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पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

बीपीएनएल के ओर से सर्वे इंचार्ज एवं सर्वेयर पद पर अच्छी खासी संख्या में भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 वहीं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड में बंपर भर्ती निकली है। यदि आप सरकारी नौकरी करना चाहते हैं एवं पशुपालन में आपकी रुचि है तो ये भर्ती आपके लिए ही है। सबसे खास बात यह है, कि इस भर्ती में 10वीं पास लोग भी हिस्सा ले सकते हैं। जो भी इच्छुक उम्मीदवार इस भर्ती परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उनको 5 जुलाई से पूर्व इस परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म भरना पड़ेगा। इस भर्ती से जुड़ी समस्त जानकारी आपको बीपीएनएल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्राप्त हो जाएगी।

भर्ती हेतु आवेदनकर्ता पर क्या-क्या होना चाहिए

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड मतलब कि बीपीएनएल द्वारा सर्वे इंचार्ज और सर्वेयर पद पर बंपर भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 एवं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जो लोग भी सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करना चाहते हैं, उन उम्मीदवारों की आयु सीमा 21 से 40 वर्ष के मध्य होनी अति आवश्यक है। इसके साथ ही उनके पास भारत के किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज से 12वीं पास का रिजल्ट भी होना अनिवार्य है। वहीं, सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार इच्छुक हैं, उनकी आयु सीमा 18 से 40 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। साथ ही, उनके पास 10वीं पास का रिजल्ट अवश्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है, कि इस भर्ती के लिए केवल 10वीं अथवा 12वीं पास लोग ही आवेदन कर सकते हैं। यदि आप इससे अधिक पढ़े लिखे हैं, तब भी आप इस भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह भी पढ़ें: इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

भर्ती परीक्षा हेतु कितनी फीस तय की गई है

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड की भर्ती परीक्षा की फीस की बात की जाए तो सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करने के लिए उम्मीदवारों को 944 रुपये की फीस जमा करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार आवेदन करना चाहते हैं, उनकी फीस 826 रुपये निर्धारित की गई है। समस्त उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन टेस्ट एवं इंटरव्यू के अनुसार होगा। सबसे खास बात यह है, कि आवेदन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और अंतिम तिथि 5 जुलाई 2023 है।
बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

हाल ही में राजस्थान के जयपुर में FICCI और कॉर्टेवा एग्रीसाइंस द्वारा राजस्थान सरकार के लिए मिलेट रोडमैप कार्यक्रम आयोजित किया। जिसका प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति का भारतभर में प्रदर्शन करना है। फिक्की द्वारा कोर्टेवा एग्रीसाइंस के साथ साझेदारी में 19 मई 2023, शुक्रवार के दिन जयपुर में मिलेट कॉन्क्लेव - 'लीवरेजिंग राजस्थान मिलेट हेरिटेज' का आयोजन हुआ। दरअसल, इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति को प्रदर्शित करना है। विभिन्न हितधारकों के मध्य एक सार्थक संवाद को प्रोत्साहन देना है। जिससे कि राजस्थान को बाजरा हेतु एक प्रमुख केंद्र के तौर पर स्थापित करने के लिए एक भविष्य का रोडमैप तैयार किया जा सके। इसी संबंध में टास्क फोर्स के अध्यक्ष के तौर पर कॉर्टेवा एग्रीसाइंस बाजरा क्षेत्र की उन्नति व प्रगति में तेजी लाने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा बाजरा रोडमैप कवायद का नेतृत्व किया जाएगा।

इन संस्थानों एवं समूहों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया

कॉन्क्लेव में कृषि व्यवसाय आतिथ्य एवं पर्यटन, नीति निर्माताओं, प्रसिद्ध शोध संस्थानों के प्रगतिशील किसानों, प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पैनलिस्टों ने बाजरा मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण करने एवं एक प्रभावशाली हिस्सेदारी को उत्प्रेरित करने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने पर विचार-विमर्श किया। चर्चा में उन फायदों और संभावनाओं की व्यापक समझ उत्पन्न करने पर भी चर्चा की गई। जो कि बाजरा टिकाऊ पर्यटन और स्थानीय समुदायों की आजीविका दोनों को प्रदान कर सकता है। ये भी देखें: IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

श्रेया गुहा ने मिलेट्स के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त किए

श्रेया गुहा, प्रधान सचिव, राजस्थान सरकार का कहना है, कि राजस्थान को प्रत्येक क्षेत्र में बाजरे की अपनी विविध रेंज के साथ, एक पाक गंतव्य के तौर पर प्रचारित किया जाना चाहिए। पर्यटन उद्योग में बाजरा का फायदा उठाने का बेहतरीन अवसर है। इस दौरान आगे उन्होंने कहा, "स्टार्टअप और उद्यमियों के लिए बाजरा का उपयोग करके विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लक्षित करके नवीन व्यंजनों और उत्पादों को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। बाजरा दीर्घकाल से राजस्थान के पारंपरिक आहार का एक अभिन्न भाग रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं राजस्थान 'बाजरा' का प्रमुख उत्पादक राज्य है। बाजरा को पानी और जमीन सहित कम संसाधनों की जरूरत पड़ती है। जिससे वह भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद उत्पाद बन जाता है। जितेंद्र जोशी, चेयरमैन, फिक्की टास्क फोर्स ऑन मिलेट्स एंड डायरेक्टर सीड्स, कोर्टेवा एग्रीसाइंस - साउथ एशिया द्वारा इस आयोजन पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है, कि "राजस्थान, भारत के बाजरा उत्पादन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता के रूप में, अंतरराष्ट्रीय वर्ष में बाजरा की पहल की सफलता की चाबी रखता है। आज के मिलेट कॉन्क्लेव ने राजस्थान की बाजरा मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने के रोडमैप पर बातचीत करने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए एक मंच के तौर पर कार्य किया है। यह व्यापक दृष्टिकोण राज्य के बाजरा उद्योग हेतु न सिर्फ स्थानीय बल्कि भारतभर में बड़े अच्छे अवसर उत्पन्न करेगा। इसके लिए बाजरा सबसे अच्छा माना गया है।

