Ad

agri news

512 किलो प्याज बेचकर किसान को मिला केवल 2 रुपए का चेक

512 किलो प्याज बेचकर किसान को मिला केवल 2 रुपए का चेक

हाल ही में महाराष्ट्र के नासिक से एक बहुत ही ज्यादा चौका देने वाली खबर सामने आई है. सोलापुर जिले के 58 वर्षीय किसान राजेंद्र तुकाराम प्याज की खेती करने वाले एक साधारण से किसान हैं. हाल ही में वह सोलापुर APMC में अपने 512 किलो प्याज बेचने के लिए अपने गांव से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए पहुंचे और आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि उन्हें 1 किलो प्याज के लिए सिर्फ ₹2 कीमत मिली.

512 किलो प्याज से हुआ केवल ₹2 मुनाफा

सभी तरह के खर्चे निकालने के बाद जब राजेंद्र तुकाराम ने अपना मुनाफा जोड़ा तो वह मात्र 2.49 रुपए था और इसके लिए भी उन्हें 15 दिन बाद का एक पोस्ट डेटेड चेक थमा दिया गया जिस पर कीमत ₹2 लिखी गई थी क्योंकि बैंक राउंड फिगर में ही पैसा अदा करता है और वह 49 पैसे किसान को नहीं दे सकते हैं. 

ये भी पढ़ें: इस देश में प्याज की कीमतों ने आम जनता के होश उड़ा दिए हैं 

 राजेंद्र तुकाराम को यह पैसा सीधा ट्रेडर की तरफ से दिया जाएगा और उन्हें यह पैसा लेने में कोई दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है.  उन्होंने आगे बताया कि उन्हें  अपने पूरे प्याज की फसल का दाम ₹512 दिया गया था जिसमें से लगभग ₹509 ट्रेडर ने ट्रांसपोर्ट,  लोडिंग और वजन आदि करने के लिए काट लिया. 

तुकाराम ने इस फसल पर खर्च किए थे ₹40000

आगे बातचीत करते हुए राजेंद्र ने बताया कि उन्हें 512 किलो प्याज उगाने के लिए लगभग ₹40000 खर्च करने पड़े थे क्योंकि आजकल और उर्वरक और बीज आदि सभी चीजों का मूल्य बढ़ चुका है. 

APMC ने बताया कारण

तुकाराम को एक पोस्ट डेटेड चेक देने का कारण बताते हुए APMC  ने कहा कि वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि उनकी तरफ से सारा प्रोसेस कंप्यूटराइज्ड किया जा चुका है जिसके तहत इसी तरह से चेक दिए जाते हैं.उन्होंने बताया कि मूल्य कितना ही हो वह चेक से ही चुकाया जाता है और वह पहले भी इतने छोटे अमाउंट का चेक किसानों को दे चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि तुकाराम जो प्याज लेकर आए थे वह अच्छी क्वालिटी के नहीं थे इसीलिए उन्हें अच्छा दाम नहीं मिल पाया. अच्छी क्वालिटी के प्याज लगभग ₹18 प्रति किलोग्राम के हिसाब से APMC  खरीद लेता है. 

क्या है  एक्सपर्ट की राय?

एक्सपर्ट की मानें तो उनका कहना है कि भारत में आज भी केवल पूरी फसल में से लगभग 25% ही उत्तम क्वालिटी की होती है और लगभग 30% फसल केवल मीडियम क्वालिटी की होती है और बाकी सारी फसल बहुत ही निम्न स्तर की उगती है. आंकड़ों की मानें तो प्याज की फसल में प्याज के क्विंटल तो बढ़ गई हैं लेकिन क्वालिटी आधी हो गई है. साल 2022 में 15000 क्विंटल प्याज़ की फसल हुई तो वहीं 2023 में यह बढ़कर 30000 क्विंटल हो गई है.लेकिन इनकी क्वालिटी इतनी गिर गई है कि एक ही साल में मूल्य 1850 प्रति क्विंटल से गिर कर 550 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है. कुछ समय पहले ग्राम पंचायत ने चिट्टी लिख सरकार से इस पर संज्ञान लेने की बात कही है.इस चिट्टी में किसानों को प्याज़ की फसल के लिए मुआवजा देने की बात भी कही गई है.किसानों ने पंचायत को यह शर्त ना पूरी होने पर आत्महत्या तक करने की धमकी दे दी है. पंचायत ने बताया है कि पिछले 2 हफ्ते से इस पत्र पर कोई जवाब नहीं दिया गया है. राज्य के हेल्थ और फैमिली वेलफेयर मिनिस्टर ने केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल को भी इस मामले पर नज़र डालते हुए सरकार द्वारा फसल खरीदने की मांग भी रखी है.

