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पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं के पेट में अंतः परजीवी पाए जाते हैं। यह पशु के हिस्से का आहार खा जाते हैं। इसके चलते पशु दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से कमजोर पड़ जाता है और शारीरिक विकास दृष्टि से भी कमजोर हो जाता है। यह कई अन्य बीमारियों के कारण भी बनते हैं।

लक्षण

आंतरिक परजीवी से ग्रस्त पशु सामान्यतः बेचैन रहता है। पर्याप्त दाना पानी खिलाने के बाद भी उसका शारीरिक विकास ठीक से नहीं होता। यदि
दुधारू पशु है तो उसके दूध का उत्पादन लगातार गिरता जाता है। प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है। दीवारें चाटने लगता है। पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है। बाल खड़े हो जाते हैं। इसके अलावा कभी कबार पशु के गोबर में रक्त और कीड़े भी दिखते हैं। पशुओं में इन की अधिकता मृत्यु का कारण तक बन सकती है। कई पशुओं में दूध की कमी, पुनः गाभिन होने में देरी, गर्भधारण में परेशानी एवं शारीरिक विकास दर में कमी जैसे लक्षण क्रमियों से ग्रसित होने के कारण बनते हैं। gaay ke rog

कृमि रोग का निदान

कर्मी रोग का परीक्षण सबसे सरलतम गोबर के माध्यम से किया जा सकता है। ब्रज में अनेक वेटरनरी विश्वविद्यालय स्थित है वहां यह परीक्षण 5 से ₹7 में हो जाता है।
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दवाएं

अंतर है पर जीबीओ को खत्म करने के लिए पशु को साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवा देनी चाहिए। गाभिन और गैर गाभिन पशुओं को दवा देते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि कौन सी दवा गाभिन पशु के लिए है कौन सी गैर गाभिन पशु के लिए। ट्राई क्लब एंड आजोल गर्भावस्था के लिए सुरक्षित दवा है। इसे रोटी या गुड़ के साथ मुंह से खिलाया जा सकता है। गाय भैंस के लिए इसकी 12 मिलीग्राम मात्रा पशु के प्रति किलो वजन के हिसाब से दी जाती है। बाजार में स्वस्थ पशु के लिए एक संपूर्ण टेबलेट आती है। दूसरी दवा ऑक्सीक्लोजानाइड है। इसलिए दवा रेड फॉक्स नइट गर्भस्थ पशु के लिए भी सुरक्षित है और संपूर्ण विकसित पशु के लिए इसकी भी एक खुराक ही आती है। आम तौर पर प्रचलित अल्बेंडाजोल गोली भी बहुतायत में प्रयोग की जाती है।
पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

किसान भाइयों आजकल दूध और दूध से बने पदार्थ की बहुत मांग रहती है। पशुपालन से किसानों को बहुत लाभ मिलता है। पशुपालन का असली लाभ तभी मिलता है जब उसका पशु पर्याप्त मात्रा में दूध दे और दूध में अच्छा फैट यानी वसा हो। 

क्योंकि बाजार में दूध वसा के आधार पर महंगा व सस्ता बिकता है। आइये जानते हैं कि पशुओं में दूध उत्पादन कैसे बढ़ाया जाये। 

 किसान भाइयों आपको अच्छी तरह से जान लेना चाहिये कि पशुओं में दूध उत्पादन उतना ही बढ़ाया जा सकता है जितना उस नस्ल का पशु दे सकता है।  

ऐसा ही फैट के साथ होता है। दूध में वसा यानी फैट की मात्रा पशु के नस्ल पर आधारित होती है। ये बातें आपको पशु खरीदते समय ध्यान रखनी होंगी और जैसी आपको जरूरत हो उसी तरह का पशु खरीदें।

दूध उत्पादन कम होने के कारण (Due to low milk production)

  1. संतुलित आहार की कमी होना।
  2. पशुओें की देखभाल में कमी होना।
  3. बच्चेदानी की खराबी व अन्य बीमारियों का होना
  4. टीके लगाने का साइड इफेक्ट होना
  5. चारा-पानी के प्रबंधन में कमी होना।

पशुओं की देखभाल कैसे करें

दुधारू पशु की देखभाल किसान भाइयों को 24 घंटे करनी चाहिये। कोई-कोई किसान भाई कहते हैं कि अपने पशुओं के चारे-दाने पर बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं लेकिन फिर भी उनका दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है।  

आपने किसी जानवर को दूध के हिसाब से 5 किलो सुबह और 5 किलो शाम दाना खिला दिया , उसके बाद भी दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है। आपको दो समय की जगह पर उतनी ही मात्रा को चार बार देना है और समय-समय पर पानी का प्रबंध भी करना है।

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कैसा होना चाहिये पशुओं का संतुलित आहार

किसान भाइयों  आपको पशुओं की नस्ल, उनकी कद-काठी एवं दूध देने की क्षमता के अनुसार संतुलित आहार देना चाहिये। आइये जानते हैं कुछ खास बातें:-

  1. पशुओं के संतुलित आहार में, 60 प्रतिशत हरा चारा खिलाना चाहिये तथा 40 प्रतिशत सूखा चारा जिसमें दाना व खल भी शामिल है, खिलाना चाहिये।
  2. हरे चारे में घास, हरी फसल व बरसीम आदि देना चाहिये
  3. सूखे चारे में गेहूं, मक्का, ज्वार-बाजरा आदि का मिश्रण बनाकर भूसे के साथ देना चाहिये।
  4. पशुओं को दिन में 30 से 32 लीटर पानी देना चाहिये।
  5. पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाने गाय को प्रतिदिन 5 किलो और भैंसको प्रतिदिन 10 किलो दाना खिलाना चाहिये।
  6. वैसे तो पशुओं को सुबह शाम सानी की जाती है लेकिन कोशिश करें कि कम से कम तीन बार तो आहार दें और कम से कम इतनी ही बार उन्हें पानी पिलायें।
  7. खली में सरसों ,अलसी व बिनौले की खली देना पशुओं के लिए उत्तम है। इससे दूध और उसका फैट बढ़ता है।