वर्षा पर निर्भर इलाकों के लिए कैसी जलवायु होनी चाहिए

दरअसल, लचीली फसल, किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी और संपूर्ण भारत के लिए पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराते हुए टिकाऊ कृषि का समर्थन करना। इसके अतिरिक्त बाजरा कृषि व्यवसायों हेतु नवीन आर्थिक संभावनाओं के दरवाजे खोलता है। कोर्टेवा इस वजह हेतु गहराई से प्रतिबद्ध है और हमारे व्यापक शोध के जरिए से राजस्थान में जमीनी कोशिशों के साथ, हम किसानों के लिए मूल्य जोड़ना सुचारू रखते हैं। उनकी सफलता के लिए अपने समर्पण पर अड़िग रहेंगे। ये भी देखें: भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र बाजरा मूल्य श्रृंखला में कॉर्टेवा की कोशिशों में संकर बाजरा बीजों की पेशकश शम्मिलित है, जो उनके वर्तमानित तनाव प्रतिरोध को बढ़ाते हैं। साथ ही, 15-20% अधिक पैदावार प्रदान करते हैं। साथ ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करते हैं एवं अंततः किसान उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाते हैं। जयपुर में कोर्टेवा का इंडिया रिसर्च सेंटर बरसाती बाजरा, ग्रीष्म बाजरा और सरसों के प्रजनन कार्यक्रम आयोजित करता है। "प्रवक्ता" जैसे भागीदार कार्यक्रम के साथ कोर्टेवा का उद्देश्य किसानों को सभी फसल प्रबंधन रणनीतियों, नए संकरों में प्रशिक्षित और शिक्षित करने के लिए प्रेरित करना है। उनको एक सुनहरे भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले बाकी किसान भाइयों को प्रशिक्षित करने में सहयोग करने हेतु राजदूत के रूप में शक्तिशाली बनाना है। इसके अतिरिक्त राज्य भर में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय बाजरा महोत्सव का उद्देश्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं को बाजरा के पारिस्थितिक फायदे एवं पोषण मूल्य पर बल देना है। कंपनी बाजरा किसानों को प्रौद्योगिकी-संचालित निराकरणों के इस्तेमाल के विषय में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना बरकरार रखे हुए हैं, जो उन्हें पैदावार, उत्पादकता और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ाने में सशक्त बनाता है।

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस कृषि क्षेत्र में क्या भूमिका अदा करती है

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस (NYSE: CTVA) एक सार्वजनिक तौर पर व्यवसाय करने वाली, वैश्विक प्योर-प्ले कृषि कंपनी है, जो विश्व की सर्वाधिक कृषि चुनौतियों के लिए फायदेमंद तौर पर समाधान प्रदान करने हेतु उद्योग-अग्रणी नवाचार, उच्च-स्पर्श ग्राहक जुड़ाव एवं परिचालन निष्पादन को जोड़ती है। Corteva अपने संतुलित और विश्व स्तर पर बीज, फसल संरक्षण, डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के विविध मिश्रण समेत अपनी अद्वितीय वितरण रणनीति के जरिए से लाभप्रद बाजार वरीयता पैदा करता है। कृषि जगत में कुछ सर्वाधिक मान्यता प्राप्त ब्रांडों एवं विकास को गति देने के लिए बेहतर ढ़ंग से स्थापित एक प्रौद्योगिकी पाइपलाइन सहित कंपनी पूरे खाद्य प्रणाली में हितधारकों के साथ कार्य करते हुए किसानों के लिए उत्पादकता को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि, यह उत्पादन करने वालों के जीवन को बेहतर करने के अपने वादे को पूर्ण करती है। साथ ही, जो उपभोग करते हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्नति एवं विकास सुनिश्चित करते हैं। इससे संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए आप www.corteva.com पर भी विजिट कर सकते हैं।
योगी सरकार मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर रही है

योगी सरकार मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर रही है

उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में मक्के की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए नई योजना लागू करने जा रही है। इस योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में 2 लाख हेक्टेयर गन्ने का क्षेत्रफल बढ़ेगा और 11 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा मक्के की उपज हांसिल होगी। 

इसके अतिरिक्त योजना के अंतर्गत किसी एक लाभार्थी को ज्यादा से ज्यादा दो हेक्टेयर की सीमा तक सब्सिडी दी जाएगी। 

योगी सरकार संकर मक्का, पॉपकार्न मक्का और देसी मक्का पर 2400 रुपये अनुदान दिया जा रहा है। साथ ही, बेबी मक्का पर 16000 रुपये और स्वीट मक्का पर 20000 रुपये प्रति एकड़ का अनुदान इस योजना के अंतर्गत दिया जाएगा।

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आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि यूपी सरकार की यह योजना 4 सालों के लिए होगी। कैबिनेट की बैठक में कृषि विभाग की ओर से पिछले दिनों में ही इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जिसके बाद इस योजना को संचालित किए जाने का शासनादेश जारी कर दिया गया है।

जानिए किन जिलों के किसान भाई होंगे लाभांवित 

यदि मुख्य सचिव कृषि डॉ. देवेश चतुर्वेदी द्वारा जारी शासनादेश के मुताबिक, इस योजना को राज्य के समस्त जनपदों में चलाया जाएगा। 

परंतु, राज्य के 13 जनपदों में- बहराइच, बुलंदशहर, हरदोई, कन्नौज, गोण्डा, कासगंज, उन्नाव, एटा, फर्रुखाबाद, बलिया और ललितपुर जो कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत मक्का फसल के लिए चयनित हैं। 

इन जिलों में इस योजना के वह घटक जैसे-संकर मक्का प्रदर्शन, संकर मक्का बीज वितरण और मेज सेलर को क्रियान्वित नहीं किया जाएगा। क्योंकि ये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना में भी शामिल है।

खाघान्न में तीसरे स्थान पर मक्के की फसल

दरअसल, खाद्यान्न फसलों में गेहूं और धान के पश्चात मक्का तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है। 

