Ad

animals

आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

बुन्देलखण्ड में प्रचलित अन्ना प्रथा उत्तर प्रदेश सरीखे कई प्रदेशों के किसानों के जीका जंजाल बन रही है। इसका कारण बन रहे हैं आवारा गौवंशीय नर। इन्हें यहां सांड के रूप में पहचाना जाता है। यूंतो एक सांड 10 से 12 वर्ष के जीवन काल में तकरीबन तीन लाख का सूखा भूसा खा जाता है। किसानों की फसलों का नुकसान इसमें शामिल नहीं है। इतना ही नहीं यह सांड नगरीय क्षेत्रों में डिवायडर आदि के मध्म जब मस्ती में आते हैं तो भीड़भाड़ वाले इलाकों एवं मंडियों आदि में लोगों के लिए दुर्घटना का कारण भी बन जाते हैं। अनेक लोग इनके आतंक के चलते दुर्घटनाओं का शिकार हो काल कवलित भी हो जाते हैं। खेती में इनसे प्रमुख समस्या फसलों को नुकसान पहुंचाने की है। किसान फसलों को बचाने के लिए मोटा पैसा खर्च कर तार फेंसिंग करा रहे हैं लेकिन भूखे जानवर इन तार और खंभों का भी उखाड़ फेंकते हैं। इससे बचाव के कुछ सामान्य तरीके हैं जिनका प्रयोग कर किसान अपनी फसल को सुरक्षित कर सकते हैंं।

   awara pashu  

ये भी पढ़े : आधुनिक तकनीक से मिलेगी आवारा पशुओं से मुक्ति 

नीलगाय एवं आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा के लिए खेत के आसपास गिरे नीलगाय के गोबर एवं आवारा पशुओं के गोबर का आधा एक से दो किलोग्राम अंश लेकर उसे पानी में घोलकर छान लें। इसमें थोड़े बहुत नीम के पत्ते कूटकर मिला लें। दो  तीन दिन में सड़ने के बाद इसको छानकर खेत में छिड़काव करें। प्रयास करें खेत के चारों तरफ पशुओं के घुसने वाले स्थानों पर गहराई तक छिड़काव हो जाए।  कारण यह होता है अपने मल की गंध आने के कारण पशु उस फसल को नहीं खाते। वह फिर ऐसा खेत तलाशने निकलते हैं जहां ​गंध नहो। इधर नीलगाय अपने खाने के लिए जहां फसलें अच्छी होती हैं। उस इलाके का चयन करती है। उस इलाके तक पहुंचने के लिए वहां हर दिन ताजी गोबर छोड़कर आती है। इसकी गंध के आधार पर ही वह दोबारा उस इलाके तक पहुंचती है। लिहाजा खेतों के आस पास जहां भी नीलगाय का गोबर पड़ा हो उसे एकत्र कर गहरे गड्ढे में दबाने से भी वह रास्ता भटक सकती हैं।

खेती और दुधारू पशुओं के लिए उत्तम है अजोला, जाने अजोला की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

खेती और दुधारू पशुओं के लिए उत्तम है अजोला, जाने अजोला की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

अजोला को जैव उर्वरक के रूप में जाना जाता है, यह अजोला धान की उच्च और अधिक पैदावार के लिए काफी सहायक है। इसके अलावा इसका उपयोग पशुओं के चारे के लिए भी किया जाता है। 

अजोला धान के उर्वरक क्षमता को बढ़ाने में काफी सहायक है, इसके अलावा इसका उपयोग मुर्गी पालन, मछली पालन और पशु के चारे के उपयोग में किया जाता है। यह एक जलीय फर्न है जो पानी के सतह पर तेजी से बढ़ता या फैलता है। 

क्या है अजोला ?

जैसा की आप सभी को बता दिया गया है यह एक जलीय फर्न है। अजोला समशीतोषड जलवायु में पाया जाता है। यह अजोला पानी पर एक हरी परत के जैसे दिखाई देता है। 

फर्न के निचले हिस्से में सिम्बोइंट के रूप में ब्लू ग्रीन एल्गी सयानोबैक्टीरिया पाया जाता है। यह सयानोबैक्टीरिया वायुमंडल में नाइट्रोजन को परिवर्तित करता है। नाइट्रोजन मिट्टी के लिए काफी गुणकारी होता है। 

भारत में पायी जाने वाली अजोला की किस्म ?

भारत में अजोला की पायी जाने वाली केवल एक ही किस्म है। भारत में पायी जाने वाली अजोला किस्म का नाम पिन्नाटा है। अजोला की यह किस्म काफी हद तक गर्मी सहन कर लेती है। 

अजोला की खेती कैसे करें ?

अजोला की खेती के लिए किसी छायादार स्थान पर  60 X 10 X 2 मीटर की क्यारियां बनाये। इन क्यारियों में 120 गेज की सिलपुटिन शीट को बिछाकर किनारो पर मिट्टी का लेप कर देना चाहिए। 

इन क्यारियों में 80 से 100 उपजाऊ मिट्टी की परत को बिछा दे। इसी के सात 3 से 4 दिन पुराना गोबर लेकर उसे पानी में मिलाकरमिट्टी पर छिड़क दे। 

क्यारियों में 400 से 500 लीटर पानी भरे ताकि क्यारियों में पानी की गहराई 10 से 15 तक हो जाये। उपजाऊ मिट्टी और गोबर खाद को मिट्टी में अच्छे से मिश्रित कर ले और उसके ऊपर कम से कम 2 किलो ताजा अजोला को फैला दे।

ये भी पढ़े: पशु चारे की उन्नत किस्म विकसित

अजोला को फ़ैलाने के बाद उस पर  10 लीटर पानी को छिड़क दे ताकि अजोला अपनी जगह पकड़ ले। अब क्यारियों को नायलॉन जाली से ढक दे। 

15 से 20 दिन बाद अजोला की उपज को बढ़ाने के लिए उसमे 20 ग्राम सुपरफॉस्फेट और 50 किलोग्राम गोबर का घोल बनाकर हर महीने दे। 

अजोला की खेती से होने वाले फायदे क्या है ?

