Ad

Agriculture news

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

जैविक खेती से कैंसर दिल और दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी सहायता मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में बहार ला सकता है।

ऑर्गेनिक फार्मिंग मतलब जैविक खेती को पर्यावरण का संरक्षक माना जाता है। कोरोना महामारी के बाद से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति काफी ज्यादा जागरुकता पैदा हुई है। बुद्धिजीवी वर्ग खाने पीने में रासायनिक खाद्य से उगाई सब्जी के स्थान पर जैविक खेती से उगाई सब्जियों को प्राथमिकता दे रहा है।

बीते 4 वर्षों में दो गुना से ज्यादा उत्पादन हुआ है

भारत में विगत चार वर्षों से जैविक खेती का क्षेत्रफल यानी रकबा बढ़ रहा है और दोगुने से भी ज्यादा हो गया है। 2019-20 में रकबा 29.41 लाख हेक्टेयर था, 2020-21 में यह बढ़कर 38.19 लाख हेक्टेयर हो गया और पिछले साल 2021-22 में यह 59.12 लाख हेक्टेयर था।

कई गंभीर बीमारियों से लड़ने में बेहद सहायक

प्राकृतिक कीटनाशकों पर आधारित जैविक खेती से कैंसर और दिल दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में शानदार बहार ला सकता है।

ये भी पढ़ें: रासायनिक से जैविक खेती की तरफ वापसी

भारत की धाक संपूर्ण वैश्विक बाजार में है 

जैविक खेती के वैश्विक बाजार में भारत तेजी से अपनी धाक जमा रहा है। इतनी ज्यादा मांग है कि सप्लाई पूरी नहीं हो पाती है। आने वाले वर्षों में जैविक खेती के क्षेत्र में निश्चित तौर पर काफी ज्यादा संभावनाएं हैं। सभी लोग अपने स्वास्थ को लेकर जागरुक हो रहे हैं। 

जैविक खेती इस प्रकार शुरु करें 

सामान्य तौर पर लोग सवाल पूछते हैं, कि जैविक खेती कैसे आरंभ करें ? जैविक खेती के लिए सबसे पहले आप जहां खेती करना चाहते हैं। वहां की मिट्टी को समझें। ऑर्गेनिक खेती शुरू करने से पहले किसान इसका प्रशिक्षण लेकर शुरुआत करें तो चुनौतियों को काफी कम किया जा सकता है। किसान को बाजार की डिमांड को समझते हुए फसल का चयन करना है, कि वह कौन सी फसल उगाए। इसके लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों से मशवरा और राय अवश्य ले लें।

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

फिलहाल गर्मी के दिन शुरू हो गए हैं। आम जनता के साथ-साथ पशुओं को भी गर्मी प्रभावित करेगी। ऐसे में मवेशियों को भूख कम और प्यास ज्यादा लगती है। पशुपालक अपने मवेशियों को दिन में न्यूनतम तीन बार जल पिलाएं। 

जिससे कि उनके शरीर को गर्म तापमान को सहन करने में सहायता प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त लू से संरक्षण हेतु पशुओं के जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिला देना चाहिए। 

भारत के विभिन्न राज्यों में गर्मी परवान चढ़ रही है। इसमें महाराष्ट्र राज्य सहित बहुत से प्रदेशों में तापमान 40 डिग्री पर है। साथ ही, गर्म हवाओं की हालत देखने को मिल रही है। साथ ही, उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में तापमान 35 डिग्री तक हो गया है। 

इस मध्य मवेशियों को गर्म हवा लगने की आशंका रहती है। लू लगने की वजह से आम तौर पर पशुओं की त्वचा में सिकुड़न और उनकी दूध देने की क्षमता में गिरावट देखने को मिलती है। 

हालात यहां तक हो जाते हैं, कि इसके चलते पशुओं की मृत्यु तक हो जाने की बात सामने आती है। ऐसी भयावय स्थिति से पशुओं का संरक्षण करने के लिए उनकी बेहतर देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।

पशुओं को पानी पिलाते रहें

गर्मी के दिनों में मवेशियों को न्यूनतम 3 बार जल पिलाना काफी आवश्यक होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि जल पिलाने से पशुओं के तापमान को एक पर्याप्त संतुलन में रखने में सहायता प्राप्त होती है। 

इसके अतिरिक्त मवेशियों को जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिलाकर पिलाने से गर्म हवा लगने की आशंका काफी कम रहती है। 

ये भी देखें: इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव 

यदि आपके पशुओं को अधिक बुखार है और उनकी जीभ तक बाहर निकली दिख रही है। साथ ही, उनको सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उनके मुंह के समीप झाग निकलते दिखाई पड़ रहे हैं तब ऐसी हालत में पशु की शक्ति कम हो जाती है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे हालात में अस्वस्थ पशुओं को सरसों का तेल पिलाना काफी लाभकारी साबित हो सकता है। सरसों के तेल में वसा की प्रचूर मात्रा पायी जाती है। जिसकी वजह से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। विशेषज्ञों के अनुरूप गाय और भैंस के पैदा हुए बच्चों को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है।

पशुओं को सरसों का तेल कितनी मात्रा में पिलाया जाना चाहिए

सीतापुर जनपद के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह के अनुरूप, गर्मी एवं लू से पशुओं का संरक्षण करने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसी हालत में सरसों के तेल का सेवन कराना बेहद लाभकारी होता है। 

ऊर्जा मिलने से पशु तात्कालिक रूप से बेहतर महसूस करने लगते हैं। हालांकि, सरसों का तेल पशुओं को प्रतिदिन देना लाभकारी नहीं माना जाता है। 

