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भारत सरकार ने केंद्रीय बीज समिति के परामर्श के बाद गन्ने की 10 नई किस्में जारी की हैं

भारत सरकार ने केंद्रीय बीज समिति के परामर्श के बाद गन्ने की 10 नई किस्में जारी की हैं

गन्ना किसानों के लिए 10 उन्नत किस्में बाजार में उपलब्ध की गई हैं। बतादें, कि गन्ने की इन उन्नत किस्मों की खेती आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी, हरियाणा, मध्य प्रदेश और पंजाब के किसान बड़ी सुगमता से कर सकते हैं। चलिए आज हम आपको इस लेख में गन्ने की इन 10 उन्नत किस्मों के संबंध में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे। भारत में गन्ना एक नकदी फसल है। गन्ने की खेती किसान वाणिज्यिक उद्देश्य से भी किया करते हैं। बतादें, कि किसान इससे चीनी, गुड़, शराब एवं इथेनॉल जैसे उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं। साथ ही, गन्ने की फसल से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों के किसानों को बेहतरीन कमाई भी होती है। किसानों द्वारा गन्ने की बुवाई अक्टूबर से नवंबर माह के आखिर तक और बसंत कालीन गन्ने की बुवाई फरवरी से मार्च माह में की जाती है। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गन्ना फसल को एक सुरक्षित फसल माना गया है। इसकी वजह यह है, कि गन्ने की फसल पर जलवायु परिवर्तन का कोई विशेष असर नहीं पड़ता है।

भारत सरकार ने जारी की गन्ने की 10 नवीन उन्नत किस्में

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने केंद्रीय बीज समिति के परामर्श के पश्चात गन्ने की 10 नवीन किस्में जारी की हैं। इन किस्मों को जारी करने का प्रमुख लक्ष्य गन्ने की खेती करने के लिए गन्ने की उन्नत किस्मों को प्रोत्साहन देना है। इसके साथ ही गन्ना किसान ज्यादा उत्पादन के साथ बंपर आमदनी अर्जित कर सकें।

जानिए गन्ने की 10 उन्नत किस्मों के बारे में

गन्ने की ये समस्त उन्नत किस्में ओपन पोलिनेटेड मतलब कि देसी किस्में हैं। इन किस्मों के बीजों की उपलब्धता या पैदावार इन्हीं के जरिए से हो जाती है। इसके लिए सबसे बेहतर पौधे का चुनाव करके इन बीजों का उत्पादन किया जाता है। इसके अतिरिक्त इन किस्मों के बीजों का एक फायदा यह भी है, कि इन सभी किस्मों का स्वाद इनके हाइब्रिड किस्मों से काफी अच्छा होता है। आइए अब जानते हैं गन्ने की इन 10 उन्नत किस्मों के बारे में।

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इक्षु -15 (सीओएलके 16466)

इक्षु -15 (सीओएलके 16466) किस्म से बेहतरीन उत्पादन हांसिल होगा। यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम राज्य के लिए अनुमोदित की गई है।

राजेंद्र गन्ना-5 (सीओपी 11438)

गन्ने की यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम के लिए अनुमोदित की गई है।

गन्ना कंपनी 18009

यह किस्म केवल तमिलनाडु राज्य के लिए अनुमोदित की गई है।

सीओए 17321

गन्ना की यह उन्नत किस्म आंध्र प्रदेश राज्य के लिए अनुमोदित की गई है।

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सीओ 11015 (अतुल्य)

यह किस्म बाकी किस्मों की तुलना में ज्यादा उत्पादन देती है। क्योंकि इसमें कल्लों की संख्या ज्यादा निकलती है। गन्ने की यह उन्नत किस्म आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की जलवायु के अनुकूल है।

सीओ 14005 (अरुणिमा)

गन्ने की उन्नत किस्म Co 14005 (Arunima) की खेती तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बड़ी सहजता से की जा सकती है।

फुले गन्ना 13007 (एमएस 14082)

गन्ने की उन्नत किस्म Phule Sugarcane 13007 (MS 14082) की खेती तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में बड़ी सहजता से की जा सकती है।

इक्षु -10 (सीओएलके 14201)

गन्ने की Ikshu-10 (CoLK 14201) किस्म को आईसीएआर के द्वारा विकसित किया गया है। बतादें, कि किस्म के अंदर भी लाल सड़न रोग प्रतिरोध की क्षमता है। यह किस्म राजस्थान, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी और मध्य), उत्तराखंड (उत्तर पश्चिम क्षेत्र), पंजाब, हरियाणा की जलवायु के अनुरूप है।

इक्षु -14 (सीओएलके 15206) (एलजी 07584)

गन्ने की Ikshu-14 (CoLK 15206) (LG 07584) किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी और मध्य) और उत्तराखंड (उत्तर पश्चिम क्षेत्र) के किसान खेती कर सकते हैं।

सीओ 16030 (करन 16)

गन्ने की किस्म Co-16030, जिसको Karan-16 के नाम से भी जाना जाता है। इस किस्म को गन्ना प्रजनन संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों की ओर से विकसित किया गया है। यह किस्म उच्च उत्पादन और लाल सड़न रोग प्रतिरोध का एक बेहतरीन संयोजन है। इस किस्म का उत्पादन उत्तराखंड, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में बड़ी आसानी से किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने गेहूं की फसल को गर्मी के तनाव से बचने के लिए हीट टॉलरेंट किस्में विकसित की

वैज्ञानिकों ने गेहूं की फसल को गर्मी के तनाव से बचने के लिए हीट टॉलरेंट किस्में विकसित की

विभिन्न जलवायु खतरों में से गर्मी का तनाव सबसे महत्वपूर्ण है, जो फसल उत्पादन को बाधित करता है। प्रजनन चरण के दौरान गर्मी से संबंधित क्षति फसल की उपज को बहुत नुकसान पहुंचाती है। गेहूं में टर्मिनल हीट स्ट्रेस से मॉर्फोफिजियोलॉजिकल बदलाव, जैव रासायनिक व्यवधान और आनुवंशिक क्षमता में कमी आती है।

