उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसके साथ ही, सरसों के यह बीज कृषि विभागों व बीज संस्थानों के द्वारा बांटे जा रहे हैं।

सरसों की नवीन उन्नत किस्मों की खेती

केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान में विकसित की गईं सरसों की बेहतरीन किस्में सीएस-61, सीएस-62 और सीएस-64 वैसे तो प्रत्येक इलाके में अच्छी पैदावार देंगी। परंतु, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और जम्मू, कश्मीर के क्षेत्रों में ज्यादा उपज प्रदान करेंगी। बतादें, कि इन तीनों किस्मों से किसान के खेतों में सरसों की फसल बेहतरीन ढ़ंग से लहलहाएगी। इसके अतिरिक्त बाजार में भी इसकी अच्छी-खासी कीमत मिल सकेगी।

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सरसों की इन विकसित की गई उन्नत किस्मों की खूबियां

सरसों की इन तीनों उन्नत किस्मों की खेती ऐसे इलाकों के लिए वरदान का काम करेगी, जहां की मिट्टी में सरसों की खेती नहीं हो पाती है। सरसों की सीएस-61, सीएस-62 एवं सीएस-64 किस्म को ऐसे ही क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है, जिन इलाकों में आज भी सरसों की पैदावार नहीं होती है। वहां के किसान भाई भी इन किस्मों की सहायता से सरसों की फसल का फायदा उठा सकें। साथ ही, सरसों की यह तीनों नवीन किस्में प्रति हेक्टेयर तकरीबन 27 से 29 क्विंटल तक उत्पादन देंगी। वहीं, सोडिक मतलब की क्षारीय जमीन में यह किस्म प्रति हेक्टेयर 21 से 23 क्विंटल पैदावार प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त सरसों की इन किस्मों में तेल की मात्रा लगभग 41 फीसद तक रहेगी।

भारत के किन क्षेत्रों में सरसों की खेती नहीं होती है

भारत के बहुत से राज्यों में सरसों की खेती नहीं हो पाती है। जैसे कि हरियाणा एवं पंजाब के कुछ इलाकों में सरसों का उत्पादन नहीं होता है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, कौशांबी, लखनऊ, कानपुर, इटावा और हरदोई इत्यादि बहुत सारे क्षेत्रों में सरसों की खेती नहीं की जाती है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई सरसों की इन तीनों किस्मों से अब इन क्षेत्रों में भी सरसों की फसल लहराएगी।