डॉ आनंद सिंह के अनुसार, पशुओं को सरसों का तेल तभी पिलायें, जब वह बीमार हों अथवा ऊर्जा स्तर निम्न हो। इसके अतिरिक्त पशुओं को एक बार में 100 -200 ML से अधिक तेल नहीं पिलाना चाहिए। 

हालांकि, अगर आपकी भैंस या गायों के पेट में गैस बन गई है, तो उस परिस्थिति में आप अवश्य उन्हें 400 से 500 ML सरसों का तेल पिला सकते हैं। 

साथ ही, पशुओं के रहने का स्थान ऐसी जगह होना चाहिए जहां पर प्रदूषित हवा नहीं पहुँचती हो। पशुओं के निवास स्थान पर हवा के आवागमन के लिए रोशनदान अथवा खुला स्थान होना काफी जरुरी है।

पशुओं की खुराक पर जोर दें

गर्मी के मौसम में लू के चलते पशुओं में दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। उनको इस बीच प्रचूर मात्रा में हरा एवं पौष्टिक चारा देना अत्यंत आवश्यक होता है। 

हरा चारा अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। हरे चारे में 70-90 फीसद तक जल की मात्रा होती है। यह समयानुसार जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इससे पशुओं की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाती है।

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

बीपीएनएल के ओर से सर्वे इंचार्ज एवं सर्वेयर पद पर अच्छी खासी संख्या में भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 वहीं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड में बंपर भर्ती निकली है। यदि आप सरकारी नौकरी करना चाहते हैं एवं पशुपालन में आपकी रुचि है तो ये भर्ती आपके लिए ही है। सबसे खास बात यह है, कि इस भर्ती में 10वीं पास लोग भी हिस्सा ले सकते हैं। जो भी इच्छुक उम्मीदवार इस भर्ती परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उनको 5 जुलाई से पूर्व इस परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म भरना पड़ेगा। इस भर्ती से जुड़ी समस्त जानकारी आपको बीपीएनएल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्राप्त हो जाएगी।

भर्ती हेतु आवेदनकर्ता पर क्या-क्या होना चाहिए

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड मतलब कि बीपीएनएल द्वारा सर्वे इंचार्ज और सर्वेयर पद पर बंपर भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 एवं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जो लोग भी सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करना चाहते हैं, उन उम्मीदवारों की आयु सीमा 21 से 40 वर्ष के मध्य होनी अति आवश्यक है। इसके साथ ही उनके पास भारत के किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज से 12वीं पास का रिजल्ट भी होना अनिवार्य है। वहीं, सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार इच्छुक हैं, उनकी आयु सीमा 18 से 40 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। साथ ही, उनके पास 10वीं पास का रिजल्ट अवश्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है, कि इस भर्ती के लिए केवल 10वीं अथवा 12वीं पास लोग ही आवेदन कर सकते हैं। यदि आप इससे अधिक पढ़े लिखे हैं, तब भी आप इस भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह भी पढ़ें: इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

भर्ती परीक्षा हेतु कितनी फीस तय की गई है

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड की भर्ती परीक्षा की फीस की बात की जाए तो सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करने के लिए उम्मीदवारों को 944 रुपये की फीस जमा करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार आवेदन करना चाहते हैं, उनकी फीस 826 रुपये निर्धारित की गई है। समस्त उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन टेस्ट एवं इंटरव्यू के अनुसार होगा। सबसे खास बात यह है, कि आवेदन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और अंतिम तिथि 5 जुलाई 2023 है।
गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

पशुओं में कुपोषण की वजह से बांझपन की बीमारियां निरंतर बढ़ती जा रही हैं। खास कर गोवंश में देखी जा रही है। गोवंश में बांझपन के बढ़ते मामलों के का सबसे बड़ा कारण कुपोषण है। इसका मतलब है, कि पशुओं को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। इस गंभीर समस्या से किसानों के साथ-साथ पशुपालन से संबंधित समस्त संस्थाऐं भी काफी परेशान हैं। सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय वेटनरी कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ राजीव सिंह ने बताया है, कि व्यस्क पशुओं में कम वजन व जननागों के अल्प विकास से पशुओं में प्रजनन क्षमता में कमी देखने को मिल रही है। जैसा कि उपरोक्त में बताया गया है, कि इसका मुख्य कारण कुपोषण है। इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड के वित्तीय सहयोग से कृषि विश्व विद्यालय और पशुपालन विभाग द्वारा मेरठ के ग्राम बेहरामपुर मोरना ब्लॉक जानी खुर्द में निशुल्क पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कुलपति डॉ के.के. सिंह एवं पशुपालन विभाग के अपर निदेशक डॉ अरुण जादौन के निर्देश में हुआ है।

ये भी पढ़ें:
सरोगेसी तकनीक का हुआ सफल परीक्षण, अब इस तकनीक की सहायता से गाय देगी बछिया को जन्म

 

