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Sugarcane farming

भारत सरकार ने केंद्रीय बीज समिति के परामर्श के बाद गन्ने की 10 नई किस्में जारी की हैं

भारत सरकार ने केंद्रीय बीज समिति के परामर्श के बाद गन्ने की 10 नई किस्में जारी की हैं

गन्ना किसानों के लिए 10 उन्नत किस्में बाजार में उपलब्ध की गई हैं। बतादें, कि गन्ने की इन उन्नत किस्मों की खेती आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी, हरियाणा, मध्य प्रदेश और पंजाब के किसान बड़ी सुगमता से कर सकते हैं। चलिए आज हम आपको इस लेख में गन्ने की इन 10 उन्नत किस्मों के संबंध में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे। भारत में गन्ना एक नकदी फसल है। गन्ने की खेती किसान वाणिज्यिक उद्देश्य से भी किया करते हैं। बतादें, कि किसान इससे चीनी, गुड़, शराब एवं इथेनॉल जैसे उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं। साथ ही, गन्ने की फसल से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों के किसानों को बेहतरीन कमाई भी होती है। किसानों द्वारा गन्ने की बुवाई अक्टूबर से नवंबर माह के आखिर तक और बसंत कालीन गन्ने की बुवाई फरवरी से मार्च माह में की जाती है। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गन्ना फसल को एक सुरक्षित फसल माना गया है। इसकी वजह यह है, कि गन्ने की फसल पर जलवायु परिवर्तन का कोई विशेष असर नहीं पड़ता है।

भारत सरकार ने जारी की गन्ने की 10 नवीन उन्नत किस्में

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने केंद्रीय बीज समिति के परामर्श के पश्चात गन्ने की 10 नवीन किस्में जारी की हैं। इन किस्मों को जारी करने का प्रमुख लक्ष्य गन्ने की खेती करने के लिए गन्ने की उन्नत किस्मों को प्रोत्साहन देना है। इसके साथ ही गन्ना किसान ज्यादा उत्पादन के साथ बंपर आमदनी अर्जित कर सकें।

जानिए गन्ने की 10 उन्नत किस्मों के बारे में

गन्ने की ये समस्त उन्नत किस्में ओपन पोलिनेटेड मतलब कि देसी किस्में हैं। इन किस्मों के बीजों की उपलब्धता या पैदावार इन्हीं के जरिए से हो जाती है। इसके लिए सबसे बेहतर पौधे का चुनाव करके इन बीजों का उत्पादन किया जाता है। इसके अतिरिक्त इन किस्मों के बीजों का एक फायदा यह भी है, कि इन सभी किस्मों का स्वाद इनके हाइब्रिड किस्मों से काफी अच्छा होता है। आइए अब जानते हैं गन्ने की इन 10 उन्नत किस्मों के बारे में।

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इक्षु -15 (सीओएलके 16466)

इक्षु -15 (सीओएलके 16466) किस्म से बेहतरीन उत्पादन हांसिल होगा। यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम राज्य के लिए अनुमोदित की गई है।

राजेंद्र गन्ना-5 (सीओपी 11438)

गन्ने की यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम के लिए अनुमोदित की गई है।

गन्ना कंपनी 18009

यह किस्म केवल तमिलनाडु राज्य के लिए अनुमोदित की गई है।

सीओए 17321

गन्ना की यह उन्नत किस्म आंध्र प्रदेश राज्य के लिए अनुमोदित की गई है।

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सीओ 11015 (अतुल्य)

यह किस्म बाकी किस्मों की तुलना में ज्यादा उत्पादन देती है। क्योंकि इसमें कल्लों की संख्या ज्यादा निकलती है। गन्ने की यह उन्नत किस्म आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की जलवायु के अनुकूल है।

सीओ 14005 (अरुणिमा)

गन्ने की उन्नत किस्म Co 14005 (Arunima) की खेती तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बड़ी सहजता से की जा सकती है।

फुले गन्ना 13007 (एमएस 14082)

गन्ने की उन्नत किस्म Phule Sugarcane 13007 (MS 14082) की खेती तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में बड़ी सहजता से की जा सकती है।

इक्षु -10 (सीओएलके 14201)

गन्ने की Ikshu-10 (CoLK 14201) किस्म को आईसीएआर के द्वारा विकसित किया गया है। बतादें, कि किस्म के अंदर भी लाल सड़न रोग प्रतिरोध की क्षमता है। यह किस्म राजस्थान, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी और मध्य), उत्तराखंड (उत्तर पश्चिम क्षेत्र), पंजाब, हरियाणा की जलवायु के अनुरूप है।

इक्षु -14 (सीओएलके 15206) (एलजी 07584)

गन्ने की Ikshu-14 (CoLK 15206) (LG 07584) किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी और मध्य) और उत्तराखंड (उत्तर पश्चिम क्षेत्र) के किसान खेती कर सकते हैं।

सीओ 16030 (करन 16)

गन्ने की किस्म Co-16030, जिसको Karan-16 के नाम से भी जाना जाता है। इस किस्म को गन्ना प्रजनन संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों की ओर से विकसित किया गया है। यह किस्म उच्च उत्पादन और लाल सड़न रोग प्रतिरोध का एक बेहतरीन संयोजन है। इस किस्म का उत्पादन उत्तराखंड, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में बड़ी आसानी से किया जा सकता है।
ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

पैडी (Paddy) यानी धान, शुगरकैन (sugarcane) अर्धात गन्ना, बाजरा (millet) और मक्का (maize) की अच्छी पैदावार पाने के लिए, भूमि सेवक किसान यदि मात्र कुछ मूल सूत्रों को अमल में ले आएं, तो कृषक को कभी भी नुकसान नहीं रहेगा। यदि होगा भी तो बहुत आंशिक।

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स्यालू में धान (dhaan/Paddy)

स्यालू यानी कि खरीफ की मुख्य फसल (Major Kharif Crops) की यदि बात की जाए तो वह है धान (dhaan/Paddy/Rice)। इस मुख्य फसल की बीज या फिर रोपा (इसकी सलाह अनुभवी किसान देते हैं) आधारित रोपाई, जूलाई महीने में हर हाल में पूरा कर लेने की मुंहजुबानी सलाह किसानों से मिल जाएगी। 

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अच्छी धान के लिए कृषि वैज्ञानिकों के मान से धान (dhaan) के खेत (Paddy Farm) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा का उपयोग धान रोपण के 58 दिन बाद करना हितकारी है। क्योंकि इस समय तक पौधे जमीन में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुके होते हैं। रोपण के सप्ताह उपरांत खेत में रोपण से वंचित एवं सूखकर मरने वाले पौधों वाले स्थान पर, फिर से पौधों का रोपण करने से विरलेपन के बचाव के साथ ही जमीन का पूर्ण सदुपयोग भी हो जाता है। 

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धान रोपण युक्ति

तकरीबन 20 से 25 दिन में तैयार धान की रोपाई खेत में की जा सकती है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। उत्कृष्ट उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (Urea), 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट डालने की सलाह कृषि सलाहकारों की है। 

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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming)

गले की तरावट, मद्य, मीठे गुड़ में मददगार शुगरकैन फार्मिंग (Sugarcane Farming), यानी गन्ने की खेती में भी कुछ बातों का ख्याल रखने पर दमदार और रस से भरपूर वजनदार गन्नों की फसल मिल सकती है। जैसे गन्ने की पछेती बुवाई (रबी फसल कटने के बाद) करने की दशा में, खेत में समय-समय पर सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई अति जरूरी है। फसल कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों के प्रकोप से ग्रसित होने पर रासायनिक, जैविक या अन्य विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। ये भी पढ़ें: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें अत्यधिक वर्षा, तूफान या तेज हवा के दबाव में गन्ने के फसल जमीन पर बिछने/गिरने का खतरा मंडराता है। ऐसे में जुलाई-अगस्त के महीने में ही, दो कतारों मध्य कुंड बनाकर निकाली गई मिट्टी को ऊपर चढ़ाने से ऐहतियातन बचाव किया जा सकता है।