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आज के समय में भारत के अंदर मक्के का इस्तेमाल मुख्य तौर पर खाद्य सामग्री के अतिरिक्त पशु चारा, पोल्ट्री चारा और प्रोसेस्ड फूड आदि के तोर पर भी किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त मक्का का उपयोग एथेनॉल उत्पादन में कच्चे तेल पर निर्भरता को काफी कम कर रहा है।

खरीफ सत्र में कितने मी.टन मक्के की पैदावार दर्ज हुई है 

बतादें, कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022-23 के खरीफ सत्र में 6.97 लाख हेक्टेयर में 14.56 लाख मी.टन मक्के का उत्पादन हुआ था। वहीं, रबी सत्र में 0.10 लाख हेक्टेयर में 0.28 मी.टन और जायद में 0.49 लाख हेक्टेयर में 1.42 लाख मी.टन मक्के की उपज हुई थी।

इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

सरसों की खेती करने वाले हरियाणा के किसानों के लिए एक खुशखबरी है। राज्य के मुख्य सचिव संजीव कौशल का कहना है, कि रबी सीजन के दौरान सरकार किसानों की सरसों, चना, सूरजमुखी व समर मूंग की निर्धारित एमएसपी पर खरीद करेगी। साथ ही, मार्च से 5 जनपदों में उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सूरजमुखी तेल की आपूर्ति की जाएगी।

मुख्य सचिव ने फसलों के उत्पादन को लेकर क्या कहा है ?

एक बैठक में मुख्य सचिव ने कहा कि इस सीजन में 50 हजार 800 मीट्रिक टन सूरजमुखी, 14 लाख 14 हजार 710 मीट्रिक टन सरसों, 26 हजार 320 मीट्रिक टन चना और 33 हजार 600 मीट्रिक टन समर मूंग की पैदावार होने की उम्मीद है। मुख्य सचिव ने बताया कि हरियाणा राज्य वेयरहाउसिंग कारपोरेशन, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग व हैफेड मंडियों में सरसों, समर मूंग, चना और सूरजमुखी की खरीद प्रारंभ करने के लिए तैयारियां शुरू करने के आदेश भी दिए हैं।

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सरकार कब से सरसों की खरीद चालू करेगी 

सरकार मार्च के अंतिम सप्ताह में 5 हजार 650 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सरसों की खरीद चालू करेगी। इसी प्रकार 5 हजार 440 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों का चना खरीदा जाएगा। 15 मई से 8 हजार 558 रुपये प्रति क्विंटल की दर से समर मूंग की खरीद होगी। इसी प्रकार एक से 15 जून तक 6760 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से सूरजमुखी की खरीद होगी।

लापहरवाही करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा 

मुख्य सचिव ने खरीद प्रक्रिया के दौरान किसानों की सुविधा के लिए अधिकारियों को समस्त आवश्यक प्रबंध करने एवं खरीदी गई पैदावार का तीन दिन के अंदर भुगतान करने के लिए कहा है। साथ ही, उन्होंने कहा कि काम में लापरवाही करने वालों को बिल्कुल बख्शा नहीं जाएगा। इस फैसले से किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य भी मिल जाएगा।

इस राज्य सरकार ने गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया भुगतान करने के लिए जारी किए 450 करोड़

इस राज्य सरकार ने गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया भुगतान करने के लिए जारी किए 450 करोड़

गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के लिए यह धनराशि सहकारी चीनी मिलों पर कर्ज के तौर पर पहले से लंबित थी। इसलिए गन्ना उत्पादक किसान लंबे समय से बकाया धनराशि का भुगतान किए जाने की लगातार मांग कर रहे थे। उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादक किसानों लिए एक अच्छा समाचार है। शीघ्र ही राज्य के हजारों गन्ना उत्पादक कृषकों के खाते में बकाया राशि पहुंचने वाली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा गन्ना बकाया का भुगतान करने का आदेश दे दिया है। विशेष बात यह है, कि इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 450 करोड़ रुपये की राशि जारी भी कर दी गई है। साथ ही, इस खबर से किसानों के मध्य प्रशन्नता की लहर है। किसानों का यह कहना है, कि फिलहाल वह बकाया धनराशि के पैसे से वक्त पर खरीफ फसलों की खेती बेहतर ढ़ंग से कर पाऐंगे।

किसानों ने ली चैन की साँस

मीडिया खबरों के अनुसार, गन्ना किसानों के बकाया भुगतान हेतु यह राशि सहकारी चीनी मिलों पर कर्ज के तौर पर पहले से लंबित थी। ऐसी स्थिति में गन्ना उत्पादक किसान लंबे वक्त से बकाया धनराशि का भुगतान किए जाने की मांग कर रहे थे। अब ऐसी स्थिति में धान की बुवाई आरंभ होने से पूर्व सरकार के इस निर्णय से किसान भाइयों ने राहत भरी सांस ली है।

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यह राज्य सरकार बकाये गन्ना भुगतान के निराकरण के बाद अब गन्ने की पैदावार में इजाफा करने की कोशिश में जुटी

गन्ने की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि संपूर्ण भारत में सर्वाधिक गन्ने का उत्पादन उत्तर प्रदेश में किया जाता है। फसल सीजन 2022-23 में 28.53 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती की गई। साथ ही, यूपी के उपरांत गन्ना उत्पादन के संबंध में महाराष्ट्र द्वितीय स्थान पर है। यहां पर गन्ने का क्षेत्रफल 14.9 लाख हेक्टेयर है। ऐसी स्थिति में हम कहा जा सकता है, कि उत्तर प्रदेश अकेले 46 प्रतिशत क्षेत्रफल में गन्ने की खेती करता है। उधर महाराष्ट्र की देश के कुल गन्ने के क्षेत्रफल में 24 फीसद भागीदारी है। हालांकि, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार और हरियाणा में भी किसान बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती करते हैं।

