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सीड प्लॉट तकनीक से गुणवत्तापूर्ण आलू बीज एवं बेहतरीन उत्पादन हांसिल करें

सीड प्लॉट तकनीक से गुणवत्तापूर्ण आलू बीज एवं बेहतरीन उत्पादन हांसिल करें

यदि आप सब्जियों का उत्पादन करते हैं, तो ऐसे में आप गुणवत्तापूर्ण आलू बीज और अच्छी उपज पाने के लिए अपनाएं ये सर्वोत्तम तकनीक जो देगी कम समय में ज्यादा मुनाफा। हमारे भारत में आलू को सब्जियों में एक महत्वपूर्ण फसल माना जाता है, क्योंकि आलू का ज्यादातर उपयोग सब्जियों में किया जाता है। यदि बात करें इसकी खेती की तो पंजाब राज्य में 110.47 हजार हेक्टेयर में आलू का उत्पादन होता है और इसकी पैदावार 3050.04 हजार टन होती है। पंजाब में आलू की उत्पादकता भारत के बाकी राज्यों के मुकाबले में काफी ज्यादा है। यहाँ उत्पादित बीज आलू कई सारे राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार आदि में भेजा जाता है। पंजाब राज्य में आलू के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में कपूरथला एवं जालंधर जनपदों का योगदान 50 प्रतिशत है। किसी भी फसल से गुणवत्तापूर्ण बीज और उच्च उत्पादन प्राप्त करने के लिए बीज का स्वास्थ्य काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि बीज एक महत्वपूर्ण निवेश है, जो उत्पादन की कुल लागत का 50% प्रतिशत है। बगैर प्रतिस्थापन के एक ही बीज का निरंतर इस्तेमाल करने से बीज की गुणवत्ता काफी कम हो जाती है। सीड प्लॉट तकनीक द्वारा मैदानी इलाकों में आलू का मानक बीज सफलतापूर्वक उत्पादित किया जा सकता है। इस विधि का प्रमुख उद्देश्य पंजाब में उस समय आलू की स्वस्थ फसल अर्जित करना है, जब तेल की मात्रा न्यूनतम हो अथवा वायरल रोग न फैल सकें।

कृषि विज्ञान केंद्र कपूरथला : सीड प्लॉट तकनीक से आलू बीज तैयार करने की विधि के बारे में

  • बीज आलू के उत्पादन के लिए ऐसे क्षेत्र का चयन करें जो रोग पैदा करने वाले जीवों/कवक जैसे ब्लाइट और आलू ब्लाइट से मुक्त हो।
  • बुआई के लिए प्रयोग किये जाने वाले बीज स्वस्थ एवं विषाणु रहित होने चाहिए तथा इन बीजों को किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान से ही खरीदें। कोल्ड स्टोर से आलू की छंटाई करें और रोगग्रस्त एवं सड़े हुए आलू को जमीन में गहराई तक दबा दें।
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  • कोल्ड स्टोर से लाये गये आलू को तुरंत न बोयें। बुवाई से 10-15 दिन पहले आलू को कोल्ड स्टोर से निकालकर हवादार स्थान पर ब्लोअर आदि रखकर या छाया में सुखा लें।
  • बुवाई से पहले आलू का उपचार करना अत्यंत आवश्यक है ताकि फसल को झुलसा एवं आलू झुलसा जैसे रोगों से बचाया जा सके। बीज को उपचारित करने के लिए आलू को सिस्टिवा 333 ग्राम/लीटर अथवा इसिस्टो प्राइम अथवा 250 मिली से 10 मिनट तक उपचारित करें। लिमिटेड मोनसेरॉन 250 एससी को 100 लीटर पानी में घोलकर 10 मिनट तक पानी में डुबाकर रखें।
  • संशोधित आलू को बुवाई तक अंकुरित होने के लिए 8-10 दिन तक छायादार एवं खुले स्थान में पतली परतों में रखें। अंकुरित आलू का इस्तेमाल करने से फसल का प्रदर्शन बेहतर और एक समान होता है। अधिक बीज के आकार के आलू प्राप्त होते हैं एवं उत्पादन ज्यादा होता है। आधार बीज तैयार करने के लिए न्यूनतम 25 मीटर का फासला आवश्यक है, जबकि प्रमाणित बीज के लिए 10 मीटर की दूरी जरूरी है।
  • फसल को अक्टूबर के पहले पखवाड़े में 50X15 सेमी के फासले पर बोएं। मशीन से बुवाई के लिए यह दूरी 65X15 या 75X15 सेमी रखें। एक एकड़ बुआई के लिए 40-50 ग्राम वजन के 12-18 क्विंटल आलू पर्याप्त होते हैं। एक एकड़ फसल के बीज से 8-10 एकड़ फसल बोई जा सकती है।
  • आलू की खुदाई के तीन सप्ताह के भीतर कभी भी मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव न करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए सैंकोर 70 डब्लूपी 200 ग्राम का छिड़काव खरपतवार लगने से पूर्व और पहली बार पानी देने के उपरांत करें।
  • बीज की फसल को खरपतवार एवं रोगों से मुक्त रखने के लिए फसल का निरीक्षण काफी आवश्यकता है। पहला निरीक्षण बुआई के 50 दिन उपरांत दूसरा निरीक्षण 65 दिन पर और तीसरा निरीक्षण 80 दिन पर करें।
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  • पहली सिंचाई बुआई के शीघ्र उपरांत हल्की करें। सिंचाई के दौरान इस बात का ख्याल रखें कि पानी गमलों से ऊपर न बढ़े। क्योंकि इस प्रकार गमलों की मिट्टी सूखकर सख्त हो जाती है और आलू की जड़ और वृद्धि पर प्रभाव डालती है। हल्की मिट्टी में 5-7 दिन के अंतराल पर तथा भारी मिट्टी में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
  • आलू की फसल को पिछेती झुलसा रोग से बचाना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह रोग कुछ ही समय में व्यापक रूप से फैल जाता है। फसल को काफी क्षति भी पहुंचाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए नवंबर के पहले सप्ताह में फसल पर इंडोफिल एम 45/कवच/एंट्राकोल 500-700 ग्राम प्रति एकड़ 250-350 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इस छिड़काव को 7-7 दिन के अंतराल पर 5 बार दोहराएं। जहां रोग का प्रकोप ज्यादा हो, वहां तीसरा एवं चौथा छिड़काव रिडोमिल गोल्ड अथवा कर्जेट एम-8 700 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 10 दिन के समयांतराल पर करें।
  • 25 दिसंबर से पूर्व जब बीज आलू का वजन 50 ग्राम से कम हो एवं तेल की संख्या प्रति 100 पत्तियों पर 20 कीड़े हों, तो बेल काट लें।
  • कटाई के उपरांत आलू को 15-20 दिनों तक भूमि पर ही पड़ा रहने दें, जिससे कि आलू का छिलका सख्त हो जाए। साथ ही, पूरी तरह से परिपक्व हो जाए। खुदाई के बाद आलू को 15-20 दिन तक छायादार स्थान पर ढेर लगाकर रखें।
  • आलू को छांटकर क्षतिग्रस्त एवं कटे हुए आलू को अलग कर लें। बाद में, आलू को रोगाणुहीन थैलियों में ग्रेड करें और उन्हें सील कर दें। अगले वर्ष उपयोग के लिए इन आलूओं को सितंबर तक कोल्ड स्टोर में भंडारित करें। जहां पर कि तापमान 2-4º सेंटीग्रेड और आर्द्रता 75-80% हो।
  • इस विधि से उत्पादित आलू बीज रोग एवं विषाणु रोग से मुक्त होगा, जिससे अधिक उपज देने वाली एवं गुणवत्तापूर्ण फसल प्राप्त की जा सकेगी।
कृषि कानूनों की वापसी, पांच मांगें भी मंजूर, किसान आंदोलन स्थगित