अजोला की खेती से मिलने वाले बहुत से ऐसे लाभ है जो खेती के अलावा पशु दुग्ध उत्पादन irऔर अन्य चीजों में यह बेहद लाभकारी है, आइये बात करते है अजोला की खेती से होने वाले फायदों के बारे में। 

  1. मुर्गियों को रोजाना अजोला खिलाने से उनके शारीरिक भार और अंडा उत्पादन क्षमता में 10 से 15 प्रतिशत वृद्धि होती है। 
  2. इसके अलावा भेड़ और बकरियों को ताजा अजोला खिलाने से शारीरिक और दुग्ध उत्पादन दोनों में ही वृद्धि होती है। 
  3. अजोला को हरी खाद के रूप में खरीफ और रबी दोनों जलवायु में बड़े पैमाने पर उगाया जा सकता है।  
  4. अजोला वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन और कार्बनडाइऑक्साइड को अमोनिया और कार्बोहायड्रेट में बदल देता है। 
  5. यह मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीवों और फसलों की जड़ों में स्वसन किर्या में सहायक होता है। 
  6. यह खेती में विटामिन और ग्रोथ रेगुलेटर  उत्पन्न करता है , जिससे धान के पौधों का अच्छे से विकास हो जाता है। 
  7. अजोला रासायनिक उर्वरक की क्षमता को बढ़ाने में सहायक है , साथ ही यह वाष्पीकरण की दर को भी नियंत्रित करके रखता है। 

अजोला में पाए जाने वाले पौष्टिक आहार 

अजोला में बेहद प्रकार के पौष्टिक आहार पाए जाते है जैसे ; प्रोटीन,  एमिनो एसिड,  विटामिन B-12, बीटा कैरोटीन ,  विटामिन ए, फास्फोरस, कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैगनेशियम, कॉपर जैसे खनिज भी अजोला में पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। 

ये भी पढ़े: पशुओं के सूखे चारे के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है लेमनग्रास

अजोला के अंदर कार्बोहायड्रेट और वसा की बहुत कम मात्रा पायी जाती है। इसके अलावा शुक्ष्म अजोला में 10 से 15 प्रतिशत खनिज पदार्थ , 40 से 60 प्रतिशत प्रोटीन और 7 से 10 प्रतिशत एमिनो अम्ल, जैविक पदार्थ के अलावा पॉलिमर्स भी पाया जाता है। 

अजोला की कीमत 

अजोला का बाजारी भाव 1 रुपए किलोग्राम होता है जबकि वियतनाम में इसकी कीमत 100 ऑस्ट्रेलियन डॉलर प्रति टन है। प्रति सप्ताह 10 टन अजोला 1 kg वर्गमीटर से प्राप्त किया जा सकता है। 

पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

किसान भाइयों यदि आप पशुपालन करने का विचार कर रहे हो और एक बेहतरीन नस्ल की गाय की खोज कर रहे हैं, तो आपके लिए देसी नस्ल की डांगी गाय सबसे बेहतरीन विकल्प है। इस लेख में जानें डांगी गाय की पहचान और बाकी बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारियां। किसान भाइयों के समीप अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के बेहतरीन पशु उपलब्ध होते हैं, जो उन्हें प्रति माह अच्छी आय करके दे सकते हैं। यदि आप पशुपालक हैं, परंतु आपका पशु आपको कुछ ज्यादा लाभ नहीं दे रहा है, तो चिंतित बिल्कुल न हों। आज हम आपको आगे इस लेख में ऐसे पशु की जानकारी देंगे, जिसके पालन से आप कुछ ही माह में धनवान बन सकते हैं। दरअसल, हम जिस पशु के विषय चर्चा कर रहे हैं, उसका नाम डांगी गाय है। बतादें कि डांगी गाय आज के दौर में बाकी पशुओं के मुकाबले में ज्यादा मुनाफा कमा कर देती है। इस वहज से भारतीय बाजार में भी इसकी सर्वाधिक मांग है। 

डांगी नस्ल की गाय कहाँ-कहाँ पाई जाती है

जानकारी के लिए बतादें, कि यह गाय देसी नस्ल की डांगी है, जो कि मुख्यतः गुजरात के डांग, महाराष्ट्र के ठाणे, नासिक, अहमदनगर एवं हरियाणा के करनाल एवं रोहतक में अधिकांश पाई जाती है। इस गाय को भिन्न-भिन्न जगहों पर विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। हालाँकि, गुजरात में इस गाय को डांग के नाम से जाना जाता है। किसानों व पशुपालकों ने बताया है, कि यह गाय बाकी मवेशियों के मुकाबले में तीव्रता से कार्य करती है। इसके अतिरिक्त यह पशु काफी शांत स्वभाव एवं शक्तिशाली होते हैं। 

यह भी पढ़ें: Nand Baba Mission: योगी सरकार देसी गाय पालने के लिए 40 हजार रुपये की आर्थिक सहायता देगी

डांगी गाय कितना दूध देने की क्षमता रखती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस देसी नस्ल की गाय के औसतन दूध देने की क्षमता एक ब्यांत में तकरीबन 430 लीटर तक दूध देती है। वहीं, यदि आप डांगी गाय की बेहतर ढ़ंग से देखभाल करते हैं, तो इससे आप लगभग 800 लीटर तक दूध प्राप्त कर सकते हैं। 

डांगी गाय की क्या पहचान होती है

यदि आप इस गाय की पहचान नहीं कर पाते हैं, तो घबराएं नहीं इसके लिए आपको बस कुछ बातों को ध्यान रखना होगा। डांगी गाय की ऊंचाई अनुमान 113 सेमी एवं साथ ही इस नस्ल के बैल की ऊंचाई 117 सेमी तक होती है। इनका सफेद रंग होता है साथ ही इनके शरीर पर लाल अथवा फिर काले धब्बे दिखाई देंगे। साथ ही, यदि हम इनके सींग की बात करें, तो इनके सींग छोटे मतलब कि 12 से 15 सेमी एवं नुकीले सिरे वाले मोटे आकार के होते हैं। 