गेहूं की फसल में गर्मी का तनाव जड़ों और टहनियों का निर्माण, डबल रिज चरण पर प्रभाव और वानस्पतिक चरण में प्रारंभिक बायोमास पर भी प्रभाव डालती  है। गर्मी के तनाव के अंतिम खराब परिणामों में अनाज की मात्रा, वजन में कमी, धीमी अनाज भरने की दर, अनाज की गुणवत्ता में कमी और अनाज भरने की अवधि में कमी शामिल है।              

आज के आधुनिक युग में जहां तापमान में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। सर्दी के मौसम में भी गर्मी होती है जिस कारन से रबी की फसल उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव पद रहा है। जिस कारण से किसानों को भी बहुत नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने विकसित की हीट टॉलरेंट किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गेहूं की फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए गेहूं की नई किस्में विकसित की है। ये किस्में मार्च अप्रैल के महीने में तापमान में होने वाली वृद्धि में भी अच्छी उपज दे सकती है। इन किस्मों में ऐसे जीन डालें गए है जो की अधिक तापमान में भी फसल की उत्पादकता में कमी नहीं आने देंगे। 

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इन किस्मों की बुवाई किसान समय और देरी से भी कर सकते है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक से बातचीत के दौरान पता चला है की उन्होंने गेहूं की बहुत सारी किस्में विकसित की है जो की समय पर बुवाई और देरी से बुवाई के लिए उचित है। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कई किस्में विकसित की है जो की मार्च और अप्रैल की गर्मी को सहन करके भी अच्छी उपज देगी। कृषि वैज्ञानिकों ने कई नई किस्में विकसित की है जिनकी बुवाई से किसानों को अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा। इन किस्मों के नाम आपको निचे देखने को मिलेंगे। 

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HD- 3117, HD-3059, HD-3298, HD-3369 ,HD-3271, HI-1634, HI-1633, HI- 1621, HD 3118(पूसा वत्सला) ये सभी किस्में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गयी है। इन  किस्मों में मार्च अप्रैल के अधिक तापमान को सहने की क्षमता है। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार कृषि प्रबंधन तकनीकों को आपके भी गेहूं में गर्मी के तनाव को कम किया जा सकता है

कुछ कृषि प्रबंधन तकनीकों में बदलाव करके भी किसान गेहूं की फसल में गर्मी के तनाव को कम कर सकते है - जैसे की मिट्टी की नमी की हानि को कम करने के लिए संरक्षण खेती, उर्वरकों की संतुलित खुराक का उपयोग करना,  बुआई की अवधि और तरीकों को बदलना आदि  अत्यधिक गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए बाहरी संरक्षक का उपयोग करना, गेहूं को गर्म वातावरण में उगाने के लिए बेहतर तरीके से तैयार किया जा सकता है। 

इनके अलावा गर्मी के तनाव के कारण पानी की कमी को कम करने के लिए मल्चिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है, खासकर वर्षा आधारित क्षेत्रों में जहां पानी की उपलब्धता एक गंभीर चिंता का विषय है। जैविक मल्च मिट्टी की नमी बनाए रखने, पौधों की वृद्धि और नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार करने में मदद करते हैं।

भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में, जीरो टिलेज तकनीक का उपयोग करके चावल के ठूंठों की उपस्थिति में गेहूं बोने से पानी और मिट्टी के पोषक तत्वों के संरक्षण में मदद मिलती है और खरपतवार की घटनाओं को कम किया जाता है। इससे गेहूं की फसल को अंतिम गर्मी के तनाव के अनुकूल बनाया जाता है और गेहूं की फसल के समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।

गेहूं की लंबी किस्मों की अनुशंसित बुआई समय से अधिक देरी करने से फसल को प्रजनन के बाद के चरणों में गर्मी के तनाव का सामना करना पड़ सकता है जो अंततः उपज और अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। इसलिए किसी भी कीमत पर गेहूं की समय पर बुवाई की जाने वाली किस्मों की देर से बुआई करने से बचना चाहिए। जल्दी पकने वाली और लंबी दाना भरने की अवधि वाली किस्मों के रोपण से टर्मिनल ताप तनाव के प्रभाव से बचा जा सकता है। 

कीटनाशक दवाएं बेचने वाले विक्रेता सावधान हो जाएं नहीं तो बंद करनी पड़ सकती है दुकान

कीटनाशक दवाएं बेचने वाले विक्रेता सावधान हो जाएं नहीं तो बंद करनी पड़ सकती है दुकान

अगर आप अपने लिए दवाई लेने किसी भी मेडिकल स्टोर पर जाते हैं, तो वहां पर दवाई बेचने के लिए मेडिकल स्टोर के पास लाइसेंस होना बेहद जरूरी है। यह लाइसेंस फार्मेसी की डिग्री या डिप्लोमा के होने पर ही बनाया जा सकता है। अगर कोई भी स्टोर बिना लाइसेंस के दवाइयां बेच रहा है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। लेकिन ऐसा ही प्रावधान कीटनाशक दवाइयों के लिए नहीं है। लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार इसके खिलाफ सख्त कदम उठा रही है। सख्ती का पालन न करने वाले कीटनाशक दुकान संचालकों के खिलाफ प्रदेश का एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट कार्यवाही करेगा।

उत्तर प्रदेश में कीटनाशक बेचने के लिए डिग्री, डिप्लोमा होना जरूरी

बहुत समय से उत्तर प्रदेश सरकार के बाद किसानों की शिकायतें आ रही थी, कि कीटनाशक दवाई बेचने वाले लोगों के पास उस दवाई के बारे में किसी भी तरह की जानकारी नहीं होती है। यह विक्रेता किसानों के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाते हैं और उन्हें कभी कभी इस तरह की दवाइयां दे दी जाती हैं। जो उनकी फसलों के अनुसार सही नहीं होती हैं। इस तरह से दी गई दवाइयां फसलों को लाभ पहुंचाने की बजाय बहुत ज्यादा नुकसान करवा देती हैं। इसी को लेकर अब प्रदेश सरकार की ओर से निर्देश जारी किए हैं, कि सभी कीटनाशक दुकान संचालकों के पास संबंधित डिग्री या डिप्लोमा होना अत्यंत आवश्यक है।


