इन सब बातों का रखेंगे ध्यान तो किसान सरसों की फसल से पाऐंगे शानदार उत्पादन

Published on: 12-Dec-2023

भारत में सरसों का तेल तकरीबन सभी घरों में खाद्य तेल के तौर पर काम आती है। भारत में सरसों की खेती मुख्य तोर पर उत्तर प्रदेश, हरियाणा , महाराष्ट्र , राजस्‍ थान और मध्यप्रदेश में की जाती है। सरसों की खेती की मुख्य बात यह है , कि यह सिंचित एवं असिंचित , दोनों ही प्रकार के खेतों में उगाई जा सकती है। सोयाबीन तथा पाम के पश्चात सरसों विश्व में तीसरी सर्वाधिक महत्तवपूर्ण तिलहन फसल है। मुख्य रूप से सरसों के तेल के साथ - साथ सरसों के पत्ते का इस्तेमाल सब्जी तैयार करने में होता हैं। सरसों की खली भी बनती है , जो कि दुधारू मवेशियों को खिलाने के काम में आती है। घरेलू बाजार के साथ - साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी सरसों की मांग में बढ़ोतरी आने की वजह से किसानों को इस वर्ष सरसों का काफी शानदार भाव मिला है। वहीं , केंद्र सरकार ने इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी इजाफा कर दिया है।  

सरसों की खेती करने से पूर्व इन बातों का रखें विशेष ध्यान

सरसों की खेती करने से पूर्व कुछ चीजों को ध्यान में रखना पड़ता है , जिससे हमें फसल की उचित पैदावार मिल सके , वो हैं।  

ये भी पढ़ें:
रबी सीजन में सरसों की खेती के लिए ये पांच उन्नत किस्में काफी शानदार हैं

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सरसों भारत की प्रमुख तिलहन फसल में से एक है। रबी की फसल होने की वजह से मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक सरसों की बिजाई कर देनी चाहिए। सरसों की फसल का शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए 15 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

सामान्यतः सरसों की खेती हर तरह की मृदा में की जा सकती है। परंतु , सरसों की शानदार पैदावार पाने के लिए एकसार और बेहतर जल निकासी वाली बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त रहती है। परंतु , यह लवणीय एवं बंजर भूमि नहीं होनी चाहिए।

सरसों के खेत की तैयारी कैसे करें

सरसों की खेती में भुरभुरी मृदा की आवश्यकता होती है , खेत को सबसे पहले मृदा पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए। इसके पश्चात दो से तीन जुताई देशी हल अथवाकल्टीवेटरके जरिए से करना चाहिए। इसकी जुताई करने के बाद खेत में नमी रखने के लिए व खेत समतल करने के लिए पाटा लगाना अति आवश्यक हैं। पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय व पानी दोनों की बचत होती है।

सरसों की बिजाई हेतु बीज की मात्रा

आपकी जानकारी के लिए बतादें , कि जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद हो वहां सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए। जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध ना हो वहां सरसों की बीज की मात्रा अलग हो सकती है। बतादें , कि बीज की मात्रा फसल की किस्म के आधार पर निर्भर करती है। यदि फसल की समयावधि ज्यादा दिनों की है , तो बीज की मात्रा कम लगेगी। यदि फसल कम समय की है तो बीज की मात्रा ज्यादा लगेगी।

सरसों की उन्नत किस्में

सरसों की खेती के लिए उसकी उन्नत किस्मों की जानकारी होनी भी जरूरी है , जिससे ज्यादा पैदावार हांसिल की जा सकें। सरसों की विभिन्न प्रकार की किस्में सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र के लिए भिन्न - भिन्न हैं।  

ये भी पढ़ें:
विभिन्न परिस्थितियों के लिए सरसों की उन्नत किस्में

  1. आर . एच (RH) 30 : सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र दोनो ही स्थितियों में गेहूं , चना एवं जौ के साथ बुवाई करने के लिए अच्छी होती हैं।
  2. टी 59 ( वरूणा ) : यह किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई के साधन की उपलब्धता नहीं होती हैं। इसकी उपज असिंचित क्षेत्र में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके दाने में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।
  3. पूसा बोल्ड : आशीर्वाद ( आर . के ) : यह किस्म देर से बुवाई के लिए (25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक ) उपयुक्त होती है।
  4. एन . आर . सी . एच . बी . (NRC HB) 101 : ये किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती हैं। ये किस्म 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन प्रदान करती हैं।

