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carrot farming

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

किसान भाईयों, आपने आलू, खीरा और प्याज की फसल पर अपने जानते खूब मेहनत की। फसल भी अपने हिसाब से बेहद ही उम्दा हुई। गुणवत्ता एक नंबर और क्वांटिटी भी जोरदार। लेकिन, आप अभी भी पुराने जमाने के तौर-तरीके से ही अगर फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं तो ठहरें। हो सकता है, आप जिन प्राचीन विधियों का इस्तेमाल करके फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं, वह आपकी फसल को खराब कर दे। संभव है, आप पूरी फसल न ले पाएं। इसलिए, कृषि वैज्ञानिकों ने जो तौर-तरीके बताएं हैं फसल निकालने के, हम आपसे शेयर कर रहे हैं। इस उम्मीद के साथ कि आप पूरी फसल ले सकें, शानदार फसल ले सकें। तो, थोड़ा गौर से पढ़िए इस लेख को और उसी हिसाब से अपनी फसल निकालिए।

प्याज की फसल

Pyaj ki kheti

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प्याज देश भर में बारहों माह इस्तेमाल होने वाली फसल है। इसकी खेती देश भर में होती है। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक। अब आपका फसल तैयार है। आप उसे निकालना चाहते हैं। आपको क्या करना चाहिए, ये हम बताते हैं। जब आप प्याज की फसल निकालने जाएं तो सदैव इस बात का ध्यान रखें कि प्याज और उसके बल्बों को किसी किस्म का नुकसान न हो। आपको बेहद सावधानी बरतनी पड़ेगी। हड़बड़ाएं नहीं। धैर्य से काम लें। सबसे पहले आप प्याज को छूने के पहले जमीन के ऊपर से खींचे या फिर उसकी खुदाऊ करें। बल्बों के चारों तरफ से मिट्टी को धीरे-धीरे हिलाते चलें। फिर जब मिट्टी हिल जाए तब आप प्याज को नीचे, उसकी जड़ से आराम से निकाल लें। आप जब मिट्टी को हिलाते हैं तब जो जड़ें मिट्टी के संपर्क में रहती हैं, वो धीरे-धीरे मिट्टी से अलग हो जाती हैं। तो, आपको इससे साबुत प्याज मिलता है। प्याज निकालने के बाद उसे यूं ही न छोड़ दें। आपके पास जो भी कमरा या कोठरी खाली हो, उसमें प्याज को सुखा दें। कम से कम एक हफ्ते तक। उसके बाद आप प्याज को प्लास्टिक या जूट की बोरियों में रख कर बाजार में बेच सकते हैं या खुद के इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं। प्याज को कभी झटके से नहीं उखाड़ना चाहिए।

आलू

aalu ki kheti आलू देश भर में होता है। इसके कई प्रकार हैं। अधिकांश स्थानों पर आलू दो रंगों में मिलते हैं। सफेद और लाल। एक तीसरा रंग भी हैं। धूसर। मटमैला धूसर रंग। इस किस्म के आलू आपको हर कहीं दिख जाएंगे।

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आपका आलू तैयार हो गया। आप उसे निकालेंगे कैसे। कई लोग खुरपी का इस्तेमाल करते हैं। यह नहीं करना चाहिए क्योंकि अनेक बार आधे से ज्यादा आलू खुरपी से कट जाते हैं। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि इसके लिए बांस सबसे बेहतर है, बशर्ते वह नया हो, हरा हो। इससे आप सबसे पहले तो आलू के चारों तरफ की मिट्टी को ढीली कर दें, फिर अपने हाथ से ही आलू निकालें। आप बांस से आलू निकालने की गलती हरगिज न करें। बांस, सिर्फ मिट्टी को साफ करने, हटाने के लिए है।

नए आलू की कटाई

नए आलू छोटे और बेहद नरम होते हैं। इसमें भी आप बांस वाले फार्मूले का इस्तेमाल कर सकते हैं। आलू, मिट्टी के भीतर, कोई 6 ईंच नीचे होते हैं। इसिलए, इस गहराई तक आपका हाथ और बांस ज्यादा मुफीद तरीके से जा सकता है। बेहतर यही हो कि आप हाथ का इस्तेमाल कर मिट्टी को हटाएं और आलू को निकाल लें।

