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हल्दी की खेती

दोगुना मुनाफा देने वाली हल्दी की खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी

दोगुना मुनाफा देने वाली हल्दी की खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों आज के इस लेख में हम आपको ऐसे फसल के बारे में बताएंगे, जिसकी मांग खेती के साथ-साथ व्यवसाय में भी बहुत होती है। उस फसल का नाम है हल्दी। जी हाँ, हल्दी की मांग भोजन के साथ साथ व्यवसायिक क्षेत्र में इसके अंदर विघमान औषधीय गुणों की वजह से बनी रहती है। 

इसलिए किसान भाइयों के लिए हल्दी की खेती करना एक बड़े मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है। यदि हल्दी की खेती के साथ-साथ आप हल्दी का कारोबार भी करते हैं, तो आपको और अधिक लाभ प्राप्त होगा। 

हल्दी के अंदर बहुत सारे औषधीय गुण विघमान होते हैं। अब ऐसे में यदि आप हल्दी की खेती करेंगे तो आपको तगड़ा मुनाफा हांसिल होगा। 

हल्दी की खेती कब और कैसे करें ? 

हल्दी की बुवाई मई-जून के दौरान की जाती है। हल्दी की खेती करने के लिए सर्वप्रथम खेत की 2-3 बार बेहतर ढ़ंग से जोत देना चाहिए। इससे मृदा भुरभुरी हो जाएगी। मिट्टी जितनी भुरभुरी होगी, उसमें हल्दी उतनी ही अच्छे ढ़ंग से बैठेगी।

खेत में जल निकासी की बेहतरीन सुविधा होनी जरूरी है, जिससे कि पानी ना रुके वरना हल्दी की फसल बर्बाद हो सकती है। हल्दी की खेती उसके छोटे-छोटे अंकुरित बीजों द्वारा की जाती है। 

हल्दी की खेती कतारबद्ध तरीके से की जाती है और थोड़ी बड़ी होने पर उस पर दोनों तरफ से थोड़ी-थोड़ी मिट्टी चढ़ा दी जाती है। 

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क्योंकि, इसकी वजह से हल्दी को फैलने और अच्छे से बैठने के लिए पर्याप्त मात्रा में मिट्टी और स्थान मिल जाता है। इसकी फसल लगभग 8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। 

हल्दी की फसल की सबसे खास बात यह है, कि यह छायादार स्थान में भी शानदार उपज देती है। ऐसे में यदि आप बागवानी करते हैं, तो पेड़ों के मध्य की भूमि में आप हल्दी लगा सकते हैं और अतिरिक्त आय भी कर सकते हैं। 

हल्दी की खेती से कितनी उपज प्राप्त होगी ? 

हल्दी की खेती का उत्पादन काफी सीमा तक इस बात पर भी आश्रित होता है, कि आप किस गुणवत्ता का बीज लगाते हैं। हल्दी के बीज लेते समय ख्याल रखें, कि उन्हें शानदार ढ़ंग से उपचारित किया गया हो और उनमें बेहतर तरीके से अंकुर आ गया हो। 

बीज जितने मजबूत होंगे, आपकी फसल उतनी ही अच्छी होगी। इसके बीज आप अपने समीपवर्ती किसी बीज भंडार से ले सकते हैं अथवा फिर किसी ऐसे किसान से बीज प्राप्त कर सकते हैं, जिसने पहले हल्दी की खेती की हो। 

ये भी जानकारी कर लें कि आस-पास कोई सरकारी संस्था भी हल्दी के बीज उपलब्ध कराती है या नहीं। सरकारी संस्था से आपको बेहतरीन बीज भी काफी सस्ते भाव में मिल जाएंगे। एक हेक्टेयर में हल्दी की खेती के लिए आपको लगभग 20 क्विंटल तक बीज की आवश्यकता पड़ेगी। 

हल्दी की खेती में आने वाला खर्चा और लाभ  

हल्दी की खेती में लगभग 40-50 हजार रुपये का तो बीज ही लग जाएगा। वहीं, इसकी बुवाई से लेकर सिंचाई, उर्वरक और फिर कटाई तक में भी आपका लगभग 50 हजार रुपये की लागत आ जाएगी। 

मतलब कि 1 हेक्टेयर (करीब 2.5 एकड़) में हल्दी की खेती में आपकी करीब 1 लाख रुपये की लागत आ जाएगी। यदि आपकी फसल सही रहती है, तो आप एक हेक्टेयर से 200 क्विंटल तक हल्दी की उपज आसानी से हासिल कर सकते हैं। यह आराम से 160-180 क्विंटल तक मिल ही जाती है। 

यदि मान लें कि आपकी फसल औसत रहती है और आपको केवल 160 क्विंटल ही हल्दी हांसिल होती है तो भी आपको लाभ ही होगा। कच्ची हल्दी बाजार में बेचने से फायदा नहीं होता है, ऐसे में उसे उबालकर सुखाया जाता है और फिर पीसकर बेचा जाता है। 

सूखने के बाद हल्दी एक चौथाई रह जाती है। अर्थात आपकी हल्दी 40 क्विंटल के करीब रह जाएगी। अगर आप इसे बिना पीसे भी बेचना चाहते हैं तो भी आसानी से आपको 70-80 रुपये प्रति किलो का भाव मिल जाएगा। 

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यानी आपकी हल्दी 2.80-3.20 लाख रुपये तक की बिकेगी। इस तरह आपको हल्दी की खेती से केवल 8 माह में ही दोगुने से तीन गुने तक का मुनाफा मिलेगा। 