उड़द, मूंग में सावधानी

बारिश शुरू होते ही उड़द एवं मूंग की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। अनिवार्य बारिश में देर होने की दशा में पलेवा कर इनकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े, यानी पहले पंद्रह दिनों में खत्म करने की सलाह दी जाती है। 

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उड़द, मूंग की बुवाई सीड ड्रिल या फिर अपने पुश्तैनी देसी हल से कर सकते हैं। इस दौरान ख्याल रहे कि 30-45 सेमी दूरी पर बनी पक्तियों में बुवाई फसल के लिए कारगर होगी। इसके साथ ही निकाई से पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7 से 10 सेमी कर लेनी चाहिए। उड़द, मूंग की उपलब्ध किस्मों के अनुसार उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है। दोनों फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा गंधक का मानक रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक एवं सलाहकार देते हैं।

भरपूर बाजरा (Bajra) उगाने का यह है माजरा

बाजरा के भरपूर उत्पादन के लिए कई प्लस पॉइंट हैं। अव्वल तो बाजरा (Bajra) के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की जरूरी नहीं, बलुई-दोमट मिट्टी में यह पनपता है। इसकी भरपूर पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फॉस्फोरस और पोटाश 40-40 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन-60 किग्रा, फॉस्फोरस व पोटाश 30-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने की सलाह जानकार देते हैं।


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सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की मात्रा आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश पूरी मात्रा में तकरीबन 3 से 4 सेंमी की गहराई में डालना चाहिए। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा अंकुरण से 4 से 5 हफ्ते बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से फसल को सहायता मिलती है।

ज्वार का ज्वार, मक्का (Maize) का पंच

देशी अंदाज में भुंजा भुट्टा, तो फूटकर पॉपकॉर्न तक कई रोचक सफर से गुजरने वाले मक्के की दमदार पैदावार का पंच यह है, कि मक्का (Maize) व बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए मानसून उपयुक्त माना गया है। उत्तर भारत में इसकी बुवाई की सलाह मध्य जुलाई तक खत्म कर लेने की दी जाती है। मक्के की ताकत की यही बात है कि इसे सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। हालांकि बलुई-दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी बढ़त एवं उत्पादकता में सहायक हैं।


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जोरदार, धुआंधार ज्वार की पैदावार का ज्वार लाने के लिए बारानी क्षेत्रों में मॉनसून की पहली बारिश के हफ्ते भर भीतर ज्वार की बुवाई करना फलदायी है। ज्वार के मामले में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम ज्वार के बीज की जरूरत होगी।  

इस राज्य सरकार ने होली के अवसर पर गन्ना किसानों के खाते में भेजे 2 लाख करोड़

इस राज्य सरकार ने होली के अवसर पर गन्ना किसानों के खाते में भेजे 2 लाख करोड़

मुख्यमंत्री ने बताया है, कि भारत में नया रिकॉर्ड स्थापित होने जा रहा है। पहली बार दो लाख करोड़ से ज्यादा का गन्ना भुगतान किसानों भाइयों के बैंक खातों में हस्तांतरित हो रहा है। भारत के विभिन्न राज्य ऐसे भी हैं, जिनका सालाना बजट भी दो लाख करोड़ नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सोमवार को यह दावा किया गया है, कि योगी सरकार द्वारा गन्ना किसानों को दलालों की चपेट से निजात प्रदान की है। विगत छह सालों के उनके शासन में प्रदेश में एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। मुख्यमंत्री ने होली से पूर्व गन्ना किसानों के बैंक खाते में शेष भाव के दो लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किए जाने के मोके पर कहा, कि पिछली सरकारों में किसान आत्महत्या को मजबूर रहता था। आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि बीते छह सालों में उत्तर प्रदेश में कोई भी किसान भाई आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं हुआ है। यह इसलिए संभव हो पाया है, कि हमारी सरकार में किसानों भाइयों के गन्ना मूल्य का भुगतान कर दिया गया है। समयानुसार धान एवं गेहूं की खरीद की है। योगी जी ने कहा है, कि याद कीजिए एक वक्त वो था जब राज्य के गन्ना किसान खेतों में ही अपनी फसल को जलाने के लिए मजबूर थे। उन्हें सिंचाई हेतु न तो वक्त से जल प्राप्त होता था और ना ही बिजली मुहैय्या कराई जाती थी। इतना ही नहीं समुचित समयानुसार किसानों की बकाया धनराशि का भुगतान भी नहीं हो पाता था। इसी कड़ी में योगी ने आगे बताया कि आज का दिन गन्ना किसानों के लिए ऐतिहासिक होने वाला है, जब होली की पूर्व संध्या पर सोमवार को दो लाख करोड़ की धनराशि उनके बैंक खातों में सीधे तौर पर हस्तांतरित करदी है। सरकार के इस ऐतिहासिक कदम से प्रदेश के गन्ना किसानों की होली की खुशी को दोगुना कर दिया जाएगा।

दलालों की दलाली की बंद

योगी जी ने कहा है, कि विगत समय पर जल, खाद एवं उत्पादन का सही भाव न मिलने की वजह से खेती-किसानी नुकसान का सौदा मानी जाती थी। हमने गन्ना किसानों को दलालों के दलदल से मुक्ति दिलाई है। आजकल किसान भाइयों को खरीद पर्ची हेतु इधर-उधर चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। उनकी पर्ची उनके स्मार्टफोन में पहुँच जाती है। मुख्यमंत्री ने बताया, कि आज किसानों के नाम पर शोषण एवं दलाली करने वालों की दुकान बंद हो गई हैं। ऐसी स्थिति में मानी सी बात है, कि उन्हें समस्या रहेगी।

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कोरोना महामारी के समय में भी 119 चीनी मिलें चालू हो रही थीं

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का कहना है, कि विगत सरकारों के कार्यकाल में जहां चीनी मिलें बंद कर दी जाती थी। अन्यथा उचित गैर उचित भावों में बेच दी जाती थीं। जबकि, योगी सरकार द्वारा किसी चीनी मिल को बंद नहीं किया गया। साथ ही, बंद पड़े चीनी मिलों को पुनः आरंभ कराने का काम किया गया है। उन्होंने बताया कि, मुंडेरवा एवं पिपराइच चीनी मिलों को पुनः सुचारु किया गया है। कोरोना महामारी के चलते जब विश्व की चीनी मिलें बंद हो गई थीं। उस दौर में भी उत्तर प्रदेश में 119 चीनी मिलें चालू हो रही थीं।
खुशखबरी : केंद्र सरकार ने गन्ना की कीमतों में किया इजाफा

खुशखबरी : केंद्र सरकार ने गन्ना की कीमतों में किया इजाफा

जानकारी के लिए बतादें कि उत्तर प्रदेश गन्ना की पैदावार के मामले में अव्वल नंबर का राज्य है। उत्तर प्रदेश के लाखों किसान गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं। फसल सीजन 2022- 23 में यहां पर 28.53 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती की गई। गन्ने की खेती करने वाले कृषकों के लिए अच्छी खबर है। केंद्र सरकार ने द कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कास्ट्स एंड प्राइज की सिफारिश पर गन्ने की एफआरपी बढ़ाने के लिए मंजूरी दे दी है। इससे गन्ना उत्पादक किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई है। कहा जा रहा है, कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से लाखों किसानों को लाभ पहुंचेगा। विशेष कर उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र के किसान सबसे अधिक फायदा होगा। 