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31 दिसंबर है डिग्री जमा करवाने की अंतिम तारीख

उत्तर प्रदेश के औरैया एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट ने इस संबंध में जिले के सभी कीटनाशक दवा विक्रेताओं को निर्देश जारी किए हैं। अगर मीडिया रिपोर्ट की मानें तो ऐसा कहा जा रहा है, कि कीटनाशक दवाइयां बेचने के लिए केवल डिग्री या फिर डिप्लोमा धारी लोग ही नियुक्त किए जाएंगे। कोई भी विक्रेता जो कीटनाशक दवाइयां बेच रहा है, वह 31 दिसंबर तक अपनी यह डिग्री या डिप्लोमा जमा करवा सकता है। अगर 31 दिसंबर तक विक्रेता ने अपनी डिग्री या डिप्लोमा जमा नहीं करवायी तो उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी एवं साथ ही दुकान खोलने की अनुमति भी नहीं दी जाएगी।

ये डिग्री, डिप्लोमा है जरूरी

विक्रेताओं के पास किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी या संस्थान से कृषि विभाग, जैव रसायन, जैव प्रौद्योगिकी की स्नातक डिग्री हो। इसके अलावा कृषि बागवानी का 1 वर्षीय डिप्लोमा से भी दवा बेच सकते हैं। विभाग के स्तर से इस संबंध में दवा विक्रेताओं को 12 दिन का ट्रेनिंग दी जा रही है, संचालक ट्रेनिंग में दवाओं के बारे में जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा विक्रेता को दवाइयों के बारे में भी सभी जानकारी होने की जरूरत है। अगर उनके द्वारा किसी भी तरह की गलत दवाई बेची गई तो उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है।
यूपी सरकार की बड़ी प्लानिंग, जल्द खुलने जा रहे हैं बीज पार्क

यूपी सरकार की बड़ी प्लानिंग, जल्द खुलने जा रहे हैं बीज पार्क

कहा जाता है कि, किसानों की अच्छी फसल उनके अच्छे बीजों की क्वालिटी पर निर्भर करती है. जिसके लिए कई राज्यों में किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध करवाए जाते हैं. इसके अलावा बीज खरीदने के लिए जो भी लागत आती है, उसे कम करने के लिए मिनी किट भी फ्री में बांटी जाती है. इसी दिशा में अब यूपी सरकार ने बीजों की उपलब्धता के लेकर बड़ी प्लानिंग कर ली है और इस पर काम कर रही है. यूपी सरकार अब खुद का बीज पार्क बनाने जा रही है. कहा जा रहा है कि इस पार्क से किसनों को उन्नतशील बीजों की उपलब्धता राज्य के बाहर से मंगवाने के बजाय घरेलू बीज पार्क से ही उपलब्ध कराया जाएगा. जानकारी के मुताबिक बता दें कि, इस पूरी प्रक्रिया में यूपी के कृषि विभाग को साउथ के राज्यों की भी मदद मिलेगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश का सबसे पहला बीज पार्क लखनऊ के मलीहाबाद स्थित रहमान खेडा में बनाया जा सकता है. इस जगह से किसानों को मोटा अनाजों के बीज भी उपलब्ध करवाए जाएंगें.

जानिए सरकार की प्लानिंग

यूपी सरकार ने राज्य में पहला बीज पार्क स्थापित करने की तैयारियां शुरू कर दी हैं. हाल ही में यूपी के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप साही ने कई शहरों में विजित किया था. जहां पर बीज पार्क को बनाने से जुड़ी कई जरूरी जानकारियां मिली थीं. ये भी देखें: 13 फसलों के जीएम बीज तैयार करने के लिए रिसर्च हुई शुरू आपको बता दें कृषि मंत्री ने हैदराबाद में कई कृषि कम्पनियों के प्रतिनिधियों के सामने यूपी की राजधानी लखनऊ में बीज पार्क बनाने के लिए मदद भी मांगी.

मिलेंगे धान और मिलेट के उन्नत बीज

उत्तर प्रदेश में बनने वाले बीज पार्क में धान और मिलेट के उन्नतशील किस्में उपलब्ध करवाई जाएंगी. इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कृषि मंत्री ने हैदराबाद में विजित करके धान और मिलेट के उन्नत बीजों को लेकर स्टार्टअप करने को लेकर जानकारियां हासिल की हैं.

इस संस्थान से मिलेगा मोटा अनाज का बीज

यूपी में राज्य सरकार मोटा अनाज के उत्पादन को बढ़ाने में कमर कस चुकी है. जिसके लिए अच्छे और बेहतर उत्पादन की जरूरत है और यह जरूरत उन्नतशील बीजों से पूरी होनी जरूरी है. राज्य में मिलेट के एडवांस बीजों को मुहैया करवाने के लिए भारतीय म,मोटा अनाज अनुसंधान संस्थान ने मदद का आश्वासन दिया है. संस्थान की मानें तो यूपी में मिलेट की उपज को बढ़ाने के लिए साइंटिस्ट की टीम राज्य में विजिट करेगी. ताकि किसानों को इस विषय में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मुहैया करवाई जा सके. जानकारी के लिए बता दें कि उत्तर प्रदेश बीजों का काफी बड़ा बाजार है. जहां देश की कई बड़ी कम्पनियां बीज बेचकर करोड़ों रुपये का मुनाफा कमा रही हैं, और कारोबार कर रही हैं.
इस राज्य में किसानों को निःशुल्क पौधे, 50 हजार रुपये की अनुदानित राशि भी प्रदान की जाएगी

इस राज्य में किसानों को निःशुल्क पौधे, 50 हजार रुपये की अनुदानित राशि भी प्रदान की जाएगी

बिहार सरकार बागवानी को प्रोत्साहन दे रही है। कृषकों को बागवानी क्षेत्र से जोड़ने के लिए सब्सिडी दी जा रही है। उनको शर्ताें के मुताबिक फ्री पौधे, आर्थिक तौर पर सहायता भी की जा रही है। भारत के कृषक अधिकांश बागवानी पर आश्रित रहते हैं। बतादें कि देश के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार सहित समस्त राज्यों में बागवानी की जाती है। किसान लाखों रुपए की आमदनी कर लेते हैं। साथ ही, राज्य सरकारों के स्तर पर कृषकों को काफी सहायता दी जाती है। इसी कड़ी में बिहार सरकार की तरफ से एक अहम कवायद की गई है। राज्य सरकार से कृषकों को बागवानी हेतु नि:शुल्क पौधे मुहैय्या किए जाऐंगे। साथ ही, उनको मोटा अनुदान भी प्रदान किया जाएगा। राज्य सरकार की इस योजना से किसान काफी खुश नजर आ रहे हैं।