किसान इस तरह हल्दी की खेती से कमा सकते हैं अधिक मुनाफा   

यदि आप किसी फार्मा या कॉस्मेटिक कंपनी से पहले से ही कॉन्ट्रैक्ट कर लें, तो आपको काफी तगड़ा मुनाफा मिलेगा। ऐसा इस वजह से क्योंकि इस प्रकार खेती के माध्यम से आप पहले ही निश्चित कर पाएंगे कि किस किस्म की हल्दी उगानी है और कितनी मात्रा में उगानी है। 

यानी हल्दी उगाने के बाद आपको उसकी बिक्री की भी कोई चिंता नहीं रहेगी। इस तरह खेती में आप शानदार कीमत पहले ही निर्धारित कर सकते हैं और हल्दी को प्रोसेस कर के पीसकर या बिना पीसे सीधे कंपनी को भेज सकते हैं। इससे कंपनियों को बेहतरीन हल्दी मिलेगी और आपको शानदार कीमत हांसिल होगी।

बिहार के आशीष कुमार अपने गांव में काली हल्दी की खेती कर मध्य प्रदेश तक सप्लाई कर रहे हैं।

बिहार के आशीष कुमार अपने गांव में काली हल्दी की खेती कर मध्य प्रदेश तक सप्लाई कर रहे हैं।

किसान आशीष कुमार का कहना है, कि उन्होंने एक लेख में पढ़ा था कि बिहार में काली हल्दी विलुप्त हो चुकी है। अब कोई काली हल्दी की खेती नहीं करता है। ऐसे में मैंने काली हल्दी की खेती करना चालू किया। जैसा कि हम जानते हैं, कि हल्दी एक औषधीय मसाला होता है। इसका इस्तेमाल खाना निर्मित करने के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधियाँ तैयार करने के लिए किया जाता है। हल्दी के बिना हम स्वादिष्ट दाल एवं सब्जी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अधिकांश लोगों का मानना है, कि हल्दी का रंग केवल पीला ही हो होता है। परंतु, इस प्रकार की कोई बात नहीं है, आज भी भारत में किसान काली हल्दी का उत्पादन कर रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही किसान के विषय में बताएंगे, जिन्होंने काली हल्दी की खेती चालू कर लोगों के समक्ष मिसाल प्रस्तुत की है। वर्तमान में अन्य दूसरे किसान भी उनसे काली हल्दी की खेती करने का प्रशिक्षण ले रहे हैं।

आशीष अपने गांव में लगभग 3 वर्ष से काली हल्दी की खेती कर रहे हैं

एनबीटी की एक खबर के अनुसार, काली हल्दी की खेती करने वाले किसान का नाम आशीष कुमार सिंह है। आशीष कुमार बिहार राज्य के गया जनपद के अंतर्गत आने वाले टिकारी गांव के निवासी हैं। आशीष कुमार अपने निज गांव में 3 साल से काली हल्दी की खेती कर रहे हैं। आशीष कुमार सिंह का कहना है, कि उनको कृषि से जुड़े लेख एवं खबरें पढ़ने का अत्यधिक शौक है। एक दिन उन्होंने अखबार में काली हल्दी के विषय में एक लेख पढ़ा था। इसके पश्चात आशीष ने काली हल्दी की खेती करने की योजना बनाई है। मुख्य बात यह है, कि आशीष विलुप्त होने की स्थिति पर पहुंच चुकी विभिन्न फसलों की खेती कर रहे हैं। यह भी पढ़ें: जानिए नीली हल्दी की खेती से कितना मुनाफा कमाया जा सकता है

काली हल्दी से आयुर्वेदिक औषधियां निर्मित की जाती हैं

आशीष कुमार ने बताया कि उन्होंने लेख में पढ़ा था कि बिहार में काली हल्दी बिल्कुल खो चुकी है। अब इसकी खेती कोई नहीं करता है। ऐसे में मैंने इसकी खेती करना चालू कर दिया। उनके द्वारा उत्पादित हल्दी की सप्लाई सर्वाधिक मध्य प्रदेश में होती है। उनके अनुसार मध्य प्रदेश में बहुत सारे किसान उनसे जुड़े हुए हैं। आशीष काली हल्दी की मांग आते ही आपूर्ति कर देते हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय के लोग अपना कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से पूर्व काली हल्दी का इस्तेमाल करते हैं। इसके अतिरिक्त इससे विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियाँ भी तैयार की जाती हैं।

काली हल्दी की बुवाई हेतु कितना बीज उपयोग होता है

आशीष डेढ़ कट्ठे भूमि में काली हल्दी का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको लगभग डेढ़ क्विंटल काली हल्दी की पैदावार मिलती है। बतादें, कि डेढ़ कट्ठे भूमि में काली हल्दी की बुवाई करने हेतु 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है। उनका कहना है, कि काली हल्दी की खेती आप गमले में भी चालू कर सकते हैं। काली हल्दी की खेती में जल की काफी कम आवश्यकता है। अशीष कुमार सिंह से प्रेरणा लेकर दर्जनों की संख्या में किसानों ने काली हल्दी की खेती शुरू कर दी है। वह काली हल्दी के बीज 300 रुपये किलो के हिसाब से बेचते हैं। काली हल्दी में कुरकुमीन पीली हल्दी की तुलना में ज्यादा पाई जाती है। कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल का कहना है, कि काली हल्दी का ओषधि के तौर पर सेवन करने से विभिन्न प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। वर्तमान में बाजार के अंदर एक किलो काली हल्दी की कीमत 1000 से 5000 रुपये के मध्य है।
पीली हल्दी की जगह काली हल्दी की खेती कर किसान कम लागत में अधिक आय कर रहा है