कृषि कानूनों की वापसी, पांच मांगें भी मंजूर, किसान आंदोलन स्थगित

नई दिल्ली। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने एक साल तक दिल्ली सीमा पर आंदोलन करके सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया। सरकार जिस जोश में ये कृषि कानून लायी थी, किसानों ने उसी जोश से उनका विरोध किया और एक साल तक लगातार प्रदर्शन करके यह दिखा दिया कि वे किसी भी तरह सरकर के सामने झुकने वाले नहीं हैं। इसके बाद सरकार ने एक माह में कानून वापस भी ले लिये हैं और किसानों से उनकी पांच प्रमुख मांगों को पूरा करने का वादा भी किया है। इसके बाद किसानों नेअपना आंदोलन स्थगित करके दिल्ली सीमा से अपना डेरा हटाते हुए घरों को लौट गये। घर वापसी पर किसानों का वीरों की भांति पुष्प वर्षा करके स्वागत किया गया। जाते जाते किसानों ने सरकार को यह चेतावनी भी दी है कि यदि जरूरत पड़ी ते वह फिर दिल्ली सीमा पर आकर आंदोलन कर सकते हैं।

कृषि कानून बनते ही शुरू हो गया था विरोध

किसानों का आंदोलन सितम्बर 2020 में उस समय शुरू हो गया था जब सरकार ने कृषि कानूनों को संसद से पारित करवा कर और राष्टÑपति से हस्ताक्षर कराकर लागू करने का ऐलान किया था। उसके बाद से लगातार दिल्ली के पंजाब-हरियाणा बार्डर के सिंघू बॉर्डर और शम्भू बॉर्डर पर किसानों डेरा डालकरअपना प्रदर्शन शुरू कर दिया था वहीं उत्तर प्रदेश की ओर से गाजीपुर बॉर्डर से भाकियू सहित अनेक किसान संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया था।  26 जनवरी के दिल्ली के लालकिला पर जोरदार प्रदर्शन के बाद आंदोलन की धार  कुंद पड़ गयी थी और आंदोलन समाप्ति की ओर चल दिया था।

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राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन में जान फूंक दी