इस उपलक्ष्य पर परियोजना के मार्ग दर्शक डॉ राजवीर सिंह ने कहा है, कि मादा पशुओं को संतुलित आहार के साथ-साथ प्रोटीन और खनिज मिश्रण जरूर देना चाहिए। जिसकी सहायता से उनकी गर्भधारण क्षमता बरकरार रहे। परियोजना प्रभारी डॉ अमित वर्मा का कहना है, कि पशुओं में खनिज तत्वों के अभाव की वजह से भूख ना लगना, बढ़वार एवं प्रजनन क्षमता में कमी जैसे समय पर गर्मी में ना आना, अविकसित संतानो की उत्पत्ति, दूध उत्पादन में कमी, एनीमिया इत्यादि समस्याऐं आ सकती हैं। बतादें, कि पशुओं को प्रतिदिन 30 - 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर पाउडर पशु आहार के लिए जरूर देना चाहिए। पशु स्वास्थ्य शिविर में पशु चिकित्सा महाविद्यालय कॉलेज मेरठ के विशेषज्ञों इनमें डॉ. अमित वर्मा, डॉ अरविन्द सिंह, डॉ अजीत कुमार सिंह, डॉ विकास जायसवाल, डॉ प्रेमसागर मौर्या, डॉ आशुतोष त्रिपाठी और डॉ रमाकांत इत्यादि की टीम के द्वारा 157 पशुओं को कृमिनाशक, बाँझपन प्रबंधन, गर्भावस्था निदान, रक्त व गोबर की जाँच जैसी पशु चिकित्सा सेवाएं और तदानुसार मुफ्त दवाएं भी प्रदान की गईं। पशु चिकित्साधिकारी डॉ रिंकू नारायण एवं डॉ विभा सिंह ने पशुपालन के लिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड तथा सब्सिड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्रदान की। प्रशांत कौशिक ग्राम प्रधान समेत अन्य ग्रामवासियों ने शिविर के आयोजन हेतु कृषि विवि की कोशिशों की सराहना करते हुए धन्यवाद व्यक्त किया।

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

ये भी पढ़ें:
अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
सरसों की फसल के रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

सरसों की फसल के रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

सरसों की फसल का रकबा बढ़ गया है क्योकि खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति में आये अंतर की वजह से इसकी कीमत अच्छी रहने की उम्मीद है. इसी वजह से इसकी बुबाई भी ज्यादा मात्रा में की गई है. अभी हमारे किसान भाई सरसों में पानी और खाद लगा कर उसकी बढ़वार और पेड़ पर कोई रोग न आये उसके ऊपर ध्यान केंद्रित रख रहे हैं. सरसों की खेती में लागत काम और देखभाल ज्यादा होती है क्योकि इसको कच्ची फसल बोला जाता है. इसको कई प्रकार के कीटों से खतरा रहता है इनमे मुख्यतः माहू मक्खी, सुंडी, चेंपा आदि है. अगर इसका समय से उपचार न किया जाये तो ये 10 से 90% तक फसल को नुकसान कर जाता है. इसलिए यह अति आवश्यक है कि इन कीटों की सही पहचान कर उचित और समय पर रोकथाम की जाए. यदि समय रहते इन रोगों एवं कीटों का नियंत्रण कर लिया जाये तो सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा सकती है.

ये भी पढ़ें: 
जानिए सरसों की बुआई के बाद फसल की कैसे करें देखभाल
मेरीखेती के WhatsApp ग्रुप के सदस्य ने हमें अपने खेत का फोटो भेजा तथा इस पर जानकारी चाही इस पर हमारे सलाहकार मंडल के सदस्य श्री दिलीप यादव जी ने उनकी समस्या का समाधान किया. नीचे दिए गए फोटो को देखकर आप भी अपने उचित सलाह हमारे किसान भाइयों को दे सकते हैं.

सरसों के प्रमुख कीट और नियंत्रण:

आरा मक्खी:

इस समय सरसों में चित्रित कीट व माहू कीट का प्रकोप होने का डर ज्यादा रहता है. इसके असर से शुरू में फसलों के छोटे पौधों पर आरा मक्खी की गिडारें ( सुंडी, काली गिडार व बालदार गिडार) नुकसान पंहुचाती हैं, गिडारें काले रंग की होती हैं जो पत्तियों को बहुत तेजी के साथ किनारों से विभिन्न प्रकार के छेद बनाती हुई खाती हैं जिसके कारण पत्तियां बिल्कुल छलनी हो जाती हैं. इससे पेड़ सूख जाता है और समाप्त हो जाता है. उपाय: मेलाथियान 50 ई.सी. की 200 मि.ली. मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें, तथा पानी भी लगा दें. जिससे की नीचे आने वाले कीट डूब कर मर जाएँ.

माहू या चेंपा:

यह रोग देर से बोई गई प्रजाति पर ज्यादा आता है लेकिन कई बार मौसम अगर जल्दी गरम हो जाये और फसल पर फलियां बन रही हों या कच्ची हो तो इसका ज्यादा नुकसान होता है. यह फसल को पूरी तरह से ख़तम कर देता है. उपाय: बायोएजेन्ट वर्टिसिलियम लिकेनाइ एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं 7 दिन के अंतराल पर मिथाइल डिमेटोन (25 ई.सी.) या डाइमिथोएट (30 ई.सी) 500 मि.ली./हेक्टेयर का छिड़काव करें.

मृदुरोमिल आसिता:

लक्षण- जब सरसों के पौधे 15 से 20 दिन के होते हैं तब पत्तों की निचली सतह पर हल्के बैंगनी से भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं बहुत अधिक नमी में इस रोग का कवक तने तथा स्टेग हैड’ पर भी दिखाई देता है| यह रोग फूलों वाली शाखाओं पर अधिकतर सफेद रतुआ के साथ ही आता हैं|

सफेद रतुआ

लक्षण- सरसों की पत्तियों के निचली सतह पर चमकीले सफेद उभरे हुए धब्बे बनते हैं, पत्तियों को ऊपरी सतह पीली पड़ जाती हैं, जिससे पत्तियों झुलसकर गिर जाती हैं एवं पौधे कमजोर हो जाते हैं| रोग की अधिकता में ये सफेद धब्वे तने और कलियों पर भी दिखाई देते नमी रहने पर रतुआ एवं रोमिल रोगो के मिले जुले धन्ये ‘स्टेग हैड” (विकृत फ्लों) पर साफ दिखाई देते हैं|