यह भी पढ़ें: जानें दुनियाभर में मशहूर पुंगनूर गाय की पहचान और विशेषताओं के बारे में

इसके अतिरिक्त डांगी गायों का माथा थोड़ा बाहर की ओर निकला होता है और इनका कूबड़ हद से काफी ज्यादा उभरा हुआ होता है। गर्दन छोटी और मोटी होती है। अगर आप डांगी गाय की त्वचा को देखेंगे तो यह बेहद ही चमकदार व मुलायम होती है। इसकी त्वचा पर काफी ज्यादा बाल होते हैं। इनके कान आकार में छोटे होते है और अंदर से यह काले रंग के होते हैं।

पशुओं को आवारा छोड़ने वालों पर राज्य सरकार करेगी कड़ी कार्रवाही

पशुओं को आवारा छोड़ने वालों पर राज्य सरकार करेगी कड़ी कार्रवाही

योगी सरकार प्रदेश में घूम रहे निराश्रित पशुओं की सुरक्षा के लिए अभियान चलाने जा रही हैं। इसके लिए समस्त जनपदों के अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में सड़कों पर विचरण कर रहे पशुओं को लेकर अक्सर राजनीति होती रहती है। ऐसी स्थिति में सड़कों पर छुट्टा घूम रहे गोवंश को लेकर राज्य सरकार काफी सख्ताई बरत रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के समस्त जिला अधिकारियों को सड़कों पर घूम रहे निराश्रित गोवंश को गौशालाओं तक पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। उत्तर प्रदेश के पशुधन और दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया है, कि राज्य में यह अभियान चलाकर हम निराश्रित गोवंश का संरक्षण करने के साथ-साथ उन्हें गौशालाओं तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इसके लिए अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं। राज्य सरकार की ओर से गौ संरक्षण करने के लिए यह योजना जारी की गई है।

गोवंश संरक्षण हेतु अभियान का समय

उत्तर प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह का कहना है, कि इस योजना का प्रथम चरण बरेली, झांसी और गोरखपुर मंडल में 10 सितंबर से 25 सितंबर तक सुनिश्चित किया जाएगा। सड़कों पर विचरण कर रहे गोवंश को गोआश्रय तक पहुंचाने का कार्य किया जाएगा। वहीं, इसके साथ ही उनके खान-पान की भी समुचित व्यवस्था की जाएगी। यह भी पढ़ें: योगी सरकार ने मुख्यमंत्री खेत सुरक्षा योजना के लिए 75 से 350 करोड़ का बजट तय किया

पशुओं को छुट्टा छोड़ने वालों पर होगी कानूनी कार्रवाई

उत्तर प्रदेश के पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने इन जनपद के किसानों एवं पशुपालकों से निवेदन किया है, कि कोई भी पशुओं को सड़कों पर निराश्रित ना छोड़ें। यदि कोई भी शक्श ऐसा करता पाया गया तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने जनपद के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं, कि ऐसे लोगों की पहचान की जाए जो पशुओं को खाली सड़कों पर छोड़ दे रहे हैं। साथ ही, संपूर्ण राज्य में इस अभियान का चरणबद्ध ढ़ंग से प्रचार-प्रसार किया जाए। सरकार स्थानीय प्रशासन, मनरेगा एवं पंचायती राज विभाग के सहयोग से समस्त जनपदों में गोआश्रय स्थल बनवाएगी और पहले से मौजूद गौशालाओं की क्षमता का विस्तार भी किया जाऐगा। यह भी पढ़ें: योगी सरकार द्वारा जारी की गई नंदिनी कृषक बीमा योजना से देशी प्रजातियों की गायों को प्रोत्साहन मिलेगा

मवेशियों की ईयर टैगिंग की जाऐगी

पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया है, कि ग्रामीण क्षेत्र के सभी पशुओं का ईयर टैगिंग किया जाएगा। इसकी सहायता से मवेशियों की देखभाल और निगरानी में काफी आसानी होगी। इसके अतिरिक्त सरकार ने बाढ़ प्रभावित जनपदों में पशुओं के लिए पर्याप्त चारा, औषधीय और संक्रामक रोगों से संरक्षण के लिए दवाईयों एवं टीकाकरण की व्यवस्था भी करेगी।
चेतावनी : लंपी वायरस ने फिर से दस्तक देकर बढ़ाई पशुपालकों की चिंता

चेतावनी : लंपी वायरस ने फिर से दस्तक देकर बढ़ाई पशुपालकों की चिंता

प्राकृतिक असंतुलन की वजह से विश्व को कई भयंकर महामारियों का सामना करना पड़ता है। बीते वर्ष गायों में अपना आतंक मचा चुकी खतरनाक बीमारी लंपी वायरस एक बार पुनः चर्चाओं में है। 

मई के महीने में लंपी वायरस पुनः अपने पैर पसार सकता है। ICAR-NIVEDI ने 16 राज्यों में इसको लेकर अलर्ट जारी किया है। 

पशुपालकों और किसान भाइयों के लिए एक आवश्यक समाचार है। भारत में लंपी वायरस का खतरा एक बार फिर से दस्तक दे चुका है। गायों की बीमारी लंपी मई महीने में एक बार पुनः अपने पैर पसार सकती है। 

इसको लेकर 16 राज्यों में अलर्ट भी जारी किया गया है। इस बीमारी से विगत वर्ष भारत में पशुधन को काफी हानि पहुँची थी। कम समयावधि में ही इस बीमारी से सैकड़ों गायों की मृत्यु हो गई थी।

लंपी वायरस पूरे भारतभर में कहर मचा चुका है 

बतादें, कि अन्य दूसरे देशों से आई ये बीमारी भारतभर के बहुत सारे राज्यों में अपना असर दिखा चुकी है। इस बीमारी के फैलने की प्रमुख वजह मच्छर और मक्खी हैं। 

वहीं, अब एक बार पुनः इस बीमारी को लेकर अलर्ट जारी कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में पशुपालकों और कृषकों को सावधान रहने आवश्यकता है। 

ये भी पढ़ें: लंपी स्किन बीमारी से बचाव के लिए राजस्थान सरकार ने जारी किए 30 करोड़ रुपये

बतादें, कि ICAR-NIVEDI की ओर से ये अलर्ट जारी किया गया है.राष्ट्रीय पशु चिकित्सा महामारी विज्ञान और रोग सूचना विज्ञान संस्थान (NIVEDI) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत एक प्रमुख संस्थान है, जो पशु चिकित्सा महामारी विज्ञान और रोग सूचना विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, प्रशिक्षण और शिक्षा के लिए समर्पित है। 

जानिए किन राज्यों में लंपी का अलर्ट जारी है ? 