पीली हल्दी की जगह काली हल्दी की खेती कर किसान कम लागत में अधिक आय कर रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काली हल्दी की खेती करने पर पानी की खपत कम होती है। यदि आप एक एकड़ में काली हल्दी की खेती करते हैं, तो आपको 50 से 60 क्विंटल तक पैदावार मिलेगा। 

साथ ही, एक एकड़ से 10 से 12 क्विंटल तक सूखी हल्दी का उत्पादन होगा। ऐसे में काली हल्दी की खेती करने पर काफी अच्छी खासी आमदनी होती है। लोगों का मानना है, कि हल्दी केवल पीले रंग की ही होती है। 

परंतु, इस तरह की कोई बात नहीं है। दरअसल, हल्दी काले रंग की भी होती है। विशेष बात यह है, कि काली हल्दी का भाव भी पीली हल्दी की तुलना में ज्यादा होता है। इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में किया जाता है। 

इसमें पीली हल्दी की तुलना में विटामिन्स और मिनिरल्स भी ज्यादा पाए जाते हैं। यही कारण है, कि अब बिहार में एक किसान ने इसकी खेती भी चालू कर दी है। इससे किसान की काफी मोटी आमदनी हो रही है।

काली हल्दी की खेती करने वाला किसान कमलेश

जानकारी के अनुसार, काली हल्दी की खेती करने वाले किसान का नाम कमलेश चौबे है। वे पूर्वी चम्पारण के नरकटियागंज प्रखंड स्थित मुशहरवा गांव के मूल निवासी हैं। 

उन्होंने अभी एक कट्ठे भूमि पर काली हल्दी की खेती चालू की है। उन्होंंने एक कट्ठे जमीन में 25 किलो काली हल्दी की बुवाई की थी, जिससे लगभग डेढ़ क्विंटल हल्दी का उत्पादन हुआ है। इससे उन्हें काफी अच्छी आमदनी हो रही है। 

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किसान हल्दी विक्रय से कितना कमा सकते हैं

विशेष बात यह है, कि कमलेश ने काली हल्दी का उत्पादन करने के लिए नागालैंड से इसके बीज इंपोर्ट किए थे। बतादें, कि एक किलो बीज 500 रुपये में आए थे। ऐसी स्थिति में 25 किलो बीज खरीदने के लिए उन्हें साढ़े 12 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ा। 

वर्तमान में बाजार के अंदर काली हल्दी की कीमत 500 से 5000 रुपये किलो के मध्य है। यदि कमलेश 1000 रुपये किलो भी काली हल्दी बेचते हैं, तो 150 किलो हल्दी विक्रय के उपरांत उन्हें डेढ़ लाख रुपये की आमदनी होगी।

काली हल्दी में कितने तत्व विघमान होते हैं

कृषि वैज्ञानिक अभिक पात्रा के अनुसार काली हल्दी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होती है। इससे बहुत सारी औषधीय दवाइयां निर्मित की जाती हैं। पीली हल्दी की अपेक्षा में इसकी कीमत बहुत गुना अधिक होती है। 

वर्तमान में उत्तराखंड के किसान भी इसकी बड़े पैमाने पर खेती कर रहे हैं। काली हल्दी में एंथोसायनिन ज्यादा मात्रा में विघमान होता है। इस वजह से यह गहरे बैंगनी रंग की दिखती है। 

साथ ही, काली हल्दी में एंटी अस्थमा, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीफंगल, एंटी- कॉन्वेलसेंट, एनाल्जेसिक, एंटीबैक्टीरियल और एंटी-अल्सर जैसे विशेष गुण मौजूद होते हैं।

गर्मियों में हल्दी की खेती कर किसान शानदार उत्पादन उठा सकते हैं

गर्मियों में हल्दी की खेती कर किसान शानदार उत्पादन उठा सकते हैं

रबी की फसलों की कटाई का समय आ गया है। अब कुछ दिनों के बाद हल्दी उत्पादक किसान हल्दी की खेती के लिए बुवाई शुरू करेंगे। संपूर्ण भारत के करीब हर घर में सामान्यतः हल्दी का उपयोग किया जाता है। यह एक काफी ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है। भारत के अंदर इसकी खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। 

बहुत सारे राज्यों में इसका उत्पादन किया जाता है। हल्दी की खेती करने के दौरान किसान भाइयों को कुछ विशेष बातों का खास ध्यान रखना होता है। ताकि उनको हल्दी उत्पादन से तगड़ा मुनाफा प्राप्त हो एवं उन्हें बेहतरीन उपज हांसिल हो सके।

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हल्दी की खेती के लिए रेतीली दोमट मृदा या मटियार दोमट मृदा काफी अच्छी होती है। हल्दी की बिजाई का समय भिन्न-भिन्न किस्मों के आधार पर 15 मई से लेकर 30 जून के मध्य होता है। 

वहीं, हल्दी की बुवाई के लिए कतार से कतार का फासला 30-40 सेमी और पौध से पौध की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए। हल्दी की बुवाई के लिए 6 क्विंटल प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।

हल्दी की फसल कितने समय में तैयार होती है ?