उसी समय उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश से गाजियाबाद जिला प्रशासन ने जब गाजीपुर बॉर्डर से आंदोलनकारी किसानों को हटाने का प्रयास किया तो भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आंसू बहाकर आंदोलन को नये सिरे से खड़ा कर दिया।  राकेश टिकैत को किसानों का भावनात्मक समर्थन मिलने के बाद सरकार का पक्ष कमजोर हो गया।

सरकार की सारी कोशिशें रहीं नाकाम

इस दरम्यन सरकार ने किसानों को कृषि कानूनों की अच्छाइयों का प्रचार करना जारी रखा और लोगों को खूब समझाने की कोशिश की। इस बीच आंदोलनकारी किसानों ने स्पष्ट कर दिया कि वे कृषि कानूनों की वापसी से कम पर कोई बात नहीं मानेंगे। इस दौरान सरकार की ओर से किसानों को मनाने के लिए कई दौर की वार्ताएं हुर्इं लेकिन कोई बात नहीं बनी।

सरकार और किसानों के बीच शुरू हुई चुनावी जंग

इसके बाद  किसानों और सरकार के बीच चुनावी जंग शुरू हो गयी। कई राज्यों में भाजपा की चुनावी हार के बाद सरकार को समझ में आया कि किसानों से तकरार से कोई फायदा नहीं होने वाला बल्कि नुकसान बढ़ने वाला है।

सियासी नुकसान देख सरकार को झुकना पड़

जब उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू होने लगी तो सरकार को अपनी ही पार्टी की संभावित हार नजर आने लगी तब सरकार ने मंथन करके गुरुनानक जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय को संबोधित करते हुए कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया। लेकिन किसान संगठनों ने उनकी इस बात पर विश्वास नहीं किया बल्कि कहा कि जब तक सरकार कानून वापस नहीं ले लेती तब तक आंदोलन जारी रखा जायेगा।

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जितनी तेजी से कानून बने थे, उतनी तेजी से कानून वापस भी लिये गये

इसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी की और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद जब ये कानून वापस हो गये तो किसान संगठनों के तेवर ढीले पड़ गये और उसके बाद भी वो आंदोलन वापस लेने को तैयार नही हुए और अपनी पांच प्रमुख मांगों पर सरकार से लिखित आश्वासन देने की मांग उठा दी।

सरकार को पांच मांगें भी माननी पड़ीं

सरकार की ओर से जब किसान संगठनों के संयुक्त किसानमोचा को लिखित रूप से किसानों की सभी पांचों प्रमुख मांगों को स्वीकार करने का लिखित आश्वासन दिया तब आंदोलनकारी किसानों ने शनिवार यानी 11 दिसम्बर से सिंघू बार्डर से अपने तम्बू हटाये और अपने घर की वापसी की।  उसके बाद गाजीपुर बॉर्डर से भी तम्बू हटे और अब वहां से आंदोलनकारी किसान अपने घरों को लौट गये हैं।

किसानों ने 15 जनवरी तक का दिया है अल्टीमेटम

संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि आगामी 15 जनवरी को किसानों की बैठक होगी जिसमें  समीक्षा की जायेगी कि सरकर ने यदि लिखित आश्वासन के बाद वादा पूर नहीं किया तो फिर आंदोलन करेंगे।

किसानों का फूलों की वर्षा करके किया स्वागत

गाजीपुर बॉर्डर से पश्चिमी उत्तरप्रदेश स्थित अपने घरों की वापसी के समय भाकियू नेता राकेश टिकैत सहित किसानों का फूलों की वर्षा करके स्वागत किय गया । पंजाब और हरियाणा के किसानों की घर वापसी के समय एक एनआरआई ने विमान को किराये पर लेकर उससे पुष्प वर्षा कर किसानों क स्वागत किया।

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वापसी से पहले किसानों ने अरदास की और मिठाई बांटी

आंदोलन को स्थगित करने के ऐलान के साथ ही किसानोंं ने शंभु बॉर्डर, सिंघू बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से अपने तम्बू हटाये उससे पहले अरदास की उसके बाद अपना डेरा समेट कर घरवापसी की। आंदोलन में अपनी जीत मानने वाले किसानों ने घर वापसी के दौरान मिठाई बांट कर जीत का जश्न मनाया।

वे कौन सी मांगें मानने के बाद किसान घरों को लौटे

किसान नेताओं ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केन्द्र सरकार की ओर से कृषि सचिव संजय अग्रवाल के हस्ताक्षर वाली एक चिटठी मिली है। इस चिटठी में यह बताया गया है कि सरकार ने किसान संगठनों की पांंच प्रमुख मांगों पर अपनी सहमति जताई है। ये मांगे इस प्रकार हैं:-
  1. एमएसपी के बारे में केन्द्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह इस मुद्दे पर एक किसान कमेटी बनाएगी, जिसमें संयुक्त किसानमोर्चा के प्रतिनिधिलिये जायेंगे, जिन फसलों पर एमएसपी मिल रहा है वो जारी रहेगा।
  2. किसानों के मुकदमें होंगे वापस, इस मुद्दे पर यूपी, उत्तरखंड और हरियाणा की सरकार ने किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लिये जाने पर सहमति जताई है। इसके अलावा दिल्ली, रेलवे और अन्य प्रदेश भी किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लेंगे।
  3. यूपी और हरियाणा सरकार में भी इस बात पर सहमति बन गयी है कि जिस प्रकार पंजाब किसानों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देती है उसी प्रकार इन दोनों राज्यों की सरकार भी मुआवजा देंगी।
  4. किसानों के बिजली के बिल पर भी विचार किया जायेगा। किसानों को प्रभावित करने वाले प्रावधानों पर पहले सभी पक्षों के साथ चर्चा की जायेगी और उसके बाद किसान मोचा से वार्ता करके ही संसद में बिल पेश किया जायेगा।
  5. पराली को जलाने के मामले में केन्द्र सरकार ने जो कानून पारित किये हें, उसकी धारा 14 और 15 में आपराधिक जिम्मेदारी से किसानों को मुक्त किया जायेगा।