गाजर

gajar ki kheti गाजर बारहों मास नहीं मिलता है। जनवरी से मार्च तक इनकी आवक होती है। बिजाई के 90 से 100 दिनों के भीतर गाजर तैयार हो जाता है। इसकी कटाई हाथों से सबसे बेहतर होती है। इसे आप ऊपर से पकड़ कर खींच सकते हैं। इसकी जड़ें मिट्टी से जुड़ी होती हैं। बेहतर तो यह होता कि आप पहले हाथ अथवा बांस की सहायता से मिट्टी को ढीली कर देते या हटा देते और उसके बाद गाजर को आसानी से खींच लेते। गाजर को आप जब उखाड़ लेते हैं तो उसके पत्तों को तोड़ कर अलग कर लेते हैं और फिर समस्त गाजर को पानी में बढ़िया से धोकर सुखा लिया जाता है।

खीरा

khira ki kheti खीरा एक ऐसी पौधा है जो बिजाई के 45 से 50 दिनों में ही तैयार हो जाता है। यह लत्तर में होता है। इसकी कटाई के लिए चाकू का इस्तेमाल सबसे बेहतर होता है। खीरा का लत्तर कई बार आपकी हथेलियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। बेहतर यह हो कि आप इसे लत्तर से अलग करने के लिए चाकू का ही इस्तेमाल करें।

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कुल मिलाकर, फरवरी माह या उसके पहले अथवा उसके बाद, अनेक ऐसी फसलें होती हैं जिनकी पैदावार कई बार रिकार्डतोड़ होती है। इनमें से गेहूं और धान को अलग कर दें तो जो सब्जियां हैं, उनकी कटाई में दिमाग का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करना पड़ता है। आपको धैर्य बना कर रखना पड़ता है और अत्यंत ही सावधानीपूर्वक तरीके से फसल को जमीन से अलग करना होता है। इसमें आप अगर हड़बड़ा गए तो अच्छी-खासी फसल खराब हो जाएगी। जहां बड़े जोत में ये वेजिटेबल्स उगाई जाती हैं, वहां मजदूर रख कर फसल निकलवानी चाहिए। बेशक मजदूरों को दो पैसे ज्यादा देने होंगे पर फसल भी पूरी की पूरी आएगी, इसे जरूर समझें। कोई जरूरी नहीं कि एक दिन में ही सारी फसल निकल आए। आप उसमें कई दिन ले सकते हैं पर जो भी फसल निकले, वह साबुत निकले। साबुत फसल ही आप खुद भी खाएंगे और अगर आप उसे बाजार अथवा मंडी में बेचेंगे, तो उसकी कीमत आपको शानदार मिलेगी। इसलिए बहुत जरूरी है कि खुद से लग कर और अगर फसल ज्यादा है तो लोगों को लगाकर ही फसलों को बाहर निकालना चाहिए। (देश के जाने-माने कृषि वैज्ञानिकों की राय पर आधारित)
ऑफ सीजन में गाजर बोयें, अधिक मुनाफा पाएं (sow carrots in off season to reap more profit in hindi)

ऑफ सीजन में गाजर बोयें, अधिक मुनाफा पाएं (sow carrots in off season to reap more profit in hindi)

गाजर जो दिखने में बेहद ही खूबसूरत होती है और इसका स्वाद भी काफी अच्छा होता है स्वाद के साथ ही साथ विभिन्न प्रकार से हमारे शरीर को लाभ पहुंचाती है। गाजर से जुड़ी पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें । जानें कैसे ऑफ सीजन में गाजर बोयें और अधिक मुनाफा पाएं। 

ऑफ सीजन में गाजर की खेती दें अधिक मुनाफा

सलाद के लिए गाजर का उपयोग काफी भारी मात्रा में होता है शादियों में फेस्टिवल्स विभिन्न विभिन्न कार्यक्रमों में गाजर के सलाद का इस्तेमाल किया जाता है। इसीलिए लोगों में इसकी मांग काफी बढ़ जाती है, बढ़ती मांग को देखते हुए इनको ऑफ सीजन भी उगाया जाता है विभिन्न रासायनिक तरीकों से और बीज रोपड़ कर। 