किसानों को करे मालामाल, इसे कहते हैं सोना लाल, करे केसर की खेती

किसानों को करे मालामाल, इसे कहते हैं सोना लाल, करे केसर की खेती

किसान भाइयों आपने मनोज कुमार की फिल्म उपकार का वो गाना तो सुना ही होगा जिसमें बताया गया है कि मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती। ये हमारे देश की धरती वास्तव में सोना उगलती है। ये सोना कोई और नहीं बल्कि केसर है, जिसको दुनिया में लाल सोना कहा जाता है। इसका कारण यह है कि मात्र छह महीने के समय में खेतों में उगने वाला ये केसर बाजार में सोने जैसा ही महंगा बिकता है। केसर का मूल्य 3 लाख से 4 लाख रुपये प्रतिकिलो तक है। डिमांड बढ़ने पर इसकी कीमत 5 लाख रुपये तक जाती है। केसर के महंगे होने का प्रमुख कारण यह है कि इसकी खेती समुद्र तल से 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले इलाकों में होती है। इस तरह के स्थान दुनिया भर में बहुत कम हैं।  बर्फीले लेकिन शुष्क मौसम में इसकी खेती की जाती है। यदि अधिक नमी वाली या पानी वाली जगह है तो वहां पर यह खेती नहीं हो सकती। विश्व में इस तरह के मौसम वाले खेती की जमीन कम होने के कारण इसके दाम अधिक होते हैं। स्पेन और ईरान मिलकर दुनिया की 80 प्रतिशत केसर पैदा करते हैं। भारत में कश्मीर में इसकी खेती होती है और वो दुनिया का 3 प्रतिशत केसर पैदा करता है। केसर सबसे महंगा मसाला है। इसके अलावा अनेक औषधीय गुणों के कारण पूरे विश्व में बहुत अधिक डिमांड है। सुगंध के कारण इसका प्रयोग कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी होता है। कुल मिलाकर केसर का जितना उत्पादन होता है उससे कई गुना अधिक मांग है। इस वजह से इसकी कीमत बहुत ज्यादा रहती है। आईये जानते हैं कि केसर की खेती किस प्रकार की जाती है।

भूमि और जलवायु

केसर की खेती के लिए भूमि और जलवायु केसर की खेती के लिए बलुई दोमट और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी गयी है। रेतीली जमीन में भी इसकी खेती अच्छे तरह से की जा सकती है। इसके लिए जलभराव वाली जमीन ही हानिकारक है।
केसर की खेती के लिए पीएम मान 5-6 वाली मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। जलभराव से इसके बीज सड़ जाते हैं। इसलिये समतल या जल निकासी वाली जमीन में खेती की जानी चाहिये। केसर की खेती के लिए सर्दी, गर्मी और धूप की आवश्यकता होता है। इसकी खेती बर्फीले प्रदेश में अधिक अच्छी होती है। सर्दी अधिक पड़ने और गीला मौसम होने से इसकी पैदावार कम होती है। केसर के पौधों के अंकुरण और बढ़वार के लिए 20 डिग्री के आसपास का तापमान चाहिये। इसी तरह फूल निकलने के समय भी 10 से 20 डिग्री का तापमान सबसे उपयुक्त बताया गया है।

खेत की तैयारी कैसे करें

केसर की खेती के लिए सबसे पहले खेत को खरपतवार हटा कर मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। उसके बाद खेत में प्रति एकड़ 10 से 15 टन गोबर की खाद डालकर कल्टीवेटर से तिरछी जुताई करें ताकि खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाये। इसके बाद खेत में पलेवा करके छोड़ दें और जब जमीन हल्की सूख जाये तब एन.पी.के. की उचित मात्रा में डालकर रोटावेटर से जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाये। ये भी पढ़े: रिटायर्ड इंजीनियर ने नोएडा में उगाया कश्मीरी केसर, हुआ बंपर मुनाफा