किसानों की जीत के मायने

किसानों ने अपनी मांगें मनवा कर कृषि कानून मुद्दे पर जीत दर्ज कर ली है। किसानों ने एक तरह से देश के समक्ष यह उदाहरण पेश किया है कि सरकार से बड़ी जनता की ताकत होती है। सरकार किसी तरह के कानून जनता पर थोप नहीं सकती बल्कि जनता चाहे तो सरकार को झुकने को मजबूर कर सकती है।

पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी

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लक्ष्य की आधी हुई कपास की खेती, गुलाबी सुंडी के हमले से किसान परेशान

मुआवजा न मिलने से किसानों ने लगाए आरोप

भूजल एवं कृषि
भूमि की उर्वरता में क्षय के निदान के तहत, पारंपरिक खेती के साथ ही फसलों के विविधीकरण के लिए, केंद्र एवं राज्य सरकारें फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं। इसके बावजूद हैरानी करने वाली बात है कि, सरकार से सब्सिडी जैसी मदद मिलने के बाद भी किसान फसल विविधीकरण के तरीकों को अपनाने से कन्नी काट रहे हैं।

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क्या वजह है कि किसान को फसल विविधीकरण विधि रास नहीं आ रही? क्यों किसान इससे दूर भाग रहे हैं? इन बातों को जानिये मेरी खेती के साथ। लेकिन पहले फसल विवधीकरण की जरूरत एवं इसके लाभ से जुड़े पहलुओं पर गौर कर लें।

फसल विविधीकरण की जरूरत

खेत पर परंपरागत रूप से साल दर साल एक ही तरह की फसल लेने से खेत की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है। एक ही तरह की फसलें उपजाने वाला किसान एक ही तरह के रसायनों का उपयोग खेत में करता है। इससे खेत के पोषक तत्वों का रासायनिक संतुलन भी गड़बड़ा जाता है।

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भूमि, जलवायु, किसान का भला

यदि किसान एक सी फसल की बजाए भिन्न-भिन्न तरह की फसलों को खेत में उगाए तो ऐसे में भूमि की उर्वरकता बरकरार रहती है। निवर्तमान जैविक एवं प्राकृतिक खेती की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से भी भूमि, जलवायुु संग कमाई के मामले में किसान की स्थिति सुधरी है।

नहीं अपना रहे किसान

पंजाब सरकार द्वारा विविधीकृत कृषि के लिए किसानों को सब्सिडी प्रदान करने के बावजूद किसान कृषि की इस प्रणाली की ओर रुख नहीं कर रहे है। प्रदेश में आलम यह है कि यहां कुछ समय तक विविधीकरण खेती करने वाले किसान भी अब पारंपरिक मुख्य खेती फसलों की ओर लौट रहे हैं।

किसानों को नुकसान

पंजाब सरकार खरीफ कृषि के मौसम में पारंपरिक फसल धान की जगह अन्य फसलों खास तौर पर कम पानी में पैदा होने वाली फसलों की फार्मिंग को सब्सिडी आदि के जरिए प्रेरित कर रही है।

सब्सिडी पर नुकसान भारी

सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के मुकाबले विविधीकृत फसल पर कीटों के हमले से प्रभावित फसल का नुकसान भारी पड़ रहा है।

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पंजाब के किसानों क मुताबिक उन्हें विविधीकरण कृषि योजना के तहत सब्सिडी आधारित फसलों पर कीटों के हमले के कारण पैदावार कम होने से आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस कारण उन्होंने फसल विविधीकरण योजना एवं इस किसानी विधि से दूसी अख्तियार कर ली है।

कपास का लक्ष्य अधूरा

पंजाब कृषि विभाग द्वारा संगरूर जिले में तय किया गया कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है। कपास के लिए निर्धारित 2500 हेक्टेयर खेती का लक्ष्य यहां अभी तक आधा ही है।

पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सुंडी)

किसान कपास की खेती का लक्ष्य अधूरा होने का कारण पिंक बॉलवर्म का हमला एवं खराब मौसम की मार बताते हैं।