इस प्रकार किसानों को निःशुल्क पौधे दिए जाऐंगे

बिहार सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, नालंदा जनपद में निजी जमीन पर 15 हेक्टेयर में आम का बगीचा लगाता है, तो उसको निःशुल्क पौधे दिए जाएंगे। सघन बागवानी मिशन के अंतर्गत 10 हेक्टेयर जमीन में आम का बगीचा लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एक किसान 8 कट्ठा साथ ही ज्यादा से ज्यादा एक हेक्टेयर में पौधे लगा सकते हैं। 5 हेक्टेयर में अमरूद और 5 हेक्टेयर में केला और बाग लगाने वाले किसानोें को भी सब्सिड़ी प्रदान की जाएगी। ये भी पढ़े: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

योजना का लाभ पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर मिलेगा

किसान भाई इसका फायदा उठाने के लिए ऑनलाइन माध्यम से आवेदन किया जा सकता है। इसमें पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर चुनाव होगा। मतलब योजना के अंतर्गत जो पहले आवेदन करेगा। उसे ही योजना का फायदा मिल सकेगा। द्यान विभाग के पोर्टल (horticulture.bihar.gov.in) पर ऑनलाइन आवेदन कर आप योजना का फायदा उठा सकते हैं।

धनराशि इस प्रकार से खर्च की जाएगी

बिहार सरकार के मुताबिक, 50 फीसद अनुदान के उपरांत प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये के प्रोजेक्ट पर तीन किस्तों में धनराशि व्यय की जानी है। प्रथम वर्ष में 60 प्रतिशत तक धनराशि प्रदान की जाएगी। जो कि 30,000 रुपये तक होगी। एक हेक्टेयर में लगाए जाने वाले 400 पौधों का मूल्य 29,000 रुपये होगा। शेष धनराशि कृषकों के खाते में हस्तांतरित की जाएगी। द्वितीय वर्ष में 10 हजार, तीसरे वर्ष में भी 10 हजार रुपये का ही अनुदान मिलेगा। हालांकि, इस दौरान पौधों का ठीक रहना काफी जरूरी है। मुख्यमंत्री बागवानी मिशन के अंतर्गत 5 हेक्टेयर में आम का बाग लगाया जाना है। प्रति हेक्टेयर 100 पौधों पर 18 हजार रुपये खर्च किए जाऐंगे। आम की किस्मों में मल्लिका, बंबइया, मालदाह, गुलाब खास, आम्रपाली शम्मिलित हैं।
मधुमक्खी पालन के लिए दी जा रही है 75% तक सब्सिडी, जाने किसान कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ

मधुमक्खी पालन के लिए दी जा रही है 75% तक सब्सिडी, जाने किसान कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ

आजकल देश भर में किसान खेती के साथ-साथ कोई ना कोई वैकल्पिक इनकम सोर्स भी रखते हैं ताकि उन्हें खेती के साथ-साथ कुछ अलग से मुनाफा भी होता रहे।  ऐसा ही एक बिजनेस जिसकी तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है वह है मधुमक्खी पालन। बहुत ही राज्य सरकारें किसानों को मधुमक्खी पालन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं और इनमें ही एक और सरकार जो इसके लिए बहुत ही बेहतरीन कदम उठा रही है वह है बिहार सरकार.

मधुमक्खी पालन के लिए बिहार सरकार दे रही है सब्सिडी

अगर सब्सिडी की बात की जाए तो बिहार सरकार
मधुमक्खी पालन के लिए अच्छी खासी सब्सिडी किसानों को दे रही है.  अगर किसी किसान का रुझान मधुमक्खी पालन की तरह है और वह इसे एक व्यवसाय के तौर पर लेना चाहता है तो बिहार सरकार की तरफ से उसे 75% तक सब्सिडी दी जाएगी. बिहार सरकार ने मधुमक्खी पालन के लिए एक परियोजना शुरू की है, जिसे 'बिहार मधुमक्खी विकास नीति' के नाम से जाना जाता है। इस नीति के अंतर्गत, सरकार किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए विभिन्न उपकरणों, जैसे कि मधुमक्खी बक्से, जहाज, रासायनिक उपकरण आदि की आपूर्ति करती है।उदाहरण के लिए अगर आपको यह व्यवसाय शुरू करने में ₹100000 का खर्चा पढ़ रहा था तो इसमें से ₹75000 आपको बिहार सरकार द्वारा दिए जाएंगे.

 क्या है आवेदन करने का तरीका?

आप इस परियोजना के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.  एक तो आप आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर इसके लिए आवेदन दे सकते हैं जहां पर आवेदन कर्ता को कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट अपलोड करने की जरूरत है.  अगर आप यह आवेदन ऑनलाइन नहीं देना चाहते हैं तो आप उद्यान विभाग में जाकर भी अपना पंजीकरण करवा सकते हैं.  यहां पर भी आपको मांगे गए सभी दस्तावेज दिखाने की जरूरत है.  

केंद्र सरकार कैसे कर रही है मदद?

राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र सरकार की तरफ से भी मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं जिससे किसानों को काफी लाभ मिलने वाला है. राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन द्वारा शहद की क्वालिटी को चेक करने के लिए प्रशिक्षण प्रयोगशाला और क्षेत्रीय प्रयोगशाला बनाने की परमिशन दी गई है.  इस योजना के तहत 31 मिनी प्रशिक्षण प्रयोग चलाएं और चार क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं को बनाने की परमिशन के लिए सरकार द्वारा दे दी गई है.  इसके अलावा जो भी शहर पालन का व्यवसाय की तरह आगे बढ़ाना चाहते हैं तो उन कृषि उद्यमियों या सभी तरह की स्टार्टअप की भी सरकार के द्वारा मदद की  जाएगी. ये भी पढ़े: मधुमक्खी पालकों के लिए आ रही है बहुत बड़ी खुशखबरी

भारत में क्या है शहद प्रोडक्शन के आंकड़े

अगर आंकड़ों की बात की जाए तो भारत देश को शहद के उत्पादन का एक हग माना गया है और यहां पर सालाना कई लाख टर्न शहद का प्रोडक्शन हो रहा है. वर्ष 2021-22 के आंकड़ों को ही देखें तो देश में इस समय 1,33,000 मीट्रिक टन (एमटी) शहद का उत्पादन हो रहा है. इसके अलावा भारत में उत्पादित किया हुआ शहद विश्व के कई देशों में भी निर्यात किया जाता है.

क्या है मधुमक्खी पालन के मुख्य लाभ?

मधुमक्खी पालन के कुछ मुख्य लाभ हैं:

अतिरिक्त आय: मधुमक्खी पालन से किसान अतिरिक्त आय कमा सकते हैं। मधुमक्खी से निर्मित शहद, मधुमक्खी की चारा और मधुमक्खी की बीज से कमाई होती है। स्थान संरक्षण: मधुमक्खी पालन एक स्थान संरक्षण व्यवसाय है। मधुमक्खी के बीज से पौधे उगाए जाते हैं जो वनों के बीच रखे जा सकते हैं तथा वनों को संभाला जा सकता है। पर्यावरण के लिए फायदेमंद: मधुमक्खी पालन पर्यावरण के लिए फायदेमंद है। मधुमक्खी नेक्टार उत्पादन करती है जो न केवल शहद के रूप में उपयोग किया जाता है बल्कि भी नेक्टार जैसी जड़ी बूटियों और औषधि के उत्पादन में भी उपयोग किया जाता है। जीवन की गुणवत्ता में सुधार: मधुमक्खी नेक्टार से उत्पन्न शहद एक स्वस्थ और गुणवत्ता वाला प्राकृतिक खाद है। इससे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ती है और यह खाद पौधों के विकास के लिए भी यह उपयोगी है.
उत्तर प्रदेश सरकार के ऐलान से किसानों में खुशी की लहर

उत्तर प्रदेश सरकार के ऐलान से किसानों में खुशी की लहर

उत्तर प्रदेश कृषकों के लिए सरकार ने घर बैठे मिलेट्स की फसल को विक्रय करने की सुविधा को मंजूरी प्रदान कर दी है। राज्य के किसान नीचे दी गई जानकारी के अनुरूप रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को पूर्ण कर सकते हैं। कृषक भाइयों को उनकी फसल का उचित भाव दिलाने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को चालू किया, जिसमें करोड़ों किसानों को फायदा भी मिला है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के किसान भाई जो मोटे अनाज का उत्पादन करते हैं, उन्हें भी उनकी फसल का समुचित फायदा पहुंचाने के लिए MSP की खरीद चालू कर दी है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश में पहली बार न्यूनतम समर्थन मूल्य मतलब कि MSP की खरीद पर ज्वार, बाजरा, मक्का से किसानों को लाभ पहुंचेगा। कहा जा रहा है, कि इस काम के लिए सरकार ने रजिस्ट्रेशन कार्य भी आरंभ कर दिए हैं। जिससे किसानों को वक्त पर इसका पूर्ण फायदा मिल सके।

जानिए मिलेट्स की यह फसलें कितने में बिकेंगी

खबरों के अनुसार, किसान अपनी फसल को सही भाव पर बेच सकते हैं। मक्का (Maize ) - 2090 /- प्रति क्विंटल, बाजरा (Millet) - 2500 /- प्रति क्विंटल, ज्वार (हाइब्रिड) - 3180 /- प्रति क्विंटल, ज्वार (मालदाण्डी) - 3225 /- प्रति क्विंटल

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इस प्रकार रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी करें

बतादें कि यदि आप उतर प्रदेश के किसान हैं और आपने धान की बिक्री करने के लिए पंजीकरण नहीं किया है, तो आप खाद्य एवं रसद विभाग की वेबसाइट fcs.up.gov.in अथवा विभाग के मोबाइल एप UP KISHAN MITRA से रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को पूर्ण करें। बतादें, कि फसलों की रजिस्ट्रेशन की यह प्रक्रिया 1 अक्टूबर से 31 दिसंबर, 2023 तक कर सकते हैं। ख्याल रहे कि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करने का वक्त प्रातः 9 बजे से लगाकर शाम 5 बजे तक हैं। वहीं, इस संदर्भ में ज्यादा जानकारी के लिए आप चाहें तो सरकार के द्वारा जारी किए गए टोल फ्री नंबर- 1800 1800 150 पर कॉल कर संपर्क साध सकते हैं।

पंजीकरण के लिए आवश्यक कागजात

बतादें, कि यदि रजिस्ट्रेशन के दौरान आपका कोई भी कागजात सही नहीं पाया जाता है, तो आप इस सुविधा का फायदा नहीं उठा पाएंगे। आपकी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को भी निरस्त कर दिया जाएगा। इस वजह से जब आप रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं, उस वक्त अपने सही व आवश्यक कागजात को ही दें। जैसे कि- किसान समग्र आई डी नंबर, ऋण पुस्तिका, आधार नंबर, बैंक खाता नम्बर, बैंक का आईएफएससी कोड और मोबाइल नंबर इत्यादि।

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किसान मिलेट्स की फसल इन जगहों पर बेच सकते हैं

उत्तर प्रदेश के कृषक भाई अपने घर बैठे ऑनलाइन ढ़ंग से विभिन्न जनपदों में अपनी फसल की बिक्री कर सकते हैं। चंदौली, बलिया, मिर्जापुर, भदोही, जालौन, चित्रकूट, बाँदा, प्रयागराज, कौशाम्बी, फतेहपुर, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, कानपुर देहात, कानपुर शहर, प्रयागराज, फतेहपुर, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, जौनपुर, गाज़ीपुर, रायबरेली, सीतापुर, उन्नाव, हरदोई, सुलतानपुर, अमेठी, मिर्जापुर, जालौन, अयोध्या, वाराणसी, प्रतापगढ़, बुलंदशहर, गौतमबुद्ध नगर, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, अमरोहा, अलीगढ, कासगंज, एटा, हाथरस, आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फिरोज़ाबाद, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा, औरैया, कन्नौज, फरुखाबाद, वाराणसी, जौनपुर और गाजीपुर आदि बहुत सारे जिले हैं।
सोलर पैनल के उपयोग से खेती की उन्नति पर क्या प्रभाव पड़ता है, इससे क्या-क्या लाभ मिलते हैं