गन्ना उत्पादक किसानों को कितने करोड़ का भुगतान किया जा चुका है

उत्तर प्रदेश सरकार का यह कहना है, कि प्रदेश में सरकार बनने के बाद से अभी तक वह गन्ना उत्पादक किसानों को 2 लाख 11 हजार 350 करोड़ का भुगतान कर चुकी है। इससे 46 लाख गन्ना किसानों के खाते में भुगतान राशि भेजी जा चुकी है। सरकार का यह भी दावा है, कि वह देश में गन्ना किसानों का भुगतान करने में सबसे अग्रणीय है। बतादें, कि यूपी में पेराई सत्र 2022-23 के समय कृषकों से 350 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ना खरीदा गया है। उधर सामान्य किस्म के गन्ने का भाव 340 रुपये और क्वालिटी प्रभावित गन्ने का भाव 335 रुपये प्रति क्विंटल रहा है।
केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्र सरकार की तरफ से गेहूं खरीदी चालू कर दी गई है। साथ ही, मार्च में हुई बारिश से अधिकांश किसानों का गेहूं भीग गया था। केंद्र सरकार द्वारा नवीन नियमोें के अंतर्गत 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं खरीदने की छूट दी प्रदान की गई है।

भारत के विभिन्न राज्यों में गेहूं की कटाई चालू हो चुकी है। कटाई के उपरांत मौसम को ध्यान में रखते हुए किसान शीघ्र ही मंडी में गेहूं बेचने के लिए जा रहे हैं। साथ ही, हाल में हुई बारिश और ओलावृष्टि से किसानों का काफी गेहूं भीग गया था।

किसान चिंतिति थे, कि भीगे गेहूं को किस प्रकार मंडी में विक्रय किया जाए। वर्तमान में उसी को लेके केंद्र सरकार की तरफ से कदम पहल की जा रही है। 

गेहूं खरीद को लेकर भीगे गेहूं के लिए जो नियम सख्त थे। अब केंद्र सरकार द्वारा उनमें काफी राहत दे दी गई है। किसानों को गेहूं बेचने के लिए ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।

केंद्र के स्तर से कई राज्यों में भीगे गेंहू खरीदी पर राहत

मार्च माह में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि से पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में गेहूं की फसल को काफी मोटी हानि पहुंची थी। किसानों का गेहूं काफी ज्यादा भीग गया था। 

राज्य के किसान केंद्र सरकार से गेहूं खरीद में सहूलियत देने की मांग कर रहे थे। अब तीनों राज्यों के लिए केंद्र सरकार के स्तर से गेहूं खरीद हेतु बनाए गए नियमों में ढ़िलाई की गई है। इसका यह अर्थ है, कि किसान वर्षा से प्रभावित गेहूं को भी एमएसपी पर विक्रय कर पाएंगे।

कितने फीसद तक भीगा गेंहू खरीदेंगी गेंहू एजेंसियां

गेहूं खरीद के संदर्भ में केंद्र सरकार काफी चिंतित है। केंद्र सरकार का यह प्रयास रहा है, कि विगत वर्ष के सापेक्ष में किसी भी परिस्थिति में गेहूं की खरीद न हो पाए। 

इस वजह से सरकार का प्रयास है, कि जैसा भी गेहूं मंडियों में बिक्री के लिए पहुंच रहा है। उसको किसानों से खरीद लिया जाए। नवीन नियमों के अंतर्गत एफसीआई और बाकी एजेंसियों से कहा गया है, कि 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं एजेंसियों द्वारा खरीदा जा सकता है। 

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लाखों हेक्टेयर गेहूं की फसल हुई प्रभावित

एक आंकड़ें के मुताबिक, इस वर्ष मार्च में हुई वर्षा से भारत भर में 11 लाख हेक्टेयर में बोई गई गेहूं की फसल प्रभावित हुई है। इससे 1.82 लाख किसान प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। 

फिलहाल, केंद्र सरकार द्वारा राजस्थान में 20 फीसद के भीगे गेहूं के अनुरूप खरीद के लिए कहा गया है। मध्य प्रदेश सरकार भी इसी नियम के आधार पर कार्य कर रही है। वहां भी काफी राहत प्रदान कर दी गई है।

विगत वर्ष की तुलना में गेंहू खरीदी का लक्ष्य कम

देश में गेहूं खरीद शुरू कर दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा रबी मार्केर्टिंग सीजन 2023-24 में 341.50 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जबकि विगत वर्ष यह लक्ष्य 444 लाख मिट्रिक टन था। 

इस बार गेहूं खरीद में अच्छी खासी गिरावट आ रही है। ऐसे में कम गेहूं खरीद से खुद केंद्र सरकार परेशान है। घरेलू खपत का प्रबंधन करना भी केंद्र सरकार के लिए चुनौती होगा।

 इस राज्य में पान की खेती के लिए 50% प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है

इस राज्य में पान की खेती के लिए 50% प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है

पान का स्वाद बहुत लोगों को पसंद होता है। पान के लोकप्रिय होने की वजह से बिहार सरकार ने मगही पान की खेती के लिए अनुदान देने की घोषणा की है। मगही पान की खेती की अगर हम कुल लागत की बात करें तो वह 70,500 रु होती है। इसके लिए 50% प्रतिशत मतलब कि 32,250 रुपये का अनुदान सरकार की तरफ से मिलेगा। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत में कृषकों को लेकर सरकार भिन्न भिन्न तरह की योजनाएं चलाती है। इससे कृषकों भाइयों को काफी लाभ दिया जा सके। कृषकों के लिए सरकार विभिन्न प्रकार की फसलों पर सब्सिडी की सुविधा मुहैय्या कराती है। बिहार राज्य में खेती करने वाले कृषकों के लिए बिहार सरकार ने एक काफी बड़ी सौगात दी है। बिहार में पान को लेकर काफी ज्यादा रूचि देखी जाती है। इसके चलते बिहार सरकार ने पान की खेती के लिए अनुदान देने की घोषणा कर दी है। पान की खेती के लिए सरकार द्वारा इस प्रकार सब्सिड़ी मिलेगी।

पान की खेती पर मिलेगा 32,250 रुपये तक अनुदान

पान को एक प्राकृतिक माउथ फ्रेशनर कहा जाता है। सामान्य तौर पर संपूर्ण भारत में काफी पान के शौकीन हैं। लेकिन बिहार राज्य की बात कुछ हटकर है। बिहार राज्य का मगही पान कुछ ज्यादा ही मशहूर है। इसको जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन का टैग भी हांसिल हो चुका है। बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग होती है।

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इन्ही सब बातों को मन्देनजर रखते हुए बिहार सरकार ने मगही पान की खेती के लिए अनुदान देने की घोषणा कर दी है। मगही पान की खेती की कुल लागत 70,500 रु के आसपास होती है। अब इसके लिए 50 प्रतिशत का अनुदान सरकार की तरफ से मिलेगा। मतलब कि कोई अगर मगही पान की खेती करता है तो उसको 32,250 रुपये तक की सब्सिडी बिहार सरकार की तरफ से प्रदान की जाऐगी।

किसान भाई इस योजना का कैसे लाभ उठा सकते हैं ?