गाजर की खेती

गाजर जिसको इंग्लिश में Carrot के नाम से भी जाना जाता है। खाने में मीठे होते हैं तथा दिखने में खूबसूरत लाल और काले रंग के होते हैं। लोग गाजर की विभिन्न  विभिन्न प्रकार की डिशेस बनाते हैं जैसे; गाजर का हलवा सर्दियों में काफी शौक और चाव से खाया जाता है। ग्रहणी गाजर की मिठाइयां आदि भी बनाती है। स्वाद के साथ गाजन में विभिन्न प्रकार के विटामिन पाए जाते हैं जैसे विटामिनए (Vitamin A) तथा कैरोटीन (Carotene) की मात्रा गाजर में भरपूर होती है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए कच्ची गाजर लोग ज्यादातर खाते हैं इसीलिए गाजर की खेती किसानों के हित के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। 

गाजर की खेती करने के लिए जलवायु

जैसा कि हम सब जानते हैं कि गाजर के लिए सबसे अच्छी जलवायु ठंडी होती है क्योंकि गाजर एक ठंडी फसल है जो सर्दियों के मौसम में काफी अच्छी तरह से उगती है। गाजर की फसल की खेती के लिए लगभग 8 से 28 डिग्री सेल्सियस का तापमान बहुत ही उपयोगी होता है। गर्मी वाले इलाके में गाजर की फसल उगाना उपयोगी नहीं होता। 

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ऑफ सीजन में गाजर की खेती के लिए मिट्टी का उपयोग

किसान गाजर की अच्छी फसल की गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए तथा अच्छी उत्पादन के लिए दोमट मिट्टी का ही चयन करते हैं क्योंकि यह सबसे बेहतर तथा श्रेष्ठ मानी जाती है। फसल के लिए मिट्टी को भली प्रकार से भुरभुरा कर लेना आवश्यक होता है। बीज रोपण करने से पहले जल निकास की व्यवस्था को बना लेना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की जलभराव की स्थिति ना उत्पन्न हो। क्योंकि जलभराव के कारण फसलें सड़ सकती हैं , खराब हो सकती है, जड़ों में गलन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है तथा फसल खराब होने का खतरा बना रहता है। 

गाजर की खेती का सही टाइम

किसानों और विशेषज्ञों के अनुसार गाजर की बुवाई का सबसे अच्छा और बेहतर महीना अगस्त से लेकर अक्टूबर तक के बीच का होता है। गाजर की कुछ अन्य किस्में  ऐसी भी हैं जिनको बोने का महीना अक्टूबर से लेकर नवंबर तक का चुना जाता है और यह महीना सबसे श्रेष्ठ महीना माना जाता है। गाजर की बुवाई यदि आप रबी के मौसम में करेंगे , तो ज्यादा उपयोगी होगा गाजर उत्पादन के लिए तथा आप अच्छी फसल को प्राप्त कर सकते हैं।

ऑफ सीजन में गाजर की फसल के लिए खेत को तैयार करे

किसान खेत को भुरभुरी मिट्टी द्वारा तैयार कर लेते हैं खेत तैयार करने के बाद करीब दो से तीन बार हल से जुताई करते हैं। करीब तीन से 5 दिन के भीतर अपने पारंपरिक हल से जुताई करना शुरू कर देते हैं और सबसे आखरी जुताई के लिए पाटा फेरने की क्रिया को अपनाते हैं।  खेत को इस प्रकार से फसल के लिए तैयार करना उपयुक्त माना जाता है।

गाजर की उन्नत किस्में

गाजर की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इनकी विभिन्न विभिन्न प्रकार की  किस्मों का उत्पादन करते हैं। जो ऑफ सीजन भी उगाए जाते हैं। गाजर की निम्न प्रकार की किस्में होती है जैसे:

  • पूसा मेघाली

पूसा मेघाली की बुआई लगभग अगस्त से सितंबर के महीने में होती है। गाजर की इस किस्म मे भरपूर मात्रा में कैरोटीन होता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है। यह फसल उगने में 100 से लेकर 110 दिनों का समय लेते हैं और पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं।