संतुलित आहार का मिश्रण कैसे तैयार करें

  1. गेहूं, जौ, बाजरा और मक्का का दानें से संतुलित आहार तैयार करें। आहार में दाने का हिस्सा 35 प्रतिशत रखना चाहिये।
  2. संतुलित आहार बनाते समय खली का विशेष ध्यान रखना चाहिये। क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग तरह की खली मिलती है। वैसे दूध की क्वालिटी अच्छी करने में सरसों की खली सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि किसी क्षेत्र में सरसों की खली न मिले तो वहां पर मूंगफली की खली, अलसी की खली या बिनौला की खली का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आहार में खली की मात्रा 30 प्रतिशत होनी चाहिये।
  3. चोकर या चूरी भी पशुओं के दूध बढ़ाने में बहुत सहायक हैं। चोकर या चूरी में गेहूं का चोकर,चना की चूरी, दालों की चूरी और राइस ब्रान आदि का प्रयोग संतुलित आहार में किया जाना चाहिये। आहार में चोकर या चूरी की मात्रा भी एक तिहाई रखनी चाहिये।
  4. खनिज लवण दो किलो या अन्य साधारण नमक एक किलो पशुओं को देने से उनका हाजमा सही रहता है तथा पानी भी अधिक पीते हैं। इससे उनके दूध उत्पादन की क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
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मौसम के अनुसार करें पशुओं की देखभाल

हमारे देश में प्रमुख रूप से सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम होते हैं। इन मौसमों में पशुओं की देखभाल करनी जरूरी होती है।

  1. चाहे कोई सा मौसम हो पशुओं को स्वच्छ व ताजा पानी पिलाना चाहिये। ताजे पानी से वो पेट भर कर पानी पी लेगा। बासी व गंदा पानी पीने से अनेक तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। सर्दियों में ठंडा बर्फीला और गर्मियों में गर्म पानी होने से पशु अपनी प्यास का आधा ही पानी पी पाता है। इससे उसके स्वास्थ्य को तो नुकसान होता ही है और उसके दुग्ध उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।
  2. आवास का प्रबंधन करना होगा। गर्मियों में पशुओं को गर्मी के प्रकोप से बचाना होता है। उन्हें प्रचंड धूप व गर्म हवा लू से बचायें। धूप के समय उनको साये में बनी पशुशाला में रखें। उन्हें अधिक बार पानी पिलायें। पानी पर्याप्त मात्रा में हो तो दिन में एक बार उन्हें ताजे पानी से नहलायें। इससे उनके शरीर का तापमान सामान्य रहेगा और स्वस्थ रहकर दुग्ध उत्पादन बढ़ा पायेंगे।
  3. सर्दियों में पशुओं के आवास का विशेष प्रबंधन करना होता है। शाम को या जिस दिन अधिक सर्दी हो, तब उन्हें साये वाले पशुशाला में रखें। उनके शरीर पर बोरे की पल्ली ओढ़ायें। पशु शाला में थोड़ी देर के लिए आग जलायें। आग जलाते समय स्वयं मौजूद रहें। जब आपका कहीं जाना हो तो आग को बुझायें । यदि तसले आदि में आग जलाई हो तो वहां से हटा दें।

मौसम के अनुसार आहार पर भी दें ध्यान

मौसम के बदलाव के अनुसार पशुओं के आहार में भी बदलाव करना चाहिये। गर्मियों के मौसम में संतुलित आहार बनाते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वो अपने पशुओं को ऐसी कोई चीज न खिलायें जिसकी तासीर गर्म होती हो। इस समय गुड़ और बाजरे से परहेज करना चाहिये।

गर्मियों के मौसम का आहार

गर्मियों के लिए आहार में गेहूं, जौ, मक्के का दलिया,चने का खोल, मूंग का छिलका, चने की चूरी, सोयाबीन, उड़द, जौ, तारामीरा,आंवला और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार करके पशुओं को देना चाहिये।

सर्दियों के मौसम का आहार

सर्दियों के मौसम के आहार में गेहूं, मक्का, बाजरा का दलिया, चने की चूरी, सोयाबीन, दाल की चूरी, हल्दी, खाद्य लवण व सादा नमक का मिश्रण तैयार करें। 

इसके अलावा सर्दियों के मौसम में गुड़ और सरसों का तेल भी दें। बाजरा और गुड़ का दलिया भी अलग से दे सकते हैं। यह ध्यान रहे कि यह दलिया केवल अधिक सर्दियों में ही दें। 

खास बात

पशुओं को खली देने के बारे में भी सावधानी बरतें। सर्दियों के समय हम खली को रात भर भिगोने के बाद पशुओं को देते हैं। गर्मियों में ऐसा नहीं करना चाहिये। सानी करने से मात्र दो-तीन घंटे पहले ही भिगो कर ही दें।

फैट्स बढ़ाने के तरीके

पशुओं में फैट्स उनकी नस्ल की सीमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। फिर भी कोई पशु अपनी नस्ल की सीमा से कम फैट देता है तो उसको बढ़ाने के लिए निम्न उपाय करें:-

  1. शाम को जब पशुओं को रात्रि विश्राम के लिए बांधा जाये तो उस समय 300 ग्राम सरसों के तेल को 300 ग्राम गेहूं के आटे में मिलाकर दें और उसके बाद पानी न दें।
  2. अच्छा फैट देने वाले किसान भाइयों को चाहिये कि वो दूध दुहने से दो घंटे पहले ही पानी पिलायें, उसके बाद नहीं । ऐसा करने से फैट बढ़ेगा।
  3. दूध दुहने से पहले बच्चे को पहले दूध पिलायें क्योंकि पहले वाले दूध में फैट कम होता है और बाद वाले दूध में फैट अधिक होता है। यदि आपका दुधारू पशु दस-12 लीटर दूध देता है तो उसको एक चौथाई दूध दुह कर बर्तन बदल लें। बाद में जो दूध दुहेंगे उसमें फैट पहले वाले से अधिक निकलेगा।

जानिए, पीली सरसों (Mustard farming) की खेती कैसे करें?

जानिए, पीली सरसों (Mustard farming) की खेती कैसे करें?