किसानों को विशेष फसल योजना के अंतर्गत बिहार सरकार के कृषिमंत्रालय के विभाग ने मगही पान के लिए अनुदान देने की घोषणा कर दी है। बिहार सरकार द्वारा वर्तमान में संचालित इस योजना के अंतर्गत अनुदान का लाभ लेने के लिए आधिकारिक वेबसाइट https://horticulture.bihar.gov.in पर जाऐं।  बतादें कि इसके पश्चात पान विकास योजना पर क्लिक करें। अब इसके बाद आवेदन करें लिंक पर क्लिक करें। इसके उपरांत समस्त आवश्यक डीटेल्स भरने के पश्चात आवेदन सबमिट कर सकते हैं।

ग्लैमर की चकाचौंध को छोड़ 5 साल से खेती कर रहे मशहूर एक्टर की दिलचस्प कहानी

ग्लैमर की चकाचौंध को छोड़ 5 साल से खेती कर रहे मशहूर एक्टर की दिलचस्प कहानी

आपने ये तो बहुत बार सुना और पढ़ा होगा कि किसी ने अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर खेती किसानी शुरू की। लेकिन, क्या आपने सुना है, कि कोई टीवी एक्टर अपने ग्लेमर के पीक पर पहुंचकर खेती किसानी का रुख करे। जी हाँ, आज हम आपको एक ऐसे ही मशहूर एक्टर की कहानी सुनाऐंगें, जिसने कि अपने कामयाब एक्टिंग करियर को छोड़कर किसान बनने का फैसला लिया। उन्होंने खुद इसके पीछे की वजह का चौंकाने वाला खुलासा किया है। 

एक्टिंग को ग्लैमर की दुनिया भी कहा जाता है और अगर कोई इस दुनिया में रच-बस जाए तो उसका इससे बाहर निकलना काफी कठिन हो जाता है। लेकिन एक एक्टर ऐसा भी है, जिसने एक्टिंग में एक कामयाब करियर होने के बावजूद इस दुनिया को अलविदा कह दिया और किसान बनकर खेती करने लगा। इस एक्टर ने पांच सालों तक गांव में रहकर खेती की और फसल उगाई।

ग्लैमर की दुनिया से खेती का रुख 

ग्लैमर की दुनिया छोड़ किसान बनने वाले इस एक्टर का नाम राजेश कुमार है। राजेश ने 'साराभाई वर्सेज साराभाई' में रोसेश बनकर खूब नाम कमाया। इसके अलावा वे 'यम किसी से कम नहीं', 'नीली छतरी वाले', 'ये मेरी फैमिली' जैसे शो में दिखाई दिए और अब हाल ही में रिलीज हुई फिल्म तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया में दिखाई दिए हैं। लेकिन इससे पहले राजेश 5 सालों तक बिहार में खेती करते रहे।

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मैं अगली पीढ़ी के लिए क्या कर रहा हूं?

मीडिया एजेंसी को दिए एक इंटरव्यू में राजेश ने कहा- '2017 में, टीवी पर मैं अपने एक्टिंग करियर की ऊंचाईयों पर था, जब मैंने खेती करने का फैसला किया। जब मैं टीवी करने का पूरा लुत्फ उठा रहा था, तो मेरा दिल मुझसे लगातार पूछ रहा था कि एंटरटेनमेंट के कुछ टेप छोड़ने के अलावा, मैं अगली पीढ़ी के लिए क्या कर रहा हूं?'

राजेश ने किस वजह से एक्टिंग से ब्रेक लिया ?

ग्लैमर की दुनिया छोड़ किसान का पेशा अपनाने के बारे में पूछने पर राजेश ने कहा, 'मैं समाज में योगदान देने के लिए कुछ खास या एक्स्ट्रा नहीं कर रहा था। मेरे बच्चे मुझे कैसे याद रखेंगे? एक्टिंग आपने अपने लिए की, अपनी सेफ्टी के लिए की, अपनी कमाई के लिए की। मैंने मन में सोचा कि मैं अपने पीछे कोई कदमों के निशान कैसे छोड़ूंगा? तभी मैं अपने होम टाउन वापस गया और फसलें उगाईं।'

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खेती करने के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया 

राजेश कुमार ने आगे कहा कि जब पांच साल तक वे खेती करते रहे तो कई आउटलेट्स ने कहा कि उन्होंने किसान बनने के लिए एक्टिंग छोड़ दी या फिर उनके पास पैसे नहीं थे। हालांकि, उन्होंने इस दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और अपनी एजुकेशन के बलबूते सभी मुश्किलों से बाहर आ पाए। 

बाजार भेजने से पूर्व केले को कैसे तैयार करें की मिले अधिकतम लाभ?

बाजार भेजने से पूर्व केले को कैसे तैयार करें की मिले अधिकतम लाभ?