NIVEDI संस्थान ने 16 राज्यों के 61 शहरों में लंपी के फैलने की चेतावनी दी है। इसमें सर्वाधिक कर्नाटक राज्य के 10 और उत्त‍राखंड राज्य के नौ शहर शामिल हैं। साथ ही, झारखंड के नौ शहर भी इसमें शुमार हैं। 

इसके साथ ही असम के सात, केरल छह, गुजरात के चार शहर शम्मिलित हैं। इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान भी इस सूची में शामिल हैं।

लंपी वायरस किस प्रकार से फैलता है ?

लंपी वायरस जिसको ज्यादातर लोग डेंगू बुखार के तोर पर भी जानते हैं, जो कि मच्छरों के काटने से फैलता है। यह बीमारी काफी गंभीर हो सकती है। वैक्सीन के साथ ही बॉयो सिक्योरिटी अपनाकर इस बीमारी से आसानी से लड़ा जा सकता है।

लंपी वायरस से बचने के लिए किन बातों का रखें विशेष ध्यान 

गायों की मच्छरों के प्रति विशेष सावधानी 

गायों को मच्छरों से बचाने के लिए, उनको वक्त-वक्त पर मच्छर और मच्छर के काटने से बचाने के उपाय अपनाने चाहिए। इसके लिए गायों के आसपास जल जमाव और मच्छरों के लार्वा को नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक होता है।

गायों का लंपी वायरस से संरक्षण हेतु टीकाकरण 

गायों को लंपी वायरस से बचाने के लिए वैक्सीनेशन कराना एक अहम उपाय है। यह वैक्सीन उपलब्ध होती है और गायों को लंपी बुखार के विरुद्ध संवेदनशील करती है।

अंगदान की स्थिति की जांच बेहद जरूरी  

गायों की अंगदान की हालत की नियमित रूप से जांच करनी बेहद जरूरी है। अंगदान में किसी भी अनियमितता या संकेत के लिए तुरंत वेटरनरी सलाह लेनी चाहिए।

ये भी पढ़ें: अन्य राज्यों से होता हुआ अब झारखंड में भी पहुंचा लम्पी रोग, राज्य सरकार हुई अलर्ट

साफ-सफाई: गायों के आसपास की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। स्थानीय विकासताओं को नियमित तोर पर साफ किया जाना चाहिए, ताकि मच्छरों का प्रकोप कम हो सके।

लंपी वायरस संक्रमण के क्या-क्या लक्षण हैं ?

गाय का अचानक बुखार एक संभावित लक्षण हो सकता है। वहीं, गाय को असामान्य थकावट का अनुभव हो सकता है। अक्सर गाय अनुचित पानी पीती हैं या पानी का अधिक प्रयोग करती हैं। 

गायों का खाना कम कर देना या उनका अपेटाइट कम हो जाना भी इसका एक प्रमुख लक्षण है। इसके अलावा गायों में अनियमितता और असामान्य थकान की समस्या हो सकती है। 

यदि आपकी गाय में ऐसे किसी भी लक्षण का पता चल रहा है, तो तुरंत वेटरनरी की सलाह लेनी चाहिए, ताकि सही उपचार की शुरुआत की जा सके।

भारतीय स्टेट बैंक दुधारू पशु खरीदने के लिए किसानों को देगा लोन

भारतीय स्टेट बैंक दुधारू पशु खरीदने के लिए किसानों को देगा लोन

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, लेकिन यहां दूध की खपत भी बहुत ज्यादा है, इसलिए केंद्र तथा राज्य सरकारें ज्यादा से ज्यादा दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी की कोशिश कर रही हैं, ताकि घरेलू जरुरत को पूरा करने के साथ ही दूध का निर्यात भी किया जा सके। जिससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी हो सके और भारत सरकार विदेशी मुद्रा अर्जित कर पाए। इन लक्ष्यों को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार भी प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयासरत है, जिसके लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। प्रदेश में दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए मध्य प्रदेश शासन ने पिछले कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन के अंतर्गत कई नई दूध डेयरी खोली हैं तथा दूध के प्रोसेसिंग के लिए नए प्लांट लगाए हैं। इसके साथ ही अब मध्य प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ने दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए एक नया रास्ता अपनाया है। इसके लिए मध्य प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ने भारतीय स्टेट बैंक के साथ एक एमओयू (MOU) साइन किया है, जिसके अंतर्गत भारतीय स्टेट बैंक किसानों को दुधारू पशु खरीदने के लिए लोन उपलब्ध करवाएगा। एमओयू में शामिल किये गए अनुबंधों के अनुसार, अब दुग्ध संघों की वार्षिक सभाओं में भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारी मौजूद रहेंगे तथा किसानों को दुधारू पशु खरीदने के लिए लोन दिलाने में सहायता करेंगे।

ये भी पढ़ें: पशुपालन के लिए 90 फीसदी तक मिलेगा अनुदान
मध्य प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन के प्रबंध संचालक तरूण राठी ने बताया कि दुग्ध संघ के कार्यक्षेत्र में जो भी समितियां आती हैं, उनके पात्र सदस्यों को त्रि-पक्षीय अनुबंध के तहत दुधारू पशु खरीदने में मदद की जाएगी। पात्र समिति सदस्य या किसान 2 से लेकर 8 पशु तक खरीद सकता है। इसके लिए प्रत्येक जिले में भारतीय स्टेट बैंक की चयनित शाखाएं लोन उपलब्ध करवाएंगी।