उन्नत किस्में

कश्मीरी मोगरा: केसर की उन्नत किस्मों के बारे में कश्मीरी मोगरा को सबसे अच्छा माना जाता है। इसकी उच्च गुणवत्ता के कारण ही इसका बाजार में मूल्य 3 से 5 लाख रुपये प्रतिकिलो है। इस किस्म की केसरकी खेती केवल जम्मू कश्मीर में ही किश्तवाड़, पम्पोर के आसपास अधिक होती है। इसके पौधे एक फुट की ऊंचाई वाले होते हैं। इन पौधों पर बैंगनी, नीले और सफेद फूल लगते हैं। इन फूलों में दो से तीन नारंगी रंग की पतली से पंखुड़ियां होतीं है, इन्हें ही केसर कहा जाता है। माना जाता है कि एक बीघे में एक किलो केसर हो पाती है। हेक्टेयर की बात करें तो 4 किलो के आसपास केसर मिल जाती है।

अमेरिकन केसर

केसर की इस नस्ल पर विवाद भी है। इसको कुछ लोग केसर मानते हैं तो कुछ लोग इसे कुसुम का पौधा कहते हैं। इसकी केसर कश्मीरी केसर की अपेक्षा बहुत कम रेट पर बिकती है। राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों में इस अमेरिकन केसर की खेती होती है। इसकी खेती शुष्क प्रदेशों में होती है और इसके लिए कोई विशेष प्रकार की जलवायु की जरूरत नहीं होती है। इसका प्रयोग सफोला तेल बनाने में किया जाता है।

कब और कैसे करें बिजाई

कैसे करें केसर की खेती केसर की खेती के लिए बिजाई का सबसे उत्तम समय अगस्त माह का होता है। कुछ किसान भाई सितम्बर में भी इसकी बुआई कर सकते हैं। अच्छी गुणवत्ता वाली केसर पाने के लिए किसान भाइयों को समय पर ही बिजाई करनी आवश्यक होती है। इस समय केसर लगाने से फायदा यह होता है कि जब नवम्बर में अधिक सर्दी पड़ती है तब तक पौधा इतना मजबूत हो जाता है कि उस पर सर्दी का असर नहीं पड़ता है बल्कि उस समय उसके फूल अधिक अच्छा आता है। ये भी पढ़े: सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी छोड़कर केसर का उत्पादन शुरू किया, वेतन से कई गुना ज्यादा कमा रहा मुनाफा केसर की बिजाई दो तरीके से की जा सकती है। इसको समतल खेतों में लगाया जा सकता है और यदि पानी के भराव की कोई आशंका हो तो इसको मेड़ पर लगाना चाहिये। समतल खेतों में पंक्ति की दूरी लगभग दो फुट की होनी चाहिये। जो किसान भाई इसे मेड़ पर लगाना चाहते हैं तो मेड़ों के बीच एक फुट की दूरी छोड़नी चाहिये। पौधों के बीच  दूरी भी फुट रखनी चाहिये। कश्मीरी मोगरा केसर की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 1 से दो क्विंटल के बीज की जरूरत होती है। इसका बीज लहसुन जैसा होता है। यह बीज काफी महंगा मिलता है। इसे बल्ब कहते हैं।

सिंचाई प्रबंधन

यदि वर्षा काल में केसर की बिजाई की जा रही है तो पानी की आवश्यकता होती है। इस समय किसान भाइयों को चाहिये कि वे यह देखते रहें कि वर्षाकाल में बारिश नहीं हो रही है तो बीज बोने के बाद सिंचाई अवश्य कर दें तथा 15 दिन में एक बार अवश्य सिंचाई कर दें। समय-समय पर सिंचाई तो करें लेकिन जब फूल आने वाले हों तो सिंचाई को रोक दें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

केसर की खेती में खाद व उर्वरक जुताई और बुआई से पहले ही डाली जाती है। बुआई से पहले प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन गोबर की खाद डाली जाती है। इसके अलावा जो किसान भाई उर्वरकों को प्रयोग करना चाहते हैं वे एनपीके की उचित मात्रा बुआई से पहले अंतिम जुताई के दौरान डाल सकते हैं। उसके बाद जब पौधे की सिंचाई करें तब खेत में वेस्ट डिकम्पोजर डालने से लाभ होता है।