सोलर पैनल के उपयोग से खेती की उन्नति पर क्या प्रभाव पड़ता है, इससे क्या-क्या लाभ मिलते हैं

सोलर पैनल के इस्तेमाल से किसान सुगम तरीके से अपने खेतों की सिंचाई कर सकते हैं। भारत सरकार सोलर पैनल लगाने पर कृषकों को भारी अनुदान भी प्रदान कर रही है। हमारे भारत के किसान कृषि के लिए अनियमित मानसून एवं अपर्याप्त विद्युत प्रणालियों पर आश्रित रहते हैं। इन चुनौतियों की वजह से किसानों की फसल उत्पादन क्षमता में गिरावट आती है। भारतीय किसानों के समीप भारत की उष्णकटिबंधीय जलवायु के रूप में एक मूल्यवान सोलर संपत्ति है, जो कृषकों को खेतों में सौर पैनल स्थापित कर ऊर्जा एवं पानी की जरूरतों को पूरा करने का अवसर प्रदान करती है। सौर पैनलों का उपयोग भारत के कृषि परिदृश्य को देखते हुए इसे एक बेहतर उपयोग के तौर पर लिया जा सकता है। फिलहाल, भारत में सौर पैनलों की काफी ज्यादा मांग भी है और भारत सरकार इसके इंस्टालेशन पर सब्सिड़ी भी उपलब्ध करा रही है।

ऊर्जा पर निर्भरता को कम करने में सहयोगी

भारत के ग्रामीण इलाकों में आम तौर पर बिजली की कमी अथवा आपूर्ति सही वक्त पर नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में खेतों पर सौर पैनल स्थापित करके, किसान अपनी स्वयं की बिजली पैदा कर सकते हैं, जिससे सिंचाई, मशीनरी एवं अन्य कृषि कार्यों के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे किसानों की ग्रिड पर निर्भरता काफी कम होती है। साथ ही, उत्पादकता में भी काफी सुधार आऐगा। ये भी देखें: पंजाब सरकार सिचाईं पर करेगी खर्च कम, लेगी सौर ऊर्जा की मदद

सौर ऊर्जा से सिंचाई सुगमता से की जा सकती है

खेती किसानी पूर्णतय पानी पर आश्रित होती हैं। वहीं, सौर ऊर्जा के जरिए से फसलों में सिंचाई के लिए कुओं एवं अन्य जल स्रोतों से पानी पंप करने में सहयोग मिलता है। सौर ऊर्जा से संचालित पंप भरपूर मात्रा में सूर्य की रोशनी का इस्तेमाल करके दिन के दौरान कार्य कर सकते हैं, जो पौधों की सिंचाई की आवश्यकता को पूर्ण कर सकता है।

अत्यधिक पैसों की बर्बादी पर रोकथाम

साधारण बिजली के मुकाबले में सोलर पैनल पर काफी कम खर्च आता है। एक बार सौर पैनल स्थापित हो जाने के उपरांत, उनकी परिचालन एवं रखरखाव लागत अपेक्षाकृत कम होती है, जिससे किसानों को बाकी महत्वपूर्ण जरूरतों के लिए धन की बचत हो पाती है। खेती के अतिरिक्त सौर ऊर्जा किसानों को आय का एक अतिरिक्त जरिया प्रदान कर सकती है। किसान भाई अतिरिक्त बिजली पैदा करके इसे नेट मीटरिंग के जरिए से ग्रिड को वापस बेच सकते हैं, जिससे इनकी आमदनी भी होगी। ये भी देखें: जाने खेती के साथ-साथ बिजली उत्पादन करते हुए कैसे कमा रहे हैं किसान ज्यादा आमदनी

यह पूर्णतय रिमोट एक्सेस है

सौर ऊर्जा से चलने वाली प्रौद्योगिकियों को डिजिटल टूल एवं सेंसर के साथ जोड़ा जा सकता है, जिससे किसानों को अपने खेतों की दूर से निगरानी एवं प्रबंधन करने में सुगमता होती है। इसमें मिट्टी की नमी, मौसम की स्थिति और फसल स्वास्थ्य की निगरानी करना, निर्णय लेने में सक्षम बनाना और संसाधन उपयोग को अनुकूलित करना शम्मिलित है।

ग्रामीण विकास में काफी सहयोगी है

खेतों पर सौर पैनल स्थापित करने से इसके रखरखाव एवं मरम्मत के लिए स्थानीय रोजगार उत्पन्न होते हैं। इससे ग्रामीण समुदायों में आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। भारत सरकार भी लोगों को सौर ऊर्जा अपनाने के लिए अलग-अलग प्रोत्साहन, सब्सिडी, योजनाएं एवं नीतियां प्रदान करती रहती है। कृषक भाई भी इन योजनाओं का फायदा उठाते हैं।
भारत सरकार ने एकीकृत योजना का अनावरण किया, जानें इससे किसानों को क्या फायदा होगा

भारत सरकार ने एकीकृत योजना का अनावरण किया, जानें इससे किसानों को क्या फायदा होगा

भारत सरकार द्वारा एकीकृत योजना लॉन्च की गई है। किसानों के हित में आए दिन केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से योजनाएं जारी करती रहती हैं। इस बार किसानों के लिए केंद्र सरकार ने UPAg लॉन्च की है। आज हम अपने इस लेख में जानेंगे कि क्या एकीकृत योजना से किसानों की आमदनी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किया जा रहा है, कि किसी तरह से किसानों की आय दोगुनी की जाए। कृषि मंत्रालय द्वारा लॉन्च एकीकृत पोर्टल UPAg में कृषि से संबंधित जानकारियां मौजूद होंगी। यह एक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का एक महत्वपूर्ण अंग बनेगा। भारत सरकार ने देश के किसानों के लिए कृषि से जुड़ा एक यूनिफाइड पोर्टल लॉन्च किया है। यह एकीकृत पोर्टल (UPAg) कृषि के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का एक महत्वपूर्ण घटक है। खेती से संबंधित आकड़ों को इकट्ठा कर यह पोर्टल एक सुचारु सुविधा प्रदान करेगा।