गुलाबी सुंडी क्या है

गुलाबी सुंडी (गुलाबी बॉलवार्म), पिंक बॉलवर्म या गुलाबी इल्ली (Pink Bollworm-PBW) कीट कपास का दुश्मन माना जाता है। इसके हमले से कपास की फसल को खासा नुकसान पहुंचता है। किसानो के मुताबिक, संभावित नुकसान की आशंका ने उनको कपास की पैदावार न करने पर मजबूर कर दिया। एक समाचार सेवा ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि, जिले में 2500 हेक्टेयर कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है, अभी तक केवल 1244 हेक्टेयर में ही कपास की खेती हो पाई है।

7 क्षेत्र पिंक बॉलवर्म प्रभावित

विभागीय तौर पर फिलहाल अभी तक 7 क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म के हमलों की जानकारी ज्ञात हुई है। विभाग के अनुसार कपास के कुल क्षेत्र के मुकाबले प्रभावित यह क्षेत्र 3 प्रतिशत से भी कम है।

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नुकसान आंकड़ों में भले ही कम हो, लेकिन पिछले साल हुए नुकसान और मुआवजे संबंधी समस्याओं के कारण भी न केवल फसल विविधीकरण योजना से जुड़े किसान अब योजना से पीछे हट रहे हैं, बल्कि प्रोत्साहित किए जा रहे किसान आगे नहीं आ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में किसानों ने बताया कि, पिछली सरकार ने पिंक बॉलवर्म के हमले से हुए नुकसान के लिए आर्थिक सहायता देने का वादा किया था।

नहीं मिला धान का मुआवजा

भारी बारिश से धान की खराब हुई फसल के लिए मुआवजे से वंचित किसान प्रभावित 47 गांवों के किसानों की इस तरह की परेशानी पर नाराज हैं।

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बार-बार नुकसान वजह

किसानों की फसल विविधीकरण योजना से दूरी बनाने का एक कारण उन्हें इसमें बार-बार हो रहा घाटा भी बताया जा रहा है। दसका गांव के एक किसान के मुताबिक इस वर्ष गेहूं की कम उपज से उनको बड़ा झटका लगा। पिछले दो सीजन से नुकसान होने की जानकारी किसानों ने दी है। कझला गांव के एक किसान ने खेती में बार-बार होने वाले नुकसान को किसानों को नई फसलों की खेती के प्रयोग से दूर रहने के लिए मजबूर करने का कारण बताया है। उन्होंने कई किसानों का उदाहरण सामने रखने की बात कही जो, फसल विविधीकरण के तहत अन्य फसलों के लिए भरपूर मेहनत एवं कोशिशों के बाद वापस धान-गेहूं की खेती करने में जुट गए हैं। किसानों के अनुसार फसल विविधीकरण के विस्तार के लिए प्रदेश में सरकारी मदद की कमी स्पष्ट गोचर है।

सिर्फ जानकारी से कुछ नहीं होगा

इलाके के किसानो का कहना है कि, जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए सिर्फ जानकारी प्रदान करने से लक्ष्य पूरे नहीं होंगे। उनके मुताबिक कृषि अधिकारी फसलों की जानकारी तो प्रदान करते हैं, लेकिन फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन राशि के साथ अधिकारी किसानों के पास बहुत कम पहुंचते हैं।

हां नुकसान हुआ

किसान हित के प्रयासों में लगे अधिकारियों ने भी क्षेत्र में फसलों को नुकसान होने की बात कही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसानों को हो रहे नुकसान को उन्होंने भी फसल विविधीकरण नहीं अपनाने की वजह माना है। नाम पहचान की गोपनीयता रखने की शर्त पर कृषि विकास अधिकारी ने बताया कि, फसल के नुकसान की वजह से कृषक फसल विविधीकरण कार्यक्रम में अधिक रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने बताया कि, केवल 1244 हेक्टेयर भूमि पर इस बार कपास की खेती की जा सकी है।
पंजाब में किसान अपनी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकने को हुए मजबूर

पंजाब में किसान अपनी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकने को हुए मजबूर

आजकल देश के अलग अलग हिस्सों से कहीं बैंगन तो कहीं प्याज के दाम अत्यधिक गिरने की खबरें आ रही हैं। किसान लागत भी नहीं निकल पाने वाली कीमतों से निराश और परेशान होकर अपनी उपज को सड़कों पर ही फेंकना उचित समझ रहे हैं। इसी कड़ी में पंजाब के किसानों को शिमला मिर्च में खासा नुकसान वहन करने की खबरें सामने आ रही हैं। दरअसल। यहां व्यापारी एक रुपये किलो शिमला मिर्च खरीद रहे हैं। किसानों का इससे लागत तो दूर ले जाने का भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा है। इसी वजह से दुखी होकर किसान अपनी शिमला मिर्च को सड़क पर फेंकने को मजबूर हो गए हैं। बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि के चलते किसानों को काफी हानि हुई है। इससे किसानों की लाखों रुपये की फसल बिल्कुल चौपट हो चुकी है। हालांकि, किसान भाइयों की परेशानियां यहीं खत्म नहीं हो रही हैं। किसान भाइयों को बागवानी यानी फल, सब्जी की बुवाई में भी काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अत्यधिक उत्पादन होने की वजह से मंडियों में समुचित भाव किसानों को नहीं मिल पा रहे हैं। इसलिए किसानों को काफी ज्यादा परेशानी हो रही है। किराया तक भी न निकल पाने की वजह से नाराज किसान सब्जियों को सड़कों पर ही फेंकने को मजबूर हो रहा है।