काले धब्बों का रोग

लक्षण- सरसों की पत्तियों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनते हैं, जो बाद में तेजी से बढ़ कर काले और बड़े आकार के हो जाते हैं, एवं इन धब्बों में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं| रोग की अधिकता में बहुत से धवे आपस में मिलकर बड़ा रूप ले लेते हैं तथा फलस्वरूप पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं, तने और फलों पर भी गोल गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं|

ये भी पढ़ें: 
सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

तना गलन

लक्षण- सरसों के तनों पर लम्बे व भूरे जलसिक्त धब्बे बनते हैं, जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तह बन जाती है, यह सफेद फंफूद पत्तियों, टहनियों और फलियों पर भी नजर आ सकते हैं| उग्र आक्रमण यदि फुल निकलने या फलियाँ बनने के समय पर हो तो तने टूट जाते हैं एवं पौधे मुरझा कर सूख जाते हैं| फसल की कटाई के उपरान्त ये फफूंद के पिण्ड भूमि में गिर जाते हैं या बचे हुए दूठों (अवशेषों) में प्रर्याप्त मात्रा में रहते हैं, जो खेत की तैयारी के समय भूमि में मिल जाते हैं| उपरोक्त रोगों का सामूहिक उपचार- सरसों की खेती को तना गलन रोग से बचाने के लिये 2 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें|

छिड़काव कार्यक्रम

सरसों की खेती में आल्टनेरिया ब्लाईट, सफेद रतुआ या ऊनी मिल्ड्यू के लक्षण दिखते ही डाइथेन एम- 45 का 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव सरसों की खेती पर दो बार 15 दिन के अन्तर पर करें| जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर वर्ष अधिक होता है, वहां बाविस्टिन से 2 ग्राम प्रति किलो को दर से बीज का उपचार करे और इसी दवा का बिजाई के 45 से 50 और 65 से 70 दिन बाद 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें|
गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

हमारे देश में मिश्रित फसल उगाने की परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। पुराने समय में किसान भाई एक खेत में एक समय में एक से अधिक फसल उगाते थे। लेकिन इन फसलों का चयन बहुत सावधानीपूर्वक करना होता है क्योंकि यदि फसलों के चुनाव के बिना किसान भाइयों ने कोई ऐसी दो फसलें एक साथ खेत में उगाई जो होती तो एक समय में ही हैं लेकिन उनके लिए मौसम, सिंचाई, उर्वरक व खाद प्रबंधन आदि अलग-अलग होते हैं । इसके अलावा कभी कभी तो ऐसा होता है कि दो फसलों में एक फसल जल्दी तैयार होती है तो दूसरी देर से तैयार होती है। एक फसल के सर्दी का मौसम फायदेमंद होता है तो दूसरे के लिए नुकसानदायक होता है। एक निश्चित दूरी की पंक्ति व पौधों से पौधों की दूरी पर बोई जाती है तो दूसरी छिटकवां या बिना पंक्ति के ही बोई जाती हैं।

Mustard Farming

फसलों का चयन बहुत सावधानी से करें

वैसे कहा जाता है कि मिश्रित खेती के लिए ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिये कि दोनों फसलों के लिए उस क्षेत्र की भूमि,जलवायु व सिंचाई की आवश्यकता उपयुक्त हों यानी एक जैसी जरूरत होतीं हों। इसके बावजूद जानकार लोगों का मानना है कि अनाज व दलहनी फसलों को मिलाकर बोने से उत्पादन अच्छा होता है लेकिन अनाज व तिलहन की फसल की बुआई से बचना चाहिये।

ये भी पढ़ें: जानिए गेहूं की बुआई और देखभाल कैसे करें

एक फसल को फायदा तो दूसरे को नुकसान

wheat cultivation

मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से एक फसल को नुकसान होता है तो दूसरी फसल से कुछ अच्छी पैदावार हो जाती है। गेहूं व सरसों की मिलीजुली खेती से वर्षा की कमी से सरसों की फसल को नुकसान हो सकता है जबकि गेहूं की फसल को उतना नुकसान नही होगा वहीं सिंचाई की जल की कमी होने से सरसों की फसल अच्छी होगी जबकि गेहूं की फसल खराब हो सकती है।

क्यों सही नहीं होती एक साथ गेहूं व सरसों की खेती

गेहूं के साथ जौ, चना, मटर की फसल को अच्छा माना जाता है लेकिन गेहूं के साथ सरसों की फसल को अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इन दोनों फसलों की प्राकृतिक जरूरतें अलग-अलग होतीं हैं। इन दोनों फसलों की खेती के लिए भूमि, खाद, सिंचाई आदि की व्यवस्था भी अलग-अलग की जाती हैं। इनका खाद व उर्वरक प्रबंधन भी अलग अलग होता है। दोनों ही फसलों की बुआई व कटाई का समय भी अलग-अलग होता है। इन दोनों फसलों को एक साथ करने से किसान भाइयों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

जानें सबसे ज्यादा सरसों की खरीद किस राज्य में हुई है, नाफेड को खुद भी क्यों करनी पड़ी खरीद शुरू

जानें सबसे ज्यादा सरसों की खरीद किस राज्य में हुई है, नाफेड को खुद भी क्यों करनी पड़ी खरीद शुरू

