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गन्ने की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

Published on: 12-Jun-2023

गन्ने की खेती से किसान काफी अच्छा मुनाफा कमाते हैं। भारत में गन्ने का काफी उत्पादन काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है। गन्ना के इस्तेमाल से बहुत सारे उत्पाद निर्मित होते हैं। गन्ना से चीनी निर्मित की जाती है। भारत में गन्ने की अत्यधिक पैदावार होने के चलते यहां से चीनी का भी अच्छा खासा निर्यात किया जाता है। आज हम आपको इस लेख में गन्ने की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

जमीन का चयन और उसकी तैयारी

गन्ना के लिए बेहतर जल निकासी वाली दोमट जमीन सबसे उपयुक्त होती है। ग्रीष्म में मृदा पलटने वाले हल सें दो बार आड़ी एवं खड़ी जुताई करें। अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में बखर से जुताई कर मृदा को भुरभुरी कर लें और पाटा चलाकर एकसार कर लें। रिजर की मदद से 3 फुट के फासले पर नालियां निर्मित कर लें। परंतु, वसंत ऋतु में रोपित किए जाने वाले ( फरवरी - मार्च ) गन्ने के लिए नालियों का फासला 2 फुट रखें। आखिरी बखरनी के दौरान जमीन को लिंडेन 2% पूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ से उपचारित जरूर करें।

गन्ने की बिजाई हेतु उपयुक्त समय

गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सबसे उपयुक्त वक्त अक्टूबर - नवम्बर है । बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए।

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गन्ने के साथ अन्तवर्तीय फसल

अक्टूबर नवंबर में 90 से.मी. पर निकाली गई गरेड़ों में गन्ने की फसल की बिजाई की जाती है। साथ ही, मेंढ़ों की दोनों तरफ आलू, राजमा, प्याज, लहसुन, या सीधी बढ़ने वाली मटर अन्तवर्तीय फसल के तौर पर लगाना उपयुक्त माना जाता है। इससे गन्ने की फसल को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती। इससे 6000 से 10000 रूपये का अतिरिक्त मुनाफा होगा। वसंत ऋतु में गरेडों की मेड़ों के दोनों तरफ मूंग, उड़द लगाना काफी फायदेमंद है। इससे 2000 से 2800 रूपये प्रति एकड़ अतिरिक्त मुनाफा मिल जाता है।

गन्ने की खेती के लिए उर्वरक

गन्ने में 300 कि. नाइट्रोजन (650 किलो यूरिया), 80 किलो फास्फोरस, (500 कि0 सुपरफास्फेट) एवं 90 किलो पोटाश (150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टर देवें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के पहले गरेडों में देनी चाहिए। नाइट्रोजन की मात्रा अक्टूबर में बोई जाने वाली फसल के लिए संभागों में विभाजित कर अंकुरण के दौरान, कल्ले निकलते वक्त हल्की मृदा चढ़ाते वक्त और भारी मृदा चढ़ाने के दौरान दें। फरवरी माह में बिजाई की गई फसल में तीन समान हिस्सों में अंकुरण के दौरान हल्की मृदा चढ़ाते समय एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें। गन्ने की फसल में नाइट्रोजन की मात्रा की पूर्ति गोबर की खाद अथवा हरी खाद से करना फायदेमंद होता है।

निराई गुड़ाई

बोनी के करीब 4 माह तक खरपतवारों का नियंत्रण जरूरी होता है। इसके लिए 3-4 बार निंदाई करनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण हेतु अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण के पहले छिड़काव करें। उसके पश्चात ऊगे खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें। छिड़काव के दौरान खेत में नमी होनी काफी जरुरी है।

गन्ने की खेती में मिट्टी चढ़ाना

गन्ने को गिरने से बचाने के लिए रीजर की मदद से मृदा चढ़ानी चाहिए। अक्टूबर-नवम्बर में बोई गई फसल में प्रथम मिट्टी फरवरी - मार्च में और आखिरी मिट्टी मई माह में चढ़ानी चाहिए । कल्ले फूटने से पूर्व मृदा नहीं चढ़ानी चाहिए।

गन्ने की सिंचाई

शीतकाल में 15 दिन के अंतराल पर और गर्मी में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। सिंचाई सर्पाकार विधि से करें। सिंचाई की मात्रा कम करने के लिए गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की 4-6 मोटी बिछावन बिछा दें। ग्रीष्मकाल में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई करें।

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गन्ने की पेंड़ी काफी फायदेमंद होती है