शिमला मिर्च की कीमत पंजाब में 1 रुपए किलो

पंजाब में शिमला मिर्च की स्थिति काफी बेकार हो चुकी है। किसान भाई शिमला मिर्च लेकर मंड़ी पहुंच रहे हैं। लेकिन व्यापारी किसान से 1 रुपये प्रति किलो ही शिमला मिर्च खरीद रहा है। मनसा जनपद में बेहद ही ज्यादा शिमला मिर्च का उत्पादन हुआ है। यहां के किसान भी शिमला मिर्च को अच्छी कीमतों पर मंड़ी में नहीं बेच पा रहे हैं। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों द्वारा विकिसत की गई शिमला मिर्च की नई किस्म से किसानों को होगा दोगुना मुनाफा

शिमला मिर्च को सड़क पर फेंकने को मजबूर हुए किसान

मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा किसान भाइयों से शिमला मिर्च की ज्यादा बुवाई करने की अपील की थी। नतीजा यह है, कि मनसा जनपद के कृषकों ने बेहतरीन उत्पादन भी हांसिल कर लिया है। पंजाब की मंड़ियों में शिमला मिर्च की काफी अधिक आवक हो रही है। समस्त शिमला उत्पादक किसान अपनी उपज को लेकर के मंड़ी पहुंच रहे हैं। परंतु, मंड़ियों में उनकी शिमला मिर्च की कीमत 1 रुपये किलो के अनुरूप लगाई जा रही है। इससे किसान हताश होकर अपनी ट्रैक्टर- ट्रॉली पर लदी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकना उचित समझ रहे हैं।

व्यापारी किसानों पर बना रहे दबाव

कहा गया है, कि शिमला मिर्च की ज्यादा आवक देख व्यापारियों द्वारा किसानों पर शिमला मिर्च को 1 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने पर दबाव बनाया जा रहा है। इससे किसान काफी आक्रोश में दिखाई दे रहे हैं। पंजाब राज्य में 3 लाख हेक्टेयर में हरी सब्जियां उगाई जाती हैं। 1500 हेक्टेयर में शिमला मिर्च की पैदावार की जाती है। मानसा, फिरोजपुर और संगरूर जनपद में सर्वाधिक शिमला मिर्च का उत्पादन किया जाता है।
पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से विषैली हुई कई शहरों की हवा

पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से विषैली हुई कई शहरों की हवा

किसान भाइयों जैसा कि आप जानते हैं वर्तमान में धान की कटाई का समय चल रहा है। दरअसल, प्रति वर्ष पंजाब एवं हरियाणा की सरकारें किसानों पर कड़ाई करने व पराली जलाने से रोकने की बात तो करती हैं। परंतु, वास्तविकता में किसान निरंतर पराली जलाने में जुटे हुए हैं। इसी कारण से पराली जलाने से जो प्रदूषण फैल रहा है, उसके कारण दिल्ली-एनसीआर का AQI यानी वायु गुणवत्ता सूचकाँक निरंतर खतरनाक स्तर की तरफ बढ़ रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्य से विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी पराली का खतरा बढ़ना शुरू हो गया है। बतादें, दोनों राज्यों की सरकार की सख्ती के पश्चात भी किसान खुले मैदानों में पराली जलाते दिख रहे हैं। पराली जलने की वजह से उठने वाला धुंआ पंजाब, हरियाणा सहित दिल्ली-एनसीआर के लोगों की सांसों के लिए घातक साबित हो रहा है। दिल्ली-एनसीआर में CPCB द्वारा की गई मॉनिटरिंग में औसत AQI 263 रिपोर्ट हुआ है। इसकी वजह से लोगों के ऊपर गंभीर बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्यों में निरंतर पराली को आग लगाई जा रही है। जैसे-जैसे धान की कटाई का सीजन आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पराली जलाने के मामले भी निरंतरता से बढ़ रहे हैं। पराली में आग लगाने से जो धुआं और प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है, उसकी वजह से दिल्ली-एनसीआर सहित हरियाणा के भी बहुत सारे शहरों का AQI काफी खराब स्तर पर पहुंच चुका है।

पंजाब में बेखौफ पराली को आग के हवाले किया जा रहा है

पंजाब राज्य के अंदर भले ही पराली जलाने के मामले कम होने का दावा किया जा रहा हो, परंतु खुलेआम पराली जलाने का सिलसिला भी निरंतर जारी है। चंडीगढ़ के आसपास डेराबस्सी में हाईवे के किनारे ही सरेआम पराली जलती नजर आई। स्थिति आज यह है, कि यदि आप पंजाब एवं हरियाणा में किसी भी नेशनल हाईवे से गुजरते हैं, तो सड़क के किनारे जले हुए काले खेत नजर आऐंगे। जहां पर पराली पूर्णतय खाक में बदली नजर आएगी। किसान चालाकी से अपने खेत में पराली को आग लगा देते हैं और उसके पश्चात अपने खेतों से नौ दो ग्यारह हो जाते हैं, जिससे कि उन पर कोई कानूनी कार्यवाही ना हो सके।