नाफेड ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों की एमएसपी दर 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। अगर हम राजस्थान की बात करें तो यह भारत का एकमात्र प्रदेश है, जो अकेला 42 फीसदी सरसों की पैदावार करता है। गेहूं समेत भारत के ज्यादातर राज्यों में तिलहन की खरीद भी चालू हो चुकी है। हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत विभिन्न राज्यों में एमएसपी पर सरसों की खरीद की जा रही है। मौसम के गर्म होते-होते सरसों की खरीद में तीव्रता भी होती जा रही है। यही कारण है, कि भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड) द्वारा अब तक 169217.45 मिट्रिक टन सरसों की खरीद की जा चुकी है। साथ ही, इसके एवज में किसान भाइयों के खाते में करोड़ों रुपये की धनराशि भी भेजी जा चुकी है। इससे सरसों का उत्पादन करने वाले कृषक काफी खुश हैं। ऐसी स्थिति में किसानों को आशा है, कि आगामी दिनों में सरसों खरीदी में और ज्यादा तीव्रता आएगी।

नाफेड ने खुद की सरसों की खरीद शुरू

किसान तक की खबरों के अनुसार, तीन वर्ष बाद ऐसा हुआ है, कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दर होने के कारण नाफेड स्वयं सरसों की खरीदी कर रहा है। इससे पूर्व किसान स्वयं मंडियों में जाकर व्यापारियों को एमएसपी से महंगी कीमत पर सरसों विक्रय करते थे। अब तक 84914 किसानों ने एमएसपी पर सरसों विक्रय करते है। इसके एवज उनके खाते में 922.24 रुपये भेजे जा चुके हैं। आहिस्ते-आहिस्ते सरसों खरीद केंद्रों पर किसानों की संख्या काफी बढ़ती जा रही है। हालाँकि, बेमौसम बारिश के कारण से राजस्थान एवं मध्य प्रदेश समेत बहुत से तिलहन उपादक राज्यों में फसल की कटाई में विलंब हो गया था। साथ ही, बरसात से सरसों की फसल को काफी क्षति भी पहुंची है। यह भी पढ़ें: न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए 25 फरवरी तक करवा सकते हैं, रजिस्ट्रेशन मध्य प्रदेश के किसान

हरियाणा में विगत 20 मार्च से सरसों की खरीद शुरू हो चुकी है

भारत में राजस्थान सरसों का सर्वाधिक उत्पादन करता है। परंतु, इस बार हरियाणा सरसों की खरीद करने के संबंध में राजस्थान से आगे है। नाफेड ने अब तक हरियाणा के अंदर 139226.38 मिट्रिक टन सरसों की खरीद करली है। हालाँकि, हरियाणा राज्य में भी देश के कुल उत्पादन का अकेले 13.5 फीसद सरसों का उत्पादन किया जाता है। इसके बदले में कृषकों को 758.78 करोड़ रुपये दिए गए हैं। विशेष बात यह है, कि हरियाणा में विगत 20 मार्च से सरसों की खरीद शुरू की गई है।

इन राज्यों में इतने मीट्रिक टन सरसों की एमएसपी पर खरीद की जा चुकी है

नाफेड ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 हेतु सरसों की एमएसपी दर 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय कर दी है। यदि हम राजस्थान की बात करें तो यहां की जलवायु के अनुरूप यह भारत का एकमात्र राज्य है, जो अकेला 42 फसदी सरसों का उत्पादन करता है। इसके बावजूद भी राजस्थान में अब तक 4708.40 मिट्रिक टन ही सरसों की खरीद हो सकती है। साथ ही, सरसों उत्पादन में मध्य प्रदेश भी कोई पीछे नहीं है। यह 12 प्रतिशत सरसों का उत्पादन किया करता है। मध्य प्रदेश में अब तक 9977.74 मीट्रिक टन सरसों की खरीद संपन्न हुई है। इसके उपरांत गुजरात 4.2 फीसद सरसों का उत्पादन करता है।
किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं

किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नवगोल्ड किस्म के सरसों का उत्पादन आम सरसों के मुकाबले अच्छी होती है। जानें इसकी खेती के तरीके के बारे में। हमारे भारत देश में सरसों की खेती रबी के सीजन में की जाती है। इसकी खेती के लिए खेतों की बेहतरीन जुताई सहित सिंचाई की उत्तम व्यवस्था भी होनी चाहिए। बाजार में आजकल कई तरह की सरसों की किस्में पाई जाती हैं। ऐसी स्थिति में नवगोल्ड भी सरसों की एक विशेष किस्म की फसल हैं, जिसकी खेती कर आप कम परिश्रम में अधिक पैदावार कर सकते हैं।

नवगोल्ड किस्म के सरसों के उत्पादन हेतु तापमान

नवगोल्ड किस्म के सरसों की पैदावार 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान में की जाती है। इसकी खेती समस्त प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। परंतु, बलुई मृदा में इसकी बेहतरीन पैदावार होती है। इसके बीज की बुआई बीजोपचार करने के बाद ही करें, जिससे पैदावार काफी बेहतरीन होती है।

ये भी पढ़ें:
सरसों की फसल में प्रमुख रोग और रोगों का प्रबंधन
नवगोल्ड किस्म के सरसों के उत्पादन हेतु सर्वप्रथम खेत को रोटावेटर के माध्यम से जोत लें। साथ ही, पाटा लगाकर खेत को एकसार करलें। साथ ही, इस बात का खास ख्याल रखें कि एकसार भूमि पर ही सरसों के पौधों का अच्छी तरह विकास हो पाता है।

नवगोल्ड किस्म की फसल में सिंचाई

नवगोल्ड किस्म के बीजों का निर्माण नवीन वैज्ञानिक विधि के माध्यम से किया जाता है। इस फसल को पूरी खेती की प्रक्रिया में बस एक बार ही सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फसल में सिंचाई फूल आने के दौरान ही कर देनी चाहिए।