केंद्र सरकार ने गन्ने की कीमत में 10 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि की

केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के पश्चात केंद्र सरकार ने गन्ने की एफआरपी में इजाफा करने का फैसला किया है। सरकार द्वारा एफआरपी में 10 रुपये की वृद्धि की है। फिलहाल, गन्ने की एफआरपी 305 रुपये से इजाफा होकर 315 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। विशेष बात यह है, कि अक्टूबर से नवीन शक्कर वर्ष आरंभ हो रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार का यह निर्णय किसानों के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद साबित होगा। साथ ही, कुछ लोग केंद्र सरकार के इस निर्णय को राजनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है। लोगों का मानना है, कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे एफआरपी वृद्धि से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ विभिन्न राज्यों के किसानों को प्रत्यक्ष तौर पर फायदा होगा। 

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महाराष्ट्र में किसानों ने कितने लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की बिजाई की

जैसा कि हम जानते हैं, कि उत्तर प्रदेश गन्ना उत्पादन के मामले में पहले नंबर का राज्य है। यहां पर लाखों किसान गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं। फसल सीजन 2022- 23 के दौरान UP में 28.53 लाख हेक्टेयर भूमि में गन्ने की खेती की गई। साथ ही, महाराष्ट्र में कृषकों ने 14.9 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बिजाई की थी। वहीं, सम्पूर्ण भारत में गन्ने का क्षेत्रफल 62 लाख हेक्टेयर है। अब ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है, कि भारत में गन्ने के कुल रकबे में उत्तर प्रदेश की भागीदारी 46 प्रतिशत है। 

चीनी का उत्पादन कितना घट गया है

उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों की संख्या 119 है और 50 लाख से ज्यादा किसान गन्ने की खेती करते हैं। इस साल उत्तर प्रदेश में 1102.49 लाख टन गन्ने का उत्पादन हुआ था। चीनी मिलों में 1,099.49 लाख टन गन्ने की पेराई की गई। इससे मिलों ने 105 लाख टन चीनी का उत्पादन किया। बतादें, कि उत्तर प्रदेश के शामली जिले में सबसे अधिक गन्ने की उपज होती है। इस जिले में औसत 962.12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गन्ने का उत्पादन होता है। इस वर्ष संपूर्ण भारत में चीनी का उत्पादन 35.76 मिलियन टन से कम होकर 32.8 मिलियन पर पहुंच चुका है।

जायद में गन्ना की बुवाई की वर्टिकल विधि और इसके क्या-क्या लाभ हैं ?

जायद में गन्ना की बुवाई की वर्टिकल विधि और इसके क्या-क्या लाभ हैं ?

किसान भाई अब जायद सीजन की गन्ने की बिजाई करना शुरू करेंगे। समयानुसार गन्ने की बिजाई विधि में परिवर्तन देखने को मिलता है। गन्ना किसान रिंग पिट विधि, ट्रैच विधि और नर्सरी से पौधे लाकर गन्ने की बुवाई करते हैं। प्रत्येक गन्ना बिजाई विधि के अलग-अलग लाभ हैं। 

बीते कुछ समय से गन्ने की बुवाई के लिए वर्टिकल विधि काफी ज्यादा लोकप्रिय हो रही है। यह नवीन विधि सबसे पहले उत्तरप्रदेश के किसानों ने अपनाई थी। गन्ने की खेती में इस विधि के उपयोग से बीज कम लगता है और उपज ज्यादा मिलती है। अब किसान इस विधि को ज्यादा अपना रहे हैं। 

वर्टिकल विधि के फायदे इस प्रकार हैं 

गन्ने की वर्टिकल विधि से बिजाई करना काफी आसान है। इसमें बराबर मात्रा एवं सही दूरी पर पोरी लगाई जाती है एवं जमाव भी बराबर रहता है। साथ ही, मजदूरों की कम आवश्यकता पड़ती है।

वर्टिकल विधि में कल्लों का फुटाव काफी अधिक होता है। 8 से 10 कल्ले सरलता से निकलते हैं। 4 से 5 क्विंटल बीज प्रति एकड़ तक लगता है। बीज पर भी काफी कम खर्चा होता है। इसमें एक आंख की कांची को काटकर सीधा लगाना होता है। इस विधि से बिजाई करने पर गन्ने का जमाव जल्दी होता है।

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वर्टिकल विधि के माध्यम से ज्यादा उत्पादन हांसिल होता है। इसमें एक समान कल्ले फूटते हैं और कल्लों में गन्ने भी समान मात्रा में निकलते हैं। वर्टिकल विधि से 500 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार हांसिल की जा सकती है।

गन्ने की वर्टिकल विधि क्या होती है ?

गन्ना बिजाई की वर्टिकल विधि में कतार से कतार का फासला 4 से 5 फीट और गन्ने से गन्ने का फासला लगभग 2 फीट रखा जाता है। इस विधि में एक एकड़ जमीन पर 5 हजार आंखे लगती हैं।

किसानों को कृषि वैज्ञानिकों के दिशा निर्देशन में खेती करनी चाहिए 

कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के मुताबिक, किसानों को गन्ना की एक ही किस्म पर सदैव निर्भर नहीं रहना चाहिए। वक्त-वक्त पर किस्म में बदलाव करना चाहिए। यदि किसान दीर्घ काल तक एक ही किस्म की बुवाई करते हैं, तो उसमें कई तरह के रोग लग जाते हैं और पैदावार में भी गिरावट होती है। 

इस वजह से किसानों को भिन्न-भिन्न प्रजातियों का चयन करना चाहिए। साथ ही, किसानों को सलाह दी जाती है, कि अपने क्षेत्र की जलवायु व खेत की मृदा के अनुसार स्थानीय कृषि अधिकारियों के दिशा-निर्देशन में ही गन्ने की खेती करें।

फरवरी के कृषि कार्य: जानिए फरवरी माह में उगाई जाने वाली फसलें

फरवरी के कृषि कार्य: जानिए फरवरी माह में उगाई जाने वाली फसलें

गेहू की फसल में मुख्य कार्य उर्वरक प्रबंधन एवं सिंचाई का रहता है। ज्यादातर इलाकों में गेहूं में तीसरे एवं चौथे पानी की तैयारी है। तीसरे पानी का काम ज्यादातर राज्यों में पिछले दिनों हुई बरसात से हो गया है। गेहूं में झुलसा रोग से बचाव के लिए डायथेन एम 45 या जिनेब की 2.5 किलोग्राम मात्रा का पर्याप्त पानी में घोलकर छिड़काव करेंं। गेरुई रोग से बचाव के लिए प्रोपिकोनाजोल यानी टिल्ट नामक दवा की 25 ईसी दवा को एक एमएल दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिडकाव करें। टिल्ट का छिडकाव दानों में चमक एवं वजन बढ़ाने के साथ फसल को फफूंद जनित रोगों से बचाता है। छिडकाव कोथ में बाली निकलने के समय होना चाहिए। फसल को चूहों के प्रकोप से बचाने के लिए एल्यूमिनियम फास्फाइड का प्रयोग करें।

जौ

jau ki kheti

जौ की फसल में कंडुआ जिसे करनाल बंट भी कहा जाता है लग सकता है। यह रोग संक्रमित बीज वाली फसल में हो सकता है। बचाव के लिए किसी प्रभावी फफूंदनाशक दवा या टिल्ट नामक दवा का छिड़काव करें।