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हरियाणा में जागरूक किसान पराली का उचित प्रबंधन कर रहे हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसे किसान भी हैं, जो पराली को आग के हवाले ना करके उसका प्रबंधन करने में विश्वास रखते हैं। पंचकूला के नग्गल गांव में किसान सुपर सीडर मशीन के माध्यम से पराली को खेतों में ही खाद की भांति उपयोग करने एवं सीधे गेहूं के बीज की बुवाई करते नजर आए। इन किसानों का कहना है, कि जो किसान महंगी मशीनें खरीद सकते हैं, वो तो पराली का प्रबंधन कर लेता है। परंतु, लघु व सीमांत किसानों के पास पराली को आग लगाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।

किसानों को सरकार से क्या शिकायत है

पंचकूला के मनकइया गांव में कुछ किसान पारंपरिक ढ़ंग से धान की फसल की कटाई के उपरांत पराली के ढेर बना रहे हैं। परंतु, उन्हें भी शिकायत इस बात की है, कि वो मजदूर लगाकर पराली को जलाने की बजाय उसका प्रबंधन कर रहे हैं। परंतु, सरकार की ओर से उन्हें ना तो कोई सहायता मिली है और ना ही किसी प्रकार का कोई अनुदान दिया गया है। उन्हें अपने स्वयं के खर्चे पर ही पराली का प्रबंधन करना पड़ रहा है।

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पहले से काफी मामले घटे हैं

पंजाब में विगत साल के मुकाबले में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में गिरावट आई है। राज्य में अब तक 1764 जगहों पर पराली जलाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ये आंकड़े विगत 2 वर्षों में सबसे कम हैं। इसी समयावधि में अब तक 2021 में 4327 और 2022 में 3114 मामले दर्ज किए गए थे। अगर हम हरियाणा राज्य की बात करें तो इस सीजन में यहां पराली जलाने के 714 मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि, विगत वर्ष की अपेक्षा में देखा जाए, तो विगत वर्ष अब तक 893 मामले सामने आए थे। यदि हरियाणा-पंजाब राज्यों की सरकार किसानों को पूरी तरह जागरूक करके उन्हें संसाधन मुहैय्या कराती है, तो पराली की चुनौती से छुटकारा मिल सकता है। बतादें, कि हरियाणा के कुछ शहरों का रिकॉर्ड किया गया AQI भयावह है। दरअसल, करनाल-243, रोहतक-182, जींद-155, फरीदाबाद-322, बहादुरगढ़-284, कैथल-269, कुरुक्षेत्र-256 और गुरुग्राम में 255 वायु गुणवत्ता सूचकाँक दर्ज किया गया।
धान की पराली को जलाने की जगह उचित प्रबंधन कर किसान ने लाखों की कमाई की

धान की पराली को जलाने की जगह उचित प्रबंधन कर किसान ने लाखों की कमाई की

पंजाब राज्य के लुधियाना जिला के नूरपुर निवासी लॉ ग्रेजुएट हरिंदरजीत सिंह गिल ने जनपद में धान की पराली के प्रबंधन से 31 लाख रुपये से ज्यादा कमा डाले हैं। वहीं, अपने आसपास के कृषकों के लिए मिशाल प्रस्तुत की है। धान की कटाई आरंभ होते ही पराली की समस्या किसानों एवं सरकार दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है। आए दिन किसान पराली को खेतों में जलाते हैं। साथ ही, उन पर मुकदमा दर्ज होता है। सिर्फ इतना ही नहीं उनको इसके लिए कृषकों को हर्जाना भी देना पड़ता है। परंतु, इन सब के मध्य पंजाब में लुधियाना जनपद के नूरपुर निवासी लॉ ग्रेजुएट हरिंदरजीत सिंह गिल ने जनपद में धान की पराली के प्रबंधन से 31 लाख रुपये से ज्यादा कमा लिए। इससे उनके आसपास के किसानों के लिए मिशाल पेश करने के साथ-साथ उन किसानों को आय का मार्ग दिखाया है। जो किसान भाई आज भी पराली जलाने का सहारा ले रहे हैं। मीडिया खबरों के अनुसार, प्रगतिशील किसान ने बात करते हुए कहा कि उन्होंने इस सीजन में धान की कटाई के उपरांत अपने खेतों में बचे तकरीबन 17,000 क्विंटल धान की पराली की गांठें निर्मित करने के लिए 5 लाख रुपये का एक सेकेंड-हैंड चौकोर बेलर और 5 लाख रुपये का रैक खरीदा है।

धान की पराली से 31.45 लाख रुपये की आमदनी कर ड़ाली

किसान का कहना है, कि "मैंने धान की पराली से 31.45 लाख रुपये कमाने के लिए उन्हें 185 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से पेपर मिलों को बेच दिया।" अपने सफल पराली प्रबंधन से उत्साहित, 45 वर्षीय किसान ने अब अपने पराली प्रबंधन व्यवसाय को और बड़ा करने की योजना तैयार की है। एक बेलर और दो ट्रॉलियों का खर्चा 11 लाख रुपये था। सभी खर्चों को पूर्ण करने के उपरांत उन्होंने 20.45 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया है।