ये भी पढ़ें: गाय-भैंस की देशी नस्लों का संरक्षण करने वालों को मिलेगा 5 लाख का ईनाम, ऐसे करें आवेदन
लोन लेने वाले किसान को प्रारंभिक रूप में 10 प्रतिशत रूपये मार्जिन मनी (Margin Money) के रूप में जमा करना होगा। उसके बाद 10 लाख रुपये तक का लोन बिना कुछ गिरवी रखे उपलब्ध करवाया जाएगा। इसके साथ ही किसान को 1 लाख 60 हजार रुपए का नान मुद्रा लोन बिना कुछ गिरवी रखे, त्रि-पक्षीय अनुबंध के तहत दिलवाया जाएगा।

ये भी पढ़ें: पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा
जिस किसान या पशुपालक ने पशु खरीदने के लिए लोन लिया है, उसे यह रकम 36 किस्तों में बैंक को वापस करनी होगी। लोन लेने वाले किसान को समिति में दूध देना अनिवार्य होगा। जिसके बाद समिति प्रति माह दूध की कुल राशि का 30 प्रतिशत, लोन देने के लिए बैंक को भुगतान करेगी। बाकी 70 प्रतिशत किसान को दे देगी। लोन लेने के लिए पात्र किसान को दुग्ध संघ द्वारा जारी किये गए निर्धारित प्रोफार्मा में आवेदन के साथ फोटो, वोटर आईडी, पेनकार्ड, आधार कार्ड, दुग्ध समिति की सक्रिय सदस्यता का प्रमाण पत्र तथा त्रि-पक्षीय अनुबंध (संबंधित बैंक शाखा, समिति एवं समिति सदस्य के मध्य) आदि दस्तावेज संलग्न करने होंगे। जिसके बाद उन्हें दुधारू पशु खरीदने के लिए लोन उपलब्ध करवाया जाएगा।
इस राज्य में विगत 15 दिनों में लंपी से 7 हजार पशुओं की हुई मृत्यु

इस राज्य में विगत 15 दिनों में लंपी से 7 हजार पशुओं की हुई मृत्यु

महाराष्ट्र राज्य में लंपी स्किन डिजीज (Lumpy skin disease) ने फिर से दस्तक दे दी है, विगत कुछ दिनों में ७ हजार पशुओं की मृत्यु हो चुकी है। प्रदेश में वर्तमान में ९९ फीसद टीकाकरण का कार्य संपन्न हो गया है। प्रदेश में लंपी स्किन डिजीज की तबाही में कोई कमी नहीं आ रही है। विगत १५ दिनों में ७ हजार से ज्यादा पशुओं की मृत्यु चिंता का विषय है। साथ ही, सरकार का कहना है, कि प्रदेश में ९९.७९ फीसदी टीकाकरण का कार्य संपन्न हो गया है, परंतु इसके उपरांत भी लंपी त्वचा रोग नियंत्रण में नहीं आ पा रहा है। लंपी स्किन डिजीज के बढ़ते संक्रमण से पशुपालक बेहद चिंतित हैं। पशुपालन विभाग इस रोग के रोकथाम का दावा कर रहा है, लेकिन मृत पशुओं की तादाद में बढ़ोत्तरी हुई है। बतादें कि, लंपी स्किन डिजीज उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा में दस्तक देने के उपरांत सितंबर माह में महाराष्ट्र में आया था। इस रोग का संक्रमण शुरुआत में प्रदेश के १२ जनपदों में था, उसके बाद २४ फिलहाल प्रदेश के तकरीबन समस्त ३५ जनपदों के पशुपालकों में लंपी स्किन रोग के मामले देखने को मिल रहे हैं। नगर, जलगांव, बुलढाणा, अमरावती, अकोला आदि जिले सर्वाधिक प्रभावित माने जा रहे हैं। किसानों ने बताया है, कि दुग्ध उत्पादन में भी गिरावट आयी है।


ये भी पढ़ें:
महाराष्ट्र सरकार ने पशुपालकों को दिया मुआवजा, लगभग 98% हुआ टीकाकरण

किन जनपदों में अनुदान दिया जायेगा

पशुपालन आयुक्तालय के मुताबिक, कुल ३९०८ संक्रमण केंद्रों में लंपी स्किन डिजीज के मामले आए हैं। मध्य सितंबर माह के समय ८९ पशुओं की मृत्यु हुई थी। साथ ही, अब ७५ दिनों के उपरांत प्रदेश में २३ हजार ४९३ पशुओं को लंपी रोग ने मौत के हवाले कर दिया है। पशुपालन आयुक्तालय ने बताया है, कि १० हजार ४५५ पशुपालकों को मरे हुए पशुओं की हानि के मुआवजे के तौर पर २६ करोड़ ६१ लाख रुपये प्रदान किये गए हैं। सर्वाधिक १ हजार ४०३ पशुधन को अमरावती में ३ करोड़ ६५ लाख ६५ हजार रुपये, बुलढाणा जिले में १ हजार २३०, जलगांव जिले में ३ करोड़ १८ लाख १३ हजार रुपये की सहायता दी गई है।


ये भी पढ़ें:
इस प्रकार बचायें अपने पशुओं को आने वाली शीत लहर से

कितना हुआ टीकाकरण

महाराष्ट्र में ३ लाख ३६ हजार ९५८ रोगग्रस्त मवेशिओं में से २ लाख ५५ हजार ५३५ पशु अब तक उपचारोपरांत स्वस्थ हो चुके हैं। साथ ही, इसके अतिरिक्त भी रोगग्रसित मवेशियों का उपचार किया जा रहा है। प्रदेश के विभिन्न जनपदों में अबतक कुल १ करोड़ ४४ लाख १२ हजार से ज्यादा वैक्सीन की खुराक उपलब्ध की जा चुकी है। उसमें से १ करोड़ ३९ लाख २३ हजार निःशुल्क टीकाकरण किया जा चुका है। यह आंकड़ा तकरीबन ९९.७९ प्रतिशत है, व्यक्तिगत चरवाहे, निजी संस्थान, सहकारी दुग्ध संघ सभी इस टीकाकरण के अंतर्गत आते हैं।
अब किसानों को आवारा जानवरों से मिलेगी निजात, ये सरकार दे रही है खेत की तारबंदी के लिए 60 फीसदी पैसा