हल्दी की खेती के लिए खेत में जल निकासी की बेहतरीन व्यवस्था होनी चाहिए। हल्दी की फसल 8 से 10 माह के अंदर तैयार हो जाती है। सामन्यतः फसल की कटाई जनवरी से मार्च के दौरान की जाती है। फसल के परिपक्व होने पर पत्तियां सूख जाती हैं और हल्के भूरे से पीले रंग में बदल जाती हैं। 

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हल्दी की खेती काफी सुगमता से की जा सकती है और इसे छाया में भी आसानी से उगाया जा सकता है। किसानों को इसकी खेती करते समय नियमित तौर पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे खरपतवारों की वृद्धि रुकती है और फसल को पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। 

हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु  

दरअसल, हल्दी गर्म एवं उमस भरी जलवायु में बेहतरीन ढंग से उगती है। इसके लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। हल्दी के लिए अच्छी जल निकासी वाली, दोमट अथवा बलुई दोमट मृदा अच्छी होती है। 

मिट्टी का पीएच 6.5 से 8.5 के मध्य होना चाहिए। हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए खाद का उचित इस्तेमाल करना आवश्यक है। गोबर की खाद, नीम की खली और यूरिया का इस्तेमाल काफी लाभदायक होता है। कटाई की बात की जाए तो हल्दी की फसल 9-10 माह के अंदर पककर तैयार हो जाती है। कटाई होने के बाद इसे धूप में सुखाया जाता है। 

हल्दी को तैयार होने में कितना समय लगता है ? 

हल्दी की बुवाई जून-जुलाई महीने के दौरान की जाती है। बुवाई के लिए स्वस्थ और रोग मुक्त कंदों का चुनाव करना बेहद आवश्यक है। सिंचाई की बात की जाए तो इसे नियमित तौर पर सिंचाई की जरूरत होती है। 

किसान भाइयों को इसकी खेती करने के दौरान नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे खरपतवारों का खतरा समाप्त एवं फसल को पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। फसल कटाई की बात की जाए तो हल्दी की फसल 9-10 महीने के अंदर पककर तैयार हो जाती है।

हल्दी की बेहतरीन किस्में इस प्रकार हैं ?

समयावधि के आधार पर इसकी किस्मों को तीन भागों में विभाजित की गई हैं 

  1. शीघ्र काल में तैयार होने वाली ‘कस्तुरी’ वर्ग की किस्में - रसोई में उपयोगी, 7 महीने में फसल तैयार, शानदार उपज। जैसे-कस्तुरी पसुंतु।
  2. मध्यम समय में तैयार होने वाली केसरी वर्ग की किस्में - 8 महीने में तैयार, अच्छी उपज, अच्छे गुणों वाले कंद। जैसे-केसरी, अम्रुथापानी, कोठापेटा।
  3. दीर्घ काल में तैयार होने वाली किस्में - 9 महीने में तैयार, सबसे अधिक उपज, गुणों में सर्वेश्रेष्ठ। जैसे दुग्गीराला, तेकुरपेट, मिदकुर, अरमुर। व्यवसायिक स्तर पर दुग्गीराला व तेकुपेट की खेती इनकी उच्च गुणवत्ता की वजह से की जाती है। इसके अतिरिक्त सुगंधम, सुदर्शना, रशिम, मेघा हल्दी-1, मीठापुर और राजेन्द्र सोनिया हल्दी की अन्य किस्में है। 

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जैविक ढंग से खेती करना सर्वोत्तम विकल्प है 

विशेषज्ञों की मानें तो हल्दी की खेती के लिए जैविक विधि का इस्तेमाल करना बेहद आवश्यक है। इसकी फसल को मिश्रित खेती के रूप में भी उगाया जा सकता है। हल्दी की उन्नत किस्मों की खेती करके किसान भाई अधिक उपज हांसिल कर सकते हैं। 

Turmeric Farming: कैसे करें हल्दी की खेती, जाने कौन सी हैं उन्नत किस्में

Turmeric Farming: कैसे करें हल्दी की खेती, जाने कौन सी हैं उन्नत किस्में

हल्दी (Haldi (Turmeric)) का मसाला फसलों में विशेष स्थान है. अपने औषधिय गुणों के कारण इसकी अलग पहचान है. हल्दी से रोग प्रतिरोधक क्षमता और शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है. कोरोना काल में घरेलु इम्यूनिटी बूस्टर काढ़े के अलावा हल्दी को औषधी के रूप में काफी उपयोग किया गया था.

हल्दी की खेती

इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में, पेट दर्द व एंटीसेप्टिक व चर्म रोगों के उपचार में किया जाता है. यह रक्त शोधक होती है. चोट सूजन को ठीक करने का काम कच्ची हल्दी करती है. जीवाणु नाशक गुण होने के कारण इसके रस का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन में भी होता है. प्राकृतिक एवं खाद्य रंग बनाने में भी हल्दी का उपयोग होता है।

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हल्दी का धार्मिक महत्व भी है. हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य में हल्दी का प्रयोग किया जाता है. तांत्रिक पूजा में भी महत्व बताया गया है. इसी कारण से हल्दी की बाजार में बहुत मांग रहती है और अच्छे भाव मिलते हैं. खरीफ सीजन में अन्य फसलों के साथ हल्दी की खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. हल्दी को खेत की मेड़ों पर भी लगाया जा सकता है.

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हल्दी के प्रकार

हल्दी दो प्रकार की होती है, पीली हल्दी और काली हल्दी. पीली हल्दी का प्रयोग मसालों के रूप में सब्जी बनाने में किया जाता है, वहीं काली हल्दी का प्रयोग पूजन में किया जाता है.

हल्दी की उन्नत किस्में

आर एच 5

आर एच 5 किस्म के हल्दी के पौधे की ऊँचाई करीब ८० से १०० सेंटीमीटर होती है। इसके तैयार होने में करीब २१० से २२० दिन लगते है. इसकी पैदावार २०० से २२० क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है.