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चना

chana ki kheti

चने की खेती में दाना बनने की अवस्था में फली छेदक कीट लगने शुरू हो जाते हैं। बचाव हेतु बीटी एक किलोग्राम या फेनवैलरेअ 20 प्रतिशत ईसी की एक लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करेंं।

मटर

matar ki kheti

मटर में इस सयम पाउड्री मिल्डयू रोग लगता है। रोकथाम के लिए प्रति हैक्टेयर दो किलोग्राम घुलनशील गंधक या कार्बेन्डाजिम नामक फफूंदनाशक की 500 ग्राम मात्रा 500 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करेंं।

राई सरसों

सरसों की फसल में इस समय तक फूल झड़ चुका होता है। इस समय माहूू कीट से फसल को बचाने के लिए मिथाइल ओ डिमोटान 25 ईसी प्रति लीटर दवा पर्याप्त पानी में घोलकर छिडकाव करेंं।

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मक्का

makka ki kheti

रबी मक्का में सिंचाई का काम मुख्य रहता है । लिहाजा तीसरा पानी 80 दिन बाद एवं चौथा पानी 110 दिन बाद लगाएं। यह समय बसन्तकालीन मक्का की बिजाई के लिए उपयुक्त होने लगता है।

गन्ना

sugarcane farming

गन्ने की बसंत कालीन किस्मों को लगाने के समय आ गया है। मटर, आलू, तोरिया के खाली खेतों में गन्ने की फसल लगाई जा सकती है। गन्ने की कोशा 802, 7918, 776, 8118, 687, 8436 पंत 211 एवं बीओ 91 जैसी अनेक नई पुरानी किस्में मौजूद हैं। कई नई उन्नत किस्तें गन्ना संस्थानों ने विकसित की हैं। इनकी विस्तृत जानकारी लेकर इन्हें लगाया जा सकता है।

फल वाले पौधे

नीबू वर्गीस सिट्रस फल वाले मौसमी, किन्नू आदि के पौधों में विषाणु जनित रोगों के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड 3 एमएल प्रति 10 लीटर पानी में, कार्बरिल 20 ग्राम 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। नाशपाती एवं सतालू आदि सभी फलदार पौधों के बागों में सड़ी गोबर की खाद, मिनरल मिक्चर आदि तापमान बढ़ने के साथ ही डालें ताकि पौधों का समग्र विकास हो सके। आम के खर्रा रोग को रोकने के लिए घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी 0.2 प्रतिशत दवा की 2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें। इसके अलावा अन्य प्रभावी फफूंदनाशक का एक छिडकाव करें। कीड़ों से पौधों को सुरक्षत रखने के लिए इमिडाक्लोरोपिड का एक एमएल प्रति तीन लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।

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फूल वाली फसलें

गुलदाउूजी के कंद लगाएं। गर्मी वाले जीनिया, सनफ्लावर, पोर्चलुका, कोचिया के बीजों को नर्सरी में बोएं ताकि समय से पौध तैयार हो सके।

सब्जी वाली फसलें

aloo ki kheti

आलू की पछेती फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए मैंकोजेब या साफ नामक दवा की उचित मात्रा छिडकाव करें। प्याज एवं लहसुन में संतुलित उर्वरक प्रबधन करें। खादों के अलावा शूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग करें। फफूंद जनित रोगों से बचाव एवं थ्रिप्स रोग से बचाव के लिए कारगर दवाओं का प्रयोग करें। भिन्डी के बीजों की बिजाई करें। बोने से पहले बीजों को 24 घण्टे पूर्व पानी में भिगोलें। कद्दू वर्गीय फसलों की अगेती खेती के लिए पॉलीहाउस, छप्पर आदि में अगेती पौध तैयार करें।

पशुधन

पशुओं की बदलते मौसम में विशेष देखभाल करें। रात के समय जल्दी पशुओं को बाडे में बांधें। पशुओं को दाने के साथ मिनरल मिक्चर आवश्यक रूप से दें।

गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी

गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी

भारत में गन्ने की खेती वैदिक काल से होती चली आ रही है। गन्ने का व्यावसायिक उपयोग होता है। इसलिये गन्ने की आधुनिक खेती को व्यावसायिक खेती कहा जाता है। गन्ने की खेत से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। गन्ने की खेती के बारे में कहा जाता है कि यह सुरक्षित खेती है क्योंकि गन्ने की खेती को विषम परिस्थितियां बिलकुल प्रभावित नहीं कर पातीं हैं। 

साल में  दो बार की जा सकती है गन्ने की खेती

भारत में गन्ने की फसल के लिए बुआई साल में दो बार की जा सकती है। इन दोनों फसलों को बसंतकालीन व शरदकालीन कहा जाता है। शरदकालीन  फसल के लिए गन्ने की बुआई 15 अक्टूबर तक की जाती हैजबकि बसंत कालीन गन्ने की फसल के लिए बुआई 15 फरवरी से लेकर 15 मार्च तक की जाती है। बसंत कालीन गन्ने की आधुनिक खेती के लिए बुआई धान की पछैती फसल की कटाई के बाद, तोरिया, आलू व मटर की फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है। 

गन्ने की खेती से होती है बड़ी कमाई

sugarcane farming 

 गन्ने की खेती बहुवर्र्षीय फसल है। एक बार बुआई करने के बाद कम से कम तीन बार फसल की कटाई की जा सकती है। यदि अच्छे प्रबंधन से खेती की जाये तो प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। गन्ने की खेती से किसान भाइयों को मक्का-गेहूं, धान-गेहूं, सोयाबीन-गेहूं, दलहन-गेहूं के फसल चक्र से अधिक कमाई की जा सकती है। 

गन्ने की आधुनिक खेती के लिए आवश्यक मिट्टी

गन्ने की फसल के लिए सबसे अच्छी मिट्टी दोमट मिट्टी होती है। इसके अलावा गन्ने की खेती को भारी दोमट मिट्टी में अच्छी फसल ली जा सकती है। गन्ने की खेती क्षारीय,अमलीय, जलजमाव वाली जमीन में नहीं की जा सकती है। 

किस प्रकार करें खेती की तैयारी

धान, आलू, मटर, आदि फसलों से खाली हुए खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से तीन चार बार जुताई करनी चाहिये। पुरानी फसलों के अवशेष व खरपतवार पूरी तरह से हटा देना चाहिये। बेहतर होगा कि हैरो से तीन बार जुताई करनी चाहिये। इसके बाद देशी हल से 5-6 बार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिये। किसान भाइयों को इसके बाद खेत का निरीक्षण करना चाहिये यदि खेत सूखा हो तो पलेवा करना चाहिये। यह देखना चाहिये कि गन्ने की बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। 

बीज कैसे तैयार करें

गन्ने की फसल लेने के लिए अच्छे बीज को भी तैयार करना होता है। इसके लिए खेत में अच्छी तरह से खाद डालना चाहिये।  गन्ने के बीज बनाने के लिए गन्ना लेते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि गन्ने में कोई रोग नहीं हो और जिस खेत में बुआई करने जा रहे हों तो उसी खेत का पुराना गन्ना नहीं होना चाहिये। प्रत्येक खेत के लिए नये खेत के गन्ने से बने हुए बीज का इस्तेमाल करना चाहिये। गन्ने का केवल ऊपरी भाग यदि बीज का इस्तेमाल किया जाये तो बहुत अच्छा होता है।  ऊपरी भाग की खास बात यह है कि वह जल्द ही अंकुरित होता है।  गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों को अलग-अलग काट लेना चाहिये। प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए इस तरह के 40 हजार टुकड़े चाहिये। बुआई करने से पहले गन्ने के बीज को कार्बनिक कवकनाशी से उपचार करना जरूरी होता है।  