आज हम पीली सरसों की बात करेंगे पीली सरसों लाभदायक होने के साथ-साथ अपने पूजा पाठ में भी काम आती है जैसे सरसों दो तरह की होती हैं काली सरसों और पीली सरसो काली सरसों के लिए हम पहले ही अपने वेबसाइट पर लेख दे चुके हैं कई जगह पर लोग राइ को भी सरसों बोल देते हैं जबकि राई और सरसों में बहुत फर्क होता है. पीली सरसों से जो तेल निकलता है उच्च गुणवत्ता का होता है इसमें आप पकवान बनाने से लेकर अचार तक के प्रयोग में ला सकते हैं. सामान्यतः यह सरसों 110 से 125 दिन के बीच में पकती है इसकी मुख्यतः 3 प्रजातियां होती हैं पीतांबरी, नरेंद्र सरसों 2 , एक होती है के-88. इसको खेत की मेड़ों के सहारे भी लगा सकते हैं जैसे आप गेहूं की फसल की जो क्यारियां होती हैं उनकी मेंड़ पर इसको लगाया जा सकता है और अलग से इसकी कोई देखभाल भी नहीं की जाती इसकी लंबाई 6 फुट होती है इसका प्रयोग बीज निकालने के बाद माताएं और बहने झाड़ू के रूप में करती हैं आज भी गांव में जहाँ पशुओं की जगह होती है वहां झाड़ू के रूप में इसका प्रयोग होता है. ये भी पढ़े: गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

खेत की तयारी:

सरसों की खेती

जैसे हम दूसरी फसलों के लिए खेत की तयारी करते हैं वैसे ही इसके लिए भी हम खेत को गहराई में जुताई करके खेत की मिटटी को भुरभुरी कर लेते हैं. इसको ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है इसके लिए 2 पानी काफी होते हैं और अगर बारिश हो जाये तो एक पानी से ही काम चल जाता है. इसके खेत में अगर हम गोबर की बनी हुई खाद प्रयोग करते हैं तो आपको ज्यादा रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. इसके खेत को पहली जुताई गहरी लगा के बाकि की जुताई के समय पाटा या सुहागा जरूर लगाएं और ध्यान रहे इसके खेत में दूब खास न होने पाए नहीं तो वो फसल को ठीक से ज़माने नहीं देती है.

उन्नतिशील प्रजातियाँ

क्र.सं.प्रजातियाँविमोचनकीतिथिनोटीफिकेशनकीतिथिपकनेकीअवधि (दिनोमें)उत्पादनक्षमता (कु०/हे0)तेलकाप्रतिशतविशेषविवरण1 पीताम्बरी 2009 31.08.10 110-115 18-20 42-45 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु 2 नरेन्द्र सरसों-2 1996 09.09.97 125-130 16-20 44-45 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु 3 के-88 1978 19.12.78 125-130 16-18 40-45 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु  

पीली सरसों की बुवाई कब की जाती है?

पीली सरसों की बुबाई का समय 15 सितम्बर से 30 सितम्बर तक कर देनी चाहिए लेकिन यह समय मौसम और राज्य के हिसाब से आगे पीछे भी हो सकता है.

सिंचाई :

सिंचाई की बहुत ज्यादा आवश्यकता इसमें होती नहीं, अगर कोई माहोट लग जाये / या सर्दी में कोई बारिश हो जाये तो दूसरे पानी की जरूरत नहीं होती है.वैसे इसको एक पानी फूल बनने के समय और दूसरा फली में दाना पड़ने के समय चाहिए होता है.

रोग और फसल की सुरक्षा:

सरसों के रोग

1. आरा मक्खीइस

आरा मक्खीइस कीट की सूड़ियाँ काले स्लेटी रंग की होती है जो पत्तियो को किनारो से अथवा पत्तियों में छेद कर तेजी से खाती है। तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।

सरसों के रोग और कीट

2. चित्रित बगइस

चित्रित बगइस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ चमकीले काले, नारंगी एवं लाल रंग के चकत्ते युक्त होते है। शिशु एवं प्रौढ पत्तिया, शाखाओं, तनो, फूलो एवं फलियों का रस चूसते हैं जिससे प्रभावित पत्तियाँ किनारो से सूख कर गिर जाती है। प्रभावित फलियों में दाने कम बनते है। ये भी पढ़े: सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

3. बालदार सूड़ी

बालदार सूड़ी काले एवं नारंगी रंग की होती है तथा पूरा शरीर बालो से ढका रहता है। सूडियाँ प्रारम्भ से झुण्ड मे रहकर पत्तियों को खाती है तथा बाद मे पूरे खेत में फैल कर पत्तियो को खाती है तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।

सरसों के रोग और कीट

4. माहूँइस

माहूँइस कीट की शिशु एवं प्रौढ़ पीलापन लिए हुए रंग के होते है जो पौधो के कोमल तनों, पत्तियों, फूलो एवं नई फलियों के रस को चूसकर कमजोर कर देते हैं। माहूँ मधुस्राव करते है जिस पर काली फफूँदी उग आती है जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है।

5. पत्ती सुरंगक कीट

पत्ती सुरंगक कीट इस कीट की सूडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती है जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखाये बन जाती है।गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए।संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।आरा मक्खी की सूडियों को प्रातः काल इक्ट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।प्रारम्भिक अवस्था में झुण्ड में पायी जाने वाली बालदार सूडियों को पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए।प्रारम्भिक अवस्था में माहूँ से प्रभावित फूलों, फलियों एवं शाखाओं को तोड़कर माहूँ सहित नष्ट कर देना चाहिए।पकने का समय:पिली सरसों पकने में 110 से 125 दिन का समय लेती है.तेल की मात्रा:इसमें तेल की मात्रा सामान्य सरसों से ज्यादा होती है, लगभग 40 से 45 % तक होती है जब की सामान्य सरसों में यही तेल की मात्रा 30 से 35 % तक ही होती है.

अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

पशुपालन या डेयरी व्यवसाय एक अच्छा व्यवसाय माना जाता है। पशुपालन करके लोग को अच्छा लाभ मिल रहा हैं। गाय भैंस के दूध से पनीर मक्खन आदि सामग्री बनती है, जिनका बाजार में काफी अच्छा पैसा मिलता है। कई बार आपके पशु बीमार हो जाते हैं, जिसके कारण उनमें दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। आपका पशु स्वस्थ होगा तभी वह अच्छी मात्रा में दूध दे सकेगा। पशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पशु के अच्छे आहार का होना जरूरी है।


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सरसों का तेल ऊर्जा बढ़ाने में सहायक

डॉक्टर के अनुसार, जब आपके पशु बीमार हो तो उन्हें सरसों का तेल पिलाना चाहिए। क्योंकि सरसों के तेल में वसा की मात्रा अधिक होती है  तथा वह उनके शरीर को पर्याप्त ऊर्जा व ताक़त प्रदान करती है‌।

पशुओं को कब देना चाहिए सरसों का तेल ?