  • पूसा केसर

गाजर कि या किस्म भी बहुत ही अच्छी होती है या 110  दिनों में तैयार हो जाती हैं। पूसा केसर की बुआई का समय अगस्त से लेकर सितंबर का महीना उपयुक्त होता है।

  • हिसार रसीली

हिसार रसीली सबसे अच्छी किस्म होती है क्योंकि इसमें विटामिन ए पाया जाता है तथा इसमें कैरोटीन भी होता है। इसलिए बाकी किस्मों से यह सबसे बेहतर किसमें होती है। यह फसल तैयार होने में लगभग 90 से 100 दिनों का टाइम लेती है।

  • गाजर 29

गाजर की या किस्म स्वाद में बहुत मीठी होती है इस फसल को तैयार होने में लगभग 85 से 90 दिनों का टाइम लगता है।

  • चैंटनी

चैंटनी किस्म की गाजर दिखने में मोटी होती है और इसका रंग लाल तथा नारंगी होता है इस फसल को तैयार होने में लगभग 80 से 90 दिन का टाइम लगता है।

  • नैनटिस

नैनटिस इसका स्वाद खाने में बहुत स्वादिष्ट तथा मीठे होते हैं या फसल उगने में 100 से 120 दिनों का टाइम लेती है। 

 दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल Gajar (agar sinchai ki vyavastha ho to), Taki off-season mein salad ke liye demand puri ho aur munafa badhe काफी पसंद आया होगा और हमारा यह आर्टिकल आपके लिए बहुत ही लाभदायक साबित होगा। हमारे इस आर्टिकल से यदि आप संतुष्ट है तो ज्यादा से ज्यादा इसे शेयर करें।

गाजर की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों की विस्तृत जानकारी

गाजर की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों की विस्तृत जानकारी

गाजर की पैदावार कच्चे के रूप में सेवन करने के लिए किया जाता है। गाजर एक बेहद ही लोकप्रिय सब्जी फसल है। लोगों द्वारा इसके जड़ वाले हिस्से का उपयोग खाने के लिए किया जाता है। जड़ के ऊपरी हिस्से को पशुओ को खिलाने के लिए उपयोग में लाते हैं। इसकी कच्ची पत्तियों को भी सब्जी तैयार करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। गाजर के अंदर विभिन्न प्रकार के गुण विघमान होते हैं, जिस वजह से इसका उपयोग जूस, सलाद, अचार, मुरब्बा, सब्जी एवं गाजर के हलवे को अधिक मात्रा में बनाने के लिए करते हैं। यह भूख को बढ़ाने एवं गुर्दे के लिए भी बेहद फायदेमंद होती है। इसमें विटामिन ए की मात्रा सबसे ज्यादा उपस्थित होती है। इसके साथ ही इसमें विटामिन बी, डी, सी, ई, जी की भी पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है। गाजर में बिटा-केरोटिन नामक तत्व उपस्थित होता है, जो कैंसर की रोकथाम में ज्यादा लाभकारी होता है। पहले गाजर केवल लाल रंग की होती थी। लेकिन वर्तमान समय में गाजर की विभिन्न उन्नत किस्में हैं, जिसमें पीले एवं हल्के काले रंग की भी गाजर पायी जाती है। भारत के लगभग समस्त क्षेत्रों में गाजर की पैदावार की जाती है।

गाजर की पैदावार से पहले खेत की तैयारी

गाजर का उत्पादन करने से पहले खेत की बेहतरीन ढ़ंग से गहरी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूर्णतय बर्बाद हो जाते हैं। जुताई के उपरांत खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, इससे भूमि की मृदा नम हो जाती है। नम जमीन में रोटावेटर लगाकर दो से तीन बारी तिरछी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मृदा में उपस्थित मिट्टी के ढेले टूट जाते हैं और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को एकसार कर दिया जाता है।