गन्ने की आधुनिक खेती की बुआई का तरीका

किसान भाइयों को बसंत कालीन फसल के लिए गन्ने के बीज की दूरी 75 सेमी रखनी होती है जबकि शरदकालीन गन्ने के लिए बीज की दूरी 90 सेमी रखनी होती है। दोनों ही फसलों के लिए रिजन से 20 सेमी गहरी नालियां खोदी जानी चाहिये। फिर उर्वरक मिलाकर मिट्टी को नाली में डालना चाहिये। दीमक और तना •छेदक कीड़े से बचाव के लिए बुआई के पांच दिन बाद ग्राम बीएचसी का 1200-1300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। इस दवा को 50 लीटर पानी में घोलकर नालियों पर छिड़काव करके मिट्टी से बंद कर देना चाहिये। बुआई के बाद किसान भाइयों को लगातार गन्ने की खेती की निगरानी रखनी चाहिये। यदि पायरिला का असर दिखे और उसके अंडे दिख जायें तो किसी रसायन का प्रयोग करने से पहले किसी कीट विशेषज्ञ से राय ले लें। इसके अलावा यदि खड़ी फसल में दीपक लग गया हो तो 5 लीटर गामा बीएचसी 20 ईसी का प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में सिंचाई से समय इस्तेमाल करना चाहिये। 

सिंचाई प्रबंधन

बसंत कालीन गन्ने की खेती के लिए किसान भाइयों को विशेष रूप से सिंचाई पर ध्यान देना होता है। इस फसल के लिए कम से कम 6 बार सिंचाई करनी होती है। चार बार सिंचाई बरसात से पहले की जानी चाहिये और दो बाद सिंचाई बारिश के बाद की जानी चाहिये। तराई क्षेत्रों में तो केवल 2 या 3 सिंचाई ही पर्याप्त होती है। 

खरपतवार प्रबंधन

गन्ने की खेती में खरपतवार नियंत्रण के प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बुआई के बाद एक-एक महीने के अंतर में तीन बार निराई, गुड़ाई करनी चाहिये। हालांकि गन्ने की खेती में खरपतवार के नियंत्रण के लिए बुआई के तुरन्त बाद एट्राजिन और सेंकर को एक हजार लीटर पानी में प्रतिकिलो मिलाकर छिड़काव करने से खरपतवार नियंत्रण होता है लेकिन रसायनों के बल पर खरपतवार को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया जा सकता है। 

रोगों की रोकथाम कैसे करें

किसान भाइयों को चाहिये गन्ने की खेती में रोगों की रोकथाम करने के विशेष इंतजाम करने चाहिये। जानकार लोगों का मानना है कि गन्ने की खेती में रोग बीज से ही लगते हैं। इसलिये गन्ने की खेती में लगने वाले रोगों की रोकथाम के लिए इस प्रकार से इंतजाम करना चाहिये।
  1. गन्ने की खेती की बुआई के लिए निरोगी, स्वस्थ और प्रमाणित बीज ही बोयें।
  2. गन्ने की बुआई से पहले बीज को ट्राईकोडर्मा 10 को प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं और उससे बीज को उपचारित करें।
  3. बीज के लिए गन्ने को काटते समय ध्यान रखें और लाल और पीले रंग एवं गांठों की जड़ को निकाल दें। सूखे गन्ने को भी अलग कर लें।
  4. यदि किसी खेत में रोग लग जाये तो गन्ने की फसल के लिए 2-3 साल तक नहीं बोनी चाहिये।

उर्वरक और खाद का प्रबंधन कैसे करें

गन्ने की फसल लम्बी अवधि के लिए होती है। इसलिये खेत में उर्वरक और खाद का प्रबंधन भी अच्छा करना होता है। सबसे पहले खेत की अंतिम जुताई से पूर्व सड़ी गोबर व कम्पोस्ट की 20 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खाद डालनी चाहिये। इस खाद को खेत की मिट्टी से अच्छी तरह मिलाना चाहिये। बुआई से पहले 300 किलोग्राम नाइट्रोजन,, 500 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 60 किलोग्राम पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिये। एसएसपी और पोटाश की पूरी मात्रा को बुआई करनी चाहिये। लेकिन नाइट्रोजन की पूरी मात्रा को तीन हिस्सों में समान रूप से बांटना चाहिये। किसान भाइयों को चाहिये कि नाइट्रोजन को बुआई के बाद 30 दिन बाद, 90 दिन के बाद और चार महीने के बाद खेत में सिंचाई करने से पहले डालना चाहिये। नाइट्रोजन के साथ नीम की खली भी मिलाकर खेत में डालने से किसान भाइयों को गन्ने की फसल में लगने वाले दीमक से भी सुरक्षा मिल सकती है। इसके अलावा बुआई के समय खेत में जिंक व आयरन की कमी को पूरा करने के लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 50 किलोग्राम फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतर से डालना चाहिये। 

गन्ने को गिरने से बचाने के उपाय करने चाहिये

गन्ने की लाइनों की दिशा पूर्व तथा पश्चिम की ओर रखें। गन्ने की गहरी बुआई करें। पौधा जब डेढ़ मीटर का हो जाये तब दो बार उसकी जड़ों में मिट्टी चढ़ाएं। गन्ने की बंधाई करें। यह बंधाई पत्ते से की जानी चाहिये लेकिन सारी पत्तियां एक जगह पर इकट्ठा न हों।

1 एकड़ में 55 टन, इस फसल की खेती करने वाले किसान हो जाएंगे मालामाल

1 एकड़ में 55 टन, इस फसल की खेती करने वाले किसान हो जाएंगे मालामाल

भारत में गन्ने की खेती काफी मात्रा में होती है। गन्ना की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है। भारत के कृषि वैज्ञानिकों ने गन्ने की एक नई किस्म विकसित की है। इस नई किस्म से किसानों को काफी फायदा होगा। ऐसा माना जा रहा है कि अगर इस किस्म से गन्ने का उत्पादन किया जाये, तो पहले की अपेक्षा काफी ज्यादा उत्पादन होगा। इस खबर से गन्ने की खेती करने वाले किसानो के बीच काफी खुशी की लहर है। खास बात यह है कि गन्ने की इस नई किस्म का नाम Co86032 है, यह कीट प्रतिरोधी है। इस नई गन्ने की खेती करने वाले किसानों के बीच काफी उम्मीद है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) राज्य की केरल मिशन परियोजना ने गन्ने की किस्म Co86032 को परखा है। Co86032 की खासियत यह है कि इसे सिंचाई की कम जरूरत पड़ेगी, यानी गन्ने की Co86032 किस्म कम पानी में तैयार हो जाती है। साथ ही यह कीटों के हमले के खिलाफ लड़ने में ज्यादा लाभ दायक है, क्योंकि इसमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक मात्रा मे पाई जाती है, साथ ही इससे अधिक उपज किसानों को मिलेगा। वहीं, परखे हुए अधिकारियों ने बताया कि सस्टेनेबल गन्ना पहल (एसएसआई) के जरिए साल 2021 में एक पायलट प्रोजेक्ट लागू किया गया था। दरअसल, एसएसआई गन्ने की खेती की एक ऐसी विधि है जो कम संसाधन, कम बीज, कम पानी एवं कम से कम खाद का प्रयोग होता है।


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एसएसआई का उद्देश्य कम संसाधन कम लागत मे खेती के उपज को बढ़ाना है

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक केरल के मरयूर में पारंपरिक रूप से गन्ने के ठूंठ का उपयोग करके Co86032 किस्म की खेती की जाती थी। लेकिन पहली बार गन्ने की पौध का इस्तेमाल खेती के लिए किया गया है। तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने गन्ने की खेती के लिए एसएसआई पद्धति पहले ही लागू कर दी है। नई एसएसआई खेती पद्धति का उद्देश्य किसानों की कम लागत पर अच्छी उपज बढ़ाना है।