राजेंद्र सोनिया

इसके पौधे की ऊंचाई ६० से ८० सेंटीमीटर होती है. फसल तैयार होने में १९५ से २१० दिन लगता है. १६० से १८० क्विंटल तक प्रति एकड़ के हिसाब से उपज प्राप्त की जा सकती है।

पालम पीताम्बर

यह अधिक पैदावार देने वाली हल्दी की किस्मों में से एक है. गहरे पीले रंग के इसके कांड होते हैं. इस किस्म से १३२ क्विंटल/एकड़ तक उपज प्राप्त की जा सकती है.

सोनिया

इसके तैयार होने में २३० दिन का समय लगता है. इससे उपज ११० से ११५ क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है.

सुगंधम

सुगंधम किस्म २१० दिनों में तैयार हो जाती है और करीब ८० से ९० क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इसके कंद आकर में लंबे और हल्की लाली लिए हुए पीले रंग के होते हैं.

सोरमा

सोरमा किस्म की हल्दी के कंद अंदर से नारंगी रंग के होते हैं. यह २१० दिन में तैयार हो जाता है. इस किस्म से प्रति एकड़ करीब ८० से ९० क्विंटल तक उपज प्राप्त हो सकती है.

सुदर्शन

इसके कंद आकर में छोटे होते हैं. १९० दिनों बाद इसकी खुदाई की जा सकती है.

अन्य किस्में

हल्दी की कई ओर उन्नत किस्में भी होती हैं. जिनमें सगुना, रोमा, कोयंबटूर, कृष्णा, आर. एच 9/90, आर.एच- 13/90, पालम लालिमा, एन.डी.आर 18, बी.एस.आर 1, पंत पीतम्भ आदि किस्में शामिल हैं. ये भी देखें: घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां 

बुवाई का तरीका

१५ मई से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक हल्दी की बुआई की जा सकती है. सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने पर हल्दी की बुआई अप्रैल, मई माह में भी की जा सकती है.
  • करीबन २५०० किलोग्राम प्रकंदों की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर बुआई के लिए होती है.
  • बुआई से पहले हल्दी के कंदों को बोरे में लपेट कर रखने से अंकुरण आसानी से होता है.
  • बुआई के लिए मात्र कंद एवं बाजू कंद प्रकंद का उपयोग किया जा सकता है.
  • ध्यान रहे की प्रत्येक प्रकंद पर दो या तीन ऑंखें हों.
  • बुआई से पहले कंदों को ०.२५ प्रतिशत एगालाल घोल में ३० मिनट तक उपचार करना चाहिए.
  • हल्दी की बुआई समतल चार बाई तीन मीटर आकार की क्यारियों में मेड़ों पर करना चाहिए.
  • लाइन से लाइन की दूरी ४५ से.मी. व पौधों से पौधों की दूरी २५ से.मी. रखें.
  • रेतीली भूमि में इसकी बुआई ७ से १० से.मी. ऊंची मेड़ों पर करनी चाहिए.
किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

आज हम बात करने वाले हैं, अप्रैल माह में उगाई जाने वाली अच्छी फसलों के बारे में जिनसे किसानों को अच्छी आय हो सके। जैसा कि हम जानते हैं, कि अप्रैल माह तक तकरीबन समस्त रबी फसलें कट जाती हैं। 

किसान अपनी पैदावार को भी प्रबंधन करके मंडी पहुंचाने लग जाते हैं। अब जायद सीजन की फसलें बोई जानी हैं। ये फसलें मुनाफे के सहित मृदा की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ा देती हैं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें

रबी फसलों की कटाई और खरीफ सीजन से पूर्व कुछ महीनों के मध्य में खाली बच जाते हैं, जिसे जायद सीजन भी कहा जाता है। इसके दौरान बहुत सी तिलहनी एवं दलहनी फसलों की बुवाई की जाती है, जो धान मक्का की खेती से पूर्व ही तैयार हो जाती है। 

जायद सीजन के तहत खास बागवानी फसलों की भी बुवाई की जाती है। इसके अतिरिक्त अधिकाँश किसान मृदा की उर्वरक क्षमता को बढ़ाने हेतु जायद सीजन में लोबिया, मूंग और ढेंचा का उत्पादन भी किया जाता है। इससे मृदा में नाइट्रोजन का स्तर काफी बढ़ जाता है।

बुवाई से पहले बीजोपचार अत्यंत जरुरी है

रबी फसलों की कटाई के उपरांत सर्वप्रथम खेत में गहरी जुताई कर खेत को तैयार कर लें। जायद सीजन की फसलों की बुवाई करने से पूर्व मृदा की जांच जरूर करवा लें। 

क्योंकि मृदा परिक्षण से समुचित मात्रा में खाद-उर्वरक का इस्तेमाल करने की राहत मिल सकेगी। गैर जरुरी चीजों पर होने वाले खर्चों से छुटकारा मिल पाएगा। हर फसल सीजन के उपरांत मृदा परीक्षण करवाने से इसकी खामियों की भी जानकारी मिल जाती है। जिनका समयानुसार उपचार किया जा सकता है।

बेबी कॉर्न और साठा मक्का का उत्पादन

यह समय साठी मक्का और बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त है। इन दोनों फसलों को पककर तैयार होने में लगभग 60 से 70 दिन का समय लगता है। फिर कटाई के उपरांत सुगमता से धान की बिजाई का कार्य भी किया जा सकता है।