गाजर के खेत में उवर्रक कितनी मात्रा में देना चाहिए

जैसा कि हम सब जानते हैं कि किसी भी फसल की बेहतरीन पैदावार के लिए खेत में समुचित मात्रा में उवर्रक देना आवश्यक होता है। इसके लिए खेत की पहली जुताई के उपरांत खेत में 30 गाड़ी तक पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के अनुरूप देना होता है। इसके अतिरिक्त खेत की अंतिम जुताई के समय रासायनिक खाद के तोर पर 30 KG पोटाश, 30 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के अनुसार करना होता है। इससे उत्पादन काफी ज्यादा मात्रा में अर्जित होती है। ये भी पढ़े: गाजर का जडोंदा रोग एवं उनके उपाय

गाजर की खेती का समय, तरीका एवं बुवाई

गाजर के बीजों की बुवाई बीज के रूप में की जाती है। इसके लिए एकसार जमीन में बीजो का छिड़काव कर दिया जाता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 6 से 8 KG बीजों की जरूरत पड़ती है। इन बीजों को खेत में रोपने से पूर्व उन्हें उपचारित कर लें। खेत में बीजों को छिड़कने के उपरांत खेत की हल्की जुताई कर दी जाती है। इससे बीज खेत में कुछ गहराई में चला जाता है। इसके उपरांत हल के माध्यम से क्यारियों के रूप में मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है। इसके पश्चात फसल में पानी लगा दिया जाता है। गाजर की एशियाई किस्मों को अगस्त से अक्टूबर माह के बीच लगाया जाता है। साथ ही, यूरोपीय किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच की जाती है।

गाजर फसल की सिंचाई कब की जाती है

गाजर की फसल की प्रथम सिंचाई बीज रोपाई के शीघ्र बाद कर दी जाती है। इसके पश्चात खेत में नमी स्थिर रखने के लिए शुरुआत में सप्ताह में दो बार सिंचाई की जाती है। वहीं, जब बीज जमीन से बाहर निकल आए तब उन्हें सप्ताह में एक बार पानी दें। एक माह के बाद जब बीज पौधा बनने लगता है, उस दौरान पौधों को कम पानी देना होता है। इसके उपरांत जब पौधे की जड़ें पूर्णतय लंबी हो जाये, तो पानी की मात्रा को बढ़ा देना होता है।

गाजर की फसल में खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

गाजर की फसल में खरपतवार पर काबू करना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए खेत की जुताई के समय ही खरपतवार नियंत्रण दवाइयों का उपयोग किया जाता है। इसके उपरांत भी जब खेत में खरपतवार नजर आए तो उन्हें निराई – गुड़ाई कर खेत से निकाल दें। इस दौरान अगर पौधों की जड़ें दिखाई देने लगें तो उन पर मिट्टी चढ़ा दी जाती है। ये भी पढ़े: आगामी रबी सीजन में इन प्रमुख फसलों का उत्पादन कर किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं

गाजर की उपज एवं लाभ क्या-क्या होते हैं

गाजर की उम्दा किस्मों के आधार पर ज्यादा मात्रा में पैदावार प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 300 से 350 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं। कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं, जिनसे सिर्फ 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार अर्जित हो पाती है। कम समयांतराल में उपज प्राप्त कर किसान भाई बेहतरीन मुनाफा भी कमा लेते हैं। गाजर का बाजारी भाव शुरुआत में काफी अच्छा होता है। यदि कृषक भाई ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर गाजर को समुचित भाव पर बेच देते हैं, तो वह इसकी एक बार की फसल से 3 लाख तक की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। गाजर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद होती है।
अगस्त में ऐसे लगाएं गोभी-पालक-शलजम, जाड़े में होगी बंपर कमाई, नहीं होगा कोई गम

अगस्त में ऐसे लगाएं गोभी-पालक-शलजम, जाड़े में होगी बंपर कमाई, नहीं होगा कोई गम

मानसून सीजन में भारत में इस बार बारिश का मिजाज किसानों की समझ से परे है। मानसून के देरी से देश के राज्यो में आमद दर्ज कराने से धान, सोयाबीन जैसी प्रतिवर्ष ली जाने वाली फसलों की तैयारी में देरी हुई, वहीं अगस्त माह में अतिवर्षा के कारण कुछ राज्यों में फसलों को नुकसान होने के कारण किसान मुआवजा मांग रहे हैं। लेकिन हम बात नुकसान के बजाए फायदे की कर रहे हैं। 