अब किसानों को आवारा जानवरों से मिलेगी निजात, ये सरकार दे रही है खेत की तारबंदी के लिए 60 फीसदी पैसा

भारत में इन दिनों आवारा और छुट्टा जानवर किसानों के लिए बड़ी मुसीबत बने हुए हैं, जिसके कारण किसानों को हर साल नुकसान झेलना पड़ता है। आवारा जानवर किसानों की फसलों को उजाड़ देते हैं, जिससे किसानों के उत्पादन में असर पड़ता है। इसके साथ ही आवारा और छुट्टा जानवरों के अलावा जंगली पशु भी किसानों की फसलों को भरपूर नुकसान पहुंचाते हैं। खेतों में खड़ी फसलों को नीलगाय और अन्य जंगली पशु चौपट कर देते हैं। इन समस्याओं का असर सीधे किसानों की आय पर पड़ता है। इस समस्या का एकमात्र उपाय है, कि किसान अपने खेत में तारबंदी करवा ले। इससे आवारा पशु और जंगली जानवर किसानों के खेत में नहीं पहुंचे, जिससे फसल को सीधा नुकसान नहीं होगा। लेकिन अगर आज के युग की बात करें तो तारबंदी करवाना एक बेहद महंगा सौदा है। जो हर किसान के बस की बात नहीं है। एक बार तारबंदी करवाने में किसानों के लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं। इसलिए किसान इस तरह के उपायों को अपनाने से कतरा रहे हैं। किसानों की इस समस्या को देखते हुए अब राजस्थान सरकार आगे आई है। राजस्थान सरकार ने घोषणा की है, कि राज्य सरकार अपने राज्य के किसानों के लिए तारबंदी करवाने के लिए कुल खर्च का 60 फीसदी पैसा देगी। इसके तहत राजस्थान सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए मुख्यमंत्री किसान साथी योजना चलाई है। जिसमें सरकार ने बताया है, कि फसल सुरक्षा मिशन के तहत जानवरों से फसल की सुरक्षा के लिए किसानों को अधिकतम 60 फीसदी अनुदान दिया जाएगा। अगर रुपये की बात करें तो यह अनुदान अधिकतम 48,000 रुपये तक दिया जाएगा।


ये भी पढ़ें:
महंगी तार फैंसिंग नहीं, कम लागत पर जानवर से ऐसे बचाएं फसल, कमाई करें डबल
इस योजना के अंतर्गत न आने वाले किसानों को भी राजस्थान सरकार तारबंदी के कुल खर्च का 50 फीसदी अनुदान देती है। अगर रुपये की बात करें तो यह आर्थिक मदद अधिकतम 40,000 रुपये तक हो सकती है। सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है, कि इस साल के बजट में सरकार ने तारबंदी के लिए अलग से प्रावधान किया है। नए कृषि बजट में राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन के तहत 35,000 किसानों को अगले 2 साल में अनुदान दिया जाएगा। यह अनुदान 100 करोड़ रुपये का होगा, जिसके अंतर्गत राज्य के खेतों में 25 लाख मीटर की तारबंदी की जाएगी।

अनुदान प्राप्त करने के लिए ये किसान होंगे पात्र

राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन के तहत तारबंदी करवाने के लिए किसान की खुद की कृषि योग्य 1.5 हेक्टेयर भूमि एक ही जगह पर होनी चाहिए। अगर किसान की 1.5 हेक्टेयर भूमि एक ही जगह पर नहीं है, तो 2 या 3 किसान संयुक्त रूप से अपनी 1.5 हेक्टेयर जमीन की तारबंदी करवाने के लिए मिलकर इस योजना के अंतर्गत आवेदन कर सकते हैं।

अनुदान प्राप्त करने के लिए यहां करें आवेदन

इस योजना के अंतर्गत लाभ उठाने के लिए किसान भाई अपने नजदीकी जिले के कृषि विभाग के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। इसके साथ ही अधिक जानकारी के लिए हेल्पलाइन नंबर 18001801551 पर कॉल करके जानकारी हासिल कर सकते हैं। इसके साथ ही किसान भाई राजस्थान किसान साथी पोर्टल पर भी विजिट कर सकते हैं। इस पोर्टल पर राजस्थान सरकार किसान भाइयों से समय-समय पर तारबंदी के लिए आवेदन मांगती रहती है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को अधिकतम 400 मीटर तक की तारबंदी के लिए अनुदान मिल सकता है।
अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

नई-नई तकनीकों के जरिए खेती का आधुनिकीकरण हो रहा है और इससे हम पूरी तरह से अवगत हैं. बहुत से ऐसे गैजेट्स और तकनीक आ गई है जिसकी मदद से किसानों की मेहनत, समय, पैसा और पानी सभी चीजों की बचत हो रही है. लेकिन अब एक नई चीज पशु पालकों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए सामने आई है. वैज्ञानिकों ने पशु पालन को भी आसान बनाने के लिए एक बहुत ही बेहतरीन तकनीक खोज निकाली है और इसका नाम है काउ मॉनिटर सिस्टम. इस सिस्टम को भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी (IDMC) ने बनाकर तैयार किया है.

जाने क्या है काउ मॉनिटर सिस्टम??

इसमें आप के मवेशी के गले में एक बेल्ट जैसी चीज पहनाई जाती है और इसकी मदद से
पशु पालक अपने पशुओं की लोकेशन को जान सकते हैं. इसके अलावा लोकेशन बताने के साथ-साथ इस बेल्ट के जरिए पशु के फुट स्टेप और उनकी गतिविधियों से उनमें होने वाली संभव बीमारियों के बारे में भी पहले से ही पता लगाया जा सकता है. माना जा रहा है कि पशु पालकों को लंबी जैसी महामारी या फिर किसी भी तरह की दुर्घटनाओं से बचने में यह तकनीक अच्छी खासी मदद करने वाली है. नेशनल डेहरी डेवलपमेंट बोर्ड के अधीन आने वाली भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी  का यह अविष्कार किसानों और पशु पालकों के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होने वाला है.