5,000 पौधे की ही जरूरत पड़ेगी

मरयूर के एक किसान विजयन की जमीन पर पहले इस प्रोजेक्ट को लागू किया गया था। इस प्रोजेक्ट की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक एकड़ भूमि में 55 टन गन्ना प्राप्त हुआ है। ऐसे एक एकड़ में औसत उत्पादन 40 टन होता है और इसे प्राप्त करने के लिए 30,000 गन्ना स्टंप की आवश्यकता होती है। हालांकि, यदि आप रोपाई के दौरान पौध का उपयोग कर रहे हैं, तो आपको केवल 5,000 पौधे की ही जरूरत पड़ेगी। विजयन ने बताया कि फसल की अच्छी उपज को देखते हुए अब हमारे क्षेत्र के कई किसानों ने एसएसआई विधि से गन्ने की खेती करने के लिए अपनी इच्छा जाहिर की है।


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स्वाद में बेजोड़ मरयूर गुड़

प्रति एकड़ गन्ने के स्टंप की कीमत 18,000 रुपये है, जबकि पौधे की लागत 7,500 रुपये से भी कम है। अधिकारियों के अनुसार, एक महीने पुराने गन्ने के पौधे शुरू में कर्नाटक में एक एसएसआई नर्सरी से लाए गए और चयनित किसानों को वितरण किया गया। मरयूर में पौधे पैदा करने के लिए एक लघु उद्योग नर्सरी स्थापित की गई है। मरयूर और कंथलूर पंचायत के किसान बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती करते हैं। मरयूर गुड़ अपनी गुणवत्ता और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है।
गन्ने की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

गन्ने की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

गन्ने की खेती से किसान काफी अच्छा मुनाफा कमाते हैं। भारत में गन्ने का काफी उत्पादन काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है। गन्ना के इस्तेमाल से बहुत सारे उत्पाद निर्मित होते हैं। गन्ना से चीनी निर्मित की जाती है। भारत में गन्ने की अत्यधिक पैदावार होने के चलते यहां से चीनी का भी अच्छा खासा निर्यात किया जाता है। आज हम आपको इस लेख में गन्ने की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

जमीन का चयन और उसकी तैयारी

गन्ना के लिए बेहतर जल निकासी वाली दोमट जमीन सबसे उपयुक्त होती है। ग्रीष्म में मृदा पलटने वाले हल सें दो बार आड़ी एवं खड़ी जुताई करें। अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में बखर से जुताई कर मृदा को भुरभुरी कर लें और पाटा चलाकर एकसार कर लें। रिजर की मदद से 3 फुट के फासले पर नालियां निर्मित कर लें। परंतु, वसंत ऋतु में रोपित किए जाने वाले ( फरवरी - मार्च ) गन्ने के लिए नालियों का फासला 2 फुट रखें। आखिरी बखरनी के दौरान जमीन को लिंडेन 2% पूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ से उपचारित जरूर करें।

गन्ने की बिजाई हेतु उपयुक्त समय

गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सबसे उपयुक्त वक्त अक्टूबर - नवम्बर है । बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए।

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गन्ने के साथ अन्तवर्तीय फसल

अक्टूबर नवंबर में 90 से.मी. पर निकाली गई गरेड़ों में गन्ने की फसल की बिजाई की जाती है। साथ ही, मेंढ़ों की दोनों तरफ आलू, राजमा, प्याज, लहसुन, या सीधी बढ़ने वाली मटर अन्तवर्तीय फसल के तौर पर लगाना उपयुक्त माना जाता है। इससे गन्ने की फसल को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती। इससे 6000 से 10000 रूपये का अतिरिक्त मुनाफा होगा। वसंत ऋतु में गरेडों की मेड़ों के दोनों तरफ मूंग, उड़द लगाना काफी फायदेमंद है। इससे 2000 से 2800 रूपये प्रति एकड़ अतिरिक्त मुनाफा मिल जाता है।

गन्ने की खेती के लिए उर्वरक

गन्ने में 300 कि. नाइट्रोजन (650 किलो यूरिया), 80 किलो फास्फोरस, (500 कि0 सुपरफास्फेट) एवं 90 किलो पोटाश (150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टर देवें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के पहले गरेडों में देनी चाहिए। नाइट्रोजन की मात्रा अक्टूबर में बोई जाने वाली फसल के लिए संभागों में विभाजित कर अंकुरण के दौरान, कल्ले निकलते वक्त हल्की मृदा चढ़ाते वक्त और भारी मृदा चढ़ाने के दौरान दें। फरवरी माह में बिजाई की गई फसल में तीन समान हिस्सों में अंकुरण के दौरान हल्की मृदा चढ़ाते समय एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें। गन्ने की फसल में नाइट्रोजन की मात्रा की पूर्ति गोबर की खाद अथवा हरी खाद से करना फायदेमंद होता है।

निराई गुड़ाई

बोनी के करीब 4 माह तक खरपतवारों का नियंत्रण जरूरी होता है। इसके लिए 3-4 बार निंदाई करनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण हेतु अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण के पहले छिड़काव करें। उसके पश्चात ऊगे खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें। छिड़काव के दौरान खेत में नमी होनी काफी जरुरी है।

गन्ने की खेती में मिट्टी चढ़ाना

गन्ने को गिरने से बचाने के लिए रीजर की मदद से मृदा चढ़ानी चाहिए। अक्टूबर-नवम्बर में बोई गई फसल में प्रथम मिट्टी फरवरी - मार्च में और आखिरी मिट्टी मई माह में चढ़ानी चाहिए । कल्ले फूटने से पूर्व मृदा नहीं चढ़ानी चाहिए।

गन्ने की सिंचाई

शीतकाल में 15 दिन के अंतराल पर और गर्मी में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। सिंचाई सर्पाकार विधि से करें। सिंचाई की मात्रा कम करने के लिए गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की 4-6 मोटी बिछावन बिछा दें। ग्रीष्मकाल में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई करें।

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गन्ने की पेंड़ी काफी फायदेमंद होती है

किसान गन्ने की पेड़ी फसल पर खास ध्यान नहीं देते, फलस्वरूप इसकी पैदावार कम अर्जित होती है। अगर पेड़ी फसल में भी योजनाबध्द ढंग से कृषि काम किये जाएं तो इसकी पैदावार भी मुख्य फसल के समतुल्य अर्जित की जा सकती है। पेड़ी फसल से ज्यादा पैदावार लेने के लिए अनुशंसित कृषि माला अपनाना चाहिए। मुख्य गन्ना फसल के उपरांत बीज टुकड़ों से ही दोबारा पौधे विकसित होते हैं, जिससे दूसरे साल फसल अर्जित होती है। इसी तरह तीसरे वर्ष भी फसल प्राप्त की जा सकती है। इसके पश्चात पेड़ी फसल लेना फायदेमंद नहीं होता है। यहां यह उल्लेखनीय है, कि कीट रहित मुख्य फसल से ही भविष्य की पेड़ी फसल से ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है। चूंकि पेड़ी फसल बिना बीज की व्यवस्था और बिना विशेष खेत की तैयारी के ही अर्जित होती है। इसलिए इसमें खर्चा कम आता है। साथ ही, पेड़ी की फसल विशेष फसल की अपेक्षा शीघ्र पक कर तैयार हो जाती है। इसके गन्ने के रस में मिठास भी काफी ज्यादा होती है।