गाय भैंस के बच्चे होने के बाद भी उन्हें सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर आई हुई कमजोरी को दूर किया जा सके। पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मियों में पशुओं को सरसों का तेल पिलाना चाहिए, जिससे कि लू लगने की संभावना कम हो तथा उनमें लगातार ऊर्जा का संचार होता रहे। इसके अलावा, सर्दियों में भी पशुओं को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर गर्मी बनी रहे।

पशुओं के दूध देने की बढ़ेगी क्षमता

सरसों का तेल पिलाने से पशुओं में पाचन प्रक्रिया दुरूश्त रहती है। इससे पशु को एक अच्छा आहार मिलता है। पशु का स्वास्थ्य सही रहता है तथा स्वस्थ दुधारू पशु, दूध भी अच्छी मात्रा में देते हैं।

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क्या पशुओं को रोज पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

पशु चिकित्सकों के अनुसार, रोज सरसों का तेल पिलाना पशुओं के लिए फायदेमंद नहीं होगा। पशुओ को सरसों का तेल तभी देना चाहिए जब वे अस्वस्थ हो, ताकि उनके अंदर ऊर्जा का संचार हो सके।

क्या गैस बनने पर भी पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

यदि आपके पशुओं के पेट में गैस बनी है, तो उन्हें सरसों का तेल अवश्य पिलाना चाहिए। सरसों का तेल पीने से उनका पाचन प्रक्रिया या डाइजेशन सही होगा, जिससे कि वह स्वस्थ रहेंगे।
सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) क्या है और कैसे दिलाएगी पराली की समस्या से निजात

सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) क्या है और कैसे दिलाएगी पराली की समस्या से निजात

हर साल ठंड का महीना शुरू होने के साथ ही उत्तर भारत में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। इसका एक कारण पराली जलाने की समस्या है। हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं। इस कचरे को पराली कहा जाता है। इसे खेत में जलाने से ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है। ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है। किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुवाई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है। पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प ना होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है।

सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) और पराली की समस्या का हल

Super Seeder Machine

इस समस्या से निजात देने के लिए सुपर सीडर मशीन वरदान की तरह हैं। इस मशीन(Machine) के इस्तेमाल से धान की कटाई के बाद खेत में फैले हुए धान के अवशेष को जलाने की ज़रूरत नहीं होती है। सुपर सीडर(Super Seeder) के साथ धान की पराली जमीन में ही कुतर कर बिजाई करने से अगली फसल का विकास होता है। इसके अलावा जमीन की सेहत भी बेहतर होती है और खाद संबंधी खर्च भी घटता है। 

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 सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) से किसानों को धान के बाद गेंहू की बुवाई के लिए बार बार जुताई नहीं करानी होती और न हर पराली को जलाने की ज़रूरत होती है। बल्कि यह पराली खाद का काम करेगी। पराली की मौजूदगी में ही गेहूँ की बिजाई संभव है। इस प्रकार सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) से बुवाई खर्च कम लगेगा और उत्पादन भी बढ़ेगा। धान की सीधी बिजाई एवं गेहूँ की सुपर सीडर(Super Seeder) से बुवाई करने पर कम समय एवं कम व्यय के साथ-साथ अधिक उत्पादन एवं पर्यावरण प्रदूषण तथा जल का संचयन भी आसानी से किया जा सकता है।

कैसी होती है सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine)

 सुपर सीडर(Super Seeder) में रोटावेटर, रोलर व फर्टिसीडडृलि लगा होता है। सपुर सीडर ट्रैक्टर(Super Seeder Tractor) के साथ 12 से 18 इंच खड़ी पराली के खेत में जुताई करते हैं। रोटावेटर पराली को मिट़टी में दबाने, रोलर समतल करने व फर्टिसीडड्रिल खाद के साथ बीज की बुवाई करने का काम करता है। दो से तीन इंच की गहराई में बुवाई होती है। 

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खासियत

सुपर सीडर(Super Seeder) की खासियत है कि एक बार की जुताई में ही बुआई हो जाती है। पराली की हरित खाद बनने से खेत में कार्बन तत्व बढ़ा जता है और इससे अच्छी फसल होती है। इस विधि से बुवआई करने पर करीब पाँच प्रतिशत उत्पादन बढ़ सकता है और करीब 50 प्रतिशत बुआई लागत कम होती है। पहले बुआई के लिए चार बार जुताई की जाती थी। ज़्यादा श्रम शक्ति भी लगती थी। सुपर सीडर(Super Seeder) यंत्र से 10 से 12 इंच तक की ऊंची धान की पराली को एक ही बार में जोत कर गेहूं की बुआई की जा सकती है। जबकि किसान धान काटने के बाद पाँच से छह दिन जुताई कराने के बाद गेहूं की बुआई करते हैं। इससे गेहूँ की बुआई में ज्यादा लागत आती है। जबकि सुपर सीडर(Super Seeder) यंत्र से बुआई करने पर लागत में भारी कमी आती है।

किसानों में जागरुकता का प्रसार

कई राज्यों में किसानों को सुपर सीडर(Super Seeder) चलाने और इससे गेहूँ की बुवाई करने की जानकारी दी जा रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि पराली जलाने की मजबूरी से सुपर सीडर(Super Seeder) निजात दिला सकता है। किसानों को जागरुक करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र भी जुटा है। 

कीमत

इस मशीन(machine) की कीमत बाजार में 2 से सवा 2 लाख रुपये तक है। यह मशीन एक एकड़ जमीन की जुताई एक से दो घंटे में कर सकती है। 

समस्या

हालांकि यह मशीन किसानों के लिए कारगर तो है, लेकिन इसकी महंगी कीमत होने के कारण छोटी जोत के किसानों तक इसकी पहुँच नहीं हो पाएगी। ऐसे में किसानों ने सरकार से इस मशीन के लिए सब्सिडी(Subsidy) देने की मांग की है।