नवगोल्ड किस्म की खेती के लिए खाद और उर्वरक

नवगोल्ड किस्म के बीजों के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल अच्छा माना जाता है। इसके उत्पादन के लिए गोबर के खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। मृदा में नाइट्रोजन, पोटाश की मात्रा एवं फास्फोरस को संतुलन में रखना चाहिए।

सरसों की खेती के लिए खरपतवार का नियंत्रण

सरसों की खेती के लिए इसके खेत को समयानुसार निराई एवं गुड़ाई की जरूरत पड़ती है। बुवाई के 15 से 20 दिन उपरांत खेत में खर पतवार आने शुरू हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आप खरपतवार नाशी पेंडामेथालिन 30 रसायन का छिड़काव मृदा में कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि इसमें लगने वाले प्रमुख रोग सफ़ेद किट्ट, चूणिल, तुलासिता, आल्टरनेरिया और पत्ती झुलसा जैसे रोग लगते हैं, तो आप फसलों पर मेन्कोजेब का छिड़काव कर सकते हैं। नवगोल्ड किस्म के सरसों में सामान्य किस्म के मुकाबले अधिक तेल का उत्पादन होता है। साथ ही, इसकी खेती के लिए भी अधिक सिंचाई एवं परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
इन सब बातों का रखेंगे ध्यान तो किसान सरसों की फसल से पाऐंगे शानदार उत्पादन

इन सब बातों का रखेंगे ध्यान तो किसान सरसों की फसल से पाऐंगे शानदार उत्पादन

भारत में सरसों का तेल तकरीबन सभी घरों में खाद्य तेल के तौर पर काम आती है। भारत में सरसों की खेती मुख्य तोर पर उत्तर प्रदेश, हरियाणा , महाराष्ट्र , राजस्‍ थान और मध्यप्रदेश में की जाती है। सरसों की खेती की मुख्य बात यह है , कि यह सिंचित एवं असिंचित , दोनों ही प्रकार के खेतों में उगाई जा सकती है। सोयाबीन तथा पाम के पश्चात सरसों विश्व में तीसरी सर्वाधिक महत्तवपूर्ण तिलहन फसल है। मुख्य रूप से सरसों के तेल के साथ - साथ सरसों के पत्ते का इस्तेमाल सब्जी तैयार करने में होता हैं। सरसों की खली भी बनती है , जो कि दुधारू मवेशियों को खिलाने के काम में आती है। घरेलू बाजार के साथ - साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी सरसों की मांग में बढ़ोतरी आने की वजह से किसानों को इस वर्ष सरसों का काफी शानदार भाव मिला है। वहीं , केंद्र सरकार ने इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी इजाफा कर दिया है।  

सरसों की खेती करने से पूर्व इन बातों का रखें विशेष ध्यान

सरसों की खेती करने से पूर्व कुछ चीजों को ध्यान में रखना पड़ता है , जिससे हमें फसल की उचित पैदावार मिल सके , वो हैं।  

ये भी पढ़ें:
रबी सीजन में सरसों की खेती के लिए ये पांच उन्नत किस्में काफी शानदार हैं

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सरसों भारत की प्रमुख तिलहन फसल में से एक है। रबी की फसल होने की वजह से मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक सरसों की बिजाई कर देनी चाहिए। सरसों की फसल का शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए 15 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

सामान्यतः सरसों की खेती हर तरह की मृदा में की जा सकती है। परंतु , सरसों की शानदार पैदावार पाने के लिए एकसार और बेहतर जल निकासी वाली बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त रहती है। परंतु , यह लवणीय एवं बंजर भूमि नहीं होनी चाहिए।

सरसों के खेत की तैयारी कैसे करें

सरसों की खेती में भुरभुरी मृदा की आवश्यकता होती है , खेत को सबसे पहले मृदा पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए। इसके पश्चात दो से तीन जुताई देशी हल अथवाकल्टीवेटरके जरिए से करना चाहिए। इसकी जुताई करने के बाद खेत में नमी रखने के लिए व खेत समतल करने के लिए पाटा लगाना अति आवश्यक हैं। पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय व पानी दोनों की बचत होती है।

सरसों की बिजाई हेतु बीज की मात्रा

आपकी जानकारी के लिए बतादें , कि जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद हो वहां सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए। जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध ना हो वहां सरसों की बीज की मात्रा अलग हो सकती है। बतादें , कि बीज की मात्रा फसल की किस्म के आधार पर निर्भर करती है। यदि फसल की समयावधि ज्यादा दिनों की है , तो बीज की मात्रा कम लगेगी। यदि फसल कम समय की है तो बीज की मात्रा ज्यादा लगेगी।

सरसों की उन्नत किस्में

सरसों की खेती के लिए उसकी उन्नत किस्मों की जानकारी होनी भी जरूरी है , जिससे ज्यादा पैदावार हांसिल की जा सकें। सरसों की विभिन्न प्रकार की किस्में सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र के लिए भिन्न - भिन्न हैं।  

ये भी पढ़ें:
विभिन्न परिस्थितियों के लिए सरसों की उन्नत किस्में

  1. आर . एच (RH) 30 : सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र दोनो ही स्थितियों में गेहूं , चना एवं जौ के साथ बुवाई करने के लिए अच्छी होती हैं।
  2. टी 59 ( वरूणा ) : यह किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई के साधन की उपलब्धता नहीं होती हैं। इसकी उपज असिंचित क्षेत्र में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके दाने में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।
  3. पूसा बोल्ड : आशीर्वाद ( आर . के ) : यह किस्म देर से बुवाई के लिए (25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक ) उपयुक्त होती है।
  4. एन . आर . सी . एच . बी . (NRC HB) 101 : ये किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती हैं। ये किस्म 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन प्रदान करती हैं।

