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गाजर की आधुनिक खेती करके आप भी कमा सकते है लाखों रूपए

Published on: 02-Nov-2023

गाजर की खेती पूरे भारतवर्ष में की जाती है गाजर को कच्चा एवं पकाकर दोनों ही तरह से लोग प्रयोग करते है गाजर में विटामिन ए और कैरोटीन होते हैं, जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद हैं। नारंगी गाजर में कैरोटीन अधिक होता है, गाजर की हरी पत्तियों में प्रोटीन, मिनिरल्स, विटामिन्स आदि बहुत सारे पोषक तत्व हैं जो जानवरों को पोषण देती हैं। मुर्गियों का चारा गाजर की हरी पत्तियों से बनाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश, असाम, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक गाजर उगाई जाती है।

गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु  

ज्यादातर ठंडे मौसम में गाजर उगाई जाती है। गाजर की बढ़वार अधिक तापक्रम होने पर कम हो जाती है तथा रंग में परिवर्तन हो जाता है इसके लिए बलुई दोमट तथा दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है भूमि में पानी का निकास होना बहुत महत्वपूर्ण है।

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गाजर की किस्में 

गाजर की बहुत सी किस्में है जैसे की गाजर नंबर 29 , पूसा केसर, पूसा मेघाली, सलेकशन 233, जेंटनी, अर्लीमेंट्स, अम्प्रेटर, मेन्ट्स आफ लाग, पूसा यमदाग्नि एवं जीनो है।

खेत की तैयारी 

गाजर की बुवाई के लिए खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद दो से तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत भुरभुरा बना लेना चाहिएI 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत तैयार करते समय भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। ऐसा करने से फल के उपज अधिक प्राप्त होती है।

बीज और बीज की बुवाई

गाजर की खेती करने के लिए उन्नत किसमो के बीज का चयन करना चाहिए। गाजर की खेती में मेंड़ो पर बुवाई हेतु 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करनी चाहिए। गाजर की बुवाई उत्तरी भारत में अगस्त से अक्टूबर तक की जाती है यूरोपियन किस्मों की बुवाई नवम्बर में की जाती हैI पहाड़ी क्षेत्रो में मार्च से जून तक बुवाई की जाती हैI इसकी बुवाई 35 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनो पर या मेंड़ो पर करनी चाहिएI बीज को 1.5 से 2 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए मेंड़ो की ऊंची 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 4 से 5 सेंटीमीटर रखते है।

फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन

200 से 250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी करते समय देना चाहिए तथा 50 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 45 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले देना चाहिएI शेष आधी मात्रा नत्रजन की खड़ी फसल में दो बार में देते है 1/4 नाइट्रोजन  की मात्रा शुरू में पत्तियो की बढ़वार के समय तथा 1/4 मात्रा नत्रजन की जड़ो की बढ़वार के समय देना चाहिए।

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फसल में सिंचाई प्रबंधन 

बुवाई के बाद नाली में पहली सिंचाई करनी चाहिए जिससे मेंड़ों में नमी बनी रहे बाद में 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिएI गर्मियों में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिएI खेत को कभी सूखना नहीं चाहिए नहीं तो पैदावार कम हो जाती हैI

खरपतवार नियंत्रण

पूरी फसल में 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, उसी समय थिनिंग करके पौधों से 4 से 5 सेंटीमीटर की दूरी बनानी चाहिए। खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के तुरंत बाद खेत में 3.5 लीटर स्टाम्प छिड़काव करना चाहिए, जबकि खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

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गाजर की खुदाई और पैदावार

गाजर के जड़ें ज खाने योग्य हो जावे तभी इसकी खुरपी द्वारा खुदाई करनी चाहिए जिससे जड़ें कटे न और गुणवत्ता अच्छी बनी रहे जिससे कि बाजार में अच्छा भाव प्राप्त हो सकेI इसकी सफाई करके बाजार में बेंच देना चाहिए।  गाजर में जड़ों की पैदावार किस्म के प्रकार के अनुसार प्राप्त होती है जैसे कि एशियाटिक टाइप में 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है तथा यूरोपियन टाइप में 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है।

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