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 साथ ही, गिल ने अपने पराली प्रबंधन व्यवसाय को और विस्तारित करने के लिए 40 लाख रुपये के दो रेक के साथ एक और गोल बेलर और 17 लाख रुपये के रेक के साथ एक वर्गाकार बेलर खरीदते हुए कहा, “इसके अलावा, बेलर और दो ट्रॉलियां मेरे पास हैं।” उन्होंने कहा, "अब, हम दो वर्गाकार बेलरों की सहायता से 500 टन गोल गांठें और 400 टन वर्गाकार गांठें बनाने की योजना बना रहे हैं।"


 

सफल किसान हरिंदर गिल कितने एकड़ में खेती करते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान समय में गिल 52 एकड़ भूमि में खेती करते हैं, जिसमें से उन्होंने 30 एकड़ में धान की खेती की थी। वहीं, 10 एकड़ में अमरूद एवं पीयर मतलब कि नाशपाती के बाग स्थापित किए थे। इसके अतिरिक्त बाकी 12 एकड़ में चिनार के पौधे स्थापित किए थे।


 

गेहूं की खेती के लिए हैप्पी सीडर का इस्तेमाल किया जाता है

उन्होंने बताया, “मैंने पिछले सात वर्षों से धान अथवा गेहूं का पराली नहीं जलाया है और गेहूं की बुआई के लिए हैप्पी सीडर का इस्तेमाल कर रहा हूं।” किसान ने आगे बताया “फसल उत्पादन तब से बढ़ गया है जब से उन्होंने खेतों में पराली जलाना बंद कर दिया है। इस वर्ष उन्होंने अपनी 30 एकड़ भूमि से 900 क्विंटल धान की पैदावार हांसिल की है। बीते दो वर्षों से मुझे ऐसा करते हुए देखकर, मेरे गांव एवं आसपास के अधिकांश किसानों ने भी यही प्रथा अपनानी चालू कर दी है।"

खुशखबरी: पंजाब सरकार ने गन्ना का भाव 391 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बढ़ाया

खुशखबरी: पंजाब सरकार ने गन्ना का भाव 391 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बढ़ाया

वर्तमान में गन्ने की खेती करने वाले कृषकों को पहले से ज्यादा भाव मिलेंगे। पंजाब भारत भर में गन्ने का सर्वाधिक मूल्य देने वाला राज्य है। पंजाब सरकार ने किसानों के फायदे में एक बड़ा निर्णय लिया है। राज्य सरकार की तरफ से गन्ना कृषकों के लिए बड़ी खुशखबरी है। सरकार ने गन्ने की कीमत में इजाफा करने का ऐलान कर दिया है। वर्तमान में राज्य के गन्ना कृषकों को 391 रुपये प्रति क्विंटल के अनुरूप रुपये दिए जाएंगे। इसके अतिरिक्त अब पंजाब भारत में सर्वाधिक गन्ने की कीमत देने वाला राज्य भी बन गया है। पंजाब के पश्चात हरियाणा बाकी राज्यों का नाम आता है।  गन्ने का भाव देने में प्रथम स्थान पर पंजाब है तो दूसरे स्थान पर हरियाणा है। हरियाणा में कृषकों को गन्ने का भाव 386 रुपये प्रति क्विंटल दिया जाता है। यूपी और उत्तराखंड के कृषकों को 350 रुपये का भाव दिया जाता है। 

किसानों को इतने रुपये प्रति क्विंटल मिलेगा फायदा  

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि राज्य के किसान विगत कई दिनों से सरकार से गन्ने की कीमतों को बढ़ाने की मांग कर रहे थे। राज्य में गन्ने की प्रति क्विंटल कीमत 380 रुपये थी, जो वर्तमानं में बढ़ाकर के 391 रुपये प्रति क्विंटल कर ड़ाली है। किसान भाइयो को इस निर्णय के पश्चात फिलहाल 11 रुपये प्रति क्विंटल का फायदा मिलेगा। पंजाब सरकार ने ये निर्णय राज्य के किसानों की मांग पर किया है। 

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कृषकों के लिए फायदेमंद फैसला साबित होगा 

गन्ना किसान बहुत दिनों से सरकार से गन्ने के भाव को बढ़ाने की मांग जाहिर कर रहे थे। सरकार ने कृषकों की मांग को पूर्ण करते हुए यह निर्णय लिया हैजिसको लेकर कृषकों ने बीते दिनों धरना भी दिया था। इसके पश्चात कृषकों के प्रतिनिधियों से पंजाब के मुख्यमंत्री ने वार्तालाप की और उन्हें मूल्य वृद्धि हेतु आश्वस्त भी किया था। इसके साथ-साथ कृषकों की मांग कीमतें 450 रुपये प्रति क्विंटल करने की थी। रिपोर्ट्स की मानें तो पंजाब सरकार के इस निर्णय के उपरांत गन्ना किसानों को लाभ मिलेगा। बतादें, कि इस निर्णय से कृषकों की आमदनी में इजाफा होने के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिति भी काफी सुधरेगी।