आभासी तने से केले की कटाई के उपरांत , केले को बंच से अलग अलग हथ्थे में अलग करते है। इसके बाद इन हथ्थों को फिटकरी के पानी की टंकी में डालें @ 1 ग्राम फिटकरी प्रति 2.5 लीटर पानी की दर से मिलाते है। केले के इन हथ्थों को लगभग 3 मिनट के लिए डुबाने के बाद निकल लें। फिटकरी के घोल की वजह से केले के छिलकों के ऊपर के प्राकृतिक मोम हट जाती है एवं साथ साथ फल के ऊपर लगे कीड़ों के कचरे भी साफ हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक कीटाणुनाशक के रूप में कार्य करता है। इसके बाद दूसरे टैंक में एंटी फंगल लिक्विड हुवा सान (Huwa San), जिसके अंदर लिक्विड सिल्वर कंपोनेंट्स के साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड होता है जो एंटीफंगल के रूप में काम करता है,जो फंगस को बढ़ने नहीं देता है।

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विदेशों में बढ़ी देसी केले की मांग, 327 करोड़ रुपए का केला हुआ निर्यात हुवा सान एक बायोसाइड है एवं सभी प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस, खमीर, मोल्ड और बीजाणु बनाने वालों के खिलाफ प्रभावी है। लीजियोनेला न्यूमोफिला के खिलाफ भी प्रभावी है। पर्यावरण के अनुकूल - व्यावहारिक रूप से पानी और ऑक्सीजन के लिए 100% अपघट्य हो जाता है। इसके प्रयोग से गंध पैदा नहीं होता है , उपचारित खाद्य पदार्थों के स्वाद को नहीं बदलता है। बहुत अधिक पानी के तापमान पर भी प्रभावशीलता और दीर्घकालिक प्रभाव देखे जाते हैं। अनुशंसित खुराक दर पर खपत के लिए सुरक्षित के रूप में मूल्यांकन किया गया। कोई कार्सिनोजेनिक या उत्परिवर्तजन प्रभाव नहीं, अमोनियम-आयनों के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता है। इसे लम्बे समय तक भंडारित किया जा सकता है। 3% अनुशंसित दर पर प्रयोग करने से किसी भी प्रकार का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है। इस घोल में केला के हथ्थों को 3 मिनट के लिए डूबाते है। हुवा सान @ 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर , घोल बनाते है। इस तरह से 500 लीटर पानी के टैंक में 250 मिलीलीटर हुवा सैन तरल डालते है । इन घोल से केले को निकालने के बाद केले से अतिरिक्त पानी निकालने के लिए केले को उच्च गति वाले पंखे से अच्छे ड्रेनेज फ्लोर पर जाली की सतह पर रखें। इस प्रकार से केले की प्रारंभिक तैयारी करते है। विशेष तौर से तैयार डिब्बों में पैक करते है। इस प्रकार से तैयार केलो को आसानी से दुरस्त या विदेशी बाज़ार में भेजते है।

हुवा-सैन क्या है?

हाइड्रोजन पेरोक्साइड और सिल्वर स्टेबलाइजर के संयोजन की प्रक्रिया दुनिया भर में अद्वितीय है और मूल हुवा-सैन तकनीक पर आधारित है, जिसे पिछले 15 वर्षों में रोम टेक्नोलॉजी में और विकसित किया गया था।

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यह तकनीक अद्वितीय है क्योंकि पेरोक्साइड को स्थिर करने के लिए एसिड जैसे किसी अन्य स्थिरीकरण एजेंट की आवश्यकता नहीं होती है। यह सब Huwa-San Technology के उत्पादों को गैर-अवशिष्ट और अत्यंत शक्तिशाली कीटाणुनाशक बनाता है।हुवा-सैन एक वन स्टॉप बायोसाइडल उत्पाद है जो बैक्टीरिया, कवक, खमीर, बीजाणुओं, वायरस और यहां तक ​​कि माइकोबैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी है और इसलिए इस उत्पादों को वाष्पीकरण के माध्यम से पानी, सतहों, औजारों और यहां तक ​​कि बड़े खाली क्षेत्रों को कीटाणुरहित करने के लिए कई क्षेत्रों में उपयोग किया जा सकता है। पिछले 15 वर्षों में, हुवा-सैन उत्पादों का प्रयोगशाला पैमाने पर और दुनिया भर में कई फील्ड परीक्षणों पर बड़े पैमाने पर परीक्षण किया गया था। तकनीकी ज्ञान के साथ हुवा-सैन के व्यापक अनुप्रयोग स्पेक्ट्रम के भीतर जानकारी की प्रचुरता विश्वव्यापी सफलता की कुंजी रही है। Huwa-San को लैब और फील्ड टेस्ट सेटिंग्स में पूरी तरह से शोध और विकसित किया गया है ,यह पूर्णतया सुरक्षित है और ये नतीजतन, हुवा-सैन उत्पाद कीटाणुशोधन के लिए नवीनतम मानकों को पूरा करते हैं ।

पराली जलाने की समस्या से कैसे निपटा जाए?

पराली जलाने की समस्या से कैसे निपटा जाए?

हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं. इस कचरे को पराली कहा जाता है. इसे खेत में जलाने से ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है. किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुआई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है. पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प ना होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है. खरीफ फसलों (मुख्यतः धान) को हाथों से काटने और फसल अवशेष का पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित तरीके से निपटान करने के काम में ना केवल ज्यादा समय लगता है बल्कि श्रम लागत भी अधिक हो जाती है. इससे कृषि का लागत मूल्य काफी बढ़ जाता है और किसान को घाटा होता है. इसलिए इस स्थिति से बचने के लिए और रबी की फसल की सही समय पर बुआई के लिए किसान अपने फसल के अवशेष को जलाना बेहतर समझते हैं. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के एक अध्ययन के मुताबिक उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को हर साल लगभग दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सर्दियों में बढ़ने वाले दम घोंटू प्रदूषण की एक बड़ी वजह पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली का जलाया जाना है. अकेले पंजाब में ही अनुमानित तौर पर 44 से 51 मिलियन मेट्रिक टन पराली जलायी जाती है. इससे होने वाला प्रदूषण हवाओं के साथ दिल्ली-एनसीआर में पहुंच जाता है. अध्ययन के मुताबिक केवल धान के अवशेष को जलाने से ही 2015 में भारत में 66,200 मौतें हुईं. इतना ही नहीं, अवशेष जलने से मिट्टी की उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ा. साथ ही, इससे पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैस की वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है.