खरपतवार प्रबंधन

केसर की खेती में दो बार निराई गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों को चाहिये कि बीज से अंकुर निकलने के लगभग 15 से 20 दिन के बीच एक बार निराई करके खरपतवार हटा देना चाहिये और उसके एक माह बाद फिर से निराई गुड़ाई कर देनाा चाहिये।

रोग प्रबंधन

केसर की खेती में रोगों के लगने की संभावना कम ही होती है। इसके बावजूद दो रोग अक्सर देखने को मिल जाते हैं।
  1. मकड़ी जाला: ये रोग अंकुर निकलने के बाद पहले या दूसरे महीने में लग जाता है। इससे पौधे के बढ़वार रुक जाती है जिससे उत्पादन प्रभावित हो जाता है। इसके संकेत मिलते ही आठ-दस दिन पुरानी छाछ यानी मट्ठे का छिड़काव करने से लाभ मिलता है।
  2. बीज सड़न: बुआई के बाद ही यह रोग लग जाता है। इस रोग के लगने के बाद बीज सड़ने लगता है। इस बीमारी को कोर्म सड़ांध के नाम से भी जाना जाता है। इसका संकेत मिलते ही पौधे की जड़ों पर सस्पेंशन कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करना चाहिये।

केसर की तुड़ाई कब की जानी चाहिये

केसर की तुड़ाई कब की जानी चाहिये केसर की खेती में बीजों की बुआई के लगभग चार महीने बाद ही केसर फूल देना शुरू कर देता है। इस फूल के अन्दर धागे नुमा पंखुड़ियां जब लाल या नारंगी हो जायें तब उन्हें तोड़ कर छायादार जगह में सूखने के लिए एकत्रित करें। जब सूख जाएं तब उन्हें किसी कांच के बर्तन में रख लें।

मोगरा केसर ऐसे बनायें

केसर के फूलों से निकली नारंगी पंखुड़ियों को तीन से पांच दिन सुखाया जाता है। उसके बाद इन्हें डंडे से पीट कर मोटी छन्नियों से छाना जाता है। छानने के बाद मिले केसर को पानी में डाला जाता है जो भाग पानी में तैरता है उसे हटा दिया जाता है। पानी में डूबने वाले हिस्सों को निकाल कर सुखाया जाता है। इस तरह से असली मोगरा केसर तैयार हो जाता है। जिसकी कीमत 3 लाख रुपये प्रतिकिलो से अधिक बतायी जाती है। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयास से इस राज्य के गाँव में हुआ केसर का उत्पादन

लच्छा केसर भी बनाया जाता है

पानी में तैरने वाला भाग जो हटाया जाता है। उसे दुबारा पीट कर फिर पानी में डुबाया जाता है। इसमें डूबने वाले हिस्से को फिर पानी से निकाला जाता है जिसे लच्छा केसर कहते हैं। इसकी क्वालिटी पहले वाले से कम होती है।

संभावित लाभ

किसान भाइयों केसर की खेती से हमें अच्छी फसल मिलने पर काफी लाभ  प्राप्त होता है। एक फसल में केसर की खेती से प्रति हेक्टेयर 3 किलों केसर मिलती है। गुणवत्ता के आधार पर केसर की कीमत लगभग 3 लाख रुपये किलो बताई जाती है। इस तरह से प्रति हेक्टेयर 9 लाख रुपये का लाभ किसान भाइयों को मिल सकता है।
ओलावृष्टि और बारिश से किसानों की फसल हुई बर्बाद