अगस्त महीने में कुछ बातों का ध्यान रखकर किसान यदि कुछ फसलों पर समुचित ध्यान देते हैं, तो आगामी महीनों में किसानों को भरपूर कृषि आय प्राप्त हो सकती है। जुलाई महीने तक भारत में कई जगह सूखा, गर्मी सरीखी स्थिति रही। ऐसे में अगस्त माह में किसान सब्जी की फसलों पर ध्यान केंद्रित कर अल्पकालिक फसलों से मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। अगस्त के महीने को साग-सब्जियों की खेती की तैयारी के लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है। मानसून सीजन में सब्जियों की खेती से किसान बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं, हालांकि उनको ऐसी फसलों से बचने की कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं, जो अधिक पानी की स्थिति में नुकसान का सौदा हो सकती हैं।

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 ऐसे में अगस्त के महीने में समय के साथ ही किसान को सही फसल का चुनाव करना भी अति महत्वपूर्ण हो जाता है। अगस्त में ऐसी कुछ सब्जियां हैं जिनकी खेती में नुकसान के बजाए फायदे अधिक हैं। एक तरह से अगस्त के मौसम को ठंड की साग-सब्जियों की तैयारी का महीना कहा जा सकता है। अगस्त के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां सितंबर माह के अंत या अक्टूबर माह के पहले सप्ताह तक बाजार में बिकने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं।

शलजम (Turnip) की खेती

जड़ीय सब्जियों (Root vegetables) में शामिल शलजम ठंड के मौसम में खाई जाने वाली पौष्टिक सब्जियों में से एक है। कंद रूपी शलजम की खेती (Turnip Cultivation) में मेहनत कर किसान जाड़े के मौसम में बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं। गांठनुमा जड़ों वाली सब्जी शलजम या शलगम को भारतीय चाव से खाते हैं। अल्प समय में पचने वाली शलजम को खाने से पेट में बनने वाली गैस आदि की समस्या का भी समाधान होता है। कंद मूल किस्म की इस सब्जी की खासियत यह है कि इसे पथरीली अथवा किसी भी तरह की मिट्टी वाले खेत में उपजाया जा सकता है। हालांकि किसान मित्रों को शलजम की बोवनी के दौरान इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखना होगा कि, खेत में जल भराव न होता हो एवं शलजम बोए जाने वाली भूमि पर जल निकासी का समुचित प्रबंध हो।

शलजम की किस्में :

कम समय में तैयार होने वाली शलजम की प्रजातियों में एल वन (L 1) किस्म भारत में सर्वाधिक रूप से उगाई जाती है। महज 45 से 60 दिनों के भीतर खेत में पूरी तरह तैयार हो जाने वाली यह सब्जी अल्प समय में कृषि आय हासिल करने का सर्वोत्कृष्ट उपाय है। इस किस्म की शलजम की जड़ें गोल और पूरी तरह सफेद, मुलायम होने के साथ ही स्वाद में कुरकुरी लगती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में किसान प्रति एकड़ 105 क्विंटल शलजम की पैदावार से बढ़िया मुनाफा कमा सकता है। इसके अलावा पंजाब सफेद फोर (Punjab Safed 4) किस्म की शलजम का भी व्यापक बाजार है। जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है, खास तौैर पर पंजाब और हरियाणा में इस प्रजाति की शलजम की खेती किसान करते हैं।

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शलजम की अन्य किस्में :

शलजम की एल वन (L 1) एवं पंजाब सफेद फोर (Punjab Safed 4) किस्म की प्रचलित किस्मों के अलावा, भारत के अन्य राज्यों के किसान पूसा कंचन (Pusa Kanchan), पूसा स्वेति (Pusa Sweti), पूसा चंद्रिमा (Pusa Chandrima), पर्पल टॉप व्हाइट ग्लोब (Purple top white globe) आदि किस्म की शलजम भी खेतों में उगाते हैं।

गाजर की खेती (Carrot farming)