काउ मॉनिटर सिस्टम को इस्तेमाल करने का तरीका?

इसमें आपको अपने गाय या भैंस के गले में एक बेल्ट नुमा डिवाइस बांध लेना है जिसमें जीपीएस लगा हुआ है. अगर आपके पशु घूमते घूमते कहीं दूर निकल जाते हैं तो आप इस बेल्ट की मदद से उन को ट्रैक कर सकते हैं. इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें आप लगभग 10 किलोमीटर तक के दायरे में अपने पशुओं को ट्रैक कर सकते हैं. इसके अलावा यह बेल्ट पशुओं के गर्भधान के बारे में भी पालक को अपडेट देगी जो काफी लाभदायक है. ये भी पढ़ें: इस राज्य के पशुपालकों को मिलेगा भूसे पर 50 फीसदी सब्सिडी, पशु आहार पर भी मिलेगा अब ज्यादा अनुदान

कितनी रहेगी डिवाइस की कीमत?

भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी यानी आईडीएमसी के काउ मॉनीटरिंग सिस्टम की बैटरी लाइफ 3 से 5 साल तक बताई गई है और इसकी कीमत 4,000 से 5,000 रुपये है. रिपोर्ट की मानें तो माना जा रहा है कि अगले 3 से 4 महीने के अंदर अंदर यह बेल्ट पशुपालक द्वारा खरीदने के लिए उपलब्ध करवा दी जाएगी.
यहां मिल रहीं मुफ्त में दो गाय या भैंस, सरकार उठाएगी 90 फीसद खर्च

यहां मिल रहीं मुफ्त में दो गाय या भैंस, सरकार उठाएगी 90 फीसद खर्च

पशु पालन को सबसे कामयाब और मजबूत आय का जरिया माना जाता है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में ये काफी कारगर है. इस बात से किसानों के साथ साथ सरकारें भी वाकिफ हैं. यही वजह है कि पशु पालन के चलते किसानों की आय को बढ़ाने की कोशिश लगातार की जा रही है. इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश की सरकार भी जनजातीय समाज के बेरोजगारों के लिए पशु पालन से जोड़ने के लिए प्रयासरत है. जानकारी के मुताबिक बता दें कि, एमपी सरकार बैगा, भारिया और सहरिया समाज के बेरोजगारों को पशुपालन से जोड़ने का काम कर रही है. इस समाज के परिवारों को दो गाय या भैंस मुफ्त में दी जाएंगी. इन सबके अलावा पशुओँ को चारे से लेकर उनपर होने वाले सभी तरह के खर्च पर लगभग 90 फीसद तक का खर्चा सरकार करेगी.

जनजातीय समाज की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने का प्रयास

माना जा रहा है कि, मध्य प्रदेश की सरकार की इस योजना से पशु पालन व्यवसाय में काफी हद तक इजाफा होगा. साथ ही जनजातीय समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो सकेगा. वहीं मध्य प्रदेश में आवारा पशुओं की भी भरमार है, जिसमें कमी आएगी.

सरकार की तरफ से लोन सुविधा

MOU यानि की एमपी स्टेट को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक राज्य के किसान भाइयों को दूध देने वाले पशुओं की खरीद पर सरकार 10 लाख रुपये तक का लोन दे रही है. किसानों को यह लोग मध्य प्रदेश कुछ चिन्हित बैंकों से ही मिल सकेगा. ये भी पढ़ें: जाने किस व्यवसाय के लिए मध्य प्रदेश सरकार दे रही है 10 लाख तक का लोन इस योजना के तहत आवेदन करने वाले लोग 2, 4, 6 और 8 दुधारू पशु खरीदने के लिए हर जिले के तीन से चार बैंक की शाखाओं पर लोन की सुविधा मिलेगी. जिसमें से 10 लाख रुपये तक नॉन कोलेट्रल मुद्रा लोन और 60 हजार रूपये का मुद्रा लोन शामिल किया गया है. लाभार्थी को इस लोन को लेने के लिए 10 फीसद का मार्जिन मनी जमा करनी होगी. साथ ही इस लोन को कुल 36 किस्तों में चुकाने की सहूलियत लाभार्तियों को मिलेगी.

जानिए क्या है पूरी योजना

  • मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने इस योजना की घोषणा अपने ट्वीटर हैंडल के जरिये दी है.
  • मुख्यमंत्री सिवराज सिंह चौहान की सरकार ने कहा कि. वो दो गाय या फिर दो भैंस मुफ्त में देगी.
  • इसके आलवा उनके पशुपाल पर होने वाले खर्चे का 90 फीसद भी सरकार की तरफ से दिया जाएगा.
  • मध्य प्रदेश सरकार का मानना है कि, पशु पालन में सरकारी मदद मिलने

से लोगों की आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार आएगा.

  • मध्य प्रदेश सरकार यह योजना राज्य के जनजातीय समाज के बेरोजगारों के लिए लेकर आई है.
  • यह योजना राज्य के बैगा, भारिया और सहरिया समाज के लिए लाई गयी है.
  • राज्य में आवारा पशुओं की संख्या में लगाम लग सकेगी.
  • राज्य में पशुपालन को बढ़ावा मिलेगा जिससे दूध का उत्पादन भी बढ़ेगा.
एमपी में जनजातीय समाज के लोगों की जनसंख्या एवरेज है. इस समाज की बेहतरी हो, यह सरकार भी चाहती है. जिसके लिए उन्हें इस व्यवसाय से जोड़ा जा रहा है. सहरिया, बैगा और भरिया समाज के ज्यादा से ज्यादा लोग इस व्यवसाय से जुड़े, ऐसी मंशा से सरकार परिवारों को दो भैंस या गाय मुफ्त में देगी. वहीं पशुओं पर आने वाले हर तरीके के खर्च का भी 90 फीसद हिस्सा सरकार के जिम्मे होगा. मध्य प्रदेश पशु पालन विभाग ने सरकार के इस फैसले की जानकारी अपमे ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल पर जारी की है.
यह राज्य सरकार किसानों को मुफ़्त में दे रही है गाय और भैंस