वर्तमान में बेबी कॉर्न भी काफी चलन में है। बतादें, कि इस मक्का को कच्चा ही बेचा जा सकता है। इतना ही नही भोजनालयों में भी बेबी कॉर्न के पकौड़े, सूप, सलाद, सब्जी, अचार आदि बेहद प्रसिद्ध हैं। 

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बागवानी फसलों की बुवाई

अप्रैल माह में किसान भाई बागवानी फसलों का उत्पादन करके अच्छी आय कर सकते हैं। अप्रैल माह करेला, तोरई, बैंगन, लौकी और भिंडी की खेती के लिए काफी अच्छा होता है। 

बेमौसम बारिश की मार से जायद सीजन की फसलों को संरक्षित करने के लिए किसान भाई ग्रीन हाउस, लो टनल और पॉलीहाउस की व्यवस्था कर लें। इन संरक्षित ढांचों को तैयार करने के लिए राज्य सरकारें किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवाती हैं।

उड़द की बुवाई

अप्रैल माह उड़द की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। दरअसल, जलभराव वाले क्षेत्रों में इसका उत्पादन करने से बचना चाहिए। उड़द का उत्पादन करने के लिए प्रति एकड़ 6-8 किलो बीजदर का उपयोग करें। 

साथ ही, किसान अपने खेत में उड़द की बुवाई करने से पूर्व थीरम अथवा ट्राइकोडर्मा से उपचारित जरूर कर लें।

अरहर की बुवाई

किसान दलहन उत्पादन के संबंध में आत्मनिर्भर होने के तरफ अग्रसर होने के लिए अरहर की फसल उगा सकते हैं। जल निकासी वाली मृदा में कतारों में अरहर का बीजारोपण किया जाता है। 

यह फसल 60 से 90 दिनों के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। अगर आप चाहें, तो अरहर की कम समयावधि वाली किस्मों का बीजारोपण कर जल्दी उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।

सोयाबीन की बुवाई

अप्रैल माह में बोई जाने वाली सोयाबीन की फसल में संक्रमण और बीमारियों की आशंका काफी कम ही रहती है। यह फसल वातावरण में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य करती है। 

जलभराव वाले स्थानों में सोयाबीन की बुवाई करना ठीक नहीं होता है। सोयाबीन की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए बुवाई से पूर्व खेत की 3 गहरी जुताईयां करना काफी अच्छा माना जाता है। 

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मूँगफली की बुवाई

अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह तक मतलब कि गेहूं की कटाई के शीघ्र उपरांत मूंगफली की फसल का बीजारोपण किया जा सकता है। यह फसल अगस्त-सितंबर तक पककर तैयार हो सकती है। 

परंतु, जलनिकासी वाले क्षेत्रों में ही मूंगफली की बुवाई करना उचित रहता है। किसान मूँगफली का बेहतर उत्पादन लेने हेतु हल्की दोमट मिट्टी में बीजोपचार के उपरांत ही मूंगफली के दानों की खेत में बिजाई कर दें।

ढेंचा की बुवाई

खरीफ सीजन की धान-मक्का की बुवाई से पूर्व किसान बाई ढेंचा मतलब कि हरी खाद की फसल उठा सकते हैं। इससे खाद-उर्वरकों पर खर्च किए जाने वाली धनराशि को सुगमता से बचाया जा सकता है। 

ढेंचा की फसल 45 दिन के समयांतराल में लगभग 5 से 6 सिंचाईयों में पककर तैयार हो जाती है। अब इसके उपरांत धान का उत्पादन करने पर फसलीय गुणवत्ता एवं पैदावार बेहतरीन मिलती है। 

गेहूं की कटाई करने के उपरांत कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी एवं अपने स्थान-जलवायु के मुताबिक गन्ना एवं कपास की बिजाई भी कर सकते हैं। 

साथ ही, फसलीय कीट एवं रोगिक संक्रमण की आशंकाओं को समाप्त करने हेतु पूर्व से ही बीजोपचार पर कार्य जरूर कर लें।

Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

हल्दी का बड़े स्तर पर उपयोग होने से इसकी बाजार में लगातार मांग बनी रहती है। इसी वजह से हल्दी की खेती करना किसान भाइयों के लिए मुनाफा का सौदा है। 

हल्दी की खेती से लगभग 100 से 150 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन लेकर इससे अच्छी आमदनी की जा सकती है। भारत में हल्दी की खेती केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और कर्नाटक आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर की जा रही है। यदि आप भी हल्दी की खेती करना चाहते हैं, तो आप इस लेख के माध्यम से इसकी जानकारी अर्जित कर सकते हैं।

हल्दी की प्रमुख प्रजातियां कौन-कौन सी हैं

भारत में हल्दी की तकरीबन 30 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें सुकर्ण, कस्तूरी, सुवर्णा, सुरोमा और सुगना, पन्त पीतम्भ, लकाडोंग, अल्लेप्पी, मद्रास, इरोड, सांगली, सोनिया, गौतम, रश्मि, सुरोमा, रोमा, कृष्णा, गुन्टूर, मेघा आदि प्रमुख प्रजातियां हैं।

हल्दी की खेती हेतु कैसी जलवायु अनुकूल होती है

हल्दी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है। इसकी खेती करने के लिए 20 से.ग्रे. से कम तापमान बेहतर माना जाता है। बेहतर बारिश वाले गर्म एवं आर्द्र इलाके को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। 

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हल्दी की खेती हेतु उपयुक्त मृदा