जमीन के भीतर की पनपने वाली एक और सब्जी है गाजर। अगस्त के महीने में गाजर (Carrot) की बोवनी कर किसान ठंड के महीने में बंपर कमाई कर सकते हैं। मूल तौर पर लाल और नारंगी रंग वाली गाजर की खेती भारत के किसान करते हैं। भारत के प्रसिद्ध गाजर के हलवे में प्रयुक्त होने वाली लाल रंग की गाजर की ठंड में जहां तगड़ी डिमांड रहती है, वहीं सलाद आदि में खाई जाने वाली नारंगी गाजर की साल भर मांग रहती है। गाजर का आचार आदि में प्रयोग होने से इसकी उपयोगिता भारतीय रसोई में किसी न किसी रूप मेें हमेशा बनी रहती है। अतः गाजर को किसान के लिए साल भर कमाई प्रदान करने वाला जरिया कहना गलत नहीं होगा। अगस्त का महीना गाजर की फसल की तैयारी के लिए सर्वाधिक आदर्श माना जाता है। हालांकि किसान को गाजर की बोवनी करते समय शलजम की ही तरह इस बात का खास ख्याल रखना होता है कि, गाजर की बोवनी की जाने वाली भूमि में जल भराव न होता हो एवं इस भूमि पर जल निकासी के पूरे इंतजाम हों।

फूल गोभी (Cauliflower) की तैयारी

सफेद फूल गोभी की खेती अब मौसम आधारित न होकर साल भर की जाने वाली खेती प्रकारों में शामिल हो गई है। आजकल किसान खेतों में साल भर फूल गोभी की खेती कर इसकी मांग के कारण भरपूर मुनाफा कमाते हैं। हालांकि ठंड के मौसम में पनपने वाली फूल गोभी का स्वाद ही कुछ अलग होता है। विंटर सीजन में कॉलीफ्लॉवर की डिमांड पीक पर होती है। अगस्त महीने में फूल गोभी के बीजों की बोवनी कर किसान ठंड के मौसम में तगड़ी कमाई सुनिश्चित कर सकते हैं। चाइनीज व्यंजनों से लेकर सूप, आचार, सब्जी का अहम हिस्सा बन चुकी गोभी की सब्जी में कमाई के अपार अवसर मौजूद हैं। बस जरूरत है उसे वक्त रहते इन अवसरों को भुनाने की।

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पर्ण आधारित फसलें

बारिश के मौसम में मैथी, पालक (Spinach) जैसी पर्ण साग-सब्जियों को खाना वर्जित है। जहरीले जीवों की मौजूदगी के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका के कारण वर्षाकाल में पर्ण आधारित सब्जियों को खाना मना किया गया है। बारिश में सड़ने के खतरे के कारण भी किसान पालक जैसी फसलों को उगाने से बचते हैं। हालांकि अगस्त का महीना पालक की तैयारी के लिए मददगार माना जाता है। लौह तत्व से भरपूर पालक (Paalak) को भारतीय थाली में सम्मानजनक स्थान हासिल है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर हरी भरी पालक को सब्जी के अलावा जूस आदि में भरपूर उपयोग किया जाता है।

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सर्दी के मौसम में पालक के पकौड़े, पालक पनीर, पालक दाल आदि व्यंजन लगभग प्रत्येक भारतीय रसोई का हिस्सा होते हैं। अगस्त के महीने में पालक की तैयारी कर किसान मित्र ठंड के मौसम में अच्छी कृषि आय प्राप्त कर सकते हैं।

चौलाई (amaranth) में भलाई

चौलाई की भाजी की साग के भारतीय खासे दीवाने हैं। गरमी और ठंड के सीजन में चौलाई की भाजी बाजार मेें प्रचुरता से बिकती है। चौलाई की भाजी किसान किसी भी तरह की मिट्टी में उगा सकता है। अगस्त के महीने में सब्जियों की खेती की तैयारी कर ठंड के मौसम के लिए कृषि आय सुनिश्चित कर सकते हैं। तो किसान मित्र ऊपर वर्णित किस्मों विधियों से अगस्त के दौरान खेत में लगाएंगे गोभी, पालक और शलजम तो ठंड में होगी भरपूर कमाई, नहीं रहेगा किसी तरह का कोई गम।