गन्ने की किस्में

अगर किसान नया बीजारोपण कर रहे हो एवं आगे पेड़ी रखने का प्लान हो तो को. 1305 को. 7314, को.7318 , को. 775, को. 1148,को. 1307, को. 1287 इत्यादि अच्छी पेड़ी फसल देने वाली किस्मों का स्वस्थ और उपचारित बीज लगाऐं।

मुख्य फसल की कटाई और सफाई

मुख्य फसल को फरवरी-मार्च में काटें फरवरी पूर्व कटाई करने से कम तापमान होने की वजह फुटाव कम होंगे। पेड़ी फसल में कल्ले कम अर्जित होंगें। कटाई करने के दौरान गन्ने को भूमि की सतह के करीब से काटा जाना चाहिए। इससे स्वस्थ और ज्यादा कल्ले अर्जित होंगे। ऊंचाई से काटने से ठूंठ पर कीट व्याधि की आरंभिक अवस्था में प्रकोप की आशंका बढ़ जाती है। बतादें, कि जड़े भी ऊपर से निकलती है, जो कि बाद में गन्ने के वजन को संभाल नहीं पाती। खेत की सफाई के लिए जीवांश खाद बनाने के लिए पिछली फसल की पत्तियों व अवशेषों को कम्पोस्ट गड्डे में डालें।

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कटी सतह पर उपचार करें

कटे हुए ठूंठों पर कार्बेन्डाइजिम 550 ग्राम 250 ली. जल में घोल कर झारे की मदद से कटी हुई सतह पर छिड़कें। इससे कीटव्याधि संक्रमण से बचाव होगा।

कम उत्पादन की क्या वजह होती है

खेत में खाली भूमि का रह जाना ही कम उत्पादन की वजह है। अत: जो भूमि 1 फुट से ज्यादा खाली हो। वहां पर नवीन गन्ने के उपचारित टुकड़े लगाकर सिंचाई कर दें। गरेड़ो को भी तोड़ें सिंचाई के उपरांत बतर आने पर गरेड़ों को बाजू से हल चलाकर तोड़ें, जिससे पुरानी जड़े टूटेंगी। साथ ही, नई जड़ें दी गई खाद का भरपूर इस्तेमाल करेंगी।

गन्ने की खेती में भरपूर खाद दें

बीज फसल की भांति ही जड़ फसल में भी नत्रजन 120 कि., स्फुर 32 कि. तथा पोटाश 24 कि. प्रति एकड़ दर से देना चाहिए। स्फुर एवं पोटाश की भरपूर मात्रा और नत्रजन की ज्यादा मात्रा गरेड़ तोडते वक्त हल की मदद से नाली में देनी चाहिए। बाकी बची आधी नत्रजन की मात्रा अंतिम मृदा चढ़ाते वक्त दें। नाली में खाद देने के उपरांत रिजर अथवा देसी हल में पाटा बांधकर हल्की मिट्टी चढ़ायें।

किसान सूखी पत्तियां जलाने की जगह बिछायें

प्राय: किसान सूखी पत्तियों को खेत में जला देते है। उक्त सूखी पत्तियों को जलाये नहीं बल्कि उन्हे गरड़ों में बिछा दें। इससे पानी की भाप बनकर उड़ने में कमी होगी। सूखी पत्तियां बिछाने के बाद 10 कि.ग्रा. बी.एर्च.सी 10% चूर्ण प्रति एकड़ का भुरकाव करें। बाकी काम जब पौधे 1.5 मी. ऊचाई के हो जाएं उस वक्त गन्ना बंधाई का काम करें। उपरोक्त कम लागत वाले उपाय करने से जड़ी फसल का उत्पादन भी बीज फसल की उत्पादन के समतुल्य ली जा सकती है।
खरपतवार गन्ने की फसल को काफी प्रभावित कर सकता है

खरपतवार गन्ने की फसल को काफी प्रभावित कर सकता है

गन्ने की बिजाई से पूर्व खरपतवार नियंत्रण को अवश्य ध्यान में रखें। गन्ने की फसल में यदि समय से खरपतवार नियंत्रण किया जाए तो उत्पादन में कमी देखने को मिलती है। उत्पादन 10 से 30 फीसद तक घट सकता है। ऐसे में जानते हैं की खरपतवार पर नियंत्रण कैसे रखें।  भारत में इन दिनों शरदकालीन गन्ने की बिजाई चल रही है। ऐसे वक्त में खरपतवार नियंत्रण भी बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि, खरपतवार की वजह से गन्ने की फसल को काफी हानि हो सकती है, जो उपज में भी गिरावट ला सकता है। अब ऐसी स्थिति में बिजाई से पूर्व वक्त रहते इस पर काबू कर लेना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है, कि किसानों को नियमित तौर पर खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। जिससे कि उनकी फसल का पूर्ण विकास संभव हो सके। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के प्रसार अधिकारी डॉक्टर संजीव पाठक का कहना है, कि देश के विभिन्न राज्यों में इन दिनों गन्ने की बिजाई चल रही है। किसान भाई बिजाई से पूर्व खरपतवार नियंत्रण को अवश्य ध्यान में रखें। उन्होंने कहा है, कि गन्ने में चौड़ी एवं सकरी पत्ती के लगभग 45 तरीके के खरपतवार पाए जाते हैं।

इस तरह गन्ने की उपज काफी घटती है 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जिन खेतों में ट्रेंच विधि से गन्ने की बिजाई की जाती है। वहां बीच में काफी जगह होने के चलते खरपतवार तीव्रता से बढ़ती है। गन्ने की फसल में यदि वक्त से खरपतवार नियंत्रण किया जाए, तो गन्ने की पैदावार में कमी देखने को मिल सकती है। बतादें, कि उत्पादन 10 से 30 फीसद तक घट सकता है। क्योंकि खरपतवार गन्ने की फसल के साथ-साथ बढ़ते हैं। इस वजह से समय रहते खरपतवार पर काबू करें, जिससे कि आपकी फसल को हानि ना पहुंचे। 

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खरपतवार पर इस तरह काबू करें

डॉ. संजीव पाठक ने कहा है, कि गन्ने की बिजाई के प्रारंभिक तीन माह में खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी है। खरपतवार नियंत्रण के लिए दो विधियों का उपयोग किया जा सकता है। प्रथम विधि जिसमें रासायनिक तरीके से खरपतवार नाशक दवाओं का छिड़काव कर खरपतवारों को खत्म किया जा सकता है। वहीं, दूसरी विधि यांत्रिक विधि है, जिसमें निराई गुड़ाई करके खरपतवार समाप्त किये जा सकते हैं। निराई-गुड़ाई करने से मृदा में वायु का प्रवाह होता है, जिससे गन्ने की जड़ों का शानदार विकास होता है। बतादें, कि जब जड़ें पूर्ण रूप से विकसित होगी तो मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों, किसानों द्वारा दिए गए उर्वरक एवं सिंचाई के जल को पौधे शानदार तरीके से ग्रहण करेंगे, जिससे बढ़वार एवं विकास भी अच्छा होगा। अब ऐसे में किसानों को काफी अच्छी उपज मिलेगी। साथ ही, फसल में उगे हुए खरपतवार भी समाप्त हो जाएंगे।

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किसान भाई दवा का छिड़काव इस तरह से करें 