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

धान की बेहतरीन पैदावार के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिश्रित करनी है। आज कल देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की रोपाई की वजह खेत पानी से डूबे हुए नजर आ रहे हैं। किसान भाई यदि रोपाई के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें तो उन्हें धान की अधिक और अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार मिल सकती है। अमूमन धान की रोपाई जून के दूसरे-तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे-चौथे सप्ताह के मध्य की जाती है। रोपाई के लिए पंक्तियों के मध्य का फासला 20 सेंटीमीटर और पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक स्थान पर दो से तीन पौधे रोपने चाहिए। धान की फसल के लिए तापमान 20 डिग्री से 37 डिग्री के मध्य रहना चाहिए। इसके लिए दोमट मिट्टी काफी बेहतर मानी जाती है। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को तैयार करना चाहिए। साथ ही, खेत की सुद्रण मेड़बंदी करनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज्यादा समय तक संचित रह सके।

धान शोधन कराकर खेत में बीज डालें

धान की बुवाई के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के अनुसार बिजाई करनी चाहिए। साथ ही, एक हेक्टेयर रोपाई करने के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। हालांकि, इससे पहले बीज का शोधन करना आवश्यक होता है। ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

खाद और उवर्रकों का इस्तेमाल किया जाता है

धान की बेहतरीन उपज के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिलाते हैं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं।

बेहतर सिंचाई प्रबंधन किस प्रकार की जाए

धान की फसल को सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। रोपाई के उपरांत 8 से 10 दिनों तक खेत में पानी का बना रहना आवश्यक है। कड़ी धूप होने पर खेत से पानी निकाल देना चाहिए। जिससे कि पौध में गलन न हो, सिंचाई दोपहर के समय करनी चाहिए, जिससे रातभर में खेत पानी सोख सके।

कीट नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिए जुताई, मेंड़ों की छंटाई और घास आदि की साफ सफाई करनी चाहिए। फसल को खरपतवारों से सुरक्षित रखना चाहिए। 10 दिन की समयावधि पर पौध पर कीटनाशक और फंफूदीनाशक का ध्यान से छिड़काव करना चाहिए।
इस राज्य सरकार ने होली के अवसर पर गन्ना किसानों के खाते में भेजे 2 लाख करोड़

इस राज्य सरकार ने होली के अवसर पर गन्ना किसानों के खाते में भेजे 2 लाख करोड़

मुख्यमंत्री ने बताया है, कि भारत में नया रिकॉर्ड स्थापित होने जा रहा है। पहली बार दो लाख करोड़ से ज्यादा का गन्ना भुगतान किसानों भाइयों के बैंक खातों में हस्तांतरित हो रहा है। भारत के विभिन्न राज्य ऐसे भी हैं, जिनका सालाना बजट भी दो लाख करोड़ नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सोमवार को यह दावा किया गया है, कि योगी सरकार द्वारा गन्ना किसानों को दलालों की चपेट से निजात प्रदान की है। विगत छह सालों के उनके शासन में प्रदेश में एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। मुख्यमंत्री ने होली से पूर्व गन्ना किसानों के बैंक खाते में शेष भाव के दो लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किए जाने के मोके पर कहा, कि पिछली सरकारों में किसान आत्महत्या को मजबूर रहता था। आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि बीते छह सालों में उत्तर प्रदेश में कोई भी किसान भाई आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं हुआ है। यह इसलिए संभव हो पाया है, कि हमारी सरकार में किसानों भाइयों के गन्ना मूल्य का भुगतान कर दिया गया है। समयानुसार धान एवं गेहूं की खरीद की है। योगी जी ने कहा है, कि याद कीजिए एक वक्त वो था जब राज्य के गन्ना किसान खेतों में ही अपनी फसल को जलाने के लिए मजबूर थे। उन्हें सिंचाई हेतु न तो वक्त से जल प्राप्त होता था और ना ही बिजली मुहैय्या कराई जाती थी। इतना ही नहीं समुचित समयानुसार किसानों की बकाया धनराशि का भुगतान भी नहीं हो पाता था। इसी कड़ी में योगी ने आगे बताया कि आज का दिन गन्ना किसानों के लिए ऐतिहासिक होने वाला है, जब होली की पूर्व संध्या पर सोमवार को दो लाख करोड़ की धनराशि उनके बैंक खातों में सीधे तौर पर हस्तांतरित करदी है। सरकार के इस ऐतिहासिक कदम से प्रदेश के गन्ना किसानों की होली की खुशी को दोगुना कर दिया जाएगा।

दलालों की दलाली की बंद

योगी जी ने कहा है, कि विगत समय पर जल, खाद एवं उत्पादन का सही भाव न मिलने की वजह से खेती-किसानी नुकसान का सौदा मानी जाती थी। हमने गन्ना किसानों को दलालों के दलदल से मुक्ति दिलाई है। आजकल किसान भाइयों को खरीद पर्ची हेतु इधर-उधर चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। उनकी पर्ची उनके स्मार्टफोन में पहुँच जाती है। मुख्यमंत्री ने बताया, कि आज किसानों के नाम पर शोषण एवं दलाली करने वालों की दुकान बंद हो गई हैं। ऐसी स्थिति में मानी सी बात है, कि उन्हें समस्या रहेगी।

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कोरोना महामारी के समय में भी 119 चीनी मिलें चालू हो रही थीं

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का कहना है, कि विगत सरकारों के कार्यकाल में जहां चीनी मिलें बंद कर दी जाती थी। अन्यथा उचित गैर उचित भावों में बेच दी जाती थीं। जबकि, योगी सरकार द्वारा किसी चीनी मिल को बंद नहीं किया गया। साथ ही, बंद पड़े चीनी मिलों को पुनः आरंभ कराने का काम किया गया है। उन्होंने बताया कि, मुंडेरवा एवं पिपराइच चीनी मिलों को पुनः सुचारु किया गया है। कोरोना महामारी के चलते जब विश्व की चीनी मिलें बंद हो गई थीं। उस दौर में भी उत्तर प्रदेश में 119 चीनी मिलें चालू हो रही थीं।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