गाजर की आधुनिक खेती करके आप भी कमा सकते है लाखों रूपए

गाजर की आधुनिक खेती करके आप भी कमा सकते है लाखों रूपए

गाजर की खेती पूरे भारतवर्ष में की जाती है गाजर को कच्चा एवं पकाकर दोनों ही तरह से लोग प्रयोग करते है गाजर में विटामिन ए और कैरोटीन होते हैं, जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद हैं। नारंगी गाजर में कैरोटीन अधिक होता है, गाजर की हरी पत्तियों में प्रोटीन, मिनिरल्स, विटामिन्स आदि बहुत सारे पोषक तत्व हैं जो जानवरों को पोषण देती हैं। मुर्गियों का चारा गाजर की हरी पत्तियों से बनाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश, असाम, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक गाजर उगाई जाती है।

गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु  

ज्यादातर ठंडे मौसम में गाजर उगाई जाती है। गाजर की बढ़वार अधिक तापक्रम होने पर कम हो जाती है तथा रंग में परिवर्तन हो जाता है इसके लिए बलुई दोमट तथा दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है भूमि में पानी का निकास होना बहुत महत्वपूर्ण है।

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गाजर की किस्में 

गाजर की बहुत सी किस्में है जैसे की गाजर नंबर 29 , पूसा केसर, पूसा मेघाली, सलेकशन 233, जेंटनी, अर्लीमेंट्स, अम्प्रेटर, मेन्ट्स आफ लाग, पूसा यमदाग्नि एवं जीनो है।

खेत की तैयारी 

गाजर की बुवाई के लिए खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद दो से तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत भुरभुरा बना लेना चाहिएI 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत तैयार करते समय भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। ऐसा करने से फल के उपज अधिक प्राप्त होती है।

बीज और बीज की बुवाई

गाजर की खेती करने के लिए उन्नत किसमो के बीज का चयन करना चाहिए। गाजर की खेती में मेंड़ो पर बुवाई हेतु 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करनी चाहिए। गाजर की बुवाई उत्तरी भारत में अगस्त से अक्टूबर तक की जाती है यूरोपियन किस्मों की बुवाई नवम्बर में की जाती हैI पहाड़ी क्षेत्रो में मार्च से जून तक बुवाई की जाती हैI इसकी बुवाई 35 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनो पर या मेंड़ो पर करनी चाहिएI बीज को 1.5 से 2 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए मेंड़ो की ऊंची 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 4 से 5 सेंटीमीटर रखते है।

फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन

200 से 250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी करते समय देना चाहिए तथा 50 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 45 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले देना चाहिएI शेष आधी मात्रा नत्रजन की खड़ी फसल में दो बार में देते है 1/4 नाइट्रोजन  की मात्रा शुरू में पत्तियो की बढ़वार के समय तथा 1/4 मात्रा नत्रजन की जड़ो की बढ़वार के समय देना चाहिए।

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फसल में सिंचाई प्रबंधन 

बुवाई के बाद नाली में पहली सिंचाई करनी चाहिए जिससे मेंड़ों में नमी बनी रहे बाद में 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिएI गर्मियों में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिएI खेत को कभी सूखना नहीं चाहिए नहीं तो पैदावार कम हो जाती हैI

खरपतवार नियंत्रण

पूरी फसल में 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, उसी समय थिनिंग करके पौधों से 4 से 5 सेंटीमीटर की दूरी बनानी चाहिए। खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के तुरंत बाद खेत में 3.5 लीटर स्टाम्प छिड़काव करना चाहिए, जबकि खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

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गाजर की खुदाई और पैदावार

गाजर के जड़ें ज खाने योग्य हो जावे तभी इसकी खुरपी द्वारा खुदाई करनी चाहिए जिससे जड़ें कटे न और गुणवत्ता अच्छी बनी रहे जिससे कि बाजार में अच्छा भाव प्राप्त हो सकेI इसकी सफाई करके बाजार में बेंच देना चाहिए।  गाजर में जड़ों की पैदावार किस्म के प्रकार के अनुसार प्राप्त होती है जैसे कि एशियाटिक टाइप में 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है तथा यूरोपियन टाइप में 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है।