यूनिफाइड पोर्टल का काम क्या है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस पोर्टल का प्रमुख उद्देश्य खेती से संबंधित मानकीकृत एवं सत्यापित आंकड़ों की कमी से जुड़ी चुनौतियों को दूर करना एवं उससे संबंधित सही-सटीक आंकड़ों को प्रस्तुत करना है। यह नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं एवं अंशधारकों के लिए खेती से संबंधित समस्याओं को कम करेगा। भारत सरकार ने UPAg (कृषि सांख्यिकी के लिए एकीकृत पोर्टल) का अनावरण किया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, कृषि क्षेत्र में डेटा प्रबंधन को कारगर बनाने एवं खेती से जुड़ी कई तरह की सूचनाओं को सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है। यह पोर्टल एक ज्यादा कुशल एवं उत्तरदायी कृषि नीति ढांचे की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रदान करता है।

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एकीकृत स्त्रोत का होगा डेटा

भारत सरकार के पास कृषि से जुड़े किसी डेटा की एकीकृत जानकारी नहीं है। साथ ही, खेती से संबंधित विभिन्न स्रोत भी बिखरे हुए हैं। ऐसी स्थिति में इस यूनिफाइड पोर्टल का उद्देश्य डेटा को एक मानकीकृत प्रारूप में समेकित कर इसको ठीक करना है। ताकि उपयोगकर्ताओं के लिए इसे सुगमता से पहुंचाया जा सके। साथ ही, खेती से संबंधित विभिन्न कार्यो की सही और सटीक सुनिश्चित समझ विकसित की जा सके।
रबी फसलों के बीज की खरीदी पर सरकार दे रही 50 प्रतिशत तक सब्सिडी, ऐसे पाएं लाभ

रबी फसलों के बीज की खरीदी पर सरकार दे रही 50 प्रतिशत तक सब्सिडी, ऐसे पाएं लाभ

उत्तर प्रदेश सरकार का कृषि विभाग गेहूं, चना, मसूर और सरसों के बीजों पर 50 प्रतिशत की बेहतरीन सब्सिडी दे रहा है। सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के लिए राज्य के किसानों को कृषि विभाग के पोर्टल पर जाकर आवेदन करना होगा। इस लेख में हम आपको इस योजना से जुड़ी जानकारी देंगे।

कौन - कौन सी फसलों के बीजों पर मिलेगी सब्सिडी  

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए एक कदम उठाया है। कृषि विभाग किसानों को गेहूं,
चना, मसूर और सरसों की बीज पर अनुदान देता है। इसके लिए भी सरकार ने मार्गदर्शिका जारी की है। ताकि किसानों को इससे कोई परेशानी नहीं होगी। राज्य में गेहूं, चना, मसूर और सरसों के बीज पर लगभग 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। किसानों को इसके लिए कृषि विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन पंजीकरण करना होगा।      


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किसानों को कैसे मिलेगा सब्सिडी का लाभ 

राज्य के किसानों को बीज खरीदने के लिए पहले ही पूरा पैसा देना होगा। सरकार इसके कुछ समय बाद आपके बैंक खाते में अनुदान की रकम भेजेगी। लेकिन याद रखें कि राज्य के किसान को एक साल में सिर्फ एक बार लाभ दिया जाएगा। फिर योजना का दोबारा लाभ लेने के लिए किसान को एक साल छोड़कर अगले साल लाभ मिलेगा।       उत्तर प्रदेश में किसानों ने खेत को रबी फसल की बुवाई के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। इस समय किसान अपने खेतों में अच्छी फसल की पैदावार प्राप्त करने के लिए खाद और बीज की व्यवस्था में जुटे हुए हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार ने बुवाई का समय पास आते ही राज्य के किसानों को गेहूं और अन्य फसलों के बीज देना शुरू कर दिया है।

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दैनिक जागरण ने बताया कि इस बार जनपद को लगभग 10 हजार 110 क्विंटल गेहूं के बीज वितरित करने का लक्ष्य मिला है, जिसमें से लगभग 38 सौ क्विंटल गेहूं के बीज मिल चुके हैं और प्रत्येक ब्लाक के गोदामों में सुरक्षित भेज दिए गए हैं।

गेहूं की तीन उन्नत किस्मों पर मिलेगी सब्सिड़ी 

सरकार द्वारा इस बार गेहूं के बीज में तीन वैरायटी (करण वंदना, करण नरेंद्र और करण वैष्णवी) शामिल की हैं। ध्यान दें कि इन तीनों गेहूं के बीज की कीमत प्रति क्विंटल 4090 रुपये है। लेकिन यह कीमत बीज की पुष्टि करती है। साथ ही, आधारीय गेहूं के बीज प्रति क्विंटल 4320 रुपये तक की कीमत है। अन्य फसलों के बीजों की कीमत भी इसी तरह निर्धारित की गई है। 

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  • चना बीज की प्रमाणित कीमत 9108 रुपये, आधारीय बीज 9670 रुपये प्रति क्विंटल
  • मटर बीज की प्रमाणित कीमत 8415 रुपये, आधारीय बीज 8740 रुपये प्रति क्विंटल
  • मसूर बीज की प्रमाणित कीमत 10989 रुपये , आधारीय 11430 रुपये प्रति क्विंटल तक है.
इस राज्य में इन पांच किस्मों के बीजों पर 50% फीसद अनुदान प्रदान किया जा रहा है