सरसों की फसल में सिंचाई कब और कैसे करें  

सरसों की फसल में पहली सिंचाई 25 से 30 दिन पर करनी चाहिए और दूसरी सिंचाई फलियाें में दाने भरने की अवस्था में करनी चाहिए। अगर जाड़े में वर्षा हो जाती है , तो दूसरी सिंचाई न भी करें तो भी अच्छी पैदावार हांसिल की जा सकती है। ख्याल रहे सरसों में फूल आने के समय खेत की सिंचाई नहीं करनी चाहिए।सरसों की फसल में सिंचाई सामान्यत : पट्टी विधि के माध्यम से करनी चाहिए। खेत के आकार के मुताबिक 4 से 6 मीटर चौड़ी पट्टी बनाकर सिंचाई करनी चाहिए। इस विधि से सिंचाई करने से पानी का वितरण संपूर्ण खेत में समान तौर पर होता है।

सरसों की खेती में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल   

आपकी जानकारी के लिए बतादें , कि जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद ना हों वहां के लिए 6 से 12 टन सड़े हुए गोबर की खाद , 160 से 170 किलोग्राम यूरिया , 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट ,50 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश और 200 किलोग्राम जिप्सम बुवाई से पहले खेत में मिलाना उपयुक्त होता है। यूरिया की आधी मात्रा बिजाई के समय और बची हुई आधी मात्रा पहली सिंचाई के उपरांत खेत में मिला दें। जिन खेतों में सिंचाई के उपयुक्त साधन ना हो वहां के लिए वर्षा से पूर्व 4 से 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद , 85 से 90 किलोग्राम यूरिया , 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट , 33 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करते समय खेत में डाल दें।

सरसों की खेती में खरपतवार का नियंत्रण

सरसों की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन के समयांतराल में खेत से घने पौधों को बाहर निकाल देना चाहिए। इसके साथ ही उनका आपसी फासला 15 सेंटीमीटर कर देना चाहिए। खरपतवार खत्म करने के लिए सरसों के खेत में निराई और गुड़ाई सिंचाई करने से पूर्व जरूर करनी चाहिए। खरपतवार नष्ट ना होने की स्थिति में दूसरी सिंचाई के पश्चात भी निराई व गुड़ाई करनी चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण करने के लिए बुवाई के शीघ्र पश्चात 2 से 3 दिन के अंदर पेंडीमेथालीन 30 ईसी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करना चाहिए।भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय ट्रैक्टरों की जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

सरसों की फसल कटाई एवं भंडारण

सरसों की फसल में जब 75% फलियां सुनहरे रंग की हो जाए , तब फसल को मशीन से अथवा हाथ से काटकर , सुखाकर अथवा मड़ाई करके बीज को अलग कर लेना चाहिए। सरसों के बीज जब बेहतरीन तरीके से सूख जाएं तभी उनका भंडारण करना चाहिये।

सरसों की खेती से उत्पादन

जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है वहां इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हैं। वहां 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन हांसिल हो सकता हैं।

सरसों का बाजार भाव और कमाई

केंद्र सरकार ने इस साल सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 150 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि कर 5200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव तय किया है। पिछले वर्ष सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये था। सरसों की बढ़ती मांग और उपलब्धता में कमी के कारण इस बार खुले बाजारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ज्यादा भाव मिल रहे हैं। खुले बाजारों में सरसों का 6500 से 9500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। किसान अपनी सरसों की फसल भारत की प्रमुख मंडियों में जहां कीमत ज्यादा हो , वहां अपनी फसल विक्रय कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सीधे तेल प्रोसेसिंग कंपनियों से संम्पर्क करके सीधे कंपनियों को भी बेचा जा सकता है। वहीं किसान खुले बाज़ार में व्यापारियों को भी अपनी फसल बेच सकते हैं। बतादें , कि इस साल सरसों की फसल ने किसानों को अच्छे दाम दिलाए हैं। किसानों को आगे भी सरसों के अच्छे भाव मिलने की आशा है।

सरसों की फसल में सफेद रतवे का प्रबंधन

सरसों की फसल में सफेद रतवे का प्रबंधन

सरसों की फसल कई रोगों से प्रभावित होती है। जिससे की किसानो को कम पैदावार प्राप्त होती है। सफेद रतवे (White Rust) रोग से फसल को अधिक नुकसान होता है। आज इस लेख में हम आपको सफेद रतवे (White Rust) की रोकथाम के बारे में जानकारी देंगे जिससे की आप समय से फसल में इस बीमारी का नियंत्रण कर सके। 

सरसों की फसल में सफेद रतवे (White Rust) से बचाव के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्देश निम्नलिखित हैं:

सही बीज बुवाई :

 सबसे पहले आपको ध्यान देना है कि फसल की बुवाई के लिए स्वस्थ बीजों का चयन करें जो रोगों से मुक्त हों। स्वस्थ बीजों का चयन करने से फसल में ये रोग नहीं आएगा।   

फसल की समय पर बोना:

 समय पर सरसों की बुवाई की जानी चाहिए ताकि फसल में बीमारी का प्रसार कम हो। देरी से बुवाई की गयी फसल में अधिक रोग का खतरा होता है। कई बार रोग अधिक लग जाता है जिससे आधी पैदावार कम हो जाती है। 

समुचित जल सिंचाई:

जल सिंचाई को समुचित रूप से प्रबंधित करें ताकि पौधों पर पानी जमा नहीं हो, जिससे सफेद रतवे का प्रसार कम हो। फसल में अधिक नमी होने के कारण भी रोग अधिक लगता है। 

ये भी पढ़ें:
रबी सीजन की फसलों की बुवाई से पहले जान लें ये बात, नहीं तो पछताओगे

उचित फफूंदनाशकों का प्रयोग:

सरसों की सफेद रतवे के खिलाफ उचित फफूंदनाशकों का प्रयोग करें। कृषि विज्ञानी से सलाह लें और सुरक्षित रोगनाशकों का चयन करें। सफेद रतवा के नियंत्रण के लिए खड़ी फसल में मैंकोजेब(एम 45) फफुंदनाशक 400 से 500ग्राम को 200/250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से 15 दिन के अंतर पर कम से कम 2 छिड़काव अवश्य करें जिससे सफेद रतवा का नियंत्रण संभव हो सकता है।

फसल की देखभाल:

 फसल की देखभाल के लिए समय समय पर पौधों की सुरक्षा और मूल से देखभाल करें।

प्रभावित पौधों का हटाएं:

यदि किसी पौधे पर सफेद रतवे के प्रमुख संकेत हैं, तो उन्हें तुरंत उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें ताकि बीमारी और फैलने से बचा जा सके।उचित तकनीकी तरीके का प्रयोग करें, जैसे कि स्थानीय परिस्थितियों, जलवायु और मौसम की विशेषताओं के आधार पर सिंचाई और पोषण का प्रबंधन करें।इन उपायों का अनुसरण करके, सरसों की फसल में सफेद रतवे से बचाव किया जा सकता है। ध्यान रहे कि स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विज्ञानी से सलाह लेना हमेशा उत्तम होता है ताकि आपको विशेष रूप से अपने क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त नियंत्रण उपायों की जानकारी मिले।

भारत की मंडियों में तिलहन फसल सरसों की कीमतों में आई भारी गिरावट

भारत की मंडियों में तिलहन फसल सरसों की कीमतों में आई भारी गिरावट

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान में तिलहन फसलों में सर्वाधिक सरसों की कीमत प्रभावित हो रही है। विगत वर्ष के समापन में सरसों की कीमतों में काफी तीव्रता देखने को मिली थी। परंतु, अब सरसों की कीमतें एक दम नीचे गिरने लगी हैं। भारत भर की मंडियों में सरसों को क्या भाव मिल रहा है ? तिलहन फसलों का भाव निरंतर तीव्रता के पश्चात अब गिरावट की कवायद शुरू हो गई है। अधिकांश तिलहन फसलों की कीमतें अभी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।

कुछ एक फसलों में कमी दर्ज की जा रही है। तिलहन फसलोंकी बात करें तो सर्वाधिक सरसों के भाव प्रभावित हो रहे हैं। विगत वर्ष के अंत में सरसों की कीमतों में शानदार तीव्रता देखने को मिली थी। एक वक्त तो भाव 9000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। परंतु, अब भाव में एक दम से कमी आई है। आलम यह है, कि सरसों का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे चला गया है, जिस कारण से कृषक भी काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। 

भारत भर की मंडियों में सरसों की कीमत क्या है

केंद्र सरकार ने सरसों पर 5650 रुपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। परंतु, भारत की अधिकतर मंडियों में किसानों को MSP तक की कीमत नहीं मिल रही है। सरसों की फसल को औसतन 5500 रुपये/क्विंटल की कीमत मिल रही है। केंद्रीय कृष‍ि व क‍िसान कल्याण मंत्रालय के एगमार्कनेट पोर्टल के मुताबिक, शनिवार (6 जनवरी) को भारत की एक दो मंडी को छोड़ दें, तो तकरीबन समस्त मंडियों में मूल्य MSP से नीचे ही रहा है। शनिवार को सरसों को सबसे शानदार भाव कर्नाटक की शिमोगा मंडी में हांसिल हुआ। जहां, सरसों 8800 रुपये/क्विंटल के भाव पर बिकी है।


ये भी पढ़ें: सरसों की फसल में माहू कीट की रोकथाम करने के लिए कीटनाशक का स्प्रे करें

 

इसी प्रकार, गुजरात की अमरेली मंडी में भाव 6075 रुपये/क्विंटल तक रहा है। इन दो मंडियों को छोड़ दें, तो बाकी समस्त मंडियो में सरसों 5500 रुपये/क्विंटल के नीचे ही बेची जा रही है, जो MSP से काफी कम है। वहीं, भारत की कुछ मंडियों में तो भाव 4500 रुपये/क्विंटल तक पहुंच गया। विशेषज्ञों का कहना है, की कम मांग के चलते कीमतों में काफी गिरावट आई है। यदि मांग नहीं बढ़ी, तो कीमतें और कम हो सकती हैं, जो कि कृषकों के लिए काफी चिंता का विषय है।


यहां पर आप बाकी फसलों की सूची भी देख सकते हैं 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसी भी फसल का भाव उसकी गुणवत्ता पर भी निर्भर रहता है। ऐसी स्थिति में व्यापारी क्वालिटी के हिसाब से ही भाव निर्धारित करते हैं। फसल जितनी शानदार गुणवत्ता की होगी, उसकी उतनी ही अच्छी कीमत मिलेंगे। यदि आप भी अपने राज्य की मंडियों में भिन्न-भिन्न फसलों का भाव देखना चाहते हैं, तो आधिकारिक वेबसाइट https://agmarknet.gov.in/ पर जाकर पूरी सूची की जाँच कर सकते हैं।