ओलावृष्टि और बारिश से किसानों की फसल हुई बर्बाद

मध्य प्रदेश में अचानक आई बारिश और ओलावृष्टि की वजह से वहां के किसानों की गेंहू की खड़ी फसल खराब हो गई है। स्थानीय विधायक कुणाल चौधरी ने बताया है, कि बारिश और ओलावृष्टि होने से किसानों की फसलों को खूब हानि हुई है।उहोंने यह भी कहा कि मैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी से निवेदन करना चाहता हूं, कि वह किसानों की आर्थिक सहायता करें। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि मध्य प्रदेश के शाजापुर जनपद में शनिवार को प्रचंड बारिश हुई। परिणामस्वरुप किसान की खड़ी गेहूं की फसल बर्बाद हो गई है। खबरों के मुताबिक, इस आकस्मिक बारिश से किसानों को बेहद आर्थिक हानि पहुंची है। इस परिस्थिति में कालापीपल के विधायक कुणाल चौधरी ने किसानों की क्षतिग्रस्त हुई फसल के विषय में जानकारी लेने के लिए उनके खेतों में जाकर फसलों का सर्वेक्षण किया। साथ ही, बीजेपी सरकार पर खूब जमकर तंज कसे। इसी कड़ी में एक पीड़ित किसान विधायक को देखके भावुक हो गया उनके गले से लगकर रोने लगा। खबरों के अनुसार, जनपद में तकरीबन 40% से अधिक रबी की फसल हानि हो गई है।

विधायक से गले मिलकर रोया पीड़ित किसान

विधायक कुणाल चौधरी ने बताया है, कि बारिश और ओलावृष्टि से फसलों को बड़े स्तर पर हानि पहुंची है। इसी संदर्भ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कुणाल चौधरी का कहना है, कि अतिशीघ्र उनके स्तर से प्रभावित किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाए। साथ ही, उन्होंने बताया है, कि राज्य में सोयाबीन, प्याज एवं लहसुन उत्पादक किसानों को लाभ अर्जित नहीं हुआ है। भाव कम होने के कारण सोयाबीन, प्याज एवं लहसुन की कृषि करने वाले किसान भाई फसल पर किया गया खर्च भी नहीं निकाल पाए हैं। फिलहाल, वर्षा से गेहूं की फसल के ऊपर भी संकट के बादल छा गए हैं। अब सरकार द्वारा किसानों से समुचित मूल्य पर गेहूं खरीदना चालू करने की जरूरत है। ये भी देखें: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल

किसानों ने क्षतिग्रस्त फसल के लिए की आर्थिक सहायता की माँग

इसी कड़ी में कुणाल चौधरी ने बताया है, कि कांग्रेस द्वारा किसान भाइयों का कर्ज माफ कर कृषि को सुगम कर दिया था। परंतु, आज की सरकार ने केवल किसानों का जीवन बर्बाद करने का कार्य किया है। आज की सरकार ने 4 गुना महंगा खाद करके किसानों की फसल पर लगने वाली लागत को बढ़ाने का कार्य किया है। इतना ही नहीं किसानों के आगे बेबुनियाद और झूठे वादे करके उनको मुख्यमंत्री जी गुमराह करने का कार्य कर रहे हैं। दूसरी तरफ बढ़ती महंगाई की वजह से किसानों का फसल पर किए जाने वाला खर्च 3 गुना बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में हमारी चाह है, कि किसान भाइयों को समुचित आर्थिक सहायता प्रदान की जाए एवं गेहूं का मूल्य 3000 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया जाए। साथ ही, कालापीपल के विधायक कुणाल चौधरी ने यह बताया है, कि सरकार को 40000 प्रति हैक्टर की कीमत से किसानों को आर्थिक सहायता देनी चाहिए।

बारिश की वजह से रबी फसल क्षतिग्रस्त

साथ ही, शाजापुर जनपद के प्रभारी मंत्री ने सूचित किया है, कि मध्यप्रदेश में ओलावृष्टि की वजह से किसानों की फसल को बेहद हानि हुई है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को जो हानि वहन करनी पड़ी है, उसका सर्वेक्षण करने के आदेश दिए जा चुके हैं। परंतु, विचार करने योग्य बात यह है, कि मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान और शिवराज सरकार के मंत्री द्वारा जब आदेश जारी किया जा चुका है। तो फिर क्यों अब तक किसानों के खेत में कोई राजस्व अधिकारी निरीक्षण करने अब तक क्यों नहीं पहुंचा है।
इस राज्य में किसान अंजीर की खेती से कमा रहे लाखों का मुनाफा