इस राज्य में इन पांच किस्मों के बीजों पर 50% फीसद अनुदान प्रदान किया जा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश के कन्नौज जनपद में फिलहाल गेहूं की बिजाई के लिए बीज की प्रतीक्षा समाप्त हो गई है। जनपद के आठ सरकारी केंद्रों पर शीघ्र ही गेहूं की पांच किस्मों के बीज मुहैय्या करवाए जाएंगे। इन बीजों की खरीद करने पर किसानों को 50 फीसद तक की छूट प्रदान की जाएगी। इसके अतिरिक्त केंद्रों पर जिप्सम भी मुहैय्या करवाया जाएगा, जिस पर कृषकों को 75 फीसद अनुदान मिलेगा। गेहूं की बुआई का वक्त समीप आता जा रहा है। ऐसी स्थिति में कन्नौज के किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी है। जनपद के आठ सरकारी केंद्रों पर कृषकों को गेहूं की पांच किस्मों पर काफी बड़ी छूट दी जा रही है। किसान निर्धारित बीज वितरण समय के मुताबिक समस्त केंद्रों से गेहूं की पांच किस्मों को कम कीमत पर खरीद सकते हैं। इसके अतिरिक्त इन केंद्रों पर किसानों को उनकी फसल अच्छे से उगाने में सहयोग करने के मामले में शानदार कृषि पद्धतियों पर परामर्श भी दिया जाएगा। बतादें, कि क्षेत्र में किसान काफी बड़े पैमाने पर गेहूं की बिजाई करते हैं। अब ऐसे में किसानों को गेहूं के बीज पर बंपर छूट मिलेगी। क्षेत्र के समस्त आठ केंद्रों पर गेहूं की प्रजातियां डीबीडब्ल्यू 187, पीबीडब्ल्यू 222, डब्ल्यू 303, पीबीडब्ल्यू 343 और एचडी 3326 मौजूद हैं।


 

जानिए छूट कितनी मिलेगी

जनपद में समकुल आठ सरकारी बीज केंद्र स्थित हैं, जहां किसान पांच भिन्न-भिन्न किस्मों के गेहूं के बीजों पर 50 फीसद तक की छूट पा सकते हैं। किसान निर्धारित समय पर बीज केंद्र पर जाकर इस योजना का लाभ हांसिल कर सकते हैं। हालांकि, किसानों को एक बात ध्यान में रखनी होगी, कि बीज समस्त केंद्रों पर बारी-बारी से वितरित किए जाते हैं। गेहूं के बीज समस्त बीज केंद्रों पर उपलब्ध हैं। इनकी कीमत की बात की जाए तो किसानों को यह बीज 40 से 90 पैसे प्रति किलो के हिसाब से प्रदान किए जाएंगे।

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दालों के बीज भी उपलब्ध होंगे

जिला कृषि अधिकारी आवेश कुमार सिंह ने कहा है, कि उत्पाद का वितरण जनपद के समस्त आठ सरकारी बीज भंडारों पर किया जाएगा। यह समस्त बीज किसान 50 प्रतिशत अनुदान के साथ खरीद सकते हैं। इसके अतिरिक्त गोदामों में चना, मटर और मसूर के बीज एवं जिप्सम भी उपलब्ध है। किसानों को जिप्सम 75 फीसद सब्सिडी पर दिया जाएगा। अगर कोई दिक्कत परेशानी हो तो किसान प्रत्यक्ष तौर पर कार्यालय से संपर्क साध सकते हैं।

जानें खाद-बीज भंडार की दुकान खोलने की प्रक्रिया के बारे में

जानें खाद-बीज भंडार की दुकान खोलने की प्रक्रिया के बारे में

यदि आप ग्रामीण इलाकों में रहते हैं एवं कृषि से संबंधित बिजनेस करने की सोच रहे हैं, तो आप खाद-बीज की दुकान खोल सकते हैं। ऐसे में आइए आपको खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस कैसे लें, इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं। शहरी क्षेत्रों की भांति ही, ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्यवसाय के विभिन्न अवसर हैं। साथ ही, ग्रामीण इलाकों में कृषि से जुड़े कारोबार का महत्वपूर्ण रोल है। गौरतलब है, कि भारत सरकार भी कृषि से संबंधित व्यवसाय करने के लिए किसानों एवं लोगों को प्रोत्साहित कर रही है। यदि आप एक कृषक हैं अथवा फिर ग्रामीण हिस्सों में रहते हैं। साथ ही, आप कृषि से जुड़ा कारोबार करने की सोच रहे हैं, तो आप खाद-बीज की दुकान खोल सकते हैं। खाद-बीज का बिजनेस ग्रामीण क्षेत्र का एकमात्र ऐसा कारोबार है, जिसकी मांग सदैव बनी रहती है।

खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता पड़ती है

हालांकि, खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त लाइसेंस लेने के लिए आवेदक का 10वीं पास होना भी अनिवार्य है। साथ ही, सरकार किसानों को ऑनलाइन माध्यम से खाद व बीज स्टोर का लाइसेंस देने का कार्य करती है। ऐसी स्थिति में आइए आज हम आपको खाद-बीज की दुकान की स्थापना के लिए लाइसेंस लेने की संपूर्ण प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।

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खाद-बीज की दुकान खोलने हेतु लाइसेंस के लिए दस्तावेज

  • आधार कार्ड
  • मतदाता पहचान पत्र
  • निवास प्रमाण पत्र
  • पैन कार्ड
  • पासपोर्ट साइज फोटो
  • एग्रीकल्चर में डिप्लोमा
  • दुकान या फर्म का नक्शा

खाद-बीज भंडार खोलने के लिए लाइसेंस किस तरह लें

खाद एवं बीज भंडार खोलने के लिए आपको सरकार से लाइसेंस लेना ही पड़ेगा। इस लाइसेंस को लेने के उपरांत ही आप खाद-बीज का कारोबार आरंभ कर सकते हैं। इसके साथ-साथ आप खाद-बीज दुकान का लाइसेंस ऑनलाइन के जरिए आसानी से निर्मित करा सकते हैं। अगर आप बिहार के मूल निवासी हैं और ऑनलाइन अपनी दुकान का लाइसेंस तैयार करने के लिए आवेदन करना चाहते हैं, तो आप लिंक पर विजिट कर आवेदन से जुड़ी संपूर्ण प्रक्रिया जान सकते हैं। साथ ही, लिंक पर विजिट कर समस्त आवश्यक दस्तावेज सबमिट कर आप खाद-बीज लाइसेंस के लिए सुगमता से आवेदन कर सकते हैं।