सरसों की फसल में सिंचाई कब और कैसे करें  

सरसों की फसल में पहली सिंचाई 25 से 30 दिन पर करनी चाहिए और दूसरी सिंचाई फलियाें में दाने भरने की अवस्था में करनी चाहिए। अगर जाड़े में वर्षा हो जाती है , तो दूसरी सिंचाई न भी करें तो भी अच्छी पैदावार हांसिल की जा सकती है। ख्याल रहे सरसों में फूल आने के समय खेत की सिंचाई नहीं करनी चाहिए।सरसों की फसल में सिंचाई सामान्यत : पट्टी विधि के माध्यम से करनी चाहिए। खेत के आकार के मुताबिक 4 से 6 मीटर चौड़ी पट्टी बनाकर सिंचाई करनी चाहिए। इस विधि से सिंचाई करने से पानी का वितरण संपूर्ण खेत में समान तौर पर होता है।

सरसों की खेती में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल   

आपकी जानकारी के लिए बतादें , कि जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद ना हों वहां के लिए 6 से 12 टन सड़े हुए गोबर की खाद , 160 से 170 किलोग्राम यूरिया , 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट ,50 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश और 200 किलोग्राम जिप्सम बुवाई से पहले खेत में मिलाना उपयुक्त होता है। यूरिया की आधी मात्रा बिजाई के समय और बची हुई आधी मात्रा पहली सिंचाई के उपरांत खेत में मिला दें। जिन खेतों में सिंचाई के उपयुक्त साधन ना हो वहां के लिए वर्षा से पूर्व 4 से 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद , 85 से 90 किलोग्राम यूरिया , 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट , 33 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करते समय खेत में डाल दें।

सरसों की खेती में खरपतवार का नियंत्रण

सरसों की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन के समयांतराल में खेत से घने पौधों को बाहर निकाल देना चाहिए। इसके साथ ही उनका आपसी फासला 15 सेंटीमीटर कर देना चाहिए। खरपतवार खत्म करने के लिए सरसों के खेत में निराई और गुड़ाई सिंचाई करने से पूर्व जरूर करनी चाहिए। खरपतवार नष्ट ना होने की स्थिति में दूसरी सिंचाई के पश्चात भी निराई व गुड़ाई करनी चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण करने के लिए बुवाई के शीघ्र पश्चात 2 से 3 दिन के अंदर पेंडीमेथालीन 30 ईसी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करना चाहिए।भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय ट्रैक्टरों की जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

सरसों की फसल कटाई एवं भंडारण

सरसों की फसल में जब 75% फलियां सुनहरे रंग की हो जाए , तब फसल को मशीन से अथवा हाथ से काटकर , सुखाकर अथवा मड़ाई करके बीज को अलग कर लेना चाहिए। सरसों के बीज जब बेहतरीन तरीके से सूख जाएं तभी उनका भंडारण करना चाहिये।

सरसों की खेती से उत्पादन

जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है वहां इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हैं। वहां 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन हांसिल हो सकता हैं।

सरसों का बाजार भाव और कमाई

केंद्र सरकार ने इस साल सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 150 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि कर 5200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव तय किया है। पिछले वर्ष सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये था। सरसों की बढ़ती मांग और उपलब्धता में कमी के कारण इस बार खुले बाजारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ज्यादा भाव मिल रहे हैं। खुले बाजारों में सरसों का 6500 से 9500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। किसान अपनी सरसों की फसल भारत की प्रमुख मंडियों में जहां कीमत ज्यादा हो , वहां अपनी फसल विक्रय कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सीधे तेल प्रोसेसिंग कंपनियों से संम्पर्क करके सीधे कंपनियों को भी बेचा जा सकता है। वहीं किसान खुले बाज़ार में व्यापारियों को भी अपनी फसल बेच सकते हैं। बतादें , कि इस साल सरसों की फसल ने किसानों को अच्छे दाम दिलाए हैं। किसानों को आगे भी सरसों के अच्छे भाव मिलने की आशा है।

Ad