यदि किसी विशेष परिस्थितियों में रासायनिक विधि का उपयोग करना पड़े तो चौड़ी पत्ती एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवार की रोकथाम करने के लिए एक साथ 500 ग्राम मेट्रिब्यूजीन 70 प्रतिशत (Metribuzin 70% WP) और 2 4 डी 58 प्रतिशत ढाई लीटर प्रति हेक्टेयर के अनुरूप 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर उसका छिड़काव कर दें। इस दौरान सावधानी रखें, कि दवा का छिड़काव गन्ने की दो लाइनों के मध्य की जगह पर खरपतवार पर ही करें। यह प्रयास करें, कि गन्ने के पौधों पर दवा ना गिर पाए। गन्ने के पौधों पर दवा का छिड़काव होने से पौधों की बढ़वार काफी प्रभावित हो सकती है।
इस राज्य में बढ़ेगी गन्ने की कीमत, गन्ना किसानों को मिलेगा लाभ

इस राज्य में बढ़ेगी गन्ने की कीमत, गन्ना किसानों को मिलेगा लाभ

योगी सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश के कृषकों को शीघ्र ही सरकार की तरफ से तोहफा दिया जा सकता है। राज्य सरकार की तरफ से आने वाले दिनों में गन्ने के भाव को बढ़ाया जा सकता है। कृषकों के हित को मन्देनजर रखते हुए शीघ्र ही यूपी सरकार गन्ने की कीमतों को लेकर ऐलान कर सकती है। इस फैसले के लागू होने के पश्चात किसान भाइयों को गन्ने का मूल्य काफी अधिक मिलेगा।

सूत्रों के मुताबिक, सरकार की तरफ से गन्ने की कीमतों में आगामी कुछ ही दिनों में 15 रुपये से लेकर 25 रुपये तक का इजाफा किया जा सकता है। साथ ही, राज्य के गन्ना मंत्री ने भी बातों-बातों में इस तरह के संकेत दिए हैं। हालांकि, कितने रुपये की बढ़ोतरी की जाऐगी। इस बात की फिलहाल कोई पुष्टि नहीं हुई है।

गन्ना किसान लगातार मूल्य वृद्धि की मांग कर रहे हैं

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि कृषकों की तरफ से गन्ने की SAP को बढ़ाए जाने की निरंतर मांग की जा रही है। हालांकि, राज्य में बीते वर्षों में इसकी कीमत में इजाफा हुआ था। उत्तर प्रदेश में अंतिम बार वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले गन्ना मूल्य बढ़ाकर 350 और 360 रुपये प्रति कुंतल घोषित किया गया था। मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई राज्य परामर्शित गन्ना मूल्य निर्धारण संस्तुति समिति की बैठक में गन्ना कृषकों ने उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से मूल्य वृद्धि की मांग की है।

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गन्ना का मूल्य जल्द से जल्द घोषित किया जाऐगा

वहीं, चीनी मिल एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने बहुत सारी समस्याओं को उठाते हुए कीमतों को यथावत रखने की मांग की है। मुख्य सचिव ने सब कुछ सुनने के पश्चात कहा कि गन्ना मूल्य यथाशीघ्र घोषित किया जाऐगा। संबंधित प्रस्ताव को शीघ्र ही कैबिनेट के सामने मंजूरी के लिए रखा जाऐगा। सरकार से रालोद और सपा निरंतर गन्ना मूल्य बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। बहुत सारी खबरों के मुताबिक, सरकार चीनी मिलों को भी राहत प्रदान कर सकती है। सरकार गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी की वजह से पड़ने वाले खर्च को कम करने के लिए मिलों को परिवहन भाड़े में एक से दो रुपये की सहूलियत प्रदान कर सकती है। 

जानें किसान राकेश दुबे गन्ने की खेती से वार्षिक 40 लाख का लाभ कैसे उठा रहा है?

जानें किसान राकेश दुबे गन्ने की खेती से वार्षिक 40 लाख का लाभ कैसे उठा रहा है?

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर होती है। भारत एक ऐसी भूमि भी है, जहां विश्व में सबसे ज्यादा विभिन्न किस्मों की विभिन्न फसलें उगाई जाती हैं। भारत के अंदर बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती है।

 परंतु, गन्ना किसानों को सदैव यह शिकायत रहती है, कि वह इससे कोई ज्यादा मुनाफा नहीं प्राप्त कर पाते हैं। परंतु, विभिन्न किसान ऐसे भी हैं, जिन्होंने गन्ने की अहमियत समझी और आज वह उससे मोटा लाभ उठा रहे हैं। 

आज हम आपको एक ऐसे ही सफल किसान के बारे में बताऐंगे जो गन्ने की खेती से वार्षिक 40 लाख रुपये तक अर्जित कर रहे हैं। दरअसल, हम मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जनपद के करताज गांव के निवासी प्रगतिशील किसान राकेश दुबे के बारे में जो कि तकरीबन 50 एकड़ भूमि में विगत कई वर्षों से खेती कर रहे हैं। 

किसान राकेश दुबे ने बताया कि उनके समस्त फॉर्म सर्टिफाइड हैं। उन्होंने 90 के दशक में बीएससी करने के पश्चात खेती प्रारंभ की थी। तब से लेकर आज तक ये सिलसिला ऐसे ही जारी है।

राकेश दुबे ने नौकरी की जगह खेती का मार्ग पकड़ा  

किसान राकेश दुबे ने बताया कि उन्होंने जानवरों के चारे वाले जमीन से खेती को करना शुरू किया। इसमें सफलता मिलने के बाद उनके मन में खेती के प्रति और भी रूझान बढ़ा। उस समय उन्हें लगा की खेती भी जीवन जीने का अच्छा साधन हो सकता है। 

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इसी के चलते शहर की नौकरी व बिजनेस से उनका दिमाग हट गया। मालूम हो कि मौजूदा वक्त में राकेश दुबे एक प्रगतिशील किसान की श्रेणी में पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें आज बहुत ही गर्व है, कि वह एक किसान हैं।

गुड़ के द्वारा विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करते हैं - राकेश दुबे   

राकेश दुबे ने बताया कि "वह विशेष रूप से अपने खेत में गन्ने की खेती करते हैं। राकेश दुबे के मुताबिक, वह एक सीजन में लगभग 25-30 एकड़ में गन्ने की खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास कुशल मंगल नाम का एक ब्रांड भी है, जिसमें गुड़ के विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं। 

किसान राकेश दुबे के अनुसार, जब वह गन्ने से गुड़ बना रहे थे, तो उनके क्षेत्र में इसके लिए किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं थी। जिसको भी अपने खेत में उस समय गन्ना उगाना होता था, तो उसे अपनी गन्ना पेराई की मशीन खुद लगानी होती थी। खुद ही गुड़ बनाना होता था तभी किसान गन्ने की खेती कर सकते थे।"

प्रगतिशील किसान राकेश दुबे वार्षिक कितना लाभ उठा रहा है  

उन्होंने आगे बताया कि "हमने गुड़ को एक नए ढ़ंग से बनाना शुरू किया। पहले हमने 50 ग्राम, 100 ग्राम और अब हम गुड को एक छोटी टॉफी के आकार में बनाकर बाजार में बेच रहे हैं। इसके अलावा हमने कई तरह के मसाले वाले गुड़, औषधीय वाले गुड़ को तैयार करके बेचा है। 

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उन्होंने बताया कि जब हमारे गुड़ की बाजार में एक पहचान बनने लगी, तो लोग इसकी कॉपी करके अपने नाम से बेचने लगें। इसी के चलते हमने अपने गुड़ की मार्केट में एक अलग पहचान बनाने के लिए एक नाम दिया। इसके बाद से ही हमने ब्रांडिंग, ट्रेडमार्क और लेवल आदि कार्यों को करना प्रारंभ कर दिया।

"अगर लागत और मुनाफे की बात की जाए, तो "किसान राकेश दुबे ने बताया कि उनकी सालाना लागत लगभग 15 से 20 लाख रुपये तक होती है। वहीं, सालाना मुनाफा लागत से दोगुना हो जाता है।"