किसान गन्ने की पेड़ी फसल पर खास ध्यान नहीं देते, फलस्वरूप इसकी पैदावार कम अर्जित होती है। अगर पेड़ी फसल में भी योजनाबध्द ढंग से कृषि काम किये जाएं तो इसकी पैदावार भी मुख्य फसल के समतुल्य अर्जित की जा सकती है। पेड़ी फसल से ज्यादा पैदावार लेने के लिए अनुशंसित कृषि माला अपनाना चाहिए। मुख्य गन्ना फसल के उपरांत बीज टुकड़ों से ही दोबारा पौधे विकसित होते हैं, जिससे दूसरे साल फसल अर्जित होती है। इसी तरह तीसरे वर्ष भी फसल प्राप्त की जा सकती है। इसके पश्चात पेड़ी फसल लेना फायदेमंद नहीं होता है। यहां यह उल्लेखनीय है, कि कीट रहित मुख्य फसल से ही भविष्य की पेड़ी फसल से ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है। चूंकि पेड़ी फसल बिना बीज की व्यवस्था और बिना विशेष खेत की तैयारी के ही अर्जित होती है। इसलिए इसमें खर्चा कम आता है। साथ ही, पेड़ी की फसल विशेष फसल की अपेक्षा शीघ्र पक कर तैयार हो जाती है। इसके गन्ने के रस में मिठास भी काफी ज्यादा होती है।

गन्ने की किस्में

अगर किसान नया बीजारोपण कर रहे हो एवं आगे पेड़ी रखने का प्लान हो तो को. 1305 को. 7314, को.7318 , को. 775, को. 1148,को. 1307, को. 1287 इत्यादि अच्छी पेड़ी फसल देने वाली किस्मों का स्वस्थ और उपचारित बीज लगाऐं।

मुख्य फसल की कटाई और सफाई

मुख्य फसल को फरवरी-मार्च में काटें फरवरी पूर्व कटाई करने से कम तापमान होने की वजह फुटाव कम होंगे। पेड़ी फसल में कल्ले कम अर्जित होंगें। कटाई करने के दौरान गन्ने को भूमि की सतह के करीब से काटा जाना चाहिए। इससे स्वस्थ और ज्यादा कल्ले अर्जित होंगे। ऊंचाई से काटने से ठूंठ पर कीट व्याधि की आरंभिक अवस्था में प्रकोप की आशंका बढ़ जाती है। बतादें, कि जड़े भी ऊपर से निकलती है, जो कि बाद में गन्ने के वजन को संभाल नहीं पाती। खेत की सफाई के लिए जीवांश खाद बनाने के लिए पिछली फसल की पत्तियों व अवशेषों को कम्पोस्ट गड्डे में डालें।

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कटी सतह पर उपचार करें

कटे हुए ठूंठों पर कार्बेन्डाइजिम 550 ग्राम 250 ली. जल में घोल कर झारे की मदद से कटी हुई सतह पर छिड़कें। इससे कीटव्याधि संक्रमण से बचाव होगा।

कम उत्पादन की क्या वजह होती है

खेत में खाली भूमि का रह जाना ही कम उत्पादन की वजह है। अत: जो भूमि 1 फुट से ज्यादा खाली हो। वहां पर नवीन गन्ने के उपचारित टुकड़े लगाकर सिंचाई कर दें। गरेड़ो को भी तोड़ें सिंचाई के उपरांत बतर आने पर गरेड़ों को बाजू से हल चलाकर तोड़ें, जिससे पुरानी जड़े टूटेंगी। साथ ही, नई जड़ें दी गई खाद का भरपूर इस्तेमाल करेंगी।

गन्ने की खेती में भरपूर खाद दें

बीज फसल की भांति ही जड़ फसल में भी नत्रजन 120 कि., स्फुर 32 कि. तथा पोटाश 24 कि. प्रति एकड़ दर से देना चाहिए। स्फुर एवं पोटाश की भरपूर मात्रा और नत्रजन की ज्यादा मात्रा गरेड़ तोडते वक्त हल की मदद से नाली में देनी चाहिए। बाकी बची आधी नत्रजन की मात्रा अंतिम मृदा चढ़ाते वक्त दें। नाली में खाद देने के उपरांत रिजर अथवा देसी हल में पाटा बांधकर हल्की मिट्टी चढ़ायें।

किसान सूखी पत्तियां जलाने की जगह बिछायें

प्राय: किसान सूखी पत्तियों को खेत में जला देते है। उक्त सूखी पत्तियों को जलाये नहीं बल्कि उन्हे गरड़ों में बिछा दें। इससे पानी की भाप बनकर उड़ने में कमी होगी। सूखी पत्तियां बिछाने के बाद 10 कि.ग्रा. बी.एर्च.सी 10% चूर्ण प्रति एकड़ का भुरकाव करें। बाकी काम जब पौधे 1.5 मी. ऊचाई के हो जाएं उस वक्त गन्ना बंधाई का काम करें। उपरोक्त कम लागत वाले उपाय करने से जड़ी फसल का उत्पादन भी बीज फसल की उत्पादन के समतुल्य ली जा सकती है।

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