गन्ना उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश माना जाता है। फिलहाल भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई प्रजातियां तैयार करली गई हैं। इससे किसान भाइयों को बेहतरीन उत्पादन होने की संभावना रहती है। भारत गन्ना उत्पादन के संबंध में विश्व में अलग स्थान रखता है। भारत के गन्ने की मांग अन्य देशों में भी होती है। परंतु, गन्ना हो अथवा कोई भी फसल इसकी उच्चतम पैदावार के लिए बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी अत्यंत आवश्यक है। शोध संस्थान फसलों के बीज तैयार करने में जुटे रहते हैं। हमेशा प्रयास रहता है, कि ऐसी फसलों को तैयार किया जाए, जोकि बारिश, गर्मी की मार ज्यादा सहन कर सकें। मीडिया खबरों के मुताबिक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई ऐसी ही किस्में तैयार की गई हैं। यह प्रजातियां बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं को सहने में सक्षम होंगी। साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी काफी सहायक साबित होंगी।

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जानकारी के लिए बतादें कि गन्ने की इस प्रजाति की बुवाई हरियाणा, पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और राजस्थान में की जा सकती है। यहां के मौसम के साथ-साथ मृदा एवं जलवायु भी इस प्रजाति के लिए उपयुक्त है। साथ ही, इसका रंग भी हरा एवं मोटाई थोड़ी कम है। इससे प्रति हेक्टेयर 82.8 टन उपज मिल जाती है। इसके रस में शर्करा 17 फीसद, पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.22 प्रतिशत है।

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इस किस्म की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जा सकती है। इस हम प्रजाति के गन्ना के रंग की बात करें तो हल्का पीले रंग का होता है। यदि उत्पादन की बात की जाए तो एक हेक्टेयर में इसका उत्पादन 95 टन गन्ना हांसिल होगा। इसके अंतर्गत 18.60 प्रतिशत शर्करा, पोल प्रतिशक 14.55 प्रतिशत है। किसान इससे अच्छी उपज हांसिल सकते हैं।

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अनुसंधान संस्थान द्वारा लंबे परिश्रम के उपरांत यह किस्म तैयार की है। इसके रस में 17.65 प्रतिशत शर्करा एवं पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.42 प्रतिशत है। इस किस्म के गन्ने की लंबाई थोड़ी कम और मोटी ज्यादा है। इस गन्ने की बुवाई उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में की जा सकती है। यहां का मौसम इस प्रजाति के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसका रंग भी हल्का पीला होता है। अगर उत्पादन की बात की जाए, तो यह प्रति हेक्टेयर 91.5 टन उत्पादन मिलेगी।यह किस्म लाल सड़न रोग से लड़ने में समर्थ है।
आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

बुन्देलखण्ड में प्रचलित अन्ना प्रथा उत्तर प्रदेश सरीखे कई प्रदेशों के किसानों के जीका जंजाल बन रही है। इसका कारण बन रहे हैं आवारा गौवंशीय नर। इन्हें यहां सांड के रूप में पहचाना जाता है। यूंतो एक सांड 10 से 12 वर्ष के जीवन काल में तकरीबन तीन लाख का सूखा भूसा खा जाता है। किसानों की फसलों का नुकसान इसमें शामिल नहीं है। इतना ही नहीं यह सांड नगरीय क्षेत्रों में डिवायडर आदि के मध्म जब मस्ती में आते हैं तो भीड़भाड़ वाले इलाकों एवं मंडियों आदि में लोगों के लिए दुर्घटना का कारण भी बन जाते हैं। अनेक लोग इनके आतंक के चलते दुर्घटनाओं का शिकार हो काल कवलित भी हो जाते हैं। खेती में इनसे प्रमुख समस्या फसलों को नुकसान पहुंचाने की है। किसान फसलों को बचाने के लिए मोटा पैसा खर्च कर तार फेंसिंग करा रहे हैं लेकिन भूखे जानवर इन तार और खंभों का भी उखाड़ फेंकते हैं। इससे बचाव के कुछ सामान्य तरीके हैं जिनका प्रयोग कर किसान अपनी फसल को सुरक्षित कर सकते हैंं।

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नीलगाय एवं आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा के लिए खेत के आसपास गिरे नीलगाय के गोबर एवं आवारा पशुओं के गोबर का आधा एक से दो किलोग्राम अंश लेकर उसे पानी में घोलकर छान लें। इसमें थोड़े बहुत नीम के पत्ते कूटकर मिला लें। दो  तीन दिन में सड़ने के बाद इसको छानकर खेत में छिड़काव करें। प्रयास करें खेत के चारों तरफ पशुओं के घुसने वाले स्थानों पर गहराई तक छिड़काव हो जाए।  कारण यह होता है अपने मल की गंध आने के कारण पशु उस फसल को नहीं खाते। वह फिर ऐसा खेत तलाशने निकलते हैं जहां ​गंध नहो। इधर नीलगाय अपने खाने के लिए जहां फसलें अच्छी होती हैं। उस इलाके का चयन करती है। उस इलाके तक पहुंचने के लिए वहां हर दिन ताजी गोबर छोड़कर आती है। इसकी गंध के आधार पर ही वह दोबारा उस इलाके तक पहुंचती है। लिहाजा खेतों के आस पास जहां भी नीलगाय का गोबर पड़ा हो उसे एकत्र कर गहरे गड्ढे में दबाने से भी वह रास्ता भटक सकती हैं।

गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

आपदा को अवसर में कैसे बदला जाता है, यह कोई यूपी से सीखे। कोरोना के जिस भयावह दौर में आम आदमी अपने घरों में कैद था। उस दौर में भी ये यूपी के किसान ही थे, जो तमाम सावधानियां बरतते हुए भी खेत में काम कर रहे थे या करवा रहे थे। नतीजा क्या निकला? यूपी गेहूं के उत्पादन में पूरे देश में नंबर 1 बन गया। कुछ चीजें जब हो जाती हैं और आप उनके बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो पता चलता है कि यह तो चमत्कार हो गया। ऐसा कभी सोचा ही नहीं गया था और ये हो गया। कुछ ऐसी ही कहानी है यूपी के कृषि क्षेत्र की। कोरोना के जिस कालखंड में आम आदमी अपनी जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, सावधानियां बरतते हुए चल रहा था, उस यूपी में ही किसानों ने कभी भी अपने खेतों को भुलाया नहीं। क्या धान, क्या गेहूं, क्या मक्का हर फसल को पूरा वक्त दिया। निड़ाई, गुड़ाई से लेकर कटाई तक सब सही तरीके से संपन्न हुआ। यहां तक कि कोरोना काल में भी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की। इन सभी का अंजाम यह हुआ कि यूपी गेहूं के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भर हुआ बल्कि देश भर में सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादक राज्य भी बन गया।