इस राज्य में किसान अंजीर की खेती से कमा रहे लाखों का मुनाफा

राजस्थान के शेखावाटी इलाके में किसान बड़े पैमाने पर अंजीर की खेती कर रहे हैं। विशेष कर रामजीपुरा में अंजीर की खेती करने वाले किसानों की तादात अधिक है। राजस्थान का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में सबसे पहले रेगिस्तान का नाम सामने आता है। ज्यादातर लोगों का मानना है, कि यहां पर केवल ज्वारा, रागी, मक्का और बाजारा जैसे मोटे अनाज की ही खेती होती है। परंतु, इस प्रकार की कोई बात नहीं है। वर्तमान में यहां के किसान सेब, आम, आंवला और जामुन की भी खेती कर रहे हैं। इससे किसानों को मोटी आमदनी हो रही है। बहुत सारे किसान बागवानी की खेती से धनवान हो गए हैं। परंतु, आज हम राजस्थान के कुछ ऐसे किसानों के विषय में बात करने जा रहे हैं, जो अंजीर की खेती से लखपति नहीं, बल्कि करोड़पति तक बनने की राह पर हैं।

किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए अंजीर की खेती करते हैं

जानकारी के अनुसार, राजस्थान के शेखावाटी इलाके में किसान बड़े पैमाने पर अंजीर की खेती कर रहे हैं। विशेष कर रामजीपुरा में अंजीर की खेती करने वाले किसानों की तादात काफी अधिक है। यहां पर किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से अंजीर की खेती कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की बहुत सी कंपनियों ने क्षेत्र के दर्जन भर किसानों से कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है। कंपनियां किसानों को अंजीर की खेती करने हेतु वार्षिक 10 से 24 लाख रुपए निर्धारित भुगतान कर रही हैं।

अंजीर का सेवन करने से बेहद लाभ होते हैं

दरअसल, अंजीर शहतूत परिवार की सदस्य है। यह काफी ज्यादा महंगी बिकती है। वर्तमान बाजार में उत्तम क्वालिटी के एक किलो अंजीर का भाव 1200 रुपये है। ऐसे भी अंजीर खाने से शरीर को भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और विटामिन्स अर्जित होते हैं। नियमित तौर पर अंजीर का सेवन करने से शरीर स्वस्थ्य रहता है। यही कारण है, कि सर्दी के मौसम में लोग अंजीर का सेवन करना ज्यादा पसंद करते हैं।

ये भी पढ़ें:
इस ड्राई फ्रूट की खेती से किसान कुछ समय में ही अच्छी आमदनी कर सकते हैं

किसान अंजीर की इन किस्मों का उत्पादन करते हैं

मुख्य बात यह है, कि सीकर जनपद में किसान अंजीर की विभिन्न किस्मों की खेती कर रहे हैं। इनमें सिमराना, काबुल, मार्सेलस, कडोटा, कालीमिरना और वाइट सैन पेट्रो जैसी किस्में शम्मिलित हैं। यहां के किसान भोला सिंह ने बताया है, कि अंजीर की खेती से उनकी तकदीर बदल गई। फिलहाल वे लाखों में आमदनी कर रहे हैं। कुछ ही वर्ष में यहां के किसान करोड़पति हो जाएंगे। भोला सिंह का कहना है, कि वे कांट्रैक्ट फार्मिंग से बेहद प्रसन्न हैं। किसानों का कहना है, कि जिन कंपनियों से हम लोगों का कॉट्रैक्ट हुआ है, उसके अधिकारी समयानुसार पौधों की देखरेख करने के लिए विशेषज्ञों के साथ आते रहते हैं।

किसान अंजीर से कितनी आय कर सकते हैं

बतादें, कि रोपाई करने के एक साल उपरांत अंजीर के पेड़ से पैदावार चालू हो जाती है। इससे आप 100 साल तक पैदावार उठा सकते हैं। एक बार फल देने के उपरांत अगले 40 दिन में फिर से अंजीर के पौधों पर फल आ जाते हैं। यदि आपने एक बीघे में अंजीर की खेती की है, तो इससे आपको प्रतिदिन 50 किलो तक उत्पादन मिलेगा। स्थानीय बाजार में 300 किलो के हिसाब से अंजीर बिकती है। ऐसी स्थिति में प्रतिदिन 15000 रुपये की आमदनी कर सकते हैं।