हल्दी की खेती को समस्त प्रकार की मिट्टी में आसानी से किया जा सकता है। लेकिन, उर्वराशक्ति से परिपूर्ण दोमट, जलोढ़ एवं लैटेराइट मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए मृदा का पी.एच. मान 5 से 7.5 के मध्य होना ही चाहिए।

हल्दी की खेती हेतु खेत को किस तरह तैयार करें

हल्दी की बुवाई करने के लिए खेत की मृदा को भुरभुरी एवं एकसार करने के पश्चात उसमें अपनी सुविधानुसार बैड बना लें। सामान्यतः बैड 15 सेमी ऊँचे, 1 मीटर चौड़े एवं बैड से बैड का फासला 50 सेमी पर तैयार करें। 

इसके अतिरिक्त हल्दी की बुवाई मेड अथवा क्यारियों में की जा सकती है। मेड बुवाई हेतु मेड से मेड का फासला 45-60 सेमी और पौधों के मध्य 15-20 सेमी का फासला रखना चाहिए।

हल्दी की बिजाई हेतु बीज की मात्रा

हल्दी की खेती करने के लिए 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से बीज की जरुरत होती है। मिश्रित फसल हेतु 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ बीज पर्याप्त रहता है। हल्दी की बुवाई करने हेतु 7-8 सेंटीमीटर लंबाई वाले कंद का चुनाव करें, जिसमें कम से कम दो आंखे होनी चाहिए। 

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हल्दी की बिजाई से पूर्व बीजोपचार

प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम थीरम अथवा मैंकोजेब का घोल बनाकर बुवाई से पूर्व हल्दी के बीज को 30 से 35 मिनट तक भिगोकर रखें। उसके उपरांत उसको छांव में सूखा कर बुवाई कर दें।

हल्दी की बिजाई समुचित समय क्या है

हल्दी की बिजाई जलवायु, प्रजाति एवं सिंचाई सुविधा पर भी आश्रित रहती है। परंतु, हल्दी की बिजाई का सर्वाधिक उपयुक्त वक्त 15 मई लेकर 15 जून तक है।

हल्दी की बिजाई का सबसे अच्छा तरीका

हल्दी को तैयार खेत में बुवाई कर दें। बुवाई करने के दौरान कतार से कतार का फासला 30 सेंटीमीटर कंद से कंद का फासला 20 सेंटीमीटर रखना चाहिए। साथ ही, कंद की गहराई 20 सेंटीमीटर से ज्यादा ना हो वर्ना पैदावार प्रभावित हो सकती है।

हल्दी की फसल में सिंचाई की आवश्यकता

हल्दी की सिचाई मृदा और जलवायु पर भी निर्भर करती है। हल्दी की फसल को कम सिचाई की जरूरत पड़ती है। गर्मी के मौसम में हल्दी की सिचाई 7-8 दिनों की समयावधि पर करनी चाहिए। 

तो वहीं ठण्ड के दिनों में 15-16 दिन के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए। वर्षा के मौसम में आवश्यकतानुसार सिचाई करें। फसल से जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

हल्दी की फसल में उर्वरक प्रबंधन

हल्दी की फसल से बेहतरीन उत्पादन और उच्च गुणवत्ता फसल तैयार करने के लिए खाद एवं उर्वरक को उपयुक्त मात्रा में देना चाहिए। 

खेत तैयार करने के दौरान 4-5 टन/एकड़ की दर से गोबर का खाद डालें। रासायनिक उर्वरक के रूप में एक हेक्टेयर खेती हेतु 100 किलो ग्राम पोटाश, 20 किलो ग्रा. जिंक सल्फेट, 100 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस (स्फूर) की जरूरत होती है। 

जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा को तीन समतुल्य हिस्सों में बाँट कर एक बुवाई के दौरान दूसरा हिस्सा बुवाई के लगभग 40 से 45 दिनोपरांत तथा तीसरा भाग 80 से 90 दिन पश्चात दे सकते हैं।

हल्दी की फसल में खरपतवार की रोकथाम हेतु क्या करें

हल्दी की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए वक्त-वक्त पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें।

हल्दी की फसल में कीट एवं रोग की रोकथाम हेतु क्या किया जाए

हल्दी की फसल में कीट, रोग, कंद मक्खी, तना भेदक, बारुथ, कंद सड़न, पर्णचित्ती आदि का प्रकोप रहता है। इसका निदान करने हेतु आप अपने यहाँ के कृषि विशेषज्ञ से संपर्क साध सकते हैं।

हल्दी की खुदाई कब की जाती है

सामान्य रूप से हल्दी की खुदाई जनवरी से मार्च-अप्रैल तक होती है। अगेती किस्में 7-8 महीनों में तो वहीं मध्यम किस्में 8-9 महीनों में पककर तैयार हो जाती है। 

जब फसल की पत्तियॉँ पीली पड़नी शुरू होने लगें एवं सूखने लगे तो समझ जाना चाहिए कि फसल कटाई हेतु तैयार है।