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अकेले 32 प्रतिशत गेहूं का उत्पादन करता है यूपी

यूपी के एग्रीकल्चर मिनिस्टर सूर्य प्रताप शाही के अनुसार, यूपी में देश के कुल उत्पादन का 32 फीसद गेहूं उपजाया जाता है। यह एक रिकॉर्ड है, पहले हमें पड़ोसी राज्यों से गेहूं के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। अब हमारा गेहूं निर्यात भी होता है, पड़ोसी राज्यों की जरूरत के लिए भी भेजा जाता है। शाही के अनुसार, ढाई साल तक कोरोना में भी हमारे किसानों ने निराश नहीं किया। इन ढाई सालों के कोरोना काल में सिर्फ कृषि सेक्टर की उत्पादकता बढ़ी। किसानों ने दुनिया को निराश नहीं होने दिया। खेतों में अन्न पैदा होता रहा तो गरीबों को मुफ्त में राशन लेने की दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चलाई गई। आपको तो पता ही होगा कि देश में 80 करोड़ तथा उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ लोगों को प्रतिमाह मुफ्त में दो बार राशन दिया गया। राज्य सरकार ने भी किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने के साथ ही यह तय किया कि महामारी के चलते किसी के भी रोजगार पर असर न पड़े। कोई भूखा न सोए, एक जनकल्याणकारी सरकार का यही कार्य भी होता है।

21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर मिली सिंचाई की सुविधा

आपको बता दें कि यूपी में पिछले 5 सालों में हर सेक्टर में कुछ न कुछ नया हुआ है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से पिछले पांच साल में प्रदेश में 21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई की सुविधा मिली है। सरयू नहर परियोजना से पूर्वी उत्तर प्रदेश के 9 जिलों में अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई सुनिश्चित हुई है। हर जिले में व्यापक स्तर पर नलकूप की स्कीम चलाने के साथ सिंचाई की सुविधा को बढ़ाने के लिए पीएम कुसुम योजना के तहत किसानों को अपने खेतों में सोलर पंप लगाने की व्यवस्था की जा रही है। तो, अगर गेहूं समेत कई फसलों के उत्पादन में हम लोग आगे बढ़े हैं तो यह सब अचानक नहीं हो गया है। यह सब एक सुनिश्चित योजना के साथ किया जा रहा था, जिसका नतीजा आज सामने दिख रहा है।
फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फरवरी के महीने में ही बढ़ते तापमान ने किसानों की टेंशन बढ़ा दी है. अब ऐसे में फसलों के बर्बाद होने के अनुमान के बीच एक राहत भरी खबर किसानों के माथे से चिंता की लकीर हटा देगी. बदलते मौसम और बढ़ते तापमान से ना सिर्फ किसान बल्कि सरकार की भी चिंता का ग्राफ ऊपर है. इस साल की भयानक गर्मी की वजह से कहीं पिछले साल की तरह भी गेंहूं की फसल खराब ना हो जाए, इस बात का डर किसानों बुरी तरह से सता रहा है. ऐसे में सरकार को भी यही लग रहा है कि, अगर तापमान की वजह से गेहूं की क्वालिटी में फर्क पड़ा, तो इससे उत्पादन भी प्रभावित हो जाएगा. जिस वजह से आटे की कीमत जहां कम हो वाली थी, उसकी जगह और भी बढ़ जाएगी. जिससे महंगाई का बेलगाम होना भी लाजमी है. आपको बता दें कि, लगातार बढ़ते तापमान पर नजर रखने के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था. इन सब के बीच अब सरकार के साथ साथ किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने वो कर दिखाया है, जो किसी ने भी सोचा भी नहीं था. दरअसल आईसीएआर ने गेहूं की तीन ऐसी किस्म को बनाया है, जो गर्मियों का सीजन आने से पहले ही पककर तैयार हो जाएंगी. यानि के सर्दी का सीजन खत्म होने तक फसल तैयार हो जाएगी. जिसे होली आने से पहले ही काट लिया जाएगा. इतना ही नहीं आईसीएआर के साइंटिस्टो का कहना है कि, गेहूं की ये सभी किस्में विकसित करने का मुख्य कारण बीट-द हीट समाधान के तहत आगे बढ़ाना है.

पांच से छह महीनों में तैयार होती है फसलें

देखा जाए तो आमतौर पर फसलों के तैयार होने में करीब पांच से छह महीने यानि की 140 से 150 दिनों के बीच का समय लगता है. नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा गेहूं की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जाती है, इसके अलावा नवंबर के महीने के बीच में धान, कपास और सोयाबीन की कटाई मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, एमपी और राजस्थान में होती है. इन फसलों की कटाई के बाद किसान गेहूं की बुवाई करते हैं. ठीक इसी तरह युपू में दूसरी छमाही और बिहार में धान और गन्ना की फसल की कटाई के बाद ही गेहूं की बुवाई शुरू की जाती है.

महीने के आखिर तक हो सकती है कटाई

साइंटिस्टो के मुताबिक गेहूं की नई तीन किस्मों की बुवाई अगर किसानों ने 20 अक्टूबर से शुरू की तो, गर्मी आने से पहले ही गेहूं की फसल पककर काटने लायक तैयार हो जाएगी. इसका मतलब अगर नई किस्में फसलों को झुलसा देने वाली गर्मी के कांटेक्ट में नहीं आ पाएंगी, जानकारी के मुताबिक मार्च महीने के आखिरी हफ्ते तक इन किस्मों में गेहूं में दाने भरने का काम पूरा कर लिया जाता है. इनकी कटाई की बात करें तो महीने के अंत तक इनकी कटाई आसानी से की जा सकेगी. ये भी पढ़ें: गेहूं पर गर्मी पड़ सकती है भारी, उत्पादन पर पड़ेगा असर

जानिए कितनी मिलती है पैदावार

आईएआरआई के साइंटिस्ट ने ये ख़ास गेहूं की तीन किस्में विकसित की हैं. इन किस्मों में ऐसे सभी जीन शामिल हैं, जो फसल को समय से पहले फूल आने और जल्दी बढ़ने में मदद करेंगे. इसकी पहली किस्म का नाम एचडीसीएसडब्लू-18 रखा गया है. इस किस्म को सबसे पहले साल 2016  में ऑफिशियली तौर पर अधिसूचित किया गया था. एचडी-2967 और एचडी-3086 की किस्म के मुकाबले यह ज्यादा उपज देने में सक्षम है. एचडीसीएसडब्लू-18 की मदद से किसान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सात टन से ज्यादा गेहूं की उपज पा सकते हैं. वहीं पहले से मौजूद एचडी-2967 और एचडी-3086 किस्म से प्रति हेक्टेयर 6 से 6.5 टन तक पैदावार मिलती है.