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गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण सवाल उठता है कि पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए क्या व्यावहारिक उपाय किए जाएं. इसके लिए सरकार ने लोगों को जागरुक करने की कोशिश की है. सरकार ने सब्सिडी संबंधी पहल की है लेकिन अब तक नतीजा सिफर रहा है. इसलिए इस दिशा में ठोस प्रयास करने की जरूरत है. इसपर हम क्रमवार तरीके से चर्चा कर सकते हैं. कृषि क्षेत्र में क्रांति की जरूरत:  पराली को जलाने की बजाए उसका इस्तेमाल कम्पोस्ट खाद बनाने में किया जा सकता है. किसान धान की पुआल जलाने की जगह इस पुआल को मवेशियों के चारा, कंपोस्ट खाद बनाने और बिजली घरों में ईधन के रूप में इस्तेमाल करके लाभ कमा सकते हैं. इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ेगी और खाद वगैरह पर होने वाले खर्च में भी कटौती होगी. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुआल को खेत में बिना जलाए छोड़ दिया जाए तो यह खेत को फायदा पहुंचाएगा. पुआल खेत की नमी को सूखने से रोकता है. यह कीड़े-मकोड़ों से भी खेत को बचाता है और खेत में सड़कर उर्वरक का काम करता है. साथ ही फसल अवशेषों और दूसरे जैविक कचरे का कम्पोस्ट खाद बनाकर उसका उचित प्रबंधन किया जा सकता है. इससे जहां मिट्टी को जरूरी पौषक तत्व मिलेंगे, उसकी उर्वराशक्ति बनी रहेगी, पौषक तत्वों की हानि नहीं होगी और वातावरण शुद्ध रहेगा. कई ऐसी तकनीकें मौजूद हैं, जो पराली को जलाने के बजाय उसके बेहतर प्रबंधन में मददगार हो सकती हैं. हैप्पी सीडर एक ऐसी ही मशीन है जिसे ट्रैक्टर पर लगाकर गेहूं की बुआई की जाती है. गेहूं की बुआई से पहले कम्बाइन हार्वेस्टर से धान की कटाई के बाद बचे पुआल को इसके लिए हटाने की जरूरत नहीं पड़ती. परंपरागत बुवाई के तरीकों की तुलना में हैप्पी सीडर के उपयोग से 20 प्रतिशत अधिक लाभ हो सकता है. वैकल्पिक इस्तेमाल को बढ़ावा देना:  पराली का इस्तेमाल अलग अलग तरह के जैविक उत्पाद बनाने आदि के लिए किया जा सकता है. कुछ साल पहले आईआईटी दिल्ली के तीन छात्रों ने इस तरह का एक विचार पेश किया था. आईआईटी दिल्ली में 2017 बैच के तीन धात्रों ने धान की पराली से कप-प्लेट और थाली बनाने की तकनीक ईजाद की थी. इसके लिए उन्होंने मिलकर एक स्टार्टअप भी शुरू किया था. आईआईटी हैदराबाद और अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने पराली और अन्य कृषि कचरे से जैविक ईंटें (बायो ब्रिक्स) बनाई हैं. इनका भवन निर्माण आदि में इस्तेमाल करके फसलों के अवशेष के उचित प्रबंधन के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल बिल्डिंग मैटेरियल तैयार किया जा सकता है. कुछ शोधकर्ताओं ने एक ऐसी प्रक्रिया विकसित की है जिससे धान के पुआल में सिलिका कणों की मौजूदगी के बावजूद उसे औद्योगिक उपयोग के अनुकूल बनाया जा सकता है. इस तकनीक की मदद से किसी भी कृषि अपशिष्ट या लिग्नोसेल्यूलोसिक द्रव्यमान को होलोसेल्यूलोस फाइबर या लुगदी और लिग्निन में परिवर्तित कर सकते हैं. लिग्निन को सीमेंट और सिरेमिक उद्योगों में बाइंडर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. सरकार से मिलने वाली मदद को बढ़ाना:  सरकार ने पराली को सुरक्षित रूप से निपटाने के लिए बड़ी संख्या में उच्च प्रौद्योगिकी से लैस मशीनों (यथा-हैपी सीडर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, जीरो टिल ड्रिल आदि) को सब्सिडी देकर बाजार में उपलब्ध कराया है लेकिन किसानों ने कुछ वजहों से इसमें दिलचस्पी नहीं ली. इसका मुख्य कारण मशीनों की कीमत सब्सिडी के बाद भी ज्यादा होना है. इसलिए छोटे और मझोले किसानों के लिए इसे खरीदना संभव नहीं है. हालांकि सरकार ने इसके लिए सहकारी संस्थाओं के माध्यम से मशीनों की खरीद पर लगभग 75 प्रतिशत की सब्सिडी उपलब्ध करायी थी,  ताकि किसान किराये पर इन संस्थाओं से मशीनें ले सकें लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से इसमें अपेक्षानुरुप सफलता नहीं मिली. इसलिए सरकार की तरफ से ज्यादा जागरुकता की अपेक्षा है. सरकार को इस दिशा में ठोस पहल करनी होगी, भ्रष्टाचार पर काबू पाना होना ताकि किसानों को लगे कि सरकार समस्या के निपटान में बराबर की भागीदारी दे रही है और उन्हें भी अपनी ओर से योगदान देना चाहिए. किसानों का भ्रम मिटाने के लिए उनके साथ लगातार संवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. सहकारी समिति, स्वयं सहायता समूह और अन्य सामाजिक समूहों की भूमिका को बढ़ाने के साथ-साथ सब्सिडी में और अधिक पारदर्शिता पर बल देने की जरूरत है.
गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे के फूल का सर्वाधिक इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। इसके साथ-साथ शादियों में भी घर और मंडप को सजाने में गेंदे का उपयोग होता है। यही कारण है, कि बाजार में इसकी निरंतर साल भर मांग बनी रहती है। 

ऐसे में किसान भाई यदि गेंदे की खेती करते हैं, तो वह कम खर्चा में बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। बिहार में किसान पारंपरिक फसलों की खेती करने के साथ-साथ बागवानी भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। 

विशेष कर किसान वर्तमान में गुलाब एवं गेंदे की खेती में अधिक रूची एवं दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी पहले की तुलना में अधिक बढ़ गई है। 