जानिए नीली हल्दी की खेती से कितना मुनाफा कमाया जा सकता है

जानिए नीली हल्दी की खेती से कितना मुनाफा कमाया जा सकता है

पीली हल्दी की तुलना में नीली हल्दी की खेती करना थोड़ा सा कठिन होता है। यह हर प्रकार की मिट्टी में उत्पादित नहीं की जा सकती है। इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी भुरभुरी दोमट मृदा होती है। हमारे घर में सदैव पीली हल्दी ही उपयोग में ली जाती है। परंतु, इसका अर्थ यह कतई नहीं है, कि विश्व में केवल पीली हल्दी ही होती है। इस विश्व में एक नीली हल्दी या ब्लू हल्दी (Blue Turmeric) भी होती है, जो कि अब भारत में काफी तीव्रता से उत्पादित की जा रही है। यह हल्दी पीली हल्दी की तुलना में अधिक गुणकारी होती है। साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी ज्यादा मिलता है। नीली हल्दी सेवन के लिए नहीं होती है। इस इस्तेमाल दवाओं के लिए किया जाता है। विशेष तौर पर आयूर्वेद में इसके कई इस्तेमाल बताए गए हैं। आइए आपको बतादें कि भारत के किसान किस तरह नीली हल्दी से मुनाफा अर्जित कर रहे हैं।

नीली हल्दी की खेती किस प्रकार की जाती है

पीली हल्दी की तुलना में नीली हल्दी की खेती थोड़ी अधिक कठिन होती है। यह हर प्रकार की मृदा में उत्पादित नहीं की जा सकती। इसकी खेती के लिए भुरभुरी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इस हल्दी की खेती करने के दौरान इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना होता है, कि इसके खेत में पानी ना लगे। क्योंकि, यदि इसके खेत में जल सिंचाई हुई हो तो यह पीली हल्दी से भी तीव्र सड़ती है। इस वजह से नीली हल्दी की खेती अधिकांश लोग ढलान वाले इलाकों में किया करते हैं। जहां पानी रुकने की कोई संभावना ही ना रहती हो।

किसान भाइयों को इससे कितना लाभ अर्जित होता है।

किसानों को इस हल्दी से दो प्रकार से लाभ होगा, पहला तो बाजार में इसका भाव अधिक मिलेगा। वहीं, दूसरा यह कि यह हल्दी पीली हल्दी की तुलना में कम जमीन में अधिक उत्पादन देती है। कीमत की बात की जाए तो बाजार में नीली हल्दी मांग के मुताबिक से 500 रुपये से 3000 रुपये किलो तक बेची जाती है।

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वहीं, उत्पादन की बात की जाए तो एक एकड़ में नीली हल्दी की पैदावार 12 से 15 कुंटल के आसपास रहती है। जो पीली हल्दी की तुलना में काफी अधिक है। इसलिए यदि आप हल्दी की खेती किया करते हैं, तो आपको अब से पीली छोड़ कर नीली हल्दी का उत्पादन करना चाहिए। कुछ लोग इस नीली हल्दी को काली हल्दी भी बुलाते हैं, ऐसे में यदि आपसे कोई काली हल्दी कहे तो समझ लीजिए कि वह नीली हल्दी के विषय में ही बात कर रहा है। दरअसल, यह ऊपर से दिखने में काली होती है। हालांकि, अंदर से इस हल्दी का रंग नीला होता है, जो कि सूखने के पश्चात काला पड़ जाता है। इस वजह से कुछ लोग इसे काली हल्दी के नाम से भी जानते हैं।
हल्दी की खेती को कमाई वाली फसल कहने के पीछे की वजह

हल्दी की खेती को कमाई वाली फसल कहने के पीछे की वजह

कृषक भाई हल्दी की खेती कर काफी शानदार मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। हल्दी की मांग विदेशों में बेहद अधिक है। हल्दी की खेती करने से कृषकों को काफी लाभ होगा। भारत के तकरीबन हर घर में हल्दी का उपयोग किया जाता है। इसकी खेती कर कृषक भाई काफी शानदार धन अर्जित कर सकते हैं, जिसकी संपूर्ण जानकारी नीचे दी गई है। जानकारी के लिए बतादें, कि हल्दी की खेती को आमदनी वाली फसल के नाम से जाना जाता है। बतादें कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये विभिन्न कार्यों में उपयोग होने वाली फसल है। इसकी मांग सदैव बनी रहती है। हल्दी का उपयोग मसाले, औषधि, ब्यूटी प्रोडक्ट्स और अन्य बहुत सारे उत्पादों में होता है। इसके साथ ही हल्दी की खेती के दौरान ज्यादा पानी अथवा फिर सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। यह एक ऐसी फसल है, जो कम खर्चा में उग सकती है। साथ ही, इससे काफी बेहतरीन आमदनी की जा सकती है।

हल्दी की खेती में आने वाली लागत

अगर आप एक हेक्टेयर भूमि में हल्दी की खेती करने के बारे में सोच रहे हैं, तो लगभग 10,000 रुपये के बीज, 10,000 रुपये की खाद एवं मजदूरी शुल्क जो उस वक्त लागू हो वह आपको देना पड़ेगा। हल्दी की खेती से होने वाली आमदनी विशेष रूप से उत्पादन पर निर्भर होती है। एक हेक्टेयर भूमि में हल्दी का औसत उत्पादन 20-25 क्विंटल तक का होता है। अगर हल्दी की कीमत 200 रुपये किलो है, तो एक हेक्टेयर में हल्दी की खेती से लगभग 5 लाख तक की आमदनी की जा सकती है।

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हल्दी की जल निकासी व बाजार में मांग

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हल्दी की खेती करने के लिए शानदार जल निकासी वाली मृदा को चुनें। हल्दी की खेती करने के लिए जैविक खाद का उपयोग करें। हल्दी की खेती के दौरान कीटों एवं बीमारियों से संरक्षण के लिए समुचित उपाय करें। फसल को सही वक्त पर खेत से निकाल लें। बाजार के अंदर हल्दी की काफी मांग है। भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी हल्दी की बेहद मांग है। आप हल्दी को ऑनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से भी अच्छी कीमतों में बेच सकते हैं।