यह राज्य सरकार किसानों को मुफ़्त में दे रही है गाय और भैंस

सरकार देश के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसके लिए सरकार समय-समय पर किसानों के लिए नई योजनाएं लॉन्च करती रहती है, जिनसे बड़ी संख्या में किसान लाभान्वित हो रहे हैं। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश की सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए प्रदेश के जनजातीय किसानों को पशुपालन से जोड़ने का बेड़ा उठाया है। सरकार का मानना है कि इस पहल से प्रदेश में बेरोजगारी कम होगी और जनजातीय युवाओं को रोजगार भी मिल सकेगा। प्रदेश सरकार की नई स्कीम के तहत  बैगा, भारिया और सहरिया समाज के लोगों को पशुपालन से जोड़ा जाएगा। इसके लिए सरकार गाय या भैंस मुफ़्त में देगी। सरकारी अधिकारियों ने बताया है कि इस स्कीम के तहत 1500 गायें-भैंसें किसानों को दी जाएंगी। जिनका 90 प्रतिशत खर्च सरकार वहन करेगी। सरकारी अधिकारियों ने बताया है कि प्रदेश सरकार ने साल 2022 से लेकर साल 2024 तक 1500 दुधारू पशु वितरित करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए 29 करोड़ 18 लाख रुपये राशि को भी स्वीकृत कर दिया गया है। इसमें से प्रत्येक गाय को खरीदने के लिए एक लाख 89 हजार 250 रुपये की राशि निर्धारित की गई है, जबकि भैंस खरीदने के लिए  2 लाख 43 हजार रुपये की राशि निर्धारित की गई है। गाय क्रय करने में 70 हजार 325 रुपये सरकार की तरफ से दिए जाएंगे जबकि शेष 18 हजार 925 रुपये खुद किसान को देने होंगे। इसी तरह भैंस की खरीदी में 2 लाख 18 हजार 700 रुपये सरकार की तरफ से दिए जाएंगे जबकि बकाया 24 हजार 300 रुपये की राशि को हितग्राही को खुद वहन करना होगा। ये भी पढ़े: अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन एमपी स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन के अधिकारियों ने बताया है कि सरकार इस फैसले से राज्य में दूध उत्पादन को बढ़ाना चाह रही रही है। कुछ महीनों पहले ही एमपी स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने एक एमओयू साइन किया था जिसके मुताबिक अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया प्रदेश में दुधारू पशुओं को खरीदने के लिए 10 लाख रुपये तक का लोन बिना किसी गारंटी के प्रदान करेगा। इसके लिए हर जिले में बैंक की 3 से 4 शखाओं का चयन किया गया है जो किसानों को लोन उपलब्ध करवाएंगी। इस राशि से किसान 2 से लेकर 8 दुधारू पशु तक खरीद सकते हैं। सरकार का मानना है कि इस पहल से राज्य में दुग्ध उत्पादन में बढ़ावा होगा, साथ ही किसानों की भी आय तेजी से बढ़ेगी।
अब बीमार पशुओं को लेकर नहीं जाना होगा अस्पताल, घर पर ही होगा इलाज

अब बीमार पशुओं को लेकर नहीं जाना होगा अस्पताल, घर पर ही होगा इलाज

केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के पशुपालकों और किसानों को बड़ा तोहफा देते हुए राज्य में 'पशु उपचार पशुपालकों के द्वार' योजना का शुभारंभ किया है। इस योजना के चालू हो जाने से किसानों को बहुत सारी समस्याओं से छुटाकरा मिल जाएगा। अब किसानों को अपने पशुओं का इलाज करवाने के लिए नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र में नहीं जाना होगा। इसकी जगह पर क्षेत्र के पशु चिकित्सक खुद घर आकर पशु का इलाज करेंगे। 'पशु उपचार पशुपालकों के द्वार' योजना का शुभारंभ फिलहाल उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में किया गया है। जहां इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए जिले के पशु चिकित्सकों को 5 मोबाइल वेटरनरी वैन दी गई हैं, साथ ही इन मोबाइल वेटरनरी वैन में पशु इलाज के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं एवं दवाइयां उपलब्ध करवाई गई हैं। यदि किसी किसान का कोई भी पशु बीमार होता है तो पशु चिकित्सक इन्हीं मोबाइल वेटरनरी वैन को लेकर पशुओं का इलाज करने के लिए जाएंगे। किसानों को इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए टोल फ्री नंबर 1962 पर कॉल करना होगा तथा पशु के रोग से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी बतानी होगी। जिसके कुछ ही देर बाद पशु चिकित्सकों की टीम मोबाइल वेटरनरी वैन के साथ किसान के घर पहुंच जाएगी और पशु का सम्पूर्ण इलाज करेगी। ये भी पढ़े: पशुओं में मुँहपका व खुरपका रोग के लक्षण व उपचार योजना की शुरुआत करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बताया है कि इस योजना में गाय भैंस के अलावा अन्य पालतू जानवरों को भी शामिल किया गया है। इसके साथ ही गाय और भैंस के इलाज के लिए 5 रुपये का पंजीकरण शुल्क देय होगा तथा कुत्ते और बिल्लियों के इलाज के लिए 10 रुपये का पंजीकरण शुल्क देय होगा। इलाज के दौरान चिकित्सकों द्वारा दी गई दवाइयां पूरी तरफ से मुफ़्त होंगी, उनका किसी भी प्रकार का चार्ज किसानों से नहीं वसूला जाएगा। इस प्रकार की योजना की शुरुआत पहले ही आंध्र प्रदेश में हो चुकी है। साल 2022 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने किसानों के घर पर पशुओं के इलाज की व्यवस्था करने की बात कही थी। जिसके तहत राज्य में 175 एंबुलेंस खरीदी गई थीं, जिसमें आंध्र प्रदेश की सरकार ने 143 करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि खर्च की थी। इस तरह की योजना का आंध्र प्रदेश में सफल ट्रायल होने के बाद इसे अब उत्तर प्रदेश में भी लागू किया गया है।