यहां के किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की मांग केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि राज्य के बाहर भी हो रही है। राज्य में बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जिनकी जिन्दगी फूलों की खेती से पूर्णतय बदल गई है।

बिहार सरकार फूल उत्पादन रकबे को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

परंतु, वर्तमान में बिहार सरकार चाहती है, कि राज्य में फूलों की खेती करने वाले कृषकों की संख्या और तीव्र गति से बढ़े। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने फूलों के उत्पादन क्षेत्रफल को राज्य में बढ़ाने के लिए मोटा अनुदान देने की योजना बनाई है। 

दरअसल, बिहार सरकार का कहना है, कि फूल एक नगदी फसल है। यदि राज्य के किसान फूलों की खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। ऐसे में वे खुशहाल जिन्दगी जी पाएंगे। 

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बिहार सरकार 70 % प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है

यही वजह है, कि बिहार सरकार ने एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत फूलों की खेती करने वाले किसानों को अच्छा-खासा अनुदान देने का फैसला किया है। 

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती पर नीतीश सरकार वर्तमान में 70 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। यदि किसान भाई इस अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो वे उद्यान विभाग के आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

किसान भाई अगर योजना के संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो horticulture.bihar.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।

बिहार सरकार द्वारा प्रति हेक्टेयर इकाई लागत तय की गई है

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती के लिए बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 40 हजार निर्धारित किया है। बतादें, कि इसके ऊपर 70 प्रतिशत अनुदान भी मिलेगा। 

किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में गेंदे की खेती करते हैं, तो उनको राज्य सरकार निःशुल्क 28 हजार रुपये प्रदान करेगी। इसलिए किसान भाई योजना का फायदा उठाने के लिए अतिशीघ्र आवेदन करें।

आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

राजस्थान राज्य के 10,000 किसानों को प्याज की भंडारण इकाई हेतु 50% प्रतिशत अनुदान मतलब 87,500 रुपये के अनुदान का प्रावधान किया गया है। बतादें, कि राज्य में 2,500 प्याज भंडारण इकाई शुरू करने की योजना है। फसलों का समुचित ढंग से भंडारण उतना ही जरूरी है। जितना सही तरीके से उत्पादन करना। क्योंकि बहुत बार फसल कटाई के उपरांत खेतों में पड़ी-पड़ी ही सड़ जाती है। इससे कृषकों को काफी हानि वहन करनी होती है। इस वजह से किसान भाइयों को फसलों की कटाई के उपरांत समुचित प्रबंधन हेतु शीघ्र भंडार गृहों में रवाना कर दिया जाए। हालांकि, यह भंडार घर गांव के आसपास ही निर्मित किए जाते हैं। जहां किसान भाइयों को अपनी फसल का संरक्षण और देखभाल हेतु कुछ भुगतान करना पड़ता है। परंतु, किसान चाहें तो स्वयं के गांव में खुद की भंडारण इकाई भी चालू कर सकते हैं। भंडारण इकाई हेतु सरकार 50% प्रतिशत अनुदान भी प्रदान कर रही है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि राजस्थान सरकार द्वारा प्याज भंडारण हेतु नई योजना को स्वीकृति दे दी गई है। जिसके अंतर्गत प्रदेश के 10,000 किसानों को 2,550 भंडारण इकाई चालू करने हेतु 87.50 करोड़ रुपए की सब्सिड़ी दी जाएगी।

भंडारण संरचनाओं को बनाने के लिए इतना अनुदान मिलेगा

मीडिया खबरों के मुताबिक, किसानों को विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्याज के भंडारण हेतु सहायतानुदान मुहैय्या कराया जाएगा। इसमें प्याज की भंडारण संरचनाओं को बनाने के लिए प्रति यूनिट 1.75 लाख का खर्चा निर्धारित किया गया है। इसी खर्चे पर लाभार्थी किसानों को 50% फीसद अनुदान प्रदान किया जाएगा। देश का कोई भी किसान अधिकतम 87,500 रुपये का फायदा हांसिल कर सकता है। ज्यादा जानकारी हेतु निजी जनपद में कृषि विभाग के कार्यालय अथवा राज किसान पोर्टल पर भी विजिट कर सकते हैं। ये भी पढ़े: Onion Price: प्याज के सरकारी आंकड़ों से किसान और व्यापारी के छलके आंसू, फायदे में क्रेता

किस योजना के अंतर्गत मिलेगा लाभ

राजस्थान सरकार द्वारा प्रदेश के कृषि बजट 2023-24 के अंतर्गत प्याज की भंडारण इकाइयों पर किसानों को सब्सिड़ी देने की घोषणा की है। इस कार्य हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत 1450 भंडारण इकाइयों हेतु 12.25 करोड रुपये मिलाके 34.12 करोड रुपये व्यय करने जा रही है। इसके अतिरिक्त 6100 भंडारण इकाईयों हेतु कृषक कल्याण कोष द्वारा 53.37 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान है। ये भी पढ़े: भंडारण की परेशानी से मिलेगा छुटकारा, प्री कूलिंग यूनिट के लिए 18 लाख रुपये देगी सरकार

प्याज की भंडारण इकाई बनाने की क्या जरूरत है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इन दिनों जलवायु परिवर्तन से फसलों में बेहद हानि देखने को मिली है। तीव्र बारिश और आंधी के चलते से खेत में खड़ी और कटी हुई फसलें तकरीबन नष्ट हो गई। अब ऐसी स्थिति में सर्वाधिक भंडारण इकाईयों की कमी महसूस होती है। यह भंडारण इकाईयां किसानों की उत्पादन को हानि होने से सुरक्षा करती है। बहुत बार भंडारण इकाइयों की सहायता से किसानों को उत्पादन के अच्छे भाव भी प्राप्त हो जाते हैं। यहां किसान उत्पादन के सस्ता होने पर भंडारण कर सकते हैं। साथ ही, जब बाजार में प्याज के भावों में वृद्धि हो जाए, तब भंडार गृहों से निकाल बेचकर अच्छी आय कर सकते हैं।