नई किस्मों को मिला लाइसेंस

सामान्य तौर पर अच्छी उपज वाले गेंहू की किस्मों की ऊंचाई लगभग 90 से 95 सेंटीमीटर होती है. इस वजह से लंबी होने के कारण उनकी बालियों में अच्छे से अनाज भर जाता है. जिस करण उनके झुकने का खतरा बना रहता है. वहीं एचडी-3410 जिसे साल 2022 में जारी किया गया था, उसकी ऊंचाई करीब 100 से 105 सेंटीमीटर होती है. इस किस्म से प्रति हेल्तेय्र के हिसाब से 7.5 टन की उपज मिलती है. लेकिन बात तीसरी किस्म यानि कि एचडी-3385 की हो तो, इस किस्म से काफी ज्यादा उपज मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं एआरआई ने एचडी-3385 जो किसानों और पौधों की किस्मों के पीपीवीएफआरए के संरक्षण के साथ रजिस्ट्रेशन किया है. साथ ही इसने डीसी एम श्रीरा का किस्म का लाइसेंस भी जारी किया है. ये भी पढ़ें: गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

कम किये जा सकते हैं आटे के रेट

एक्सपर्ट्स की मानें तो अगर किसानों ने गेहूं की इन नई किस्मों का इस्तेमाल खेती करने में किया तो, गर्मी और लू लगने का डर इन फसलों को नहीं होगा. साथी ही ना तो इसकी गुणवत्ता बिगड़ेगी और ना ही उपज खराब होगी. जिस वजह से गेहूं और आटे दोनों के बढ़ते हुए दामों को कंट्रोल किया जा सकता है.
दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से आने से पूर्व पुनः एक बार फिर से गेहूं महंगा हो चुका है। बतादें, कि इससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि आगामी दिनों में इसका भाव और बढ़ सकता है। साथ ही, इससे पूर्व जनवरी माह में भी गेहूं की कीमत सातवें आसमान पर पहुँच गई थी। केंद्र सरकार के बहुत सारे प्रयासों के बावजूद भी महंगाई कम ही नहीं हो पा रही है। आलम यह है, कि एक वस्तु सस्ती होती है, तो दूसरी वस्तु महंगी हो जाती है। टमाटर एवं हरी सब्जियों के भाव में गिरावट दर्ज की है। वर्तमान में गेहूं एक बार पुनः महंगा हो गया है। ऐसा बताया जा रहा है, कि त्योहारी सीजन से पूर्व ही गेहूं के भाव 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। ऐसी स्थिति में फूड इन्फ्लेशन बढ़ने की संभावना एक बार पुनः बढ़ गई है। साथ ही, व्यापारियों ने बताया है, कि इंपोर्ट ड्यूटी के कारण विदेशों से खाद्य पदार्थों का आयात प्रभावित हो रहा है। इससे सरकार के ऊपर निर्यात ड्यूटी हटाने को लेकर काफी दबाव बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को महंगाई पर लगाम लगाने के लिए समय-समय पर सरकारी भंडार से भी गेहूं और चावल जैसे खाद्य पदार्थ को जारी करना पड़ रहा है।

गेंहू की कीमत बढ़ने से इन खाद्यान पदार्थों की कीमत भी बढ़ेगी

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, त्योहारी दिनों की वजह से बाजार में गेहूं की डिमांड बढ़ गई है। वहीं, मांग में बढ़ोतरी से गेहूं की आपूर्ति काफी प्रभावित हो गई है, जिससे कीमतें 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं। यदि कीमतों में इजाफे का यह हाल रहा तो, आगामी दिनों में खुदरा महंगाई और भी बढ़ सकती है। गेहूं एक ऐसा अनाज है, जिससे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। अगर
गेहूं की कीमत में बढ़ोतरी होती है, तो रोटी, बिस्कुट, ब्रेड एवं केक समेत विभिन्न खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो जाएंगे।

भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद इंपोर्ट ड्यूटी

मुख्य बात यह है, कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं के भाव में मंगलवार को 1.6% का इजाफा दर्ज किया गया। इससे गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच गई, जोकि 10 फरवरी के बाद का सर्वोच्च स्तर है। ऐसा बताया जा रहा है, कि विगत छह महीनों के दौरान गेहूं का भाव तकरीबन 22% प्रतिशत बढ़ा हैं। साथ ही, रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार एस ने केंद्र सरकार के समक्ष गेहूं के आयात पर से ड्यूटी हटाने की मांग उठाई है। दरअसल, उन्होंने बताया है, कि अगर सरकार गेहूं पर से इंपोर्ट ड्यूटी हटा देती है, तो निश्चित रूप से इसकी कीमत कम हो सकती है। दरअसल, भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद आयात ड्यूटी लगाई है, जिसे हटाने को लेकर कोई तत्काल योजना नजर नहीं आ रही है।

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खाद्य पदार्थों की कीमतों में इस तरह गिरावट होगी

साथ ही, 1 अक्टूबर तक सरकारी गेहूं भंडार में केवल 24 मिलियन मीट्रिक टन ही गेहूं का भंडार था। जो पांच वर्ष के औसतन 37.6 मिलियन टन के मुकाबले में बेहद कम है। हालांकि, केंद्र ने फसल सीजन 2023 में किसानों से 26.2 मिलियन टन गेहूं की खरीदारी की है, जो लक्ष्य 34.15 मिलियन टन से कम है। वहीं, केंद्र सरकार का अंदाजा है, कि फसल सीजन 2023-24 में गेहूं उत्पादन 112.74 मिलियन मीट्रिक टन के करीब होगा। इससे खाद्य पदार्थों के भाव में गिरावट आएगी।